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Adultery गुलमोहर... एक अल्हड़ सी लड़की
#3
Episode 2: कैसा ये खुमार है?

सुबह की पहली किरणें खिड़की से झाँक रही थीं, हल्की-हल्की धूप जो कमरे को सोने की परत चढ़ा रही थी।

आर्यन ने कल रात ही फैसला कर लिया था—आज ऑफिस नहीं जाना। शुक्रवार था, और उसके लिए तो शनिवार-रविवार की छुट्टियाँ बोनस। मतलब, पूरे तीन दिन... गुलमोहर के साथ।

कोई जल्दबाजी नहीं, बस वो और वो—एक नई दुनिया की शुरुआत।
वह सोफे पर लेटा था, चादर आधी कमर तक, ऊपरी बदन नंगा।

पच्चीस साल की जवानी उसके शरीर में उफान ला रही थी—चौड़ी छाती पर हल्के बाल, पेट की मांसपेशियाँ जो साँसों से हल्के से उभर रही थीं। नींद में उसके होंठ हल्के खुले, चेहरा शांत, जैसे कोई बच्चा जो सपनों में खोया हो। क्यूट... इतना क्यूट कि कोई भी पिघल जाए।

बेडरूम का दरवाजा धीरे से खुला।
गुलमोहर बाहर आई—आर्यन की टी-शर्ट पहने, जो उसके नाजुक बदन पर ढीली लेकिन मोहक लग रही थी। नीचे लोअर, जो उसके पतले कूल्हों पर चिपका हुआ था, जांघों की चिकनी त्वचा हल्के से झलक रही। बाल बिखरे, चेहरा तरोताजा—नहाने के बाद की वो चमक अभी बाकी थी।

वह रुकी, सोफे की ओर देखा। आर्यन सो रहा था। "हाय राम..." उसके मन में एक तरंग दौड़ गई। सोते हुए वह इतना मासूम लग रहा था—बाल माथे पर बिखरे, भौहें हल्की सिकुड़ीं, होंठों पर एक हल्की मुस्कान। गुलमोहर का दिल धड़क उठा। "कितना क्यूट... जैसे कोई छोटा बच्चा।"

उसे चूमने का मन हुआ—उन होंठों को, उसकी गर्माहट महसूस करने का। उसके बदन में एक सिहरन दौड़ गई, स्तन ऊपर-नीचे हो गए साँसों से। लेकिन वह रुकी। "नहीं... गुलमोहर, तू पागल हो गई है? अभी तो..." भावनाओं को दबाया, लेकिन नजरें हट न सकीं।

वह खड़ी हो गई, चुपचाप देखती रही—कई मिनट। आर्यन की छाती का उतार-चढ़ाव, उसके कंधों की चौड़ाई, कमर पर बालों की हल्की सी लकीर ,. सब कुछ उसे खींच रहा था। मन में कल्पना घूम रही—उसके स्पर्श की, उसकी बाहों की।
अचानक, उसके हाथ अनजाने में साइड टेबल पर रखे फूलदान को छू गया। "धड़ाम!"—दान नीचे गिरा, मिट्टी बिखर गई, फूल बिखरे।

शोर से आर्यन की चौंककर आँखें खुल गई। लेकिन जैसे ही नजर उठी, वो ठहर गई—गुलमोहर पर। उनकी नजरें मिलीं।

गुलमोहर के चेहरे पर खिड़की से आ रही सुबह की हल्की धूप की किरण पड़ रही थी, उसके गेहुंए रंग को सोने जैसा चमका रही। बालों पर चमक, आँखों में एक मासूम चमक, होंठ हल्के गुलाबी। टी-शर्ट की गर्दन से उसके गले की नाजुक लकीर झलक रही, स्तनों की हल्की उभार धूप में और मोहक।

आर्यन का दिल उछल गया—जैसे कोई तीर सीधा छलनी कर गया।

"वाह... सुबह के उजाले में तो परी लग रही है," मन ही मन बोला। गुलमोहर का रूप निखर गया था—रात की थकान गायब, बस वो अल्हड़ सौंदर्य, जो उसे बाँध ले।

नजरें मिलीं तो समय रुक सा गया—कई पल तक, बिना शब्दों के बातें होती रहीं। आँखों में आँखें, जैसे कोई धागा खिंच रहा हो।

आर्यन की नजरें उसके चेहरे से फिसलीं—होंठों पर, गले पर, फिर नीचे... टी-शर्ट के कर्व पर।

गुलमोहर महसूस कर रही थी—उसकी नजरों की गर्मी, जो उसके बदन को सुलगा रही। उसके गाल लाल हो गए, लेकिन नजरें न हटीं।

