02-01-2019, 11:44 AM
भाग - 22
राजू का बदन बुरी तरह काँप गया.. मस्ती की लहर उसके पूरे बदन में दौड़ गई।
‘वाह मजा आ गया, तेरे लण्ड का स्वाद चख कर…’ चमेली के राजू लण्ड को मुँह से निकाल कर राजू की ओर देखते हुए कहा और फिर से उसके लण्ड को मुँह में भर कर चूसने लगी।
राजू अपनी अधखुली आँखों से चमेली की तरफ देख रहा था और उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि चमेली उसके मोटे और लंबे लण्ड को आधे से ज्यादा मुँह में भर कर चूस रही है।
चमेली तेज़ी से अपने सर को आगे-पीछे हिलाते हुए, राजू के लण्ड को मुँह के अन्दर-बाहर कर रही थी और राजू भी चमेली के सर को दोनों हाथों से पकड़े हुए… अपनी कमर को हिलाते हुए अपने लण्ड को चुसवा रहा था।
‘ओह्ह काकी मेरा पानी ओह्ह… निकलने वाला है.. ओह्ह और ज़ोर से चूस्स्स साली आह्ह.. अह.. और अन्दर ले..’
चमेली ने करीब 5 मिनट तक राजू के लण्ड को बिना रुके हुए चूसा और राजू के लण्ड ने उसके मुँह में अपने वीर्य की बौछार कर दी।
राजू के पानी की एक भी बूँद उसने बाहर नहीं गिरने दी।
थोड़ी देर बाद जब राजू की साँस सामान्य हुई, तो उसने चमेली की तरफ देखा।
राजू- अरे काकी… आप ‘वो’ पी गईं?
चमेली- हाँ.. और इसमें क्या बुराई है.. तेरे लण्ड का पानी तो मेरे लिए अमृत है।
ये कह कर उसने राजू के लण्ड को अपनी साड़ी के पल्लू से पौंछा और राजू ने अपने पजामा ऊपर करके बाँध लिया।
‘तू भी आएगा ना.. मेरी बेटी की शादी में?’
चमेली ने राजू की तरफ देखते हुए पूछा।
अब राजू उससे क्या कहता.. पर उसने चमेली का मन रखने के लिए उससे ‘हाँ’ कह दिया।
रात के वक़्त की बात थी, राजू खाना खाने के बाद अपने कमरे की तरफ जा रहा था कि गेंदामल ने उससे पीछे से आवाज़ लगा दी, ‘अरे ओ राजू ज़रा सुन तो।’
राजू- जी सेठ जी।
गेंदामल- बेटा.. तू कल अपनी बड़ी मालकिन के साथ उसके मायके जा रहा है, ठीक से तैयारी कर ले, वहाँ तुझे 7-8 दिन तक रहना पड़ सकता है।
राजू- जी सेठ जी।
गेंदामल- अच्छा ठीक है, अब तू जा.. तैयारी कर ले। कल सुबह तुझे निकालना होगा।
गेंदामल की बात सुनने के बाद राजू पीछे अपने कमरा में आ गया।
आज राजू के मन में ढेरों सवाल थे.. आख़िर कुसुम के मायके में भी तो लोग होंगे।
फिर मालकिन ने कैसे कह दिया कि वो सारा दिन मुझसे चुदवाएगी।
क्या ऐसा सच मैं हो सकता है?
अगली सुबह जब चमेली सेठ गेंदामल के घर पहुँचती है, तो सेठ के घर के बाहर तांगा खड़ा देख कुछ सोच में पड़ जाती है।
‘आज इतनी सुबह-सुबह कौन आ गया सेठ जी के घर…?’ ये बोलते हुए चमेली सेठ के घर के अन्दर दाखिल होती है।
जैसे ही वो घर के आँगन में पहुँचती है, तो कुसुम अपने बैगों के साथ तैयार खड़ी हुई दिखती है।
चमेली- आप कहीं जा रही है मालकिन?
कुसुम- हाँ.. वो मैं मायके जा रही हूँ।
चमेली- अचानक से कैसे और अकेली जा रही हैं क्या?
कुसुम (अपने होंठों पर घमंड से मुस्कान लाते हुए)- नहीं तो.. राजू भी साथ जा रहा है।
चमेली ने एकदम से चौंकते हुए पूछा- क्या.. राजू?
