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Adultery बदलाव, मजबूरी, सेक्स या जिंदगी.....
#32
टाइमर के बंद होते ही, जैसे ही आरोही को अपनी हालत का अंदाजा हुआ, वह बहुत तेजी से राहुल की गोद से बदहवासी में उठी कि इतने में उसके पैर मेज से टकराया और वह गिर पड़ी।

 
“अरे यार, ऐसे क्या हड़बड़ी में उठना है। थोड़ा आराम से उठो, यहाँ कोई तुम्हें देख नहीं रहा है। चोट तो नहीं लगी?” राहुल ने उसे उठाकर सोफे पर बैठाते हुए पूछा।
 
आंसू भरी आंखों से आरोही ने ना में सिर हिलाया।
 
“अरे तो रो क्यों रही हो, रूको मैं देखता हूँ।” राहुल नीचे बैठकर आरोही के पैरों की मसाज करने लगा। और इतने में आरोही और जोर से रोने लगी।

राहुल ने मुस्कुराते हुए पूछा, “तुम्हें इस बात का दुख है ना कि तुम मेरी गोद में अपने होश कैसे खोने लगी थी? तो जा लो यह सामान्य बात है।

 
यौन उत्तजेना के समय दिमाग काम नहीं करता है। बड़े-बड़े ऋषि मुनि काम के वेग को नहीं संभाल पाए हैं। इसमें पछतावा करने की जरूरत नहीं है। चलो अब चलकर दिखाओ।”
 
राहुल की बातों में जाने कौन सी गहराई थी कि आरोही चुपचाप किसी रिमोट वाली गुड़िया के जैसे उठकर खड़ी हो गई और चली। उसके आंसू भी बंद हो गए। उसने चलकर दिखाया।
 
“शाबास, अब जाकर चेहरा, कपड़े ठीक कर लो, और चाची या परिधि को बताना है या नहीं वह तुम्हारी मर्जी, नहीं तो मेरी ओर से यह बात कोई नहीं जान पाएगा।”
 
राहुल के कहने पर हाँ में सिर झुकाकर आरोही बाथरूम की ओर जाने लगी, तब राहुल ने कहा, “अरे सुनो, तुम्हारे नीचे, योनि काफी गीली हो गई थी। देख लेना दाग ना लग जाए। टिश्यू से साफ कर लेना। और...........”
 
राहुल की यह बात सुनते ही आरोही शर्माकर सीधे बाथरूमें घुसकर दरवाजा बंद कर लेती है, और राहुल के बाकी शब्द अनसुने रह जाते हैं।

आरोही बाथरूम बंद करके दरवाजे से पीठ टिकाए हुए सोचती है, “यह कितना सीधा बोलता है। इसको जरा सी शर्म नहीं है। जाने बाद में क्या-क्या कैसे-कैसे करेगा........”

 
सोचते ही आरोही चिढ़ जाती है, “अरे, मैं यह क्यों मान रही हूं कि कोई उपाय नहीं निकलेगा और इसकी गुलामी करनी पड़ेगी। गहने बेच दूँगी और फिर कोई रास्ता निकलेगा लेकिन इसके पास नहीं आऊँगी...........”
 
सोचते हुए आरोही अपनी सलवार उतारती है तो देखती है वाकई उसकी पूरी पैंटी गीली हो चुकी है। उसे तो पता ही था लेकिन उसे पैंटी के गीले होने का अनुमान नहीं था।

वह सोच रही थी, “उफ राहुल सही कह रहा था। मगर, मैं इतनी बेशर्म कैसे हो गई।”

 
सोचते-सोचते आरोही ने पहले पानी धोया और फिर टिश्यू पेपर से अपनी योनि की अच्छे से सफाई करके वापस पैंटी और सलवार पहनकर मुँह धोकर कपड़े और बाल ठीक किए।

और बाहर निकलने की सोचने लगी, “उसका सामना कैसे करूँगी। लेकिन बाहर तो जाना ही पड़ेगा। घर पर क्या कहूँगी एक घंटा हो गया है। क्या करूँ इस बात को बताऊँ या नहीं?”

 
इसी उधेड़-बुन में आरोही धीरे से बाहर आती है। और सधे कदमों से दरवाजे की ओर जाने लगती है कि राहुल की आवाज आती है, “सुनो।”
 
और आरोही ठिठक कर दम साधकर रूक जाती है।

राहुल कहता है, “देखो, अगर कल से तुम मेरी शर्तों को मान लेती हो। तो एक बदलाव और रहेगा। मैं तुम लोगों को अपने बीच में नाम से ही और तुम कहकर ही बुलाऊँगा। जैसा मैं अभी कह रहा था। लेकिन तुम मेरा नाम वैसे नहीं ले सकती हो, और बोलना आप करके तमीज से ही। नहीं तो सजा मिलेगी। समझी?”

