Thread Rating:
  • 2 Vote(s) - 3 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Incest मस्तराम का चेला : सीरीज
#3
[img=567x1272][Image: 7be37d5832772d73ab7c31f69aed6530.jpg] [Image: 6b580c43b28e6dd973efee5d190f8edd.jpg] [Image: 60dc03ab1af151df77dccb67eabf58ec.jpg][/img]
मस्तराम का चेला: तीसरी कहानी - मम्मी की छुपी भूख

नमस्कार दोस्तों, वापस हाजिर हूँ मैं राजू, मस्तराम का चेला। पिछली कहानियों की भाभी और बहन वाली आग तो झुलसा चुकी होगी ना? लेकिन आज तीसरी कहानी को और गहरा, और डिटेल से भरा बना दिया – "मम्मी की छुपी भूख"। सबसे टैबू वाली, जहाँ सालों दबी वो आग बाहर आई। मम्मी श्यामा – वो मॉम जो घर की दीवारें सहती रहीं, लेकिन अंदर जलतीं। हटके ट्विस्ट: पुराने फैमिली वीडियोज, छुपे चैट्स, और स्मार्टफोन की वो चिंगारियाँ जो मॉम-बेटे को एक बटन पर रखैल-युवा बना दें। कहानी अब और लंबी, सीन-दर-सीन – सिसकियाँ सुनाई देंगी, पसीना महसूस होगा, लंड फड़क उठेगा। प्रेग्नेंसी वाला पार्ट हटा दिया, बस आग का सिलसिला जारी। तो लेट जाओ, हाथ नीचे, और डूब जाओ।
मेरा नाम राजू, २५ का। गाँव का पुराना घर, जहाँ पापा दिन भर खेतों में पसीना बहाते, मम्मी घर की चारदीवारी में। मम्मी श्यामा, ४५ की उम्र, लेकिन बदन ऐसी कि शहर की लड़कियाँ जलें। ३८-३२-४० का फिगर – चूचियाँ भारी, साड़ी में लहरातीं जैसे दो बड़े आम झूल रहे हों; कमर मोटी लेकिन मजबूत, कटि पट्टी से नाभि गहरी झांकती; गांड गोल-फूली, सलवार सूट में मटकती। गोरी चिट्टी स्किन, लंबे काले बाल जो कंधों पर लहराते, और वो आँखें – काजल लगीं तो सीधे दिल में चुभें। शादी के ३० साल पापा के साथ, लेकिन आखिरी १० साल ठंडे – पापा की बीमारी, काम का बोझ। मम्मी रातों को अकेली लेटीं, सिसकियाँ दबातीं, लेकिन कभी मुंह न खोला। मैं दिल्ली से लौटा तो पहली नजर में पकड़ा – मम्मी की नजरें मुझ पर ठहरतीं, जैसे पुरानी यादें जाग उठी हों। "राजू बेटा, तू तो मर्द बन गया... कंधे चौड़े, छाती चौड़ी," कहतीं, लेकिन मुस्कान में वो भूख जो सालों दबी थी। मेरा लंड फड़कता, सोचता – "ये मेरी मम्मी है, लेकिन..."
गर्मी का वो पहला शाम। पापा खेत पर गए, शाम को लौटेंगे। मैं घर पहुँचा, धूल से सना। मम्मी किचन में – हरी साड़ी पहनी, पसीना चिपका हुआ। पीठ फेरी, साड़ी की चोली गीली, कमर नंगी चमक रही। नाभि के पास पसीने की बूंदें लुढ़क रही। मैंने पानी माँगा, गिलास थमा। वो मुड़ीं – ब्लाउज पारदर्शी, चूचियाँ की ब्राउन आउटलाइन साफ, निप्पल्स हल्के सख्त। "बैठ जा बेटा, चाय उबाल रही हूँ। तू थका लग रहा।" मैं पास खड़ा, कंधे पर हाथ रखा – गर्माहट सी। "मम्मी, तू भी पसीने में तर। मसाज दूँ कंधे की?" वो हँसीं, लेकिन आँखें चमकीं – "अरे बेटा, शहर में क्या सिखाया? पुराने दिनों की याद – तू छोटा