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Thriller BHOOT BANGLA
#3
बारिश की बौछारें और तेज़ हो गई थीं, और राजेश-सौम्या दोनों भीगते हुए उस बंगले तक पहुँच गए। बंगला बहुत बड़ा था – पुरानी ईंटों की दीवारें ऊँची-ऊँची खड़ी थीं, लेकिन उम्र के साथ यह डरावना लग रहा था। जंग लगी हुई खिड़कियाँ टूटी-फूटी, दरवाज़े पर जाले चढ़े हुए, और चारों तरफ़ घना अंधेरा। बंगले में कहीं कोई रोशनी नहीं थी – सिर्फ़ अंदर से हल्की-सी सनसनाहट आ रही थी, जैसे हवा पुरानी दीवारों से गुज़र रही हो। सौम्या ने राजेश का हाथ कसकर पकड़ लिया, 'राजेश जी, यह जगह तो बहुत डरावनी लग रही है। क्या हम यहाँ रुकें?' उसकी आवाज़ काँप रही थी।

राजेश ने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई। बाहर तो कुछ नहीं दिख रहा था, लेकिन मुख्य दरवाज़े के अंदर एक छोटा-सा कमरा नज़र आया – शायद कोई पोर्च या एंट्री रूम। वहाँ हल्की-सी छाया थी। 'चलो, पहले अंदर देखते हैं। कोई चारा नहीं,' राजेश ने कहा और दरवाज़े की ओर बढ़ा। सौम्या उसके पीछे-पीछे चली, बारिश उसके साड़ी को पूरी तरह भिगो चुकी थी, जो उसके शरीर से चिपक गई थी।

राजेश ने दरवाज़े पर जोर से दस्तक दी। 'कोई है क्या?' उसकी आवाज़ बारिश की आवाज़ में दब गई लग रही थी। कुछ पल की ख़ामोशी के बाद, अंदर से एक बुरी सी खरखराती आवाज़ आई – जैसे कोई बूढ़ा आदमी बोल रहा हो। 'कौन है बाहर?'

फिर दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला। एक बूढ़ा आदमी बाहर आया, उसके हाथ में एक पुराना छाता था, जो बारिश से बचाने के लिए थोड़ा-सा तना हुआ था। वह लगभग ६५ साल का था – चेहरा भयानक और बदसूरत, झुर्रियों से भरा, आँखें गहरी धंसी हुईं, दाँत पीले और टूटे हुए। उसके होंठों पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी, जो देखने वालों को असहज कर दे। सौम्या ने उसे देखते ही पीछे हट गई, उसका चेहरा पीला पड़ गया। 'राजेश जी...' वह फुसफुसाई, डर से काँपते हुए।

बूढ़े ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा, खासकर सौम्या पर उसकी नज़र ठहर गई। फिर वह रहस्यमयी मुस्कान के साथ बोला, 'क्या हुआ साहब, यहाँ क्या करने आ गये हो? रात के इस पहर में?'

राजेश ने आगे बढ़कर कहा, 'साहब, हमारी कार खराब हो गई है। टायर पंक्चर हो गया रास्ते में, और बारिश इतनी तेज़ है कि कुछ कर नहीं पा रहे। कृपया, रात के लिए थोड़ा आश्रय दे दीजिए। सुबह ही चले जाएँगे।'

बूढ़े ने फिर सौम्या की ओर देखा, इस बार उसकी मुस्कान में एक बुरी चमक थी – जैसे कोई शिकारी शिकार को देख रहा हो। 'अरे साहब, आइए ना। इतनी तेज़ बारिश में बहुत अच्छा किया जो यहाँ आ गये। अंदर आ जाइए, मैं ही तो यहाँ अकेला रहता हूँ। कोई बात नहीं, रुक जाइए।' उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी मिठास थी, लेकिन आँखों में कुछ और ही छिपा था। राजेश ने सौम्या को इशारा किया, और दोनों अनिच्छा से उसके पीछे-पीछे अंदर दाखिल हो गए। बंगला का अंदर का माहौल और भी रहस्यमयी था – ठंडी हवा, पुरानी महक, और कहीं से हल्की-सी चरमराहट। रात अब और भी अनिश्चित लग रही थी।
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BHOOT BANGLA - by AzaxPost - Yesterday, 04:30 PM
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RE: BHOOT BANGLA - by RAHUL 23 - 7 hours ago
RE: BHOOT BANGLA - by Blackdick11 - 6 hours ago



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