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लिंगपुरम साम्राज्य हिमालय की बर्फीली चोटियों और गंगा-यमुना के पवित्र संगम के बीच बसा हुआ था। यह साम्राज्य अपनी अपार शक्ति और रहस्यमयी, खतरनाक कथाओं से भरा पड़ा था, जहाँ हर कोना कामुकता और खतरे की कहानियों से गूंजता था। नाममात्र का शासक राजा कमल सिंह था, लेकिन वास्तविक सत्ता राजमाता शिवगामी देवी के हाथों में थी। शिवगामी देवी, एक विधवा, अपनी सेक्सी आकर्षकता और बुद्धिमत्ता से पुरुषों को मोहित कर लेतीं। उनकी उमंग भरी आँखें, उभरे हुए स्तन और कमर की लहराती गति हर दर्शक को कामुक कल्पनाओं में डुबो देती। वह सेना और परिषद पर पूर्ण नियंत्रण रखतीं, हर निर्णय में अपनी इच्छा का राज चलातीं, जैसे कोई कामुक रानी जो अपने साम्राज्य को अपनी कामुक शक्ति से संभालती हो।
साम्राज्य के महल, लिंगपुरम किला, एक भव्य और कामुक संरचना था। इसके दीवारें संगमरमर से तराशी गईं, जिन पर कामुक मूर्तियाँ उकेरी गईं—नग्न देवियाँ जो शिवलिंग को चूम रही हों, उनके होंठों से लार टपकती हुई, स्तन हिलते हुए। किले का मुख्य द्वार एक विशाल शिवलिंग की आकृति में था, जो लिंग की तरह मोटा और सीधा खड़ा था, उसके आधार पर असंख्य स्त्रियाँ हाथों से पकड़े हुए, उनकी उँगलियाँ लिंग की नसों को सहला रही हों। यह साम्राज्य का प्रतीक था—शिवलिंग जो लिंग जैसा प्रतीत होता, लेकिन अनगिनत महिलाओं द्वारा आधार से थामा हुआ, जैसे वे इसे अपनी कामुक इच्छाओं से संभाल रही हों, चूस रही हों, सहला रही हों।
महल के अंदरूनी कक्ष कामुकता का स्वर्ग थे। राजमाता शिवगामी देवी का निजी चैंबर एक विशाल बिस्तर से सजा था, जहाँ रेशमी चादरें फैली हुईं, और दीवारों पर चित्र थे—रानियाँ जो योद्धाओं के लिंग को मुंह में ले रही हों, उनके गले तक गहराई तक, या फिर देवियाँ जो एक-दूसरे की योनि को चाट रही हों, रस टपकते हुए। किले के गलियारे में हर मोड़ पर मूर्तियाँ थीं, जो संभोग के विभिन्न आसनों को दर्शातीं—कुत्ते की मुद्रा में पुरुष योनि में धंसता हुआ, या स्त्री ऊपर बैठी लिंग को निगलती हुई। हवा में कामुक सुगंध फैली रहती, जैसे हर सांस में वासना का जहर घुला हो।
लिंगपुरम के मंदिर तो और भी रहस्यमयी थे। हर मंदिर में कामुक मूर्तियाँ भरी पड़ीं—देवी-देवता नग्न, उनके लिंग सीधे खड़े, योनि गीली चमकती। भक्तगण पूजा के नाम पर इन मूर्तियों को स्पर्श करते, सहलाते, जैसे वे जीवित हों। राजमाता शिवगामी देवी इन मंदिरों की संरक्षक थीं, और कथाएँ प्रचलित थीं कि रात के अंधेरे में वह स्वयं इन मूर्तियों के साथ लिप्त होतीं, अपने शरीर को उनके लिंगों पर रगड़तीं, चीखें भरतीं। साम्राज्य की शक्ति इसी कामुकता से उपजी थी—हर योद्धा, हर सिपाही, राजमाता की एक झलक पर ही उत्तेजित हो जाता, उनका लिंग कड़ा हो जाता, सेना की एकजुटता इसी वासना से बंधी थी।
