07-12-2025, 05:57 AM
रूही किचन में अकेली थी, लेकिन उसका पूरा बदन अभी भी रामू जी की छुअन से जल रहा था। साड़ी का पल्लू बार-बार सरक जाता, दोनों भारी चूचियाँ पूरी तरह खुली हुईं, निप्पल अभी भी सूजे और सख्त—रात भर की चुदाई की निशानी। हर साँस में चूचियाँ हिलतीं, तो उसकी चूत में एक मीठी सी खुजली होती।
चूल्हा जलाते वक्त वो झुकती है। साड़ी पीछे से इतनी ऊपर सरक जाती है कि उसकी नंगी गांड पूरी चमकने लगती है। गुलाबी छेद अभी भी हल्का खुला-खुला सा, रामू जी के मोटे लण्ड की वजह से। वो खुद महसूस करती है कि उसकी जाँघों के बीच चिपचिपा रस फिर से बहने लगा है। उसने एक उंगली पीछे ले जाकर गांड के छेद पर फेरी और सिसक पड़ी, “उफ्फ… रामू जी… अभी भी आपका माल अंदर तक भरा है…”
पराठा बेलते वक्त उसकी कमर अपने आप मटकने लगती है। बेलन हर बार दबाव डालता तो उसकी चूचियाँ उछलतीं, जैसे कोई उन्हें दबा रहा हो। आटे में उसकी पसीने की बूंदें गिरतीं, और वो कल्पना करने लगती— “अगर रामू जी अभी यहाँ होते… तो मुझे इसी स्लैब पर लिटाकर… बेलन की जगह अपना मोटा लण्ड घुमाते…” सोचते-सोचते उसकी चूत से एक मोटी बूंद रस टपक कर फर्श पर गिर जाती है।
घी तवे पर डालते ही छन-छन की आवाज होती है। वो खुद ही घी की एक बूंद अपनी उंगली पर लेकर अपनी निप्पल पर मल देती है। फिर वही उंगली मुँह में डालकर चूसती है और आँखें बंद कर लेती है, “आह… रामू जी… आपका रस भी ऐसा ही नमकीन था…”
आलू की सब्जी चखने के लिए उंगली डालती है, पर उंगली अंदर जाते ही उसकी चूत सिकुड़ जाती है। वो बेचैन होकर अपनी जाँघें आपस में दबाती है, और फुसफुसाती है, “बस कर रूही… अभी तो रामू जी सो रहे हैं… पर जैसे ही उठेंगे… मैं उन्हें यहीं किचन में घुटनों पर बैठकर… अपना लण्ड चूसूँगी… फिर वो मुझे स्टोव के सामने झुकाकर… मेरी गांड मारेंगे…”
चाय बनाते वक्त दूध उबलता है तो भाप उसके चेहरे पर लगती है। वो कल्पना करती है कि ये रामू जी की गर्म साँसें हैं जो उसकी चूत पर लग रही हैं। उसने एक हाथ साड़ी के नीचे डालकर अपनी फूली हुई भगनासा को सहला लिया। दो उंगलियाँ अंदर तक चली गईं, और वो दीवार से टिककर सिसकने लगी, “आह… रामू जी… जल्दी उठो ना… तुम्हारी रूही किचन में ही गीली हो रही है… तुम्हारा मोटा लण्ड चाहिए… अभी… यहीं…”
पराठे तैयार हैं। प्लेट सजाते वक्त वो जान-बूझकर साड़ी का पल्लू पूरी तरह गिरा देती है। दोनों चूचियाँ खुली हुई, दूध का गिलास उसके हाथ में। वो आईने में खुद को देखती है और कामुक मुस्कान देती है, “रामू जी… उठो… तुम्हारा नाश्ता तैयार है… और तुम्हारी रंडी रूही भी… पूरी नंगी… पूरी गीली… सिर्फ तुम्हारे लिए।”
