28-09-2025, 10:10 AM
(This post was last modified: 03-10-2025, 07:37 AM by mike_kite56. Edited 3 times in total. Edited 3 times in total.)
PART 6 - CONT'D
सनाया बस के कोने में खड़ी है, एक बार को कसके पकड़े हुए, जैसे वो ही उसकी जान है। उसके आस-पास सब घिनौने, नाटे, घुप्प काले मर्द खड़े हैं—लुंगी पहने, पसीने से लथपथ, उनके बदन से गटर की बू आ रही है। सबके सब बुरे तरीके से गर्म हो रहे हैं, कसमसा रहे हैं, बस देख रहे हैं। आँखों में गंदा नशा चढ़ रहा है, जैसे कोई सस्ती दारू पी ली हो। इतने बड़े घर की, हद से ज़्यादा गोरी, गुदाज़, लंबी स्वादिष्ट लड़की अपनी जांघें नंगी करके उनके इतने पास खड़ी है—उसकी स्कर्ट ऊपर सरकी हुई, गोरी, मांसल जांघें चमक रही हैं। सनाया का चेहरा सख्त, होंठ कसे हुए, लेकिन अंदर से उसकी साँसें तेज़, जैसे भीड़ की गर्मी उसके बदन को छू रही हो। वो फोन स्क्रीन पर नज़रें गड़ाए रखती है, बैग कंधे पर टंगा हुआ है।
सनाया के दाएँ और दो घुप्प काले, नाटे मज़दूर सीट पर बैठे हैं, लुंगी ऊपर सरकी हुई, उनके पेट निकले हुए, चेहरे घिनौने, दाँत पीले। सनाया उसी सीट पर अपनी गांड टिका के खड़ी है, उसकी फूली हुई, गोल गांड लुंगी वाले मर्द के कंधे से सट रही है, हल्की सी रगड़ खा रही है। उसकी लंबाई की वजह से उसकी हद से ज़्यादा गोरी, गुदाज़ नंगी जांघें पहली सीट पर बैठे मज़दूर के एकदम पास हैं—उसके चेहरे से बस दो इंच दूर। वो मज़दूर—एक 45 साल का घिनौना, कलमुहा, पसीने से तर, अपनी आँखें फाड़कर सनाया की नंगी जांघों को कसके घूरता है। उसकी साँसें फूली हुई, मुँह से हल्की सी सिसकारी। फिर वो आस-पास खड़े बाकी मज़दूरों को देखके इशारा करता है—आँखें फाड़कर—"बाप रे!" मन तो सबका कर रहा है, लंड पैंट में फड़फड़ा रहे हैं, लेकिन हिम्मत नहीं। बस घूर रहे हैं, कसमसा रहे हैं, एक-दूसरे को कोहनी मार रहे हैं, लेकिन कुछ कर भी नहीं पाते—डर लगता है।
सनाया सख्त चेहरा बनाए रखती है, फोन पर स्क्रॉल करती रहती है, लेकिन उसके कानों में उनकी फुसफुसाहट सुनाई दे रही हैं, जांघों पर उनकी नज़रों का एहसास हो रहा है। दूसरे ही स्टॉप पर लगभग सारे मज़दूर उतर जाते हैं—शायद सब एक ही ग्रुप में कहीं दीहाड़ी पर जा रहे हैं। बस खाली हो जाती है, सीटें खाली, हवा में अब सिर्फ़ पसीने की बू।
बस पाँच-छह घुप्प काले, लुंगी पहने, घिनौने, बदसूरत मज़दूर रह जाते हैं—कुछ खड़े, कुछ बैठे, लेकिन सबकी नज़रें अभी भी सनाया पर। इनमें से चार तो लोड़ू, चोदू, गाँडू और मुट्ठल ही हैं, जो सनाया के बाएँ और थोड़ा सा दूर खड़े हैं, एक-दूसरे को कोहनी मारते, लेकिन आँखें सनाया की नंगी जांघों पर अटकी।
देखो, ठरक सारे मर्दों में होती है, लेकिन कुछ मर्द ऐसे होते हैं जिनसे ठरक बर्दाश्त नहीं होती, और वो खुलके अपनी घिनौनी इच्छाएँ दिखाने लगते हैं। इन मर्दों को एक बार एहसास हो जाए कि सामने वाली बड़े घर की, अमीर, हद से ज़्यादा गोरी, गदराई हुई, स्वादिष्ट औरत या लड़की पटने को तैयार है, तो ये खुलके घिनौनी हरकतें और रंडाने इशारे करके उस औरत या लड़की को पटा लेते हैं।
बस में देश की सबसे गरम, हद से ज़्यादा गोरी, भरे हुए स्वादिष्ट बदन वाली सनाया खड़ी है, अपने हद से ज़्यादा गोरे जांघों को मादरजात नंगा करके। सनाया जहाँ खड़ी है, वहीँ खड़ी रहती है, और नाटे घिनौने मर्द उसके आस-पास बिखरे हुए हैं। सब अंदर ही अंदर कसमसा रहे हैं। उनके मन में उथल-पुथल मची हुई है। लोड़ू, चोदू, गाँडू और मुट्ठल एक ग्रुप में सनाया के बाएँ और थोड़ा सा दूर खड़े हैं—उनकी अश्लील बातें शुरू हो जाती है।
गाँडू: (कानाफूसी में, ठरक से मुँह बिचकाते हुए) कहीं ये भी वैसी तो नहीं—नंगा मज़ा देने वाली बड़े घर की लड़की? अबे, हद से ज़्यादा गोरी और भरी हुई है, गांड, मम्मे, सब भयंकर तरीके से फूले हुए हैं—ए भाई, ए!! बहुत मन कर रहा है, नंगा चूसना है इसे!!
