21-12-2025, 02:34 PM
नमस्कार दोस्तों, मैं हूँ राहुल शर्मा। मेरी उम्र 26 साल है और मैं गुलाबी नगरी जयपुर का रहने वाला हूँ। मेरा जीवन अब तक काफी साधारण रहा है, लेकिन हाल ही में कुछ ऐसी परिस्थितियाँ बनीं कि घर के रिश्तों को देखने का मेरा नज़रिया ही बदल गया।
मेरे परिवार में हम चार लोग हैं—मेरे पापा, मेरी मम्मी, मेरी बड़ी बहन और मैं।
किरदारों की झलक:
शीला (माँ): मेरी माँ की उम्र 45 साल है। वो एक घरेलू महिला (Housewife) हैं। इस उम्र में भी उन्होंने खुद को बहुत अच्छी तरह से मेंटेन कर रखा है। सादगी और ममता उनके व्यक्तित्व की पहचान है, लेकिन उनके चेहरे पर हमेशा एक ऐसी गहराई रहती है जिसे शायद मैं अब तक समझ नहीं पाया था।
तारा (बड़ी बहन): तारा मेरी जुड़वा बहन की तरह ही है (उम्र 26 साल), लेकिन वो मुझसे कुछ समय बड़ी है। तारा दिखने में बहुत ही खूबसूरत और चंचल है। उसकी अभी एक महीने पहले ही सगाई हुई है। सगाई के बाद से उसके व्यवहार में एक अजीब सी तब्दीली आई है—शायद अपनी नई ज़िंदगी को लेकर बढ़ती उत्सुकता या कुछ और।
मैं (राहुल): मैं एक प्राइवेट जॉब करता हूँ। घर में सबसे छोटा होने के नाते सबका लाड़ला हूँ, लेकिन सगाई के बाद से घर के माहौल में जो एक नई 'एनर्जी' आई है, उसने मुझे भी काफी प्रभावित किया है।
कहानी की शुरुआत:
जयपुर की उस हल्की गुलाबी ठंड वाली शाम को जब घर में तारा की शादी की तैयारियाँ ज़ोर-शोर से चल रही थीं, तब मुझे अंदाज़ा भी नहीं था कि रिश्तों की ये डोर किस तरफ मुड़ने वाली है। मम्मी और तारा अक्सर घंटों बैठकर शादी के कपड़ों और गहनों की बातें करतीं, और मैं बस उन्हें दूर से देखता रहता। पर उस दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने हमारे बीच की दूरियों और मर्यादाओं की लकीर को थोड़ा धुंधला कर दिया...
भाग 1: जुनून की शुरुआत
जयपुर की वो रातें अब मेरे लिए सामान्य नहीं रही थीं। 26 साल की उम्र में जब मेरी रातों का सुकून खोने लगा, तो उसकी वजह कोई बाहर वाली नहीं, बल्कि मेरे अपने घर की चारदीवारी थी। इसकी शुरुआत तब हुई जब मैंने पहली बार इंटरनेट की डार्क दुनिया में कदम रखा और 'एडल्ट' फिल्मों के उस जाल में फँस गया जहाँ रिश्तों की मर्यादा का कोई मोल नहीं था।
धीरे-धीरे, उन फिल्मों के दृश्य मेरे दिमाग पर हावी होने लगे। मैं जब भी मम्मी (शीला) को रसोई में काम करते देखता या तारा को सजते-संवरते देखता, तो मेरा दिमाग सामान्य भाई या बेटे की तरह नहीं, बल्कि एक शिकारी की तरह सोचने लगता।
वो पागलपन की हद:
मम्मी जब छत पर कपड़े सुखाने जातीं, तो मेरी नज़रें अनजाने में ही उनके अंतर्वस्त्रों (Lingerie) पर टिक जातीं। एक दिन, जब घर पर कोई नहीं था, मैं दबे पाँव उनके कमरे में दाखिल हुआ। अलमारी की उस खास खुशबू के बीच जब मेरे हाथ मम्मी की सिल्क की साड़ी के नीचे दबी उनकी पैंटी तक पहुँचे, तो मेरे हाथ कांप रहे थे। वो सिर्फ एक कपड़ा नहीं था, वो मेरे लिए उस 'वर्जित फल' की तरह था जिसे चखने के लिए मैं पागल हो रहा था।
