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Thriller Drugs Ka Dhanda (Pulp Fiction, Crime, Suspense, Triller Story - Hardcore BF)
#25
PART 5 - LODU, CHODU AUR MUTTHAL KI ENTRY (SAB 45-55 SAAL KE BEECH KE MIDDLE AGED MARD)

गाँडू अपने स्लम वाले इलाके में पहुँचता है। सुबह के 2 बजे हैं। स्लम की गलियाँ तंग, गंदी, कीचड़ से सनी, हवा में कचरे और पेशाब की बू। दीवारें टूटी-फूटी, टीन की चादरों से बने घर, जगह-जगह कचरे के ढेर, जिनमें कुत्ते भौंक रहे हैं। एक-दो लालटेन टिमटिमा रही हैं, बिजली के तार उलझे हुए, गलियों में पानी रिस रहा है। दूर से किसी की खाँसी की आवाज़।

गाँडू चुपके से अपनी खोली की तरफ बढ़ता है, उसके पैर कीचड़ में धंस रहे हैं, लुंगी पसीने से चिपकी, बनियान फटी हुई। वो अपनी खोली में घुसता है, दरवाजा थोड़ा खुला हुआ, टूटी कब्ज़ वाली लकड़ी का।

खोली बस एक छोटा सा कमरा, दीवारें काली पड़ चुकी, सीलन की बू। कोने में एक चूल्हा, कुछ बर्तन, और दीवार से सटे चार छोटे बिस्तर—पतले, गंदे गद्दे, चादरें मैली। बिस्तरों पर उसके जैसे ही तीन और सड़कछाप, घुप्प काले, 5 फुट से भी नाटे, पेट निकले, लुंगी पहने घिनौने मर्द लेटे हैं—लोड़ू, चोदू, मुट्ठल। सब सो रहे हैं, खर्राटों की आवाज़, एक का मुँह खुला, लार टपक रही है।

गाँडू चुपके से अपने बिस्तर पर पासर जाता है, लुंगी उतारकर फेंकता है, सिर्फ़ बनियान में, और सो जाता है, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

सुबह, स्लम का पब्लिक टॉयलेटसुबह 7 बजे: स्लम का पब्लिक टॉयलेट, बड़ा, लेकिन गंदा। 15-20 क्यूबिकल्स की लाइन, दीवारें पान की पीक से लाल, फर्श गीला, पेशाब और गंदगी की बू इतनी तेज़ कि साँस रुक जाए। बाहर कीचड़, कचरे के ढेर, और टूटी सड़क। पास में एक नलका, जहाँ पानी टपक रहा है।

कुछ और स्लमवाले इधर-उधर, कोई बाल्टी लिए, कोई साबुन लिए। गाँडू, लोड़ू, चोदू, और मुट्ठल चार क्यूबिकल्स में हगने बैठे हैं, बाहर से दिख नहीं रहे, लेकिन उनकी कर्कश आवाज़ें गूंज रही हैं।

गाँडू: (क्यूबिकल से, देहाती लहजे में, ज़ोर से) ओए लोड़ू!

लोड़ू: (पास वाले क्यूबिकल से, आवाज़ में भकचोदी) कल पूरा दिन कहाँ था, बे?

गाँडू: (हँसते हुए, मज़ाक में) थाने में था बे!

मुट्ठल: (तीसरे क्यूबिकल से, चिल्लाते हुए) हे! थाने में? क्या किया बे तूने!

चोदू: (लोड़ू और मुट्ठल के बीच वाले क्यूबिकल से, ठहाका मारते हुए) ताका-झाँकी किया होगा कहीं फिर से!

गाँडू: (आवाज़ में मज़ा, लेकिन गुस्सा) हाँ, किया था! पर जिसका कर रहे थे, उसको फड़क नहीं पड़ना था! ये साले मादरचोद क़िस्म के लोग होते हैं ना—कबाब में हड्डी! बहनचोद, खुद को कुछ मिलता नहीं, दूसरों को भी लेने नहीं देते!!

