06-11-2025, 11:25 AM
रिया की रागिनी: वर्जित वासना की रसीली राग
नमस्कार दोस्तों, मैं हूँ रिया। उम्र अभी मुश्किल से अठारह की, लेकिन मेरी जिंदगी में जो कुछ हुआ, वो किसी पुरानी हॉरर मूवी से कम नहीं। मैं एक छोटे से शहर की रहने वाली हूँ, जहाँ हर गली में राज़ छिपे रहते हैं। मेरा घर साधारण सा है – पापा एक सरकारी क्लर्क, माँ घर संभालती हैं, दादाजी रिटायर्ड हैं और ऊपर वाला कमरा मामा का है जब वो आते हैं। लेकिन ये कहानी मेरी है, मेरी आहों की, मेरी सिसकियों की, और उन लम्हों की जब मेरी कोमल देह पहली बार किसी लालची नजरों का शिकार बनी। ये दास्तान है धोखे की, वासना की, और उस आग की जो एक बार सुलग जाए तो सब जला दे। सुनिए, बिना रुके, बिना शरमाए। इस बार, हर चुदाई को और गहराई से महसूस करिए – हर धक्के, हर सिसकी, हर गीलेपन को।
उस शाम की बात है। बारिश हो रही थी, घर में सन्नाटा। माँ मायके गई हुई थीं, दादाजी सो रहे थे। मैं पढ़ाई कर रही थी, लेकिन मन कहीं और था। पापा अचानक कमरे में आए। "रिया बेटा, तू थक गई लग रही है। आ, मालिश करा दूँ तुझे।" उनकी आवाज में वो नरमी थी जो हमेशा होती, लेकिन आँखों में कुछ और – एक भूखी चमक। मैंने हामी भर ली। बिस्तर पर लेट गई, कॉलेज की यूनिफॉर्म अभी भी पहने हुए – सफेद शर्ट, नीली स्कर्ट, जो मेरी जवान उम्र को और उभार रही थी। पापा ने मेरे कंधों पर हाथ फेरना शुरू किया। उनके उँगलियों का स्पर्श गर्म था, जैसे कोई आग छू रही हो। "आराम से बेटा, पापा सब ठीक कर देंगे। तेरा शरीर कितना नाजुक है, जैसे फूल की पंखुड़ियाँ।"
धीरे-धीरे उनके हाथ नीचे सरकने लगे। मेरी कमर पर रुके, फिर धीरे से जाँघों की ओर। मैं सिहर उठी, एक अजीब सी कँपकँपी दौड़ गई। "पापा, ये क्या? हाथ ऊपर रखो ना।" लेकिन वो मुस्कुराए, उनकी साँसें मेरे कान पर गर्म हवा छोड़ रही थीं। "चुप बेटा, ये तो मालिश है। तू बड़ी हो गई, शरीर में दर्द होता है ना? पापा तुझे राहत देंगे।" उनका एक हाथ मेरी स्कर्ट के अंदर घुस गया, धीरे से पैंटी के किनारे को छूते हुए। मैं चौंक गई, लेकिन उनकी उँगलियाँ इतनी चिकनी और गर्म थीं कि शरीर जकड़ गया, जैसे बिजली का झटका लगा हो। "पापा... ना... ये गलत है... आह..." लेकिन वो नहीं रुके। उन्होंने मेरी पैंटी को साइड में किया, और उँगली से मेरी चूत की दरार को सहलाना शुरू कर दिया। वो नरम, गुलाबी चूत अभी कभी छुई न गई थी, लेकिन उनकी उँगली ने जैसे जादू कर दिया – वो गीली हो गई, रस टपकने लगा। "अरे बेटा, देख तेरी चूत कितनी रसीली है। तू तो जवान हो गई, ये तो पानी छोड़ रही है। तुझे अच्छा लग रहा है ना? पापा तुझे खुश करने के लिए कर रहा हूँ। सिसकारी ले बेटा, छोड़ दे शर्म।"
