05-11-2025, 11:33 PM
मनोहर ने राजेश की ओर देखा, उसकी आंखों में एक चमक थी जो मोमबत्ती की लौ से और गहरी लग रही थी। 'साहब, ये गीले कपड़े बदल लो,' उसने गहरी, खरखराती आवाज में कहा, जैसे शब्द हवा में लटक जाएं। 'बारिश ने तो भिगो ही दिया है, बीमारी न हो जाए।' कमरे की नमी भरी हवा में उसकी बात गूंजी, और सौम्या को लगा जैसे दीवारें सुन रही हों, इंतजार कर रही हों अगले पल का।
राजेश ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, 'नहीं मनोहर जी, हमारे पास कोई सूखे कपड़े नहीं हैं। हम तो बस रास्ते में रुक गए थे, कुछ सोचा भी नहीं था।' उसकी आवाज थकी हुई थी, लेकिन कृतज्ञता से भरी। वह सौम्या की ओर देखा, जो खिड़की के पास खड़ी थी, परदे को हल्के से छू रही थी, जैसे बाहर की बारिश को महसूस कर रही हो।
मनोहर की होंठों पर मुस्कान फैल गई – ठंडी, रहस्यमयी, जैसे कोई पुराना राज खुलने वाला हो। 'चिंता मत करो साहब,' उसने कहा, और उसकी आंखें सौम्या पर ठहर गईं, उसके गीले साड़ी से चिपके शरीर को स्कैन करती हुईं। 'मेरे पास बहुत सारे कपड़े हैं। पुराने मालिकों के, अच्छे-अच्छे। मैं अभी लाता हूं।' वह हंस पड़ा, लेकिन हंसी में कोई खुशी नहीं थी, बल्कि एक गहरा, दबी हुई ध्वनि जो कमरे की शांति को चीर गई। सौम्या को लगा जैसे वह हंसी उसके कानों में घुस रही हो, उसके मन को छू रही हो।
राजेश ने राहत की सांस ली। 'धन्यवाद मनोहर जी, आपने बहुत उपकार किया।' वह जेब से दो हजार रुपये निकालकर मनोहर की ओर बढ़ाया, नोटों की सरसराहट कमरे में फैल गई। लेकिन मनोहर ने हाथ पीछे खींच लिया, उसकी उंगलियां कांप रही थीं – उत्तेजना से या ठंड से, सौम्या समझ नहीं पाई। 'नहीं साहब, पैसे नहीं लूंगा,' उसने दृढ़ता से कहा, लेकिन आंखें सौम्या पर टिके हुए। 'तुम मेहमान हो। और...' वह रुका, सौम्या को घूरते हुए, '...इसे देखकर तो मेरा फर्ज है कि मैं स्वागत करूं, और संतुष्ट करूं। पूरी तरह।' शब्दों में एक छिपी धमकी थी, एक वादा जो हवा में तैर गया। फिर वह जोर से हंस पड़ा, उसके पीले दांत चमक उठे – सड़े हुए, लेकिन भूखे लगने वाले, जैसे कोई जानवर दहा रहा हो। हंसी दीवारों से टकराई, वापस लौटी, और सौम्या के शरीर में कंपकंपी दौड़ा दी।
सौम्या को अजीब लगा, उसके गाल गर्म हो गए। मनोहर की नजरें उसके स्तनों पर ठहर गईं, जहां ब्लाउज गीला होकर चिपक गया था, निप्पल्स की रूपरेखा साफ दिख रही थी। वह असहज होकर नजरें हटा लीं, ध्यान परदे की ओर मोड़ लिया। बाहर बारिश की बूंदें तेज हो रही थीं, लेकिन अंदर की ठंडक उसके शरीर को जकड़ रही थी। वह सोच रही थी, यह जगह क्यों इतनी अजीब लग रही है? मनोहर की हंसी अभी भी उसके कानों में गूंज रही थी, और कमरे की नमी भरी गंध अब और तीखी हो गई लग रही थी – जैसे कोई पुराना इत्र, मादक, जो उसके मन को भटका रहा हो। राजेश कुछ कहने लगा, लेकिन सौम्या की नजर आईने पर चली गई, जहां एक धुंधली परछाईं हिल रही थी। क्या वह उसकी अपनी? या कुछ और? मनोहर दरवाजे की ओर बढ़ा, लेकिन जाते-जाते फिर सौम्या को देखा, मुस्कान उसके चेहरे पर ठहर गई। रात अभी शुरू हुई थी, और रहस्य गहरा हो रहा था।