फिर प्लेट और दूध का गिलास लेकर वो बेडरूम की तरफ चल पड़ती है। हर कदम पर उसकी गांड मटकती है, चूचियाँ उछलती हैं, और उसकी चूत से रस की बूंदें जाँघों पर लुढ़क रही हैं।
किचन में सिर्फ घी और पराठों की खुशबू नहीं… रूही की जवानी की मदहोश कर देने वाली गंध भी फैली हुई है।
रूही प्लेट और दूध का गिलास लेकर बेडरूम की तरफ चली। हर कदम पर उसकी पायल छम-छम कर रही थी, पर उसके दिल की धड़कन उससे भी तेज थी।
दरवाजा धीरे से खोला। रामू जी अभी भी गहरी नींद में थे। चादर सरककर एक तरफ लुढ़क गई थी; उनका मोटा लण्ड अब शांत था, पर उस पर रूही के रस की हल्की चमक सूख रही थी। उनकी चौड़ी छाती धीरे-धीरे उठ-गिर रही थी। चेहरा इतना सुकून भरा कि रूही का दिल भर आया।
वो प्लेट बगल में रखी और घुटनों के बल बिस्तर पर चढ़ गई।
रूही ने बहुत धीरे से, जैसे कोई बच्चा माँ को जगाता है, उनके माथे पर होंठ रखे और फुसफुसाई, “रामू जी… मेरे राजा… उठिए ना… आपकी रूही आपके लिए नाश्ता लेकर आई है… और खुद को भी…”
रामू जी ने नींद में ही आँखें खोलीं। उन्होंने रूही को पूरी नंगी देखा, सिर्फ पायल और मंगलसूत्र पहने, चूचियाँ दूध की बूंदों से चमक रही थीं। उनकी आँखों में एक पल को नींद थी, फिर प्यार की लहर दौड़ गई।
रामू जी ने बाँहें फैलाईं। रूही झट से उनकी छाती पर लेट गई, उसका चेहरा उनके गले में छिप गया। वो रोने सी हो गई, पर खुशी के आँसुओं से।
“रामू जी… मैंने सोचा था शादी के बाद भी मैं अकेली रह जाऊँगी… पर आपने तो मुझे अपना घर दे दिया… अंदर तक… मैं अब सिर्फ आपकी हूँ… हर साँस आपकी… हर रात आपकी… हर चूत की धड़कन आपकी…”
रामू जी ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा, गला भारी था उनका भी, “रूही… मेरी जान… तू मेरे लिए सिर्फ बहू या बीवी नहीं… तू मेरी जिंदगी बन गई है। रात भर मैंने तुझे चोदा… पर सच कहता हूँ, तेरे आँसुओं ने मुझे ज्यादा चोदा है… तेरी ये आँखें… ये सिसकियाँ… मैं इनके लिए मर भी सकता हूँ।”
रूही ने अपना चेहरा ऊपर उठाया, उसके होंठों पर आँसू और मुस्कान दोनों थे। वो बोली, “तो फिर मरिए मत… बस मुझे जीते जी इतना प्यार दीजिए… कि मैं हर पल महसूस करूँ कि मैं आपकी हूँ… और आप मेरे अंदर…”
रामू जी ने उसे कसकर गले लगाया। दोनों की आँखें बंद थीं। रूही ने धीरे से उनके कान में कहा, “अब नाश्ता कीजिए… पर पहले मुझे चूम लीजिए… मैं आपकी भूख मिटाना चाहती हूँ… पेट की भी… और दिल की भी…”
रामू जी ने उसका चेहरा दोनों हाथों में लिया, और इतनी नरमी से चूमा कि रूही की आँखों से फिर आँसू लुढ़क गए।
“रूही… आज से ये घर नहीं, हमारा मंदिर है… और तू मेरी देवी… मैं रोज तेरी पूजा करूँगा… लण्ड से भी… और दिल से भी…”
रूही हँसते-हँसते रो पड़ी। फिर उसने पराठा तोड़ा, घी में डुबोया, और अपने हाथ से रामू जी के मुँह में रखा। रामू जी ने खाते हुए उसकी उंगलियाँ चूस लीं।
