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Adultery एक पत्नी का सफर
#10
जयपुर, मई का दूसरा हफ्ता।
दिन के दो बजे का सूरज इतना क्रूर था कि सड़क पर चलते हुए लगता था ज़मीन से भाप उठ रही हो। हॉस्टल के कमरे 204 में एसी पिछले चार दिनों से बंद पड़ा था। पंखा सिर्फ़ गर्म हवा को इधर-उधर फेंक रहा था।

Pooja बेड के एक कोने में सिकुड़ी हुई थी।
उसने सुबह ही नहाया था, फिर भी पूरा शरीर पुनः पसीने से तर था।
वो हल्का गुलाबी कॉटन का साल्वार-सूट पहने थी, जो अब उसके बदन से पूरी तरह चिपक चुका था।
कुरती का गला गहरा था, पसीने से उसमें एक गहरी, गीली लकीर बन गई थी जो उसकी छाती के बीच से होती हुई नाभि तक जा रही थी।
ब्रा सफ़ेद, पतली लेस वाली थी, लेकिन गीलापन इतना कि वो पारदर्शी हो गई थी।
उसके निप्पल्स साफ़-साफ उभरे हुए थे — गुलाबी-भूरे, छोटे-छोटे, हर साँस के साथ हल्के से काँपते।
साल्वार की नाड़ी ढीली हो गई थी, कमर से करीब दो इंच नीचे सरक गई थी। उसकी नाभि पूरी दिख रही थी — गोल, गहरी, चारों तरफ़ पसीने की बूंदें चमक रही थीं।
उसकी जाँघें साल्वार से चिपकी हुई थीं, पसीने की वजह से उसकी त्वचा चमकदार लग रही थी।
बालों की चोटी खुली हुई थी, गीले बाल उसकी पीठ और कंधों पर चिपके हुए थे।

दूसरे बेड पर Renu।
उसने सिर्फ़ एक पुराना ग्रे रंग का क्रॉप टॉप और काली हॉट-शॉर्ट्स पहना था।
टॉप इतना छोटा कि उसका पूरा पेट बाहर था। नाभि में चाँदी की छोटी रिंग पसीने से चमक रही थी।
ब्रा नहीं थी।
पसीने ने टी-शर्ट को पारदर्शी बना दिया था — दोनों निप्पल्स साफ़ दिख रहे थे, गहरे भूरे रंग के, सख्त, टॉप के कपड़े पर दो गोल निशान।
शॉर्ट्स इतनी छोटी कि उसकी जाँघों का ऊपरी हिस्सा और कूल्हों का किनारा दिख रहा था।
उसकी दुस्की त्वचा पर पसीना चाँदी की तरह चमक रहा था।
वो एक टाँग मोड़कर लेटी थी, शॉर्ट्स और ऊपर चढ़ गई थी — पैंटी की इलास्टिक की लाइन साफ़ दिख रही थी।

दोनों के चेहरे लाल, होंठ सूखे, आँखें भारी।

“यार, अब तो मर जाएँगी हम,” Renu ने कराहते हुए कहा और फोन उठाकर वॉर्डन को कॉल किया।

पंद्रह मिनट बाद दरवाज़े पर खटखट।
राजू।

45 साल।
लंबाई 5 फीट 5 इंच। पेट बाहर। बनियान गंदी, उसमें पीले-भूरे दाग। लुंगी मैली।
मुँह में गुटखा, होंठ लाल। दाँत भूरे-काले। आँखें छोटी, चिपकी हुईं, लेकिन लालची।
हाथों पर मैल जमी हुई।

दरवाज़ा खुला।

पहली नज़र Pooja पर पड़ी।

राजू की आँखें एक पल को स्थिर।
उसके दिमाग़ में तुरंत तूफ़ान।

“अरे बाप रे... ये क्या माल है! गाँव की लगती है, पर छाती तो शहर वाली से भी ज़्यादा भरी हुई। निप्पल्स ऐसे खड़े हैं जैसे दबाने को चिल्ला रहे हों। सूट पूरा चिपका हुआ है... अगर हाथ फेर दूँ तो पूरा बदन हाथ में आ जाएगा। पेट एकदम गोरा... नाभि में उँगली डालने को जी चाहता है। साल्वार नीचे सरकी है... बस थोड़ा और नीचे कर दूँ तो...”

उसका लंड लुंगी के अंदर तुरंत सख्त हो गया।
लुंगी में एक मोटा उभार बन गया।
वो झटके से औज़ारों का बैग आगे कर लिया।

“एसी कहाँ है जी?” उसकी आवाज़ में काँप थी।

Pooja ने ऊपर इशारा किया। उसकी चूड़ियाँ खनकीं।

राजू सीढ़ी लगाने लगा।
सीढ़ी पर चढ़ते वक़्त उसकी लुंगी थोड़ी ऊपर उठी — मोटी, काली जाँघें, बाल उगे हुए। लंड का उभार साफ़ दिख रहा था।

तभी Renu अंदर आई।
पसीने से उसका टी-शर्ट पूरी तरह चिपका हुआ।
दोनों निप्पल्स साफ़ तने हुए।
शॉर्ट्स जाँघों के बीच में धँस गई थी।

राजू की नज़र उस पर गई।

“अरे ये तो औरत नहीं, आग है! काली माल... टाँगें तो ऐसी कि बस फैला दूँ और घुस जाऊँ। निप्पल्स तो ऐसे खड़े हैं जैसे कह रहे हों — चूसो मुझे। पेट में रिंग... अगर जीभ फिराऊँ तो क्या मज़ा आएगा।”

उसका लंड अब पूरी तरह खड़ा। लुंगी में तंबू।
वो बार-बार औज़ारों से ढक रहा था।

Pooja ने घबराहट में बात शुरू की।

“आपका नाम?”
“राजू।”
“कब से ये काम करते हो?”
“पंद्रह-सोलह साल से।”
“एसी में क्या हुआ?”
“गैस कम हो गई है... लीकेज है। नया भरना पड़ेगा।”

Pooja ने उसका नंबर नोट किया।
“अगर फिर कोई प्रॉब्लम हुई तो फोन कर लेंगे।”

राजू की लाल आँखें चमकीं।
“ज़रूर मैडम... रात हो या दिन... कभी भी फोन करना। मैं तुरंत आ जाऊँगा।”

उसके मन में:
“रात को बुलाओ ना एक बार... दोनों को एक साथ पेल दूँगा... दोनों की चूत फाड़ दूँगा... दोनों को रगड़-रगड़ कर चोदूँगा...”