राजेश ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, 'नहीं मनोहर जी, हमारे पास कोई सूखे कपड़े नहीं हैं। हम तो बस रास्ते में रुक गए थे, कुछ सोचा भी नहीं था।' उसकी आवाज थकी हुई थी, लेकिन कृतज्ञता से भरी। वह सौम्या की ओर देखा, जो खिड़की के पास खड़ी थी, परदे को हल्के से छू रही थी, जैसे बाहर की बारिश को महसूस कर रही हो।
मनोहर की होंठों पर मुस्कान फैल गई – ठंडी, रहस्यमयी, जैसे कोई पुराना राज खुलने वाला हो। 'चिंता मत करो साहब,' उसने कहा, और उसकी आंखें सौम्या पर ठहर गईं, उसके गीले साड़ी से चिपके शरीर को स्कैन करती हुईं। 'मेरे पास बहुत सारे कपड़े हैं। पुराने मालिकों के, अच्छे-अच्छे। मैं अभी लाता हूं।' वह हंस पड़ा, लेकिन हंसी में कोई खुशी नहीं थी, बल्कि एक गहरा, दबी हुई ध्वनि जो कमरे की शांति को चीर गई। सौम्या को लगा जैसे वह हंसी उसके कानों में घुस रही हो, उसके मन को छू रही हो।
राजेश ने राहत की सांस ली। 'धन्यवाद मनोहर जी, आपने बहुत उपकार किया।' वह जेब से दो हजार रुपये निकालकर मनोहर की ओर बढ़ाया, नोटों की सरसराहट कमरे में फैल गई। लेकिन मनोहर ने हाथ पीछे खींच लिया, उसकी उंगलियां कांप रही थीं – उत्तेजना से या ठंड से, सौम्या समझ नहीं पाई। 'नहीं साहब, पैसे नहीं लूंगा,' उसने दृढ़ता से कहा, लेकिन आंखें सौम्या पर टिके हुए। 'तुम मेहमान हो। और...' वह रुका, सौम्या को घूरते हुए, '...इसे देखकर तो मेरा फर्ज है कि मैं स्वागत करूं, और संतुष्ट करूं। पूरी तरह।' शब्दों में एक छिपी धमकी थी, एक वादा जो हवा में तैर गया। फिर वह जोर से हंस पड़ा, उसके पीले दांत चमक उठे – सड़े हुए, लेकिन भूखे लगने वाले, जैसे कोई जानवर दहा रहा हो। हंसी दीवारों से टकराई, वापस लौटी, और सौम्या के शरीर में कंपकंपी दौड़ा दी।
सौम्या को अजीब लगा, उसके गाल गर्म हो गए। मनोहर की नजरें उसके स्तनों पर ठहर गईं, जहां ब्लाउज गीला होकर चिपक गया था, निप्पल्स की रूपरेखा साफ दिख रही थी। वह असहज होकर नजरें हटा लीं, ध्यान परदे की ओर मोड़ लिया। बाहर बारिश की बूंदें तेज हो रही थीं, लेकिन अंदर की ठंडक उसके शरीर को जकड़ रही थी। वह सोच रही थी, यह जगह क्यों इतनी अजीब लग रही है? मनोहर की हंसी अभी भी उसके कानों में गूंज रही थी, और कमरे की नमी भरी गंध अब और तीखी हो गई लग रही थी – जैसे कोई पुराना इत्र, मादक, जो उसके मन को भटका रहा हो। राजेश कुछ कहने लगा, लेकिन सौम्या की नजर आईने पर चली गई, जहां एक धुंधली परछाईं हिल रही थी। क्या वह उसकी अपनी? या कुछ और? मनोहर दरवाजे की ओर बढ़ा, लेकिन जाते-जाते फिर सौम्या को देखा, मुस्कान उसके चेहरे पर ठहर गई। रात अभी शुरू हुई थी, और रहस्य गहरा हो रहा था।


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