30-10-2025, 01:11 PM
आरती की आंखें धीरे-धीरे खुलीं। शाम की धुंधली रोशनी कमरे में फैली हुई थी, और वह बेड पर नंगी लेटी हुई महसूस कर रही थी। चादर उसके शरीर पर ढीली-ढाली पड़ी थी, उसके स्तन बाहर झांक रहे थे, और उसके निप्पल्स अभी भी बाबा के चूसने से सख्त होकर खड़े थे। नीचे, उसकी चूत में बाबा का गाढ़ा वीर्य अभी भी चिपचिपा महसूस हो रहा था, जो बाहर रिसकर उसकी जांघों पर सूख गया था। आरती ने मुस्कुराते हुए हाथ नीचे किया, अपनी उंगलियां चूत पर फेरकर बाबा के बीज को छुआ। 'अरे वाह, बाबा जी ने तो भरपूर पूजा कर दी,' उसने मन ही मन कहा, और एक शरारती हंसी छोड़ते हुए बेड से उठी। उसका शरीर चिपचिपा था—पसीने, लार और वीर्य की मिश्रित गंध कमरे में फैली हुई थी। वह नंगी ही बाथरूम की ओर बढ़ी, जहां ठंडे पानी की धार उसके शरीर पर गिरने लगी।
आरती ने साबुन से अपने स्तनों को मला, निप्पल्स को उंगलियों से दबाते हुए, और नीचे चूत को अच्छे से धोया। पानी उसके बालों से बहता हुआ, उसके कूल्हों पर रुका, और वह खुद को तरोताजा महसूस करने लगी। 'अब ये राज़ और गहरा हो गया,' उसने आईने में अपनी मुस्कान देखी, जहां उसके गालों पर हल्की लाली बाकी थी। बाथरूम से बाहर निकलते हुए, उसने मैक्सी पहन ली—वही ढीली वाली, जो उसके शरीर की गोलाइयों को छुपा लेती थी। बाल गीले थे, और चेहरे पर कोई मेकअप नहीं। वह किचन की ओर बढ़ी, कॉफी बनाने के लिए, लेकिन जैसे ही वह बाहर आई, गायत्री ने उसे रोक लिया।
गायत्री सोफे पर बैठी हुई थी, हाथ में गीता की किताब लिए, लेकिन उसकी नजरें आरती पर टिक गईं। 'अरे बहू, तू नहा क्यों आई? अभी तो शाम हुई है, और तू बेड से उठी ही तो लग रही है। क्या हुआ, कोई बीमारी तो नहीं?' गायत्री की आवाज में संदेह था, उसके भौंहें सिकुड़ी हुईं। आरती का दिल धक् से रह गया। वह घबरा गई, उसके चेहरे पर पसीना छूटने लगा। 'मां जी, वो... वो तो बस... गर्मी लग गई थी। थोड़ा सिर दर्द हो रहा था, सोचा नहा लूं तो ठीक हो जाए,' आरती ने झूठ बोलते हुए कहा, अपनी आंखें नीचे झुकाकर। उसके दिमाग में तेजी से बहाने घूम रहे थे—उसकी शरारती बुद्धि काम कर रही थी। 'और हां, बाल धोए थे, इसलिए देर हो गई।'
गायत्री ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, फिर सिर हिलाते हुए कहा, 'ठीक है, लेकिन इतनी जल्दी नहाना अच्छा नहीं। चल, कॉफी बना दे मेरी भी। और चंदनी को बुला, आज डिनर जल्दी बनाना है।' आरती ने राहत की सांस ली और किचन में चली गई। कॉफी मशीन चालू करते हुए, वह मन ही मन सोच रही थी कि कैसे बाबा का राज़ छुपाना है। तभी पीछे से चंदनी आ गई, उसके कदमों की आहट हल्की थी। चंदनी ने आरती के कंधे पर हाथ रखा और कान के पास फुसफुसाई, 'बहू जी, बाबा जी की पूजा तो अच्छी चली न? मैंने देखा, वे बाहर जाते हुए कितने खुश लग रहे थे। लगता है आपकी चूत ने उन्हें अच्छे से संतुष्ट कर दिया।' चंदनी की बात इतनी दोहरी अर्थ वाली थी कि आरती चौंक गई, उसका चेहरा लाल हो गया। वह मुड़ी, लेकिन चंदनी ने आंख मार दी—एक शरारती, जानबूझकर वाली। 'चुप रहो, चंदनी! क्या बकवास कर रही हो?' आरती ने धीमी आवाज में कहा, लेकिन उसके होंठों पर भी मुस्कान आ गई। चंदनी हंस पड़ी, 'अरे, बस मजाक था। लेकिन सच तो है न?' फिर वह डिनर बनाने के लिए चली गई, किचन में सब्जियां काटने लगी।