फिर एसी चालू हुआ। ठंडी हवा चली।
राजू ने पैसे लिए, “थैंक यू जी” बोला और चला गया।

दरवाज़ा बंद होते ही Renu ज़ोर से हँसी।
“देखा? उसका लंड खड़ा हो गया था! पूरा तंबू बना हुआ था लुंगी में!”

Pooja का चेहरा लाल। “चुप कर पागल!”

दोनों नहाने चली गईं।

### शाम 4:30 बजे, कॉलेज लॉन

Pooja ने फिर से वही गुलाबी सूट पहना था — अब प्रेस किया हुआ, साफ़-सुथरा।
दुपट्टा हल्के से सिर पर। बाल खुल्ले, हल्की लहरें।
होंठों पर हल्का गुलाबी ग्लॉस।

क्लास ख़त्म हुई। वो लॉन की ओर जा रही थी।

दूर से Vikram दिखा।

सफ़ेद शर्ट, ऊपर के तीन बटन खुले। कॉलर खड़ा।
जींस फिट। घड़ी चमक रही थी। हल्की दाढ़ी। आँखों में मुस्कान।

“हाय Pooja...”

Pooja का दिल ज़ोर से धड़का।
“हाय Vikram...”

दोनों बेंच पर बैठे।

Vikram ने उसकी आँखों में देखा।
“तुम आज... सच में बहुत ख़ूबसूरत लग रही हो। गुलाबी सूट में तो जैसे कोई गुलाब खिल गया हो।”

Pooja शर्मा कर सिर नीचा कर लिया।
“थैंक यू... तुम भी बहुत हैंडसम लग रहे हो।”

Vikram हँस पड़ा।
“पहली बार किसी ने कहा।”

फिर उसने अपना फोन निकाला।
“नंबर दो ना अपना... अब तो रोज़ बात होगी।”

नंबर एक्सचेंज हुआ।

बातें शुरू हुईं।

Vikram: “PhD कैसे चल रही है?”
Pooja: “अभी तो बस शुरू हुई है। बहुत कुछ सीखना है।”
Vikram: “मैं हेल्प करूँगा। मेरे पास सारी पुरानी रिसर्च पेपर्स हैं। तुम जब चाहो आ जाना।”

उसने बात करते हुए हल्के से उसका हाथ छुआ।
“तुम्हारी उंगलियाँ बहुत नाज़ुक हैं...”

Pooja का बदन सिहर गया।
वो हाथ नहीं हटाया।

Vikram: “GF नहीं है तुम्हारी?”
Pooja ने हिम्मत करके पूछा।
Vikram ने उसकी आँखों में देखा।
“नहीं...”
“क्यों?”
“क्योंकि तुम्हारे जैसी कोई नहीं मिली अभी तक।”

Pooja का चेहरा एकदम लाल।
वो हँस दी।

Vikram: “कल फ्रेशर्स पार्टी है। तुम आओगी ना?”
Pooja: “नहीं... मुझे ऐसे जगहों पर अच्छा नहीं लगता।”
Vikram: “प्लीज़... सिर्फ़ मेरे लिए। मैं अकेला रहूँगा पूरा टाइम। तुम ना आई तो मज़ा नहीं आएगा।”

Pooja ने होंठ दबाए।
“ठीक है... आऊँगी।”

Vikram ने उसका हाथ दबाया।
“प्रॉमिस?”
“पक्का प्रॉमिस।”

रात 10 बजे, हॉस्टल

Renu बेड पर लेटी थी, फोन पर स्क्रॉल कर रही थी।
“क्या बात आज चेहरा चमक रहा है। Vikram का नाम लेते ही लाल हो जाती है तू!”

Pooja ने तकिया फेंका।
“चुप कर ना!”

Renu हँसते हुए: “कब कन्फ़ेस करेगी उसे? या मैं ही बता दूँ?”

Pooja: “कुछ नहीं है ऐसा। बस अच्छा दोस्त है।”

Renu: “अच्छा दोस्त? वो तो तेरी आँखों में डूबना चाहता है। आज लॉन में हाथ छुआ ना उसने?”

Pooja चुप।

Renu: “मैंने देख लिया था। तूने हाथ नहीं हटाया।”

Pooja ने तकिया मुँह पर रख लिया।

रात 11 बजे।
संजय का फोन आया।

“क्या कर रही हो जान?”
“बस... लेटी हूँ।”
“आवाज़ में कुछ उदासी है?”
“नहीं... बस गर्मी बहुत थी आज।”
“मिस यू...”
“मी टू... बहुत।”

फोन रखा।

Pooja ने छत की ओर देखा।
दिल में दो तस्वीरें —
एक संजय की, जो उसका पति था।
दूसरी Vikram की, जो उसका दोस्त बन चुका था।

और दोनों के बीच में उसका अपना दिल —
जो धीरे-धीरे कहीं खिसक रहा था।
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RE: एक पत्नी का सफर - by Tiska jay - Yesterday, 09:12 PM



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