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Incest खेल ससुर बहु का
#3
अब आगे............

"शादी मुबारक हो,दुल्हन",कह के उसने अपनी मेनका का गाल चूम लिया.


"मुबारकबाद देने का ये कौन सा तरीका है?",मेनका बनावटी नाराज़गी से बोली.

"अरे,मेरी जान.ये तो शुरूआत है, पूरी मुबारबादी देने मे तो हम रात निकाल देंगे". कह के उसने मेनका को बाहों मे भर लिया और उसे बेतहाशा चूमने लगा. गालों पे, माथे पे, उसकी लंबी सुरहिदार गर्दन पे, उसके होठों को चूमते हुए वो उन पर अपनी जीभ फिराने लगा और उसे उसके मुँह मे डालने की कोशिश करने लगा.

मेनका इतनी जल्दी इतने तेज़ हमले से चौंक और घबरा गई और अपने को उससे अलग करने की कोशिश करने लगी.

"क्या हुआ जान? अब कैसी शरम! चलो अब और मत तड़पाओ", विश्वा उसके होठों को आज़ाद लेकिन बाहो की गिरफ्त और मज़बूत करते हुए बोला.

"इतनी जल्दी क्या है?"

"मैं अब और इंतेज़ार नही कर सकता, मेनका प्लीज़!" कहके वो फिर अपनी पत्नी को चूमने लगा. पर इस बार जंगली की तरह नही बल्कि आराम से थोड़ा धीरे धीरे.

थोड़ी ही देर मे मेनका ने अपने होठ खोल दिए और विश्वा ने अपनी जीभ उसके मुँह मे दाखिल करा दी और उसे बिस्तर पे लिटा दिया. उसकी बाहें अभी भी मेनका को कसे हुए थी और उसकी जीभ मेनका की जीभ के साथ खेल रही थी. उसका सीना मेनका की स्तनों को दबा रहा था और दाईं टाँग उसकी टाँगों के उपर थी..

थोड़ी देर ऐसे ही चूमने के बाद वो अपने हाथ आगे ले आया और ब्लाउस के उपर से ही अपनी बीवी की बोबले दबाने लगा, फिर उसने अपने होठ उसके क्लीवेज पर रख दिए, मेनका की साँसें भारी हो गयी, धीरे धीरे वो भी गरम हो रही थी.

पर विश्वजीत बहुत बेसबरा था और उसने जल्दी से मेनका का ब्लाउस खोल दिया और फिर रेड ब्रा मे क़ैद उसकी रसीले बोबले पर टूट पड़ा. मेनका की नही नहीं का उसके उपर कोई असर नही था.

मेनका के लिए ये सब बड़ा जल्दी था. वो एक कॉनवेंट मे पढ़ी लड़की थी. सेक्स के बारे मे सब जानती थी पर कुछ शर्म और कुछ अपने खानदान की मर्यादा का ख़याल करते हुए उसने अबी तक किसी से चुदवाया नही था. विदेश मे कॉलेज मे कभी-कभार किसी लड़के के साथ किसिंग की थी और अपने स्तनों को दब्वाया था बस. विश्वा को भी उसने शादी से पहेले किसिंग से आगे नही बढ़ने दिया था.

सो उसके हमले से वो थोड़ा अनसेटल्ड हो गयी. इसी का फायदा उठा कर विश्वजीत ने उसके साडी और पेटीकोट को भी उसके खूबसूरत बदन से अलग कर दिया. अब वो केवल रेड ब्रा और पॅंटी मे थी. टांगे कस कर भीची हुई, हाथों से अपने सीने को ढकति हुई. शर्म से उसका चेहरा ओर भी ज्यादा गुलाबी हो गया था और आँखें बंद थी. मेनका सचमुच भगवान इन्द्र के दरबार की अप्सरा मेनका जैसी ही लग रही थी.

