Yesterday, 09:10 PM
अगले दिन लाइब्रेरी के बाहर वाला वाले लौन में ठंडी हवा चल रही थी, घास पर हल्की ओस।
Vikram ने दो चाय के गिलास लिए और Pooja के पास आकर बैठ गया। वो बेंच पर थी, दुपट्टा कंधे पर सरका हुआ, बालों की चोटी हवा में हल्की लहरा रही थी।
Vikram ने एक गिलास आगे बढ़ाया।
“लो, अदरक वाली। ठंड लग रही होगी।”
Pooja ने शरमाते हुए लिया। “थैंक यू... कल तुम ना आते तो मैं रो ही देती।”
Vikram हँसा। “अरे वो तीनों तो हर साल नए लड़कियों को तंग करते हैं। पिछले साल भी एक लड़की को रोते छोड़ा था। मैंने डीन साहब से कंप्लेंट कर दी थी। अब डरते हैं मुझसे।”
Pooja ने चाय की चुस्की ली। “तुम ज़ूलॉजी के हो ना? थर्ड ईयर?”
“हाँ। और तुम बॉटनी, फर्स्ट ईयर PhD। मैडम तो सीधे डॉक्टर बनने वाली हो!” उसने मज़ाक में सलाम ठोका।
Pooja मुस्कुराई। पहली बार हॉस्टल आने के बाद दिल हल्का लगा।
Vikram ने अपना फोन निकाला, एक फोटो दिखाई।
“देखो, ये पिछले महीने की फील्ड ट्रिप है। सरिस्का। हमने टाइगर की पगमार्क देखी थी।”
Pooja की आँखें चमक उठीं। “सच में? मुझे भी जाना है कभी!”
“पक्का। अगली ट्रिप में तुम्हें ले चलूँगा। प्रॉमिस।”
दोनों खूब देर बातें करते रहे।
Vikram: “तुम्हें पता है, बॉटनी और ज़ूलॉजी वाले हमेशा एक-दूसरे से लड़ते हैं। कहते हैं तुम लोग सिर्फ़ पेड़-पौधों से प्यार करते हो, हम जानवरों से।”
Pooja (हँसते हुए): “और तुम लोग हमें घास-फूस वाली कहते हो!”
Vikram: “अब तो घास-फूस वाली मेरी फ्रेंड है, तो मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं।”
फिर बातें पर्सनल हो गईं।
Vikram: “गाँव से हो ना तुम?”
Pooja: “हाँ, हरियाणा का छोटा सा गाँव।”
Vikram: “शादी हो गई है ना? मंगलसूत्र नहीं पहनती हो हॉस्टल में?”
Pooja चुप हो गई। फिर धीरे से बोली, “हाँ... शादी हो गई है। संजय से। वो दिल्ली में हैं। मुझे बहुत मिस करते हैं।”
Vikram ने सिर्फ़ सिर हिलाया। कुछ नहीं बोला। बस मुस्कुराया।
“चलो, अब चलते हैं। 7 बज गए। हॉस्टल गेट बंद हो जाएगा।”
दूसरे दिन से रोज़ का सिलसिला शुरू हो गया।
सुबह 9 बजे लाइब्रेरी के गेट पर मिलना।
Vikram कॉफी ले आता, Pooja नाश्ते में पराठा या पोहा।
बातें कभी ख़त्म नहीं होती थीं।
Vikram: “तुम्हारी आवाज़ में बहुत मिठास है। फोन पर भी ऐसे ही बोलती होगी ना अपने हसबैंड से?”
Pooja (शर्मा कर): “हाँ... वो कहते हैं मेरी आवाज़ सुनकर ही नींद आ जाती है उन्हें।”
Vikram: “लकी आदमी है वो।”
फिर बारिश हो गई। लाइब्रेरी से निकले तो पूरा कैंपस भीग रहा था। Vikram ने अपना जैकेट उतारा और Pooja के सिर पर रख दिया।
“लो, भीग जाओगी।”
Pooja ने जैकेट लिया। उसमें Vikram की बॉडी स्प्रे की खुशबू थी। दिल ज़ोर से धड़का।
“थैंक यू...”
Vikram ने पास खड़े होकर कहा, “तुम जब शर्मा कर सिर नीचे करती हो ना, बहुत प्यारी लगती हो।”
Pooja कुछ नहीं बोली। बस होंठ दबा लिए।
शाम को हॉस्टल पहुँचकर जब फोन पर संजय से बात की, तो आवाज़ में हल्की सी बेचैनी थी।
“क्या हुआ जान?” संजय ने पूछा।
“कुछ नहीं... बस एक सीनियर है, बहुत हेल्प करता है। अच्छा लड़का है।”
संजय हँसा। “अच्छा है ना। कोई प्रॉब्लम नहीं। बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।”
फोन रखते ही Renu ने पूछा, “क्या बात है? आज चेहरा लाल-लाल है। कोई नया क्रश?”
Pooja ने तकिया फेंका। “चुप कर पागल!”
