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Incest Rishton ka Zehar
#12
तारा की आँखों के आगे अंधेरा छा गया। उसके गले से एक ऐसी आवाज़ निकली जैसे उसकी जान निकल रही हो। "आह्ह्ह्ह्ह्ह! निकल इसे! बाहर निकाल मादरचोद! फट गई मैं... राहुल... मर जाऊंगी!"

तारा का बदन फर्श पर आगे की ओर खिसक गया, लेकिन राहुल ने उसे कमर से पकड़कर वापस खींचा और लगातार धक्के मारने शुरू किए। थप-थप-थप-थप!

"चुप रह रण्डी! अभी तो खेल शुरू हुआ है," राहुल ने उसके कान में दहाड़ते हुए कहा और उसकी पीठ पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़ा।

तारा की सिसकारियाँ अब दर्द और बेइंतहा मज़े के बीच झूल रही थीं। राहुल का लंड उसकी चूत की गहराई में एक-एक इंच को रोंद रहा था। "ओह्ह्ह... राहुल... तू तो... अऊउउ... मादरचोद... कितनी ज़ोर से मार रहा है! मेरी सील तोड़ दी तूने... अह्ह्ह... हाँ... ऐसे ही... फाड़ दे अपनी इस बहन को!"

राहुल की रफ़्तार अब Full Rough हो चुकी थी। तारा के बाल फर्श पर बिखरे थे और उसकी सिसकारियाँ "बाहर निकाल" से बदलकर "और डाल" में बदल गई थीं। स्टोर रूम की दीवारों ने आज एक सगे भाई को अपनी बहन की अस्मत के साथ खेलते हुए देखा था।
स्टोर रूम के बाहर गलियारे में मम्मी की चप्पलों की 'चट-चट' की आवाज़ जैसे ही तारा के कानों में पड़ी, उसके जिस्म में डर की एक लहर दौड़ गई। उसकी सिसकारियाँ अचानक रुक गईं और उसने घबराकर राहुल की तरफ गर्दन मोड़ी।

"राहुल! रुक... रुक... मम्मी की आहट है! वो इधर ही आ रही हैं, जल्दी कर... वरना आज हम दोनों की लाशें गिरेंगी यहाँ!" तारा ने फुसफुसाते हुए कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में डर के साथ-साथ पकड़े जाने का एक अजीब सा रोमांच भी था।

पागलपन की रफ़्तार और आखिरी प्रहार
मम्मी की आवाज़ पास आ रही थी—"राहुल, मिला क्या सिलाई का डिब्बा? कितनी देर लगा रहा है बेटा?"

राहुल का दिमाग सुन्न हो गया, लेकिन उसका शरीर अब रुकने के लिए तैयार नहीं था। मम्मी की आवाज़ सुनकर उसके अंदर का वहशीपन और भी बढ़ गया। उसने तारा की कमर को लोहे की तरह जकड़ा और जंगली सांड (Rough) की तरह धक्के मारने की रफ़्तार बढ़ा दी।

थप-थप-थप-थप-थप!

हर प्रहार के साथ तारा का बदन फर्श पर आगे-पीछे हो रहा था। "जल्दी... राहुल... अह्ह्ह... निकाल... मेरा पानी निकल गया... जल्दी कर मादरचोद, वो आ जाएँगी!" तारा बेकाबू होकर कह रही थी।

राहुल का अंग अब फटने के करीब था। उसकी नसों में खून नहीं, बल्कि लावा दौड़ रहा था। उसने आखिरी के दस-बारह धक्के इतनी ताक़त से मारे कि तारा का मुँह खुला का खुला रह गया। जैसे ही राहुल को महसूस हुआ कि उसका बांध टूटने वाला है, उसने एक झटके में अपना लंड तारा की चूत से बाहर निकाला।

गंदा अंत: तारा का मुँह और वीर्य का सैलाब
"मुँह खोल रण्डी! जल्दी!" राहुल ने हाँफते हुए आदेश दिया।

