06-07-2019, 05:18 PM
(This post was last modified: 06-07-2019, 05:23 PM by vijayveg. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
रीमा के घर से निकलते ही तीनो चुपचाप अपने अपने घर की तरफ चल दिए | किसी ने किसी से कोई बात नहीं करी | तीनो अपनी ही नजरो में गिर गए थे | शर्म, ग्लानी और सदमे से भरे हुए | किसी के पास भी सोचने समझने की शक्ति नहीं बची थी | बस बदहवास से अपने घर की तरफ भागे चले जा रहे थे | ऐसा लग रहा था जैसे भरे बाजार के बीचो बीच किसी ने उनका बलात्कार कर दिया हो | तीनो ने एक दुसरे से अलग होने से पहले एक दुसरे का मुहँ देखना तक गंवारा नहीं समझा | किसी मुहँ से एक दुसरे से नज़ारे मिलाते |
रीमा ने उन तीनो को एक दुसरे की नजरो में ही इतना गिरा दिया था, की अब इसके बाद कोई इज्जत उतारने को बचती कहाँ है |
प्रियम हमेशा की तरफ अपने घर में चोरो की तरह पीछे के दरवाजे से घुसा | जब भी प्रियम कुछ गलत करता था तो हमेशा सबकी नजरे बचाकर पीछे से घर में आता था | वो घर में घुस ही रहा था की उसका फ़ोन बजने लगा |
इधर रीमा बिस्तर पर ढेर कुछ देर तक छत की दीवार देखती रही., लेकिन जैसे ही उसको होश आया,उसकी चेतना लेती अपनी विजय के अहंकार से निकल कर झट से कपड़े पहने, खुद को ठीक किया | हल्का सा मेकअप किया और मेकअप करते करते उसके दिमाग में प्रियम का ख्याल आया | ये मैंने क्या कर दिया, प्रियम कही सदमे में आकर कुछ उल्टा सीधा न आर बैठे | उसने झट से प्रियम को फ़ोन मिला दिया | पिछले गेट से चोरो की तरह घुसते प्रियम की चोरी पकड़ी गयी | उसके फ़ोन की रिंग टोन, सामने मैं गेट के पास बैठी उसकी बुआ को सुनाई दी | रोहित तो अपने ऑफिस के काम से बाहर था, इसलिए अभी तो प्रियम अपनी बुआ और फूफा की ही कस्टडी में था | वैसे अगर रोहित के जीजा अनिल और दीदी रोहिणी नहीं भी आते तो रोहित प्रियम के लिए एक केयरटेकर का इंतजाम कर गया था, जो की प्रियम के कॉलेज में पढ़ाती थी | इसके अलावा रीमा को भी उसने सख्त हिदायत दे रखी थी प्रियम की देखभाल करने की | वासना और बदले की आग उतरते ही रीमा को प्रियम का ख्याल आया | घंटी बजती रही लेकिन प्रियम ने फ़ोन नहीं उठाया | उसकी हालत नहीं इस समय की वो रीमा का सामना कर सके, भले ही वो फ़ोन क्यों न हो | रोहिणी ने वही से बैठे बैठे गर्दन घुमाई और देखा प्रियम पीछे से आ रहा है | उसे थोड़ा अजीब लगा लेकिन उनकी नजर में वो गुड boy था इसलिए ज्यादा कुछ सोचा नहीं |
रोहिणी - अरे प्रियम पीछे से कहाँ से आ रहे हो और तुमारा फ़ोन बज रहा है |
प्रियम ने अपनी सारी हिम्मत इकट्ठी करके, जरा सा रुका और बोला - रांग नंबर है बुआ |
यह बोलते उसकी आवाज कांपते हुए भर्रा गयी | वो तेजी से उपरी मंजिल पर स्थित अपने कमरे की तरफ भागा |
रोहिणी कुछ और पूछना चाहती थी लेकिन इससे पहले ही प्रियम तेजी से सीढ़िया चढ़ गया | रोहिणी और अनिल के भी दो बच्चे थे, एक लड़का , एक लड़की और दोनों ही प्रियम से बड़े थे | इसलिए प्रियम उनसे मिलने जुलने में थोड़ा सकुचाता था, वो भी इसलिए ज्यादा कोशिश नहीं करते | हालाँकि रोहिणी और अनिल चाहते थे प्रियम उनके बच्चो से घुल मिलकर रहे | लेकिन उनसे रूखे स्वाभाव की कारन उन्होंने भी एक दो बार के बाद ज्यादा कोशिश नहीं की | फिलहाल अनिल आये तो दो हफ्ते के लिए ही थे लेकिन रोहित के कहने पर बच्चो के कॉलेज खुलने तक यही रुकने का प्लान बना लिया | रोहिणी ने एक पल प्रियम के बारे में सोचा और फिर अपने काम में लग गयी | प्रियम तेजी से सीढ़िया चढ़ता हुआ आया और जल्दी से अपने कमरे में घुसकर उसे अन्दर से बंद कर लिया | अपने कमरे में आते, बदहवास सा रोने लगा, उसके अन्दर का डर गुस्सा छोभ दहसत सब आंसुओं के डगर भहर निकलने लगा | अपने बिस्तर में उल्टा लेटकर तकिये में मुहँ घुसाकर बेतहाशा रोने लगा |
