22-12-2025, 07:11 AM
कमरे के अंदर मम्मी ने वो सफेद पुरानी पैंटी पहनी और फिर बड़ी सलीके से अपनी साड़ी के पल्लू को कंधे पर सेट करने लगीं। शीशे के सामने खड़ी होकर जब वो खुद को निहार रही थीं, तो उनकी आँखों में एक अलग सी चमक थी। तैयार होने के बाद वो अपनी उसी चिर-परिचित गरिमा में वापस आ चुकी थीं, लेकिन राहुल के लिए अब वो सिर्फ 'मम्मी' नहीं रह गई थीं; वो उस देह का दर्शन कर चुका था जिसे देखना किसी गुनाह से कम नहीं था।
जैसे ही मम्मी कमरे से बाहर निकलने के लिए मुड़ीं, राहुल बिजली की फुर्ती से पीछे हटा और अपने कमरे में घुस गया। उसके पायजामे के अंदर उसका अंग (लुंड) पत्थर की तरह सख्त हो चुका था और तनाव इतना था कि उसे दर्द महसूस होने लगा। वो बिस्तर पर गिर पड़ा और छत को ताकते हुए गंदी और डार्क कल्पनाओं में खो गया। वो सोच रहा था कि काश वो उस वक्त कमरे के अंदर होता, काश वो उन गीली जांघों को छू पाता।
अभी वो इन खयालों में डूबा ही था कि घर के मुख्य दरवाजे की घंटी बजी।
तारा की एंट्री:
"राहुल! ओ राहुल! ज़रा गेट खोल," बाहर से तारा की खनकती हुई आवाज़ आई।
राहुल ने अपनी उत्तेजना को बमुश्किल काबू किया और उठकर गेट खोला। सामने तारा खड़ी थी, जो अभी-अभी मंदिर से लौटी थी। उसने नीले रंग का फ्लावर प्रिंट वाला सूट और ढीली पटियाला सलवार पहनी हुई थी। मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने की वजह से उसके चेहरे पर पसीने की हल्की बूंदें थीं और उसका दुपट्टा कंधे से ढलक कर नीचे गिर गया था।
नीले रंग के उस सूट में तारा का निखार और भी खिल उठा था। पटियाला सलवार की वजह से जब वो चल रही थी, तो उसके शरीर की हरकतें राहुल के दिमाग में धमाके कर रही थीं। सूट की फिटिंग इतनी सही थी कि उसके उभरे हुए अंग राहुल की आँखों को अपनी ओर खींच रहे थे।
"क्या हुआ? ऐसे क्या देख रहा है जैसे पहली बार देख रहा हो?" तारा ने शरारत से मुस्कुराते हुए पूछा और अपना हाथ राहुल के कंधे पर रख दिया।
राहुल को उस वक्त मंदिर के प्रसाद की खुशबू नहीं, बल्कि तारा के शरीर से आने वाली उस ताज़ी महक ने पागल कर दिया। एक तरफ मम्मी की साड़ी का पल्लू याद आ रहा था और दूसरी तरफ सामने खड़ी सगी बहन का ये मदहोश कर देने वाला रूप। राहुल को समझ आ गया था कि आज की रात उसके लिए बहुत भारी होने वाली है।
घर के भीतर की उमस और राहुल के मन की वासना अब एक खतरनाक मोड़ ले चुकी थी। रसोई से उठती मसालों की खुशबू और मम्मी की चूड़ियों की खनक राहुल को सामान्य नहीं कर पा रही थी। तभी तारा के फोन की रिंगटोन बजी—उसके मंगेतर का कॉल था।
तारा ने मुस्कुराते हुए फोन उठाया और प्राइवेसी के लिए सीढ़ियों से होती हुई छत पर बने अपने कमरे की ओर भागी। राहुल, जिसके खून में पहले ही उबाल था, दबे पाँव बिल्ली की तरह उसके पीछे हो लिया।
छत का कमरा और वर्जित नज़ारा
तारा का कमरा आधा खुला था। राहुल ने दीवार की ओट ली और अपनी एक आँख दरवाजे की झिरी पर टिका दी। अंदर का नज़ारा देख उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। तारा अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी, उसका नीला पटियाला सूट अस्त-व्यस्त था। सामने मोबाइल स्टैंड पर लगा था और स्क्रीन पर उसका होने वाला पति नग्न अवस्था में अपना सख्त अंग (लुंड) कैमरे के सामने हिला रहा था।
तारा की आँखों में शर्म भी थी और एक अजीब सी भूख भी। उसका मंगेतर फोन पर कुछ गंदी बातें कह रहा था, जिसे सुनकर तारा का चेहरा लाल पड़ रहा था।
"दिखाओ न तारा... बस थोड़ा सा," फोन से उसके मंगेतर की भारी आवाज़ आई।