मैं डर गई, लेकिन शरीर साथ ना दे रहा था। मेरी साँसें तेज हो गईं, छाती ऊपर-नीचे हो रही। "आह... पापा... मत... ओह्ह... वहाँ मत छुओ... उफ्फ..." वो हँसे, उनकी हँसी में वासना की गूँज थी। उन्होंने अपनी पैंट उतारी। उनका लंड बाहर आ गया – मोटा, काला, नसों से भरा, सिरा लाल और चमकदार, जैसे कोई जंगली जानवर। मैंने कभी ऐसा देखा न था, आँखें फैल गईं। "पापा, डर लग रहा है... ये इतना बड़ा... मत डालो ना।" लेकिन वो मेरी टाँगें फैला बैठे, घुटनों से दबा कर। "चुप बेटा, बस एक मिनट। पापा अंदर डाल देगा, दर्द नहीं होगा। पहले थोड़ा रगड़ लूँगा।" उन्होंने लंड का सिरा मेरी चूत पर रगड़ा, ऊपर-नीचे, गीले रस से चिकना करते हुए। हर रगड़ पर मेरी चूत सिकुड़ रही, एक मीठी जलन हो रही। "ओह्ह रिया... तेरी चूत कितनी गर्म है... पापा का लंड तड़प रहा।"
फिर... धक्का। उनका लंड मेरी कोमल चूत में घुसा, जैसे कोई तीर नरम मांस में चुभा हो। "आआआह्ह्ह! पापा... दर्द हो रहा है... निकालो ना... फट गई मैं... ओह्ह गॉड..." मैं चीखी, आँसू आ गए, नाखून बिस्तर में गड़ गए। लेकिन वो नहीं रुके। धीरे-धीरे अंदर धकेला, चूत की दीवारों को फैलाते हुए। "अरे बेटा, रुको। थोड़ा रगड़ो तो, तेरा रस तो बह रहा है।" अब लंड पूरी तरह अंदर था, मेरी चूत को भरते हुए, गर्भाशय को छूते हुए। वो पीछे खींचे, फिर जोर से अंदर – धक्-धक्। तेज, गहरा। हर धक्के पर चाप-चाप की आवाज, मेरी चूत का रस लंड पर चिपक रहा। "उफ्फ... रिया... तेरी चूत कितनी टाइट है... पापा का लंड फट जाएगा... आह्ह... हाँ... ऐसे ही चूड़... तेरी दीवारें लंड को निचोड़ रही... ओह्ह बेटा... मम्मा..." उनकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, पसीना टपक रहा, मेरी जाँघों पर गिर रहा।
मैं रो रही थी, लेकिन धीरे-धीरे दर्द में एक अजीब सुख मिलने लगा। चूत के अंदर वो घर्षण, वो गर्मी... "ओह्ह... पापा... धीरे... आह्ह... हाँ... वहाँ... और गहरा... उफ्फ... पापा का लंड... मेरी चूत को भरा हुआ... आह्ह्ह..." मेरी चूत गीली हो गई, रस बहने लगा, लंड आसानी से सरकने लगा। वो मेरी चूचियाँ दबाने लगे, शर्ट के ऊपर से निप्पल को मसलने लगे। फिर शर्ट खोली, ब्रा ऊपर की, और नंगे चूचियों को मुंह में लिया। "मम्म्म... तेरी चूचियाँ कितनी मुलायम... गुलाबी निप्पल... चूसूँगा मैं इन्हें रोज... चबाऊँगा... आह्ह... दूध निकाल दूँगा।" उनकी जीभ निप्पल पर घूम रही, चूसते हुए खींच रहे, दांतों से काट रहे हल्के-हल्के। मैं पागल हो गई, कमर उभाड़ने लगी। "आह्ह्ह... पापा... चूसो... दर्द दो... ओह्ह... चूत में और तेज... चोदो मुझे जोर से... हाँ... फक मी पापा... आह्ह... कमिंग... ओह्ह्ह..."
