नाम आर्यन है, और मैं अभी -- साल का हूँ (मैं 9वीं कक्षा में पढ़ता हूँ)। हमारा घर दिल्ली के एक छोटे से मोहल्ले में है, जहाँ हर कोई एक-दूसरे को जानता है। बाहर से देखो तो हमारा परिवार एकदम परफेक्ट लगता है – मम्मी-पापा की 19 साल पुरानी शादी, मैं उनका इकलौता बेटा, और सब कुछ इतना सेट कि पड़ोसी अक्सर कहते हैं, "वाह सरिता भाभी, आपका घर तो राम राज्य जैसा है!" लेकिन अंदर की बात सिर्फ मैं जानता हूँ, क्योंकि मैंने सब अपनी आँखों से देखा है। चलो, शुरू से बताता हूँ, जैसे मैं अपने किसी दोस्त को अपनी जिंदगी की कहानी सुना रहा हूँ।
मम्मी का नाम सरिता है, वो 40 साल की हैं, लेकिन देखने में 30-32 की लगती हैं। एकदम गोरी-चिट्टी, भरा हुआ बदन – न ज्यादा मोटी, न पतली, बस वैसी जो हर कोई देखकर कहे, "कितनी प्यारी हैं भाभी!" वो हमेशा साड़ी पहनती हैं, लाल सिंदूर माँग में भरा रहता है, मंगलसूत्र गले में, लाल चूड़ियाँ हाथों में, और बिंदी माथे पर। सुबह उठकर पूजा करती हैं, पापा के लिए चाय बनाती हैं, मुझे कॉलेज के लिए टिफिन पैक करती हैं। मोहल्ले में सब कहते हैं, "सरिता भाभी जैसी संस्कारी बहू कहाँ मिलेगी!" वो भोली-भाली भी बहुत हैं – किसी से लड़ती नहीं, हमेशा मुस्कुराती रहती हैं, पड़ोसियों की मदद करती हैं। लेकिन मैं जानता हूँ, ये सब बाहर का दिखावा है। अंदर से मम्मी की जिंदगी कुछ और ही है।
पापा 45 साल के हैं, नाम राकेश शर्मा। वो सरकारी नौकरी में हैं – रेलवे डिपार्टमेंट में क्लर्क हैं। रोज सुबह 9 बजे जाते हैं, शाम 6 बजे लौटते हैं। लेकिन पापा मोटे हैं, करीब 95-100 किलो के, और डायबिटीज है। इंजेक्शन लेते हैं, लेकिन खाने-पीने पर कंट्रोल नहीं करते। शाम को घर आकर सोफे पर बैठ जाते हैं, टीवी देखते हैं, और मम्मी से कहते हैं, "चाय लाओ" या "खाना लगा दो"। रात को जल्दी सो जाते हैं, क्योंकि थकान और बीमारी की वजह से। मम्मी की तरफ ध्यान ही नहीं देते – शायद साल में दो-चार बार ही कुछ होता होगा। मैंने कभी उन्हें मम्मी को प्यार से छूते नहीं देखा। पापा अच्छे हैं, लेकिन उनकी जिंदगी बस नौकरी, खाना, और सोना है।
हमारे घर में बाहर से सब नॉर्मल लगता है। सुबह पापा ऑफिस जाते हैं, मैं कॉलेज, और मम्मी घर संभालती हैं। शाम को सब इकट्ठा होते हैं, डिनर करते हैं, टीवी देखते हैं। मोहल्ले में कोई शक नहीं करता। लेकिन पिछले 6-8 महीनों में मैंने जो देखा, वो मेरी जिंदगी बदल गया। पहले तो मैं सोचता था मम्मी बस घर की औरत हैं, लेकिन अब पता चला कि वो भी अपनी जरूरतें पूरी कर रही हैं – और वो भी घर के आसपास के मर्दों से। मैंने सब चुपके से देखा, वीडियो बनाए, लेकिन किसी को नहीं बताया। शायद इसलिए कि मुझे भी कहीं न कहीं मजा आने लगा। अब बताता हूँ वो चारों घटनाएँ, एक-एक करके...
मैंने पहले ही बताया ना कि मेरा नाम आर्यन है, और मैं --- साल का हूँ (मैं 9वीं कक्षा में पढ़ता हूँ)। अब वो चारों घटनाएँ जो मैंने देखीं, वो सब पिछले 6-8 महीनों में हुईं। चलो, एक-एक करके बताता हूँ, जैसे मैं अपना राज किसी करीबी दोस्त को खोल रहा हूँ। सब कुछ मेरी आँखों देखी है, और हर बार मैंने चुपके से वीडियो भी बना लिया। लेकिन सबसे पहले दूसरी घटना से शुरू करता हूँ – पड़ोसी अंकल विनोद के साथ। ये अप्रैल 2025 की बात है, जब मैंने कॉलेज बंक मारी थी।
उस दिन सुबह का टाइम था, करीब 9:30 बजे। मैं कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रहा था, मम्मी ने टिफिन पैक किया, पापा पहले ही ऑफिस निकल चुके थे। लेकिन मन नहीं कर रहा था क्लास जाने का – बोर्ड एग्जाम्स खत्म हो चुके थे, और गर्मी की छुट्टियाँ आने वाली थीं। मैंने अपने दो दोस्तों, रोहन और विक्की को मैसेज किया – "भाई, आज बंक मारते हैं? कुछ मजा करते हैं।" वो दोनों भी राजी हो गए। हम तीनों कॉलेज गेट के पास मिले, और चुपके से निकल पड़े। साइकिल पर घूमते हुए, हम सोच रहे थे कि क्या करें – मॉल जाएँ, या पार्क में क्रिकेट खेलें? मैंने कहा, "यार, पहले कुछ चाय-समोसे खा लेते हैं, फिर सोचते हैं।"
हम एक छोटी सी चाय की दुकान पर रुके, जहाँ से हमारा मोहल्ला दिखता था। मैं चाय पी रहा था, तभी मेरी नजर पड़ी हमारे पड़ोसी विनोद अंकल पर। विनोद अंकल 50 साल के हैं, लंबे-चौड़े, करीब 6 फुट के, मजबूत कद-काठी वाले। उनका गैरेज है मोहल्ले के कोने पर – कारों की रिपेयरिंग करते हैं, और सब उन्हें "विनोद भाई" कहते हैं। वो अक्सर तेल-ग्रीस से सने रहते हैं, लेकिन आज वो साफ-सुथरे कपड़ों में थे – नीली शर्ट और जींस। उनके पीछे एक औरत चल रही थी, जिसका चेहरा पूरा स्कार्फ से ढका हुआ था। वो औरत साड़ी पहने थी – लाल रंग की, गोल्डन बॉर्डर वाली। मैंने बस यूँ ही देखा, लेकिन अचानक मेरा मन धक से रह गया। वो साड़ी... वो तो बिल्कुल वैसी ही थी जो मम्मी के पास है! मम्मी ने दो हफ्ते पहले ही खरीदी थी, और कल शाम को ही पहनी थी घर पर। लेकिन मैंने सोचा, "अरे, मम्मी थोड़ी न होंगी। वो तो घर पर हैं, पूजा कर रही होंगी या किचन में काम।" फिर भी, दिल में एक अजीब सी हलचल हुई – जैसे कोई शक का कीड़ा कुलबुला रहा हो।
मेरे दोस्त रोहन ने कहा, "यार आर्यन, चल मॉल चलते हैं। वहाँ AC में घूमेंगे, कुछ फिल्म देखेंगे।" विक्की ने भी हामी भरी, "हाँ भाई, आज फ्री हैं।" लेकिन मेरा मन कहीं और था। मैंने कहा, "तुम लोग जाओ यार, मुझे घर पर कुछ काम याद आ गया। मम्मी ने बोला था कुछ सामान लाना है। मैं बाद में जॉइन करता हूँ।" वो दोनों हँस कर बोले, "ओके लूजर, हम जा रहे हैं," और निकल पड़े। मैंने अपनी साइकिल उठाई और चुपके से विनोद अंकल का पीछा करने लगा। वो दोनों ऑटो में बैठे थे, लेकिन मैं साइकिल से धीरे-धीरे फॉलो कर रहा था – ट्रैफिक में आसान था। मन में बार-बार सोच रहा था, "नहीं यार, मम्मी नहीं हो सकतीं। वो तो भोली-भाली हैं, संस्कारी। लेकिन वो साड़ी... और स्कार्फ से चेहरा क्यों ढका है?"
कुछ देर बाद, करीब 10 मिनट की साइकिलिंग के बाद, वो दोनों एक PVR थिएटर के सामने रुके। मैं दूर से देख रहा था – अंकल ने दो टिकट लिए, और वो औरत उनके साथ अंदर चली गई। मैंने सोचा, "अब क्या करूँ? घर जाऊँ या देखूँ?" लेकिन दिल कह रहा था, "देख ले, पता तो कर।" मैंने साइकिल पार्क की, और जाकर एक टिकट लिया। थिएटर में सुबह का शो था, ज्यादा भीड़ नहीं – बस 20-25 लोग। मैं चुपके से अंदर गया, और देखा वो दोनों बीच वाली रो में बैठे हैं। मैं उनके ठीक पीछे वाली रो में, दो सीट्स छोड़कर बैठ गया – ताकि वो मुझे न देखें। दिल जोरों से धड़क रहा था। वो औरत ने अभी भी स्कार्फ नहीं हटाया था, लेकिन मैंने देखा वो अंकल को कस के पकड़ रखा था – जैसे कोई प्रेमी जोड़ी। मन में फिर शक – "मम्मी नहीं हैं, लेकिन अगर हैं तो...?"
