30-10-2025, 12:58 PM
आरती ने जल्दी से अपनी मैक्सी ठीक की, लेकिन बिंदी और लिपस्टिक लगाना भूल गई। उसका चेहरा अभी भी लाल था, शरीर पर तेल की चमक और पसीना साफ दिख रहा था। अंदर से वह खुद को कोस रही थी—'क्या बेवकूफ हूं मैं, इतना सब कुछ भूल गई!' लेकिन बाहर से उसने एक नकली मीठी मुस्कान चिपका ली। डोरबेल फिर बजी, और वह दरवाजे की ओर बढ़ी। दिल की धड़कन तेज थी, लेकिन उसने दरवाजा खोला।
गायत्री अंदर आईं, उनके चेहरे पर भी एक सौम्य मुस्कान थी। पूजा का थैला हाथ में लिए, वे बोलीं, 'आरती बेटी, मैं आ गई। मंदिर में इतना समय लग गया।' लेकिन जैसे ही उन्होंने आरती को गौर से देखा, उनकी भौंहें सिकुड़ गईं। 'अरे, तेरी बिंदी-लिपस्टिक कहां है? और ये मैक्सी क्या पहने हो? साड़ी क्यों नहीं पहनी? तू तो हमेशा घर में साड़ी ही पहनती है, संस्कारी बहू की तरह।'
आरती का दिल बैठ गया। वह घबरा गई, हाथ-पैर फूल गए। 'म... मां जी, वो... मैं... बस, थोड़ा काम था... उफ्फ!' वह बहाना बनाने लगी, लेकिन दिमाग खाली हो गया। तभी, दरवाजे पर दस्तक हुई। आरती की पड़ोसन सुभद्रा अंदर आ गई—वह सेक्सी और करीबी दोस्त थी, हमेशा हंसमुख और चुलबुली। सुभद्रा ने सफेद साड़ी में एंट्री मारी, उसके कर्व्स साफ झलक रहे थे, और मुस्कुराते हुए बोली, 'अरे गायत्री जी, नमस्ते! मैं तो बस चाय पीने आ गई। आरती, तेरी चाय का इंतजार हो रहा है!' उसने विषय बदल दिया, जैसे जानबूझकर।
आरती ने राहत की सांस ली और मन ही मन सुभद्रा को थैंक्यू कहा। 'हां सुभद्रा, तू बिठा ले मां जी को। मैं चाय बना रही हूं।' वह जल्दी से किचन की ओर भागी, लेकिन रुककर सुभद्रा को धीरे से बोली, 'थैंक्यू यार, तूने बचा लिया।'
सुभद्रा ने गायत्री को सोफे पर बिठाते हुए, व्यंग्यात्मक और हास्यपूर्ण अंदाज में आरती की तारीफ की। 'वाह गायत्री जी, क्या बहू है आपकी! इतनी संस्कारी, घर संभालती है, चाय बनाती है... बस, कभी-कभी थोड़ा रिलैक्स हो जाती है।' वह आंख मारते हुए मुस्कुराई, लेकिन गायत्री ने नोटिस नहीं किया। सुभद्रा की आवाज में एक छिपी हुई शरारत थी, जैसे वह आरती के राज को जानती हो।
गायत्री ने फिर आरती की ओर देखा, जो किचन से चाय का सामान निकाल रही थी। 'आरती, तू क्या कर रही थी? इतनी घबराई हुई क्यों लग रही है?' उनकी नजर आरती के पसीने से तरबतर चेहरे और मैक्सी पर पड़ी, जो थोड़ी गीली लग रही थी।
आरती ने झूठ बोलते हुए कहा, 'मां जी, बस किचन में काम कर रही थी... फिर नहा ली। थोड़ा गर्मी लग रही है ना।' वह चाय उबालते हुए मुस्कुराने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अंदर से बाबा के बारे में सोच रही थी, जो अभी भी उसके कमरे में छुपे हुए थे। उसकी चूत अभी भी गीली थी, बाबा के लंड की याद से सिहरन हो रही थी।
गायत्री हैरान हुईं। 'नहाई? लेकिन तू तो नहाने के बाद साड़ी पहनती है। और ये पसीना... लगता है तूने अभी काम किया है।' वे थोड़ा संदेह से देख रही थीं, लेकिन फिर अनदेखा कर दिया। 'चल, कोई बात नहीं। मैं थक गई हूं, नींद आ रही है।'
गायत्री उठीं और अपने कमरे की ओर चली गईं। रास्ते में सुभद्रा को पुकारा, 'सुभद्रा बेटी, आ जा। गीता पढ़ दे मुझे, सोने से पहले। तू तो अच्छे से पढ़ती है।' सुभद्रा ने आरती की ओर एक रहस्यमयी मुस्कान दी, जैसे कह रही हो—'मैं सब जानती हूं'—और फिर स्मirk के साथ गायत्री के कमरे में चली गई। 'हां जी, आ रही हूं। गीता की चौपाइयां सुनाते हैं।' लेकिन अंदर से वह सोच रही थी, आरती के इस गुप्त खेल को।
