11-11-2025, 03:42 PM
(This post was last modified: 11-11-2025, 06:28 PM by ramlal_chalu. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
इस घटना के छह महीने बाद धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होने लगी, और राहुल से भी इन लोगों का खुलापन बढ़ गया। जैसे कभी खाने पर बुला लेना। और बात करना।
अमित और सुमित ने राहुल को एक बिजनेस प्लान बताया और कुछ पैसे डालने के लिए कहे। हालाँकि परिधि और आरोही ने रोका की एक बार बिजनेस डूब चुका है और पैसे मत लो।
और राहुल ने भी समझाया कि विदेश से माल लाकर बेचने में मुनाफा दिखता तो है। लेकिन बड़े रिस्क भी होते हैं। शिपमेंट देर होने पर सप्लायर माल की डिलेवरी कैंसल तक कर देते हैं।
लेकिन वे लोग नहीं माने। राहुल ने पैसे तो दिलवा दिए, और बैंक में और अपने पास दोनों फ्लैट के कागज का एग्रीमेंट करा लिया। यानी एक तरह से उनके दोनों फ्लैट बैंक और राहुल के बंधक थे।
इसी बीच पैसे आने पर इन लोगों ने सारे पैसे कहीं ऐसी जगह माल इंपोर्ट करने में लगा दिए। लेकिन जैसा डर था, वही हुआ। जो माल जिस शिप पर था वह शिप कहीं अटक गई। और इनका पूरा फंड डूब गया।
यानी इन पर लगभग चालीस लाख का कर्ज हो गया। और इसी गम में दोनों ने एक दिन जमकर शराब पी और वापस आते समय एक्सीडेंट हो गया। जिसमें सुमित मौके पर ही मर गया। और अमित की जान तो बच गई लेकिन बेड पर हो गया यानी पैरालाइज हो गया।
इन लोगों के एक्सीडेंट से लेकर सुमित के अंतिम संस्कार तक इंद्रावती और परिधि, आरोही के पास कुछ था तो नहीं। ऐसे में सारा खर्च राहुल ने ही उठाया।
अब जब अमित को घर पर लाया गया। और फिर आगे खर्च चलाने के की बात आई। तो इनको पता चला की घर भी गिरवी है। और जो थोड़े बहुत गहने से थे उससे आगे कैसे काम चलेगा।
इसी बीच सुमित के इलाज का खर्च भी आया था। राशन से लेकर अन्य खर्चे भी थे। बिजली का बिल और इधर उधर दौड़ना और किश्त भी थी।
इसके लिए ही पाँच लाख रूपए चाहिए था। जहाँ से कहानी की शुरुआत हुई थी।
अब यहाँ राहुल के आलावा कोई और रास्ता भी नहीं था।
क्योंकि इसी बीच परिधि ने जो बहुत हिम्मत वाली थी। उसने नौकरी करने की सोची और वह एक सिलाई फर्म में काम करने लगी जो उसके किसी परिचित का था।
उसने पैसे की बात उसके मालिक मिस्टर गुप्ता से की। तो पहले तो उन्होंने अच्छे सा बात की। और बाद में देने को बोला। लेकिन आरोही नोट करने लगी की तब से उनका व्यवहार कुछ बदला था।
वह किसी ना किसी बहाने परिधि को छूने लगे। और उसे ज्यादा से ज्यादा अपने पास ही रखने लगे। एक दिन जब परिधि ने दोबारा पैसों की मांग की तो उन्होंने उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचना चाहा। ऐसे में परिधि शॉक हो गई।
और एक तमाचा मारकर केबिन से बाहर चली गई। और जाहिर सी बात है कि उसकी नौकरी चली ही गई। यही हाल आरोही का था, उसने भी कहीं नौकरी करनी चाही। लेकिन सबने फायदा उठाना चाहा।
और वैसे भी बच्चे और पैरालाइज अमित की देखरेख पर टाइम कहाँ मिलना था। तो परिधि और आरोही दोनों ही को पता था कि संसार कितना दुष्ट है।
तो उसने और आरोही ने एक बार राहुल से मिलने का फैसला किया। आगे यह वह मोड़ था जहाँ से सबकी जिंदगियाँ पूरी तरह से बदलने वाली थीं।