कुसुम- हाँ.. वो 7-8 दिन के लिए जा रही हूँ ना… तो सामान थोड़ा ज्यादा है। इसलिए राजू साथ में जा रही हूँ।
चमेली अपने मन में सोचती है कि साली छिनाल की चूत में ज़रूर खुजली हो रही होगी।
‘अच्छा वैसे राजू भी 8 दिन रहेगा?’
कुसुम- हाँ क्यों… तुम्हें कोई परेशानी है?
कुसुम चमेली को आँखें दिखाते हुए बोली।
चमेली घबराते हुए बोली- नहीं मालकिन.. आप ऐसा क्यों सोच रही हैं?
चमेली बिना कुछ बोले रसोई में चली गई।
उसके बाद राजू ने अपना और कुसुम का सारा सामान उठा कर तांगे में रख और खुद तांगे में आगे की तरफ बैठ गया और कुसुम तांगे के पीछे की तरफ बैठ गई।
कुसुम के मायके का गाँव उनके गाँव से कोई 3 घंटे के दूरी पर था.. उस जमाने में बस या और कोई साधन नहीं हुआ करता था क्योंकि एक गाँव से दूसरे गाँव तक लोग तांगे में ही सफ़र किया करते थे और जो लोग ग़रीब थे, वो तो इतना लंबा सफ़र भी पैदल चल कर ही करते थे।
दोपहर हो चुकी थी, तांगे वाला भी गेंदामल के गाँव से ही था।
इसलिए कुसुम और राजू के बीच में पूरे रास्ते कुछ ज्यादा बातचीत नहीं हुई थी।
जब वो कुसुम के मायके पहुँचे तो उनका स्वागत कुसुम की माँ, भाई और भाभी ने किया।
तीनों कुसुम को देख कर बहुत खुश थे, वो राजू और कुसुम को घर के अन्दर ले आए और कुसुम को उसकी माँ ने अपने साथ पलंग पर बैठा लिया और अपनी बहू रेशमा को राजू और कुसुम के लिए चाय नास्ता लाने के लिए कहा। सुरेश कुसुम का भाई भी उनके साथ बैठ गया।
लता (कुसुम की माँ)- और बेटी कैसी हो? आख़िर तुम्हें अपनी माँ की याद आ ही गई।
सुरेश- हाँ दीदी.. आज आप बहुत समय बाद आई हो, आप तो जैसे हमें भूल ही गईं।
कुसुम (मुस्कुराते हुए)- नहीं माँ.. ऐसी कोई बात नहीं है.. वो दरअसल इनको (गेंदामल) काम से फ़ुर्सत नहीं मिलती और आप तो जानती ही हो, वो मुझे अकेले कहीं नहीं भेजते।
लता- अच्छा ठीक है ये छोरा कौन है?
कुसुम- ये.. इसे सेठ जी ने घर के काम-काज के लिए रखा है। अच्छा सुरेश तुम दोनों शादी के लिए कब निकल रहे हो?
सुरेश- जी दीदी बस आपका इंतजार था.. बस अभी ही निकलने वाले हैं। इसलिए तांगे वाले को रोक लिया..
दरअसल सुरेश के साले की शादी थी और वो और उसकी पत्नी 7 दिनों के लिए जा रहे थे, इसलिए उन्होंने कुसुम को यहाँ पर बुलवाया था, क्योंकि उनके पीछे उनकी माँ अपने पति के साथ अकेली रह जाती।
लता के पति यानि कुसुं के पिता की टाँग की हड्डी टूटी हुई थी.. जिसकी वजह से वो चल-फिर नहीं पाता था, इसलिए कुसुम अपनी माँ का कुछ हाथ बटा सके, चाय और नास्ते के बाद सुरेश अपनी पत्नी के साथ अपनी ससुराल जाने के लिए निकल गया, उनके जाने के बाद कुसुम ने अपनी माँ से अपने पिता के बारे में पूछा।
लता- वो अपने कमरे में हैं, जा.. जाकर मिल आ।
कुसुम- अच्छा माँ मैं बाबा से मिलकर आती हूँ.. तुम मेरा सामान मेरे कमरे में रखवा दो।
लता- अच्छा सुन इसको कहाँ पर रखना है.. मेरा मतलब ये कहाँ सोएगा?