पंद्रह मिनट चली वो चुदाई। पापा ने स्पीड बढ़ाई, लंड को घुमाया चूत के अंदर, दीवारों को रगड़ा। मेरी चूत सिकुड़ने लगी, ऑर्गेज्म आया – शरीर काँप गया, रस छूटा। "आआआह्ह्ह... पापा... मैं... उफ्फ... बह गया..." वो भी चरम पर। "हाँ बेटा... लो... पापा का गरम रस... तेरी चूत में उंडेल रहा... भर ले... ओह्ह... सिस्स्स..." बीज फूटा, गर्म, चिपचिपा, चूत को भर दिया। लंड बाहर निकाला तो रस टपक रहा था। वो उठे, चूमे मेरे होंठ, जीभ डाली। "ये हमारा राज रहेगा। रोज ऐसा करेंगे, बेटा। तेरी चूत अब पापा की है।" मैं हाँफ रही थी, शरीर काँप रहा। रात भर नींद न आई। मेरी चूत में वो दर्द, वो गीलापन, वो सुख... सब कुछ बदल गया।
अगले हफ्ते कॉलेज में। मेरी दोस्त नेहा ने कहा, "रिया, आज मेरे घर चल। मेरा बॉयफ्रेंड आएगा, पार्टी है।" मैं गई, पापा की यादें अभी ताजा। नेहा किचन में चाय बना रही थी, और राहुल – नेहा का बीएफ – सोफे पर बैठा। लंबा, हैंडसम, मसल्स दिखते हुए। नेहा ने कहा, "रिया, तू राहुल से बात कर, मैं आती हूँ।" वो चली गई। राहुल मुस्कुराया, आँखों में शरारत। "रिया, तू कितनी क्यूट है। नेहा तो बोझ है, तू जैसी हो तो मजा आए। तेरी आँखें तो चूत की तरह गहरी लग रही।"
वो करीब आया, हाथ मेरी जाँघ पर रखा, धीरे से ऊपर सरकाया। "राहुल, क्या कर रहे हो? नेहा आएगी तो?" लेकिन मेरी चूत फिर गीली हो गई, पापा की याद आई, वो जलन। "अरे, बस छू रहा हूँ। तुझे अच्छा लगेगा, देख तेरी साँसें तेज हो गईं।" वो मुझे किस करने लगा। होंठ चूसे, नरम लेकिन जोर से, जीभ अंदर डाली, मेरी जीभ से लिपटा। "मम्म्म... रिया... तेरी साँसें कितनी हॉट... स्वादिष्ट... चूसूँगा तुझे पूरा।" मैं पिघल गई, हाथ उसके बालों में। "आह... राहुल... और गहरा... ओह्ह..." उसने मेरी शर्ट खोली, ब्रा उतारी। चूचियाँ नंगा कर, निप्पल को जीभ से चाटा, फिर मुंह में लिया। "ओह्ह... ये तो सॉफ्ट आइसक्रीम हैं... चाटूँगा इन्हें... मम्मा... निप्पल सख्त हो गया... काटूँ?" दांतों से कसा, हल्का दर्द, लेकिन सुख। मैं सिसकी, "आह्ह... राहुल... चूसो... दूध निकालो... उफ्फ..."