रीमा ने एक दो बार और फ़ोन मिलाया, लेकिन उसने फ़ोन नहीं उठाया | रीमा के दिलो दिमाग में अब अजीब सी बेचनी भरने वाली उधेड़बुन शुरू हो गयी | रीमा को खुद पर ही बड़ा गुस्सा आ रहा था लेकिन वो करती भी क्या | उसने जो किया सही किया, उसने अपने किये गए फैसलों के लिए कोई ग्लानी भाव न आने देने की कसम खा ली | अगर प्रियम ने सबको सच बता भी दिया तो भी वो पीछे नहीं हटेगी | गलती लड़को की थी इसलिए उनके साथ जो हुआ वो उनके कर्मो की सजा है |
तो अब क्या करे रीमा, रोहित के न होते हुए वो उसकी ही तो जिम्मेदारी था | उसे कुछ हो गया या उसने कोई उल्टा सीधा कदम उठा लिया तो सारा दोष उसके मथ्थे मढ़ा जायेगा | तो मै क्या करती उसने भी तो सारी हदे पार कर दी, उसके दोस्तों के सामने अपनी छीछालेदर करवा लेती | मेरे सामने कैसे बेशर्मो जैसी बाते कर रहे थे, कल के लौड़े है और ख्वाब अपनी बाप की उम्र के | सबक न सिखाती तो, कल को सर पर चढ़ कर मूतते, सारे बाजार फब्तियां कसते, जलील करते और न जाने क्या क्या करते मेरे साथ | खासकरके वो जग्गू तो अपनी रंडी ही बना डालता मुझे | उपरवाले ने बचाया है मुझे, मुझे अपने किये का कोई अफ़सोस नहीं होना चाहिए |
लेकिन क्या, लेकिन रोहित से किये वादे का क्या | मुझे कुछ करना होगा, किसी तरह से पता लगाना होगा, प्रियम के दिमाग में क्या चल रहा है | कही कुछ उल्टा सीधा करने की तो नहीं सोच रहा | यही सोचकर रीमा ने खुद को आईने में देखा, और प्रियम का पता लगाने निकल पड़ी | उसे नहीं पता था की प्रियम उसके घर से निकालकर कहाँ गया इसलिए उसने सबसे पहले उसके घर जाने की सोची |
इधर जग्गू और राजू भिओ ख़ामोशी से कुछ देर साथ चले और फिर अपने अपने घर की तरफ मुड़ गए | दोनों मन ही मन एक दुसरे को गाली दे रहे थे | उन दोनों को लग रहा था उनके साथ जो हुआ है वो सामने वाली की गलती है | दोनों ही गुस्से और दहसत से भरे हुए थे | दोनों के पिछवाड़े के छेद में दर्द हो रहा था और उनके हर कदम के साथ वो दर्द उन्हें रीमा की याद दिला देता | राजू ने घर के गेट से पहले खुद को व्यवस्थित किया | लम्बी साँस भरी और चेहरे पर फर्जी आत्मविस्वास बनाता हुआ ऐसे घर में घुसा जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो | पिछले तीन घन्टे में उसने इतना कुछ देख लिया था भुगत लिया था की उसके सुकुमार मन के लिए वो किसी जैकपोट से कम नहीं था | इतनी बुरी तरह से जलील होने के बाद भी उसके अन्दर कोई मलाल नहीं था | उसके साथ जो कुछ हुआ उसको लेकर वो सदमे में था लेकिन उसको जितना सेक्स का एक्सपीरियंस आज कुछ घंटो में हासिल हुआ वो तो शायद उसे लाखो रुपये खर्च करके भी कंही नहीं मिलता | घर में घुसते ही बिना माँ बाप की आवाज सुने सीधे कमरे में घुस गया | कमरे को अन्दर से बंद कर लिया और फटाफट सारे कपड़े उतार डाले | अपने पीछे चुताड़ो पर हाथ लगाया