रूही बोली, “बस यही खाइएगा… मेरे हाथों से… मेरे बदन से… मेरे प्यार से…”
और फिर दोनों एक-दूसरे को खाने लगे— पराठे भी… और एक-दूसरे की आत्मा भी।
दोपहर ढलते-ढलते रूही और शीला साथ-साथ बस्ती की छोटी सी दुकान की तरफ निकल पड़ीं। रूही ने हल्की गुलाबी साड़ी पहनी थी, बिना ब्लाउज के सिर्फ पेटीकोट और साड़ी। पल्लू जान-बूझकर ढीला छोड़ा था, ताकि हर कदम पर उसकी भारी चूचियाँ हल्की-हल्की उछलें और पल्लू सरक जाए। चलते वक्त उसकी कमर अपने आप मटक रही थी, जैसे अभी भी रामू जी का लण्ड उसकी चूत में धक्का मार रहा हो।
शीला उसके साथ-साथ चल रही थी, पर उसकी आँखों में शरारत भरी थी। वो कभी रूही की कमर पर हाथ फेरती, कभी उसकी गांड पर हल्की चपत मार देती।
बस्ती के चौक में पहुँचते ही सबकी नजरें रूही पर जम गईं। चाय की टपरी पर बैठे बुजुर्ग चाय का प्याला भूल गए। साइकिल पर आते लड़के ब्रेक मारकर रुक गए। दो-तीन औरतें भी फुसफुसाने लगीं, “अरे ये नई बहू है ना? सारी रात चिल्लाई थी… देखो कैसे चल रही है… जैसे अभी-अभी चुदकर आई हो…”
रूही का चेहरा लाल हो गया, पर उसने शर्म को छिपाने की कोशिश नहीं की। बल्कि और सीधा खड़ी हो गई, चूचियाँ आगे कर दीं, जैसे कह रही हो: “हाँ, चुदकर आई हूँ… और बहुत मजे से चुदकर आई हूँ।”
शीला ने उसका हाथ पकड़ा और धीरे से कान में फुसफुसाई, “भाभी… सब देख रहे हैं… तुम्हारी चूचियाँ तो पल्लू से बाहर झाँक रही हैं… और ये जो तुम्हारी गांड मटक रही है ना… लग रहा है अभी भी भैया का लण्ड अंदर है।”
रूही ने शरमाते हुए होंठ दबाए, पर आँखों में शरारत थी। वो भी फुसफुसाई, “है ना अंदर… सुबह भी डालकर गए हैं… बस अभी-अभी निकाला है… अब तो हर कदम पर लग रहा है वो मुझे चोद रहे हैं।”
दुकान पर पहुँचते ही दुकानदार मुंशी जी की नजर रूही की छाती पर अटक गई। उसने आटा तौलते वक्त हाथ काँप रहे थे।
शीला ने हँसते हुए कहा, “मुंशी जी… आटा दो किलो… पर भाभी को ऐसे मत घूरो… रात भर भैया ने इन चूचियों को चूसा है… अभी भी दर्द कर रही होंगी।”
रूही ने शीला की कमर में चिकोटी काटी, पर मुस्कुरा भी रही थी।
वापसी में शीला ने रूही का हाथ अपने कंधे पर रखा और धीरे-धीरे बोली, “भाभी… सच बताओ… भैया का कितना बड़ा है? रात भर तुम चिल्लाई थी ना… ‘रामू जी… फट गई… आह्ह… मार डालो…’ हम सब सुन रहे थे।”
रूही का चेहरा और लाल हो गया, पर वो हँस पड़ी। उसने शीला के कान में फुसफुसाया, “बहुत बड़ा है शीला… इतना कि मैं अब चल भी नहीं पा रही… पर सच कहूँ… मुझे अब हर वक्त वही चाहिए… रामू जी का लण्ड… और उनका प्यार…”
शीला ने आँख मारी और बोली, “तो फिर शाम को फिर चिल्लाना भाभी… हम सबको नींद नहीं आएगी… पर मजे आएँगे।”