लोड़ू: (हँसते हुए, लुंगी के ऊपर से लंड खुजाते हुए) हाँ यार! पर लग नहीं रहा! वैसी है तो माँ कसम, क्या गंदा मज़ा मिलेगा!
चोदू: (आँखें फाड़कर, सनाया की जांघों को ताड़ते हुए) हाँ बे! इतनी गोरी है! पानी निकल रहा है मेरा!
मुट्ठल: (मुँह से लार टपकाते) साले, वो गांड देख! एकदम फूली हुई है, ले चुकी है अंदर ये!
सनाया के दाएँ और थोड़ा दूर दो और मज़दूर खड़े हैं, उनके मुँह सटे हुए, काना-फूसी चल रही है। उनकी आँखें सनाया की जांघों पर, जैसे भूखे कुत्ते।
मज़दूर 1: (कान में फुसफुसाते, आँखें सनाया की जांघों पर) आााीशशशशश! बहुत मन कर रहा है!
मज़दूर 2: (हल्के से हँसते, लुंगी के नीचे लंड दबाते) साले, ये तो बहुत अमीर घर की लग रही है। कसके पटाने का मन कर रहा है! चल करते है! जो होगा देखा जायेगा!
इधर लोड़ू, चोदू, गाँडू, और मुट्ठल की बातें चल रही हैं।
मुट्ठल: (सीट की तरफ इशारा करते, आँखें सनाया पर) सीट खाली हो चुकी है। ये बैठ क्यों नहीं रही?
गाँडू: (हँसते हुए) अरे, बड़े घर की है बे! गंदी सीट पर क्यों बैठेगी?
तभी सनाया उस सीट पर बैठ जाती है, एक टाँग के ऊपर दूसरी, उसकी गोरी, गुदाज़ जांघें और नंगी हो गयी हैं, गांड का उभार स्कर्ट में कस गया।
लोड़ू: (फुसफुसाते) लो! बैठ गई!
गाँडू: (हैरानी से) साले, वो देख! वो दोनों झुक के क्या देख रहे हैं??
सनाया के दाएँ वाले दो मज़दूर बारी-बारी नीचे झुक रहे हैं, उनकी आँखें सनाया की पूरी तरह नंगी जांघों पर। उनके हाथ लुंगी के नीचे, लंड मसल रहे हैं, साँसें तेज़, मुँह ठरक से कसा हुआ।
लोड़ू: (हल्के से गुस्से में, लेकिन ठरक भरा) भेनचोद! इनमें तो कोई डर ही नहीं है!
चोदू: (आँखें फाड़कर, फुसफुसाते) साले, ये लड़की कुछ बोल क्यों नहीं रही इनको?
लोड़ू: (गन्दी उत्साह में) माँ का! कहीं ये भी पटने वाली तो नहीं बे?
मुट्ठल: (लुंगी ठीक करते, आँखें सनाया पर) हाँ, बे! वैसी माल है!
गाँडू: (हल्के से डरते, फुसफुसाते) चुप साले! कहीं हम गलत हुए तो? मुझे फिर से थाने नहीं जाना!
चोदू: (फुसफुसाते) हाँ, बे! रुक जा! इन दोनों हरामियों को पटा लेने दे। देखते हैं, क्या होता है।
मुट्ठल: (हल्के से सिर हिलाते) हाँ, बे! थोड़ा रुक जा। अगर ये माल वैसी निकली, तो मज़ा ले लेंगे!
