7 hours ago
कार तेज़ी से सड़क पर दौड़ रही थी, लेकिन अचानक आसमान पर काले बादल घिर आए। हल्की-हल्की बूँदें गिरने लगीं, जो धीरे-धीरे तेज़ हो गईं। बारिश अब जोरों पर थी – मूसलाधार। हवा के साथ पानी की बौछारें कार की खिड़कियों पर टकरा रही थीं, और सड़क पर पानी की चादर बिछ गई। राजेश ने वाइपर चालू किए, लेकिन दृश्यता कम हो रही थी। सौम्या ने चिंतित होकर कहा, 'राजेश जी, बारिश बहुत तेज़ हो गई है। सावधानी से चलाइए।'
राजेश ने हामी भरी, लेकिन तभी कार ने अजीब सी आवाज़ की और रुक गई। इंजन ख़ामोश हो गया। सड़क सुनसान थी – न कोई वाहन, न कोई रोशनी। रात के ग्यारह बज चुके थे, और चारों तरफ़ घना अंधेरा। राजेश ने स्टार्ट करने की कोशिश की, लेकिन कार ने साथ न दिया। 'क्या हुआ?' सौम्या ने पूछा, उसकी आवाज़ में घबराहट साफ़ झलक रही थी।
'मैं देखता हूँ,' राजेश ने कहा और दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गया। बारिश की बूँदें उसके चेहरे पर, बालों पर गिर रही थीं। वह कार के पीछे गया और टायर चेक किया। पिछला टायर पंक्चर हो चुका था – एक कील चुभ गई थी शायद। पानी उसके कपड़ों को भिगो रहा था, शर्ट चिपक गई थी शरीर से। वह भीगते हुए वापस आया और सौम्या को बताया, 'टायर पंक्चर हो गया है, सौम्या। कार नहीं चलेगी।'
सौम्या की आँखें फैल गईं। 'अब क्या करेंगे? यहाँ तो कोई मदद मिलेगी नहीं।' वह खिड़की से झाँक रही थी, लेकिन बारिश की वजह से कुछ दिखाई न दे रहा था। राजेश भी पूरी तरह भीग चुका था – उसके बाल चिपचिपे हो गए थे, और पानी टपक रहा था। 'रात का समय है, कोई मैकेनिक या मदद नहीं मिलेगी। हमें कहीं आश्रय लेना होगा,' उसने कहा। 'तुम कार में ही रहो, मैं देखता हूँ आसपास।'
वह फिर बाहर निकला, टॉर्च जलाकर चारों तरफ़ देखा। सड़क खाली थी – न कोई घर, न होटल, न कोई दुकान। अंधेरे में सिर्फ़ बारिश की आवाज़ और हवा की सनसनाहट। लेकिन दूर, शायद आधा किलोमीटर आगे, एक धुंधली सी रोशनी दिखाई दी। एक पुराना बंगला था वह – जंगल के किनारे पर खड़ा, अकेला। उसकी दीवारें पुरानी लग रही थीं, लेकिन खिड़कियों से हल्की पीली रोशनी आ रही थी। शायद कोई रहता हो वहाँ। राजेश ने सौम्या को बुलाया, 'सौम्या, आओ। दूर एक बंगला दिख रहा है। वहाँ शरण लेते हैं। रात कट जाएगी, सुबह मदद मिल जाएगी।'
सौम्या ने हिचकिचाते हुए दरवाज़ा खोला। बारिश उसके लंबे रेशमी बालों को भीगो रही थी, जो चेहरे पर चिपक गए। उसकी साड़ी गीली हो रही थी, शरीर की घुमावदार आकृति और साफ़ झलक रही थी। 'लेकिन राजेश जी, इतनी दूर... और रात में अजनबी जगह?' उसने विनम्रता से कहा। राजेश ने उसका हाथ थामा, 'चलो, कोई चारा नहीं। कार में रहना ख़तरनाक है।' दोनों ने कार लॉक की और बारिश में चल पड़े। पानी उनके पैरों तले कीचड़ बना रहा था, और बंगला की ओर बढ़ते हुए मन में अनजानी घबराहट थी। लेकिन उम्मीद थी कि वहाँ सूखा आश्रय और शायद कोई मदद मिल जाएगी। रात अभी और गहरी हो रही थी, और उनका सफ़र अनिश्चितता से भरा।