और अपने गांड के दर्द को चेक किया और फिर बिस्तर पर लेट गया | एक एक करके उसके दिमाग में सब कुछ किसी फिल्म की तरह चलने लगा | उसे बहुत शर्म और झेंप महसूस हुई जब उसने महसूस किया की उसकी रीमा ने इज्जत उसी की नजरो में उतार दी लेकिन अगले पल ही उत्साह से भर उठा जब उसने याद किया , आज ही उसने रीमा की गुलाबी चिकनी मख्खन मलाई जैसी चूत के भी दर्शन किये है, आज ही पहली बार रीमा के संगमरमरी गुलाबी बदन के प्राकृतिक अवस्था में दर्शन हुए है | वो तो बस इसी कल्पना में घुसकर अगले कुछ सालो तक मुठ मारता रहेगा | उसके लिए रीमा को नंगा देखना ही सिद्धि प्राप्त करने जैसा था | उसे तो बोनस में रीमा की गुलाबी चूत के दर्शन भी हो गए | उसके तने हुए उठे हुए स्तन, उसकी चिकनी पीठ और उसके कोमल रस भरे गुलाबी ओंठ ................आआआह्ह्ह्ह राजू के लिए तो जैसे जन्नत का ही नजारा हो | राजू तो अपने दुःख और अवसाद की बजाय बस रीमा के हुस्न के प्रथम दर्शन पाकर ही गदगद हो रहा था | राजू के दिलो दिमाग में रीमा बुरी तरह से घुस गयी थी | राजू के लंड को जिस अदा और नजाकत से चूस के निचोड़ा था रीमा ने वो तो जैसे राजू के जीवन का सबसे हसीन पल बन गया | उसके लिए ये मौका किसी जैकपोट से कम नहीं रहा | रीमा ने उन्हें अपमानित करने में कोई कसर नहीं चोदी थी लेकिन राजू अपने साथ किये गए बलात व्यवहार को भूलकर बस रीमा के नरम गुलाबी रस टपकाते होंठो की सख्त मखमली जकड़न को अपने लंड पर अभी भी महसूस कर रहा था | रीमा ने उसका लंड चूसा ये बात उसके लिए किसी लाइफटाइम याद की तरह हो गयी थी | वो बस आंख बंद किये बिस्तर अपनी गांड में हो रहे हलके दर्द के बीच रीमा के ऊपर नीचे जाते सर और अपने लंड पर उसके फिसल रहे उसके नरम होंठो की सख्त जकड़न को ही अभी तक महसूस कर रहा था |
तभी उसके कानो में आवाज सुनाई पड़ी - राजू खाना खाने नीचे आएगा या मै ऊपर आऊ | ये कड़क आवाज उसके बाप की थी | राजू के सारे सपने फुर्र हो गए | उसे हकीकत में वापस लौटना ही पड़ा | न चाहते हुए भी बिना मर्जी के बेड से उठा, घर वाले कपड़े पहने और खाना खाने चल दिया |
जग्गू की हालत सबसे ज्यादा ख़राब थी | रीमा ने रबर के लंड जग्गू का न केवल अभिमान चकनाचूर कर दिया बल्कि जग्गू की गाड़ के छेद की हालत भी पतली कर दी थी | आज तक जग्गू को लगता था लंड सिर्फ पुरुष को मिला है इसलिए चोदने का काम सिर्फ मर्द का है, लेकिन आज के चूत ने उसकी गांड मार ली और जग्गू के लिए ये सूरज पश्चिम से निकलने जैसा था | अभी वो कुछ सोच पाने की हालत में नहीं था वो बहुत घहरे सदमे था | जब वो घर में घुसा तो सभी डाइनिंग हाल में खाना खा रहे थे, जग्गू को देख उसकी माँ ने उससे खाना खाने को बोला लेकिन वो बिना सुने अपनी धुन में निकल कर अपने कमरे में घुस गया | जिस तेजी से उसने कमरे का दरवाजा बंद किया पूरा माकन उसकी गूँज से भर गया | जग्गू के बाप का पारा चढ़ गया लेकिन इससे पहले वो कुछ करता, उसकी पत्नी ने उसे शांत रहने का इशारा किया | लड़कियां चुपचाप फिर से खाना खाने लगी | पत्नी की तरफ आंखे तरेरने के बाद जग्गू का बाप भी खाना खाने लगा | जग्गू का इस तरह से आना अप्रत्याशित नहीं था | अक्सर लडाई झगड़े के बाद वो बाप का लेक्चर सुनने से बचने के लिए कमरे घुस जाया करता था | सबको लगा आज भी कंही से लड़ झगड़ कर आया होगा | सबने अपना