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Incest हॉस्टल रूम नं. 312
#3
गर्ल्स हॉस्टल, रूम ३१२

[Image: generated-video.gif]


कार से उतरने के बाद शालिनी ने ठीक वही किया जो मैंने पहले लिखा था – गेट, फव्वारा, सीढ़ियाँ, हर कदम पर मम्मों का उछाल, लड़कों की नज़रें। वो सब वैसा ही रहा।
अब रूम में एंट्री से शुरू करते हैं, एकदम आराम से, हर शब्द में कामुकता और टेंशन।
दरवाज़ा आधा खुला था।
अंदर अरिजीत की “तुम ही हो” बहुत धीमी चल रही थी।
शालिनी ने हल्के से खटखटाया और अंदर कदम रखा।
हील्स की ठक।
दोनों लड़कियाँ एक साथ मुड़ीं।
रुचि बेड पर लेटी थी – सिर्फ़ काली स्पोर्ट्स ब्रा और ग्रे कलर की इतनी छोटी शॉर्ट्स कि गांड का आधा हिस्सा बाहर था। उसकी टाँगें ऊपर उठी हुई थीं, उँगलियों से खेल रही थी। ब्रा में उसके निप्पल्स साफ़ उभरे हुए थे। वो शालिनी को देखकर एकदम कूदकर उठी।
“ओये होये होये…!!! ये कौन चंद्रमा उतर आया?!”
रुचि ने शालिनी के दोनों कंधों पर हाथ रखे, ऊपर से नीचे तक घूमकर देखा। उसकी नज़रें शालिनी के मम्मों पर रुकीं, फिर नाभि पर, फिर जींस के वी-शेप पर।
“नाम क्या है सेक्स बॉम्ब?”
“शालिनी…” शालिनी ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा।
रुचि ने उसका हाथ पकड़ा और बेड पर खींचकर बिठा दिया।
“बैठ यहाँ मेरे पास। श्रुति ये देख, हमारी रूम में मालगाड़ी आ गई है!”
श्रुति चश्मा ठीक करते हुए शरमाई, “रुचि… शर्म करो यार। हाय शालिनी, मैं श्रुति।”
रुचि ने शालिनी की जाँघ पर हाथ रख दिया – बिल्कुल नॉर्मल जैसे, लेकिन उँगलियाँ हल्की सी अंदर की तरफ़ सरका रही थीं।
“तो बता ना दी… बॉयफ्रेंड है कि नहीं? या अभी तक किसी ने तेरी ये कमाल की बॉडी को टच भी नहीं किया?”
शालिनी हँस दी, लेकिन उसकी साँसें एक पल को रुक गईं।
“अरे अभी तक तो कोई सीरियस वाला नहीं…”
रुचि ने होंठ चबाए।
“सच्ची? मतलब तू वर्जिन है???”
उसने अपनी उँगलियाँ शालिनी की जाँघ पर और ऊपर सरकाईं।
श्रुति ने किताब पटकी, “रुचि!! पहली मुलाकात में ही इतनी गंदी बातें? शर्म नहीं आती?”
रुचि ने जीभ निकाली।
“अरे यार श्रुति तू तो नन बनके रह जाएगी। मैं तो बस जानना चाहती हूँ कि इतनी हॉट लड़की सिंगल कैसे है? दी, सच बता… कोई तो होगा ना जो रात को वीडियो कॉल पर तेरे मम्मे दबाता होगा?”
शालिनी ने हल्का सा रिएक्ट किया – उसकी साँसें तेज़ हुईं, निप्पल्स ब्रा में सख्त हो गए।
“नहीं रे… सच में कोई नहीं है।”
(मन ही मन: “झूठ बोल रही हूँ… शादी है, बच्चा है… लेकिन आज से ये राज़ दफ़न है।”)
रुचि ने शालिनी के बालों में उँगलियाँ फेर दीं।
“तेरे बाल तो कमाल के हैं… बॉयफ्रेंड होता तो रोज़ पीछे से पकड़कर…”
श्रुति ने तकिया फेंका, “बस कर रुचि!!!”
रुचि हँस पड़ी और केतली ऑन करने चली गई।
शालिनी ने सूटकेस खोला।
धीरे-धीरे कपड़े निकालने लगी।
रुचि पीछे से झाँक रही थी। जब लाल लेस वाली थॉन्ग निकली तो उसने चिल्लाया,
“अरे वाह! ये तो मेरी वाली से भी गंदी है! ये पहनकर तू किसी के लंड पर बैठने वाली है ना?”
शालिनी शरमा कर हँस दी, लेकिन उसकी चूत में हल्की सी गुदगुदी हो गई।
श्रुति ने सिर पकड़ लिया, “ये लड़की सुधरेगी नहीं।”
दोपहर ढाई बजे।
शालिनी ने कहा, “मैं कपड़े बदल लूँ?”
रुचि की आँखें चमक उठीं, “हाँ हाँ ज़रूर! हम देखेंगे!”
शालिनी ने पहले क्रॉप टॉप उतारा।
धीरे से, सिर के ऊपर से।
ब्रा में उसके मम्मे उछल कर बाहर आए – काली लेस वाली, निप्पल्स साफ़ उभरे हुए।
रुचि की साँस रुक गई।
“फक… इतने परफेक्ट बूब्स?”
फिर जींस की बटन खोली। ज़िप नीचे की। धीरे-धीरे जींस नीचे सरकाई।
थॉन्ग में उसकी गांड पूरी नंगी। गोल, भरी हुई, बीच में पतली स्ट्रिंग।
रुचि ने सीटी मार दी।
श्रुति ने मुँह फेर लिया, लेकिन चोरी से देख रही थी।
शालिनी ने स्लीवलेस ब्लैक नाइट स्लिप पहनी – बहुत छोटी, गांड को बस ढकती हुई। ब्रा-पैंटी उतारकर नंगी होकर स्लिप में घुसी।
रुचि ने ताली बजाई, “दी, तू तो यहाँ की क्वीन बनने वाली है!”
शालिनी बेड पर लेट गई।
“थोड़ा आराम कर लूँ”