मैंने उसका लंड पकड़ा – पैंट के ऊपर से, सख्त, पापा से बड़ा, लंबा। "राहुल... ये तो बहुत मोटा है... अंदर कैसे जाएगा? डर लग रहा।" वो हँसा, पैंट उतारी। लंड बाहर – नसें फूली, सिरा चमकदार। "चल, देखते हैं। पहले चूस ले तू।" मुझे घुटनों पर बिठाया, लंड मुंह में डाला। "ओह्ह रिया... तेरी जीभ... लंड पर घुमा... हाँ... चूस... मम्मा... गले तक ले..." मैं चूसी, लार टपकाई, ऊपर-नीचे। पाँच मिनट बाद, वो मुझे लिटाया। "अब तेरी बारी।" पैंट उतारी, चूत पर लंड रगड़ा। "गीली हो गई ना साली? रेडी है चुदाई के लिए। देख, रस टपक रहा।" धक्का मारा, आधा लंड अंदर। "आआआह्ह्ह! राहुल... फट गई मैं... धीरे भोसड़ी... ओह्ह... बड़ा है... चूत फैल गई..." लेकिन वो पूरा धकेला, गर्भाशय छुआ। "उफ्फ... रिया... तेरी चूत नेहा से बेहतर... टाइट... गर्म... अब चोदता हूँ।"
तेज धक्के शुरू। धक्-धक्, हर बार गहरा। चाप-चाप की आवाज, रस उछल रहा। "हाँ रिया... चूड़ता हूँ तुझे... तेरी दीवारें लंड को चिपक रही... आह्ह... मरोड़ चूत... ओह्ह... फक... स्पीड... हाँ..." मैं चिल्लाई, कमर उभाड़ी। "आह्ह... राहुल... और जोर... चोदो... मेरी चूत जल रही... ओह्ह... निप्पल चूसो साथ में... मम्मा..." वो झुका, चूचियाँ चूसीं, काटीं। चुदाई लंबी चली – दस मिनट मिशनरी, फिर डॉगी स्टाइल। मुझे घुटनों पर किया, पीछे से लंड डाला। "पटाक-पटाक" की आवाज, गांड पर थप्पड़। "ओह्ह रिया... तेरी गांड कितनी गोरी... गोल... एक दिन चोदूँगा इधर भी... उँगली डालूँ?" उँगली डाली गांड में, चूत में लंड। डबल अटैक। "आआआह्ह्ह... राहुल... गांड में... दर्द... लेकिन अच्छा... चोदो दोनों... उफ्फ... कमिंग... ओह्ह्ह... रस छूटा..." मेरा ऑर्गेज्म आया, चूत सिकुड़ी, लंड को निचोड़ा। वो भी। "हाँ... लो... नेहा के बीएफ का माल... गरम बीज... तेरी चूत भर... सिस्स्स... आह्ह..." बीज फूटा, बाहर टपका। नेहा आई तो हम नॉर्मल। लेकिन मेरी चूत फिर जल रही थी। अब रोज की लत लग गई।
फिर एक दिन, बगल के अंकल – शर्मा अंकल, ४५ साल के, विधुर, पेट पर थोड़ा तेल – घर आए। "रिया बेटा, तेरे पापा को दवा देना था।" पापा बाहर थे। मैंने चाय दी। वो बैठे रहे, नजरें मेरी चूचियों पर। "रिया, तू बड़ी हो गई। शादी का ख्याल है? अंकल जैसा कोई चाहिए?" उनकी हँसी गंदी। "अंकल, हँसी हो रही है।" लेकिन वो उठे, मुझे दीवार से सटा लिया। "अरे बेटा, अंकल तुझे सिखाएँगे जिंदगी का असली मजा। तेरी कमर कितनी पतली, चूचियाँ कितनी भरी।"
मुझे किस किया, दाढ़ी रगड़ रही गालों पर। "मत अंकल... कोई देख लेगा... आह..." "चुप, दरवाजा बंद है। पहले चूचियाँ देखूँ।" शर्ट खोली, ब्रा नीचे की, चूचियाँ नंगा। निप्पल चूसे, जीभ घुमाई। "मम्मा... कितनी रसीली... अंकल का लंड खड़ा हो गया... चूसूँगा पूरा... उफ्फ... निप्पल कठोर... काटूँ?" दांत लगाए, चूसा जोर से। मैं सिहर उठी। "ओह्ह अंकल... दर्द... लेकिन... आह्ह... चूसो..." उनका हाथ चूत पर। पैंटी में उँगली। "गीली है बेटा... रस बह रहा। अंकल का लंड तैयार।" उनका लंड छोटा लेकिन मोटा, जैसे कोई हथौड़ा। पैंट उतारी, चूत पर रगड़ा। "अंदर... लेकिन धीरे अंकल... आह्ह..."