खाना खाया और कमरे में चले गए | कुछ देर बाद उसकी माँ वापस आई ये देखने की वो अपने कमरे से निकला या नहीं | उसके कमरे तक गयी, दो तीन बार आवाज लगायी लेकिन अन्दर से कोई जवाब नहीं आया | वो निराश कदमो से वापस चली गयी | अपने सोने के कमरे में जाकर उसने जग्गू के कान में कुछ कहा | सोने की तयारी कर रहे जग्गू के बाप के माथे पर बल पड़ गए | उसने अपनी पत्नी से चिंता न करने की बात करते हुए सोने को कहा | दोनों लाइट बुझाकर सो गए | कुछ ही देर में पत्नी के खराटे से उसके सोने का पता चल गया | जग्गू के बाप की आँखों में नीद नहीं थी | जग्गू बहुत ही ज्यादा उग्र था और तीन घंटे से ज्यादा हो गए वो अपने कमरे से नहीं निकला और न ही उसके कमरे से कुछ तोड़ने फोड़ने की आवजे आई | जग्गू अपने बाप का इकलौता लड़का था, कैसा भी था लेकिन था तो एकलौता ही | वो किसी को गोली मार के आता तो उसके बाप को उतनी चिंता नहीं थी जीतनी अभी हो रही थी | बिना आहट के बिस्तर से उठा और जग्गू के कमरे के बाहर जाकर आवाज लगायी | अन्दर से कोई आवाज नहीं आई | उसे लगा जग्गू सो गया होगा | फिर भी कुछ देर तक वो वही खड़ा रहा | वो बस चलने को हुआ और अन्दर से उसे हल्की सी सिसकने की आवाज सुनाई | उसका बेटा रो रहा है क्यों और वो भी इतना उग्र आक्रामक जग्गू कमरे में छुपकर रो रहा है सबसे अकेला क्यों? जग्गू के बाप के चिंता सच साबित हो गयी | वैसे भी बच्चो को छींक तक आये तो माँ बाप को पता चल जाता है | जग्गू का बाप किर्त्व्यविमूढ़ सा वही खड़ा रहा | कुछ देर तक वो फैसला नहीं ले पाया | उसके बाद उसे बेटे का ख्याल आया | उसने दरवाजे पर दस्तक दी | बिस्तर में घुसकर अपने अहंकार के अपने पिछवाड़े में घुसने की हार पर करूँ रुदन कर रहे जग्गू की साँस रुक गयी | इतनी रात को कौन आ गया, जग्गू की सिसकिया थम गयी, उसे समझ नहीं आया कौन है, उसे लगा माँ होगी, जैसा की अक्सर होता है | खाना खाने के लिए पूछने आई होगी | वो कुछ सोच पाता इससे पहले उसके बाप की आवाज उसके कानो में सुनाई पड़ी - जग्गू दरवाजा खोलो |
जग्गू को लगा जैसे रीमा ने उसकी इज्जत उसके बाप के सामने लूट ली हो | अब क्या करे, क्या न करे | उसने सोने का नाटक किया और कोई रिएक्शन नहीं दिया |
जग्गू का बाप - जग्गू मै तुमारा बाप हूँ, दरवाजा खोलो मुझे पता है तुम जग रहे हो और अभी मैंने तुमारे रोने की आवाज सुनी |
जग्गू का तो जैसे चीरहरण हो गया हो वो भी भरे बाजार में | वो क्या बोले, क्या न बोले, क्या करे, वैसे भी सदमे का मारा , रीमा से हारा पूरी तरह से पस्त था, ऊपर से बाप का झमेला |
जग्गू के बाप ने थोडा इन्तजार किया और फिर दबी आवाज में दहाड़ा - दरवाजा खोल हरामखोर, वरना मै सबको जगा दूंगा |
जग्गू को लगा अब कोई रास्ता नहीं है | उसने अपने आंसू पोछे, अपने कपड़े ठीक किये और दरवाजा खोल दिया | कमरे में अँधेरा था | जग्गू कमरे का दरवाजा खोलकर फिर बेड में घुस गया |
उसके बाप ने कमरे कमरे की लाइट जलाई | कुछ देर तक जग्गू को घूरता रहा | जग्गू ने नजरे नीची कर ली |
जग्गू का बाप - क्यों रो रहा था |
जग्गू को कोई जवाब न सुझा , वो चुप रहा |
जग्गू का बाप - अभी बताएगा या सुबह | हालत तो ऐसी लग रही है जैसे ...............................|
बोल क्या हुआ, किसी लड़की के भाइयो ने ये दुर्गति करी है या झुग्गी में कोई पंगा हुआ ??