सनाया चुप, फोन पर रील्स स्क्रॉल करती रहती है, लेकिन उसकी आँखें हल्की सी उठती हैं, जैसे उन दो मज़दूरों की हरकतों को नोटिस कर रही हो। वो होंठ काटती है, साँसें तेज़, लेकिन चेहरा सख्त।
सनाया बस के कोने में खड़ी है, एक बार को कसके पकड़े हुए, जैसे वो ही उसकी जान है। उसके आस-पास सब घिनौने, नाटे, घुप्प काले मर्द खड़े हैं—लुंगी पहने, पसीने से लथपथ, उनके बदन से गटर की बू आ रही है। सबके सब बुरे तरीके से गर्म हो रहे हैं, कसमसा रहे हैं, बस देख रहे हैं। आँखों में गंदा नशा चढ़ रहा है, जैसे कोई सस्ती दारू पी ली हो। इतने बड़े घर की, हद से ज़्यादा गोरी, गुदाज़, लंबी स्वादिष्ट लड़की अपनी जांघें नंगी करके उनके इतने पास खड़ी है—उसकी स्कर्ट ऊपर सरकी हुई, गोरी, मांसल जांघें चमक रही हैं। सनाया का चेहरा सख्त, होंठ कसे हुए, लेकिन अंदर से उसकी साँसें तेज़, जैसे भीड़ की गर्मी उसके बदन को छू रही हो। वो फोन स्क्रीन पर नज़रें गड़ाए रखती है, बैग कंधे पर टंगा हुआ है।
सनाया के दाएँ और दो घुप्प काले, नाटे मज़दूर सीट पर बैठे हैं, लुंगी ऊपर सरकी हुई, उनके पेट निकले हुए, चेहरे घिनौने, दाँत पीले। सनाया उसी सीट पर अपनी गांड टिका के खड़ी है, उसकी फूली हुई, गोल गांड लुंगी वाले मर्द के कंधे से सट रही है, हल्की सी रगड़ खा रही है। उसकी लंबाई की वजह से उसकी हद से ज़्यादा गोरी, गुदाज़ नंगी जांघें पहली सीट पर बैठे मज़दूर के एकदम पास हैं—उसके चेहरे से बस दो इंच दूर। वो मज़दूर—एक 45 साल का घिनौना, कलमुहा, पसीने से तर, अपनी आँखें फाड़कर सनाया की नंगी जांघों को कसके घूरता है। उसकी साँसें फूली हुई, मुँह से हल्की सी सिसकारी। फिर वो आस-पास खड़े बाकी मज़दूरों को देखके इशारा करता है—आँखें फाड़कर—"बाप रे!" मन तो सबका कर रहा है, लंड पैंट में फड़फड़ा रहे हैं, लेकिन हिम्मत नहीं। बस घूर रहे हैं, कसमसा रहे हैं, एक-दूसरे को कोहनी मार रहे हैं, लेकिन कुछ कर भी नहीं पाते—डर लगता है।
सनाया सख्त चेहरा बनाए रखती है, फोन पर स्क्रॉल करती रहती है, लेकिन उसके कानों में उनकी फुसफुसाहट सुनाई दे रही हैं, जांघों पर उनकी नज़रों का एहसास हो रहा है। दूसरे ही स्टॉप पर लगभग सारे मज़दूर उतर जाते हैं—शायद सब एक ही ग्रुप में कहीं दीहाड़ी पर जा रहे हैं। बस खाली हो जाती है, सीटें खाली, हवा में अब सिर्फ़ पसीने की बू।
बस पाँच-छह घुप्प काले, लुंगी पहने, घिनौने, बदसूरत मज़दूर रह जाते हैं—कुछ खड़े, कुछ बैठे, लेकिन सबकी नज़रें अभी भी सनाया पर। इनमें से चार तो लोड़ू, चोदू, गाँडू और मुट्ठल ही हैं, जो सनाया के बाएँ और थोड़ा सा दूर खड़े हैं, एक-दूसरे को कोहनी मारते, लेकिन आँखें सनाया की नंगी जांघों पर अटकी।
देखो, ठरक सारे मर्दों में होती है, लेकिन कुछ मर्द ऐसे होते हैं जिनसे ठरक बर्दाश्त नहीं होती, और वो खुलके अपनी घिनौनी इच्छाएँ दिखाने लगते हैं। इन मर्दों को एक बार एहसास हो जाए कि सामने वाली बड़े घर की, अमीर, हद से ज़्यादा गोरी, गदराई हुई, स्वादिष्ट औरत या लड़की पटने को तैयार है, तो ये खुलके घिनौनी हरकतें और रंडाने इशारे करके उस औरत या लड़की को पटा लेते हैं।
बस में देश की सबसे गरम, हद से ज़्यादा गोरी, भरे हुए स्वादिष्ट बदन वाली सनाया खड़ी है, अपने हद से ज़्यादा गोरे जांघों को मादरजात नंगा करके। सनाया जहाँ खड़ी है, वहीँ खड़ी रहती है, और नाटे घिनौने मर्द उसके आस-पास बिखरे हुए हैं। सब अंदर ही अंदर कसमसा रहे हैं। उनके मन में उथल-पुथल मची हुई है। लोड़ू, चोदू, गाँडू और मुट्ठल एक ग्रुप में सनाया के बाएँ और थोड़ा सा दूर खड़े हैं—उनकी अश्लील बातें शुरू हो जाती है।
गाँडू: (कानाफूसी में, ठरक से मुँह बिचकाते हुए) कहीं ये भी वैसी तो नहीं—नंगा मज़ा देने वाली बड़े घर की लड़की? अबे, हद से ज़्यादा गोरी और भरी हुई है, गांड, मम्मे, सब भयंकर तरीके से फूले हुए हैं—ए भाई, ए!! बहुत मन कर रहा है, नंगा चूसना है इसे!!
