04-11-2025, 06:01 PM
सौम्या ने कमरे को गौर से देखा। यह कमरा बहुत विशाल था, जैसे किसी राजसी महल का हिस्सा हो। बीच में एक भव्य राजसी बिस्तर खड़ा था, जिसके चारों ओर टूटे-फूटे फर्नीचर बिखरे पड़े थे – पुरानी लकड़ी की अलमारियां, जिनकी पेंटिंगें उखड़ चुकी थीं, और कुर्सियां जो समय की मार से झुक गईं लग रही थीं। दीवारों पर पुरानी तस्वीरें टंगी हुईं, काली-सफेद फोटो जो धुंधली हो चुकी थीं, उनमें अज्ञात चेहरे मुस्कुरा रहे थे, लेकिन उनकी आंखें जैसे आज भी जीवित थीं, कमरे को घूर रही हों। कमरे का इंटीरियर खूबसूरत था, नक्काशीदार दीवारें जो कभी चमकती होंगी, अब धूल और नमी से ढकी हुईं। एक बड़ा सा आईना कोने में खड़ा था, जिसका फ्रेम सोने का लगता था, लेकिन किनारों पर जंग लगी हुई। आईने की सतह पर धुंध की परत थी, जैसे कोई छाया उसमें कैद हो।
कमरा इतना शांत था कि उनकी सांसों की आवाज भी पूरे कमरे में गूंज रही थी – हल्की, लयबद्ध, लेकिन डरावनी। हर सांस जैसे दीवारों से टकराकर वापस लौट आती, और सौम्या को लगता था कि कोई और भी सांस ले रहा है, छिपकर। हवा में नमी की गंध फैली हुई थी, सड़ती लकड़ी और पुरानी किताबों जैसी, जो सौम्या के नथुनों को चुभ रही थी। खिड़कियां लकड़ी और कांच की बनीं, मोटी परदों से ढकी हुईं, जो बारिश की बूंदों को बाहर रख रही थीं, लेकिन अंदर की ठंडक को बढ़ा रही थीं। परदे हल्के से हिल रहे थे, जैसे कोई हवा का झोंका आ रहा हो, लेकिन दरवाजा बंद था।
सौम्या को एक अजीब, अनजान गंध महसूस हो रही थी – न मिट्टी जैसी, न फूलों जैसी, बल्कि कुछ पुराना, मादक, जो उसके शरीर में घुल रहा था। वह समझ नहीं पा रही थी कि यह क्या है, लेकिन यह उसके मन को भटका रहा था, एक अजीब सी उत्तेजना पैदा कर रहा था। उसके गीले कपड़ों से चिपके शरीर पर ठंड लग रही थी, लेकिन अंदर से गर्मी फैल रही थी। वह राजेश के पास खड़ी रही, लेकिन उसकी नजरें कमरे की हर चीज पर ठहर रही थीं, जैसे कोई रहस्य छिपा हो।
राजेश, जो थकान भूल चुका था, कमरे की खूबसूरती की तारीफ करने लगा। 'वाह, मनोहर जी, यह बंगला तो कमाल का है! देखो, यह बिस्तर कितना राजसी है, और ये तस्वीरें... लगता है कोई पुरानी हवेली है। इंटीरियर इतना सुंदर, जैसे समय रुक गया हो।' उसकी आवाज उत्साहित थी, लेकिन सौम्या को लग रहा था कि उसकी तारीफें खोखली हैं, कमरे की सच्चाई को छिपा रही हैं।
मनोहर, वह बूढ़ा वॉचमैन, राजेश की बातों का जवाब दे रहा था, लेकिन उसकी आंखें सौम्या पर टिकी हुईं। 'हां, साहब, यह बंगला पुराना है, लेकिन इसकी खूबसूरती कभी कम नहीं हुई। ये दीवारें कहानियां सुनाती हैं, रातों की... गुप्त रातों की।' उसकी आवाज गहरी थी, रहस्यमयी, जैसे शब्दों के पीछे कोई छिपा संकेत हो। लेकिन जब वह बोलता, तो चुपके से सौम्या के शरीर को देखता – उसके गीले ब्लाउज से उभरे स्तनों को, साड़ी के नीचे लहराते कूल्हों को, और उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान तैर जाती। वह मुस्कान ठंडी थी, भूखी, जैसे वह सौम्या को निगल जाना चाहता हो। सौम्या ने महसूस किया, उसके गाल लाल हो गए, लेकिन वह नजरें नहीं हटा पाई। मनोहर की नजरें उसके शरीर पर घूम रही थीं, जैसे कपड़ों को भेद रही हों, उसके नंगे शरीर को तलाश रही हों।