बेड पर लिटाया। लंड धकेला, चूत फैली। "उफ्फ... रिया... तेरी चूत जन्नत है... गर्म, नरम... चोदूँगा रोज... धक्... आह्ह... हाँ... ऐसे ही मरोड़... तेरी दीवारें मोटे लंड को चिपका रही... ओह्ह..." धक्के मध्यम, लेकिन गहरे। हर बार गर्भाशय मारा। चाप-चाप, रस की ध्वनि। "आह्ह अंकल... आपका लंड... मेरी चूत को भरा... उफ्फ... और तेज... चोदो बेटी को... ओह्ह... चूचियाँ दबाओ..." वो दबाए, मसले। चुदाई में उन्होंने मुझे ऊपर बिठाया। मैं उछलने लगी, लंड पर चढ़ी। "हाँ बेटा... चोद अंकल को... ऊपर-नीचे... तेज... पटाक... तेरी गांड हिल रही... मम्मा..." मेरी सिसकियाँ: "ओह्ह अंकल... आपका लंड मेरी गर्भाशय को छू रहा... आह्ह... जोर से थप्पड़ मारो गांड पर... फक मी हार्ड... उफ्फ... कमिंग... आह्ह्ह..." आधा घंटा चला। गांड में उँगली डाली, घुमाई। "एक दिन इधर भी लूँगा, बेटा।" फिर बीज। "लो... अंकल का प्यार... गरम, चिपचिपा... भर ले चूत... सिस्स..." मैं थक गई, लेकिन चूत संतुष्ट। अब पड़ोसी का राज भी जुड़ गया।
घर में दादाजी। रिटायर्ड, लेकिन आँखें तेज, हाथ काँपते लेकिन वासना भरे। एक रात, मैं नहा रही थी। दरवाजा खुला छूट गया। दादाजी अंदर। "दादाजी! बाहर जाओ! शरम आ रही।" लेकिन वो घूरते रहे, धीरे नंगा हुए। उनका लंड बूढ़ा लेकिन सख्त, सफेद बाल। "बेटी, तू तो नंगी परी लग रही। दादाजी को छू ले, आशीर्वाद दूँगा।" मैं शरमाई, तौलिया लपेटा। लेकिन वो खींच लिया। "दादाजी... ये पाप है... मत..."
मुझे तौलिये में लपेटा, बेडरूम ले गए। दरवाजा बंद। "लेट बेटी, दादाजी तुझे चूमेंगे। पहले चूचियाँ।" चूचियाँ चूसीं, धीरे-धीरे, जीभ से चाटीं। "मम्म... कितनी स्वादिष्ट... दादाजी का मुंह गीला कर दिया... निप्पल चूसूँ... आह्ह... जवान चूचियाँ..." फिर नीचे। चूत चाटीं, जीभ अंदर डाली। "ओह्ह... रिया... तेरा रस मीठा... चाटूँगा पूरा... उफ्फ... क्लिट चूसूँ..." उनकी जीभ क्लिटोरिस पर घूमी, चूसी। मैं पागल। "आह्ह दादाजी... आपकी जीभ... ओह्ह... अंदर... चूत जल रही... मम्मा... सिस्स..." लंड डाला, धीरे। "उफ्फ... रिया... तेरी चूत युवा है... दादाजी का लंड तरोताजा हो गया... धक्का... आह्ह... चोदो मुझे दादा... हाँ... गहरा... लेकिन धीरे... ओह्ह..."