लोड़ू: (हँसते हुए, क्यूबिकल की दीवार पर थपथपाते हुए) हाँ बे!! ये जो ज़्यादा संस्कारी बनते हैं, वही सबसे बड़े मादरचोद होते हैं!!

चारों क्यूबिकल्स से अब बाहर हैं, लुंगी पहने, ऊपर से नंगे, घुप्प काले, पेट निकले, नाटे बदन। वो बाथरूम में बैठकर साबुन घिस-घिसकर नहाने लगते हैं। बाल्टियाँ और मग आसपास बिखरे हुए। लोड़ू, चोदू, और मुट्ठल गाँडू को घेरकर बैठते हैं, साबुन उनके काले, खुरदरे बदन पर फिसल रहा है, पानी टपक रहा है। लेकिन बातचीत अजंता पर चल रही है, सब अश्लील, भकचोदी भरी।

लोड़ू: (साबुन घिसते हुए, आँखें चमकती) क्या बात कर रहा है, बे!! बताओ, कैसी थी वो?

गाँडू: (हँसते हुए, साबुन अपने पेट पर मलते हुए) माँ का! वो नई मेम थी बे! फिल्मों में होना चाहिए उसे! सिक्युरिटी में क्या कर रही है, पता नहीं! हद से ज़्यादा गोरी, लंबी, गुदाज़, स्वादिष्ट बदन। लाल होंठ, चेहरा हीरोइन जैसा... नहीं बे, किसी भी हीरोइन से ज़्यादा खूबसूरत!

चोदू: (पानी डालते हुए, मुँह बिचकाते हुए) साले, सच बोल रहा है? कितनी गोरी?

गाँडू: (आँखें फाड़कर, भकचोदी में) अरे, एकदम दूध! जांघें इतनी मांसल। और वो मम्मे—बड़े, गोल, फूले हुए, तने हुए, यूनिफॉर्म में जैसे फटने को तैयार!

मुट्ठल: (साबुन अपने काले चूतड़ पर घिसते हुए, हँसते हुए) और गांड? बोल, साले, गांड कैसी थी?

गाँडू: (हँसते हुए, पानी का मग अपने सिर पर उड़ेलते हुए) गांड? माँ कसम, इतनी उभरी, इतनी गोल! यूनिफॉर्म में कसी हुई थी बे, हर कदम पर उछल रही थी।

लोड़ू: (आँखें चमकती, साबुन अपनी जांघों पर मलते हुए) साले, तू तो उसकी चूत तक चला गया होगा, ना?

गाँडू: (हँसते हुए, भकचोदी में) अरे, चूत तो नहीं देखी, लेकिन वो सेंट, बे! वो महक! जैसे कोई अमीर घर की माल हो। माँ कसम, पास खड़ी थी तो लंड फड़फड़ा गया!

चोदू: (पानी डालते हुए, मज़ाक में) साले, तूने कुछ किया? छुआ - दबाया?

गाँडू: (आँख मारते हुए, लेकिन मुट्ठल की तरफ देखते हुए) अरे, वो मेम थी बे! हाथ लगाता तो हड्डियाँ तोड़ देती। लेकिन उसकी आँखें—माँ कसम, जैसे वो भी मज़ा ले रही थी। कुछ तो गड़बड़ है उस मेम में!

मुट्ठल: (हँसते हुए, साबुन अपने पेट पर घिसते हुए) साले, मुझे भी कोई भकचोदी करके थाने जाना पड़ेगा!

गाँडू: (हँसते हुए, पानी अपने चेहरे पर छपकाते हुए) वो माल है बे! हम जैसे सड़कछापों के लिए नहीं। लेकिन मज़ा लिया, बे, आँखों से ही चोद लिया!

चारों हँसते हैं, पानी की छपछप और साबुन की फिसलन के बीच। लेकिन गाँडू अपनी खबरी की बात छुपाता है, जैसे कोई गहरा राज़ दबा लिया हो।

[Image: download.jpg]
[Image: gettyimages-1229684130-612x612.jpg]
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RE: Drugs Ka Dhanda (Pulp Fiction, Crime, Suspense, Triller Story - Hardcore BF) - by mike_kite56 - 20-09-2025, 10:57 PM



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