लेकिन रात को सोते वक्त विक्रम की बातें बार-बार याद आ रही थीं।
दिल में एक हल्की सी गुदगुदी।
और एक अजीब सा अपराधबोध।
Vikram ने दो चाय के गिलास लिए और Pooja के पास आकर बैठ गया। वो बेंच पर थी, दुपट्टा कंधे पर सरका हुआ, बालों की चोटी हवा में हल्की लहरा रही थी।
Vikram ने एक गिलास आगे बढ़ाया।
“लो, अदरक वाली। ठंड लग रही होगी।”
Pooja ने शरमाते हुए लिया। “थैंक यू... कल तुम ना आते तो मैं रो ही देती।”
Vikram हँसा। “अरे वो तीनों तो हर साल नए लड़कियों को तंग करते हैं। पिछले साल भी एक लड़की को रोते छोड़ा था। मैंने डीन साहब से कंप्लेंट कर दी थी। अब डरते हैं मुझसे।”
Pooja ने चाय की चुस्की ली। “तुम ज़ूलॉजी के हो ना? थर्ड ईयर?”
“हाँ। और तुम बॉटनी, फर्स्ट ईयर PhD। मैडम तो सीधे डॉक्टर बनने वाली हो!” उसने मज़ाक में सलाम ठोका।
Pooja मुस्कुराई। पहली बार हॉस्टल आने के बाद दिल हल्का लगा।
Vikram ने अपना फोन निकाला, एक फोटो दिखाई।
“देखो, ये पिछले महीने की फील्ड ट्रिप है। सरिस्का। हमने टाइगर की पगमार्क देखी थी।”
Pooja की आँखें चमक उठीं। “सच में? मुझे भी जाना है कभी!”
“पक्का। अगली ट्रिप में तुम्हें ले चलूँगा। प्रॉमिस।”
दोनों खूब देर बातें करते रहे।
Vikram: “तुम्हें पता है, बॉटनी और ज़ूलॉजी वाले हमेशा एक-दूसरे से लड़ते हैं। कहते हैं तुम लोग सिर्फ़ पेड़-पौधों से प्यार करते हो, हम जानवरों से।”
Pooja (हँसते हुए): “और तुम लोग हमें घास-फूस वाली कहते हो!”
Vikram: “अब तो घास-फूस वाली मेरी फ्रेंड है, तो मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं।”
फिर बातें पर्सनल हो गईं।
Vikram: “गाँव से हो ना तुम?”
Pooja: “हाँ, हरियाणा का छोटा सा गाँव।”
Vikram: “शादी हो गई है ना? मंगलसूत्र नहीं पहनती हो हॉस्टल में?”
Pooja चुप हो गई। फिर धीरे से बोली, “हाँ... शादी हो गई है। संजय से। वो दिल्ली में हैं। मुझे बहुत मिस करते हैं।”
Vikram ने सिर्फ़ सिर हिलाया। कुछ नहीं बोला। बस मुस्कुराया।
“चलो, अब चलते हैं। 7 बज गए। हॉस्टल गेट बंद हो जाएगा।”
दूसरे दिन से रोज़ का सिलसिला शुरू हो गया।
सुबह 9 बजे लाइब्रेरी के गेट पर मिलना।
Vikram कॉफी ले आता, Pooja नाश्ते में पराठा या पोहा।
बातें कभी ख़त्म नहीं होती थीं।
Vikram: “तुम्हारी आवाज़ में बहुत मिठास है। फोन पर भी ऐसे ही बोलती होगी ना अपने हसबैंड से?”
Pooja (शर्मा कर): “हाँ... वो कहते हैं मेरी आवाज़ सुनकर ही नींद आ जाती है उन्हें।”
Vikram: “लकी आदमी है वो।”
फिर बारिश हो गई। लाइब्रेरी से निकले तो पूरा कैंपस भीग रहा था। Vikram ने अपना जैकेट उतारा और Pooja के सिर पर रख दिया।
“लो, भीग जाओगी।”
Pooja ने जैकेट लिया। उसमें Vikram की बॉडी स्प्रे की खुशबू थी। दिल ज़ोर से धड़का।
“थैंक यू...”
Vikram ने पास खड़े होकर कहा, “तुम जब शर्मा कर सिर नीचे करती हो ना, बहुत प्यारी लगती हो।”
Pooja कुछ नहीं बोली। बस होंठ दबा लिए।
शाम को हॉस्टल पहुँचकर जब फोन पर संजय से बात की, तो आवाज़ में हल्की सी बेचैनी थी।
“क्या हुआ जान?” संजय ने पूछा।
“कुछ नहीं... बस एक सीनियर है, बहुत हेल्प करता है। अच्छा लड़का है।”
संजय हँसा। “अच्छा है ना। कोई प्रॉब्लम नहीं। बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।”
फोन रखते ही Renu ने पूछा, “क्या बात है? आज चेहरा लाल-लाल है। कोई नया क्रश?”
Pooja ने तकिया फेंका। “चुप कर पागल!”
लेकिन रात को सोते वक्त विक्रम की बातें बार-बार याद आ रही थीं।
दिल में एक हल्की सी गुदगुदी।
और एक अजीब सा अपराधबोध।


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