आगे ही पता चलना था कि पर्दा और बिना पर्दा क्या हो सकता है। और क्या किसी की बुराई भी अच्छी हो सकती है। और क्या अच्छा होना दुनियादार होना नहीं होता है। जो भी हो आगे आने वाला हर मोड़ अलग रंग दिखाएगा।
अमित और सुमित ने राहुल को एक बिजनेस प्लान बताया और कुछ पैसे डालने के लिए कहे। हालाँकि परिधि और आरोही ने रोका की एक बार बिजनेस डूब चुका है और पैसे मत लो।
और राहुल ने भी समझाया कि विदेश से माल लाकर बेचने में मुनाफा दिखता तो है। लेकिन बड़े रिस्क भी होते हैं। शिपमेंट देर होने पर सप्लायर माल की डिलेवरी कैंसल तक कर देते हैं।
लेकिन वे लोग नहीं माने। राहुल ने पैसे तो दिलवा दिए, और बैंक में और अपने पास दोनों फ्लैट के कागज का एग्रीमेंट करा लिया। यानी एक तरह से उनके दोनों फ्लैट बैंक और राहुल के बंधक थे।
इसी बीच पैसे आने पर इन लोगों ने सारे पैसे कहीं ऐसी जगह माल इंपोर्ट करने में लगा दिए। लेकिन जैसा डर था, वही हुआ। जो माल जिस शिप पर था वह शिप कहीं अटक गई। और इनका पूरा फंड डूब गया।
यानी इन पर लगभग चालीस लाख का कर्ज हो गया। और इसी गम में दोनों ने एक दिन जमकर शराब पी और वापस आते समय एक्सीडेंट हो गया। जिसमें सुमित मौके पर ही मर गया। और अमित की जान तो बच गई लेकिन बेड पर हो गया यानी पैरालाइज हो गया।
इन लोगों के एक्सीडेंट से लेकर सुमित के अंतिम संस्कार तक इंद्रावती और परिधि, आरोही के पास कुछ था तो नहीं। ऐसे में सारा खर्च राहुल ने ही उठाया।
अब जब अमित को घर पर लाया गया। और फिर आगे खर्च चलाने के की बात आई। तो इनको पता चला की घर भी गिरवी है। और जो थोड़े बहुत गहने से थे उससे आगे कैसे काम चलेगा।
इसी बीच सुमित के इलाज का खर्च भी आया था। राशन से लेकर अन्य खर्चे भी थे। बिजली का बिल और इधर उधर दौड़ना और किश्त भी थी।
इसके लिए ही पाँच लाख रूपए चाहिए था। जहाँ से कहानी की शुरुआत हुई थी।
अब यहाँ राहुल के आलावा कोई और रास्ता भी नहीं था।
क्योंकि इसी बीच परिधि ने जो बहुत हिम्मत वाली थी। उसने नौकरी करने की सोची और वह एक सिलाई फर्म में काम करने लगी जो उसके किसी परिचित का था।
उसने पैसे की बात उसके मालिक मिस्टर गुप्ता से की। तो पहले तो उन्होंने अच्छे सा बात की। और बाद में देने को बोला। लेकिन आरोही नोट करने लगी की तब से उनका व्यवहार कुछ बदला था।
वह किसी ना किसी बहाने परिधि को छूने लगे। और उसे ज्यादा से ज्यादा अपने पास ही रखने लगे। एक दिन जब परिधि ने दोबारा पैसों की मांग की तो उन्होंने उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचना चाहा। ऐसे में परिधि शॉक हो गई।
और एक तमाचा मारकर केबिन से बाहर चली गई। और जाहिर सी बात है कि उसकी नौकरी चली ही गई। यही हाल आरोही का था, उसने भी कहीं नौकरी करनी चाही। लेकिन सबने फायदा उठाना चाहा।
और वैसे भी बच्चे और पैरालाइज अमित की देखरेख पर टाइम कहाँ मिलना था। तो परिधि और आरोही दोनों ही को पता था कि संसार कितना दुष्ट है।
तो उसने और आरोही ने एक बार राहुल से मिलने का फैसला किया। आगे यह वह मोड़ था जहाँ से सबकी जिंदगियाँ पूरी तरह से बदलने वाली थीं।
आगे ही पता चलना था कि पर्दा और बिना पर्दा क्या हो सकता है। और क्या किसी की बुराई भी अच्छी हो सकती है। और क्या अच्छा होना दुनियादार होना नहीं होता है। जो भी हो आगे आने वाला हर मोड़ अलग रंग दिखाएगा।


![[+]](https://xossipy.com/themes/sharepoint/collapse_collapsed.png)