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Adultery बदलाव, मजबूरी, सेक्स और जीवन या रोमांस.....
#1
यह कहानी है एक परिवार और एक अंजान से आदमी की, और बदलाव की, पात्रों का परिचय आगे मिलता रहेगा... आगे कहानी का प्लॉट अगर रोचक लगेगा तो कमेंट जरूर करें।

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“राहुल से फिर से उधार मांगना कितना ठीक रहेगा?” आरोही ने अपनी सास और जेठानी परिधि से पूछा। “पहले ही उसके 5 लाख हो चुके हैं, यह तो तब है जब उसने दवा से लेकर दूसरी चीजों के पैसों को लेकर कुछ नहीं कहा है।” आरोही ने आगे कहा।


“हाँ तुम्हारी बात तो ठीक है, लेकिन इस अचानक आई आफत के समय क्या कर सकते थे। किसी और से उधार मागकर देखा तो था सबने मजबूरी का फायदा उठाना चाहा। गहने जेवर तो भी तो इतने नहीं हैं कि बेच दें तो कुछ दिन चलें।” परिधि ने कहा।

“लेकिन बेटा राहुल के ही भरोसे रहना नहीं ठीक है। कुछ करना पड़ेगा। एक बेटा तो खो चुकी हूँ। दूसरा लाचार हो चुका है। अब कैसे घर चलेगा यह समझना मुश्किल है।” उन दोनों की सास इंद्रावती ने कहा।

यहाँ राहुल और इस परिवार परिचय जान लेना आवश्यक है कि राहुल इन लोगों का किराएदार था। जो इसी बिल्डिंग के इनके सामने के दूसरे फ्लैट में रहता था। राहुल पिछले एक साल से यहाँ रह रहा था। और उसका अपना शेयर और कल्सल्टेंसी का काम था, या पता नहीं क्या था कोई नहीं जानता था। जिसे वह वहीं रहते हुए करता था।

यह दोनों फ्लैट अमित और सुमित नाम के दो भाईयों के थे। आरोही और परिधि इनकी बीबीयाँ थीं। सुमित बड़ा था और उसकी बीबी का नाम परिधि था और अमित छोटा था उसकी बीबी का नाम आरोही था।

दोनों ही कमाल की खूबसूरत थीं। मध्य आकार के चूतड़ बिल्कुल आपसे में चिपके हुए और उनके ओंठ बिल्कुल रसीले की चूसते-चूसते किसी का जी ना भरे। उन दोनों की ही चूँचियाँ एकदम साइज की थीं। दोनों ही को देखकर कई लोग इन्हें भोगना चाहते थे।

परिधि को हाल ही में एक बच्चा हुआ था वह करीब 3 महीने का था। लेकिन मोटापा या चूचियों का ढलक जाना बिल्कुल नहीं हुआ। दोनों बिल्कुल टीवी एक्ट्रेस की तरह दिखती थीं। दोनों ही चूड़ीदार पहनने पर गजब ही ढा देतीं थीं। गाँड़ देखने के लिए राह चलते लोग जुगाड़ लगाते।


दोनों की ही अरेंज मैरिज हुई थी। इनकी सेक्स लाइफ सामान्य थी। मतलब पति आते इनकी टांगों को कंधे पर रखते और अपनी लिंग खाली करके सो जाते।

इनको भी सेक्स के प्रति आकर्षण भी सामान्य मध्य-वर्गीय औरतों के जैसा हो गया था इनके लिए यही सेक्स था कि टांग पसारो और धक्के खा लो। लेकिन शायद इनके जीवन में एक तूफान बाकी था।

यह एक सामान्य परिवार था निम्न से थोड़ा ऊपर मध्य-वर्ग का कहा जा सकता है। दोनों भाई इंजीनियरिंग की पढ़ाई किए थे, लेकिन जैसा थोक के भाव में इंजीनियर पैदा होने से आया है। यह दोनों सामान्य सी नौकरियाँ करते।

यह पूरा इलाका महानगर से सटा एक गांव हुआ करता था। धीरे-धीरे शहर यहाँ तक आ गया और जिस कंपाउंड में यह बिल्डिंग थी। यह अमित-सुमित का पुश्तैनी घर हुआ करता था। जिसमें बंटवारे और बिल्डर के साथ कांट्रैक्ट के बाद इनके हाथ चार फ्लैट लगे थे।

तो जैसा हमारे समाज में अचानक से आए पैसों के साथ होता है। वैसे ही चार फ्लैट मिल जाने के बाद इन दोनों भाईयों ने अपनी बीपीओ कंपनी खोली और कुछ घोटाले या स्कैम में ऐसे फंसे की इनके दो फ्लैट हाथ से जाते रहे। और इन्हें फिर से नौकरी करनी पड़ी।