कुसुम- माँ पहले तुम मेरा सामान तो रखवाओ। इसके बारे में बाद में बताती हूँ।
ये कह कर कुसुम अपने पिता से मिलने के लिए उसके कमरे में चली गई और लता कुसुम का सामान राजू से उठवा कर दूसरी मंज़िल पर बने हुए उसके कमरे में रखवाने लगी।
कुसुम जब भी अपने मायके आती थी, वो उसी कमरे में रुकती थी, उस कमरे के पीछे वाली खिड़की खेतों की तरफ खुलती थी।
अब कुसुम की माँ और पिता के बारे में कुछ बता दूँ।
कुसुम का बाप राजेन्द्र अपने माँ-बाप की इकलौती औलाद था.. जवानी के दिनों में वो बहुत ही घुम्मकड़ और अय्याश किस्म का इंसान था और वो शादी को बंधन मानता था इसलिए उसने काफ़ी दिनों तक शादी नहीं की..
पर उम्र के बढ़ने के बाद उसे परिवार की ज़रूरत महसूस होने लगी और आख़िर 30 साल की उम्र में उसने लता से शादी कर ली।
लता उससे उम्र में दस साल कम थी और कुसुम उसकी अपनी बेटी नहीं थी।
कुसुम लता की बहन की बड़ी बेटी थी.. जो उसकी शादी से 8 साल पहले पैदा हुई थी, पर कुसुम के माँ-बाप चल बसे..
और लता ने कुसुम को गोद ले लिया था, वो भी शादी के महज एक साल बाद और दूसरे साल सुरेश पैदा हुआ था।
राजेन्द्र की शादी को अभी साल भी पूरा नहीं हुआ था।
जैसे ही सुरेश 18 साल को हुआ तो उसकी शादी करवा दे गई थी, इसलिए 18 साल की उम्र का बेटा होने के बावजूद भी लता सिर्फ़ 38 साल की थी और कुसुम की बड़ी बहन जैसी लगती थी।
भले ही कुसुम उम्र में उससे कुछ साल छोटी थी.. पर दोनों को देख कर दोनों में एक साल का फर्क लगता था।
अपने पिता से मिलने के बाद कुसुम बाहर आँगन में आकर अपनी माँ के साथ बैठ गई और इधर-उधर की बातें करने लगी।
राजू आँगन के एक कोने में बैठा हुआ धूप का आनन्द ले रहा था।
जब लता की शादी को 3 साल बीत चुके थे, तब कुसुम किशोर हो चुकी थी और लता का पति अपनी आदतों से निकल नहीं पाया था।
दिन भर दारू पीना, रण्डीबाजी करना और घूमते रहना यही उसका काम का था।
उन्हीं दिनों की बात है, एक दिन कुसुम जब छोटी थी.. अपने कमरे में सो रही थी.. दोपहर का समय था।
अचानक से उसकी नींद खुली और वो उठ कर लता को खोजते हुए उसके कमरे की तरफ जाने लगी..
पर जैसे ही वो कमरे के दरवाजे पर पहुँची.. तो जो उसने देखा उसे कुछ समझ में नहीं आया।
उनके खेतों में काम करने वाला एक मजदूर बिस्तर के किनारे पर खड़ा हुआ था।
उसकी धोती उसके पैरों में पड़ी हुई थी और वो लता को पीछे से कमर से पकड़े हुए तेज़ी से अपने लण्ड को उसकी चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था और लता, ‘ओह्ह..धीरे ओह्ह..’ जैसे मादक सिसकियाँ भर रही थी।
नादान कुसुम समझ रही थी कि वो मजदूर उसकी माँ को मार रहा है और उसने वही खड़े-खड़े रोना शुरू कर दिया।
कुसुम के रोने की आवाज़ सुनते ही, दोनों हड़बड़ा गए।
लता ने अपनी साड़ी को नीचे किया और उस मजदूर को घूरते हुए लुँगी को बांधने के लिए कहा और खुद कुसुम को दूसरे कमरे में ले गई।
‘अरे मेरी प्यारी गुड़िया क्या हुआ तुझे..? रो क्यों रही है?’
कुसुम (सुबकते हुए)- माँ वो कल्लू आपको मार रहा था?
