07-11-2025, 08:42 PM
राजेश ने सौम्या को कसकर गले लगा लिया, उसके मजबूत बाहुबंध उसके कर्वी शरीर को अपनी ओर खींचते हुए। सौम्या की साड़ी अभी भी गीली थी, जो उसके भरे-भरे स्तनों से चिपकी हुई थी, और राजेश की छाती से सटते ही उसके निप्पल्स सख्त हो गए, एक मीठी सी सनसनी उसके पूरे शरीर में फैल गई। वह भी राजेश को गले लगाए हुए थी, उसके हाथ राजेश की पीठ पर सरक रहे थे, लेकिन अचानक उसे लगा जैसे कोई खिड़की से उसे घूर रहा हो। एक भारी सांस की आवाज़ उसके कानों में गूंजी, गर्म और करीब, जैसे कोई छिपा हुआ प्रहरी उसकी नंगी त्वचा को निगल रहा हो। सौम्या का दिल जोर से धड़का, उसके कूल्हे राजेश के शरीर से रगड़ खाते हुए, लेकिन वह डर से सिहर उठी। उसने झटके से सिर घुमाया, खिड़की की ओर देखा—परदे हल्के से लहरा रहे थे, बारिश की बूंदें कांच पर टपक रही थीं, लेकिन कोई नहीं था। सिर्फ अंधेरा और कोहरा। 'शायद मेरा वहम है,' उसने सोचा, लेकिन उसकी त्वचा पर अब भी वह नजरों का एहसास बना रहा, जैसे कोई अदृश्य हाथ उसके गले की नसों को सहला रहा हो। मोमबत्तियों की लौें नाच रही थीं, परछाइयों को जीवित कर रही थीं, और कमरे की पुरानी गंध अब और गहरी हो गई थी, मादक और उत्तेजक।
वे दोनों अभी भी एक-दूसरे से चिपके हुए थे, राजेश का हाथ सौम्या की कमर पर सरक गया, हल्के से दबाते हुए उसके नरम मांस को महसूस कर रहा था। सौम्या की सांसें तेज हो गईं, उसके होंठ राजेश के कंधे पर रुक गए, एक हल्की सी चुम्बन की कोशिश में, लेकिन तभी बाहर से मनोहर की भारी आवाज़ गूंजी, जैसे कोई पुरानी दीवार से निकल आई हो। 'मैं आपके कपड़े लाया हूं, साहब,' मनोहर ने कहा, दरवाजा खोलते हुए अंदर कदम रखा। उसकी आंखें फिर से सौम्या पर टिक गईं, भूखी और चमकदार, जैसे मोमबत्ती की रोशनी में कोई जंगली जानवर। वह एक पुराने लकड़ी के बॉक्स से निकले कपड़ों का बंडल लिए हुए था, जो राजेश की ओर बढ़ाया।
कपड़े पुराने ज़माने के थे, लेकिन राजसी वैभव से भरे—रेशम के बने, चमकदार और महंगे, जैसे सदियों से बंद पेटियों से निकले हों। उनमें एक पुरानी, मिट्टी भरी गंध थी, जो हवा में फैल गई, सौम्या को फिर से अजीब सी उत्तेजना दे रही थी। राजेश ने बंडल लिया, कपड़ों को छुआ, और आश्चर्य से बोला, 'वाह मनोहर, ये तो कमाल के हैं! इतने सुंदर और राजसी... तुम्हारी पसंद तो गज़ब की है। धन्यवाद!' उसके चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन सौम्या अभी भी खिड़की की ओर देख रही थी, उसके शरीर में राजेश की गर्मी और उस अदृश्य नजर का मिश्रण एक तनावपूर्ण उत्तेजना पैदा कर रहा था।
मनोहर ने पीले दांतों के साथ हंसते हुए कहा, उसकी हंसी कमरे की शांति को चीर गई, जैसे कोई पुराना रहस्य खुल रहा हो। 'ये मेरे कपड़े नहीं हैं, साहब। ये तो इस बंगले के मालिक के हैं... नवाब दानिश अली शाह के।'
वे दोनों अभी भी एक-दूसरे से चिपके हुए थे, राजेश का हाथ सौम्या की कमर पर सरक गया, हल्के से दबाते हुए उसके नरम मांस को महसूस कर रहा था। सौम्या की सांसें तेज हो गईं, उसके होंठ राजेश के कंधे पर रुक गए, एक हल्की सी चुम्बन की कोशिश में, लेकिन तभी बाहर से मनोहर की भारी आवाज़ गूंजी, जैसे कोई पुरानी दीवार से निकल आई हो। 'मैं आपके कपड़े लाया हूं, साहब,' मनोहर ने कहा, दरवाजा खोलते हुए अंदर कदम रखा। उसकी आंखें फिर से सौम्या पर टिक गईं, भूखी और चमकदार, जैसे मोमबत्ती की रोशनी में कोई जंगली जानवर। वह एक पुराने लकड़ी के बॉक्स से निकले कपड़ों का बंडल लिए हुए था, जो राजेश की ओर बढ़ाया।
कपड़े पुराने ज़माने के थे, लेकिन राजसी वैभव से भरे—रेशम के बने, चमकदार और महंगे, जैसे सदियों से बंद पेटियों से निकले हों। उनमें एक पुरानी, मिट्टी भरी गंध थी, जो हवा में फैल गई, सौम्या को फिर से अजीब सी उत्तेजना दे रही थी। राजेश ने बंडल लिया, कपड़ों को छुआ, और आश्चर्य से बोला, 'वाह मनोहर, ये तो कमाल के हैं! इतने सुंदर और राजसी... तुम्हारी पसंद तो गज़ब की है। धन्यवाद!' उसके चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन सौम्या अभी भी खिड़की की ओर देख रही थी, उसके शरीर में राजेश की गर्मी और उस अदृश्य नजर का मिश्रण एक तनावपूर्ण उत्तेजना पैदा कर रहा था।
मनोहर ने पीले दांतों के साथ हंसते हुए कहा, उसकी हंसी कमरे की शांति को चीर गई, जैसे कोई पुराना रहस्य खुल रहा हो। 'ये मेरे कपड़े नहीं हैं, साहब। ये तो इस बंगले के मालिक के हैं... नवाब दानिश अली शाह के।'


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