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बाबा कालिचरण का आश्रम शहर के धनी और धार्मिक इलाके में स्थित था, जहां ऊंची-ऊंची हवेलियां और मंदिरों की चमकदार मूर्तियां सड़कों पर बिखरी हुईं। यह इलाका ऐसा था जहां हर तरफ भक्ति की धुन गूंजती, लेकिन उसके पीछे छिपी रहस्यमयी दुनिया किसी को नहीं पता। आश्रम का मुख्य द्वार भव्य था—सोने-चांदी की जड़ाई वाली तोरणें, जिन पर देवी पार्वती की मूर्ति उकेरी गई थी, और हर शाम आरती के समय घंटियां बजतीं। लेकिन अंदर का माहौल कुछ और ही था। बाबा कालिचरण के बारे में कोई साफ-साफ नहीं जानता था कि वे कहां से आए। वे खुद कहते, 'मैं देवी पार्वती का भक्त हूं, उनकी कृपा से यहां पहुंचा।' उनकी उम्र कोई 49 के आसपास बताई जाती, लेकिन चेहरा हमेशा रहस्यमयी मुस्कान से ढका रहता—लंबी दाढ़ी, कमल के फूल जैसी आंखें, और सफेद धोती-कुर्ता जो हमेशा बेदाग लगता। कोई नहीं जानता था उनका असली नाम क्या था या बचपन कहां बीता। कुछ कहते वे हिमालय से उतरे संत हैं, तो कुछ फुसफुसाते कि वे किसी पुराने अपराधी गिरोह से जुड़े थे। लेकिन बाबा चुप रहते, सिर्फ भजन गाते और भक्तों को आशीर्वाद देते।
आश्रम का क्षेत्रफल बड़ा था—करीब 10 एकड़ में फैला, जहां आगे भव्य सत्संग हॉल था, बीच में बाबा का कक्ष, और पीछे बगीचा जहां रातें गुप्त बैठकों के लिए इस्तेमाल होता। सत्संग हॉल में हर शनिवार को भजन-कीर्तन होता, जहां अमीर घरों की महिलाएं जैसे आरती और सुभद्रा आतीं। वे साड़ियां पहनकर, मंगलसूत्र लटकाए, बाबा के चरणों में बैठतीं। आरती और सुभद्रा का घर इसी इलाके में था—धनी वर्ग का, जहां पिता-पति व्यापारी थे। वे नियमित रूप से आश्रम जातीं, न सिर्फ भक्ति के लिए बल्कि सामाजिक दिखावे के लिए भी। हर महीने वे दान देतीं—पैसे के लिफाफे, सोने की चूड़ियां, अनाज के ट्रक, और कभी-कभी बाबा के लिए विशेष उपहार जैसे रेशमी वस्त्र। आरती कहती, 'बाबा जी की कृपा से घर में सुख-शांति है,' लेकिन अंदर ही अंदर उसके मन में बाबा के स्पर्श की उत्तेजना छिपी रहती। सुभद्रा, जो शरारती स्वभाव की थी, हंसते हुए कहती, 'दान तो बस बहाना है, असली आशीर्वाद तो बाबा के करीब होने में है।'
लेकिन आश्रम की रहस्यमयता यहीं खत्म नहीं होती। बाहर से तो सब कुछ पवित्र लगता—देवी पार्वती का मंदिर, जहां रात को विशेष पूजा होती, और भक्तों को प्रसाद बांटा जाता। लेकिन रात के अंधेरे में आश्रम की पीछे की दीवारों के पार गाड़ियां आतीं—काली मर्सिडीज, जिनमें सिक्युरिटी वाले, राजनेता, व्यापारी सवार होते। एक बड़ा राजनेता, जो शहर का मेयर था, हर हफ्ते आता, बाबा से बंद कमरे में बात करता। व्यापारी लोग करोड़ों के चेक देते, कहते 'बाबा जी, ये देवी मां को।' लेकिन फुसफुसाहटें थीं कि ये दान सिर्फ भक्ति नहीं, बल्कि सुरक्षा के लिए हैं। आश्रम के आसपास की दुकानें बाबा के नाम पर चलतीं—जिनकी मालिकियां कभी सवाल नहीं उठातीं।