लता- नहीं तो तुमसे किसने कहा.. वो तो मुझे चोट लग गई थी.. इसलिए दवाई लगा रहा था।
कुसुम- माँ ऐसे भी कोई दवाई लगता है अपनी नूनी से।
लता- वो क्या है ना.. मेरे सूसू वाली जगह के अन्दर चोट लगी है ना.. अब चुप कर और ये बात अपने बाबा से मत कहना.. ठीक है, नहीं तो वो भी रोने लगेंगे।
कुसुम- सच माँ.. ज्यादा चोट है।
लता- नहीं.. अब ठीक है..पर ध्यान रखना अपने बाबा से मत कहना।
कुसुम- ठीक है माँ।
राजू का बदन बुरी तरह काँप गया.. मस्ती की लहर उसके पूरे बदन में दौड़ गई।
‘वाह मजा आ गया, तेरे लण्ड का स्वाद चख कर…’ चमेली के राजू लण्ड को मुँह से निकाल कर राजू की ओर देखते हुए कहा और फिर से उसके लण्ड को मुँह में भर कर चूसने लगी।
राजू अपनी अधखुली आँखों से चमेली की तरफ देख रहा था और उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि चमेली उसके मोटे और लंबे लण्ड को आधे से ज्यादा मुँह में भर कर चूस रही है।
चमेली तेज़ी से अपने सर को आगे-पीछे हिलाते हुए, राजू के लण्ड को मुँह के अन्दर-बाहर कर रही थी और राजू भी चमेली के सर को दोनों हाथों से पकड़े हुए… अपनी कमर को हिलाते हुए अपने लण्ड को चुसवा रहा था।
‘ओह्ह काकी मेरा पानी ओह्ह… निकलने वाला है.. ओह्ह और ज़ोर से चूस्स्स साली आह्ह.. अह.. और अन्दर ले..’
चमेली ने करीब 5 मिनट तक राजू के लण्ड को बिना रुके हुए चूसा और राजू के लण्ड ने उसके मुँह में अपने वीर्य की बौछार कर दी।
राजू के पानी की एक भी बूँद उसने बाहर नहीं गिरने दी।
थोड़ी देर बाद जब राजू की साँस सामान्य हुई, तो उसने चमेली की तरफ देखा।
राजू- अरे काकी… आप ‘वो’ पी गईं?
चमेली- हाँ.. और इसमें क्या बुराई है.. तेरे लण्ड का पानी तो मेरे लिए अमृत है।
ये कह कर उसने राजू के लण्ड को अपनी साड़ी के पल्लू से पौंछा और राजू ने अपने पजामा ऊपर करके बाँध लिया।
‘तू भी आएगा ना.. मेरी बेटी की शादी में?’
चमेली ने राजू की तरफ देखते हुए पूछा।
अब राजू उससे क्या कहता.. पर उसने चमेली का मन रखने के लिए उससे ‘हाँ’ कह दिया।
रात के वक़्त की बात थी, राजू खाना खाने के बाद अपने कमरे की तरफ जा रहा था कि गेंदामल ने उससे पीछे से आवाज़ लगा दी, ‘अरे ओ राजू ज़रा सुन तो।’
राजू- जी सेठ जी।
गेंदामल- बेटा.. तू कल अपनी बड़ी मालकिन के साथ उसके मायके जा रहा है, ठीक से तैयारी कर ले, वहाँ तुझे 7-8 दिन तक रहना पड़ सकता है।
राजू- जी सेठ जी।
गेंदामल- अच्छा ठीक है, अब तू जा.. तैयारी कर ले। कल सुबह तुझे निकालना होगा।
गेंदामल की बात सुनने के बाद राजू पीछे अपने कमरा में आ गया।
आज राजू के मन में ढेरों सवाल थे.. आख़िर कुसुम के मायके में भी तो लोग होंगे।
फिर मालकिन ने कैसे कह दिया कि वो सारा दिन मुझसे चुदवाएगी।
क्या ऐसा सच मैं हो सकता है?
अगली सुबह जब चमेली सेठ गेंदामल के घर पहुँचती है, तो सेठ के घर के बाहर तांगा खड़ा देख कुछ सोच में पड़ जाती है।
‘आज इतनी सुबह-सुबह कौन आ गया सेठ जी के घर…?’ ये बोलते हुए चमेली सेठ के घर के अन्दर दाखिल होती है।
जैसे ही वो घर के आँगन में पहुँचती है, तो कुसुम अपने बैगों के साथ तैयार खड़ी हुई दिखती है।
चमेली- आप कहीं जा रही है मालकिन?
कुसुम- हाँ.. वो मैं मायके जा रही हूँ।
चमेली- अचानक से कैसे और अकेली जा रही हैं क्या?
कुसुम (अपने होंठों पर घमंड से मुस्कान लाते हुए)- नहीं तो.. राजू भी साथ जा रहा है।
चमेली ने एकदम से चौंकते हुए पूछा- क्या.. राजू?
