30-10-2025, 01:00 PM
शाम का समय था, और बाबा कालिचरण आरती के कमरे से चुपके से बाहर निकले। उनके चेहरे पर संतुष्टि की मुस्कान थी, क्योंकि उन्होंने अपनी भक्तिन आरती को घंटों तक चोदा था। आरती अब बेड पर नंगी लेटी हुई थी, सिर्फ एक पतली चादर से ढकी हुई। उसकी चूत अभी भी गीली थी, बाबा के वीर्य से भरी हुई, और उसके होंठों पर थकान की लाली बाकी थी। वह गहरी नींद में सो रही थी, उसके स्तनों की हल्की-हल्की सांसें चादर को ऊपर-नीचे कर रही थीं। बाबा ने दरवाजा धीरे से बंद किया और घर के पिछवाड़े की ओर बढ़े, जहां से वे गुप्त रूप से आते-जाते थे।
बाहर, घर के पिछवाड़े में नौकरानी चंदनी झाड़ू लगा रही थी। वह एक 25 साल की जवान औरत थी, जिसके शरीर में कामुकता झलकती थी—उसकी साड़ी की ब्लाउज उसके उभरे हुए स्तनों को कसकर जकड़े हुए था, और कमर पर बंधी पेटीकोट उसके कूल्हों की गोलाई को उभार रही थी। चंदनी ने बाबा को आते देखा, जब वे पीछे के दरवाजे से निकल रहे थे। उनके कपड़ों पर आरती के पसीने और रस की महक आ रही थी, और उनके लंड का आकार अभी भी पैंट में उभरा हुआ था। चंदनी की नजरें बाबा के चेहरे पर ठहर गईं, फिर नीचे सरक गईं। वह जानती थी कि बाबा अंदर क्या कर रहे थे—आरती की सिसकारियां उसे कभी-कभी सुनाई दे जातीं।
चंदनी ने रहस्यमयी मुस्कान बिखेरी, उसके होंठों पर एक शरारती हल्की हंसी उभरी। 'बाबा जी, भक्ति का फल मिल गया?' उसने मन ही मन सोचा, लेकिन कुछ नहीं कहा। वह जानबूझकर नजरें फेर लीं और फिर से झाड़ू लगाने लगी, लेकिन उसकी आंखों में चमक थी। शायद वह भी बाबा की इस 'पूजा' में शामिल होना चाहती थी। बाबा ने उसे देखा, लेकिन बिना रुके बाहर चले गए, जबकि चंदनी का मन आरती के कमरे की ओर भटकने लगा। घर में शाम की शांति थी, लेकिन हवा में यौन उत्तेजना की गंध घुली हुई थी।
बाहर, घर के पिछवाड़े में नौकरानी चंदनी झाड़ू लगा रही थी। वह एक 25 साल की जवान औरत थी, जिसके शरीर में कामुकता झलकती थी—उसकी साड़ी की ब्लाउज उसके उभरे हुए स्तनों को कसकर जकड़े हुए था, और कमर पर बंधी पेटीकोट उसके कूल्हों की गोलाई को उभार रही थी। चंदनी ने बाबा को आते देखा, जब वे पीछे के दरवाजे से निकल रहे थे। उनके कपड़ों पर आरती के पसीने और रस की महक आ रही थी, और उनके लंड का आकार अभी भी पैंट में उभरा हुआ था। चंदनी की नजरें बाबा के चेहरे पर ठहर गईं, फिर नीचे सरक गईं। वह जानती थी कि बाबा अंदर क्या कर रहे थे—आरती की सिसकारियां उसे कभी-कभी सुनाई दे जातीं।
चंदनी ने रहस्यमयी मुस्कान बिखेरी, उसके होंठों पर एक शरारती हल्की हंसी उभरी। 'बाबा जी, भक्ति का फल मिल गया?' उसने मन ही मन सोचा, लेकिन कुछ नहीं कहा। वह जानबूझकर नजरें फेर लीं और फिर से झाड़ू लगाने लगी, लेकिन उसकी आंखों में चमक थी। शायद वह भी बाबा की इस 'पूजा' में शामिल होना चाहती थी। बाबा ने उसे देखा, लेकिन बिना रुके बाहर चले गए, जबकि चंदनी का मन आरती के कमरे की ओर भटकने लगा। घर में शाम की शांति थी, लेकिन हवा में यौन उत्तेजना की गंध घुली हुई थी।


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