इन दोनों की शादी भी हो चुकी थी। इनके पिता जी भी गुजर चुके थे। ऐसे में घर को सहारा देने के लिए इन्होंने एक फ्लैट को किराए उठा दिया। और चूँकि जिस कंपनी में दोनों काम करते थे उस कंपनी का मालिक राहुल के पहचान वाला, पहचान क्या राहुल से दबता था। तो उनके मालिक अग्रवाल जिसकी हर गारंटी लेते हों, उसे फ्लैट देने में क्या समस्या। तो इसीलिए जैसे इन्होंने पता चला राहुल को फ्लैट दे दिया।

राहुल इस शहर में अकेला रहता था। और अपनी व्यवहार कुशलता और पैसों से लोगों की मदद के लिए इनकी पूरी बिल्डिंग और कंपाउंड ही क्या आस-पास तक जाना पहचाना था। इन लोगों को किराए और अन्य चीजों को लेकर कुछ कहना ही नहीं पड़ा। राहुल ने मुँहमांगी चीजें दीं और फ्लैट की हर मरम्मत अपने अनुसार करा ली।

वैसे राहुल की पहुँच और पैसे से यह परिवार तो दबता ही था। लेकिन आस-पास भी राहुल की बहुत इज्जत और पकड़ थी। राहुल की धाक तीन घटनाओं से जमी थी।

 
एक बार कॉलोनी के अखबार बांटने वाले हॉकर रमेश को एक बार गाड़ी ने टक्कर मार दी थी। तो राहुल ने ना केवल उसकी पूरी दवा और प्लास्टर करवाया बल्कि तीन महीने तक उसके घर राशन भी पहुँचवाया था। रमेश छोटे-मोटे काम करके अपना पेट पालता था, ऐसे में राहुल उसके लिए किसी देवता से कम नहीं था।
 
इसी तरह बिल्डिंग में नीचे रहने वाले तौहीद के पिता को लकवा मार गया था। इसी बीच उसकी बहन की शादी भी तय थी। ऐसे में पैसे और सारे काम-धाम का जिम्मा राहुल ने आगे बढ़कर खुद संभाल लिया था। जबकि राहुल से तौहीद से कभी नहीं बनती थी।


जब राहुल बिल्डिंग में आया था तभी एक बार अपनी बहन से कुछ पूछता देखकर गलतफहमी के कारण तौहीद राहुल से लड़ पड़ा था। और अक्सर मौका देखकर उससे झगड़ता उसे गालियाँ देता। तौहीद को अपने ऊपर बहुत घमंड उसके बहुत सारे दोस्त हैं। और बाप के पास पेंशन है।
 
तौहीद को असलियत तब पता चली जब उसे वाकई जरूरत थी। ऐसे समय अपने किराए के फ्लैट में ही मस्त रहने वाला राहुल अचानक से वहाँ पहुँचा और उसने सारी जिम्मेदारी तौहीद के भाई के जैसे उठा ली। उसके घर वालों को तो पता ही नहीं चला कि उनके साथ कोई हादसा हुआ है। सिवाए इसके कि पिता को लकवा मारा था।

राहुल ने पैसों के साथ ही साथ अपनी अद्भुत मैनेजमेंट क्षमता से हॉस्पिटल घर और लड़के वालों तक को संभाल लिया था। चूँकि तौहीद के पिता उस समय पैसे से भी कमजोर थे। तो पैसों और घबराहट को संभालने में राहुल ने कमाल दिखा दिया।

यही चमत्कार तो था कल तक जिस राहुल से तौहीद चिढ़ता था। उसी राहुल की तौहीद अपने पिता के समान इज्जत करता था। और उसके लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार था। यहाँ तक कि अब अगर उसकी बहन राहुल के फ्लैट में मिलने या बुलाने चली जाए, तो तौहीद को बुरा क्या, सब अपने परिवार जैसा लगता था।


आस-पास के मजदूर काम वाले तो राहुल के किसी भी काम को करने के लिए दौड़े आते थे क्योंकि एक तो पैसे देने में कभी कोई मोल-तोल नहीं करता। दूसरा वह किसी को भी नुकसान नहीं पहुँचने देता क्योंकि उसे पैसों की परवाह नहीं थी।

हाँ लेकिन राहुल की एक और विशेषता थी। वह किसी से भी डरता नहीं था और सीधी कुछ हद तक रूखी बात करता था। साथ ही वह अपनी निजता और गोपनीयता में किसी को घुसने नहीं देता था। ना वह किसी के घर जाता और ना ही किसी को अपने घर बुलाता। केवल परेशानी में ही किसी के साथ दिखता था। और जैसे ही उसकी परेशानी दूर राहुल ऐसा दूर हो जाता जैसे उसने कुछ किया ही नहीं।

लेकिन अभी तीसरी घटना बाकी थी।
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बदलाव, मजबूरी, सेक्स और जीवन या रोमांस..... - by ramlal_chalu - Yesterday, 06:45 PM



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