चुदाई धीमी लेकिन गहरी। हर धक्का लंबा, चूत की गहराई छूता। "हाँ पोती... तेरी चूत दादाजी को जवान बना रही... मरोड़... आह्ह... चूचियाँ सहलाऊँ..." हाथ चूचियों पर। मैं सिसकी, "आह्ह... दादा... आपका लंड... मेरी चूत को सहला रहा... उफ्फ... गांड सहलाओ..." वो सहलाए, उँगली डाली। "ओह्ह... दर्द... लेकिन अच्छा... घुमाओ... आह्ह... तेज करो धक्के... कमिंग दादा..." बीस मिनट बाद, उनका बीज। "लो पोती... दादाजी का दूध... पुराना लेकिन गरम... भर ले... ओह्ह..." मैं रोई, लेकिन चूत संतुष्ट। परिवार अब पूरा हो गया।
एक शाम, मैं घर लौटी। माँ का कमरा बंद। अजीब आवाजें। "आह्ह... भाई... और जोर से... चोद अपनी बहन को... फाड़ दे चूत... ओह्ह..." मैं झाँका। माँ नंगी, कमर झुकाए, मामा पीछे से लंड ठोक रहे। मामा – माँ के भाई – मोटा लंड, जोर-जोर से धक्के। "दीदी... तेरी चूत आज भी टाइट... उफ्फ... चोदूँगा तुझे हमेशा... पटाक... तेरी गांड मारूँ... आह्ह... हाँ... स्पीड... ओह्ह मामा जी... गहरा... क्लिट रगड़ो..." माँ चिल्ला रही, चूचियाँ लटक रही, झूल रही। मामा ने उनकी चूचियाँ पीछे से पकड़ीं, दबाईं। "मम्म... दीदी के निप्पल... चूसूँगा... उफ्फ... तेरी चूत रस छोड़ रही... चाप-चाप..." चुदाई लंबी – डॉगी से मिशनरी। माँ ऊपर आईं, उछलीं। "फट गई दीदी... तेरा रस बह रहा... कमिंग भाई... आह्ह्ह..." मामा ने बीज उंडेला। "लो दीदी... भाई का रस... भर ले..."
मैं स्तब्ध। लेकिन मेरी चूत गीली। रात को मामा आए। "रिया, तूने देखा? चुप ना रह।" "हाँ मामा... लेकिन... उत्तेजित हो गई।" वो मुस्कुराए। "तो आ, तू भी शामिल हो। माँ जैसी चुदाई।" मुझे किस किया, जीभ लिपटाई। "मामा... माँ जैसी?" "बेटर, जवान।" शर्ट उतारी, चूचियाँ चूसीं। "ओह्ह रिया... तेरी तो जवान हैं... सख्त... मामा का लंड खड़ा... चूसूँगा... मम्मा... निप्पल काटूँ..." फिर चूत चाटी। "गीली भतीजी... रस मीठा... जीभ अंदर... आह्ह..."
बेड पर लिटाया। लंड चूत पर रगड़ा, सिरा दरार में। "तैयार है मामा के लिए।" धक्का। पूरा अंदर। "आआआह्ह्ह! मामा... बड़ा है आपका... फाड़ दिया... ओह्ह... चोदो... धीरे पहले..." तेज धक्के। "हाँ रिया... तेरी चूत माँ से सॉफ्ट... गर्म... उफ्फ... चोदूँगा तुझे और माँ को साथ... धक्-धक्... मरोड़... हाँ... फक मी मामा... आह्ह... चूचियाँ चूसो..." वो चूसे, काटे। चुदाई एक घंटे – मिशनरी, काउगर्ल, डॉगी। पीछे से: "तेरी गांड... उँगली... एक दिन लंड... ओह्ह..." माँ आईं, देखा। "रिया... तू भी? आ माँ, साथ।" तीनों नंगे। मामा ने माँ को चोदा, मैं चूचियाँ चूसीं। माँ: "आह्ह... रिया... चूस माँ की... मामा चोदो..." मैं: "ओह्ह... मामा... मेरी चूत में डालो..." ग्रुप चुदाई। मामा का लंड बारी-बारी। "आह्ह... परिवार का मजा... कमिंग सब... ओह्ह्ह..." बीज बँटा, सब पर।
अंत: आग का अंत नही, नई शुरुआत
अब घर में राज खुल गया। पापा, दादाजी, मामा, अंकल, राहुल – सबकी बारी। मैं रिया, अब वासना की गुलाम। हर रात चुदाई, हर सुबह नई आहें – धक्के, सिसकियाँ, रस। लेकिन सुकून है। धोखा धोखे में बदला, और चूत की प्यास बुझ गई। कौन जानता, कल कौन सा लंड आएगा? लेकिन मैं तैयार हूँ, गीली। आह्ह... बस इतना ही, बाकी कल। वासना कभी खत्म नही होती।
Fuckuguy
albertprince547;
albertprince547;


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