तारा ने बिना पलक झपकाए अपना मुँह पूरा खोल दिया और राहुल के उस तपते हुए अंग को अपनी जुबान पर ले लिया। अगले ही पल, राहुल का शरीर जोर-जोर से झटके खाने लगा और उसके लंड से सफ़ेद, गाढ़ा और गर्म वीर्य (दूध) फव्वारे की तरह निकलकर तारा के मुँह में जा गिरा।

तारा की आँखें फटी रह गईं क्योंकि राहुल का माल इतनी मात्रा में था कि उसके मुँह से बाहर निकलकर उसकी ठुड्डी और फटी हुई ब्रा पर गिरने लगा। राहुल ने अपनी मुट्ठी से लंड को दबा-दबाकर आखिरी कतरा भी तारा के हलक में उतार दिया।

तारा ने उस सारे गंदे रस को गटकने की कोशिश की और राहुल की आँखों में देखते हुए एक गंदी मुस्कान दी। अभी राहुल ने अपनी पैंट ऊपर की ही थी कि स्टोर रूम के दरवाजे पर दस्तक हुई।

"राहुल! क्या हुआ? दरवाजा क्यों अटका रखा है?" बाहर मम्मी खड़ी थीं।

अंदर तारा फर्श पर अपनी फटी हुई सलवार और ब्रा के टुकड़ों के बीच नग्न पड़ी थी, और राहुल की कमीज पसीने से भीगी हुई थी।
स्टोर रूम के अंदर का मंजर किसी युद्ध के मैदान जैसा था, जहाँ मर्यादा की लाश बिछी हुई थी। जैसे ही मम्मी के कदमों की आवाज़ दरवाजे के बिल्कुल पास आई, राहुल और तारा के बीच मौत जैसी खामोशी छा गई।

सबूतों का मिटना और तारा का छिपना
तारा ने बिजली की फुर्ती दिखाई। उसने जमीन पर बिखरे अपने नीले फटे हुए सूट, टूटी हुई सफेद ब्रा और अपनी वो गीली पटियाला सलवार को एक झटके में समेटा। फर्श पर राहुल का जो सफेद पानी (वीर्य) गिरा था, उसे उसने अपनी फटी हुई कमीज से रगड़कर साफ किया।

नग्न अवस्था में ही वो दबे पाँव स्टोर रूम के अंधेरे कोने में रखे पानी की टंकी के पीछे दुबक गई। उसकी सांसें अभी भी तेज थीं और उसका बदन राहुल के प्रहारों की वजह से थरथरा रहा था। वह टंकी के पीछे से अपनी आँखें गड़ाकर देखने लगी कि अब राहुल इस स्थिति को कैसे संभालेगा।

मम्मी की एंट्री और राहुल की घबराहट
राहुल ने जल्दी से अपनी पैंट की चेन चढ़ाई, अपनी शर्ट के बटन बंद किए और पसीना पोंछकर दरवाजा खोला। सामने मम्मी खड़ी थीं, उनके चेहरे पर गुस्से और झुंझलाहट के भाव साफ थे।

"कितनी देर लगा दी राहुल? एक सिलाई मशीन निकालने को बोला था, उसमें पूरा घंटा लगा दिया!" मम्मी ने अंदर कदम रखते हुए कहा। स्टोर रूम की हवा में अभी भी उस गंदे खेल की तीखी महक और हवस की उमस मौजूद थी।
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Rishton ka Zehar - by Shipra Bhardwaj - 21-12-2025, 02:34 PM
RE: Rishton ka Zehar - by Shipra Bhardwaj - 22-12-2025, 07:08 AM
RE: Rishton ka Zehar - by Shipra Bhardwaj - 22-12-2025, 07:11 AM
RE: Rishton ka Zehar - by Shipra Bhardwaj - 22-12-2025, 08:01 PM
RE: Rishton ka Zehar - by Shipra Bhardwaj - 22-12-2025, 08:04 PM
RE: Rishton ka Zehar - by Shipra Bhardwaj - 22-12-2025, 08:06 PM
RE: Rishton ka Zehar - by Shipra Bhardwaj - 22-12-2025, 08:07 PM
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