था, मैं तुझे नहलाती, मालिश करती।" पुरानी यादें? बचपन में मम्मी के हाथों का स्पर्श, नंगे बदन का टच। अब वो स्पर्श उत्तेजित कर रहा। चाय पीते हुए बातें – "बेटा, तेरी कोई गर्लफ्रेंड? शादी कब करेगा?" मैं शरमाया – "मम्मी, समय कहाँ। तू-पापा की तरह खुश रहूँ तो।" लेकिन वो उदास हो गईं – "तेरा पापा... अब बीमार। रातें कटतीं कैसे? अकेलापन... सालों से।" पहली बार खुली। मैंने उनका हाथ पकड़ा – नरम हथेली, नाखून लाल। "मम्मी, मैं हूँ ना। कुछ भी बोल, शेयर कर।" वो चुप, लेकिन हाथ न हटाया।
उस रात खाना खाया। पापा सोए जल्दी – दवा का असर। हम हॉल में टीवी देखने। मम्मी साड़ी में लेटीं सोफे पर, पैर मेरी गोद में रख दिए – "बेटा, पैर दर्द कर रहे। दबा दे ना।" मैंने दबाना शुरू – टखनों से ऊपर, जाँघों की मांसपेशियाँ। साड़ी की प्लेट्स फिसल गईं, गोरी जांघें नंगी। पसीना सूखा, लेकिन खुशबू – वो मादक, चंदन वाली। हाथ ऊपर फिसला, जांघ के अंदर। मम्मी सिसकी – "आह... हल्के बेटा, वहाँ संवेदनशील है।" मेरा लंड पैंट में सख्त, दुख रहा। "मम्मी, तू कितनी सॉफ्ट है... जैसे रुई।" वो मुस्कुराईं, पैर फैलाया हल्का – "बेटा, तू भी मजबूत हाथ। पापा के पास ये ताकत न रही।" नजरें मिलीं – कुछ सेकंड बिजली सी। फिर वो उठीं – "नींद आ गई बेटा। कल मिलते।" लेकिन जाते हुए कूल्हे मटकाए, साड़ी की घाघरा लहराई। मैं अपने कमरे में लेटा, लंड बाहर निकाला। कल्पना की – मम्मी की चूचियाँ चूसता, चूत चाटता। "मम्मी... तेरी भूख... मिटा दूँ?" मुठ तेज, झड़ गया। बेडशीट गीली।
अगली सुबह। पापा डॉक्टर के पास गए – चेकअप। घर अकेले। मम्मी नहाने लगीं। बाथरूम का दरवाजा हल्का खुला – शायद हवा से। मैं चुपके झाँका। वाह रे वाह! नंगा बदन, पानी की धार से भीगा। चूचियाँ भारी, झूल रही – ब्राउन निप्पल्स सख्त, जैसे दूध की बूंदें। साबुन लगाया, हाथ फिसले कमर पर, नाभि में। गांड गोल, पानी से चमकती – दरार साफ। चूत पर बाल ट्रिम्ड, गुलाबी होंठ हल्के फैले। मम्मी ने सिर धोया, आँखें बंद – सिसकी जैसी आवाज। "आह... कितना अच्छा लग रहा।" मैं वहीं खड़ा, पैंट में हाथ डाला, हिलाने लगा। लंड सख्त, नसें फूलीं। मम्मी ने हलचल सुनी – मुड़ीं। "राजू बेटा!" चीखीं, लेकिन तौलिया से ढका न सही – बस हाथ चूचियों पर। आँखों में शॉक, लेकिन वो चमक – जैसे सालों की प्यास। "सॉरी मम्मी... पानी लेने आया था," मैं हकलाया। वो तौलिया लपेटा, बाहर आईं – "बेटा, ये... गलती हुई। लेकिन तू... बड़ा हो गया। मत सोचना कुछ।" लेकिन उनका चेहरा लाल, साँसें तेज। दोपहर को चाय बनाई, देते हुए हाथ मेरी पीठ पर रुका – "बेटा, सुबह का... भूल जा। लेकिन तूने देखा ना... सब।" मैं हिम्मत जुटाया – "मम्मी, तू परफेक्ट है। पापा खुशकिस्मत, लेकिन अब मैं... देख रहा।" वो लजाईं, लेकिन बोलीं – "पागल बेटा। मॉम को क्या लगेगा?"