जग्गू छुप रहा ................ जग्गू का बाप आराम से पूछ रहा था, फिर भी जग्गू खामोश था |
जग्गू के बाप ने फिर से आराम से अपना सवाल दुहराया लेकिन जग्गू भी उसी का तो लड़का था | वो भी चुप रहा |
कुछ बोलेगा भी या चुप रहेगा | ऐसा क्या हुआ जो कल तक शेर की दहाड़ने वाला आज भीगी बिल्ली बनकर कमरे में छुपकर रो रहा है | जग्गू उदास सा चुप ही रहा | आज उसका आत्मविश्वास पातळ में था कैसे मुहँ खोले |
जग्गू का बाप गुस्साते हुए - कुछ बोलेगा या सचमुच आज किसी ने तेरी गांड मार ली | आधी रात को रंडापा करवा रहा है |
अनजाने में ही उसने जग्गू की सच्चाई उसके मुहँ से निकल गयी | जग्गू सकपका गया, उसने मुहँ फेर लिया | जग्गू का बाप अपने बेटे के चेहरे को पढने की कोशिश कर रहा था और अब तक उसे समझ आ गया था जग्गू के साथ सच में कुछ गड़बड़ हुई है |
जग्गू का बाप - कल बात करते है इस बारे में चुपचाप सो जा, तेरी आँखों में आंसू लाने वालो का कलेजा निकाल कर अपने कुत्तो को खिलाऊंगा |
जग्गू का बाप चला गया उसके काहे गए आखिरी शब्दों ने जैसे मारते जग्गू को संजीवनी दे दी हो |
रीमा ने उन तीनो को एक दुसरे की नजरो में ही इतना गिरा दिया था, की अब इसके बाद कोई इज्जत उतारने को बचती कहाँ है |
प्रियम हमेशा की तरफ अपने घर में चोरो की तरह पीछे के दरवाजे से घुसा | जब भी प्रियम कुछ गलत करता था तो हमेशा सबकी नजरे बचाकर पीछे से घर में आता था | वो घर में घुस ही रहा था की उसका फ़ोन बजने लगा |
इधर रीमा बिस्तर पर ढेर कुछ देर तक छत की दीवार देखती रही., लेकिन जैसे ही उसको होश आया,उसकी चेतना लेती अपनी विजय के अहंकार से निकल कर झट से कपड़े पहने, खुद को ठीक किया | हल्का सा मेकअप किया और मेकअप करते करते उसके दिमाग में प्रियम का ख्याल आया | ये मैंने क्या कर दिया, प्रियम कही सदमे में आकर कुछ उल्टा सीधा न आर बैठे | उसने झट से प्रियम को फ़ोन मिला दिया | पिछले गेट से चोरो की तरह घुसते प्रियम की चोरी पकड़ी गयी | उसके फ़ोन की रिंग टोन, सामने मैं गेट के पास बैठी उसकी बुआ को सुनाई दी | रोहित तो अपने ऑफिस के काम से बाहर था, इसलिए अभी तो प्रियम अपनी बुआ और फूफा की ही कस्टडी में था | वैसे अगर रोहित के जीजा अनिल और दीदी रोहिणी नहीं भी आते तो रोहित प्रियम के लिए एक केयरटेकर का इंतजाम कर गया था, जो की प्रियम के कॉलेज में पढ़ाती थी | इसके अलावा रीमा को भी उसने सख्त हिदायत दे रखी थी प्रियम की देखभाल करने की | वासना और बदले की आग उतरते ही रीमा को प्रियम का ख्याल आया | घंटी बजती रही लेकिन प्रियम ने फ़ोन नहीं उठाया | उसकी हालत नहीं इस समय की वो रीमा का सामना कर सके, भले ही वो फ़ोन क्यों न हो | रोहिणी ने वही से बैठे बैठे गर्दन घुमाई और देखा प्रियम पीछे से आ रहा है | उसे थोड़ा अजीब लगा लेकिन उनकी नजर में वो गुड boy था इसलिए ज्यादा कुछ सोचा नहीं |
रोहिणी - अरे प्रियम पीछे से कहाँ से आ रहे हो और तुमारा फ़ोन बज रहा है |
प्रियम ने अपनी सारी हिम्मत इकट्ठी करके, जरा सा रुका और बोला - रांग नंबर है बुआ |
यह बोलते उसकी आवाज कांपते हुए भर्रा गयी | वो तेजी से उपरी मंजिल पर स्थित अपने कमरे की तरफ भागा |
रोहिणी कुछ और पूछना चाहती थी लेकिन इससे पहले ही प्रियम तेजी से सीढ़िया चढ़ गया | रोहिणी और अनिल के भी दो बच्चे थे, एक लड़का , एक लड़की और दोनों ही प्रियम से बड़े थे | इसलिए प्रियम उनसे मिलने जुलने में थोड़ा सकुचाता था, वो भी इसलिए ज्यादा कोशिश नहीं करते | हालाँकि रोहिणी और अनिल चाहते थे प्रियम उनके बच्चो से घुल मिलकर रहे | लेकिन उनसे रूखे स्वाभाव की कारन उन्होंने भी एक दो बार के बाद ज्यादा कोशिश नहीं की | फिलहाल अनिल आये तो दो हफ्ते के लिए ही थे लेकिन रोहित के कहने पर बच्चो के कॉलेज खुलने तक यही रुकने का प्लान बना लिया | रोहिणी ने एक पल प्रियम के बारे में सोचा और फिर अपने काम में लग गयी | प्रियम तेजी से सीढ़िया चढ़ता हुआ आया और जल्दी से अपने कमरे में घुसकर उसे अन्दर से बंद कर लिया | अपने कमरे में आते, बदहवास सा रोने लगा, उसके अन्दर का डर गुस्सा छोभ दहसत सब आंसुओं के डगर भहर निकलने लगा | अपने बिस्तर में उल्टा लेटकर तकिये में मुहँ घुसाकर बेतहाशा रोने लगा |
