6 hours ago
लिंगपुरम के रहस्यमयी मंदिरों का प्रमुख पुजारी और राजमाता का मुख्य सलाहकार लिंगसेन था। वह चालाक, विकृत और वासना से भरा हुआ पुरुष था, जिसकी आँखें हमेशा स्त्रियों के शरीर पर टिकी रहतीं। धार्मिक अनुष्ठानों के नाम पर वह विवाहित और अविवाहित महिलाओं के साथ अपनी विकृति को साकार करता। मंदिरों में पूजा के दौरान, वह विधवाओं को शिवलिंग के सामने बिठाता, उनकी साड़ियाँ खिसका कर उनके उभरे स्तनों को सहलाता, कहता कि यह देवी की कृपा है। अविवाहित कन्याओं को तंत्र-मंत्र सिखाने के बहाने, वह उनके नंगे शरीर को तेल से मलता, उँगलियाँ उनकी योनि में डालता, चाटता, और लिंग को उनके मुंह में ठूंसता, सब कुछ 'धार्मिक उत्सर्ग' के नाम पर। विवाहित स्त्रियों को पति की अनुपस्थिति में बुलाता, उन्हें नग्न कर के मूर्तियों के बीच लिटाता, अपना कड़ा लंड उनकी चूत में घुसेड़ता, चोदता, और चीखें दबाने को कहता कि यह पापों का नाश है। ये सब राजमाता शिवगामी को ज्ञात था, लेकिन वह हमेशा मौन रहतीं, शायद अपनी सत्ता की रक्षा के लिए, या फिर अपनी गुप्त वासना को संतुलित करने के लिए। लिंगसेन की यह विकृति साम्राज्य की कामुकता का हिस्सा बन चुकी थी, जहाँ धर्म और वासना की सीमा धुंधली हो जाती।
सेनापति भुजेंद्र को राजमाता ने स्वयं चुना था। वह रहस्यमयी योद्धा था, ऊँचा कद, मजबूत शरीर, भावहीन चेहरा और क्रूर हृदय वाला, जिसका कोई अतीत ज्ञात नहीं था। उसकी आँखें हमेशा ठंडी, जैसे कोई मशीन, लेकिन उसके विशाल लंड की अफवाहें किले में फैली हुईं, जो राजमाता की आज्ञा पर किसी को भी कुचल सकता था—शत्रु को तलवार से, या स्त्री को बेरहमी से चोदकर।
एक सुबह, राजमाता शिवगामी देवी अपने सहायक कमिनी के साथ मंदिर की ओर जा रही थीं। कमिनी, २९ वर्ष की, अत्यंत सुंदर और सेक्सी, लेकिन कुंवारी, अपनी मालकिन की सेवा में लगी रहती। उसकी पतली कमर, उभरे नितंब और कोमल स्तन साड़ी के नीचे लहराते, लेकिन उसकी आँखों में शुद्धता झलकती। शिवगामी, अपनी विधवा अवस्था में भी आकर्षक, साड़ी में लिपटी, जांघें झलकाती चलीं। वे राजमहल के गलियारे से गुजर रही थीं, जब राजा शिशंध्वज के कक्ष से कराहने की आवाज़ आई—ताली की आवाज़ के बाद, चमड़े की फटकार जैसी, और एक पुरुष की गहरी, उत्तेजित सिसकारी। 'आह... और जोर से... मेरी गांड फाड़ दो!' राजा की आवाज़ गूंजी, दर्द और सुख मिश्रित।
कमिनी चौंक गई, उसकी आँखें विस्फारित हो गईं। जिज्ञासा में वह चुपके से दरवाजे की झिरी से झाँकी। अंदर का दृश्य उसे हिला गया—राजा शिशंध्वज, नाममात्र का शासक, नग्न लेटा हुआ, उसकी गांड ऊपर की ओर तनी, और एक नौकर, मजबूत काया वाला, अपना मोटा लंड राजा की गांड में पूरी गहराई तक धंसाए हुए, जोर-जोर से ठोक रहा था। नौकर की पेलाई से राजा की गांड लाल हो चुकी, चुदाई की आवाज़ गूंज रही—चपक-चपक, और राजा के लंड से रस टपक रहा, वह कराह रहा, 'हाँ... चोदो मुझे... गहरा!' नौकर ने फिर एक तमाचा मारा राजा के नितंब पर, और लंड को और तेज़ी से अंदर-बाहर किया, जैसे कोई जानवर। कमिनी का चेहरा लाल हो गया, उसकी योनि में अजीब सी गुदगुदी हुई, लेकिन वह स्तब्ध खड़ी रही।