आर्यन के मन में तूफान—उसके नाजुक बदन की कल्पना, रात की वो सिहरन।
गुलमोहर के मन में भी—उसकी क्यूट मुस्कान, मजबूत बाहें। हवा में तनाव था—रोमांटिक, उत्तेजक।

लेकिन तभी किचन से चाय की हल्की खुशबू आई—गुलमोहर ने पहले ही उबाल रखी थी।

वो खुशबू ने हकीकत बुला ली, और होश लौटा।

आर्यन ने हल्के से खाँसा, सोफे पर उठ बैठा। चादर सरका, उसका ऊपरी बदन और साफ नजर आया—मसल्स की हल्की चमक, पसीने की बूंदें।

"गुड मॉर्निंग... नींद आई अच्छे से?" उसकी आवाज भारी, लेकिन मुस्कान के साथ।

गुलमोहर शर्मा गई, फूलों को समेटने लगी। "हाँ... शुक्रिया। आप?" लेकिन नजरें फिर मिलीं—वो अधूरी बात, जो अभी बाकी थी।

गुलमोहर ने फूल समेटे, फिर मुस्कुराई। "साहब... फ्रेश हो जाओ। मैंने आपके लिए चाय बनाई है।" उसकी आवाज में एक मासूम अपील थी, जैसे घर की मालकिन बन गई हो।

आर्यन का दिल पिघल गया—ये पहली बार था जब किसी और ने उसके लिए चाय बनाई हो।

"ठीक है,। पाँच मिनट में आता हूँ।" वह उठा, बाथरूम की ओर चला गया।
गुलमोहर किचन में लग गई।

आर्यन फ्रेश होकर लौटा—गीले बाल, साफ शर्ट-ट्राउजर में, और भी हैंडसम लग रहा।

दोनों सोफे पर बैठे, चाय के प्याले थामे। सिप लेते हुए नजरें मिलीं—आर्यन की गहरी आँखें गुलमोहर के चेहरे पर ठहर गईं, उसके गालों की लाली पर।

"ये चाय... स्वर्ग जैसी है," वह बोला, मुस्कुराते हुए। गुलमोहर शर्मा गई,चाय का प्याले को अपने हाथों में छिपा लिया।

हवा में वो तनाव फिर लौट आया—रोमांटिक, हल्की उत्तेजना भरी। चाय खत्म हुई, लेकिन बातें न रुकीं।

आर्यन ने अचानक कहा, "तुम्हें लेकर कहीं जाना है। तैयार हो जाओ।" गुलमोहर चौंकी, "कहाँ?" "सरप्राइज," वह विन्क किया।

दस बजे तक दोनों तैयार।

कार में बैठे, आर्यन ने इंजन स्टार्ट किया। रास्ते में हल्की बातें—गुलमोहर के गाँव की, आर्यन की जॉब की।

लेकिन उसकी नजरें बार-बार उसके जांघों पर फिसल जातीं, जो लोअर से हल्के से नजर आ रही थीं।

मॉल पहुँचे—बड़ा सा, चमचमाता।

अंदर घुसते ही गुलमोहर की आँखें फैल गईं—दुकानों की रौनक, कपड़ों की चमक।

आर्यन ने उस का हाथ पकड़ लिया, "चलो, शॉपिंग का समय।"
वह उसे पहली दुकान में ले गया—महिलाओं के सेक्शन में। "जो पसंद आए, ले लो।"

गुलमोहर हिचकिचाई, लेकिन आर्यन ने जोर दिया।

एक के बाद एक—दस अलग-अलग रंगों के सलवार सूट: लाल सिल्क का, नीला कॉटन का, हरा एम्ब्रॉयडरी वाला, पिंक प्रिंटेड... सब बढ़िया मटेरियल, उसके नाजुक बदन के लिए परफेक्ट।

ट्रायल रूम में जाती, आर्यन बाहर इंतजार करता—कल्पना करता उसके बदन पर उन सूट्स का फिट। हर बार बाहर आती, तो मुस्कुराहट के साथ घूमती।
"कैसा लग रहा?" "परफेक्ट... राजकुमारी लग रही हो," वह फुसफुसाता। गुलमोहर शर्मा जाती, लेकिन खुशी से चमकती आँखें। बैग भर गए—सूट्स, जूते, बैग्स।

फिर लॉन्जरी सेक्शन। गुलमोहर को शर्म आ गई।

"साहब... ये..." लेकिन आर्यन ने कहा, "जरूरी है ना। जाओ, चुन लो। मैं बाहर हूँ।"