रीमा ने एक दो बार और फ़ोन मिलाया, लेकिन उसने फ़ोन नहीं उठाया | रीमा के दिलो दिमाग में अब अजीब सी बेचनी भरने वाली उधेड़बुन शुरू हो गयी | रीमा को खुद पर ही बड़ा गुस्सा आ रहा था लेकिन वो करती भी क्या | उसने जो किया सही किया, उसने अपने किये गए फैसलों के लिए कोई ग्लानी भाव न आने देने की कसम खा ली | अगर प्रियम ने सबको सच बता भी दिया तो भी वो पीछे नहीं हटेगी | गलती लड़को की थी इसलिए उनके साथ जो हुआ वो उनके कर्मो की सजा है |
तो अब क्या करे रीमा, रोहित के न होते हुए वो उसकी ही तो जिम्मेदारी था | उसे कुछ हो गया या उसने कोई उल्टा सीधा कदम उठा लिया तो सारा दोष उसके मथ्थे मढ़ा जायेगा | तो मै क्या करती उसने भी तो सारी हदे पार कर दी, उसके दोस्तों के सामने अपनी छीछालेदर करवा लेती | मेरे सामने कैसे बेशर्मो जैसी बाते कर रहे थे, कल के लौड़े है और ख्वाब अपनी बाप की उम्र के | सबक न सिखाती तो, कल को सर पर चढ़ कर मूतते, सारे बाजार फब्तियां कसते, जलील करते और न जाने क्या क्या करते मेरे साथ | खासकरके वो जग्गू तो अपनी रंडी ही बना डालता मुझे | उपरवाले ने बचाया है मुझे, मुझे अपने किये का कोई अफ़सोस नहीं होना चाहिए |
लेकिन क्या, लेकिन रोहित से किये वादे का क्या | मुझे कुछ करना होगा, किसी तरह से पता लगाना होगा, प्रियम के दिमाग में क्या चल रहा है | कही कुछ उल्टा सीधा करने की तो नहीं सोच रहा | यही सोचकर रीमा ने खुद को आईने में देखा, और प्रियम का पता लगाने निकल पड़ी | उसे नहीं पता था की प्रियम उसके घर से निकालकर कहाँ गया इसलिए उसने सबसे पहले उसके घर जाने की सोची |
इधर जग्गू और राजू भिओ ख़ामोशी से कुछ देर साथ चले और फिर अपने अपने घर की तरफ मुड़ गए | दोनों मन ही मन एक दुसरे को गाली दे रहे थे | उन दोनों को लग रहा था उनके साथ जो हुआ है वो सामने वाली की गलती है | दोनों ही गुस्से और दहसत से भरे हुए थे | दोनों के पिछवाड़े के छेद में दर्द हो रहा था और उनके हर कदम के साथ वो दर्द उन्हें रीमा की याद दिला देता | राजू ने घर के गेट से पहले खुद को व्यवस्थित किया | लम्बी साँस भरी और चेहरे पर फर्जी आत्मविस्वास बनाता हुआ ऐसे घर में घुसा जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो | पिछले तीन घन्टे में उसने इतना कुछ देख लिया था भुगत लिया था की उसके सुकुमार मन के लिए वो किसी जैकपोट से कम नहीं था | इतनी बुरी तरह से जलील होने के बाद भी उसके अन्दर कोई मलाल नहीं था | उसके साथ जो कुछ हुआ उसको लेकर वो सदमे में था लेकिन उसको जितना सेक्स का एक्सपीरियंस आज कुछ घंटो में हासिल हुआ वो तो शायद उसे लाखो रुपये खर्च करके भी कंही नहीं मिलता | घर में घुसते ही बिना माँ बाप की आवाज सुने सीधे कमरे में घुस गया | कमरे को अन्दर से बंद कर लिया और फटाफट सारे कपड़े उतार डाले | अपने पीछे चुताड़ो पर हाथ लगाया और अपने गांड के दर्द को चेक किया और फिर बिस्तर पर लेट गया | एक एक करके उसके दिमाग में सब कुछ किसी फिल्म की तरह चलने लगा | उसे बहुत शर्म और झेंप महसूस हुई जब उसने महसूस किया की उसकी रीमा ने इज्जत उसी की नजरो में उतार दी लेकिन अगले पल ही उत्साह से भर उठा जब उसने याद किया , आज ही उसने रीमा की गुलाबी चिकनी मख्खन मलाई जैसी चूत के भी दर्शन किये है, आज ही पहली बार रीमा के संगमरमरी गुलाबी बदन के प्राकृतिक अवस्था में दर्शन हुए है | वो तो बस इसी कल्पना में घुसकर अगले कुछ सालो तक मुठ मारता रहेगा | उसके लिए रीमा को नंगा देखना ही सिद्धि प्राप्त करने जैसा था | उसे तो बोनस में रीमा की गुलाबी चूत के दर्शन भी हो गए | उसके तने हुए उठे हुए स्तन, उसकी चिकनी पीठ और उसके कोमल रस भरे गुलाबी ओंठ ................