लोड़ू: (हँसते हुए, लुंगी के ऊपर से लंड खुजाते हुए) हाँ यार! पर लग नहीं रहा! वैसी है तो माँ कसम, क्या गंदा मज़ा मिलेगा!
चोदू: (आँखें फाड़कर, सनाया की जांघों को ताड़ते हुए) हाँ बे! इतनी गोरी है! पानी निकल रहा है मेरा!
मुट्ठल: (मुँह से लार टपकाते) साले, वो गांड देख! एकदम फूली हुई है, ले चुकी है अंदर ये!
सनाया के दाएँ और थोड़ा दूर दो और मज़दूर खड़े हैं, उनके मुँह सटे हुए, काना-फूसी चल रही है। उनकी आँखें सनाया की जांघों पर, जैसे भूखे कुत्ते।
मज़दूर 1: (कान में फुसफुसाते, आँखें सनाया की जांघों पर) आााीशशशशश! बहुत मन कर रहा है!
मज़दूर 2: (हल्के से हँसते, लुंगी के नीचे लंड दबाते) साले, ये तो बहुत अमीर घर की लग रही है। कसके पटाने का मन कर रहा है! चल करते है! जो होगा देखा जायेगा!
इधर लोड़ू, चोदू, गाँडू, और मुट्ठल की बातें चल रही हैं।
मुट्ठल: (सीट की तरफ इशारा करते, आँखें सनाया पर) सीट खाली हो चुकी है। ये बैठ क्यों नहीं रही?
गाँडू: (हँसते हुए) अरे, बड़े घर की है बे! गंदी सीट पर क्यों बैठेगी?
तभी सनाया उस सीट पर बैठ जाती है, एक टाँग के ऊपर दूसरी, उसकी गोरी, गुदाज़ जांघें और नंगी हो गयी हैं, गांड का उभार स्कर्ट में कस गया।
लोड़ू: (फुसफुसाते) लो! बैठ गई!
गाँडू: (हैरानी से) साले, वो देख! वो दोनों झुक के क्या देख रहे हैं??
सनाया के दाएँ वाले दो मज़दूर बारी-बारी नीचे झुक रहे हैं, उनकी आँखें सनाया की पूरी तरह नंगी जांघों पर। उनके हाथ लुंगी के नीचे, लंड मसल रहे हैं, साँसें तेज़, मुँह ठरक से कसा हुआ।
लोड़ू: (हल्के से गुस्से में, लेकिन ठरक भरा) भेनचोद! इनमें तो कोई डर ही नहीं है!
चोदू: (आँखें फाड़कर, फुसफुसाते) साले, ये लड़की कुछ बोल क्यों नहीं रही इनको?
लोड़ू: (गन्दी उत्साह में) माँ का! कहीं ये भी पटने वाली तो नहीं बे?
मुट्ठल: (लुंगी ठीक करते, आँखें सनाया पर) हाँ, बे! वैसी माल है!
गाँडू: (हल्के से डरते, फुसफुसाते) चुप साले! कहीं हम गलत हुए तो? मुझे फिर से थाने नहीं जाना!
चोदू: (फुसफुसाते) हाँ, बे! रुक जा! इन दोनों हरामियों को पटा लेने दे। देखते हैं, क्या होता है।
मुट्ठल: (हल्के से सिर हिलाते) हाँ, बे! थोड़ा रुक जा। अगर ये माल वैसी निकली, तो मज़ा ले लेंगे!
सनाया चुप, फोन पर रील्स स्क्रॉल करती रहती है, लेकिन उसकी आँखें हल्की सी उठती हैं, जैसे उन दो मज़दूरों की हरकतों को नोटिस कर रही हो। वो होंठ काटती है, साँसें तेज़, लेकिन चेहरा सख्त।


![[+]](https://xossipy.com/themes/sharepoint/collapse_collapsed.png)