11-11-2025, 02:34 PM
सौम्या का हाथ साड़ी के आंचल पर रुका, लेकिन फिर धीरे-धीरे खोलने लगी। कमरे की ठंडी हवा उसके कंधों को छू रही थी, गीली साड़ी चिपकी हुई त्वचा से अलग हो रही थी, जैसे कोई चिपचिपा प्रेमी अलग हो रहा हो। उसके स्तन भारी हो रहे थे, निप्पल्स सख्त और उभरे हुए, ब्लाउज के पतले कपड़े के नीचे दबे हुए। वह सांस ले रही थी तेज़, छाती ऊपर-नीचे हो रही, और अचानक एक अजीब सा एहसास हुआ—जैसे कोई उसकी पीठ पर नजरें गड़ा रहा हो, गर्म सांसें उसके कूल्हों पर लग रही हों। सौम्या का शरीर कांप उठा, बालूहारी हुई त्वचा पर कांटे खड़े हो गए, लेकिन उत्तेजना की एक लहर भी दौड़ गई, जांघों के बीच नमी बढ़ गई, जैसे कोई अदृश्य उंगली सहला रही हो।
वह तेज़ी से पलटी, आंखें चौड़ी हो गईं। दीवार पर एक पुराना फोटो फ्रेम लटका था, धूल से ढका, कांच टूटा-फूटा। चेहरे की डिटेल्स धुंधली थीं, जैसे कोई भूतिया छाया, लेकिन कपड़े राजसी थे—रेशमी शेरवानी, सोने की जरी, मुकुट जैसा पगड़ी, जो मशाल की लौ में चमक रहे थे। सौम्या की नजरें उस पर टिक गईं, मन में सवाल घूमने लगे—कौन था ये? नाज़िमा बेगम का पति? या कोई और रहस्य? उसकी आंखें फोटो में खो गईं, समय रुक सा गया, और वह भूल गई कि उसका ब्लाउज आधा खुला था, हुक ढीले, एक स्तन आधा बाहर झांक रहा, गुलाबी निप्पल हवा में कांप रहा। पल्लू फर्श पर गिर चुका था, साड़ी का निचला हिस्सा कमर पर लटक रहा, उसके पेट का चपटा हिस्सा, पियर्स्ड नाभि चमक रही, जांघों की मुलायम त्वचा नंगी हो रही।
बाहर तूफान और भयानक हो गया, बिजली की कड़क एकदम जोरदार गूंजी, जैसे आकाश फट रहा हो। कमरा एक पल के लिए रोशन हो गया, फोटो फ्रेम में चेहरा चमका—एक पल को लगा जैसे आंखें जीवित हों, सौम्या को घूर रही हों। सौम्या का दिल धक् से रह गया, वह चौंककर पलटी, हाथ ब्लाउज पर गए, लेकिन देर हो चुकी थी। उसकी सांसें तेज़ हो गईं, चेहरा लाल, शरीर में एक अजीब सी गर्मी—डर से पसीना छूट रहा था, लेकिन निचले हिस्से में उत्तेजना की आग सुलग रही, योनि गीली हो रही, जैसे कोई छिपा हुआ स्पर्श हो। 'क्या... क्या ये जगह शापित है?' उसने मन ही मन सोचा, लेकिन हाथ रुकने का नाम न ले रहे।
वह तेज़ी से ब्लाउज के बाकी हुक खोल दी, कपड़ा फर्श पर गिरा, उसके स्तन आज़ाद हो गए—भरे-भरे, गोल, निप्पल्स हवा में सिकुड़ रहे। फिर साड़ी का निचला हिस्सा खींचा, पेटीकोट के साथ, सब कुछ नंगा कर दिया। उसकी त्वचा चिकनी, सफेद, लेकिन ठंड से कांप रही, जांघें रगड़ रही एक-दूसरे से, नाभि का पियर्स चमक रहा मशाल में। कमरे की नमी भरी हवा उसके नंगे शरीर को लिपट रही, जैसे कोई अदृश्य प्रेमी चूम रहा हो—गर्दन पर, कमर पर, नितंबों पर। सौम्या की आंखें बंद हो गईं एक पल को, सिहरन दौड़ी, स्तनों पर हाथ फेरा अनजाने में, लेकिन फिर होश आया। फोटो फ्रेम की तरफ देखा, लगा जैसे वो हंस रहा हो, रहस्यमय मुस्कान।
बाथरूम के कोने में रखे कपड़े उठाए—काली साड़ी, काला ब्लाउज, रेशमी, मुलायम। सौम्या ने पहले ब्लाउज पहना, उसके स्तनों को कसकर जकड़ा, लेकिन कपड़ा इतना पतला कि निप्पल्स उभर आए। फिर साड़ी लपेटी, कमर पर साड़ी चिपक गई, उसके कर्व्स को उभारते हुए—कूल्हे चौड़े, पेट सपाट, नाभि छिपी लेकिन पियर्स का आभास। लेकिन उसे नज़र न आया कि साड़ी के डिज़ाइन में एक काला ताबीज़-सा जड़ा हुआ था, छोटा, चमकदार, जैसे कोई जादुई चिन्ह, जो हल्के से चमक रहा था मशाल की रोशनी में। वो ताबीज़ साड़ी के पल्लू के पास था, रहस्यमय, जैसे कोई श्राप या आकर्षण का प्रतीक। सौम्या ने आईना देखा, खुद को पहचान न पाई—काली साड़ी में वो खुद एक रानी सी लग रही, आंखें चमक रही, होंठ कांप रहे। बाहर बारिश की बौछारें तेज़ हो गईं, बिजली फिर कड़की, और फोटो फ्रेम में छाया हिली सी लगी। सौम्या का दिल धड़का, लेकिन शरीर में वो सनसनी बनी रही—उत्तेजना की, रहस्य की, जैसे ये साड़ी उसके अंदर कुछ जगा रही हो।
