30-10-2025, 12:59 PM
सुभद्रा ने गायत्री के कमरे में प्रवेश किया, जहां गायत्री बिस्तर पर लेटी हुई थीं। कमरे में भगवान की तस्वीरें लगी थीं, और हवा में अगरबत्ती की खुशबू फैली हुई थी। सुभद्रा ने गीता की किताब खोली और धीमी, मधुर आवाज में पढ़ना शुरू किया। 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय... श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय एक... धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे...'
लेकिन जैसे-जैसे वह पढ़ रही थी, उसकी आवाज में एक शरारती लय आ गई। कुछ पंक्तियों के बाद, वह रुक गई और मुस्कुराते हुए बोली, 'गायत्री जी, ये गीता तो सबको सिखाती है कि कर्तव्य निभाओ, लेकिन कभी-कभी तो आरती जैसी बहू को भी थोड़ा आराम मिलना चाहिए ना? इतनी संस्कारी है, घर संभालती है, लेकिन आज तो मैक्सी में घूम रही थी, बिंदी-लिपस्टिक भी नहीं लगाई। लगता है, कोई राज है!' सुभद्रा की आंखों में चमक थी, व्यंग्य से भरी हुई, जैसे वह जानती हो कि आरती का राज क्या है।
गायत्री चौंक गईं, किताब से नजर हटाकर सुभद्रा को देखा। 'अरे सुभद्रा बेटी, तू क्या कह रही है? आरती तो हमारी लाड़ली बहू है, बाबा कालिचरण की इतनी भक्त है। लेकिन हां... आज कुछ अजीब लग रही थी। पसीना, मैक्सी... शायद गर्मी होगी।' वे थोड़ा हिचकिचाईं, लेकिन सुभद्रा के शब्दों से उनके मन में संदेह जागा। फिर भी, वे आंशिक रूप से सहमत हो गईं, 'हालांकि, तू सही कह रही है। कभी-कभी ये नई पीढ़ी थोड़ा आजाद हो जाती है। लेकिन हम तो परंपरा निभाते हैं।'
सुभद्रा ने हंसते हुए किताब बंद की, 'जी हां, लेकिन आरती तो परफेक्ट है ना? किचन में काम, नहाना... और शायद कुछ और भी। कल्पना करो, अगर कोई गुप्त मिलन हो रहा हो!' वह फिर आंख मारी, लेकिन गायत्री ने हंस दिया, 'बस कर बेटी, गीता पढ़। लेकिन तूने सही कहा, थोड़ा रिलैक्स होना चाहिए।' कमरे में हल्की हंसी की लहर दौड़ी, लेकिन सुभद्रा के मन में आरती के राज की उत्सुकता बढ़ रही थी।
दूसरी ओर, आरती चाय बनाकर रख चुकी थी। वह चुपके से अपने अंधेरे बेडरूम में दाखिल हुई। कमरा धुंधला था, पर्दे बंद, सिर्फ बाहर की रोशनी की हल्की झलक। उसका दिल अभी भी धड़क रहा था, बाबा की याद से चूत में सिहरन हो रही थी। 'बाबा, कहां हो तुम? सब संभल गया...' वह फुसफुसाई, लेकिन तभी दरवाजा पीछे से बंद हो गया। कोई हाथ ने उसकी आंखें ढक लीं—नरम लेकिन मजबूत। फिर, एक उंगली उसके नाभि पर दब गई, धीरे-धीरे घूमने लगी, तेल की चिकनाहट से फिसलते हुए।
आरती चौंक गई, लेकिन उत्तेजना से सांस तेज हो गई। कान के पास गर्म सांस महसूस हुई, और फिर होंठ उसके कान की लौ पर चूमने लगे—हल्के, गुदगुदाते काट। 'श्श्श... चुप रहो मेरी भक्तिन,' एक गहरी, मर्दाना आवाज फुसफुसाई, जो बाबा की थी। 'तुम्हारी चूत अभी भी मेरे लंड की चाहत में गीली है ना? देखो, कैसे कांप रही हो।'
आरती की सांसें उखड़ने लगीं। नाभि पर उंगली दबाव बढ़ा रही थी, नीचे की ओर सरकते हुए। 'ब... बाबा जी... आप... यहां से निकले कैसे? मां जी तो... उफ्फ!' वह कराह उठी जब होंठ ने कान में काटा, जीभ से चाटा। बाबा का शरीर उसके पीछे चिपक गया, उनका सख्त लंड उसकी गांड से सटकर रगड़ रहा था। 'चिंता मत करो, मेरी रंडी। मैंने इंतजार किया, अब तुम्हारी बारी। अपनी मैक्सी ऊपर करो, मैं तुम्हारी नाभि चाटूंगा... फिर नीचे जाऊंगा।' उनकी उंगली अब पेट पर घूम रही थी, धीरे-धीरे चूत की ओर बढ़ते हुए।