आआआह्ह्ह्ह राजू के लिए तो जैसे जन्नत का ही नजारा हो | राजू तो अपने दुःख और अवसाद की बजाय बस रीमा के हुस्न के प्रथम दर्शन पाकर ही गदगद हो रहा था | राजू के दिलो दिमाग में रीमा बुरी तरह से घुस गयी थी | राजू के लंड को जिस अदा और नजाकत से चूस के निचोड़ा था रीमा ने वो तो जैसे राजू के जीवन का सबसे हसीन पल बन गया | उसके लिए ये मौका किसी जैकपोट से कम नहीं रहा | रीमा ने उन्हें अपमानित करने में कोई कसर नहीं चोदी थी लेकिन राजू अपने साथ किये गए बलात व्यवहार को भूलकर बस रीमा के नरम गुलाबी रस टपकाते होंठो की सख्त मखमली जकड़न को अपने लंड पर अभी भी महसूस कर रहा था | रीमा ने उसका लंड चूसा ये बात उसके लिए किसी लाइफटाइम याद की तरह हो गयी थी | वो बस आंख बंद किये बिस्तर अपनी गांड में हो रहे हलके दर्द के बीच रीमा के ऊपर नीचे जाते सर और अपने लंड पर उसके फिसल रहे उसके नरम होंठो की सख्त जकड़न को ही अभी तक महसूस कर रहा था |
तभी उसके कानो में आवाज सुनाई पड़ी - राजू खाना खाने नीचे आएगा या मै ऊपर आऊ | ये कड़क आवाज उसके बाप की थी | राजू के सारे सपने फुर्र हो गए | उसे हकीकत में वापस लौटना ही पड़ा | न चाहते हुए भी बिना मर्जी के बेड से उठा, घर वाले कपड़े पहने और खाना खाने चल दिया |
जग्गू की हालत सबसे ज्यादा ख़राब थी | रीमा ने रबर के लंड जग्गू का न केवल अभिमान चकनाचूर कर दिया बल्कि जग्गू की गाड़ के छेद की हालत भी पतली कर दी थी | आज तक जग्गू को लगता था लंड सिर्फ पुरुष को मिला है इसलिए चोदने का काम सिर्फ मर्द का है, लेकिन आज के चूत ने उसकी गांड मार ली और जग्गू के लिए ये सूरज पश्चिम से निकलने जैसा था | अभी वो कुछ सोच पाने की हालत में नहीं था वो बहुत घहरे सदमे था | जब वो घर में घुसा तो सभी डाइनिंग हाल में खाना खा रहे थे, जग्गू को देख उसकी माँ ने उससे खाना खाने को बोला लेकिन वो बिना सुने अपनी धुन में निकल कर अपने कमरे में घुस गया | जिस तेजी से उसने कमरे का दरवाजा बंद किया पूरा माकन उसकी गूँज से भर गया | जग्गू के बाप का पारा चढ़ गया लेकिन इससे पहले वो कुछ करता, उसकी पत्नी ने उसे शांत रहने का इशारा किया | लड़कियां चुपचाप फिर से खाना खाने लगी | पत्नी की तरफ आंखे तरेरने के बाद जग्गू का बाप भी खाना खाने लगा | जग्गू का इस तरह से आना अप्रत्याशित नहीं था | अक्सर लडाई झगड़े के बाद वो बाप का लेक्चर सुनने से बचने के लिए कमरे घुस जाया करता था | सबको लगा आज भी कंही से लड़ झगड़ कर आया होगा | सबने अपना खाना खाया और कमरे में चले गए | कुछ देर बाद उसकी माँ वापस आई ये देखने की वो अपने कमरे से निकला या नहीं | उसके कमरे तक गयी, दो तीन बार आवाज लगायी लेकिन अन्दर से कोई जवाब नहीं आया | वो निराश कदमो से वापस चली गयी | अपने सोने के कमरे में जाकर उसने जग्गू के कान में कुछ कहा | सोने की तयारी कर रहे जग्गू के बाप के माथे पर बल पड़ गए | उसने अपनी पत्नी से चिंता न करने की बात करते हुए सोने को कहा | दोनों लाइट बुझाकर सो गए | कुछ ही देर में पत्नी के खराटे से उसके सोने का पता चल गया | जग्गू के बाप की आँखों में नीद नहीं थी | जग्गू बहुत ही ज्यादा उग्र था और तीन घंटे से ज्यादा हो गए वो अपने कमरे से नहीं निकला और न ही उसके कमरे