दोनों हँसते हुए घर की तरफ चलीं। रूही की चाल में अब शर्म नहीं, गर्व था। वो रामू जी की औरत थी— पूरी बस्ती जान चुकी थी।
और उसे इस बात पर नाज था।
चूल्हा जलाते वक्त वो झुकती है। साड़ी पीछे से इतनी ऊपर सरक जाती है कि उसकी नंगी गांड पूरी चमकने लगती है। गुलाबी छेद अभी भी हल्का खुला-खुला सा, रामू जी के मोटे लण्ड की वजह से। वो खुद महसूस करती है कि उसकी जाँघों के बीच चिपचिपा रस फिर से बहने लगा है। उसने एक उंगली पीछे ले जाकर गांड के छेद पर फेरी और सिसक पड़ी, “उफ्फ… रामू जी… अभी भी आपका माल अंदर तक भरा है…”
पराठा बेलते वक्त उसकी कमर अपने आप मटकने लगती है। बेलन हर बार दबाव डालता तो उसकी चूचियाँ उछलतीं, जैसे कोई उन्हें दबा रहा हो। आटे में उसकी पसीने की बूंदें गिरतीं, और वो कल्पना करने लगती— “अगर रामू जी अभी यहाँ होते… तो मुझे इसी स्लैब पर लिटाकर… बेलन की जगह अपना मोटा लण्ड घुमाते…” सोचते-सोचते उसकी चूत से एक मोटी बूंद रस टपक कर फर्श पर गिर जाती है।
घी तवे पर डालते ही छन-छन की आवाज होती है। वो खुद ही घी की एक बूंद अपनी उंगली पर लेकर अपनी निप्पल पर मल देती है। फिर वही उंगली मुँह में डालकर चूसती है और आँखें बंद कर लेती है, “आह… रामू जी… आपका रस भी ऐसा ही नमकीन था…”
आलू की सब्जी चखने के लिए उंगली डालती है, पर उंगली अंदर जाते ही उसकी चूत सिकुड़ जाती है। वो बेचैन होकर अपनी जाँघें आपस में दबाती है, और फुसफुसाती है, “बस कर रूही… अभी तो रामू जी सो रहे हैं… पर जैसे ही उठेंगे… मैं उन्हें यहीं किचन में घुटनों पर बैठकर… अपना लण्ड चूसूँगी… फिर वो मुझे स्टोव के सामने झुकाकर… मेरी गांड मारेंगे…”
चाय बनाते वक्त दूध उबलता है तो भाप उसके चेहरे पर लगती है। वो कल्पना करती है कि ये रामू जी की गर्म साँसें हैं जो उसकी चूत पर लग रही हैं। उसने एक हाथ साड़ी के नीचे डालकर अपनी फूली हुई भगनासा को सहला लिया। दो उंगलियाँ अंदर तक चली गईं, और वो दीवार से टिककर सिसकने लगी, “आह… रामू जी… जल्दी उठो ना… तुम्हारी रूही किचन में ही गीली हो रही है… तुम्हारा मोटा लण्ड चाहिए… अभी… यहीं…”
पराठे तैयार हैं। प्लेट सजाते वक्त वो जान-बूझकर साड़ी का पल्लू पूरी तरह गिरा देती है। दोनों चूचियाँ खुली हुई, दूध का गिलास उसके हाथ में। वो आईने में खुद को देखती है और कामुक मुस्कान देती है, “रामू जी… उठो… तुम्हारा नाश्ता तैयार है… और तुम्हारी रंडी रूही भी… पूरी नंगी… पूरी गीली… सिर्फ तुम्हारे लिए।”
फिर प्लेट और दूध का गिलास लेकर वो बेडरूम की तरफ चल पड़ती है। हर कदम पर उसकी गांड मटकती है, चूचियाँ उछलती हैं, और उसकी चूत से रस की बूंदें जाँघों पर लुढ़क रही हैं।
किचन में सिर्फ घी और पराठों की खुशबू नहीं… रूही की जवानी की मदहोश कर देने वाली गंध भी फैली हुई है।