विश्वा ने एक नज़र भर कर उसे देखा और अपने कपड़े निकाल कर पूरा नंगा हो गया. उसका 4 1/2 इंच का लंड प्रिकम से गीला था. उसने उसी जल्दबाज़ी से मेनका के ब्रा को नोच फेका और उसका मुँह उसकी स्तनों से चिपक गया. वो उसके हल्के गुलाबी रंग के निपल्स को कभी चूसता तो कभी अपनी उंगलियों से मसलता. मेनका उसकी इन हरकतों से और ज्यादा गरम हो रही थी. फिर विश्वा उसकी चूचियो को छोड़ उसके पेट को चूमता हुआ उसकी गहरी नाभि तक पहुचा.

जब उसने जीभ उसकी नाभि मे फिराई तो वो सीत्कार कर उठी,"आ....अहह..".

फिर वो और नीचे पहुचा, पॅंटी के उपर से उसकी चूत पर एक किस ठोकी तो मेनका शर्म मारे कराह उठती हुई उसका सर पकड़ कर अपने से अलग करने लगी पर वो कहा मानने वाला था. उसने उसे फिर लिटाया और एक झटके के साथ उसकी पॅंटी खीच कर फेक दी. मेनका की चूत पे झांट हार्ट शेप मे कटी हुई थी. ये उसकी सहेलियों के कहने पर उसने किया था.

"वाह! मेरी जान", विश्वा के मुँह से निकला, "वेरी ब्यूटिफुल पर प्लीज़ तुम इन बालों को सॉफ कर लेना. मुझे सॉफ और बिना बालों की चूत पसंद है."

ये बात सुनकर मेनका की शर्म और बढ़ गयी. एक तो वो पहली बार किसी के सामने ऐसे नंगी हुई थी उपर से ऐसी बातें!

विश्वा ने एक उंगली उसकी चूत मे डाल दी और दूसरे हाथ से उसके बूब्स मसलने लगा. मेनका पागल हो गयी. तभी वो उंगली हटा कर उसकी टाँगो के बीच आया और उसकी चूत मे जीभ फिराने लगा. अब तो मेनका बिल्कुल ही बेक़ाबू हो गयी. उसे अब बहुत मज़ा आ रहा था. वो चाहती थी की विश्वजीत ऐसे ही देर तक उसकी चूत चाटता रहे, पर उसी वक़्त विश्वा ने अपना मुँह उसकी चूत से हटा लिया.

मेनका ने आँखें खोली तो देखा कि वो अपना लंड उसकी चूत पर रख रहा था.

वो मना करने के लिए नही बोलते हुए उसके पेट पर हाथ रखने लगी पर बेसब्र विश्वा ने एक झटके मे उसकी कुँवारी नाज़ुक चूत मे अपना लंड आधा घुसेड दिया. यूँ तो मेनका की चूत गीली थी पर फिर भी पहली चुदाई के दर्द से उसकी चीख निकल गयी,"उउउइईईईई........माअ.....अनन्न्न्न्न...न्न्न्न...ना...शियीयियी". और अब वो कुवारी लड़की नहीं रही थी बल्कि एक महिला बन गई थी क्यों की विश्वा के लंड ने उसकी चूत की झिल्ली तोड़ दी थी.

विश्वा उसके दर्द से बेपरवाह धक्के मारता रहा और थोड़ी देर मे उसके अंदर झड़ गया. फिर वो उसके सीने पे गिर कर हाँफने लगा.

मेनका ने ऐसी सुहागरात की कल्पना नही की थी, उसने सोचा था कि विश्वा पहले उससे प्यारी-प्यारी बातें करेगा. फिर जब वो थोड़ा कम्फर्टेबल हो जाए तब बड़े प्यार से उसके साथ चुदाई करेगा. पर विश्वा को तो पता नही किस बात की जल्दी थी.

"अरे...तुम्हारी खूबसूरती का रस पीने के चक्कर मे तो मैं ये भूल ही गया!", विश्वा अपने ज़मीन पर पड़े कुर्ते को उठा कर उसकी जेब से कुछ निकालते हुए बोला तो मेनका ने एक चादर खीचकर अपने नंगे पन को ढँकते हुए उसकी तरफ देखा.