मैंने उसे अपने चेहरे के करीब लाया। उस कपड़े में रची-बसी मम्मी के शरीर की भीनी खुशबू ने मेरे दिमाग की नसों में बिजली दौड़ा दी। मेरा हाथ खुद-ब-खुद नीचे गया और मैं वहीं फर्श पर बैठकर अपनी कल्पनाओं की चरम सीमा तक पहुँचने लगा।
तारा की सगाई के बाद, उसकी अलमारी में नए-नए डिज़ाइन के कपड़े आने लगे थे। तारा की पैंटीज़ और उसके इत्र की महक मुझे और भी बेचैन कर देती। एक तरफ उसकी शादी की खुशियाँ थीं और दूसरी तरफ मेरा ये बढ़ता हुआ Rough (जंगली) पागलपन। मैं रातों को जागकर बस यही सोचता कि काश ये पर्दे हट जाएँ और मैं उस सच को देख सकूँ जो इन कपड़ों के पीछे छिपा है।
मेरी प्यास अब सिर्फ देखने से नहीं बुझ रही थी, मुझे अब 'महसूस' करने की लत लग चुकी थी। हर बीतते दिन के साथ, राहुल शर्मा एक संस्कारी बेटे से बदलकर अपनी ही माँ और बहन की परछाईं का दीवाना बनता जा रहा था।
वो मंजर: जब मर्यादा की दीवार धुंधली हुई
मम्मी (शीला) अभी-अभी नहाकर निकली थीं। उनके बदन से पानी की कुछ बूंदें अभी भी टपक रही थीं। उन्होंने काले रंग का पेटीकोट और पीले रंग का ब्लाउज पहना हुआ था। ब्लाउज की बारीक जालीदार बनावट के नीचे से उनकी सफेद रंग की ब्रा की स्ट्रैप साफ झलक रही थी, जो उनके गोरे कंधों पर धंसी हुई थी। गीले बालों की वजह से ब्लाउज पीछे से चिपक गया था, जिससे उनके शरीर की बनावट और भी उभर कर आ रही थी।
वो सीधे अपने कमरे में गईं। मैंने देखा कि उन्होंने कुंडी लगाने की कोशिश की, लेकिन शायद हड़बड़ी में कुंडी पूरी तरह चढ़ी नहीं और दरवाज़ा हल्का सा खुला रह गया। मेरा दिल सीने को चीरकर बाहर आने को बेताब था। मैं दबे पाँव, अपनी सांसें रोककर उस झरोखे के पास पहुँचा।
दरवाजे की दरार से दिखता नज़ारा:
अंदर मम्मी अलमारी के सामने खड़ी थीं। उन्होंने अलमारी के सबसे निचले हिस्से से एक सफेद रंग की पैंटी निकाली। वो काफी पुरानी और किनारों से थोड़ी फटी हुई थी, जिससे उसकी सादगी में भी एक अजीब सी उत्तेजना महसूस हो रही थी। मम्मी ने उस पैंटी को हाथ में लेकर गौर से देखा और फिर एक लंबी आह भरी।
अगले ही पल, उन्होंने अपना काला पेटीकोट धीरे से ऊपर सरकाया। मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। उनकी जांघों की गोलाई और फिर वो हिस्सा... जहाँ बरसों का अनुभव और मातृत्व छिपा था। वहां छोटे-छोटे, करीने से बढ़े हुए बाल थे। उम्र के उस पड़ाव पर उनकी योनि (चूत) में थोड़ी ढीलापन ज़रूर था, लेकिन नहाने के बाद वो अभी भी पूरी तरह गीली और चमकदार लग रही थी।
मैंने देखा कि कैसे वो अपने हाथों से उस अंग को सहला रही थीं। कमरे की उस मद्धम रोशनी में उनका वो रूप किसी तपस्या को भंग करने जैसा था। मेरी हालत ये थी कि मैं दरवाजे को पकड़कर खुद को गिरने से बचा रहा था। मेरे अंदर एक जंगलीपन जाग उठा था। राहुल शर्मा जो अब तक सिर्फ कल्पनाओं में था, आज हकीकत के इतने करीब था कि मम्मी के जिस्म की महक उस दरार से होकर मेरे नथुनों तक पहुँच रही थी।
