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Incest Rishton ka Zehar
#9
तारा ने अपनी पटियाला सलवार का नाड़ा एक झटके में खींच दिया। भारी सलवार सर्र से नीचे गिर गई। स्टोर रूम की हल्की रोशनी में तारा की सफ़ेद, सुडौल टांगें और उसके बीच का वो गीला जंगल राहुल के सामने था। तारा ने अपनी टांगें थोड़ी और फैला दीं, जिससे उसकी चूत की दरार साफ दिखने लगी, जो अभी-अभी निकले रस से लथपथ थी।

"चाट इसे... अपनी इस रण्डी बहन को पागलों की तरह चाट!" तारा ने आदेश दिया।

राहुल घुटनों के बल बैठ गया। उसने तारा की जांघों को मजबूती से पकड़ा और अपना चेहरा उसकी चूत की गहराई में घुसा दिया। जैसे ही उसकी जुबान ने उस गर्म और नमकीन रस को छुआ, तारा ने अपना सिर पीछे झुका लिया और स्टोर रूम की दीवार को पकड़कर सिसकने लगी।

"अह्ह्ह... हाँ राहुल... ऐसे ही... अपनी जुबान अंदर तक डाल दे... चूस ले अपनी बहन का सारा पानी!"

बाहर मम्मी के चलने की आवाज़ आ रही थी, लेकिन अंदर भाई-बहन मर्यादा की सारी हदों को आग लगा चुके थे।
स्टोर रूम के उस अंधेरे कोने में अब न तो कोई मर्यादा बची थी और न ही कोई शर्म। राहुल के लिए तारा अब उसकी बहन नहीं, बल्कि मांस का एक ऐसा टुकड़ा थी जिसे वो कच्चा चबा जाना चाहता था। तारा की जांघों के बीच अपना चेहरा गड़ाए राहुल किसी भूखे भेड़िए की तरह उसकी योनि (चूत) पर टूट पड़ा।

हवस का नंगा नाच: चूत का स्वाद और गालियाँ
जैसे ही राहुल की गर्म और खुरदरी जुबान तारा की उस गीली और उभरी हुई दरार से टकराई, तारा का पूरा बदन बिजली के झटके की तरह कांप उठा। उसने राहुल के बालों को अपनी मुट्ठी में कसकर जकड़ लिया और उसका चेहरा अपनी जांघों के बीच और ज़ोर से भींच दिया।

"अह्ह्ह... उफ्फ्फ... राहुल... हाँ! चाट इसे मादरचोद! अपनी इस रण्डी बहन का सारा पानी पी जा!" तारा के मुँह से सिसकारियों के साथ ऐसी गंदी गालियाँ निकल रही थीं जो राहुल के खून की रफ़्तार को और बढ़ा रही थीं।

राहुल अपनी जुबान को एक सांप की तरह तारा की चूत के अंदर डाल रहा था। वो उस हिस्से (clitoris) को अपने दांतों के बीच हल्का सा दबाकर चूसने लगा, जिससे तारा की चीखें स्टोर रूम की दीवारों से टकराकर वापस आने लगीं। "ओह गॉड... राहुल... तू तो उस्ताद निकला... तेरी ये जुबान... अऊउउ... ये तो उस मंगेतर के लंड से भी ज्यादा ज़हरीली है!"

एक-एक इंच का मज़ा
राहुल ने अपनी जुबान को चूत के ऊपरी हिस्से से लेकर नीचे गुदा (anus) के छेद तक फिराया। तारा का पानी लगातार बहकर राहुल के मुँह और ठुड्डी पर लग रहा था। तारा अब बेकाबू हो चुकी थी, उसने अपनी पटियाला सलवार को पूरी तरह लात मार कर दूर फेंक दिया और अपनी एक टांग स्टोर रूम की एक पुरानी मेज पर रख दी ताकि राहुल को और गहराई मिल सके।

"और गहरा... और गहरा डाल अपनी जुबान! आज अपनी बहन को हवस से पागल कर दे बेंचोद! तुझे पता है न कि तेरी इस बहन की चूत कितनी प्यासी थी? आज इसे सुखा दे!" तारा पागलों की तरह अपनी कमर हिला रही थी, जिससे राहुल के मुँह पर मांस के टकराने की 'चप-चप' की आवाज़ गूँज रही थी।

राहुल ने अपनी उँगलियाँ भी अंदर डाल दीं। जैसे-जैसे उसकी उँगलियाँ अंदर-बाहर हो रही थीं और जुबान उस गीलेपन को चाट रही थी, तारा का बदन धनुष की तरह तन गया। वह गंदी-गंदी बातें बोलती जा रही थी, "हाँ भाई... ऐसे ही... आज माँ को भी भूल जा और बस अपनी इस रण्डी तारा में खो जा... देख कितना रस निकल रहा है... ये सब तेरा है... पी ले इसे!"