कुसुम- हाँ.. वो 7-8 दिन के लिए जा रही हूँ ना… तो सामान थोड़ा ज्यादा है। इसलिए राजू साथ में जा रही हूँ।
चमेली अपने मन में सोचती है कि साली छिनाल की चूत में ज़रूर खुजली हो रही होगी।
‘अच्छा वैसे राजू भी 8 दिन रहेगा?’
कुसुम- हाँ क्यों… तुम्हें कोई परेशानी है?
कुसुम चमेली को आँखें दिखाते हुए बोली।
चमेली घबराते हुए बोली- नहीं मालकिन.. आप ऐसा क्यों सोच रही हैं?
चमेली बिना कुछ बोले रसोई में चली गई।
उसके बाद राजू ने अपना और कुसुम का सारा सामान उठा कर तांगे में रख और खुद तांगे में आगे की तरफ बैठ गया और कुसुम तांगे के पीछे की तरफ बैठ गई।
कुसुम के मायके का गाँव उनके गाँव से कोई 3 घंटे के दूरी पर था.. उस जमाने में बस या और कोई साधन नहीं हुआ करता था क्योंकि एक गाँव से दूसरे गाँव तक लोग तांगे में ही सफ़र किया करते थे और जो लोग ग़रीब थे, वो तो इतना लंबा सफ़र भी पैदल चल कर ही करते थे।
दोपहर हो चुकी थी, तांगे वाला भी गेंदामल के गाँव से ही था।
इसलिए कुसुम और राजू के बीच में पूरे रास्ते कुछ ज्यादा बातचीत नहीं हुई थी।
जब वो कुसुम के मायके पहुँचे तो उनका स्वागत कुसुम की माँ, भाई और भाभी ने किया।
तीनों कुसुम को देख कर बहुत खुश थे, वो राजू और कुसुम को घर के अन्दर ले आए और कुसुम को उसकी माँ ने अपने साथ पलंग पर बैठा लिया और अपनी बहू रेशमा को राजू और कुसुम के लिए चाय नास्ता लाने के लिए कहा। सुरेश कुसुम का भाई भी उनके साथ बैठ गया।
लता (कुसुम की माँ)- और बेटी कैसी हो? आख़िर तुम्हें अपनी माँ की याद आ ही गई।
सुरेश- हाँ दीदी.. आज आप बहुत समय बाद आई हो, आप तो जैसे हमें भूल ही गईं।
कुसुम (मुस्कुराते हुए)- नहीं माँ.. ऐसी कोई बात नहीं है.. वो दरअसल इनको (गेंदामल) काम से फ़ुर्सत नहीं मिलती और आप तो जानती ही हो, वो मुझे अकेले कहीं नहीं भेजते।
लता- अच्छा ठीक है ये छोरा कौन है?
कुसुम- ये.. इसे सेठ जी ने घर के काम-काज के लिए रखा है। अच्छा सुरेश तुम दोनों शादी के लिए कब निकल रहे हो?
सुरेश- जी दीदी बस आपका इंतजार था.. बस अभी ही निकलने वाले हैं। इसलिए तांगे वाले को रोक लिया..
दरअसल सुरेश के साले की शादी थी और वो और उसकी पत्नी 7 दिनों के लिए जा रहे थे, इसलिए उन्होंने कुसुम को यहाँ पर बुलवाया था, क्योंकि उनके पीछे उनकी माँ अपने पति के साथ अकेली रह जाती।
लता के पति यानि कुसुं के पिता की टाँग की हड्डी टूटी हुई थी.. जिसकी वजह से वो चल-फिर नहीं पाता था, इसलिए कुसुम अपनी माँ का कुछ हाथ बटा सके, चाय और नास्ते के बाद सुरेश अपनी पत्नी के साथ अपनी ससुराल जाने के लिए निकल गया, उनके जाने के बाद कुसुम ने अपनी माँ से अपने पिता के बारे में पूछा।
लता- वो अपने कमरे में हैं, जा.. जाकर मिल आ।
कुसुम- अच्छा माँ मैं बाबा से मिलकर आती हूँ.. तुम मेरा सामान मेरे कमरे में रखवा दो।
लता- अच्छा सुन इसको कहाँ पर रखना है.. मेरा मतलब ये कहाँ सोएगा?