वह अंदर चली गई—पैंटी-ब्रा चुनने लगी, नाजुक लेस वाली, उसके स्तनों और कूल्हों के लिए सॉफ्ट।

आर्यन बाहर खड़ा, लेकिन नजरें इधर-उधर। तभी उसकी नजर पड़ी एक साड़ी पर—ब्लैक कलर की, प्लेन सिल्क, इतनी स्मूथ कि स्पर्श करने को मन करे।

"ये... गुलमोहर के लिए परफेक्ट।" उसने खरीदी, लेकिन बैग में छिपा ली। न गुलमोहर को दी, न बताया। मन में सोचा, "समय आएगा... सरप्राइज।"

कल्पना की—वो साड़ी उसके बदन पर लिपटी, कर्व्स उभारती।

दोपहर तक शॉपिंग खत्म।

दोनों थके हुए, लेकिन खुश। कार में लौटे, बैग्स पीछे। घर पहुँचे, आर्यन ने दरवाजा खोला।

"फ्यू... क्या दिन था!" वह सोफे पर धम्म से लेट गया, आँखें बंद।
गुलमोहर ने बैग्स रखे, लेकिन आर्यन की थकान देखी—उसकी छाती ऊपर-नीचे, बाल बिखरे।

"सो रहा है... कितना केयरिंग।" वह मुस्कुराई। किचन में लग गई—फ्रिज में जो था: कुछ सब्जियाँ, चावल, दाल। इम्प्रोवाइज्ड खाना बनाया—सिंपल लेकिन प्यार भरा। मसाले डाले, भाप आने लगी।

एक घंटे बाद तैयार—गर्मागर्म सब्जी, चावल। वह आर्यन के पास गई, हल्के से कंधा झकझोरा। "साहब... उठो। खाना तैयार है।"

आर्यन की आँखें खुलीं, नींद भरी मुस्कान फैल गई। लेकिन जैसे ही 'साहब' शब्द कान में पड़ा, वह हल्का सा चौंका। सोफे पर आधा उठा।

"अरे गुलमोहर... तुम मुझे साहब मत कहा करो। ऐसा लगता है जैसे मैं 50-60 का अंकल हूँ। मैं तो 25 साल का जवान मर्द हूँ!" कहते हुए उसने बाजू मोड़ी, अपने बाइसेप्स दिखाए—मजबूत, उभरे हुए, जो शर्ट की आस्तीन से बाहर झाँक रहे थे। हल्की मसल्स की चमक, जो और भी आकर्षक लग रही।

गुलमोहर की नजरें आर्यन के बाइसेप्स पर ठहर गईं—वो मजबूत, उभरे हुए मसल्स, शर्ट की आस्तीन से बाहर झाँकते, हल्की चमक के साथ। एक पल के लिए, उसके मन में एक सिहरन दौड़ गई।

"हाय... कितने मजबूत... कितने आकर्षक... अगर ये हाथ मुझे छू लें, तो क्या होगा?" वह मन ही मन सोची, कल्पना में आर्यन के हाथों का स्पर्श उसके बदन पर फिसलता महसूस हुआ—कंधों पर, कमर पर, नीचे की गीली गहराई की पंखुड़ियां पर ।

इस कल्पना से उसके गाल लाल हो गए, साँसें तेज।

शरम से आँखें नीची, लेकिन मन में वो उत्तेजना—आर्यन का जवान बदन उसे बुला रहा था। "हाँ... जवान ही तो लगते हो... और कितना जवान!"
आर्यन को तुरंत होश आया—उसकी आँखें फैल गईं। "अरे... मैंने क्या बोल दिया?"

वह मन में कसमसाया, चेहरा गर्म हो गया।

आर्यन ने खाँसते हुए अपनी गलती सुधारने की कोशिश की, "म्ह्ह... मतलब... खाना... हाँ, खाना तैयार है ना? चलो, ठंडा न हो जाए।"

लेकिन तब तक देर हो चुकी थी—वो शब्द उनके बीच बस चुके थे, हवा में एक रोमांटिक, उत्तेजक तनाव छोड़कर। गुलमोहर ने सिर्फ सिर हिलाया, मुस्कुराती हुई टेबल की ओर इशारा किया।

दोनों डाइनिंग टेबल पर बैठे। गुलमोहर ने चावल पर सब्जी परोसी—हरी मटर वाली आलू की सब्जी, मसालों की हल्की खुशबू।

आर्यन ने एक कौर लिया, आँखें बंद कीं।

"उम्म... ये स्वाद..." आज बहुत दिनों के बाद घर जैसा लगा—माँ की याद आई, वो पुरानी रसोई की गर्माहट।