फिर लाइट्स धीरे-धीरे डिम होने लगीं। वो औरत ने अपना स्कार्फ हटाया। मैंने देखा – और पूरा बदन सुन्न हो गया। वो मम्मी थीं! मेरी माँ सरिता! लाल लिपस्टिक, आँखों में काजल, और वो ही लाल साड़ी। मैं शॉक में था – हाथ-पैर ठंडे पड़ गए। मम्मी विनोद अंकल के साथ? वो भी थिएटर में? लेकिन गुस्सा नहीं आया, बल्कि कुछ और ही हुआ। लाइट्स पूरी ऑफ हो गईं, और स्क्रीन पर फिल्म शुरू हुई – नाम था "प्यासी औरत", एक B-ग्रेड वाली एडल्ट मूवी। स्क्रीन पर जैसे ही सीन शुरू हुआ, मेरा ध्यान वहाँ गया, लेकिन मन में उथल-पुथल थी। मैं सोच रहा था, "मम्मी यहाँ क्या कर रही हैं? वो तो घर पर होनी चाहिए थीं।" लेकिन तभी मेरा नुन्नू एकदम तन गया
लाइट्स पूरी तरह ऑफ हो गईं, और थिएटर में अंधेरा छा गया। सिर्फ स्क्रीन की नीली-पीली लाइट झिलमिलाती हुई चेहरे पर पड़ रही थी, जैसे कोई सपना चल रहा हो। फिल्म शुरू हो चुकी थी – "प्यासी औरत" का टाइटल स्क्रीन पर फ्लैश हुआ, और बैकग्राउंड में कोई सॉफ्ट म्यूजिक बजने लगा, लेकिन मेरी आँखें तो सिर्फ आगे वाली सीट पर टिकी थीं। मेरा दिल इतनी जोर से धड़क रहा था कि लग रहा था थिएटर में सब सुन लेंगे। मैंने धीरे से, बहुत सावधानी से, अपनी सीट से नीचे झुककर उनके पास खिसक लिया – पैरों को सिकोड़कर, जैसे कोई चोर छिप रहा हो। मैं ठीक उनके पीछे की सीट पर था, लेकिन अब इतना करीब कि उनकी बातें सुन सकूँ, और स्क्रीन की लाइट में सब कुछ देख सकूँ। मेरा सिर उनकी सीट के किनारे से सटा हुआ था, और मैं साँस रोककर इंतजार कर रहा था। क्यों? क्योंकि मन में अभी भी एक उम्मीद थी कि शायद ये गलतफहमी हो, लेकिन बदन में वो गर्मी... वो तनाव... मेरा नुन्नू पहले ही तन चुका था, जींस में दबा हुआ, जैसे कोई लोहे की रॉड बन गया हो।
फिल्म के पहले सीन में ही हीरोइन बेड पर लेटी हुई थी, और कोई आदमी उसके पास आ रहा था। स्क्रीन की लाइट चमकी, और मैंने देखा – विनोद अंकल ने अपना एक हाथ मम्मी की साड़ी के ऊपर से उनके बूब्स पर रख दिया। धीरे से दबाया, जैसे कोई नरम तकिया चेक कर रहा हो। मम्मी की साड़ी का पल्लू थोड़ा सरक गया था, और ब्लाउज टाइट था, उनके भरे हुए बूब्स उभरे हुए दिख रहे थे। अंकल का हाथ घूम रहा था – पहले हल्के से सहला रहा था, फिर जोर से दबाया। मम्मी ने थोड़ा सा हिलकर अपना हाथ उनके हाथ पर रखा, लेकिन हटाया नहीं – बस रोकने की कोशिश की। उनकी आवाज आई, धीमी लेकिन साफ – "अरे विनोद जी, मूवी तो देखने दो यार... अभी से शुरू हो गए?" वो हँस रही थीं, लेकिन आवाज में एक शरारत थी, जैसे ना कह रही हों लेकिन हाँ का इशारा कर रही हों। अंकल ने हँसकर कहा, "सरिता, मूवी से ज्यादा प्यासी तो तुम हो... देखो ना, कितने सख्त हो गए हैं ये।" और उन्होंने अपना हाथ और जोर से दबाया। मैं देख रहा था – मम्मी की साँसें तेज हो गईं, उनका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था। स्क्रीन की लाइट में उनके चेहरे पर एक चमक थी, जैसे मजा आ रहा हो। मेरा नुन्नू और ज्यादा तन गया – दर्द होने लगा, लेकिन मैं हिल नहीं सका।
फिर अचानक, फिल्म में हीरोइन को किस करने का सीन आया, और जैसे उससे इंस्पायर होकर, अंकल ने मम्मी की तरफ मुड़कर अपना मुँह उनके मुँह पर रख दिया। स्मूचिंग शुरू हो गई – पहले हल्की, जैसे सिर्फ होंठ छुआए, लेकिन फिर जोरदार। मैं उनके इतने करीब था कि किस की आवाज सुनाई दे रही थी – वो चप-चप की साउंड, जैसे कोई गीला फल चूस रहा हो। मम्मी ने पहले थोड़ा पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन फिर खुद ही अंकल की गर्दन पकड़ ली। उनकी जीभें मिल रही थीं – मैं देख रहा था, स्क्रीन की लाइट में चमकते हुए। मम्मी की आँखें बंद थीं, और अंकल का हाथ अब भी उनके बूब्स पर था। किस इतनी लंबी थी कि लग रहा था रुकेगी नहीं – 20-30 सेकंड तक चली। मेरी चोटी सी नुन्नी अब एकदम टाइट हो गई थी, जींस में दबकर दुख रही थी। मैं साँस रोककर देख रहा था – दिल की धड़कन कान में बज रही थी। किस की वो गीली आवाज... चट-चट... मेरे कानों में गूँज रही थी, जैसे कोई प्राइवेट शो चल रहा हो। मैंने कभी मम्मी को ऐसे देखा नहीं था – वो जो घर में पूजा करती हैं, वो ही अब किसी गैर मर्द के साथ ये सब?
स्मूचिंग खत्म हुई, लेकिन अंकल रुके नहीं। उन्होंने मम्मी की गाल पर किस किया – पहले दाएँ गाल पर, धीरे से चूमा, फिर चाटा जैसे। मम्मी ने सिर हिलाकर कहा, "उफ्फ... विनोद जी..." लेकिन रोक नहीं रही थीं। फिर अंकल नीचे सरके – गर्दन पर किस किया, पहले हल्का सा, फिर जोर से चूसा। मम्मी की गर्दन पीछे झुक गई, जैसे मजा आ रहा हो। उनकी साँसें और तेज हो गईं – मैं सुन रहा था, वो हल्की सी आहें। फिर अंकल और नीचे गए – मम्मी की क्लिवेज पर, जहाँ ब्लाउज का कट गहरा था। उन्होंने अपना मुँह वहाँ दबाया, जीभ से चाटा, और हाथ से ब्लाउज थोड़ा नीचे सरका दिया। मम्मी ने अपना हाथ उनके सिर पर रखा, लेकिन दबाया नहीं – बस सहला रही थीं। स्क्रीन की लाइट में मैं देख रहा था – मम्मी की क्लिवेज चमक रही थी, गीली हो गई थी अंकल की लार से। वो बोलीं, "अरे... यहाँ नहीं... कोई देख लेगा।" लेकिन आवाज में वो नखरा था, जैसे रोकना नहीं चाहतीं। ये सब सुनकर और देखकर मेरी नुन्नी एकदम कड़ी हो गई थी – लग रहा था अब फट जाएगी, दर्द हो रहा था लेकिन मीठा सा। मेरा बदन गर्म हो गया था, जैसे बुखार चढ़ रहा हो।
तभी अंकल ने अपनी पैंट की जिप खोली – धीरे से, साउंड कम हो इसलिए। मैं देख रहा था – उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला, जो पहले से तना हुआ था, लंबा और मोटा। स्क्रीन की लाइट में वो चमक रहा था। फिर अंकल ने मम्मी के बाल पकड़े – हल्के से, लेकिन जोर लगाकर उनका सिर नीचे झुकाया। मम्मी ने नखरा किया – "नहीं विनोद जी...
यहाँ नहीं... कोई आ गया तो?" लेकिन अंकल ने नहीं सुना, और अपना लंड उनके मुँह में डाल दिया। पहले तो मम्मी ने मुँह बंद रखा, लेकिन फिर धीरे से खोला। लंड अंदर गया – पहले टिप, फिर आधा। मम्मी ने चूसना शुरू किया – धीरे-धीरे, जैसे कोई आइसक्रीम चाट रही हों। उनकी जीभ घूम रही थी, और हाथ से लंड को पकड़कर हिला रही थीं। अंकल ने सिर दबाया, और पूरा लंड अंदर धकेल दिया – मम्मी की आँखें बड़ी हो गईं, लेकिन वो चूसती रहीं। चूसने की आवाज आ रही थी – ग्लप-ग्लप, जैसे कोई बोतल से पानी पी रही हो। मम्मी ने थोड़ा नखरा किया – मुँह हटाकर बोलीं, "उफ्फ... इतना बड़ा... गला दुख रहा है।" लेकिन फिर खुद ही वापस ले लिया, और तेज चूसने लगीं। अंकल की आहें निकल रही थीं – "सरिता... कितना अच्छा चूसती हो... आह..." मम्मी की लाल लिपस्टिक लंड पर लग गई थी, और वो ऊपर-नीचे कर रही थीं, हाथ से सहला रही थीं। ब्लोजॉब इतना इंटेंस था कि लग रहा था अंकल अभी झड़ जाएंगे।
मैं शॉक में था – ये मेरी वो ही मम्मी हैं? जो घर में संस्कारी बनती हैं, भोली-भाली, घरेलू? जो सुबह पूजा करती हैं, और अब मेरे सामने ही किसी गैर मर्द का लंड चूस रही हैं? वो लंड जो विनोद अंकल का है – 50 साल का आदमी, गैरेज वाला। ये देखते ही मेरी नुन्नी ने पानी छोड़ दिया – गर्म-गर्म, जींस में फैल गया, लेकिन मैं हिला नहीं। बस देखता रहा, साँस रोककर, जैसे कोई थ्रिलर मूवी चल रही हो। दिल में सस्पेंस था – आगे क्या होगा? लेकिन मैं रुक नहीं सका...