कुसुम- माँ पहले तुम मेरा सामान तो रखवाओ। इसके बारे में बाद में बताती हूँ।
ये कह कर कुसुम अपने पिता से मिलने के लिए उसके कमरे में चली गई और लता कुसुम का सामान राजू से उठवा कर दूसरी मंज़िल पर बने हुए उसके कमरे में रखवाने लगी।
कुसुम जब भी अपने मायके आती थी, वो उसी कमरे में रुकती थी, उस कमरे के पीछे वाली खिड़की खेतों की तरफ खुलती थी।
अब कुसुम की माँ और पिता के बारे में कुछ बता दूँ।
कुसुम का बाप राजेन्द्र अपने माँ-बाप की इकलौती औलाद था.. जवानी के दिनों में वो बहुत ही घुम्मकड़ और अय्याश किस्म का इंसान था और वो शादी को बंधन मानता था इसलिए उसने काफ़ी दिनों तक शादी नहीं की..
पर उम्र के बढ़ने के बाद उसे परिवार की ज़रूरत महसूस होने लगी और आख़िर 30 साल की उम्र में उसने लता से शादी कर ली।
लता उससे उम्र में दस साल कम थी और कुसुम उसकी अपनी बेटी नहीं थी।
कुसुम लता की बहन की बड़ी बेटी थी.. जो उसकी शादी से 8 साल पहले पैदा हुई थी, पर कुसुम के माँ-बाप चल बसे..
और लता ने कुसुम को गोद ले लिया था, वो भी शादी के महज एक साल बाद और दूसरे साल सुरेश पैदा हुआ था।
राजेन्द्र की शादी को अभी साल भी पूरा नहीं हुआ था।
जैसे ही सुरेश 18 साल को हुआ तो उसकी शादी करवा दे गई थी, इसलिए 18 साल की उम्र का बेटा होने के बावजूद भी लता सिर्फ़ 38 साल की थी और कुसुम की बड़ी बहन जैसी लगती थी।
भले ही कुसुम उम्र में उससे कुछ साल छोटी थी.. पर दोनों को देख कर दोनों में एक साल का फर्क लगता था।
अपने पिता से मिलने के बाद कुसुम बाहर आँगन में आकर अपनी माँ के साथ बैठ गई और इधर-उधर की बातें करने लगी।
राजू आँगन के एक कोने में बैठा हुआ धूप का आनन्द ले रहा था।
जब लता की शादी को 3 साल बीत चुके थे, तब कुसुम किशोर हो चुकी थी और लता का पति अपनी आदतों से निकल नहीं पाया था।
दिन भर दारू पीना, रण्डीबाजी करना और घूमते रहना यही उसका काम का था।
उन्हीं दिनों की बात है, एक दिन कुसुम जब छोटी थी.. अपने कमरे में सो रही थी.. दोपहर का समय था।
अचानक से उसकी नींद खुली और वो उठ कर लता को खोजते हुए उसके कमरे की तरफ जाने लगी..
पर जैसे ही वो कमरे के दरवाजे पर पहुँची.. तो जो उसने देखा उसे कुछ समझ में नहीं आया।
उनके खेतों में काम करने वाला एक मजदूर बिस्तर के किनारे पर खड़ा हुआ था।
उसकी धोती उसके पैरों में पड़ी हुई थी और वो लता को पीछे से कमर से पकड़े हुए तेज़ी से अपने लण्ड को उसकी चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था और लता, ‘ओह्ह..धीरे ओह्ह..’ जैसे मादक सिसकियाँ भर रही थी।
नादान कुसुम समझ रही थी कि वो मजदूर उसकी माँ को मार रहा है और उसने वही खड़े-खड़े रोना शुरू कर दिया।
कुसुम के रोने की आवाज़ सुनते ही, दोनों हड़बड़ा गए।
लता ने अपनी साड़ी को नीचे किया और उस मजदूर को घूरते हुए लुँगी को बांधने के लिए कहा और खुद कुसुम को दूसरे कमरे में ले गई।
‘अरे मेरी प्यारी गुड़िया क्या हुआ तुझे..? रो क्यों रही है?’
कुसुम (सुबकते हुए)- माँ वो कल्लू आपको मार रहा था?
लता- नहीं तो तुमसे किसने कहा.. वो तो मुझे चोट लग गई थी.. इसलिए दवाई लगा रहा था।
कुसुम- माँ ऐसे भी कोई दवाई लगता है अपनी नूनी से।
लता- वो क्या है ना.. मेरे सूसू वाली जगह के अन्दर चोट लगी है ना.. अब चुप कर और ये बात अपने बाबा से मत कहना.. ठीक है, नहीं तो वो भी रोने लगेंगे।
कुसुम- सच माँ.. ज्यादा चोट है।
लता- नहीं.. अब ठीक है..पर ध्यान रखना अपने बाबा से मत कहना।
कुसुम- ठीक है माँ।