से कुछ तोड़ने फोड़ने की आवजे आई | जग्गू अपने बाप का इकलौता लड़का था, कैसा भी था लेकिन था तो एकलौता ही | वो किसी को गोली मार के आता तो उसके बाप को उतनी चिंता नहीं थी जीतनी अभी हो रही थी | बिना आहट के बिस्तर से उठा और जग्गू के कमरे के बाहर जाकर आवाज लगायी | अन्दर से कोई आवाज नहीं आई | उसे लगा जग्गू सो गया होगा | फिर भी कुछ देर तक वो वही खड़ा रहा | वो बस चलने को हुआ और अन्दर से उसे हल्की सी सिसकने की आवाज सुनाई | उसका बेटा रो रहा है क्यों और वो भी इतना उग्र आक्रामक जग्गू कमरे में छुपकर रो रहा है सबसे अकेला क्यों? जग्गू के बाप के चिंता सच साबित हो गयी | वैसे भी बच्चो को छींक तक आये तो माँ बाप को पता चल जाता है | जग्गू का बाप किर्त्व्यविमूढ़ सा वही खड़ा रहा | कुछ देर तक वो फैसला नहीं ले पाया | उसके बाद उसे बेटे का ख्याल आया | उसने दरवाजे पर दस्तक दी | बिस्तर में घुसकर अपने अहंकार के अपने पिछवाड़े में घुसने की हार पर करूँ रुदन कर रहे जग्गू की साँस रुक गयी | इतनी रात को कौन आ गया, जग्गू की सिसकिया थम गयी, उसे समझ नहीं आया कौन है, उसे लगा माँ होगी, जैसा की अक्सर होता है | खाना खाने के लिए पूछने आई होगी | वो कुछ सोच पाता इससे पहले उसके बाप की आवाज उसके कानो में सुनाई पड़ी - जग्गू दरवाजा खोलो |
जग्गू को लगा जैसे रीमा ने उसकी इज्जत उसके बाप के सामने लूट ली हो | अब क्या करे, क्या न करे | उसने सोने का नाटक किया और कोई रिएक्शन नहीं दिया |
जग्गू का बाप - जग्गू मै तुमारा बाप हूँ, दरवाजा खोलो मुझे पता है तुम जग रहे हो और अभी मैंने तुमारे रोने की आवाज सुनी |
जग्गू का तो जैसे चीरहरण हो गया हो वो भी भरे बाजार में | वो क्या बोले, क्या न बोले, क्या करे, वैसे भी सदमे का मारा , रीमा से हारा पूरी तरह से पस्त था, ऊपर से बाप का झमेला |
जग्गू के बाप ने थोडा इन्तजार किया और फिर दबी आवाज में दहाड़ा - दरवाजा खोल हरामखोर, वरना मै सबको जगा दूंगा |
जग्गू को लगा अब कोई रास्ता नहीं है | उसने अपने आंसू पोछे, अपने कपड़े ठीक किये और दरवाजा खोल दिया | कमरे में अँधेरा था | जग्गू कमरे का दरवाजा खोलकर फिर बेड में घुस गया |
उसके बाप ने कमरे कमरे की लाइट जलाई | कुछ देर तक जग्गू को घूरता रहा | जग्गू ने नजरे नीची कर ली |
जग्गू का बाप - क्यों रो रहा था |
जग्गू को कोई जवाब न सुझा , वो चुप रहा |
जग्गू का बाप - अभी बताएगा या सुबह | हालत तो ऐसी लग रही है जैसे ...............................|
बोल क्या हुआ, किसी लड़की के भाइयो ने ये दुर्गति करी है या झुग्गी में कोई पंगा हुआ ??
जग्गू छुप रहा ................ जग्गू का बाप आराम से पूछ रहा था, फिर भी जग्गू खामोश था |
जग्गू के बाप ने फिर से आराम से अपना सवाल दुहराया लेकिन जग्गू भी उसी का तो लड़का था | वो भी चुप रहा |
कुछ बोलेगा भी या चुप रहेगा | ऐसा क्या हुआ जो कल तक शेर की दहाड़ने वाला आज भीगी बिल्ली बनकर कमरे में छुपकर रो रहा है | जग्गू उदास सा चुप ही रहा | आज उसका आत्मविश्वास पातळ में था कैसे मुहँ खोले |
जग्गू का बाप गुस्साते हुए - कुछ बोलेगा या सचमुच आज किसी ने तेरी गांड मार ली | आधी रात को रंडापा करवा रहा है |
अनजाने में ही उसने जग्गू की सच्चाई उसके मुहँ से निकल गयी | जग्गू सकपका गया, उसने मुहँ फेर लिया | जग्गू का बाप अपने बेटे के चेहरे को पढने की कोशिश कर रहा था और अब तक उसे समझ आ गया था जग्गू के साथ सच में कुछ गड़बड़ हुई है |
जग्गू का बाप - कल बात करते है इस बारे में चुपचाप सो जा, तेरी आँखों में आंसू लाने वालो का कलेजा निकाल कर अपने कुत्तो को खिलाऊंगा |
जग्गू का बाप चला गया उसके काहे गए आखिरी शब्दों ने जैसे मारते जग्गू को संजीवनी दे दी हो |