रूही प्लेट और दूध का गिलास लेकर बेडरूम की तरफ चली। हर कदम पर उसकी पायल छम-छम कर रही थी, पर उसके दिल की धड़कन उससे भी तेज थी।
दरवाजा धीरे से खोला। रामू जी अभी भी गहरी नींद में थे। चादर सरककर एक तरफ लुढ़क गई थी; उनका मोटा लण्ड अब शांत था, पर उस पर रूही के रस की हल्की चमक सूख रही थी। उनकी चौड़ी छाती धीरे-धीरे उठ-गिर रही थी। चेहरा इतना सुकून भरा कि रूही का दिल भर आया।
वो प्लेट बगल में रखी और घुटनों के बल बिस्तर पर चढ़ गई।
रूही ने बहुत धीरे से, जैसे कोई बच्चा माँ को जगाता है, उनके माथे पर होंठ रखे और फुसफुसाई, “रामू जी… मेरे राजा… उठिए ना… आपकी रूही आपके लिए नाश्ता लेकर आई है… और खुद को भी…”
रामू जी ने नींद में ही आँखें खोलीं। उन्होंने रूही को पूरी नंगी देखा, सिर्फ पायल और मंगलसूत्र पहने, चूचियाँ दूध की बूंदों से चमक रही थीं। उनकी आँखों में एक पल को नींद थी, फिर प्यार की लहर दौड़ गई।
रामू जी ने बाँहें फैलाईं। रूही झट से उनकी छाती पर लेट गई, उसका चेहरा उनके गले में छिप गया। वो रोने सी हो गई, पर खुशी के आँसुओं से।
“रामू जी… मैंने सोचा था शादी के बाद भी मैं अकेली रह जाऊँगी… पर आपने तो मुझे अपना घर दे दिया… अंदर तक… मैं अब सिर्फ आपकी हूँ… हर साँस आपकी… हर रात आपकी… हर चूत की धड़कन आपकी…”
रामू जी ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा, गला भारी था उनका भी, “रूही… मेरी जान… तू मेरे लिए सिर्फ बहू या बीवी नहीं… तू मेरी जिंदगी बन गई है। रात भर मैंने तुझे चोदा… पर सच कहता हूँ, तेरे आँसुओं ने मुझे ज्यादा चोदा है… तेरी ये आँखें… ये सिसकियाँ… मैं इनके लिए मर भी सकता हूँ।”
रूही ने अपना चेहरा ऊपर उठाया, उसके होंठों पर आँसू और मुस्कान दोनों थे। वो बोली, “तो फिर मरिए मत… बस मुझे जीते जी इतना प्यार दीजिए… कि मैं हर पल महसूस करूँ कि मैं आपकी हूँ… और आप मेरे अंदर…”
रामू जी ने उसे कसकर गले लगाया। दोनों की आँखें बंद थीं। रूही ने धीरे से उनके कान में कहा, “अब नाश्ता कीजिए… पर पहले मुझे चूम लीजिए… मैं आपकी भूख मिटाना चाहती हूँ… पेट की भी… और दिल की भी…”
रामू जी ने उसका चेहरा दोनों हाथों में लिया, और इतनी नरमी से चूमा कि रूही की आँखों से फिर आँसू लुढ़क गए।
“रूही… आज से ये घर नहीं, हमारा मंदिर है… और तू मेरी देवी… मैं रोज तेरी पूजा करूँगा… लण्ड से भी… और दिल से भी…”
रूही हँसते-हँसते रो पड़ी। फिर उसने पराठा तोड़ा, घी में डुबोया, और अपने हाथ से रामू जी के मुँह में रखा। रामू जी ने खाते हुए उसकी उंगलियाँ चूस लीं।
रूही बोली, “बस यही खाइएगा… मेरे हाथों से… मेरे बदन से… मेरे प्यार से…”
और फिर दोनों एक-दूसरे को खाने लगे— पराठे भी… और एक-दूसरे की आत्मा भी।
