02-11-2025, 04:30 PM
(This post was last modified: 03-11-2025, 04:09 PM by AzaxPost. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
BHOOT BANGLA
रात के करीब दो बजे का समय था। राजेश और सौम्या एक पार्टी से लौट रहे थे। उनकी कार शहर की सुनसान सड़कों पर तेज़ी से दौड़ रही थी। राजेश, 40 साल का बैंक मैनेजर, ड्राइविंग सीट पर बैठा था। उसकी आँखें सड़क पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन कहीं और भटक रहा था। उसके बगल में सौम्या बैठी थी, 29 साल की ख़ूबसूरत और आकर्षक औरत। उसका शरीर घुमावदार था, लंबे रेशमी बाल हवा में लहरा रहे थे। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें चाँदनी में चमक रही थीं, और छोटे-छोटे रसीले होंठ हल्के से मुस्कुरा रहे थे। पार्टी की रौनक अभी भी उनके मन में बसी हुई थी, लेकिन घर पहुँचने की जल्दी थी।
राजेश और सौम्या की शादी को पाँच साल हो चुके थे। दोनों एक-दूसरे से बेहद प्यार करते थे, लेकिन उनकी ज़िंदगी में एक बड़ा दर्द छिपा था – बच्चा न होना। वे दोनों एक बच्चे की चाहत रखते थे, लेकिन सौम्या गर्भवती नहीं हो पा रही थी। डॉक्टरों ने जाँच के बाद पता लगाया कि समस्या राजेश में थी। लेकिन सौम्या के ससुराल वाले, ख़ासकर उसके सास और ननद, सब कुछ सौम्या पर ही थोप देते थे। वे उसे बांझा कहकर ताने मारते, रोज़-रोज़ अपमानित करते। सौम्या का दिल टूट जाता, लेकिन वह चुप रहती। वह राजेश से हमेशा सम्मान के साथ बात करती, कभी ऊँचा स्वर न उठाती।
एक शाम, डिनर के बाद, सौम्या ने राजेश से फिर बात की। 'राजेश जी, हमें डॉक्टर के पास जाना चाहिए। बच्चे के लिए इलाज करवाना ज़रूरी है।' उसकी आवाज़ में विनम्रता थी, लेकिन चिंता साफ़ झलक रही थी। राजेश ने सिर झटक दिया। 'मैं ठीक हूँ, सौम्या। समस्या तुममें है। तुम्हें ही चेकअप करवाना चाहिए।' उसके शब्दों ने सौम्या को चोट पहुँचाई। वह जानती थी कि डॉक्टरों ने क्या कहा था, लेकिन राजेश अपनी ग़लती मानने को तैयार न था। इससे उनके बीच झगड़े बढ़ने लगे। छोटी-छोटी बातों पर बहस हो जाती। सास और ननद के ताने तो रोज़ ही सुनने पड़ते – 'तू ही नाकारा है, घर में वारिस नहीं ला पा रही।' सौम्या रो लेती, लेकिन राजेश को दोष न देती।
झगड़े दिन-ब-दिन बढ़ते गए। घर का माहौल तनावपूर्ण हो गया। सौम्या थक चुकी थी इन अपमानों से। एक रात, जब सास ने फिर से ताना मारा, सौम्या फूट-फूटकर रो पड़ी। राजेश ने देखा तो मन भर आया। 'बस, बहुत हो गया,' उसने कहा। 'हम अलग हो जाते हैं। अपने माता-पिता के घर से निकलकर कहीं और चले जाते हैं। अकेले रहेंगे, शांति से।' सौम्या ने हामी भर ली। दोनों ने फैसला किया कि वे शहर के बाहरी इलाके में एक छोटा-सा फ्लैट लेकर रहेंगे। नौकरी और कमाई से गुज़ारा चलेगा।
अब वे कार में बैठे थे, पार्टी से लौटते हुए। पार्टी में दोस्तों ने उन्हें अलग-अलग घर में रहने का फैसला बताया था। सब हैरान थे, लेकिन सौम्या के चेहरे पर राहत थी। 'राजेश जी, कल से हम नई शुरुआत करेंगे,' उसने कहा। राजेश ने मुस्कुराते हुए हाथ थाम लिया। कार की लाइटें अंधेरी सड़क को चीरती चली जा रही थीं, जैसे उनकी ज़िंदगी में नई उम्मीद की किरण। लेकिन मन के किसी कोने में अभी भी बच्चे की चाहत का दर्द बाक़ी था। फिर भी, अकेले रहने से शायद उनके रिश्ते मज़बूत हों, और इलाज का रास्ता भी निकले। रात गहरी हो रही थी, लेकिन उनका सफ़र अभी शुरू ही हुआ था।


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