वो पल ठहर सा गया था। एक तरफ मेरी माँ की गरिमा थी और दूसरी तरफ मेरा वो बढ़ता हुआ 'लस्ट', जो अब किसी भी हद को पार करने के लिए तैयार था।
मेरे परिवार में हम चार लोग हैं—मेरे पापा, मेरी मम्मी, मेरी बड़ी बहन और मैं।
किरदारों की झलक:
शीला (माँ): मेरी माँ की उम्र 45 साल है। वो एक घरेलू महिला (Housewife) हैं। इस उम्र में भी उन्होंने खुद को बहुत अच्छी तरह से मेंटेन कर रखा है। सादगी और ममता उनके व्यक्तित्व की पहचान है, लेकिन उनके चेहरे पर हमेशा एक ऐसी गहराई रहती है जिसे शायद मैं अब तक समझ नहीं पाया था।
तारा (बड़ी बहन): तारा मेरी जुड़वा बहन की तरह ही है (उम्र 26 साल), लेकिन वो मुझसे कुछ समय बड़ी है। तारा दिखने में बहुत ही खूबसूरत और चंचल है। उसकी अभी एक महीने पहले ही सगाई हुई है। सगाई के बाद से उसके व्यवहार में एक अजीब सी तब्दीली आई है—शायद अपनी नई ज़िंदगी को लेकर बढ़ती उत्सुकता या कुछ और।
मैं (राहुल): मैं एक प्राइवेट जॉब करता हूँ। घर में सबसे छोटा होने के नाते सबका लाड़ला हूँ, लेकिन सगाई के बाद से घर के माहौल में जो एक नई 'एनर्जी' आई है, उसने मुझे भी काफी प्रभावित किया है।
कहानी की शुरुआत:
जयपुर की उस हल्की गुलाबी ठंड वाली शाम को जब घर में तारा की शादी की तैयारियाँ ज़ोर-शोर से चल रही थीं, तब मुझे अंदाज़ा भी नहीं था कि रिश्तों की ये डोर किस तरफ मुड़ने वाली है। मम्मी और तारा अक्सर घंटों बैठकर शादी के कपड़ों और गहनों की बातें करतीं, और मैं बस उन्हें दूर से देखता रहता। पर उस दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने हमारे बीच की दूरियों और मर्यादाओं की लकीर को थोड़ा धुंधला कर दिया...
भाग 1: जुनून की शुरुआत
जयपुर की वो रातें अब मेरे लिए सामान्य नहीं रही थीं। 26 साल की उम्र में जब मेरी रातों का सुकून खोने लगा, तो उसकी वजह कोई बाहर वाली नहीं, बल्कि मेरे अपने घर की चारदीवारी थी। इसकी शुरुआत तब हुई जब मैंने पहली बार इंटरनेट की डार्क दुनिया में कदम रखा और 'एडल्ट' फिल्मों के उस जाल में फँस गया जहाँ रिश्तों की मर्यादा का कोई मोल नहीं था।
धीरे-धीरे, उन फिल्मों के दृश्य मेरे दिमाग पर हावी होने लगे। मैं जब भी मम्मी (शीला) को रसोई में काम करते देखता या तारा को सजते-संवरते देखता, तो मेरा दिमाग सामान्य भाई या बेटे की तरह नहीं, बल्कि एक शिकारी की तरह सोचने लगता।
वो पागलपन की हद:
मम्मी जब छत पर कपड़े सुखाने जातीं, तो मेरी नज़रें अनजाने में ही उनके अंतर्वस्त्रों (Lingerie) पर टिक जातीं। एक दिन, जब घर पर कोई नहीं था, मैं दबे पाँव उनके कमरे में दाखिल हुआ। अलमारी की उस खास खुशबू के बीच जब मेरे हाथ मम्मी की सिल्क की साड़ी के नीचे दबी उनकी पैंटी तक पहुँचे, तो मेरे हाथ कांप रहे थे। वो सिर्फ एक कपड़ा नहीं था, वो मेरे लिए उस 'वर्जित फल' की तरह था जिसे चखने के लिए मैं पागल हो रहा था।
मैंने उसे अपने चेहरे के करीब लाया। उस कपड़े में रची-बसी मम्मी के शरीर की भीनी खुशबू ने मेरे दिमाग की नसों में बिजली दौड़ा दी। मेरा हाथ खुद-ब-खुद नीचे गया और मैं वहीं फर्श पर बैठकर अपनी कल्पनाओं की चरम सीमा तक पहुँचने लगा।
