20-09-2025, 10:44 PM
Part 4 - CONT'D
अजंता दरवाजे की तरफ देखती है, जहाँ गाँडू हाँफता हुआ, गाली बकता हुआ भाग रहा है। उसकी आँखें सिकुड़ती हैं,जैसे उसकी ठरक और गुस्सा एक साथ उबल रहे हों।अजंता: (फुसफुसाते हुए, आँखें दरवाजे पर) "गाँडू साला।"
गाँडू के जाते ही अजंता के दिमाग में "NGO" शब्द खटकता है, जैसे कोई गहरी सुई चुभ गई हो। उसकी भौंहें सिकुड़ती हैं, उंगलियाँ यूनिफॉर्म की पॉकेट पर बेचैन। वो लॉकअप के ग्रिल्स के पास से चाल में टेबल की तरफ जाती है, उसकी मांसल जांघें यूनिफॉर्म में मटक रही हैं, गांड उछल रही है, जैसे हर कदम में ठरक और शक का मेल। वो टेबल पर पड़ा अपना स्मार्टफोन उठाती है, स्क्रीन अनलॉक करती है, और तेजी से एक कॉल लगाती है। उसकी गोरी उंगलियाँ स्क्रीन पर नाचती हैं, साँसें तेज, लेकिन बाहर से शांत।
अजंता: (आवाज़ में बनावटी शराफत, लेकिन उत्सुकता) हेलो! कृतिका!! हाँ, कैसे हो आप!!
फोन पर कृतिका की आवाज़ आती है, मखमली, लेकिन उसमें वो शैतानी खनक, जैसे वो हमेशा कुछ छुपा रही हो।
कृतिका: (आवाज़ में हल्की हँसी, जैसे अजंता को तौल रही हो) हाँ, अजंता!! कुछ दिनों से दिखी नहीं हो। आओ ना, कल हवेली पर!
अजंता टेबल के पास खड़ी, एक हाथ से फोन पकड़े, दूसरा हाथ अपनी जांघ पर, जैसे ठरक को दबा रही हो (शायद गांडू के फ्लैशबैक वाले कहानी का असर)।
अजंता: (आवाज़ में उत्साह, लेकिन शक छुपा) आऊँगी, आऊँगी!! लेकिन एक बात पूछनी थी आपसे। असल में मिलना था। कल शाम को आती हूँ क्लब में। सॉरी! हवेली में!! (थोड़ा हस्ती है)
कृतिका: (आवाज़ में शैतानी, जैसे जाल बिछा रही हो) हाँ, बिलकुल!! एक नया यूरोपियन हर्बल तेल और क्रीम मँगवाया है।
अजंता की आँखें चमकती हैं, लेकिन शक और ठरक का मिश्रण।
अजंता: (आवाज़ में उत्सुकता, लेकिन सावधानी) अच्छा!! क्या करता है ये!!
कृतिका: (आवाज़ धीमी, जैसे मज़ा ले रही हो) आओ तो कल। दिखाती हूँ!!
अजंता होंठ काटती है, जैसे कुछ सोच रही हो। उसकी उंगलियाँ फोन पर कस जाती हैं, साँसें तेज।
अजंता: (आवाज़ में शराफत, लेकिन शक भरा) ठीक है!!
कॉल कटती है। अजंता फोन टेबल पर रखती है।
अजंता दरवाजे की तरफ देखती है, जहाँ गाँडू हाँफता हुआ, गाली बकता हुआ भाग रहा है। उसकी आँखें सिकुड़ती हैं,जैसे उसकी ठरक और गुस्सा एक साथ उबल रहे हों।अजंता: (फुसफुसाते हुए, आँखें दरवाजे पर) "गाँडू साला।"
गाँडू के जाते ही अजंता के दिमाग में "NGO" शब्द खटकता है, जैसे कोई गहरी सुई चुभ गई हो। उसकी भौंहें सिकुड़ती हैं, उंगलियाँ यूनिफॉर्म की पॉकेट पर बेचैन। वो लॉकअप के ग्रिल्स के पास से चाल में टेबल की तरफ जाती है, उसकी मांसल जांघें यूनिफॉर्म में मटक रही हैं, गांड उछल रही है, जैसे हर कदम में ठरक और शक का मेल। वो टेबल पर पड़ा अपना स्मार्टफोन उठाती है, स्क्रीन अनलॉक करती है, और तेजी से एक कॉल लगाती है। उसकी गोरी उंगलियाँ स्क्रीन पर नाचती हैं, साँसें तेज, लेकिन बाहर से शांत।
अजंता: (आवाज़ में बनावटी शराफत, लेकिन उत्सुकता) हेलो! कृतिका!! हाँ, कैसे हो आप!!
फोन पर कृतिका की आवाज़ आती है, मखमली, लेकिन उसमें वो शैतानी खनक, जैसे वो हमेशा कुछ छुपा रही हो।
कृतिका: (आवाज़ में हल्की हँसी, जैसे अजंता को तौल रही हो) हाँ, अजंता!! कुछ दिनों से दिखी नहीं हो। आओ ना, कल हवेली पर!
अजंता टेबल के पास खड़ी, एक हाथ से फोन पकड़े, दूसरा हाथ अपनी जांघ पर, जैसे ठरक को दबा रही हो (शायद गांडू के फ्लैशबैक वाले कहानी का असर)।
अजंता: (आवाज़ में उत्साह, लेकिन शक छुपा) आऊँगी, आऊँगी!! लेकिन एक बात पूछनी थी आपसे। असल में मिलना था। कल शाम को आती हूँ क्लब में। सॉरी! हवेली में!! (थोड़ा हस्ती है)
कृतिका: (आवाज़ में शैतानी, जैसे जाल बिछा रही हो) हाँ, बिलकुल!! एक नया यूरोपियन हर्बल तेल और क्रीम मँगवाया है।
अजंता की आँखें चमकती हैं, लेकिन शक और ठरक का मिश्रण।
अजंता: (आवाज़ में उत्सुकता, लेकिन सावधानी) अच्छा!! क्या करता है ये!!
कृतिका: (आवाज़ धीमी, जैसे मज़ा ले रही हो) आओ तो कल। दिखाती हूँ!!
अजंता होंठ काटती है, जैसे कुछ सोच रही हो। उसकी उंगलियाँ फोन पर कस जाती हैं, साँसें तेज।
अजंता: (आवाज़ में शराफत, लेकिन शक भरा) ठीक है!!
कॉल कटती है। अजंता फोन टेबल पर रखती है।


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