20-09-2025, 11:34 PM
(This post was last modified: 26-09-2025, 01:01 PM by mike_kite56. Edited 10 times in total. Edited 10 times in total.)
PART 6 - NAYE CHARACTER KI ENTRY - SANAYA - 21 YEARS - COLLEGE GIRL!!
दिल्ली का एक पॉश कॉलेज, जहाँ हरे-भरे लॉन, ग्लास की इमारतें, और महंगी कारों की पार्किंग। अमीर घरों के 19 साल से ऊपर के लड़के-लड़कियाँ यहाँ पढ़ते हैं—डिज़ाइनर बैग, ब्रांडेड जूते, और हवा में महंगे परफ्यूम की महक। इस कॉलेज में यूनिफार्म पहनी जाती है।
कॉलेज का स्टाफ रूम साफ-सुथरा, एयर-कंडीशंड, लकड़ी की टेबल, कुर्सियाँ, और दीवार पर किताबों की शेल्फ। दोपहर के 2 बजे।
सनाया, 19 साल की वो माल, स्टाफ रूम में घुसती है। छोटी स्कर्ट, जो उसकी हद से ज्यादा गोरी, मांसल जांघों को मुश्किल से ढक रही है, शर्ट टाइट, टाई ढीली, बेल्ट कमर पर कसी हुई, फ्लैट जूते और सॉक्स। 5 फुट 9 इंच की लंबी, गोरी चमड़ी इतनी चिकनी कि लाइट में चमक रही है। उसके मम्मे बड़े, गोल, तने हुए, शर्ट के बटनों पर खिंचे हुए, जैसे कभी झुकने का नाम न लें। जांघें मोटी, मुलायम, गुदाज़, स्कर्ट के नीचे से झांक रही हैं, जैसे चूसने लायक हों। गांड फूली हुई, गोल, इतनी उभरी कि स्कर्ट में कसी हुई लग रही है। सनप्रीत और अजंता जितनी ही हद से ज्यादा गर्म, लेकिन 19 साल की ताज़गी के साथ—होंठ गुलाबी, आँखें काली, चमकती हुई। वो स्टाफ रूम में पूर्णिमा को ढूंढती है, जो टेबल पर फाइलें सॉर्ट कर रही है।
पूर्णिमा, 30 साल की, वो ही टीचर जो पुराने टॉयलेट में तीन नीच मर्दों के साथ गंदा सेक्स कर रही थी, लेकिन बाहर से शरीफ, पर हद से ज़्यादा गोरी, लंबी, मांसल। गाँडू और उस दिन का कांड छुपा हुआ है, कोई हवा भी नहीं।
सनाया पूर्णिमा के पास जाती है, उसके कूल्हे मटकते हैं।
सनाया: (आवाज़ में शराफत, लेकिन हल्की सी मुस्कान, टेबल पर झुकते हुए) पूर्णिमा मैम?
पूर्णिमा: (फाइल से नजर उठाते हुए, हल्के से मुस्कुराते हुए, आँखें सनाया के चेहरे पर) हाँ, सनाया? आओ, बैठो। असाइनमेंट का क्या सीन है?
सनाया कुर्सी पर बैठती है, स्कर्ट और ऊपर सरक जाती है, हद से ज़्यादा गोरी, मांसल जांघें और नंगी हो जाती हैं। वो अपना नोटबुक टेबल पर रखती है, उंगलियाँ बालों में फेरती है।
सनाया: (नोटबुक खोलते हुए, आवाज़ में उत्सुकता) मैम, वो सोशियोलॉजी का असाइनमेंट... आपने कहा था कि स्लम्स और अमीर इलाकों के बीच क्लास डिफरेंस पर। मैंने ड्राफ्ट लिखा है, लेकिन इंट्रोडक्शन में कुछ स्टक हूँ। आप देख लीजिए?