मैं अभी भी शॉक में था, लेकिन बदन में वो गर्मी कम नहीं हो रही थी। लाइट्स ऑफ होने के बाद थिएटर में सिर्फ स्क्रीन की धुंधली रोशनी थी, और फिल्म की आवाजें – हीरोइन की आहें, बैकग्राउंड का सॉफ्ट म्यूजिक – सब कुछ मिलकर एक अजीब सा माहौल बना रहा था। मेरा नुन्नू इतना तना हुआ था कि दर्द हो रहा था, जैसे कोई लोहे की सलाख पैंट में फँसी हो। मैंने धीरे से, बहुत सावधानी से, अपनी सीट पर ही अपना हाथ नीचे किया। जिप को हल्का सा खोला – साउंड न हो इसलिए बहुत धीरे से – और अपना नुन्नू बाहर निकाल लिया। वो अभी भी खड़ा था, पूरा तना हुआ, छोटा सा लेकिन इतना सख्त कि छूने से ही झनझनाहट हो गई। गर्म-गर्म, और ऊपर की स्किन पीछे सरक गई थी। मैंने उसे हल्के से पकड़ा, लेकिन अभी सहलाया नहीं – बस बाहर निकालकर रखा, क्योंकि देखने में इतना मजा आ रहा था कि हाथ खुद-ब-खुद वहाँ पहुँच गया।
आगे वाली सीट पर, मम्मी अभी भी विनोद अंकल का लंड बड़े प्यार से चूस रही थीं। मैं इतना करीब था कि सब कुछ साफ दिख रहा था – स्क्रीन की लाइट में लंड चमक रहा था, मम्मी की लार से गीला होकर। अंकल का लंड बड़ा था, लंबा और मोटा, और झांटों से भरा हुआ – काली-काली झांटें, जैसे कोई जंगल उग आया हो। वो झांटें मम्मी के मुँह पर लग रही थीं, लेकिन मम्मी को कोई परवाह नहीं। वो बड़े प्यार से चूस रही थीं – पहले टिप को जीभ से चाटतीं, जैसे कोई आइसक्रीम का कोन चाट रही हों, धीरे-धीरे घुमा-घुमाकर। फिर पूरा मुँह खोलकर अंदर लेतीं, आधा लंड गले तक धकेलतीं, और बाहर निकालतीं – हर बार लंड पर उनकी लाल लिपस्टिक का निशान लग जाता। मम्मी की आँखें बंद थीं, जैसे वो किसी पूजा में लीन हों, लेकिन ये पूजा किसी देवी की नहीं, बल्कि इस गैर मर्द के लंड की थी। वो हाथ से लंड की जड़ पकड़तीं, झांटों को सहलातीं, और फिर चूसतीं – ग्लप-ग्लप की आवाज आ रही थी, जैसे कोई बोतल से दूध पी रही हो। अंकल का लंड झांटों वाला था, लेकिन मम्मी उसे ऐसे चूस रही थीं जैसे दुनिया का सबसे स्वादिष्ट चीज हो – जीभ से झांटों को अलग करतीं, फिर पूरा मुँह में भरतीं। उनकी साँसें तेज थीं, और हर बार बाहर निकालकर वो लंड को देखतीं, फिर मुस्कुराकर वापस चूसने लगतीं। "उम्म... विनोद जी... कितना टेस्टी है..." वो फुसफुसातीं, और फिर जीभ से टिप पर घुमा देतीं। मैं देख रहा था – मेरी संस्कारी मम्मी, जो घर में रामायण पढ़ती हैं, सिंदूर लगाती हैं, वो ही अब इस झांटों वाले लंड को ऐसे चूस रही थीं जैसे कोई प्यासी औरत अपना प्यास बुझा रही हो। लंड की नसें उभरी हुई थीं, और मम्मी उन्हें जीभ से ट्रेस करतीं, ऊपर से नीचे तक चाटतीं, फिर गेंदों को मुँह में लेतीं – एक-एक करके, जैसे कोई कैंडी चूस रही हों। अंकल की झांटें उनके होंठों पर लग रही थीं, लेकिन मम्मी रुक नहीं रही थीं – बल्कि और जोर से चूसतीं, हाथ से लंड को हिलातीं, और मुँह से वैक्यूम बनातीं। ये सब इतना कामुक था कि मेरा लंड और टाइट हो गया – लग रहा था फट जाएगा, गर्मी से जल रहा था।
ये देखकर मैंने अपनी नुन्नी को सहलाना शुरू कर दिया – धीरे-धीरे, ऊपर-नीचे करके। मेरा हाथ काँप रहा था, लेकिन मजा आ रहा था। मैं सोच रहा था – कैसे मेरी संस्कारी, भोली मम्मी, जिसे मैं एक सीधी-सादी औरत समझता था, जो मेरे लिए देवी जैसी थी – पूजा करने वाली, घर संभालने वाली, वो ही अब एक रंडी की तरह व्यवहार कर रही हैं? वो जो सुबह मंदिर जाती हैं, शाम को पापा के लिए खाना बनाती हैं, वो ही अब थिएटर में किसी 50 साल के गैरेज वाले अंकल का लंड चूस रही हैं, वो भी इतने प्यार से? लेकिन मुझे गुस्सा नहीं आ रहा था – बल्कि एक अजीब सी फीलिंग आ रही थी, जैसे excitement और jealousy मिलकर कुछ नया बना रहे हों। मेरा दिल तेज धड़क रहा था, बदन में करंट दौड़ रहा था, और नुन्नी और टाइट हो रही थी। मैं सहला रहा था – तेज-तेज, लेकिन साउंड न हो इसलिए धीरे से। अंदर एक काश-काश चल रहा था – काश मैं वहाँ अंकल की जगह होता, काश मम्मी मुझे ऐसे देखतीं, काश ये सब सपना होता लेकिन असली भी। लेकिन मैं रुक नहीं सका – बस देखता रहा, सहलाता रहा, और वो फीलिंग और 강 हो गई, जैसे कोई आग जल रही हो...
फिर वही चलता रहा… मम्मी का मुँह ऊपर-नीचे, ऊपर-नीचे…
स्क्रीन की नीली-लाल रोशनी में उनका चेहरा चमक रहा था, लार से लंड पूरा चिपचिपा हो चुका था।
मम्मी की लाल लिपस्टिक अब लंड पर पूरी फैल चुकी थी, झांटों तक पहुँच गई थी।
हर बार जब वो लंड पूरा बाहर निकालतीं तो एक चमकदार धागा लार का खिंचता था, और फिर वो उसे वापस गले तक धकेल देतीं।
उनकी चूड़ियाँ हल्की-हल्की खनक रही थीं, जैसे कोई ताल दे रही हों।
मैं इतना करीब था कि उनकी गर्म साँसें भी महसूस हो रही थीं।
फिर अचानक विनोद अंकल की कमर हिली।
उन्होंने मम्मी के बाल कसकर पकड़े, सिर को नीचे दबाया और कमर आगे ठोक दी।
लंड पूरा मम्मी के गले में घुस गया। मम्मी की आँखें चौड़ी हो गईं, गला फूल गया, लेकिन वो पीछे नहीं हटीं।
अंकल की आवाज आई – धीमी, दबी हुई लेकिन साफ –
“ले… ले मेरी रंडी… पूरा ले… आज तुझे अपना माल पिलाता हूँ…”
और फिर…
अंकल की कमर एक बार और ठोकी, और वो रुक गए।
उनकी आँखें बंद, सिर पीछे टिका, और मुँह से लंबी सी “आआआह्ह्ह…” निकली।
मैं देख रहा था – लंड मम्मी के गले में धँसा हुआ था, और अंकल की जाँघें काँप रही थीं।
एक… दो… तीन… चार झटके… और फिर अंकल ने मम्मी का सिर और कसकर दबाया।
मम्मी ने कुछ देर तक मुँह बंद रखा, फिर… गटक…
एक लंबी, साफ गटकने की आवाज आई।
फिर एक और… गटक…
और फिर तीसरी बार… गटक…
मम्मी ने एक बार में ही पूरा वीर्य पी लिया।
उनके गले की हलचल साफ दिख रही थी – जैसे कोई गर्म दूध निगल रही हों।
उसके बाद मम्मी ने लंड धीरे से बाहर निकाला, जीभ से टिप को साफ किया, और फिर होंठ चाटकर मुस्कुराईं।
अंकल ने प्यार से उनके गाल पर थपकी मारी और फुसफुसाया, “कितना स्वादिष्ट पीती है तू… मेरी रंडी…”
मम्मी शरमाई नहीं, बस हल्के से हँसकर बोलीं, “बस तुम भी ना… पूरा गले में डाल दिया…”
ये सब देखते-देखते मेरे दिमाग में बिजली सी कौंध गई।
वो मेरी मम्मी हैं…
जो घर में किसी पराए मर्द का नाम लेने पर भी चूँ करती थीं,
जिनके लिए पापा भी साल में दो बार ही छूते थे,
वो आज किसी पराए मर्द का लंड का पानी एक घूँट में पी गईं।
मैंने देखा – मम्मी के होंठों पर अभी भी चमक थी, गले में हल्का सा उभार था जहाँ माल गया था।
और तभी… मेरी नुन्नी ने भी हिल गई।
बिना हाथ लगाए ही… एक जोर का झटका लगा, और गर्म-गर्म पानी मेरी जाँघों पर फैल गया।
मैं काँप रहा था, साँसें तेज, लेकिन आँखें हटी नहीं।
फिर मेरा ध्यान अंकल के लंड पर गया।
अभी भी बाहर था, आधा तना हुआ, मोटा, लंबा, झांटों से भरा…
और मेरी नुन्नी? छोटी सी, अभी-अभी झड़ चुकी, हाथ में लिपटी हुई।
दोनों में जमीन-आसमान का फर्क।
मैं बस देखता रह गया…
और दिल में एक अजीब सा सवाल उठा –
अब आगे क्या होगा…?
फिल्म खत्म होने की तरफ बढ़ रही थी।
स्क्रीन पर अभी भी वही B-ग्रेड सीन चल रहे थे, लेकिन अब मम्मी और अंकल शांत हो चुके थे।
मम्मी सीधे बैठ गईं।
उन्होंने अपना रुमाल निकाला – वो छोटा सा लाल रंग का रुमाल जो हमेशा पर्स में रखती हैं – और धीरे-धीरे होंठ पोंछने लगीं।
पहले ऊपर का होंठ, फिर नीचे का… फिर गालों पर हल्के से रगड़ा, जैसे कोई सबूत मिटा रही हों।
अंकल ने अपना लंड वापस पैंट में डाला, जिप बंद की और आराम से सीट पर टिक गए।
दोनों अब एकदम नॉर्मल कपल जैसे लग रहे थे – जैसे कुछ हुआ ही न हो।
मैं भी चुपके से अपनी सीट पर वापस बैठ गया, नुन्नी अभी भी गीली थी, जींस में चिपचिपाहट महसूस हो रही थी।
लगभग 10 मिनट बाद…
फिल्म में अब क्लाइमेक्स चल रहा था, हीरोइन की चीखें गूँज रही थीं।
अंकल ने फिर से अपना हाथ बढ़ाया।
धीरे से, बिना मम्मी की तरफ देखे, उनका दायाँ हाथ मम्मी के ब्लाउज की तरफ सरका।
मम्मी ने पहले तो हाथ रोका, लेकिन अंकल ने मुस्कुराते हुए बस उँगलियाँ ब्लाउज के अंदर डाल दीं।
ब्रा के ऊपर से ही पहले सहलाया, फिर अंदर हाथ घुसेड़ दिया।
मम्मी की साँस एकदम रुक गई – मैं देख रहा था, उनका सीना फूल गया।
अंकल ने पूरा बूब दबाया, उँगलियों से निप्पल को पकड़कर घुमाया।
मम्मी की आँखें बंद हो गईं, होंठ कटे, लेकिन आवाज नहीं निकली।
फिर अंकल का हाथ और नीचे सरका।
साड़ी के पल्लू को हल्का सा उठाया, पेटीकोट के ऊपर से ही पहले सहलाया, फिर हाथ साड़ी के अंदर घुसा दिया।
मम्मी ने घुटने सिकोड़े, पैर आपस में दबाए, लेकिन अंकल का हाथ रुक नहीं रहा था।
धीरे-धीरे, उँगलियाँ नीचे सरकती गईं… पैंटी के ऊपर से चूत पर पहुँचीं।
मम्मी बस फुसफुसा रही थीं –
“नहीं विनोद जी… कोई देख लेगा… प्लीज… बस करो…”
लेकिन आवाज में वो कमजोरी थी, वो नखरा था जो मना नहीं कर रहा था।
अंकल बस हल्के से मुस्कुराए और उँगलियों से गोल-गोल घुमाने लगे।
मम्मी का सिर सीट पर पीछे टिक गया, होंठ कटे हुए, आँखें बंद।
फिल्म खत्म हुई।
लाइट्स धीरे-धीरे जलीं।
जैसे ही पहली रोशनी पड़ी, मम्मी ने फट से अंकल का हाथ खींचकर बाहर निकाला।
साड़ी का पल्लू ठीक किया, ब्लाउज को ऊपर खींचा, और फटाफट स्कार्फ से चेहरा ढक लिया।
अंकल हँसते हुए उठे, मम्मी भी उठीं।
दोनों हाथ पकड़े हुए बाहर की तरफ बढ़े।
मैं भी चुपके से पीछे-पीछे निकला।
सोचा था अब घर जाएँगे।
लेकिन नहीं।
PVR के बाहर निकलते ही वो लोग मेन रोड की बजाय बगल की सुनसान पगडंडी की तरफ मुड़े – वो इलाका जहाँ पीछे पुरानी पार्किंग और जंगल जैसी झाड़ियाँ हैं।
वहाँ दिन में भी कोई नहीं आता।
मैंने साइकिल उठाई और दूर से पीछा किया।
दिल की धड़कन फिर तेज हो गई – अब क्या होने वाला है?