कमरे की शांति में, सौम्या को फिर वही आवाज सुनाई दी – हल्की, फुसफुसाहट जैसी, 'सौम्या... आओ... यह गंध... तुम्हारी है...' वह ठिठकी, चारों ओर देखा। राजेश और मनोहर बातों में मग्न थे, लेकिन मनोहर की मुस्कान चौड़ी हो गई, जैसे वह जानता हो। सौम्या का दिल तेज धड़कने लगा, उसकी चूत में एक हल्की सी गुदगुदी महसूस हुई, अनजान गंध के साथ। कमरा अब और रहस्यमयी लग रहा था, जैसे दीवारें सांस ले रही हों, और आईने में कोई परछाईं हिल रही हो। मनोहर ने कहा, 'आराम करो, रात लंबी है। यहां की रातें... बदल देती हैं।' उसकी आंखें सौम्या से नहीं हटीं, और वह शैतानी मुस्कान उसके होंठों पर ठहर गई।
कमरा इतना शांत था कि उनकी सांसों की आवाज भी पूरे कमरे में गूंज रही थी – हल्की, लयबद्ध, लेकिन डरावनी। हर सांस जैसे दीवारों से टकराकर वापस लौट आती, और सौम्या को लगता था कि कोई और भी सांस ले रहा है, छिपकर। हवा में नमी की गंध फैली हुई थी, सड़ती लकड़ी और पुरानी किताबों जैसी, जो सौम्या के नथुनों को चुभ रही थी। खिड़कियां लकड़ी और कांच की बनीं, मोटी परदों से ढकी हुईं, जो बारिश की बूंदों को बाहर रख रही थीं, लेकिन अंदर की ठंडक को बढ़ा रही थीं। परदे हल्के से हिल रहे थे, जैसे कोई हवा का झोंका आ रहा हो, लेकिन दरवाजा बंद था।
सौम्या को एक अजीब, अनजान गंध महसूस हो रही थी – न मिट्टी जैसी, न फूलों जैसी, बल्कि कुछ पुराना, मादक, जो उसके शरीर में घुल रहा था। वह समझ नहीं पा रही थी कि यह क्या है, लेकिन यह उसके मन को भटका रहा था, एक अजीब सी उत्तेजना पैदा कर रहा था। उसके गीले कपड़ों से चिपके शरीर पर ठंड लग रही थी, लेकिन अंदर से गर्मी फैल रही थी। वह राजेश के पास खड़ी रही, लेकिन उसकी नजरें कमरे की हर चीज पर ठहर रही थीं, जैसे कोई रहस्य छिपा हो।
राजेश, जो थकान भूल चुका था, कमरे की खूबसूरती की तारीफ करने लगा। 'वाह, मनोहर जी, यह बंगला तो कमाल का है! देखो, यह बिस्तर कितना राजसी है, और ये तस्वीरें... लगता है कोई पुरानी हवेली है। इंटीरियर इतना सुंदर, जैसे समय रुक गया हो।' उसकी आवाज उत्साहित थी, लेकिन सौम्या को लग रहा था कि उसकी तारीफें खोखली हैं, कमरे की सच्चाई को छिपा रही हैं।
मनोहर, वह बूढ़ा वॉचमैन, राजेश की बातों का जवाब दे रहा था, लेकिन उसकी आंखें सौम्या पर टिकी हुईं। 'हां, साहब, यह बंगला पुराना है, लेकिन इसकी खूबसूरती कभी कम नहीं हुई। ये दीवारें कहानियां सुनाती हैं, रातों की... गुप्त रातों की।' उसकी आवाज गहरी थी, रहस्यमयी, जैसे शब्दों के पीछे कोई छिपा संकेत हो। लेकिन जब वह बोलता, तो चुपके से सौम्या के शरीर को देखता – उसके गीले ब्लाउज से उभरे स्तनों को, साड़ी के नीचे लहराते कूल्हों को, और उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान तैर जाती। वह मुस्कान ठंडी थी, भूखी, जैसे वह सौम्या को निगल जाना चाहता हो। सौम्या ने महसूस किया, उसके गाल लाल हो गए, लेकिन वह नजरें नहीं हटा पाई। मनोहर की नजरें उसके शरीर पर घूम रही थीं, जैसे कपड़ों को भेद रही हों, उसके नंगे शरीर को तलाश रही हों।
कमरे की शांति में, सौम्या को फिर वही आवाज सुनाई दी – हल्की, फुसफुसाहट जैसी, 'सौम्या... आओ... यह गंध... तुम्हारी है...' वह ठिठकी, चारों ओर देखा। राजेश और मनोहर बातों में मग्न थे, लेकिन मनोहर की मुस्कान चौड़ी हो गई, जैसे वह जानता हो। सौम्या का दिल तेज धड़कने लगा, उसकी चूत में एक हल्की सी गुदगुदी महसूस हुई, अनजान गंध के साथ। कमरा अब और रहस्यमयी लग रहा था, जैसे दीवारें सांस ले रही हों, और आईने में कोई परछाईं हिल रही हो। मनोहर ने कहा, 'आराम करो, रात लंबी है। यहां की रातें... बदल देती हैं।' उसकी आंखें सौम्या से नहीं हटीं, और वह शैतानी मुस्कान उसके होंठों पर ठहर गई।


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