 
आरोही ने हाँ में सिर हिला दिया। और चलकर दरवाजे पर पहुँची ही थी कि राहुल ने पीछे से आवाज दी, “अरे सुनो, अगर ड्यूटी पर आना तो अपने नीचे वाले और पीछे वाले खजाने के बालों को याद करके काटकर चिकना करते रहना। गंदगी अच्छी बात नहीं होती है। नहीं तो पहले दिन हजामत ही होगी।”
 
आरोही इसे सुनने के बाद तुरंत ही धड़कते दिल से दरवाजा खोलकर बाहर निकल गई।

उसके मन में चल रहा था, “इस कमीने को पूरा कांफिडेंस है कि हम लोग इसके जाल में फंसेंगे ही। लेकिन देखते हैं कोई रास्ता निकलेगा ही। मैं आज की बात को माँ जी और दीदी को नहीं बताऊँगी नहीं तो उन्हें और गुस्सा आएगी तो बात और बिगड़ सकती है।”

 
आरोही अपने घर की घंटी बजाती है, परिधि ने दरवाजा खोला और देखते ही पूछा, “कहाँ गई थी तू, हम कितना डर गए थे। फोन भी साथ लेकर नहीं गई थी। कहीं उस कमीने ने तो नहीं पकड़ लिया था।”
 
आरोही ने कहा, “नहीं दीदी, वह इतना बेसब्रा और बदतमीज नहीं है। लेकिन हाँ मैं गई थी उसी के पास। आपसे कुछ बात करनी है।”
 
आरोही की बातों की गंभीरता को देखकर परिधि उसे कुछ और ना पूछते हुए अंदर आने देती है और दरवाजा बंद कर देती है। अंदर इंद्रावती भी थी, आरोही उन दोनों को बैठने को कहती है। और सारी बातें और शर्तें उन लोगों को बता देती है। केवल अपने साथ जो सेक्सुअल अनुभव हुआ उसे छिपा लेती है।
 
“तो अब क्या करें?” इंद्रावती पूछती है।
 
“ऐसा करते हैं अपने गहने बेचने चलते हैं। चार लाख के गहने थे तो तीन लाख तो मिलेंगे ही कुछ दिन चलेंगे। तब तक फ्लैट बेचने का कोई तरीका मिल ही जाएगा।” परिधि ने कहा।
 
“ठीक है दीदी मैं भी अपने गहने लाती हूँ। और अभी चलते हैं क्योंकि कल तक उसने सोचने को कहा है।” आरोही उठते हुए बोली।

तीनों जल्दी से बाजार पहुँचते हैं।
 
“अम्मा इसके डेढ़ मिलेंगे।” दुकानदार से गहनों को देखते हुए कहा।
 
“दो लाख कैसे लाला जी, दो ही साल पहले तो चार लाख के खरीदे थे और अब तो सोने के भाव भी बढ़ गए हैं।” इंद्रावती से परेशान होकर कहा।
 
“अरे, माता जी आप तो जानती ही हैं। सोने में कट और टांका कटता है। और फिर हमें भी तो कमाना होता है।” दांत दिखाते हुए लाला ने कहा।
 
इंद्रावती और परिधि एक दूसरे की ओर देखकर हामी भरने ही वाली होती हैं कि आरोही बोल पड़ती है, “नहीं अंकल जी इतने में नहीं बेच पाएंगे। रहने दीजिए। चलिए मम्मी चलते हैं।”
 
आरोही के मस्त फिगर को आंखों से भोगता हुआ लाला आखिरी दांव फेंकता है, “अरे बेबी आप तो नाराज हो गई। बैठो ना। देखो धंधा समझो। ऐसा करते हैं इसे दो लाख में गिरवी रख लेते हैं। ब्याज में मैं भी कमा लूँगा और आपको अभी का पैसा मिल जाएगा।”

“नहीं अंकल जी, अगर ब्याज देना होता तो बेचते क्यों। हम इस जाल में नहीं फंसेंगे। चलते हैं। नमस्ते।” इतना कहकर आरोही अपना सास और परिधि के साथ चल देती है।

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क्या परिधि ने कोई फैसला कर लिया है? आगे क्या घटना बदलेगी। और अगर वह शर्त मानती है तो क्या होगा?
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RE: बदलाव, मजबूरी, सेक्स या जिंदगी..... - by ramlal_chalu - 26-11-2025, 08:21 PM



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