विवादास्पद बातें और भी थीं। कुछ लोग कहते, बाबा का आश्रम माफिया और डॉन का अड्डा है। शहर के कुख्यात डॉन, जिनका नाम 'रावण सिंह' था, की बहन आश्रम की ट्रस्ट में नामांकित थी। रात को, जब सत्संग खत्म हो जाता, तो आश्रम के बगीचे में गुप्त मीटिंगें होतीं। एक बार तो सिक्युरिटी का एक इंस्पेक्टर आया, जो बाबा को सलाम ठोकता हुआ अंदर गया और घंटों रुका। बाहर आकर बोला, 'बाबा जी ने आशीर्वाद दिया, अब सब ठीक हो जाएगा।' लेकिन शहर में अफवाहें फैलीं कि आश्रम में महिलाओं के साथ अनैतिकता होती है। एक पत्रकार ने लिखा कि बाबा भक्त महिलाओं को 'विशेष पूजा' के बहाने बुलाते हैं, जहां यौन शोषण का आरोप लगा। लेकिन अगले ही दिन वो पत्रकार गायब हो गया, और आश्रम के वकीलों ने केस दबा दिया। राजनेताओं का समर्थन था—वे कहते, 'ये सब झूठी अफवाहें हैं, बाबा संत हैं।'
आरती और सुभद्रा को इन बातों की भनक थी, लेकिन वे अनदेखी करतीं। आरती के लिए आश्रम अब सिर्फ भक्ति का स्थान नहीं, बल्कि बाबा के गुप्त स्पर्श का अड्डा बन चुका था। एक बार सत्संग के बाद, बाबा ने उसे अलग बुलाया, उसके कंधे पर हाथ रखा और फुसफुसाया, 'देवी मां की कृपा तुम पर है, बहू।' उस स्पर्श से आरती की चूत गीली हो गई। सुभद्रा हंसती, 'आरती, तू तो बाबा की फेवरेट लगती है। सावधान, ये आश्रम के राज़ गहरे हैं।' लेकिन विवादों के बावजूद आश्रम फलता-फूलता रहा। डॉन्स पैसे देते, क्योंकि बाबा उनके 'कर्मों' को शुद्ध करने का दावा करते। एक व्यापारी ने बताया कि उसके दुश्मन का एक्सीडेंट आश्रम के 'प्रार्थना' के बाद हुआ। सिक्युरिटी वाले आते, क्योंकि बाबा उनके प्रमोशन की भविष्यवाणी करते।
आश्रम का सबसे रहस्यमयी हिस्सा बाबा का निजी कक्ष था—जहां दीवारों पर पार्वती की तस्वीरें, लेकिन फर्श पर गद्दे बिछे होते, जो रात की 'पूजाओं' के लिए इस्तेमाल होते। कभी-कभी रात को चीखें सुनाई देतीं, जो भजन समझ ली जातीं। एक विवाद तब हुआ जब एक अमीर महिला ने आरोप लगाया कि बाबा ने उसे 'आशीर्वाद' के नाम पर नंगा किया और चोदा। लेकिन बाबा के वकीलों ने साबित कर दिया कि वो पागल थी। फिर भी, भक्तों की संख्या बढ़ती गई। आरती सोचती, 'ये आश्रम वासना और भक्ति का मिश्रण है,' और सुभद्रा मजाक करती, 'हां, और हम दोनों इसके चट्टे में रानी मक्खियां।' इस तरह, आश्रम की रहस्यमयता और विवाद शहर की हवा में घुल गए, लेकिन बाबा का राज़ अभी भी सुरक्षित था।
आश्रम का क्षेत्रफल बड़ा था—करीब 10 एकड़ में फैला, जहां आगे भव्य सत्संग हॉल था, बीच में बाबा का कक्ष, और पीछे बगीचा जहां रातें गुप्त बैठकों के लिए इस्तेमाल होता। सत्संग हॉल में हर शनिवार को भजन-कीर्तन होता, जहां अमीर घरों की महिलाएं जैसे आरती और सुभद्रा आतीं। वे साड़ियां पहनकर, मंगलसूत्र लटकाए, बाबा के चरणों में बैठतीं। आरती और सुभद्रा का घर इसी इलाके में था—धनी वर्ग का, जहां पिता-पति व्यापारी थे। वे नियमित रूप से आश्रम जातीं, न सिर्फ भक्ति के लिए बल्कि सामाजिक दिखावे के लिए भी। हर महीने वे दान देतीं—पैसे के लिफाफे, सोने की चूड़ियां, अनाज के ट्रक, और कभी-कभी बाबा के लिए विशेष उपहार जैसे रेशमी वस्त्र। आरती कहती, 'बाबा जी की कृपा से घर में सुख-शांति है,' लेकिन अंदर ही अंदर उसके मन में बाबा के स्पर्श की उत्तेजना छिपी रहती। सुभद्रा, जो शरारती स्वभाव की थी, हंसते हुए कहती, 'दान तो बस बहाना है, असली आशीर्वाद तो बाबा के करीब होने में है।'