आरती का शरीर पिघल रहा था, लेकिन बाहर से सुभद्रा और गायत्री की आवाजें आ रही थीं। क्या होगा अगर वे आ जाएं? उत्तेजना और डर से वह सिहर उठी, बाबा के स्पर्श में खोते हुए... लेकिन तभी, बाहर से कदमों की आहट सुनाई दी।
लेकिन जैसे-जैसे वह पढ़ रही थी, उसकी आवाज में एक शरारती लय आ गई। कुछ पंक्तियों के बाद, वह रुक गई और मुस्कुराते हुए बोली, 'गायत्री जी, ये गीता तो सबको सिखाती है कि कर्तव्य निभाओ, लेकिन कभी-कभी तो आरती जैसी बहू को भी थोड़ा आराम मिलना चाहिए ना? इतनी संस्कारी है, घर संभालती है, लेकिन आज तो मैक्सी में घूम रही थी, बिंदी-लिपस्टिक भी नहीं लगाई। लगता है, कोई राज है!' सुभद्रा की आंखों में चमक थी, व्यंग्य से भरी हुई, जैसे वह जानती हो कि आरती का राज क्या है।
गायत्री चौंक गईं, किताब से नजर हटाकर सुभद्रा को देखा। 'अरे सुभद्रा बेटी, तू क्या कह रही है? आरती तो हमारी लाड़ली बहू है, बाबा कालिचरण की इतनी भक्त है। लेकिन हां... आज कुछ अजीब लग रही थी। पसीना, मैक्सी... शायद गर्मी होगी।' वे थोड़ा हिचकिचाईं, लेकिन सुभद्रा के शब्दों से उनके मन में संदेह जागा। फिर भी, वे आंशिक रूप से सहमत हो गईं, 'हालांकि, तू सही कह रही है। कभी-कभी ये नई पीढ़ी थोड़ा आजाद हो जाती है। लेकिन हम तो परंपरा निभाते हैं।'
सुभद्रा ने हंसते हुए किताब बंद की, 'जी हां, लेकिन आरती तो परफेक्ट है ना? किचन में काम, नहाना... और शायद कुछ और भी। कल्पना करो, अगर कोई गुप्त मिलन हो रहा हो!' वह फिर आंख मारी, लेकिन गायत्री ने हंस दिया, 'बस कर बेटी, गीता पढ़। लेकिन तूने सही कहा, थोड़ा रिलैक्स होना चाहिए।' कमरे में हल्की हंसी की लहर दौड़ी, लेकिन सुभद्रा के मन में आरती के राज की उत्सुकता बढ़ रही थी।
दूसरी ओर, आरती चाय बनाकर रख चुकी थी। वह चुपके से अपने अंधेरे बेडरूम में दाखिल हुई। कमरा धुंधला था, पर्दे बंद, सिर्फ बाहर की रोशनी की हल्की झलक। उसका दिल अभी भी धड़क रहा था, बाबा की याद से चूत में सिहरन हो रही थी। 'बाबा, कहां हो तुम? सब संभल गया...' वह फुसफुसाई, लेकिन तभी दरवाजा पीछे से बंद हो गया। कोई हाथ ने उसकी आंखें ढक लीं—नरम लेकिन मजबूत। फिर, एक उंगली उसके नाभि पर दब गई, धीरे-धीरे घूमने लगी, तेल की चिकनाहट से फिसलते हुए।
आरती चौंक गई, लेकिन उत्तेजना से सांस तेज हो गई। कान के पास गर्म सांस महसूस हुई, और फिर होंठ उसके कान की लौ पर चूमने लगे—हल्के, गुदगुदाते काट। 'श्श्श... चुप रहो मेरी भक्तिन,' एक गहरी, मर्दाना आवाज फुसफुसाई, जो बाबा की थी। 'तुम्हारी चूत अभी भी मेरे लंड की चाहत में गीली है ना? देखो, कैसे कांप रही हो।'
आरती की सांसें उखड़ने लगीं। नाभि पर उंगली दबाव बढ़ा रही थी, नीचे की ओर सरकते हुए। 'ब... बाबा जी... आप... यहां से निकले कैसे? मां जी तो... उफ्फ!' वह कराह उठी जब होंठ ने कान में काटा, जीभ से चाटा। बाबा का शरीर उसके पीछे चिपक गया, उनका सख्त लंड उसकी गांड से सटकर रगड़ रहा था। 'चिंता मत करो, मेरी रंडी। मैंने इंतजार किया, अब तुम्हारी बारी। अपनी मैक्सी ऊपर करो, मैं तुम्हारी नाभि चाटूंगा... फिर नीचे जाऊंगा।' उनकी उंगली अब पेट पर घूम रही थी, धीरे-धीरे चूत की ओर बढ़ते हुए।
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So finally I have created my account
after being reader of long time . No be ready to enjoy the depth of my created world.
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