26-11-2025, 09:52 PM
उफनती वासनाओं के पन्ने
ये बिखरे हुए पन्ने उन रातों की है जब दो जवान, तरबतर और उत्तेजना से भरे बदन एक-दूसरे से टकराते हैं और हवा भी शरमा कर भाग जाती है। यहाँ कोई लंबी प्रेम-कहानी नहीं, कोई नैतिक उपदेश नहीं; सिर्फ़ कच्ची, बेलगाम और तीव्र कामुकता के छोटे-छोटे विस्फोट हैं जो अचानक भड़कते हैं और सब कुछ जला कर राख कर देते हैं।
हर कहानी में साँसें तेज़ हो जाती हैं, उँगलियाँ बेकाबू, होंठ भूखे, और त्वचा पर त्वचा की वह आग लगती है जो न बुझती है, न बुझाना चाहते हैं। जो बचता है वो सिर्फ़ चीखें, आहें, पसीने से लथपथ चादरें और नसों में दौड़ता हुआ एक मीठा-कड़वा झटका।
इन पन्नों में वासना कोई शब्द नहीं, एक स्पर्श है, सीधे आपकी रगों में उतरने वाला। पढ़ते वक्त आपकी उँगलियाँ अपने आप किनारों को सहलाने लगेंगी, साँसें भारी हो जाएँगी और दिल की धड़कनें बेकाबू।
तो अगर आप तैयार हैं कि आपकी रातें अब पहले जैसी न रहें,
तो इस किताब को खोलिए।
अंदर कोई नियम नहीं, कोई शर्म नहीं,
बस उफ़नती हुई, लिपटी हुई, चीखती हुई वासनाएँ आपका इंतज़ार कर रही हैं।
सावधानी: केवल वयस्कों के लिए,सिर्फ वयस्कों के लिए।
✍️निहाल सिंह


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