पूर्णिमा: (नोटबुक की तरफ झुकते हुए, हल्के से सिर हिलाते हुए) हाँ, दिखाओ। (पढ़ते हुए, पेन से नोट्स मारते हुए) अच्छा है, सनाया। लेकिन इंट्रो में डायरेक्ट फैक्ट्स डाल दो—जैसे, दिल्ली में 20% पॉपुलेशन स्लम्स में, लेकिन वो 80% लेबर फोर्स हैं। ये बैलेंस करेगा।
सनाया: (आँखें चमकती, झुककर पढ़ते हुए) ओह, हाँ मैम, ये अच्छा रहेगा। लेकिन मैम, बॉडी में मैंने इंटरव्यूज ऐड किए हैं—कुछ स्लम के लोगों से। वो रियल लगेंगे?
पूर्णिमा: (हल्के से हँसते हुए, सनाया की तरफ देखते हुए) बिलकुल रियल। लेकिन सेंसिटिव रखना। तुम्हारा व्यू पॉइंट बैलेंस्ड रखो।
सनाया: (होंठ काटते हुए, थोड़ा सोचते हुए) हाँ, मैम। मैंने एक स्लम विजिट का मेंशन किया है—वो रॉ था। लेकिन क्या वो ओवर लगेगा?
पूर्णिमा: (नोटबुक बंद करते हुए, मुस्कुराते हुए) नहीं, अच्छा है। रियल एक्सपीरियंस ऐड करता है। बस, कंक्लूजन में सॉल्यूशन सजेस्ट करो।
सनाया: (उठते हुए, नोटबुक उठाते हुए, हल्के से स्माइल) थैंक यू मैम। कल सबमिट कर दूँगी। आप बेस्ट टीचर हो!
पूर्णिमा: (हँसते हुए, सनाया की तरफ) थैंक्स, सनाया। गुड लक।
सनाया स्टाफ रूम से बाहर जाती है, उसके कूल्हे मटकते हुए, जांघें स्कर्ट में चमकती हुई।
***
कॉलेज की छुट्टी हो चुकी है, अभी दोपहर के 2:45 बज रहे है। सनाया लाइब्रेरी में असाइनमेंट पर काम करके बाहर निकल रही है, उसका बैग कंधे पर, स्कर्ट हल्की सी मटक रही है। उसका फोन वाइब्रेट करता है, स्क्रीन पर ड्राइवर का नाम। वो कॉरिडोर में रुककर कॉल लेती है, गोरी उंगलियाँ स्क्रीन पर।
सनाया: (आवाज़ में हल्की चिंता, लेकिन शांत) हेलो, अंकल? क्या हुआ?
ड्राइवर: (आवाज़ में घबराहट, बैकग्राउंड में गैरेज की आवाज़ें) बिटिया, गाड़ी रास्ते में खराब हो गई। मैं गैरेज में ले गया हूँ। आपकी मम्मी ने कहा है कि किसी दोस्त की गाड़ी में लिफ्ट ले लो।
सनाया: (हल्के से सिर खुजाते हुए, लाइब्रेरी के गेट पर रुककर) अरे, ओके अंकल। कितनी देर लगेगी ठीक करने में?
ड्राइवर: (हिचकिचाते हुए) दो-तीन घंटे तो लगेंगे। आप टेंशन मत लो।
सनाया: (हल्के से स्माइल, लेकिन अंदर चिंता) ठीक है, अंकल। मैं देख लूँगी। कॉल कटती है। सनाया लाइब्रेरी के अंदर वापस जाती है, लाइब्रेरियन—एक घरेलू सी दिखने वाली औरत, 40 की, साड़ी में, चश्मा लगाए—को पुस्तकें रिटर्न करते हुए पूछती है।
सनाया: (काउंटर पर झुकते हुए, बैग साइड में) मैम, आप तो जा रही होंगी? कोई लिफ्ट मिल जाएगी?