किले के राजसभागार में, जहाँ परिषद की बैठकें होतीं, फर्श पर नक्काशी थी—समूह संभोग के दृश्य, जहाँ कई स्त्रियाँ एक लिंग को घेर रही हों, चूस रही हों, चाट रही हों। शिवगामी देवी सिंहासन पर विराजमान, अपनी साड़ी के नीचे से उभरी जांघें दिखातीं, परिषद के सदस्यों को मोहित करतीं। उनकी बुद्धिमत्ता हर निर्णय को कामुक रणनीति बना देती—शत्रुओं को हराने के लिए जासूस स्त्रियाँ भेजतीं, जो शत्रु राजाओं के लिंग को अपनी योनि से वशीभूत कर लें। लिंगपुरम का यह साम्राज्य, रहस्यों और वासना का केंद्र था, जहाँ हर पत्थर, हर दीवार, हर सांस में कामुकता का संगीत बजता रहता।
साम्राज्य के महल, लिंगपुरम किला, एक भव्य और कामुक संरचना था। इसके दीवारें संगमरमर से तराशी गईं, जिन पर कामुक मूर्तियाँ उकेरी गईं—नग्न देवियाँ जो शिवलिंग को चूम रही हों, उनके होंठों से लार टपकती हुई, स्तन हिलते हुए। किले का मुख्य द्वार एक विशाल शिवलिंग की आकृति में था, जो लिंग की तरह मोटा और सीधा खड़ा था, उसके आधार पर असंख्य स्त्रियाँ हाथों से पकड़े हुए, उनकी उँगलियाँ लिंग की नसों को सहला रही हों। यह साम्राज्य का प्रतीक था—शिवलिंग जो लिंग जैसा प्रतीत होता, लेकिन अनगिनत महिलाओं द्वारा आधार से थामा हुआ, जैसे वे इसे अपनी कामुक इच्छाओं से संभाल रही हों, चूस रही हों, सहला रही हों।
महल के अंदरूनी कक्ष कामुकता का स्वर्ग थे। राजमाता शिवगामी देवी का निजी चैंबर एक विशाल बिस्तर से सजा था, जहाँ रेशमी चादरें फैली हुईं, और दीवारों पर चित्र थे—रानियाँ जो योद्धाओं के लिंग को मुंह में ले रही हों, उनके गले तक गहराई तक, या फिर देवियाँ जो एक-दूसरे की योनि को चाट रही हों, रस टपकते हुए। किले के गलियारे में हर मोड़ पर मूर्तियाँ थीं, जो संभोग के विभिन्न आसनों को दर्शातीं—कुत्ते की मुद्रा में पुरुष योनि में धंसता हुआ, या स्त्री ऊपर बैठी लिंग को निगलती हुई। हवा में कामुक सुगंध फैली रहती, जैसे हर सांस में वासना का जहर घुला हो।
लिंगपुरम के मंदिर तो और भी रहस्यमयी थे। हर मंदिर में कामुक मूर्तियाँ भरी पड़ीं—देवी-देवता नग्न, उनके लिंग सीधे खड़े, योनि गीली चमकती। भक्तगण पूजा के नाम पर इन मूर्तियों को स्पर्श करते, सहलाते, जैसे वे जीवित हों। राजमाता शिवगामी देवी इन मंदिरों की संरक्षक थीं, और कथाएँ प्रचलित थीं कि रात के अंधेरे में वह स्वयं इन मूर्तियों के साथ लिप्त होतीं, अपने शरीर को उनके लिंगों पर रगड़तीं, चीखें भरतीं। साम्राज्य की शक्ति इसी कामुकता से उपजी थी—हर योद्धा, हर सिपाही, राजमाता की एक झलक पर ही उत्तेजित हो जाता, उनका लिंग कड़ा हो जाता, सेना की एकजुटता इसी वासना से बंधी थी।
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So finally I have created my account
after being reader of long time . No be ready to enjoy the depth of my created world.
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