दोपहर ढलते-ढलते रूही और शीला साथ-साथ बस्ती की छोटी सी दुकान की तरफ निकल पड़ीं। रूही ने हल्की गुलाबी साड़ी पहनी थी, बिना ब्लाउज के सिर्फ पेटीकोट और साड़ी। पल्लू जान-बूझकर ढीला छोड़ा था, ताकि हर कदम पर उसकी भारी चूचियाँ हल्की-हल्की उछलें और पल्लू सरक जाए। चलते वक्त उसकी कमर अपने आप मटक रही थी, जैसे अभी भी रामू जी का लण्ड उसकी चूत में धक्का मार रहा हो।
शीला उसके साथ-साथ चल रही थी, पर उसकी आँखों में शरारत भरी थी। वो कभी रूही की कमर पर हाथ फेरती, कभी उसकी गांड पर हल्की चपत मार देती।
बस्ती के चौक में पहुँचते ही सबकी नजरें रूही पर जम गईं। चाय की टपरी पर बैठे बुजुर्ग चाय का प्याला भूल गए। साइकिल पर आते लड़के ब्रेक मारकर रुक गए। दो-तीन औरतें भी फुसफुसाने लगीं, “अरे ये नई बहू है ना? सारी रात चिल्लाई थी… देखो कैसे चल रही है… जैसे अभी-अभी चुदकर आई हो…”
रूही का चेहरा लाल हो गया, पर उसने शर्म को छिपाने की कोशिश नहीं की। बल्कि और सीधा खड़ी हो गई, चूचियाँ आगे कर दीं, जैसे कह रही हो: “हाँ, चुदकर आई हूँ… और बहुत मजे से चुदकर आई हूँ।”
शीला ने उसका हाथ पकड़ा और धीरे से कान में फुसफुसाई, “भाभी… सब देख रहे हैं… तुम्हारी चूचियाँ तो पल्लू से बाहर झाँक रही हैं… और ये जो तुम्हारी गांड मटक रही है ना… लग रहा है अभी भी भैया का लण्ड अंदर है।”
रूही ने शरमाते हुए होंठ दबाए, पर आँखों में शरारत थी। वो भी फुसफुसाई, “है ना अंदर… सुबह भी डालकर गए हैं… बस अभी-अभी निकाला है… अब तो हर कदम पर लग रहा है वो मुझे चोद रहे हैं।”
दुकान पर पहुँचते ही दुकानदार मुंशी जी की नजर रूही की छाती पर अटक गई। उसने आटा तौलते वक्त हाथ काँप रहे थे।
शीला ने हँसते हुए कहा, “मुंशी जी… आटा दो किलो… पर भाभी को ऐसे मत घूरो… रात भर भैया ने इन चूचियों को चूसा है… अभी भी दर्द कर रही होंगी।”
रूही ने शीला की कमर में चिकोटी काटी, पर मुस्कुरा भी रही थी।
वापसी में शीला ने रूही का हाथ अपने कंधे पर रखा और धीरे-धीरे बोली, “भाभी… सच बताओ… भैया का कितना बड़ा है? रात भर तुम चिल्लाई थी ना… ‘रामू जी… फट गई… आह्ह… मार डालो…’ हम सब सुन रहे थे।”
रूही का चेहरा और लाल हो गया, पर वो हँस पड़ी। उसने शीला के कान में फुसफुसाया, “बहुत बड़ा है शीला… इतना कि मैं अब चल भी नहीं पा रही… पर सच कहूँ… मुझे अब हर वक्त वही चाहिए… रामू जी का लण्ड… और उनका प्यार…”
शीला ने आँख मारी और बोली, “तो फिर शाम को फिर चिल्लाना भाभी… हम सबको नींद नहीं आएगी… पर मजे आएँगे।”
दोनों हँसते हुए घर की तरफ चलीं। रूही की चाल में अब शर्म नहीं, गर्व था। वो रामू जी की औरत थी— पूरी बस्ती जान चुकी थी।
और उसे इस बात पर नाज था।


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