आरती किचन में खड़ी रही, सांस लेते हुए। बाबा अभी भी छुपे थे, और उसका शरीर अभी भी उत्तेजना से भरा था। चाय बनाते हुए वह सोच रही थी, कैसे सब संभालेगी।
गायत्री अंदर आईं, उनके चेहरे पर भी एक सौम्य मुस्कान थी। पूजा का थैला हाथ में लिए, वे बोलीं, 'आरती बेटी, मैं आ गई। मंदिर में इतना समय लग गया।' लेकिन जैसे ही उन्होंने आरती को गौर से देखा, उनकी भौंहें सिकुड़ गईं। 'अरे, तेरी बिंदी-लिपस्टिक कहां है? और ये मैक्सी क्या पहने हो? साड़ी क्यों नहीं पहनी? तू तो हमेशा घर में साड़ी ही पहनती है, संस्कारी बहू की तरह।'
आरती का दिल बैठ गया। वह घबरा गई, हाथ-पैर फूल गए। 'म... मां जी, वो... मैं... बस, थोड़ा काम था... उफ्फ!' वह बहाना बनाने लगी, लेकिन दिमाग खाली हो गया। तभी, दरवाजे पर दस्तक हुई। आरती की पड़ोसन सुभद्रा अंदर आ गई—वह सेक्सी और करीबी दोस्त थी, हमेशा हंसमुख और चुलबुली। सुभद्रा ने सफेद साड़ी में एंट्री मारी, उसके कर्व्स साफ झलक रहे थे, और मुस्कुराते हुए बोली, 'अरे गायत्री जी, नमस्ते! मैं तो बस चाय पीने आ गई। आरती, तेरी चाय का इंतजार हो रहा है!' उसने विषय बदल दिया, जैसे जानबूझकर।
आरती ने राहत की सांस ली और मन ही मन सुभद्रा को थैंक्यू कहा। 'हां सुभद्रा, तू बिठा ले मां जी को। मैं चाय बना रही हूं।' वह जल्दी से किचन की ओर भागी, लेकिन रुककर सुभद्रा को धीरे से बोली, 'थैंक्यू यार, तूने बचा लिया।'
सुभद्रा ने गायत्री को सोफे पर बिठाते हुए, व्यंग्यात्मक और हास्यपूर्ण अंदाज में आरती की तारीफ की। 'वाह गायत्री जी, क्या बहू है आपकी! इतनी संस्कारी, घर संभालती है, चाय बनाती है... बस, कभी-कभी थोड़ा रिलैक्स हो जाती है।' वह आंख मारते हुए मुस्कुराई, लेकिन गायत्री ने नोटिस नहीं किया। सुभद्रा की आवाज में एक छिपी हुई शरारत थी, जैसे वह आरती के राज को जानती हो।
गायत्री ने फिर आरती की ओर देखा, जो किचन से चाय का सामान निकाल रही थी। 'आरती, तू क्या कर रही थी? इतनी घबराई हुई क्यों लग रही है?' उनकी नजर आरती के पसीने से तरबतर चेहरे और मैक्सी पर पड़ी, जो थोड़ी गीली लग रही थी।
आरती ने झूठ बोलते हुए कहा, 'मां जी, बस किचन में काम कर रही थी... फिर नहा ली। थोड़ा गर्मी लग रही है ना।' वह चाय उबालते हुए मुस्कुराने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अंदर से बाबा के बारे में सोच रही थी, जो अभी भी उसके कमरे में छुपे हुए थे। उसकी चूत अभी भी गीली थी, बाबा के लंड की याद से सिहरन हो रही थी।
गायत्री हैरान हुईं। 'नहाई? लेकिन तू तो नहाने के बाद साड़ी पहनती है। और ये पसीना... लगता है तूने अभी काम किया है।' वे थोड़ा संदेह से देख रही थीं, लेकिन फिर अनदेखा कर दिया। 'चल, कोई बात नहीं। मैं थक गई हूं, नींद आ रही है।'
गायत्री उठीं और अपने कमरे की ओर चली गईं। रास्ते में सुभद्रा को पुकारा, 'सुभद्रा बेटी, आ जा। गीता पढ़ दे मुझे, सोने से पहले। तू तो अच्छे से पढ़ती है।' सुभद्रा ने आरती की ओर एक रहस्यमयी मुस्कान दी, जैसे कह रही हो—'मैं सब जानती हूं'—और फिर स्मirk के साथ गायत्री के कमरे में चली गई। 'हां जी, आ रही हूं। गीता की चौपाइयां सुनाते हैं।' लेकिन अंदर से वह सोच रही थी, आरती के इस गुप्त खेल को।
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So finally I have created my account
after being reader of long time . No be ready to enjoy the depth of my created world.
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