तारा की सगाई के बाद, उसकी अलमारी में नए-नए डिज़ाइन के कपड़े आने लगे थे। तारा की पैंटीज़ और उसके इत्र की महक मुझे और भी बेचैन कर देती। एक तरफ उसकी शादी की खुशियाँ थीं और दूसरी तरफ मेरा ये बढ़ता हुआ Rough (जंगली) पागलपन। मैं रातों को जागकर बस यही सोचता कि काश ये पर्दे हट जाएँ और मैं उस सच को देख सकूँ जो इन कपड़ों के पीछे छिपा है।
मेरी प्यास अब सिर्फ देखने से नहीं बुझ रही थी, मुझे अब 'महसूस' करने की लत लग चुकी थी। हर बीतते दिन के साथ, राहुल शर्मा एक संस्कारी बेटे से बदलकर अपनी ही माँ और बहन की परछाईं का दीवाना बनता जा रहा था।
वो मंजर: जब मर्यादा की दीवार धुंधली हुई
मम्मी (शीला) अभी-अभी नहाकर निकली थीं। उनके बदन से पानी की कुछ बूंदें अभी भी टपक रही थीं। उन्होंने काले रंग का पेटीकोट और पीले रंग का ब्लाउज पहना हुआ था। ब्लाउज की बारीक जालीदार बनावट के नीचे से उनकी सफेद रंग की ब्रा की स्ट्रैप साफ झलक रही थी, जो उनके गोरे कंधों पर धंसी हुई थी। गीले बालों की वजह से ब्लाउज पीछे से चिपक गया था, जिससे उनके शरीर की बनावट और भी उभर कर आ रही थी।
वो सीधे अपने कमरे में गईं। मैंने देखा कि उन्होंने कुंडी लगाने की कोशिश की, लेकिन शायद हड़बड़ी में कुंडी पूरी तरह चढ़ी नहीं और दरवाज़ा हल्का सा खुला रह गया। मेरा दिल सीने को चीरकर बाहर आने को बेताब था। मैं दबे पाँव, अपनी सांसें रोककर उस झरोखे के पास पहुँचा।
दरवाजे की दरार से दिखता नज़ारा:
अंदर मम्मी अलमारी के सामने खड़ी थीं। उन्होंने अलमारी के सबसे निचले हिस्से से एक सफेद रंग की पैंटी निकाली। वो काफी पुरानी और किनारों से थोड़ी फटी हुई थी, जिससे उसकी सादगी में भी एक अजीब सी उत्तेजना महसूस हो रही थी। मम्मी ने उस पैंटी को हाथ में लेकर गौर से देखा और फिर एक लंबी आह भरी।
अगले ही पल, उन्होंने अपना काला पेटीकोट धीरे से ऊपर सरकाया। मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। उनकी जांघों की गोलाई और फिर वो हिस्सा... जहाँ बरसों का अनुभव और मातृत्व छिपा था। वहां छोटे-छोटे, करीने से बढ़े हुए बाल थे। उम्र के उस पड़ाव पर उनकी योनि (चूत) में थोड़ी ढीलापन ज़रूर था, लेकिन नहाने के बाद वो अभी भी पूरी तरह गीली और चमकदार लग रही थी।
मैंने देखा कि कैसे वो अपने हाथों से उस अंग को सहला रही थीं। कमरे की उस मद्धम रोशनी में उनका वो रूप किसी तपस्या को भंग करने जैसा था। मेरी हालत ये थी कि मैं दरवाजे को पकड़कर खुद को गिरने से बचा रहा था। मेरे अंदर एक जंगलीपन जाग उठा था। राहुल शर्मा जो अब तक सिर्फ कल्पनाओं में था, आज हकीकत के इतने करीब था कि मम्मी के जिस्म की महक उस दरार से होकर मेरे नथुनों तक पहुँच रही थी।
वो पल ठहर सा गया था। एक तरफ मेरी माँ की गरिमा थी और दूसरी तरफ मेरा वो बढ़ता हुआ 'लस्ट', जो अब किसी भी हद को पार करने के लिए तैयार था।


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