शाम ढली। मम्मी का नया स्मार्टफोन – मैंने सेटअप किया था। "बेटा, ये वीडियो कैसे चलें?" मैंने पुराने फैमिली एल्बम दिखाए – बचपन के। लेकिन एक पुरानी कैसेट से डिजिटाइज्ड क्लिप – मम्मी-पापा की हनीमून वाली। मम्मी शरमाईं – "अरे ये मत देख बेटा! पुरानी बात।" लेकिन मैंने प्ले किया। मम्मी साड़ी में, पापा चुंबन कर रहे, हाथ कमर पर। मम्मी हँस रही, आँखें बंद। "वाह मम्मी, कितनी जवान लग रही... होंठ कितने रसीले।" वो गाल रंगाए – "बेटा, वो तो २० साल पहले। अब बूढ़ी हो गई। चूचियाँ लटक गईं, कमर ढीली।" मैंने हाथ पकड़ा, करीब खींचा – "झूठ मम्मी। अभी भी हॉट। छू लूँ?" वो साँस अटकी – "क्या बक रहा बेटा? तू मेरा... " लेकिन न हटाईं। मैंने कंधा सहलाया, फिर कमर पर। नाभि छुई। "मम्मी, तेरी स्किन... सिल्क सी।" वो काँपीं – "राजू... ये गलत है। लेकिन... सालों से कोई न छुआ। भूख लगी है बेटा।" चैट पर ले गया – "मम्मी, मैसेज कर। सीक्रेट।" रात को पहला मैसेज – "बेटा, सोया? नींद न आ रही।" मैं – "मैं भी मम्मी। सुबह का सोच रहा। तेरी चूचियाँ... कितनी भरी।" वो – "पागल! लेकिन... फोटो भेजूँ?" सेल्फी आई – साड़ी में, ब्लाउज ऊपर, चूचियाँ की क्लीवेज। कैप्शन – "ये देख, अभी भी तनी हुईं।" मेरा लंड फिर सख्त। "मम्मी, निप्पल्स दिखा।" वो – "कल बेटा। पापा सोए हैं।"
अगली रात वीडियो कॉल। पापा सोए। मम्मी बेड पर, नाइट गाउन – पतला, पारदर्शी। "हैलो बेटा... कैसा है?" बातें हल्की। फिर वो – "बेटा, एक सीक्रेट। रात को अकेली... वीडियो देखती हूँ। तेरे जैसे जवान लड़कों के। लंड... बड़ा, मोटा। कल्पना करती – कोई चोदे।" मैं पागल – "मम्मी, सच? दिखा ना वो वीडियो।" वो शेयर की लिंक – इंडियन पॉर्न क्लिप। लेकिन कॉल पर ही, गाउन ऊपर सरकाया। चूचियाँ नंगी – भारी, ब्राउन निप्पल्स सख्त। "ये देख बेटा... छू ले काश। दबा।" मैंने अपना लंड दिखाया – पैंट से बाहर। "मम्मी, ये तेरा।" वो साँस तेज – "ईश्वर... कितना लंबा। पापा का आधा भी न था। चूसना चाहूँ।" कॉल खत्म, लेकिन आग भड़की।
पापा के दो हफ्ते के रिश्तेदार ट्रिप पर गए। घर सिर्फ हम – स्वर्ग। पहली रात, १० बजे। मम्मी कमरे में बुलाया – "बेटा, मसाज दे ना। पीठ दर्द।" लेटीं बेड पर, गाउन ऊपर – कमर नंगी, पैंटी सफेद लेस। मैं तेल गरम किया, लगाया। कंधों से शुरू, फिर रीढ़ पर। हाथ फिसले, गांड पर। गोल, फूली। दबाया – मांस नरम, लेकिन टाइट। "आह बेटा... वहाँ भी... सालों से कोई न दबाया।" मैंने पैंटी सरकाई हल्का – गांड की दरार दिखी। उंगली रगड़ी। मम्मी सिसकी – "ओह राजू... गर्म हो गई।" पलटीं। आँखों में आग, होंठ काँपते। "बेटा... ये पाप है। लेकिन रोक न सकूँ। चूम ले।" मैं झुका, होंठ मिले – नरम, रसीले। जीभ अंदर, चूसी। मम्मी ने मेरी जीभ काटी हल्का – "उम्म... बेटे के होंठ... मीठे।" हाथ मेरी शर्ट में – छाती सहलाई, निप्पल्स चूए। "तू कितना फिट बेटा... मसल्स सख्त।"
मैंने गाउन पूरी खोला। चूचियाँ बाहर – ३८ साइज, गोल, भारी। निप्पल्स ब्राउन, चेरी जैसे। दबाया दोनों हाथों से – नरम आटा सा, लेकिन उछाल। "मम्मी... तेरी चूचियाँ... कितनी जूसी।" मुंह में लिया एक – चूसा मजबूत, जीभ घुमाई। काटा हल्का। "आह... दर्द बेटा... लेकिन मजा! दूसरी भी चूस... दूध पी ले जैसे बचपन में।" मैंने १० मिनट चूसा – बारी-बारी। मम्मी काँप रही, हाथ मेरे बालों में। "ओह... बेटा... निप्पल काट... उत्तेजित हो रही।" नीचे हाथ। पैंटी गीली, चिपकी। उंगली से क्लिट रगड़ा – सख्त बटन सा। "मम्मी, तेरी चूत... भिगोई हुई।" पैंटी नीचे सरकाई। चूत गुलाबी, होंठ फैले, बाल ट्रिम्ड। महक – मादक, नमकीन। "बेटा... छू... उंगली डाल।" मैंने एक उंगली अंदर – टाइट, गर्म। दीवारें निचोड़ रही। "आह... कितना गहरा... पापा कभी इतना न पहुँचा।" दूसरी उंगली। रगड़ा। मम्मी पैर फैलाए – "ओह... तेज बेटा... झड़वा मुझे।"