लगभग 20 मिनट चलने के बाद वो एक बड़े पुराने पीपल के पेड़ के पास रुके।
उसके पीछे घनी झाड़ियाँ थीं, जहाँ कोई दिखता नहीं।
दोनों हाथ पकड़े हुए झाड़ियों के पीछे चले गए।
मैंने साइकिल एक पेड़ से टिका दी और चुपके से पास पहुँचा…
दिल जोर-जोर से धड़क रहा था – अब आगे क्या होगा…?
झाड़ियों के पीछे पहुँचते ही, मैंने अपनी साइकिल एक दूर के पेड़ से टिका दी और धीरे-धीरे, पाँवों की आहट न हो इसलिए, झाड़ियों की आड़ लेकर करीब पहुँचा। दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, जैसे कोई थ्रिलर फिल्म का क्लाइमेक्स चल रहा हो – सस्पेंस इतना कि साँसें रुक सी गईं। वहाँ वो बड़ा सा पीपल का पेड़ था, पुराना और घना, और उसके पीछे झाड़ियाँ इतनी घनी कि दिन की रोशनी भी मुश्किल से अंदर घुस रही थी। हवा में पत्तियों की सरसराहट थी, दूर से ट्रैफिक की आवाज आ रही थी, लेकिन यहाँ सब सुनसान – जैसे कोई प्राइवेट जंगल हो। मैं एक झाड़ी के पीछे छिप गया, इतना करीब कि सब दिखे लेकिन वो मुझे न देखें। और फिर… मैंने देखा।
विनोद अंकल ने मम्मी को पेड़ से सटा लिया था। उनका हाथ मम्मी के ब्लाउज पर गया – पहले सहलाया, फिर हुक खोलने लगे। मम्मी ने पहले तो रोकने की कोशिश की, लेकिन अंकल ने मुस्कुराते हुए एक-एक हुक खोला। पहले ऊपर का हुक, फिर बीच का, फिर नीचे का। ब्लाउज खुल गया, और मम्मी की ब्रा सामने आ गई – सफेद ब्रा, जो उनके भरे हुए बूब्स को मुश्किल से संभाल रही थी। अंकल ने ब्रा को ऊपर सरका दिया, और बूब्स बाहर निकल आए – गोरे, भरे हुए, निप्पल गुलाबी और तने हुए। मम्मी की आँखें बंद हो गईं, जैसे शर्म और मजा दोनों मिलकर कुछ कर रहे हों। अंकल ने अपना मुँह नीचे किया और एक बूब को मुँह में ले लिया – पहले हल्के से चूसा, जीभ से निप्पल को घुमाया। मम्मी की साँसें तेज हो गईं – “उफ्फ… विनोद जी…” वो फुसफुसाईं, लेकिन रोक नहीं रही थीं। अंकल ने जोर से चूसा, दाँतों से हल्का सा काटा, और मम्मी की पीठ झुक गई। फिर दूसरे बूब पर – चूसते हुए, चाटते हुए, जैसे कोई भूखा शेर अपना शिकार खा रहा हो। मम्मी का हाथ उनके सिर पर था, दबा रही थीं, जैसे और चाहिए। मैं देख रहा था – मम्मी की आँखें बंद, होंठ कटे हुए, और वो हल्की सी आहें निकाल रही थीं – “आह… धीरे… उफ्फ…”। ये सब इतना धीमा और कामुक था कि मेरा बदन फिर गर्म हो गया।
फिर अंकल ने अपना हाथ नीचे किया। साड़ी का पल्लू पहले ही सरक चुका था। उन्होंने साड़ी की सिलवटें खोलनी शुरू कीं – एक-एक करके, जैसे कोई गिफ्ट अनरैप कर रहा हो। मम्मी ने आँखें खोलीं और बोलीं, “विनोद जी… क्या कर रहे हो? यहाँ जंगल जैसा है, लेकिन कोई आ गया तो?” लेकिन अंकल रुके नहीं। साड़ी पूरी खुल गई, और गिरकर जमीन पर फैल गई – लाल रंग की, जैसे कोई खून का धब्बा। अब मम्मी सिर्फ खुले ब्लाउज और पेटीकोट में थीं – ब्लाउज अभी भी कंधों पर लटका हुआ, बूब्स बाहर लटके हुए। वो इलाका सच में जंगल जैसा था – चारों तरफ झाड़ियाँ, पत्तियाँ, और कोई इंसान की आवाज नहीं। मम्मी ने गुस्से में कहा, “पागल हो गए हो क्या आप? यहाँ खुले में?” लेकिन उनकी आवाज में वो गुस्सा कम, और उत्तेजना ज्यादा थी। अंकल ने हँसकर उनका पेटीकोट का नाड़ा पकड़ा – एक झटके में खींचा, और पेटीकोट नीचे सरक गया। अब मम्मी सिर्फ पैंटी और खुले ब्लाउज में थीं – ब्रा ऊपर सरकी हुई, बूब्स हवा में हिल रहे थे।
अंकल रुके नहीं। उन्होंने मम्मी की पैंटी पर हाथ रखा – पहले सहलाया, फिर नीचे खींचने लगे। मम्मी ने रोकने की कोशिश की – “नहीं… विनोद जी… प्लीज… यहाँ नहीं…” वो मना कर रही थीं, हाथ से पकड़ रही थीं, लेकिन अंकल ने जोर लगाया। एक जोरदार झटका – और पैंटी फट गई। फटने की आवाज आई, जैसे कोई कपड़ा चीर दिया हो। अब मम्मी पूरी नंगी थीं नीचे से – सिर्फ खुले ब्लाउज और ब्रा में, जिसमें से बूब्स लटक रहे थे। उनकी चूत साफ दिख रही थी – गोरी, हल्की झांटों वाली, और पहले से गीली। मम्मी शर्म से हाथों से ढकने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन अंकल ने उनके हाथ हटा दिए। मम्मी खड़ी थीं, बदन काँप रहा था – शर्म, ठंड, और उत्तेजना से।
अंकल ने अब अपनी पैंट खोली – जिप नीचे की, और लंड बाहर निकाला। वो काला, लंबा, नाग जैसा लंड – मोटा, नसों से भरा, और पहले से तना हुआ। स्क्रीन की लाइट में मैंने थिएटर में देखा था, लेकिन अब दिन की धुंधली रोशनी में और डरावना लग रहा था – जैसे कोई काला साँप। मैं शॉक हो गया – इतना बड़ा? मेरी नुन्नी से दस गुना मोटा। अंकल ने थूक लिया – मुँह में थूका, और लंड पर मला। फिर मम्मी की चूत पर लगाया – उँगलियों से थूक फैलाया, चूत को सहलाया। मम्मी की आँखें बंद हो गईं, “उफ्फ… धीरे…”।
फिर अंकल ने मम्मी को घोड़ी बनाया – उन्हें नीचे झुकाया, हाथ पेड़ पर टिकवाए। मम्मी घुटनों पर आ गईं, कमर नीचे झुकी, चूत पीछे की तरफ उभरी हुई। अंकल ने अपना लंड चूत पर सेट किया – पहले टिप से सहलाया, फिर धीरे से अंदर धकेला। मम्मी की चीख निकली – “आआह्ह्ह… दर्द हो रहा है… विनोद जी… धीरे…”। लेकिन अंकल ने एक झटके में आधा लंड अंदर कर दिया। मम्मी का बदन काँप गया, आँखों से आँसू आ गए, लेकिन वो रुकी नहीं। अंकल ने कमर पकड़ी और धक्के मारने लगे – जैसे कोई सांड अपनी मादा को चोद रहा हो। पहले धीरे, फिर तेज – हर धक्का जोरदार, जैसे कोई हथौड़ा मार रहा हो। मम्मी की चूत से चप-चप की आवाज आ रही थी, गीली-गीली। मम्मी दर्द और मोनिंग दोनों साथ में कर रही थीं – “आह… उफ्फ… दर्द हो रहा है… लेकिन अच्छा लग रहा है… जोर से… आआह्ह्ह…”। उनकी आवाजें वासना से भरी थीं – कभी दर्द की चीख, कभी मजा की सिसकारी। “हाय… टूट जाएगी… लेकिन रुको मत… आह…”। अंकल के धक्के तेज हो गए – कमर आगे-पीछे, लंड पूरा अंदर-बाहर। मम्मी की चूड़ियाँ खनक रही थीं, बूब्स हिल रहे थे।
ये सब देखकर मेरी नुन्नी फिर टाइट हो गई – पहले से ज्यादा। मैंने उसे सहलाना शुरू कर दिया – तेज-तेज, लेकिन चुपके से। मेरा बदन जल रहा था, दिल में उथल-पुथल – ये मेरी मम्मी हैं, लेकिन अब जैसे कोई और…
फिर वो चुदाई शुरू हुई… और वो अगले 20 मिनट तक चली, जैसे कोई अंतहीन तूफान हो। मैं झाड़ी के पीछे छिपा हुआ, साँस रोककर देख रहा था, मेरा बदन पसीने से तर, दिल की धड़कन इतनी तेज कि लग रहा था बाहर निकल आएगी। अंकल का वो काला, लंबा, नाग जैसा लंड मम्मी की चूत में पूरा घुस चुका था – पहले धक्के में ही मम्मी का बदन झनझना गया था, लेकिन अब अंकल ने कमर पकड़ी और असली खेल शुरू किया। वो धक्के मारने लगे – पहले धीरे, जैसे टेस्ट कर रहे हों, लेकिन फिर तेज, जैसे कोई जानवर अपनी मादा पर चढ़ा हो। हर धक्का जोरदार, पूरा ताकत से – अंकल की कमर पीछे खींचते, फिर आगे ठोकते, और लंड पूरा अंदर-बाहर। मम्मी की चूत से चप-चप की आवाज आ रही थी, गीली-गीली, जैसे कोई पानी में डंडा मार रहा हो। मम्मी घोड़ी बनी हुई थीं, हाथ पेड़ पर टिके, कमर झुकी, और बूब्स आगे-पीछे हिल रहे थे – हर धक्के के साथ लटकते, उछलते, जैसे कोई भरे हुए फल हवा में लहरा रहे हों।