राहुल का अपना अंग (लुंड) पैंट के अंदर फटने को तैयार था। उसे अपनी बहन की उस कामुक गंध और स्वाद ने ऐसा नशा दिया कि उसे अब दुनिया में कुछ और दिखाई नहीं दे रहा था।

राहुल ने जब देखा कि तारा उसकी जुबान के वार से पूरी तरह निढाल हो चुकी है और उसकी चूत से काम-रस का सैलाब बह रहा है, तो उसने अपनी जांघों के बीच का तनाव और बर्दाश्त नहीं किया। उसने एक झटके में अपनी पैंट का बटन खोला और अपना काला, सख्त और नसों से भरा हुआ लंड बाहर निकाल लिया।

जैसे ही उसका अंग बाहर आया, स्टोर रूम की हल्की रोशनी में वह किसी लोहे की रॉड की तरह चमक रहा था। तारा की नज़रें जैसे ही उस भारी अंग पर पड़ीं, उसकी आँखें फटी की फटी रह गई।

तारा का मुँह और राहुल का प्रहार
तारा अभी भी हाफ रही थी, उसकी चूत का पानी उसकी जांघों पर सूख रहा था। राहुल ने उसके बालों को मुट्ठी में भरा और उसे घुटनों के बल नीचे बैठने का इशारा किया। तारा, जो अब पूरी तरह राहुल की दासी बन चुकी थी, बिना एक शब्द कहे फर्श पर घुटनों के बल बैठ गई।

"ले... बहुत गालियाँ दे रही थी न? अब इसे अपनी उस गंदी ज़बान से साफ़ कर," राहुल ने आदेश दिया।

तारा ने अपनी लालसा भरी नज़रें ऊपर उठाईं और राहुल के उस भारी लंड को अपने दोनों हाथों में थाम लिया। उसने अपने गुलाबी होंठों को पूरा खोला और राहुल के अंग के ऊपरी हिस्से (Supaari) को अपनी ज़बान से सहलाना शुरू किया।

"अह्ह्ह... राहुल... ये तो बहुत बड़ा है... इसे अंदर लूंगी तो मर ही जाऊंगी मादरचोद," तारा ने लंड को चूमते हुए गंदी आवाज़ में कहा।

अगले ही पल, राहुल ने सबर छोड़ दिया। उसने तारा के सिर को पीछे से पकड़ा और अपना पूरा लंड उसके मुँह में ठूंस दिया। तारा का मुँह पूरी तरह भर गया, उसकी आँखें बाहर आने को हो गईं और गले से 'गक-गक' की आवाज़ निकलने लगी। राहुल उसे कोई मौका नहीं देना चाहता था। वह तेज़ी से अपने कूल्हे चलाने लगा, उसका लंड तारा के हलक (throat) की गहराइयों को छू रहा था।

गंदा खेल और गंदी बातें
तारा का दम घुट रहा था, लेकिन वह हवस के उस मज़े में डूबी हुई थी। उसकी आँखों से पानी निकल रहा था जो राहुल के लंड पर गिर रहा था। राहुल उसे और गंदी गालियाँ देने लगा, "चूस इसे रण्डी! चूस अपनी सगे भाई का ये गरम सरिया! तुझे मंगेतर का लंड चाहिए था न? देख मेरा लंड उससे कितना बड़ा और मोटा है।"

तारा ने मुँह से लंड बाहर निकाला और ललचाई हुई नज़रों से उसे देख कर बोली, "हाँ भाई... तेरा लंड तो जान ले लेगा मेरी... मुझे अपनी बेंचोद बना ले... आज इस स्टोर रूम में अपनी इस बहन का मुँह भर दे अपने गरम दूध से!"
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Rishton ka Zehar - by Shipra Bhardwaj - 21-12-2025, 02:34 PM
RE: Rishton ka Zehar - by Shipra Bhardwaj - 22-12-2025, 07:08 AM
RE: Rishton ka Zehar - by Shipra Bhardwaj - 22-12-2025, 07:11 AM
RE: Rishton ka Zehar - by Shipra Bhardwaj - 22-12-2025, 08:01 PM
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RE: Rishton ka Zehar - by Shipra Bhardwaj - 22-12-2025, 08:15 PM



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