शाम साढ़े छह बजे।
सूरज अब सिर्फ़ एक लाल गोला रह गया था, जो धीरे-धीरे ढल रहा था। हवा में गर्मी और ठंडक का मिश्रण था।
शालिनी काले सिल्क की नाइट स्लिप में बालकनी में निकली।
स्लिप इतनी पतली कि उसके निप्पल्स की उभरी हुई शेप साफ़ दिख रही थी। नीचे कुछ नहीं। हवा का हर झोंका स्लिप को ऊपर उड़ा रहा था।
वो रेलिंग से टिक गई।
[Image: shopping.webp]
[Image: unnamed.jpg]
[Image: fbdf.jpg]

दोनों हाथ लोहे पर। कमर थोड़ा झुकाकर।
हवा ने फिर स्लिप उड़ाई – गांड पूरी नंगी।
वो रुक गई।
(मन ही मन) “देखो… जो देखना है देख लो। आज कोई मुझे फिर से औरत बनाए।”
दूर बॉयज़ हॉस्टल।
अभय खड़ा था। सिगरेट मुंह में।
उसकी नज़र पड़ी।
सिगरेट हाथ से गिरी।
उसका लंड पैंट में उछला।
शालिनी ने महसूस किया।
वो धीरे से मुड़ी।
पहली बार उसकी नज़र अभय पर पड़ी।
वो रुक गई।
दूर से।
तीस मीटर।
लेकिन दोनों को लगा जैसे एक फुट।
शालिनी ने उसे ध्यान से देखा।
एक सेकंड।
दो।
तीस।
उसकी आँखें अभय के चेहरे पर, फिर छाती पर, फिर नीचे पैंट पर – जहाँ उभार साफ़ था।
उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
(मन में सैलाब शुरू हुआ)
“ये कौन है…?
इतनी दूर से भी… ऐसा क्यों लग रहा है जैसे उसने मुझे छू लिया हो?
उसकी आँखें… इतनी भूखी क्यों हैं?
क्या वो भी मेरी तरह… तड़प रहा है?
नहीं शालिनी… तू माँ है… पत्नी है…
लेकिन… लेकिन ये गर्मी… ये चूत में ये खुजली… बीस साल बाद फिर से क्यों?”
सैलाब बढ़ता गया।
उसकी चूत से गर्मी नीचे उतरने लगी।
उसने होंठ काटा।
फिर अचानक नज़रें फेर लीं।
जैसे कुछ हुआ ही न हो।
लेकिन आँखों के कोने से चोरी-चोरी देखती रही।
अभय अभी भी खड़ा था।
उसने अपना लंड पैंट के ऊपर से दबाया।
शालिनी की साँसें और तेज़।
(मन में) “भगवान… ये क्या हो रहा है मुझे…
मैं तो बस पढ़ने आई थी…
फिर ये सब…?”
सैलाब अब इतना तेज़ हो गया कि वो और नहीं सह पाई।
वो झटके से मुड़ी।
स्लिप नीचे की।
और कमरे में चली गई।
दीवार से पीठ टिकाई।
रुचि बेड पर लेटी थी। मोबाइल चला रही थी।
उसने शालिनी को देखा – चेहरा लाल, साँसें तेज़।
“क्या हुआ दी? चेहरा इतना लाल क्यों है?”
शालिनी ने कुछ नहीं कहा। बस पानी का ग्लास लिया और पीने लगी।
रुचि उठकर आई। शालिनी के कंधे पर हाथ रखा।
“बोल ना… पास में ही बॉयज़ हॉस्टल है ना? कोई दिख गया क्या?”
उसने हल्के से शालिनी की कमर पर उँगली फेरी। “कोई हॉट लड़का? बता ना… मैं भी देखूँगी!”
शालिनी ने ग्लास नीचे रखा।
“कुछ नहीं… बस गर्मी लग रही थी।”
रुचि ने मुस्कुरा कर कहा,
“गर्मी तो लगेगी दी… ऐसे सेक्सी कपड़े पहनकर बालकनी में खड़ी होगी तो लड़के मर जाएँगे। अगली बार कुछ और पहनकर जाना… वरना कोई कूदकर आ जाएगा!”
शालिनी हल्के से हँस दी।
लेकिन अंदर सैलाब अभी भी चल रहा था।
वो बेड पर लेट गई।
आँखें बंद कीं।
उसका का चेहरा।
उसकी नज़र।
उसका उभार।
वो धीरे-धीरे… अनचाहे ही… फिर से गीली हो गई।
हाथ अपने आप नीचे गया।
स्लिप के अंदर।
चूत पर।
वो पूरी तरह गीली थी।
उसने दो उँगलियाँ अंदर डालीं।
धीरे से।
आँखें बंद।
उसका का चेहरा याद किया।
और सिर्फ़ दस सेकंड में झड़ गई।
पैर काँप रहे थे।
रुचि और श्रुति बाहर गए हुए थे।
शालिनी अकेली।
उसने तकिया मुँह पर दबाया और रोने लगी।
खुशी के आँसू और डर के।

[Image: tumblr-n87sjuucz-W1s7u3gao1-500.gif]
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RE: हॉस्टल रूम नं. 312 - by diyabiswas85 - 09-12-2025, 07:59 PM



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