पहले 2-3 मिनट तो मम्मी मोन कर रही थीं – “आह… विनोद जी… जोर से… अच्छा लग रहा है… उफ्फ…” उनकी आवाजें वासना से भरी थीं, दर्द और मजा मिलकर। लेकिन जैसे-जैसे धक्के तेज हुए, मम्मी थकने लगीं। अंकल अब सांड की तरह चोद रहे थे –
– कमर को पीछे खींचकर पूरा ताकत से ठोकते, लंड पूरा अंदर धकेलते, और बाहर निकालते वक्त मम्मी की चूत की दीवारें खिंचतीं। मम्मी की साँसें फूलने लगीं, बदन पसीने से चमकने लगा – गोरा बदन अब लाल हो रहा था, पसीना माथे से बहकर गर्दन पर, फिर बूब्स पर टपक रहा था।
अगर आपको कहानी पसंद आई तो कमेंट में मुझे बताएं। अगर किसी का कोई समान वास्तविक जीवन का अनुभव है या आप चाहते हैं कि मैं उनकी कहानी लिखूं, तो बेझिझक मुझे प्राइवेट मैसेज या ईमेल भेजें।= alexcosta25131;
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मम्मी का नाम सरिता है, वो 40 साल की हैं, लेकिन देखने में 30-32 की लगती हैं। एकदम गोरी-चिट्टी, भरा हुआ बदन – न ज्यादा मोटी, न पतली, बस वैसी जो हर कोई देखकर कहे, "कितनी प्यारी हैं भाभी!" वो हमेशा साड़ी पहनती हैं, लाल सिंदूर माँग में भरा रहता है, मंगलसूत्र गले में, लाल चूड़ियाँ हाथों में, और बिंदी माथे पर। सुबह उठकर पूजा करती हैं, पापा के लिए चाय बनाती हैं, मुझे कॉलेज के लिए टिफिन पैक करती हैं। मोहल्ले में सब कहते हैं, "सरिता भाभी जैसी संस्कारी बहू कहाँ मिलेगी!" वो भोली-भाली भी बहुत हैं – किसी से लड़ती नहीं, हमेशा मुस्कुराती रहती हैं, पड़ोसियों की मदद करती हैं। लेकिन मैं जानता हूँ, ये सब बाहर का दिखावा है। अंदर से मम्मी की जिंदगी कुछ और ही है।
पापा 45 साल के हैं, नाम राकेश शर्मा। वो सरकारी नौकरी में हैं – रेलवे डिपार्टमेंट में क्लर्क हैं। रोज सुबह 9 बजे जाते हैं, शाम 6 बजे लौटते हैं। लेकिन पापा मोटे हैं, करीब 95-100 किलो के, और डायबिटीज है। इंजेक्शन लेते हैं, लेकिन खाने-पीने पर कंट्रोल नहीं करते। शाम को घर आकर सोफे पर बैठ जाते हैं, टीवी देखते हैं, और मम्मी से कहते हैं, "चाय लाओ" या "खाना लगा दो"। रात को जल्दी सो जाते हैं, क्योंकि थकान और बीमारी की वजह से। मम्मी की तरफ ध्यान ही नहीं देते – शायद साल में दो-चार बार ही कुछ होता होगा। मैंने कभी उन्हें मम्मी को प्यार से छूते नहीं देखा। पापा अच्छे हैं, लेकिन उनकी जिंदगी बस नौकरी, खाना, और सोना है।
हमारे घर में बाहर से सब नॉर्मल लगता है। सुबह पापा ऑफिस जाते हैं, मैं कॉलेज, और मम्मी घर संभालती हैं। शाम को सब इकट्ठा होते हैं, डिनर करते हैं, टीवी देखते हैं। मोहल्ले में कोई शक नहीं करता। लेकिन पिछले 6-8 महीनों में मैंने जो देखा, वो मेरी जिंदगी बदल गया। पहले तो मैं सोचता था मम्मी बस घर की औरत हैं, लेकिन अब पता चला कि वो भी अपनी जरूरतें पूरी कर रही हैं – और वो भी घर के आसपास के मर्दों से। मैंने सब चुपके से देखा, वीडियो बनाए, लेकिन किसी को नहीं बताया। शायद इसलिए कि मुझे भी कहीं न कहीं मजा आने लगा। अब बताता हूँ वो चारों घटनाएँ, एक-एक करके...
मैंने पहले ही बताया ना कि मेरा नाम आर्यन है, और मैं --- साल का हूँ (मैं 9वीं कक्षा में पढ़ता हूँ)। अब वो चारों घटनाएँ जो मैंने देखीं, वो सब पिछले 6-8 महीनों में हुईं। चलो, एक-एक करके बताता हूँ, जैसे मैं अपना राज किसी करीबी दोस्त को खोल रहा हूँ। सब कुछ मेरी आँखों देखी है, और हर बार मैंने चुपके से वीडियो भी बना लिया। लेकिन सबसे पहले दूसरी घटना से शुरू करता हूँ – पड़ोसी अंकल विनोद के साथ। ये अप्रैल 2025 की बात है, जब मैंने कॉलेज बंक मारी थी।
उस दिन सुबह का टाइम था, करीब 9:30 बजे। मैं कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रहा था, मम्मी ने टिफिन पैक किया, पापा पहले ही ऑफिस निकल चुके थे। लेकिन मन नहीं कर रहा था क्लास जाने का – बोर्ड एग्जाम्स खत्म हो चुके थे, और गर्मी की छुट्टियाँ आने वाली थीं। मैंने अपने दो दोस्तों, रोहन और विक्की को मैसेज किया – "भाई, आज बंक मारते हैं? कुछ मजा करते हैं।" वो दोनों भी राजी हो गए। हम तीनों कॉलेज गेट के पास मिले, और चुपके से निकल पड़े। साइकिल पर घूमते हुए, हम सोच रहे थे कि क्या करें – मॉल जाएँ, या पार्क में क्रिकेट खेलें? मैंने कहा, "यार, पहले कुछ चाय-समोसे खा लेते हैं, फिर सोचते हैं।"
हम एक छोटी सी चाय की दुकान पर रुके, जहाँ से हमारा मोहल्ला दिखता था। मैं चाय पी रहा था, तभी मेरी नजर पड़ी हमारे पड़ोसी विनोद अंकल पर। विनोद अंकल 50 साल के हैं, लंबे-चौड़े, करीब 6 फुट के, मजबूत कद-काठी वाले। उनका गैरेज है मोहल्ले के कोने पर – कारों की रिपेयरिंग करते हैं, और सब उन्हें "विनोद भाई" कहते हैं। वो अक्सर तेल-ग्रीस से सने रहते हैं, लेकिन आज वो साफ-सुथरे कपड़ों में थे – नीली शर्ट और जींस। उनके पीछे एक औरत चल रही थी, जिसका चेहरा पूरा स्कार्फ से ढका हुआ था। वो औरत साड़ी पहने थी – लाल रंग की, गोल्डन बॉर्डर वाली। मैंने बस यूँ ही देखा, लेकिन अचानक मेरा मन धक से रह गया। वो साड़ी... वो तो बिल्कुल वैसी ही थी जो मम्मी के पास है! मम्मी ने दो हफ्ते पहले ही खरीदी थी, और कल शाम को ही पहनी थी घर पर। लेकिन मैंने सोचा, "अरे, मम्मी थोड़ी न होंगी। वो तो घर पर हैं, पूजा कर रही होंगी या किचन में काम।" फिर भी, दिल में एक अजीब सी हलचल हुई – जैसे कोई शक का कीड़ा कुलबुला रहा हो।
मेरे दोस्त रोहन ने कहा, "यार आर्यन, चल मॉल चलते हैं। वहाँ AC में घूमेंगे, कुछ फिल्म देखेंगे।" विक्की ने भी हामी भरी, "हाँ भाई, आज फ्री हैं।" लेकिन मेरा मन कहीं और था। मैंने कहा, "तुम लोग जाओ यार, मुझे घर पर कुछ काम याद आ गया। मम्मी ने बोला था कुछ सामान लाना है। मैं बाद में जॉइन करता हूँ।" वो दोनों हँस कर बोले, "ओके लूजर, हम जा रहे हैं," और निकल पड़े। मैंने अपनी साइकिल उठाई और चुपके से विनोद अंकल का पीछा करने लगा। वो दोनों ऑटो में बैठे थे, लेकिन मैं साइकिल से धीरे-धीरे फॉलो कर रहा था – ट्रैफिक में आसान था। मन में बार-बार सोच रहा था, "नहीं यार, मम्मी नहीं हो सकतीं। वो तो भोली-भाली हैं, संस्कारी। लेकिन वो साड़ी... और स्कार्फ से चेहरा क्यों ढका है?"
कुछ देर बाद, करीब 10 मिनट की साइकिलिंग के बाद, वो दोनों एक PVR थिएटर के सामने रुके। मैं दूर से देख रहा था – अंकल ने दो टिकट लिए, और वो औरत उनके साथ अंदर चली गई। मैंने सोचा, "अब क्या करूँ? घर जाऊँ या देखूँ?" लेकिन दिल कह रहा था, "देख ले, पता तो कर।" मैंने साइकिल पार्क की, और जाकर एक टिकट लिया। थिएटर में सुबह का शो था, ज्यादा भीड़ नहीं – बस 20-25 लोग। मैं चुपके से अंदर गया, और देखा वो दोनों बीच वाली रो में बैठे हैं। मैं उनके ठीक पीछे वाली रो में, दो सीट्स छोड़कर बैठ गया – ताकि वो मुझे न देखें। दिल जोरों से धड़क रहा था। वो औरत ने अभी भी स्कार्फ नहीं हटाया था, लेकिन मैंने देखा वो अंकल को कस के पकड़ रखा था – जैसे कोई प्रेमी जोड़ी। मन में फिर शक – "मम्मी नहीं हैं, लेकिन अगर हैं तो...?"