मैं घुटनों पर। जीभ लगाई चूत पर। क्लिट चाटा – नरम, मीठा। "मम्मी... तेरी चूत का रस... अमृत।" जीभ अंदर-बाहर। उंगली संग। १५ मिनट चाटा। मम्मी चादर मुट्ठी में – "आह... चूस बेटा... चूत चूस! सालों की भूख... मिट रही। ओह... आ गया... झड़ रही!" पानी बहा – मीठा, गर्म। मुंह भर लिया, निगला। "स्वादिष्ट मम्मी... तेरा रस।"
अब मेरा टर्न। खड़ा किया। शर्ट-पैंट उतारी। लंड बाहर – ७ इंच लंबा, मोटा, लाल टिप से चमकता। नसें फूलीं। मम्मी बैठीं, आँखें बड़ी – "ईश्वर... इतना विशाल! पकड़ूँ?" हाथ लगाया – गर्म, सख्त। हिलाया हल्का। "बेटा... कितना मोटा... मुंह फट जाएगा।" फिर घुटनों पर। चूमा टिप पर – "उम्म... नमकीन... बेटे का लंड।" मुंह में लिया – आधा अंदर। जीभ घुमाई, चूसी। लार टपक। "मम्मी... चूस मजबूत... गले तक ले।" सिर पकड़, धक्का दिया। गला फुला। "हाँ बेटा... मुंह चोद... रंडी मम्मी को सजा दे। गंदा बोल... उत्तेजित होती।" मैंने १० मिनट मुंह चोदा। आँसू आ गए उसके – लेकिन न रुकी। "बस मम्मी... अब चूत में डाल।"
बेड पर लिटाया। पैर फैलाए – चूत खुली, गीली। लंड टिप चूत पर रगड़ा – स्लाइड। "डाल बेटा... भर दे मम्मी को!" धक्का – टिप अंदर। टाइट। "आह... दर्द... धीरे!" मैं रुका, चुंबन किया – होंठ, गर्दन, चूचियाँ। फिर धीरे पूरा धक्का – अंदर। "ओह... भरा हुआ... कितना गहरा... पापा का सपना था!" पेलना शुरू – धीरे-धीरे। थप थप। बेड हिला। "मम्मी... तेरी चूत... बेटे का लंड निचोड़ रही। कितनी टाइट!" वो – "हाँ राजू... चोद मम्मी को... भूख मिटा। तेज बेटा... फाड़ दे!" स्पीड बढ़ाई। पसीना टपक। हाथ चूचियों पर – दबाया। पोजिशन चेंज – मम्मी ऊपर। सवार हुई। लंड अंदर, उछलने लगी। "आह... कंट्रोल मेरा... देख बेटा!" चूचियाँ उछल रही। मैं नीचे से धक्के – "उछल मम्मी... रंडी की तरह!" १० मिनट। फिर डॉगी – गांड ऊपर। थप्पड़ मारा – लाल निशान। "मार बेटा... गांड पर... सजा दे सालों की भूख की!" लंड अंदर, चोदा। गांड पकड़, तेज। दरार में उंगली। "ओह... गांड भी... लेकिन बाद में।" २० मिनट। "झड़ रहा मम्मी... बाहर?" वो पलटी, मुंह खोला – "मुंह में... पी लूँ बेटे का दूध!" मैं बाहर निकाला, मुंह पर झाड़ा। गर्म वीर्य – चेहरे पर, होंठों पर। वो चाटी – "उम्म... मीठा... गाढ़ा।"
सुबह तक चुदाई का सिलसिला। किचन में – मम्मी झुककर, साड़ी ऊपर, पीछे से चोदा। "आह... चाय बनाते हुए... लंड अंदर!" बाथरूम में – नहाते, शावर के नीचे। "बेटा... साबुन लगाकर चोद।" वीडियो बनाए – फोन पर। "ये रखेंगे... जब अकेले हों।" पापा लौटे, लेकिन राज छुपा। रातें गुप्त – कभी हॉल में, पापा सोते हुए पास। कभी खेत के पीछे, रात के अंधेरे में। "बेटा... फिर चोद... भूख कभी न मिटेगी।" मम्मी की आग बनी रही, सिलसिला चलता – बिना किसी टूट के।
Fuckuguy
albertprince547;
Like Reply


Messages In This Thread
RE: मस्तराम का चेला : सीरीज - by Fuckuguy - 07-11-2025, 06:41 PM



Users browsing this thread: 1 Guest(s)