राजेश ने हामी भरी, लेकिन तभी कार ने अजीब सी आवाज़ की और रुक गई। इंजन ख़ामोश हो गया। सड़क सुनसान थी – न कोई वाहन, न कोई रोशनी। रात के ग्यारह बज चुके थे, और चारों तरफ़ घना अंधेरा। राजेश ने स्टार्ट करने की कोशिश की, लेकिन कार ने साथ न दिया। 'क्या हुआ?' सौम्या ने पूछा, उसकी आवाज़ में घबराहट साफ़ झलक रही थी।
'मैं देखता हूँ,' राजेश ने कहा और दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गया। बारिश की बूँदें उसके चेहरे पर, बालों पर गिर रही थीं। वह कार के पीछे गया और टायर चेक किया। पिछला टायर पंक्चर हो चुका था – एक कील चुभ गई थी शायद। पानी उसके कपड़ों को भिगो रहा था, शर्ट चिपक गई थी शरीर से। वह भीगते हुए वापस आया और सौम्या को बताया, 'टायर पंक्चर हो गया है, सौम्या। कार नहीं चलेगी।'
सौम्या की आँखें फैल गईं। 'अब क्या करेंगे? यहाँ तो कोई मदद मिलेगी नहीं।' वह खिड़की से झाँक रही थी, लेकिन बारिश की वजह से कुछ दिखाई न दे रहा था। राजेश भी पूरी तरह भीग चुका था – उसके बाल चिपचिपे हो गए थे, और पानी टपक रहा था। 'रात का समय है, कोई मैकेनिक या मदद नहीं मिलेगी। हमें कहीं आश्रय लेना होगा,' उसने कहा। 'तुम कार में ही रहो, मैं देखता हूँ आसपास।'
वह फिर बाहर निकला, टॉर्च जलाकर चारों तरफ़ देखा। सड़क खाली थी – न कोई घर, न होटल, न कोई दुकान। अंधेरे में सिर्फ़ बारिश की आवाज़ और हवा की सनसनाहट। लेकिन दूर, शायद आधा किलोमीटर आगे, एक धुंधली सी रोशनी दिखाई दी। एक पुराना बंगला था वह – जंगल के किनारे पर खड़ा, अकेला। उसकी दीवारें पुरानी लग रही थीं, लेकिन खिड़कियों से हल्की पीली रोशनी आ रही थी। शायद कोई रहता हो वहाँ। राजेश ने सौम्या को बुलाया, 'सौम्या, आओ। दूर एक बंगला दिख रहा है। वहाँ शरण लेते हैं। रात कट जाएगी, सुबह मदद मिल जाएगी।'
सौम्या ने हिचकिचाते हुए दरवाज़ा खोला। बारिश उसके लंबे रेशमी बालों को भीगो रही थी, जो चेहरे पर चिपक गए। उसकी साड़ी गीली हो रही थी, शरीर की घुमावदार आकृति और साफ़ झलक रही थी। 'लेकिन राजेश जी, इतनी दूर... और रात में अजनबी जगह?' उसने विनम्रता से कहा। राजेश ने उसका हाथ थामा, 'चलो, कोई चारा नहीं। कार में रहना ख़तरनाक है।' दोनों ने कार लॉक की और बारिश में चल पड़े। पानी उनके पैरों तले कीचड़ बना रहा था, और बंगला की ओर बढ़ते हुए मन में अनजानी घबराहट थी। लेकिन उम्मीद थी कि वहाँ सूखा आश्रय और शायद कोई मदद मिल जाएगी। रात अभी और गहरी हो रही थी, और उनका सफ़र अनिश्चितता से भरा।


![[+]](https://xossipy.com/themes/sharepoint/collapse_collapsed.png)