फिर लाइट्स धीरे-धीरे डिम होने लगीं। वो औरत ने अपना स्कार्फ हटाया। मैंने देखा – और पूरा बदन सुन्न हो गया। वो मम्मी थीं! मेरी माँ सरिता! लाल लिपस्टिक, आँखों में काजल, और वो ही लाल साड़ी। मैं शॉक में था – हाथ-पैर ठंडे पड़ गए। मम्मी विनोद अंकल के साथ? वो भी थिएटर में? लेकिन गुस्सा नहीं आया, बल्कि कुछ और ही हुआ। लाइट्स पूरी ऑफ हो गईं, और स्क्रीन पर फिल्म शुरू हुई – नाम था "प्यासी औरत", एक B-ग्रेड वाली एडल्ट मूवी। स्क्रीन पर जैसे ही सीन शुरू हुआ, मेरा ध्यान वहाँ गया, लेकिन मन में उथल-पुथल थी। मैं सोच रहा था, "मम्मी यहाँ क्या कर रही हैं? वो तो घर पर होनी चाहिए थीं।" लेकिन तभी मेरा नुन्नू एकदम तन गया
लाइट्स पूरी तरह ऑफ हो गईं, और थिएटर में अंधेरा छा गया। सिर्फ स्क्रीन की नीली-पीली लाइट झिलमिलाती हुई चेहरे पर पड़ रही थी, जैसे कोई सपना चल रहा हो। फिल्म शुरू हो चुकी थी – "प्यासी औरत" का टाइटल स्क्रीन पर फ्लैश हुआ, और बैकग्राउंड में कोई सॉफ्ट म्यूजिक बजने लगा, लेकिन मेरी आँखें तो सिर्फ आगे वाली सीट पर टिकी थीं। मेरा दिल इतनी जोर से धड़क रहा था कि लग रहा था थिएटर में सब सुन लेंगे। मैंने धीरे से, बहुत सावधानी से, अपनी सीट से नीचे झुककर उनके पास खिसक लिया – पैरों को सिकोड़कर, जैसे कोई चोर छिप रहा हो। मैं ठीक उनके पीछे की सीट पर था, लेकिन अब इतना करीब कि उनकी बातें सुन सकूँ, और स्क्रीन की लाइट में सब कुछ देख सकूँ। मेरा सिर उनकी सीट के किनारे से सटा हुआ था, और मैं साँस रोककर इंतजार कर रहा था। क्यों? क्योंकि मन में अभी भी एक उम्मीद थी कि शायद ये गलतफहमी हो, लेकिन बदन में वो गर्मी... वो तनाव... मेरा नुन्नू पहले ही तन चुका था, जींस में दबा हुआ, जैसे कोई लोहे की रॉड बन गया हो।
फिल्म के पहले सीन में ही हीरोइन बेड पर लेटी हुई थी, और कोई आदमी उसके पास आ रहा था। स्क्रीन की लाइट चमकी, और मैंने देखा – विनोद अंकल ने अपना एक हाथ मम्मी की साड़ी के ऊपर से उनके बूब्स पर रख दिया। धीरे से दबाया, जैसे कोई नरम तकिया चेक कर रहा हो। मम्मी की साड़ी का पल्लू थोड़ा सरक गया था, और ब्लाउज टाइट था, उनके भरे हुए बूब्स उभरे हुए दिख रहे थे। अंकल का हाथ घूम रहा था – पहले हल्के से सहला रहा था, फिर जोर से दबाया। मम्मी ने थोड़ा सा हिलकर अपना हाथ उनके हाथ पर रखा, लेकिन हटाया नहीं – बस रोकने की कोशिश की। उनकी आवाज आई, धीमी लेकिन साफ – "अरे विनोद जी, मूवी तो देखने दो यार... अभी से शुरू हो गए?" वो हँस रही थीं, लेकिन आवाज में एक शरारत थी, जैसे ना कह रही हों लेकिन हाँ का इशारा कर रही हों। अंकल ने हँसकर कहा, "सरिता, मूवी से ज्यादा प्यासी तो तुम हो... देखो ना, कितने सख्त हो गए हैं ये।" और उन्होंने अपना हाथ और जोर से दबाया। मैं देख रहा था – मम्मी की साँसें तेज हो गईं, उनका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था। स्क्रीन की लाइट में उनके चेहरे पर एक चमक थी, जैसे मजा आ रहा हो। मेरा नुन्नू और ज्यादा तन गया – दर्द होने लगा, लेकिन मैं हिल नहीं सका।
फिर अचानक, फिल्म में हीरोइन को किस करने का सीन आया, और जैसे उससे इंस्पायर होकर, अंकल ने मम्मी की तरफ मुड़कर अपना मुँह उनके मुँह पर रख दिया। स्मूचिंग शुरू हो गई – पहले हल्की, जैसे सिर्फ होंठ छुआए, लेकिन फिर जोरदार। मैं उनके इतने करीब था कि किस की आवाज सुनाई दे रही थी – वो चप-चप की साउंड, जैसे कोई गीला फल चूस रहा हो। मम्मी ने पहले थोड़ा पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन फिर खुद ही अंकल की गर्दन पकड़ ली। उनकी जीभें मिल रही थीं – मैं देख रहा था, स्क्रीन की लाइट में चमकते हुए। मम्मी की आँखें बंद थीं, और अंकल का हाथ अब भी उनके बूब्स पर था। किस इतनी लंबी थी कि लग रहा था रुकेगी नहीं – 20-30 सेकंड तक चली। मेरी चोटी सी नुन्नी अब एकदम टाइट हो गई थी, जींस में दबकर दुख रही थी। मैं साँस रोककर देख रहा था – दिल की धड़कन कान में बज रही थी। किस की वो गीली आवाज... चट-चट... मेरे कानों में गूँज रही थी, जैसे कोई प्राइवेट शो चल रहा हो। मैंने कभी मम्मी को ऐसे देखा नहीं था – वो जो घर में पूजा करती हैं, वो ही अब किसी गैर मर्द के साथ ये सब?
स्मूचिंग खत्म हुई, लेकिन अंकल रुके नहीं। उन्होंने मम्मी की गाल पर किस किया – पहले दाएँ गाल पर, धीरे से चूमा, फिर चाटा जैसे। मम्मी ने सिर हिलाकर कहा, "उफ्फ... विनोद जी..." लेकिन रोक नहीं रही थीं। फिर अंकल नीचे सरके – गर्दन पर किस किया, पहले हल्का सा, फिर जोर से चूसा। मम्मी की गर्दन पीछे झुक गई, जैसे मजा आ रहा हो। उनकी साँसें और तेज हो गईं – मैं सुन रहा था, वो हल्की सी आहें। फिर अंकल और नीचे गए – मम्मी की क्लिवेज पर, जहाँ ब्लाउज का कट गहरा था। उन्होंने अपना मुँह वहाँ दबाया, जीभ से चाटा, और हाथ से ब्लाउज थोड़ा नीचे सरका दिया। मम्मी ने अपना हाथ उनके सिर पर रखा, लेकिन दबाया नहीं – बस सहला रही थीं। स्क्रीन की लाइट में मैं देख रहा था – मम्मी की क्लिवेज चमक रही थी, गीली हो गई थी अंकल की लार से। वो बोलीं, "अरे... यहाँ नहीं... कोई देख लेगा।" लेकिन आवाज में वो नखरा था, जैसे रोकना नहीं चाहतीं। ये सब सुनकर और देखकर मेरी नुन्नी एकदम कड़ी हो गई थी – लग रहा था अब फट जाएगी, दर्द हो रहा था लेकिन मीठा सा। मेरा बदन गर्म हो गया था, जैसे बुखार चढ़ रहा हो।
तभी अंकल ने अपनी पैंट की जिप खोली – धीरे से, साउंड कम हो इसलिए। मैं देख रहा था – उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला, जो पहले से तना हुआ था, लंबा और मोटा। स्क्रीन की लाइट में वो चमक रहा था। फिर अंकल ने मम्मी के बाल पकड़े – हल्के से, लेकिन जोर लगाकर उनका सिर नीचे झुकाया। मम्मी ने नखरा किया – "नहीं विनोद जी...
यहाँ नहीं... कोई आ गया तो?" लेकिन अंकल ने नहीं सुना, और अपना लंड उनके मुँह में डाल दिया। पहले तो मम्मी ने मुँह बंद रखा, लेकिन फिर धीरे से खोला। लंड अंदर गया – पहले टिप, फिर आधा। मम्मी ने चूसना शुरू किया – धीरे-धीरे, जैसे कोई आइसक्रीम चाट रही हों। उनकी जीभ घूम रही थी, और हाथ से लंड को पकड़कर हिला रही थीं। अंकल ने सिर दबाया, और पूरा लंड अंदर धकेल दिया – मम्मी की आँखें बड़ी हो गईं, लेकिन वो चूसती रहीं। चूसने की आवाज आ रही थी – ग्लप-ग्लप, जैसे कोई बोतल से पानी पी रही हो। मम्मी ने थोड़ा नखरा किया – मुँह हटाकर बोलीं, "उफ्फ... इतना बड़ा... गला दुख रहा है।" लेकिन फिर खुद ही वापस ले लिया, और तेज चूसने लगीं। अंकल की आहें निकल रही थीं – "सरिता... कितना अच्छा चूसती हो... आह..." मम्मी की लाल लिपस्टिक लंड पर लग गई थी, और वो ऊपर-नीचे कर रही थीं, हाथ से सहला रही थीं। ब्लोजॉब इतना इंटेंस था कि लग रहा था अंकल अभी झड़ जाएंगे।
मैं शॉक में था – ये मेरी वो ही मम्मी हैं? जो घर में संस्कारी बनती हैं, भोली-भाली, घरेलू? जो सुबह पूजा करती हैं, और अब मेरे सामने ही किसी गैर मर्द का लंड चूस रही हैं? वो लंड जो विनोद अंकल का है – 50 साल का आदमी, गैरेज वाला। ये देखते ही मेरी नुन्नी ने पानी छोड़ दिया – गर्म-गर्म, जींस में फैल गया, लेकिन मैं हिला नहीं। बस देखता रहा, साँस रोककर, जैसे कोई थ्रिलर मूवी चल रही हो। दिल में सस्पेंस था – आगे क्या होगा? लेकिन मैं रुक नहीं सका...
मैं अभी भी शॉक में था, लेकिन बदन में वो गर्मी कम नहीं हो रही थी। लाइट्स ऑफ होने के बाद थिएटर में सिर्फ स्क्रीन की धुंधली रोशनी थी, और फिल्म की आवाजें – हीरोइन की आहें, बैकग्राउंड का सॉफ्ट म्यूजिक – सब कुछ मिलकर एक अजीब सा माहौल बना रहा था। मेरा नुन्नू इतना तना हुआ था कि दर्द हो रहा था, जैसे कोई लोहे की सलाख पैंट में फँसी हो। मैंने धीरे से, बहुत सावधानी से, अपनी सीट पर ही अपना हाथ नीचे किया। जिप को हल्का सा खोला – साउंड न हो इसलिए बहुत धीरे से – और अपना नुन्नू बाहर निकाल लिया। वो अभी भी खड़ा था, पूरा तना हुआ, छोटा सा लेकिन इतना सख्त कि छूने से ही झनझनाहट हो गई। गर्म-गर्म, और ऊपर की स्किन पीछे सरक गई थी। मैंने उसे हल्के से पकड़ा, लेकिन अभी सहलाया नहीं – बस बाहर निकालकर रखा, क्योंकि देखने में इतना मजा आ रहा था कि हाथ खुद-ब-खुद वहाँ पहुँच गया।
आगे वाली सीट पर, मम्मी अभी भी विनोद अंकल का लंड बड़े प्यार से चूस रही थीं। मैं इतना करीब था कि सब कुछ साफ दिख रहा था – स्क्रीन की लाइट में लंड चमक रहा था, मम्मी की लार से गीला होकर। अंकल का लंड बड़ा था, लंबा और मोटा, और झांटों से भरा हुआ – काली-काली झांटें, जैसे कोई जंगल उग आया हो। वो झांटें मम्मी के मुँह पर लग रही थीं, लेकिन मम्मी को कोई परवाह नहीं। वो बड़े प्यार से चूस रही थीं – पहले टिप को जीभ से चाटतीं, जैसे कोई आइसक्रीम का कोन चाट रही हों, धीरे-धीरे घुमा-घुमाकर। फिर पूरा मुँह खोलकर अंदर लेतीं, आधा लंड गले तक धकेलतीं, और बाहर निकालतीं – हर बार लंड पर उनकी लाल लिपस्टिक का निशान लग जाता। मम्मी की आँखें बंद थीं, जैसे वो किसी पूजा में लीन हों, लेकिन ये पूजा किसी देवी की नहीं, बल्कि इस गैर मर्द के लंड की थी। वो हाथ से लंड की जड़ पकड़तीं, झांटों को सहलातीं, और फिर चूसतीं – ग्लप-ग्लप की आवाज आ रही थी, जैसे कोई बोतल से दूध पी रही हो। अंकल का लंड झांटों वाला था, लेकिन मम्मी उसे ऐसे चूस रही थीं जैसे दुनिया का सबसे स्वादिष्ट चीज हो – जीभ से झांटों को अलग करतीं, फिर पूरा मुँह में भरतीं। उनकी साँसें तेज थीं, और हर बार बाहर निकालकर वो लंड को देखतीं, फिर मुस्कुराकर वापस चूसने लगतीं। "उम्म... विनोद जी... कितना टेस्टी है..." वो फुसफुसातीं, और फिर जीभ से टिप पर घुमा देतीं। मैं देख रहा था – मेरी संस्कारी मम्मी, जो घर में रामायण पढ़ती हैं, सिंदूर लगाती हैं, वो ही अब इस झांटों वाले लंड को ऐसे चूस रही थीं जैसे कोई प्यासी औरत अपना प्यास बुझा रही हो। लंड की नसें उभरी हुई थीं, और मम्मी उन्हें जीभ से ट्रेस करतीं, ऊपर से नीचे तक चाटतीं, फिर गेंदों को मुँह में लेतीं – एक-एक करके, जैसे कोई कैंडी चूस रही हों। अंकल की झांटें उनके होंठों पर लग रही थीं, लेकिन मम्मी रुक नहीं रही थीं – बल्कि और जोर से चूसतीं, हाथ से लंड को हिलातीं, और मुँह से वैक्यूम बनातीं। ये सब इतना कामुक था कि मेरा लंड और टाइट हो गया – लग रहा था फट जाएगा, गर्मी से जल रहा था।
ये देखकर मैंने अपनी नुन्नी को सहलाना शुरू कर दिया – धीरे-धीरे, ऊपर-नीचे करके। मेरा हाथ काँप रहा था, लेकिन मजा आ रहा था। मैं सोच रहा था – कैसे मेरी संस्कारी, भोली मम्मी, जिसे मैं एक सीधी-सादी औरत समझता था, जो मेरे लिए देवी जैसी थी – पूजा करने वाली, घर संभालने वाली, वो ही अब एक रंडी की तरह व्यवहार कर रही हैं? वो जो सुबह मंदिर जाती हैं, शाम को पापा के लिए खाना बनाती हैं, वो ही अब थिएटर में किसी 50 साल के गैरेज वाले अंकल का लंड चूस रही हैं, वो भी इतने प्यार से? लेकिन मुझे गुस्सा नहीं आ रहा था – बल्कि एक अजीब सी फीलिंग आ रही थी, जैसे excitement और jealousy मिलकर कुछ नया बना रहे हों। मेरा दिल तेज धड़क रहा था, बदन में करंट दौड़ रहा था, और नुन्नी और टाइट हो रही थी। मैं सहला रहा था – तेज-तेज, लेकिन साउंड न हो इसलिए धीरे से। अंदर एक काश-काश चल रहा था – काश मैं वहाँ अंकल की जगह होता, काश मम्मी मुझे ऐसे देखतीं, काश ये सब सपना होता लेकिन असली भी। लेकिन मैं रुक नहीं सका – बस देखता रहा, सहलाता रहा, और वो फीलिंग और 강 हो गई, जैसे कोई आग जल रही हो...