"ये लो अपना वेडिंग गिफ्ट.", कहते हुए उसने एक छोटा सा बॉक्स मेनका की तरफ बढ़ा दिया.

मेनका ने उसे खोला तो अंदर एक बहुत खूबसूरत और कीमती डाइमंड ब्रेस्लेट था. ऐसा लगता था जैसे किसी ने मेनका से ही पसंद करवा के खरीदा हो. वो बहुत खुश हो गयी और अपना दर्द भूल गयी. उसे लगा कि अभी बेसब्री मे विश्वजीत ने ऐसा प्यार किया.

"वाउ! इट'स सो ब्यूटिफुल. आपको मेरी पसंद की कैसे पता चली?", उसने ब्रेस्लेट अपने हाथ मे डालते हुए पूछा.

"अरे भाई, मुझे तो तुमहरे गिफ्ट का ख़याल भी नही था", विश्वा ने उसकी बगल मे लेटते हुए जवाब दिया.

 "वो तो मेरे कज़िन्स शादी के एक दिन पहले मुझ से पूछने लगे कि मैने उनकी भाभी के लिए क्या गिफ्ट लिया तो मैने कह दिया कि कुछ नही. यार, मुझे लगा कि अब गिफ्ट क्या देना. पर पिताजी ने मेरी बात सुन ली. वो उसी वक़्त शहर गये ओर ये ला कर मुझे दिया. कहा कि बहू को अपनी तरफ से गिफ्ट करना", इतना कह कर वो सोने लगा.

मेनका निराश हो गयी, उसने तो सोचा था कि उसका पति उसके लिए प्यार से तोहफा लाया है पर उसे तो तोहफे का ध्यान भी नही था. मेनका ने भी विश्वा के लिए गोल्ड चैन ली थी जो उसने सोते हुए विश्वा के गले मे डाल दी और खुद भी सो गयी.

उसी वक़्त महल के उसी उपरी मंज़िल जिसमे मेनका और विश्वा का कमरा था, के एक दूसरे हिस्से मे राजा यशवीर अपने पलंग पर लेट सोच रहे थे कि आज कितने दीनो बाद उनके महल मे फिर रौनक हुई. "प्रभु,इसे बनाए रखना.", उन्होने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की.

अब उनका ध्यान अपने बेटे-बहू पर गया.इस वक़्त दोनो एक-दूसरे मे खोए होंगे. उन्हे अपनी सुहागरात याद आ गयी. सरितादेवी के अती धार्मिक होने के कारण उन्हे चुदाई के लिए तैयार करने मे उन्हे काफ़ी मजदूरी करनी पड़ी थी. ज़बरदस्ती उन्हे पसंद नही थी, वरना जो 6'2" लंबा-चौड़ा इंसान आज 52 वर्ष की उम्र ने भी 45 से ज़्यादा का नही लगता था वो जवानी मे किसी औरत को काबू करने मे कितना वक़्त लेता!

अपनी सुहागरात याद करके उनके होठों पे मुस्कान आ गयी ओर अनायास ही वो अपने बेटे-अभू की सुहागरात के बारे मे सोचने लगे. उनका ध्यान मेनका की ओर गया.

"कितनी खूबसूरत है. विश्वा बहुत लकी है बस इस बात को वो खुद भी रीयलाइज़ कर ले.", फिर वो भी सो गये.


***


आइए चलते हैं हम अब राजपुरा के एक दूसरे कोने मे. वहा एक बड़ी कोठी अंधेरे मे डूबी है. लेकिन उपरी मंज़िल के एक कमरे से कुछ आवाज़ें आ रही हैं. देखते हैं कौन है वहा.

उस कमरे के अंदर एक काला, भद्दा और थोड़ा मोटा आदमी नंगा बिस्तर पर बैठा है. उसके सर के काफ़ी बाल उड़ गये हैं और चेहरे पर दाग भी है. मक्कारी और क्रूरता उसकी आँखो मे सॉफ झलकती है. यही है जब्बार जिसका बस एक ही मक़सद है, राजा साहब की बर्बादी.