लाइब्रेरियन: (किताबें स्कैन करते हुए, मुस्कुराते हुए) अरे सनाया, आज लेट हो गई? मैं तो दूसरे रूट से जा रही हूँ, चार टीचर्स के साथ कार पूल का वादा है। तुम गेट के बाहर जाकर देख लो, शायद दोस्त मिल जाएँ। आज के दिन सारे कैब वालो की और ऑटो वालो की हड़ताल है|
सनाया: (हल्के से सिर हिलाते हुए) ओके मैम।
सनाया बैग उठाकर लाइब्रेरी से निकलती है - कॉलेज के गेट की तरफ जाती है। गेट के साइड में पार्किंग लॉट, लेकिन एक भी कार नहीं—सब दोस्त कब के निकल चुके। सनाया गेट से बाहर निकलती है, सड़क पर सूरज तेज़, दोपहर के 3 बज रहे हैं। वो बस स्टैंड तक चलती है, पैर हल्के से थकते हुए, स्कर्ट हवा में लहराती।
सिटी बस की फ्रीक्वेंसी कम, अगली बस 20 मिनट बाद। वो एक टूटे-फूटे, गंदे छोटे सिटी बस में चढ़ जाती है। बस पुरानी, सीटें फटी हुई, हवा में पसीने और धूल की बू। अंदर खचाखच भीड़, ज्यादातर नीच, सड़कछाप मज़दूर—घुप्प काले, 5 फुट से भी नाटे, कुछ बैठे, कुछ खड़े। हिलने तक की जगह नहीं, सबके बदन एक-दूसरे से सटे। सनाया जैसे बड़े घर की, हद से ज़्यादा गोरी, इतनी गरम लड़की को देखके नीच मर्दो का बुरी तरह से टनटनाने लगता है|
सनाया का स्टॉप बहुत दूर है। वो कंडक्टर को पैसे देते हुए टिकट लेती है, कंडक्टर—एक मोटा, पसीने से लथपथ मर्द—उसे देखकर आँखें फाड़ता है।
कंडक्टर: (टिकट देते हुए, आवाज़ में कर्कशता, लेकिन नजर सनाया की जांघों पर) 50 रुपये। पीछे कोने में खड़ी हो जाओ, तुम्हारा स्टॉप लास्ट में है। आगे भीड़ है।
सनाया: (हल्के से मुस्कुराते हुए, टिकट लेते हुए) ओके।
सनाया बस के पीछे कोने में धकेलती हुई जाती है, भीड़ में रगड़ खाते हुए, उसके मम्मे किसी के कंधे से सट जाते हैं, जांघें किसी बाज़ू से जो बैठा हुआ है। वो कोने में खड़ी हो जाती है, बैग सीने से लगाकर, साँसें तेज़।
दिल्ली का एक पॉश कॉलेज, जहाँ हरे-भरे लॉन, ग्लास की इमारतें, और महंगी कारों की पार्किंग। अमीर घरों के 19 साल से ऊपर के लड़के-लड़कियाँ यहाँ पढ़ते हैं—डिज़ाइनर बैग, ब्रांडेड जूते, और हवा में महंगे परफ्यूम की महक। इस कॉलेज में यूनिफार्म पहनी जाती है।
कॉलेज का स्टाफ रूम साफ-सुथरा, एयर-कंडीशंड, लकड़ी की टेबल, कुर्सियाँ, और दीवार पर किताबों की शेल्फ। दोपहर के 2 बजे।
सनाया, 19 साल की वो माल, स्टाफ रूम में घुसती है। छोटी स्कर्ट, जो उसकी हद से ज्यादा गोरी, मांसल जांघों को मुश्किल से ढक रही है, शर्ट टाइट, टाई ढीली, बेल्ट कमर पर कसी हुई, फ्लैट जूते और सॉक्स। 5 फुट 9 इंच की लंबी, गोरी चमड़ी इतनी चिकनी कि लाइट में चमक रही है। उसके मम्मे बड़े, गोल, तने हुए, शर्ट के बटनों पर खिंचे हुए, जैसे कभी झुकने का नाम न लें। जांघें मोटी, मुलायम, गुदाज़, स्कर्ट के नीचे से झांक रही हैं, जैसे चूसने लायक हों। गांड फूली हुई, गोल, इतनी उभरी कि स्कर्ट में कसी हुई लग रही है। सनप्रीत और अजंता जितनी ही हद से ज्यादा गर्म, लेकिन 19 साल की ताज़गी के साथ—होंठ गुलाबी, आँखें काली, चमकती हुई। वो स्टाफ रूम में पूर्णिमा को ढूंढती है, जो टेबल पर फाइलें सॉर्ट कर रही है।
पूर्णिमा, 30 साल की, वो ही टीचर जो पुराने टॉयलेट में तीन नीच मर्दों के साथ गंदा सेक्स कर रही थी, लेकिन बाहर से शरीफ, पर हद से ज़्यादा गोरी, लंबी, मांसल। गाँडू और उस दिन का कांड छुपा हुआ है, कोई हवा भी नहीं।
सनाया पूर्णिमा के पास जाती है, उसके कूल्हे मटकते हैं।
सनाया: (आवाज़ में शराफत, लेकिन हल्की सी मुस्कान, टेबल पर झुकते हुए) पूर्णिमा मैम?