फिर वही चलता रहा… मम्मी का मुँह ऊपर-नीचे, ऊपर-नीचे…
स्क्रीन की नीली-लाल रोशनी में उनका चेहरा चमक रहा था, लार से लंड पूरा चिपचिपा हो चुका था।
मम्मी की लाल लिपस्टिक अब लंड पर पूरी फैल चुकी थी, झांटों तक पहुँच गई थी।
हर बार जब वो लंड पूरा बाहर निकालतीं तो एक चमकदार धागा लार का खिंचता था, और फिर वो उसे वापस गले तक धकेल देतीं।
उनकी चूड़ियाँ हल्की-हल्की खनक रही थीं, जैसे कोई ताल दे रही हों।
मैं इतना करीब था कि उनकी गर्म साँसें भी महसूस हो रही थीं।
फिर अचानक विनोद अंकल की कमर हिली।
उन्होंने मम्मी के बाल कसकर पकड़े, सिर को नीचे दबाया और कमर आगे ठोक दी।
लंड पूरा मम्मी के गले में घुस गया। मम्मी की आँखें चौड़ी हो गईं, गला फूल गया, लेकिन वो पीछे नहीं हटीं।
अंकल की आवाज आई – धीमी, दबी हुई लेकिन साफ –
“ले… ले मेरी रंडी… पूरा ले… आज तुझे अपना माल पिलाता हूँ…”
और फिर…
अंकल की कमर एक बार और ठोकी, और वो रुक गए।
उनकी आँखें बंद, सिर पीछे टिका, और मुँह से लंबी सी “आआआह्ह्ह…” निकली।
मैं देख रहा था – लंड मम्मी के गले में धँसा हुआ था, और अंकल की जाँघें काँप रही थीं।
एक… दो… तीन… चार झटके… और फिर अंकल ने मम्मी का सिर और कसकर दबाया।
मम्मी ने कुछ देर तक मुँह बंद रखा, फिर… गटक…
एक लंबी, साफ गटकने की आवाज आई।
फिर एक और… गटक…
और फिर तीसरी बार… गटक…
मम्मी ने एक बार में ही पूरा वीर्य पी लिया।
उनके गले की हलचल साफ दिख रही थी – जैसे कोई गर्म दूध निगल रही हों।
उसके बाद मम्मी ने लंड धीरे से बाहर निकाला, जीभ से टिप को साफ किया, और फिर होंठ चाटकर मुस्कुराईं।
अंकल ने प्यार से उनके गाल पर थपकी मारी और फुसफुसाया, “कितना स्वादिष्ट पीती है तू… मेरी रंडी…”
मम्मी शरमाई नहीं, बस हल्के से हँसकर बोलीं, “बस तुम भी ना… पूरा गले में डाल दिया…”
ये सब देखते-देखते मेरे दिमाग में बिजली सी कौंध गई।
वो मेरी मम्मी हैं…
जो घर में किसी पराए मर्द का नाम लेने पर भी चूँ करती थीं,
जिनके लिए पापा भी साल में दो बार ही छूते थे,
वो आज किसी पराए मर्द का लंड का पानी एक घूँट में पी गईं।
मैंने देखा – मम्मी के होंठों पर अभी भी चमक थी, गले में हल्का सा उभार था जहाँ माल गया था।
और तभी… मेरी नुन्नी ने भी हिल गई।
बिना हाथ लगाए ही… एक जोर का झटका लगा, और गर्म-गर्म पानी मेरी जाँघों पर फैल गया।
मैं काँप रहा था, साँसें तेज, लेकिन आँखें हटी नहीं।
फिर मेरा ध्यान अंकल के लंड पर गया।
अभी भी बाहर था, आधा तना हुआ, मोटा, लंबा, झांटों से भरा…
और मेरी नुन्नी? छोटी सी, अभी-अभी झड़ चुकी, हाथ में लिपटी हुई।
दोनों में जमीन-आसमान का फर्क।
मैं बस देखता रह गया…
और दिल में एक अजीब सा सवाल उठा –
अब आगे क्या होगा…?
फिल्म खत्म होने की तरफ बढ़ रही थी।
स्क्रीन पर अभी भी वही B-ग्रेड सीन चल रहे थे, लेकिन अब मम्मी और अंकल शांत हो चुके थे।
मम्मी सीधे बैठ गईं।
उन्होंने अपना रुमाल निकाला – वो छोटा सा लाल रंग का रुमाल जो हमेशा पर्स में रखती हैं – और धीरे-धीरे होंठ पोंछने लगीं।
पहले ऊपर का होंठ, फिर नीचे का… फिर गालों पर हल्के से रगड़ा, जैसे कोई सबूत मिटा रही हों।
अंकल ने अपना लंड वापस पैंट में डाला, जिप बंद की और आराम से सीट पर टिक गए।
दोनों अब एकदम नॉर्मल कपल जैसे लग रहे थे – जैसे कुछ हुआ ही न हो।
मैं भी चुपके से अपनी सीट पर वापस बैठ गया, नुन्नी अभी भी गीली थी, जींस में चिपचिपाहट महसूस हो रही थी।
लगभग 10 मिनट बाद…
फिल्म में अब क्लाइमेक्स चल रहा था, हीरोइन की चीखें गूँज रही थीं।
अंकल ने फिर से अपना हाथ बढ़ाया।
धीरे से, बिना मम्मी की तरफ देखे, उनका दायाँ हाथ मम्मी के ब्लाउज की तरफ सरका।
मम्मी ने पहले तो हाथ रोका, लेकिन अंकल ने मुस्कुराते हुए बस उँगलियाँ ब्लाउज के अंदर डाल दीं।
ब्रा के ऊपर से ही पहले सहलाया, फिर अंदर हाथ घुसेड़ दिया।
मम्मी की साँस एकदम रुक गई – मैं देख रहा था, उनका सीना फूल गया।
अंकल ने पूरा बूब दबाया, उँगलियों से निप्पल को पकड़कर घुमाया।
मम्मी की आँखें बंद हो गईं, होंठ कटे, लेकिन आवाज नहीं निकली।
फिर अंकल का हाथ और नीचे सरका।
साड़ी के पल्लू को हल्का सा उठाया, पेटीकोट के ऊपर से ही पहले सहलाया, फिर हाथ साड़ी के अंदर घुसा दिया।
मम्मी ने घुटने सिकोड़े, पैर आपस में दबाए, लेकिन अंकल का हाथ रुक नहीं रहा था।
धीरे-धीरे, उँगलियाँ नीचे सरकती गईं… पैंटी के ऊपर से चूत पर पहुँचीं।
मम्मी बस फुसफुसा रही थीं –
“नहीं विनोद जी… कोई देख लेगा… प्लीज… बस करो…”
लेकिन आवाज में वो कमजोरी थी, वो नखरा था जो मना नहीं कर रहा था।
अंकल बस हल्के से मुस्कुराए और उँगलियों से गोल-गोल घुमाने लगे।
मम्मी का सिर सीट पर पीछे टिक गया, होंठ कटे हुए, आँखें बंद।
फिल्म खत्म हुई।
लाइट्स धीरे-धीरे जलीं।
जैसे ही पहली रोशनी पड़ी, मम्मी ने फट से अंकल का हाथ खींचकर बाहर निकाला।
साड़ी का पल्लू ठीक किया, ब्लाउज को ऊपर खींचा, और फटाफट स्कार्फ से चेहरा ढक लिया।
अंकल हँसते हुए उठे, मम्मी भी उठीं।
दोनों हाथ पकड़े हुए बाहर की तरफ बढ़े।
मैं भी चुपके से पीछे-पीछे निकला।
सोचा था अब घर जाएँगे।
लेकिन नहीं।
PVR के बाहर निकलते ही वो लोग मेन रोड की बजाय बगल की सुनसान पगडंडी की तरफ मुड़े – वो इलाका जहाँ पीछे पुरानी पार्किंग और जंगल जैसी झाड़ियाँ हैं।
वहाँ दिन में भी कोई नहीं आता।
मैंने साइकिल उठाई और दूर से पीछा किया।
दिल की धड़कन फिर तेज हो गई – अब क्या होने वाला है?