रात हो चुकी थी। घर में लाइटें जली हुईं, और गायत्री अपने कमरे में सो चुकी थी। आरती ने डिनर किया, लेकिन मन कहीं और था—बाबा के स्पर्श की यादें ताजा हो रही थीं। तभी दरवाजे की घंटी बजी। अंकुर, आरती का पति, ऑफिस से लौटा था। वह थका-हारा लग रहा था—सूट पर पसीने के धब्बे, बाल बिखरे हुए, और चेहरे पर थकान की लकीरें। 'हाय अल्लाह, आज मीटिंग्स ने मार डाला,' अंकुर ने दरवाजा बंद करते हुए कहा। आरती ने उसे देखा, लेकिन उसके मन में बाबा की छवि घूम रही थी। अंकुर ने जूते उतारे और सीधे बेडरूम में चला गया, बिना ज्यादा बात किए। 'आरती, पानी दे दे,' उसने बेड पर लेटते हुए कहा। आरती ने गिलास भरा और ले आई, लेकिन अंकुर की आंखें बंद हो चुकी थीं। वह सो गया, बिना आरती को छुए। आरती ने उसे देखा, फिर खुद बेड पर लेट गई। रात की शांति में, उसके शरीर में फिर से उत्तेजना जागने लगी—बाबा के लंड की यादें, चंदनी की शरारत, और आने वाले दिनों के राज़। घर सो रहा था, लेकिन हवा में वासना की गंध अभी भी बाकी थी।
आरती ने साबुन से अपने स्तनों को मला, निप्पल्स को उंगलियों से दबाते हुए, और नीचे चूत को अच्छे से धोया। पानी उसके बालों से बहता हुआ, उसके कूल्हों पर रुका, और वह खुद को तरोताजा महसूस करने लगी। 'अब ये राज़ और गहरा हो गया,' उसने आईने में अपनी मुस्कान देखी, जहां उसके गालों पर हल्की लाली बाकी थी। बाथरूम से बाहर निकलते हुए, उसने मैक्सी पहन ली—वही ढीली वाली, जो उसके शरीर की गोलाइयों को छुपा लेती थी। बाल गीले थे, और चेहरे पर कोई मेकअप नहीं। वह किचन की ओर बढ़ी, कॉफी बनाने के लिए, लेकिन जैसे ही वह बाहर आई, गायत्री ने उसे रोक लिया।
गायत्री सोफे पर बैठी हुई थी, हाथ में गीता की किताब लिए, लेकिन उसकी नजरें आरती पर टिक गईं। 'अरे बहू, तू नहा क्यों आई? अभी तो शाम हुई है, और तू बेड से उठी ही तो लग रही है। क्या हुआ, कोई बीमारी तो नहीं?' गायत्री की आवाज में संदेह था, उसके भौंहें सिकुड़ी हुईं। आरती का दिल धक् से रह गया। वह घबरा गई, उसके चेहरे पर पसीना छूटने लगा। 'मां जी, वो... वो तो बस... गर्मी लग गई थी। थोड़ा सिर दर्द हो रहा था, सोचा नहा लूं तो ठीक हो जाए,' आरती ने झूठ बोलते हुए कहा, अपनी आंखें नीचे झुकाकर। उसके दिमाग में तेजी से बहाने घूम रहे थे—उसकी शरारती बुद्धि काम कर रही थी। 'और हां, बाल धोए थे, इसलिए देर हो गई।'
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So finally I have created my account
after being reader of long time . No be ready to enjoy the depth of my created world.
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