पूर्णिमा: (फाइल से नजर उठाते हुए, हल्के से मुस्कुराते हुए, आँखें सनाया के चेहरे पर) हाँ, सनाया? आओ, बैठो। असाइनमेंट का क्या सीन है?
सनाया कुर्सी पर बैठती है, स्कर्ट और ऊपर सरक जाती है, हद से ज़्यादा गोरी, मांसल जांघें और नंगी हो जाती हैं। वो अपना नोटबुक टेबल पर रखती है, उंगलियाँ बालों में फेरती है।
सनाया: (नोटबुक खोलते हुए, आवाज़ में उत्सुकता) मैम, वो सोशियोलॉजी का असाइनमेंट... आपने कहा था कि स्लम्स और अमीर इलाकों के बीच क्लास डिफरेंस पर। मैंने ड्राफ्ट लिखा है, लेकिन इंट्रोडक्शन में कुछ स्टक हूँ। आप देख लीजिए?
पूर्णिमा: (नोटबुक की तरफ झुकते हुए, हल्के से सिर हिलाते हुए) हाँ, दिखाओ। (पढ़ते हुए, पेन से नोट्स मारते हुए) अच्छा है, सनाया। लेकिन इंट्रो में डायरेक्ट फैक्ट्स डाल दो—जैसे, दिल्ली में 20% पॉपुलेशन स्लम्स में, लेकिन वो 80% लेबर फोर्स हैं। ये बैलेंस करेगा।
सनाया: (आँखें चमकती, झुककर पढ़ते हुए) ओह, हाँ मैम, ये अच्छा रहेगा। लेकिन मैम, बॉडी में मैंने इंटरव्यूज ऐड किए हैं—कुछ स्लम के लोगों से। वो रियल लगेंगे?
पूर्णिमा: (हल्के से हँसते हुए, सनाया की तरफ देखते हुए) बिलकुल रियल। लेकिन सेंसिटिव रखना। तुम्हारा व्यू पॉइंट बैलेंस्ड रखो।
सनाया: (होंठ काटते हुए, थोड़ा सोचते हुए) हाँ, मैम। मैंने एक स्लम विजिट का मेंशन किया है—वो रॉ था। लेकिन क्या वो ओवर लगेगा?
पूर्णिमा: (नोटबुक बंद करते हुए, मुस्कुराते हुए) नहीं, अच्छा है। रियल एक्सपीरियंस ऐड करता है। बस, कंक्लूजन में सॉल्यूशन सजेस्ट करो।
सनाया: (उठते हुए, नोटबुक उठाते हुए, हल्के से स्माइल) थैंक यू मैम। कल सबमिट कर दूँगी। आप बेस्ट टीचर हो!
पूर्णिमा: (हँसते हुए, सनाया की तरफ) थैंक्स, सनाया। गुड लक।
सनाया स्टाफ रूम से बाहर जाती है, उसके कूल्हे मटकते हुए, जांघें स्कर्ट में चमकती हुई।
***
कॉलेज की छुट्टी हो चुकी है, अभी दोपहर के 2:45 बज रहे है। सनाया लाइब्रेरी में असाइनमेंट पर काम करके बाहर निकल रही है, उसका बैग कंधे पर, स्कर्ट हल्की सी मटक रही है। उसका फोन वाइब्रेट करता है, स्क्रीन पर ड्राइवर का नाम। वो कॉरिडोर में रुककर कॉल लेती है, गोरी उंगलियाँ स्क्रीन पर।
सनाया: (आवाज़ में हल्की चिंता, लेकिन शांत) हेलो, अंकल? क्या हुआ?