लगभग 20 मिनट चलने के बाद वो एक बड़े पुराने पीपल के पेड़ के पास रुके।
उसके पीछे घनी झाड़ियाँ थीं, जहाँ कोई दिखता नहीं।
दोनों हाथ पकड़े हुए झाड़ियों के पीछे चले गए।
मैंने साइकिल एक पेड़ से टिका दी और चुपके से पास पहुँचा…
दिल जोर-जोर से धड़क रहा था – अब आगे क्या होगा…?
झाड़ियों के पीछे पहुँचते ही, मैंने अपनी साइकिल एक दूर के पेड़ से टिका दी और धीरे-धीरे, पाँवों की आहट न हो इसलिए, झाड़ियों की आड़ लेकर करीब पहुँचा। दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, जैसे कोई थ्रिलर फिल्म का क्लाइमेक्स चल रहा हो – सस्पेंस इतना कि साँसें रुक सी गईं। वहाँ वो बड़ा सा पीपल का पेड़ था, पुराना और घना, और उसके पीछे झाड़ियाँ इतनी घनी कि दिन की रोशनी भी मुश्किल से अंदर घुस रही थी। हवा में पत्तियों की सरसराहट थी, दूर से ट्रैफिक की आवाज आ रही थी, लेकिन यहाँ सब सुनसान – जैसे कोई प्राइवेट जंगल हो। मैं एक झाड़ी के पीछे छिप गया, इतना करीब कि सब दिखे लेकिन वो मुझे न देखें। और फिर… मैंने देखा।
विनोद अंकल ने मम्मी को पेड़ से सटा लिया था। उनका हाथ मम्मी के ब्लाउज पर गया – पहले सहलाया, फिर हुक खोलने लगे। मम्मी ने पहले तो रोकने की कोशिश की, लेकिन अंकल ने मुस्कुराते हुए एक-एक हुक खोला। पहले ऊपर का हुक, फिर बीच का, फिर नीचे का। ब्लाउज खुल गया, और मम्मी की ब्रा सामने आ गई – सफेद ब्रा, जो उनके भरे हुए बूब्स को मुश्किल से संभाल रही थी। अंकल ने ब्रा को ऊपर सरका दिया, और बूब्स बाहर निकल आए – गोरे, भरे हुए, निप्पल गुलाबी और तने हुए। मम्मी की आँखें बंद हो गईं, जैसे शर्म और मजा दोनों मिलकर कुछ कर रहे हों। अंकल ने अपना मुँह नीचे किया और एक बूब को मुँह में ले लिया – पहले हल्के से चूसा, जीभ से निप्पल को घुमाया। मम्मी की साँसें तेज हो गईं – “उफ्फ… विनोद जी…” वो फुसफुसाईं, लेकिन रोक नहीं रही थीं। अंकल ने जोर से चूसा, दाँतों से हल्का सा काटा, और मम्मी की पीठ झुक गई। फिर दूसरे बूब पर – चूसते हुए, चाटते हुए, जैसे कोई भूखा शेर अपना शिकार खा रहा हो। मम्मी का हाथ उनके सिर पर था, दबा रही थीं, जैसे और चाहिए। मैं देख रहा था – मम्मी की आँखें बंद, होंठ कटे हुए, और वो हल्की सी आहें निकाल रही थीं – “आह… धीरे… उफ्फ…”। ये सब इतना धीमा और कामुक था कि मेरा बदन फिर गर्म हो गया।
फिर अंकल ने अपना हाथ नीचे किया। साड़ी का पल्लू पहले ही सरक चुका था। उन्होंने साड़ी की सिलवटें खोलनी शुरू कीं – एक-एक करके, जैसे कोई गिफ्ट अनरैप कर रहा हो। मम्मी ने आँखें खोलीं और बोलीं, “विनोद जी… क्या कर रहे हो? यहाँ जंगल जैसा है, लेकिन कोई आ गया तो?” लेकिन अंकल रुके नहीं। साड़ी पूरी खुल गई, और गिरकर जमीन पर फैल गई – लाल रंग की, जैसे कोई खून का धब्बा। अब मम्मी सिर्फ खुले ब्लाउज और पेटीकोट में थीं – ब्लाउज अभी भी कंधों पर लटका हुआ, बूब्स बाहर लटके हुए। वो इलाका सच में जंगल जैसा था – चारों तरफ झाड़ियाँ, पत्तियाँ, और कोई इंसान की आवाज नहीं। मम्मी ने गुस्से में कहा, “पागल हो गए हो क्या आप? यहाँ खुले में?” लेकिन उनकी आवाज में वो गुस्सा कम, और उत्तेजना ज्यादा थी। अंकल ने हँसकर उनका पेटीकोट का नाड़ा पकड़ा – एक झटके में खींचा, और पेटीकोट नीचे सरक गया। अब मम्मी सिर्फ पैंटी और खुले ब्लाउज में थीं – ब्रा ऊपर सरकी हुई, बूब्स हवा में हिल रहे थे।
अंकल रुके नहीं। उन्होंने मम्मी की पैंटी पर हाथ रखा – पहले सहलाया, फिर नीचे खींचने लगे। मम्मी ने रोकने की कोशिश की – “नहीं… विनोद जी… प्लीज… यहाँ नहीं…” वो मना कर रही थीं, हाथ से पकड़ रही थीं, लेकिन अंकल ने जोर लगाया। एक जोरदार झटका – और पैंटी फट गई। फटने की आवाज आई, जैसे कोई कपड़ा चीर दिया हो। अब मम्मी पूरी नंगी थीं नीचे से – सिर्फ खुले ब्लाउज और ब्रा में, जिसमें से बूब्स लटक रहे थे। उनकी चूत साफ दिख रही थी – गोरी, हल्की झांटों वाली, और पहले से गीली। मम्मी शर्म से हाथों से ढकने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन अंकल ने उनके हाथ हटा दिए। मम्मी खड़ी थीं, बदन काँप रहा था – शर्म, ठंड, और उत्तेजना से।
अंकल ने अब अपनी पैंट खोली – जिप नीचे की, और लंड बाहर निकाला। वो काला, लंबा, नाग जैसा लंड – मोटा, नसों से भरा, और पहले से तना हुआ। स्क्रीन की लाइट में मैंने थिएटर में देखा था, लेकिन अब दिन की धुंधली रोशनी में और डरावना लग रहा था – जैसे कोई काला साँप। मैं शॉक हो गया – इतना बड़ा? मेरी नुन्नी से दस गुना मोटा। अंकल ने थूक लिया – मुँह में थूका, और लंड पर मला। फिर मम्मी की चूत पर लगाया – उँगलियों से थूक फैलाया, चूत को सहलाया। मम्मी की आँखें बंद हो गईं, “उफ्फ… धीरे…”।
फिर अंकल ने मम्मी को घोड़ी बनाया – उन्हें नीचे झुकाया, हाथ पेड़ पर टिकवाए। मम्मी घुटनों पर आ गईं, कमर नीचे झुकी, चूत पीछे की तरफ उभरी हुई। अंकल ने अपना लंड चूत पर सेट किया – पहले टिप से सहलाया, फिर धीरे से अंदर धकेला। मम्मी की चीख निकली – “आआह्ह्ह… दर्द हो रहा है… विनोद जी… धीरे…”। लेकिन अंकल ने एक झटके में आधा लंड अंदर कर दिया। मम्मी का बदन काँप गया, आँखों से आँसू आ गए, लेकिन वो रुकी नहीं। अंकल ने कमर पकड़ी और धक्के मारने लगे – जैसे कोई सांड अपनी मादा को चोद रहा हो। पहले धीरे, फिर तेज – हर धक्का जोरदार, जैसे कोई हथौड़ा मार रहा हो। मम्मी की चूत से चप-चप की आवाज आ रही थी, गीली-गीली। मम्मी दर्द और मोनिंग दोनों साथ में कर रही थीं – “आह… उफ्फ… दर्द हो रहा है… लेकिन अच्छा लग रहा है… जोर से… आआह्ह्ह…”। उनकी आवाजें वासना से भरी थीं – कभी दर्द की चीख, कभी मजा की सिसकारी। “हाय… टूट जाएगी… लेकिन रुको मत… आह…”। अंकल के धक्के तेज हो गए – कमर आगे-पीछे, लंड पूरा अंदर-बाहर। मम्मी की चूड़ियाँ खनक रही थीं, बूब्स हिल रहे थे।
ये सब देखकर मेरी नुन्नी फिर टाइट हो गई – पहले से ज्यादा। मैंने उसे सहलाना शुरू कर दिया – तेज-तेज, लेकिन चुपके से। मेरा बदन जल रहा था, दिल में उथल-पुथल – ये मेरी मम्मी हैं, लेकिन अब जैसे कोई और…
फिर वो चुदाई शुरू हुई… और वो अगले 20 मिनट तक चली, जैसे कोई अंतहीन तूफान हो। मैं झाड़ी के पीछे छिपा हुआ, साँस रोककर देख रहा था, मेरा बदन पसीने से तर, दिल की धड़कन इतनी तेज कि लग रहा था बाहर निकल आएगी। अंकल का वो काला, लंबा, नाग जैसा लंड मम्मी की चूत में पूरा घुस चुका था – पहले धक्के में ही मम्मी का बदन झनझना गया था, लेकिन अब अंकल ने कमर पकड़ी और असली खेल शुरू किया। वो धक्के मारने लगे – पहले धीरे, जैसे टेस्ट कर रहे हों, लेकिन फिर तेज, जैसे कोई जानवर अपनी मादा पर चढ़ा हो। हर धक्का जोरदार, पूरा ताकत से – अंकल की कमर पीछे खींचते, फिर आगे ठोकते, और लंड पूरा अंदर-बाहर। मम्मी की चूत से चप-चप की आवाज आ रही थी, गीली-गीली, जैसे कोई पानी में डंडा मार रहा हो। मम्मी घोड़ी बनी हुई थीं, हाथ पेड़ पर टिके, कमर झुकी, और बूब्स आगे-पीछे हिल रहे थे – हर धक्के के साथ लटकते, उछलते, जैसे कोई भरे हुए फल हवा में लहरा रहे हों।
पहले 2-3 मिनट तो मम्मी मोन कर रही थीं – “आह… विनोद जी… जोर से… अच्छा लग रहा है… उफ्फ…” उनकी आवाजें वासना से भरी थीं, दर्द और मजा मिलकर। लेकिन जैसे-जैसे धक्के तेज हुए, मम्मी थकने लगीं। अंकल अब सांड की तरह चोद रहे थे –
– कमर को पीछे खींचकर पूरा ताकत से ठोकते, लंड पूरा अंदर धकेलते, और बाहर निकालते वक्त मम्मी की चूत की दीवारें खिंचतीं। मम्मी की साँसें फूलने लगीं, बदन पसीने से चमकने लगा – गोरा बदन अब लाल हो रहा था, पसीना माथे से बहकर गर्दन पर, फिर बूब्स पर टपक रहा था।
अगर आपको कहानी पसंद आई तो कमेंट में मुझे बताएं। अगर किसी का कोई समान वास्तविक जीवन का अनुभव है या आप चाहते हैं कि मैं उनकी कहानी लिखूं, तो बेझिझक मुझे प्राइवेट मैसेज या ईमेल भेजें।= alexcosta25131;
(Let me know in the comments if you enjoyed the story. If anyone has a similar real-life experience or would like me to write their story, feel free to send me a private message or email.= alexcosta25131;)


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