वह तेज़ी से पलटी, आंखें चौड़ी हो गईं। दीवार पर एक पुराना फोटो फ्रेम लटका था, धूल से ढका, कांच टूटा-फूटा। चेहरे की डिटेल्स धुंधली थीं, जैसे कोई भूतिया छाया, लेकिन कपड़े राजसी थे—रेशमी शेरवानी, सोने की जरी, मुकुट जैसा पगड़ी, जो मशाल की लौ में चमक रहे थे। सौम्या की नजरें उस पर टिक गईं, मन में सवाल घूमने लगे—कौन था ये? नाज़िमा बेगम का पति? या कोई और रहस्य? उसकी आंखें फोटो में खो गईं, समय रुक सा गया, और वह भूल गई कि उसका ब्लाउज आधा खुला था, हुक ढीले, एक स्तन आधा बाहर झांक रहा, गुलाबी निप्पल हवा में कांप रहा। पल्लू फर्श पर गिर चुका था, साड़ी का निचला हिस्सा कमर पर लटक रहा, उसके पेट का चपटा हिस्सा, पियर्स्ड नाभि चमक रही, जांघों की मुलायम त्वचा नंगी हो रही।
बाहर तूफान और भयानक हो गया, बिजली की कड़क एकदम जोरदार गूंजी, जैसे आकाश फट रहा हो। कमरा एक पल के लिए रोशन हो गया, फोटो फ्रेम में चेहरा चमका—एक पल को लगा जैसे आंखें जीवित हों, सौम्या को घूर रही हों। सौम्या का दिल धक् से रह गया, वह चौंककर पलटी, हाथ ब्लाउज पर गए, लेकिन देर हो चुकी थी। उसकी सांसें तेज़ हो गईं, चेहरा लाल, शरीर में एक अजीब सी गर्मी—डर से पसीना छूट रहा था, लेकिन निचले हिस्से में उत्तेजना की आग सुलग रही, योनि गीली हो रही, जैसे कोई छिपा हुआ स्पर्श हो। 'क्या... क्या ये जगह शापित है?' उसने मन ही मन सोचा, लेकिन हाथ रुकने का नाम न ले रहे।
वह तेज़ी से ब्लाउज के बाकी हुक खोल दी, कपड़ा फर्श पर गिरा, उसके स्तन आज़ाद हो गए—भरे-भरे, गोल, निप्पल्स हवा में सिकुड़ रहे। फिर साड़ी का निचला हिस्सा खींचा, पेटीकोट के साथ, सब कुछ नंगा कर दिया। उसकी त्वचा चिकनी, सफेद, लेकिन ठंड से कांप रही, जांघें रगड़ रही एक-दूसरे से, नाभि का पियर्स चमक रहा मशाल में। कमरे की नमी भरी हवा उसके नंगे शरीर को लिपट रही, जैसे कोई अदृश्य प्रेमी चूम रहा हो—गर्दन पर, कमर पर, नितंबों पर। सौम्या की आंखें बंद हो गईं एक पल को, सिहरन दौड़ी, स्तनों पर हाथ फेरा अनजाने में, लेकिन फिर होश आया। फोटो फ्रेम की तरफ देखा, लगा जैसे वो हंस रहा हो, रहस्यमय मुस्कान।
बाथरूम के कोने में रखे कपड़े उठाए—काली साड़ी, काला ब्लाउज, रेशमी, मुलायम। सौम्या ने पहले ब्लाउज पहना, उसके स्तनों को कसकर जकड़ा, लेकिन कपड़ा इतना पतला कि निप्पल्स उभर आए। फिर साड़ी लपेटी, कमर पर साड़ी चिपक गई, उसके कर्व्स को उभारते हुए—कूल्हे चौड़े, पेट सपाट, नाभि छिपी लेकिन पियर्स का आभास। लेकिन उसे नज़र न आया कि साड़ी के डिज़ाइन में एक काला ताबीज़-सा जड़ा हुआ था, छोटा, चमकदार, जैसे कोई जादुई चिन्ह, जो हल्के से चमक रहा था मशाल की रोशनी में। वो ताबीज़ साड़ी के पल्लू के पास था, रहस्यमय, जैसे कोई श्राप या आकर्षण का प्रतीक। सौम्या ने आईना देखा, खुद को पहचान न पाई—काली साड़ी में वो खुद एक रानी सी लग रही, आंखें चमक रही, होंठ कांप रहे। बाहर बारिश की बौछारें तेज़ हो गईं, बिजली फिर कड़की, और फोटो फ्रेम में छाया हिली सी लगी। सौम्या का दिल धड़का, लेकिन शरीर में वो सनसनी बनी रही—उत्तेजना की, रहस्य की, जैसे ये साड़ी उसके अंदर कुछ जगा रही हो।


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