लेकिन राजमाता शिवगामी का चेहरा भावशून्य था, जैसे यह कोई पुरानी बात हो, जिसे वह पहले से जानती हों। उनकी आँखों में कोई आश्चर्य नहीं, बस एक ठंडी मुस्कान, जैसे वे इस राज़ को लंबे समय से छिपाए हुए हों। वे आगे बढ़ीं, कमिनी को इशारा किया चुप रहने को, और मंदिर की ओर चलीं। लेकिन तभी, मंदिर के द्वार पर लिंगसेन खड़ा था, उसकी आँखें कमिनी के शरीर पर टिकीं, जैसे वह उसे अगला शिकार बना ले। क्या राजमाता का मौन अब टूटेगा, या यह रहस्य और गहरा होगा? मंदिर के अंदर से एक रहस्यमयी कराह उठी, जैसे कोई नया अनुष्ठान शुरू हो रहा हो...
सेनापति भुजेंद्र को राजमाता ने स्वयं चुना था। वह रहस्यमयी योद्धा था, ऊँचा कद, मजबूत शरीर, भावहीन चेहरा और क्रूर हृदय वाला, जिसका कोई अतीत ज्ञात नहीं था। उसकी आँखें हमेशा ठंडी, जैसे कोई मशीन, लेकिन उसके विशाल लंड की अफवाहें किले में फैली हुईं, जो राजमाता की आज्ञा पर किसी को भी कुचल सकता था—शत्रु को तलवार से, या स्त्री को बेरहमी से चोदकर।
एक सुबह, राजमाता शिवगामी देवी अपने सहायक कमिनी के साथ मंदिर की ओर जा रही थीं। कमिनी, २९ वर्ष की, अत्यंत सुंदर और सेक्सी, लेकिन कुंवारी, अपनी मालकिन की सेवा में लगी रहती। उसकी पतली कमर, उभरे नितंब और कोमल स्तन साड़ी के नीचे लहराते, लेकिन उसकी आँखों में शुद्धता झलकती। शिवगामी, अपनी विधवा अवस्था में भी आकर्षक, साड़ी में लिपटी, जांघें झलकाती चलीं। वे राजमहल के गलियारे से गुजर रही थीं, जब राजा शिशंध्वज के कक्ष से कराहने की आवाज़ आई—ताली की आवाज़ के बाद, चमड़े की फटकार जैसी, और एक पुरुष की गहरी, उत्तेजित सिसकारी। 'आह... और जोर से... मेरी गांड फाड़ दो!' राजा की आवाज़ गूंजी, दर्द और सुख मिश्रित।
कमिनी चौंक गई, उसकी आँखें विस्फारित हो गईं। जिज्ञासा में वह चुपके से दरवाजे की झिरी से झाँकी। अंदर का दृश्य उसे हिला गया—राजा शिशंध्वज, नाममात्र का शासक, नग्न लेटा हुआ, उसकी गांड ऊपर की ओर तनी, और एक नौकर, मजबूत काया वाला, अपना मोटा लंड राजा की गांड में पूरी गहराई तक धंसाए हुए, जोर-जोर से ठोक रहा था। नौकर की पेलाई से राजा की गांड लाल हो चुकी, चुदाई की आवाज़ गूंज रही—चपक-चपक, और राजा के लंड से रस टपक रहा, वह कराह रहा, 'हाँ... चोदो मुझे... गहरा!' नौकर ने फिर एक तमाचा मारा राजा के नितंब पर, और लंड को और तेज़ी से अंदर-बाहर किया, जैसे कोई जानवर। कमिनी का चेहरा लाल हो गया, उसकी योनि में अजीब सी गुदगुदी हुई, लेकिन वह स्तब्ध खड़ी रही।
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So finally I have created my account
after being reader of long time . No be ready to enjoy the depth of my created world.
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