तारा ने शर्माते हुए अपनी पटियाला सलवार का नाड़ा धीरे से ढीला किया। राहुल की सांसें रुक गईं। उसने देखा कि कैसे तारा ने अपनी सलवार को थोड़ा नीचे सरकाया, जिससे उसकी सफेद जांघों का ऊपरी हिस्सा और उस पर चढ़ी वही सफेद पैंटी की पट्टी दिखने लगी। राहुल ने अपनी पैंट के ऊपर से ही अपने अंग को ज़ोर से भींचा।
जैसे ही मम्मी कमरे से बाहर निकलने के लिए मुड़ीं, राहुल बिजली की फुर्ती से पीछे हटा और अपने कमरे में घुस गया। उसके पायजामे के अंदर उसका अंग (लुंड) पत्थर की तरह सख्त हो चुका था और तनाव इतना था कि उसे दर्द महसूस होने लगा। वो बिस्तर पर गिर पड़ा और छत को ताकते हुए गंदी और डार्क कल्पनाओं में खो गया। वो सोच रहा था कि काश वो उस वक्त कमरे के अंदर होता, काश वो उन गीली जांघों को छू पाता।
अभी वो इन खयालों में डूबा ही था कि घर के मुख्य दरवाजे की घंटी बजी।
तारा की एंट्री:
"राहुल! ओ राहुल! ज़रा गेट खोल," बाहर से तारा की खनकती हुई आवाज़ आई।
राहुल ने अपनी उत्तेजना को बमुश्किल काबू किया और उठकर गेट खोला। सामने तारा खड़ी थी, जो अभी-अभी मंदिर से लौटी थी। उसने नीले रंग का फ्लावर प्रिंट वाला सूट और ढीली पटियाला सलवार पहनी हुई थी। मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने की वजह से उसके चेहरे पर पसीने की हल्की बूंदें थीं और उसका दुपट्टा कंधे से ढलक कर नीचे गिर गया था।
नीले रंग के उस सूट में तारा का निखार और भी खिल उठा था। पटियाला सलवार की वजह से जब वो चल रही थी, तो उसके शरीर की हरकतें राहुल के दिमाग में धमाके कर रही थीं। सूट की फिटिंग इतनी सही थी कि उसके उभरे हुए अंग राहुल की आँखों को अपनी ओर खींच रहे थे।
"क्या हुआ? ऐसे क्या देख रहा है जैसे पहली बार देख रहा हो?" तारा ने शरारत से मुस्कुराते हुए पूछा और अपना हाथ राहुल के कंधे पर रख दिया।
राहुल को उस वक्त मंदिर के प्रसाद की खुशबू नहीं, बल्कि तारा के शरीर से आने वाली उस ताज़ी महक ने पागल कर दिया। एक तरफ मम्मी की साड़ी का पल्लू याद आ रहा था और दूसरी तरफ सामने खड़ी सगी बहन का ये मदहोश कर देने वाला रूप। राहुल को समझ आ गया था कि आज की रात उसके लिए बहुत भारी होने वाली है।
घर के भीतर की उमस और राहुल के मन की वासना अब एक खतरनाक मोड़ ले चुकी थी। रसोई से उठती मसालों की खुशबू और मम्मी की चूड़ियों की खनक राहुल को सामान्य नहीं कर पा रही थी। तभी तारा के फोन की रिंगटोन बजी—उसके मंगेतर का कॉल था।
तारा ने मुस्कुराते हुए फोन उठाया और प्राइवेसी के लिए सीढ़ियों से होती हुई छत पर बने अपने कमरे की ओर भागी। राहुल, जिसके खून में पहले ही उबाल था, दबे पाँव बिल्ली की तरह उसके पीछे हो लिया।
छत का कमरा और वर्जित नज़ारा
तारा का कमरा आधा खुला था। राहुल ने दीवार की ओट ली और अपनी एक आँख दरवाजे की झिरी पर टिका दी। अंदर का नज़ारा देख उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। तारा अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी, उसका नीला पटियाला सूट अस्त-व्यस्त था। सामने मोबाइल स्टैंड पर लगा था और स्क्रीन पर उसका होने वाला पति नग्न अवस्था में अपना सख्त अंग (लुंड) कैमरे के सामने हिला रहा था।
तारा की आँखों में शर्म भी थी और एक अजीब सी भूख भी। उसका मंगेतर फोन पर कुछ गंदी बातें कह रहा था, जिसे सुनकर तारा का चेहरा लाल पड़ रहा था।
"दिखाओ न तारा... बस थोड़ा सा," फोन से उसके मंगेतर की भारी आवाज़ आई।
तारा ने शर्माते हुए अपनी पटियाला सलवार का नाड़ा धीरे से ढीला किया। राहुल की सांसें रुक गईं। उसने देखा कि कैसे तारा ने अपनी सलवार को थोड़ा नीचे सरकाया, जिससे उसकी सफेद जांघों का ऊपरी हिस्सा और उस पर चढ़ी वही सफेद पैंटी की पट्टी दिखने लगी। राहुल ने अपनी पैंट के ऊपर से ही अपने अंग को ज़ोर से भींचा।


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