वो शराब पी रहा है और एक बला की सुंदर नंगी लड़की उसके लंड को अपनी चूचियों के बीच रगड़ रही है. वो लंड रगड़ते- रगड़ते बीच-बिच मे झुक कर उसे अपने पतले गुलाबी होठों से चूस भी लेती है. दूर से देखने से लगता है जैसे कि एक राक्षस और एक परी जिस्मों का खेल खेल रहे हैं.

अचानक जब्बार ने अपना ग्लास बगल की त्रिपोई पर रखा और उस खूबसूरत लड़की को उसके बालों से पकड़ कर खीचा और उसे बिस्तर पर पटक दिया.

"औ..छ्ह", वो कराही पर बिना किसी परवाह के जब्बार ने उसकी टांगे फैलाई और अपना मोटा लंड उसकी चूत मे पेल दिया.

"आ...आहह......हा...ईईईईईई......रा....आमम्म्ममम...",वो चिल्लाई.

जब्बार ने बहुत बेरहमी से उसे चोदना शुरू कर दिया. उस लड़की के चेहरे पर दर्द और मज़े के मिले-जुले भाव थे. उसे भी इस जंगलीपन मे मज़ा आ रहा था, साथ वो नीचे से अपनी कमर हिला कर जब्बार का पूरा साथ दे रही थी. थोड़ी ही देर मे उसने अपनी बाहें जब्बार की पीठ पर और सुडोल टाँगें उसकी कमर के गिर्द लपेट दी और चिल्लाने लगी,"हा.....आई....से....हीईीईई.....ज़ो...र्र.... से...कर....ते...रहो!"

"आ..हह...एयेए...हह!"

जब्बार उसकी धईली को काटने और चूसने लगा और अपने धक्कों की स्पीड और बढ़ा दी. थोड़ी ही देर मे वो लड़की झड गयी, "ऊऊऊओ.....एयेए....हह....!"

और साथ-साथ जब्बार भी.

उसकी चूत मे से लंड निकाल कर जब्बार बिस्तर से उतरा और त्रिपोई पे रखे ग्लास मे शराब डालने लगा. उस लड़की ने अपना बाया हाथ बढ़ा कर जब्बार के सिकुडे हुए लॅंड और बॉल्स को पकड़ किया और मसलने लगी, "ज़ालिम तो तू बहुत है पर आज कुछ ज़्यादा ही हैवानियत दिखा रहा था. वजह?"

ग्लास खाली करके जब्बार ने जवाब दिया, "मुझे उंगली कर रही है ना,मलिका."

" साली,ये ले.", कहते हुए उसने अपना अपने ही वीर्य और मलिका के रस भीगा लंड फिर से मालिका के मुँह मे घुसा दिया. अपने मोटे हाथों से उसे बालों से पकड़ कर उसका सिर उपर किया और उसके मुँह को ही चोदने लगा, "राजा के यहा खुशी मनाई जाए और मैं यहा संत बना रहूं..हैं!"

जवाब मे मलिका ने हाथों से उसकी कमर को पकड़ा और अपनी दो उंगलियाँ जब्बार की गांड मे घुसा दी. वो चिहुका लेकिन उसने अपनी रखैल का मुँह चोदना नही छोड़ा.

मलिका उसकी रखैल थी. उसके ही जैसी निर्दयी और ज़ालिम. भगवान जितनी खूबसूरती उसे बक्शी थी उतनी ही कम उसके दिल मे दया और प्यार भरा था.


आज के लिए बस इतना ही कल फिर मिलेंगे.

तब तक आप यह एपिसोड के बारे में अपनी राय दीजिये.

शुक्रिया

मैत्री.

जय भारत.
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RE: खेल ससुर बहु का - by maitripatel - Yesterday, 02:36 PM



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