उसके गले में एक गांठ सी लग गई, आँखें नम हो गईं। "गुलमोहर... तूने तो जादू कर दिया। इतने दिनों बाद... घर का अहसास।" वह बोला, आवाज भारी।
गुलमोहर ने देखा—उसकी आँखों में चमक, लेकिन भावुक। "आर्यन... खुशी हुई।" वह सुधार गई, लेकिन शरम अभी बाकी।

खाना चला—हँसी-मजाक, लेकिन हर नजर में वो अधूरी बात। आर्यन की नजरें उसके होंठों पर ठहर जातीं, जहाँ चावल की बूंद चिपकी थी।

गुलमोहर महसूस कर रही थी—उसकी नजरों की गर्मी, जो उसके बदन को सुलगा रही। प्लेटें साफ हो गईं, लेकिन मन भरा नहीं।
खाना खत्म, दोनों सोफे पर बैठे।

आर्यन ने बैग्स की तरफ इशारा किया, मुस्कुराते हुए।

"गुलमोहर, तुमने मेरा आज बहुत खर्चा करवा दिया—दस सूट्स, जूते... लेकिन अभी तक मेरे लोअर और टी-शर्ट पर कब्जा कर रखा है।"

वह हँसा, लेकिन आँखों में शरारत। "जाओ, और आज खरीदे कपड़ों में से कोई पहनकर दिखाओ। देखूँ, राजकुमारी कैसी लगेगी।"

गुलमोहर शरमा गई—गालों पर लाली, उंगलियाँ टी-शर्ट के किनारे पर फिरने लगीं।

"अच्छा... ठीक है।" वह उठी, बैग्स उठाकर बेडरूम में चली गई। दरवाजा बंद किया, लेकिन मन धड़क रहा था।

"वह देखेगा... मुझे ऐसे..." आईने के सामने खड़ी, उसने लोअर-टी-शर्ट उतारी। नंगा बदन—स्तन गोल, निप्पल्स हल्के सख्त, कमर पतली, कूल्हे लहराते।
पहले लॉन्जरी का बैग खोला। मॉल से खरीदी वो नाजुक ब्रा-पैंटी—सफेद लेस वाली, उसके बदन के लिए परफेक्ट।

वह सिहर उठी, आईने में खुद को देखते हुए। ब्रा पहनने लगी—स्ट्रैप्स कंधों पर फिसले, कप उसके स्तनों को सहलाते हुए समेट लिया।

निप्पल्स पर हल्का दबाव, जो एक मीठी सिहरन पैदा कर गया।

"आर्यन... अगर देख ले तो..." मन में उसकी नजरें घूम गईं। फिर पैंटी—पतली स्ट्रिंग्स कूल्हों पर लिपटीं, उसकी चूत को नाजुकता से ढकते हुए।
जांघों के बीच की वो नरमी, जो अब छिपी लेकिन उत्तेजक। पूरा लॉन्जरी सेट उसके बदन पर चिपका—कामुक, लेकिन मासूम।

अब नीले रंग का सलवार सूट चुना—सिल्क का, एम्ब्रॉयडरी वाला।
सलवार पहनी, जो कूल्हों पर लहराई; फिर कमीज, जो ब्रा की उभार को हल्के से उभार दे रही।

बाल संवारे, काजल लगाया—जो मॉल से ही लिया था। शरमाते हुए बाहर आई, कदम धीमे।

आर्यन ने देखा—सोफे से उठा, साँसें रुक गईं।

"गुलमोहर..... वाह।" नीला सूट उसके गेहुंए रंग पर चमक रहा था, कमीज की नेकलाइन से गले की लकीर झलक रही, दुपट्टा कंधों पर लहराता।

उसके कदमों की थिरकन, कमर का हल्का मोड़—सब कुछ उत्तेजक, लेकिन मासूम। आर्यन की नजरें ऊपर से नीचे फिसलीं—जांघों की लकीर पर, एंकल्स पर।

मन में आग लग गई, लेकिन वह मुस्कुराया।
"परफेक्ट...किसी परी से कम नहीं।"
गुलमोहर शर्मा कर खड़ी रही, लेकिन आँखों में चमक—उसकी तारीफ ने दिल छू लिया।

शाम ढल रही थी, लेकिन उनके बीच की शाम?
अभी तो बस शुरू हुई थी...
कहानी जारी रहेगी..
✍️निहाल सिंह 
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Episode 2: कैसा ये खुमार है? - by Nihal1504 - Yesterday, 12:50 PM



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