ड्राइवर: (आवाज़ में घबराहट, बैकग्राउंड में गैरेज की आवाज़ें) बिटिया, गाड़ी रास्ते में खराब हो गई। मैं गैरेज में ले गया हूँ। आपकी मम्मी ने कहा है कि किसी दोस्त की गाड़ी में लिफ्ट ले लो।
सनाया: (हल्के से सिर खुजाते हुए, लाइब्रेरी के गेट पर रुककर) अरे, ओके अंकल। कितनी देर लगेगी ठीक करने में?
ड्राइवर: (हिचकिचाते हुए) दो-तीन घंटे तो लगेंगे। आप टेंशन मत लो।
सनाया: (हल्के से स्माइल, लेकिन अंदर चिंता) ठीक है, अंकल। मैं देख लूँगी। कॉल कटती है। सनाया लाइब्रेरी के अंदर वापस जाती है, लाइब्रेरियन—एक घरेलू सी दिखने वाली औरत, 40 की, साड़ी में, चश्मा लगाए—को पुस्तकें रिटर्न करते हुए पूछती है।
सनाया: (काउंटर पर झुकते हुए, बैग साइड में) मैम, आप तो जा रही होंगी? कोई लिफ्ट मिल जाएगी?
लाइब्रेरियन: (किताबें स्कैन करते हुए, मुस्कुराते हुए) अरे सनाया, आज लेट हो गई? मैं तो दूसरे रूट से जा रही हूँ, चार टीचर्स के साथ कार पूल का वादा है। तुम गेट के बाहर जाकर देख लो, शायद दोस्त मिल जाएँ। आज के दिन सारे कैब वालो की और ऑटो वालो की हड़ताल है|
सनाया: (हल्के से सिर हिलाते हुए) ओके मैम।
सनाया बैग उठाकर लाइब्रेरी से निकलती है - कॉलेज के गेट की तरफ जाती है। गेट के साइड में पार्किंग लॉट, लेकिन एक भी कार नहीं—सब दोस्त कब के निकल चुके। सनाया गेट से बाहर निकलती है, सड़क पर सूरज तेज़, दोपहर के 3 बज रहे हैं। वो बस स्टैंड तक चलती है, पैर हल्के से थकते हुए, स्कर्ट हवा में लहराती।
सिटी बस की फ्रीक्वेंसी कम, अगली बस 20 मिनट बाद। वो एक टूटे-फूटे, गंदे छोटे सिटी बस में चढ़ जाती है। बस पुरानी, सीटें फटी हुई, हवा में पसीने और धूल की बू। अंदर खचाखच भीड़, ज्यादातर नीच, सड़कछाप मज़दूर—घुप्प काले, 5 फुट से भी नाटे, कुछ बैठे, कुछ खड़े। हिलने तक की जगह नहीं, सबके बदन एक-दूसरे से सटे। सनाया जैसे बड़े घर की, हद से ज़्यादा गोरी, इतनी गरम लड़की को देखके नीच मर्दो का बुरी तरह से टनटनाने लगता है|
सनाया का स्टॉप बहुत दूर है। वो कंडक्टर को पैसे देते हुए टिकट लेती है, कंडक्टर—एक मोटा, पसीने से लथपथ मर्द—उसे देखकर आँखें फाड़ता है।
कंडक्टर: (टिकट देते हुए, आवाज़ में कर्कशता, लेकिन नजर सनाया की जांघों पर) 50 रुपये। पीछे कोने में खड़ी हो जाओ, तुम्हारा स्टॉप लास्ट में है। आगे भीड़ है।
सनाया: (हल्के से मुस्कुराते हुए, टिकट लेते हुए) ओके।
सनाया बस के पीछे कोने में धकेलती हुई जाती है, भीड़ में रगड़ खाते हुए, उसके मम्मे किसी के कंधे से सट जाते हैं, जांघें किसी बाज़ू से जो बैठा हुआ है। वो कोने में खड़ी हो जाती है, बैग सीने से लगाकर, साँसें तेज़।


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