लेकिन आश्रम की रहस्यमयता यहीं खत्म नहीं होती। बाहर से तो सब कुछ पवित्र लगता—देवी पार्वती का मंदिर, जहां रात को विशेष पूजा होती, और भक्तों को प्रसाद बांटा जाता। लेकिन रात के अंधेरे में आश्रम की पीछे की दीवारों के पार गाड़ियां आतीं—काली मर्सिडीज, जिनमें सिक्युरिटी वाले, राजनेता, व्यापारी सवार होते। एक बड़ा राजनेता, जो शहर का मेयर था, हर हफ्ते आता, बाबा से बंद कमरे में बात करता। व्यापारी लोग करोड़ों के चेक देते, कहते 'बाबा जी, ये देवी मां को।' लेकिन फुसफुसाहटें थीं कि ये दान सिर्फ भक्ति नहीं, बल्कि सुरक्षा के लिए हैं। आश्रम के आसपास की दुकानें बाबा के नाम पर चलतीं—जिनकी मालिकियां कभी सवाल नहीं उठातीं।
विवादास्पद बातें और भी थीं। कुछ लोग कहते, बाबा का आश्रम माफिया और डॉन का अड्डा है। शहर के कुख्यात डॉन, जिनका नाम 'रावण सिंह' था, की बहन आश्रम की ट्रस्ट में नामांकित थी। रात को, जब सत्संग खत्म हो जाता, तो आश्रम के बगीचे में गुप्त मीटिंगें होतीं। एक बार तो सिक्युरिटी का एक इंस्पेक्टर आया, जो बाबा को सलाम ठोकता हुआ अंदर गया और घंटों रुका। बाहर आकर बोला, 'बाबा जी ने आशीर्वाद दिया, अब सब ठीक हो जाएगा।' लेकिन शहर में अफवाहें फैलीं कि आश्रम में महिलाओं के साथ अनैतिकता होती है। एक पत्रकार ने लिखा कि बाबा भक्त महिलाओं को 'विशेष पूजा' के बहाने बुलाते हैं, जहां यौन शोषण का आरोप लगा। लेकिन अगले ही दिन वो पत्रकार गायब हो गया, और आश्रम के वकीलों ने केस दबा दिया। राजनेताओं का समर्थन था—वे कहते, 'ये सब झूठी अफवाहें हैं, बाबा संत हैं।'
आरती और सुभद्रा को इन बातों की भनक थी, लेकिन वे अनदेखी करतीं। आरती के लिए आश्रम अब सिर्फ भक्ति का स्थान नहीं, बल्कि बाबा के गुप्त स्पर्श का अड्डा बन चुका था। एक बार सत्संग के बाद, बाबा ने उसे अलग बुलाया, उसके कंधे पर हाथ रखा और फुसफुसाया, 'देवी मां की कृपा तुम पर है, बहू।' उस स्पर्श से आरती की चूत गीली हो गई। सुभद्रा हंसती, 'आरती, तू तो बाबा की फेवरेट लगती है। सावधान, ये आश्रम के राज़ गहरे हैं।' लेकिन विवादों के बावजूद आश्रम फलता-फूलता रहा। डॉन्स पैसे देते, क्योंकि बाबा उनके 'कर्मों' को शुद्ध करने का दावा करते। एक व्यापारी ने बताया कि उसके दुश्मन का एक्सीडेंट आश्रम के 'प्रार्थना' के बाद हुआ। सिक्युरिटी वाले आते, क्योंकि बाबा उनके प्रमोशन की भविष्यवाणी करते।
आश्रम का सबसे रहस्यमयी हिस्सा बाबा का निजी कक्ष था—जहां दीवारों पर पार्वती की तस्वीरें, लेकिन फर्श पर गद्दे बिछे होते, जो रात की 'पूजाओं' के लिए इस्तेमाल होते। कभी-कभी रात को चीखें सुनाई देतीं, जो भजन समझ ली जातीं। एक विवाद तब हुआ जब एक अमीर महिला ने आरोप लगाया कि बाबा ने उसे 'आशीर्वाद' के नाम पर नंगा किया और चोदा। लेकिन बाबा के वकीलों ने साबित कर दिया कि वो पागल थी। फिर भी, भक्तों की संख्या बढ़ती गई। आरती सोचती, 'ये आश्रम वासना और भक्ति का मिश्रण है,' और सुभद्रा मजाक करती, 'हां, और हम दोनों इसके चट्टे में रानी मक्खियां।' इस तरह, आश्रम की रहस्यमयता और विवाद शहर की हवा में घुल गए, लेकिन बाबा का राज़ अभी भी सुरक्षित था।


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