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Incest राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक
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भाग 18: कॉलेज में नए दोस्त (दोस्ती की शुरुआत, साझा संघर्ष, और नई उम्मीदें)

दिल्ली शहर में राहुल का सफर अब कुछ हद तक स्थिर हो चला था, लेकिन हर दिन की तरह आज भी एक नई शुरुआत का एहसास था, जैसे शहर उसे लगातार नए रंग दिखा रहा हो। सुबह की ठंडी हवा कमरे की खिड़की से अंदर आ रही थी, बाहर की सड़कों पर ट्रैफिक की हॉर्न और लोगों की जल्दबाजी की आवाज़ें पहले से ही गूँज रही थीं। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए एक परिचित जगह बन चुका था – दीवारों पर हल्की नमी की वजह से थोड़ी सी फफूंद लगी हुई थी, बेड पर माँ की दी हुई पुरानी चादर बिछी हुई थी जो अभी भी घर की महक देती, और खिड़की से बाहर शहर की ऊँची बिल्डिंगों का नजारा दिख रहा था, जो रात में रोशनी से चमकतीं लेकिन दिन में बस एक व्यस्त दुनिया का हिस्सा लगतीं। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन कल की पार्टी की यादों में भटक रहा था – प्रिया और रिया के साथ वो पल जो मजेदार थे लेकिन guilt भी दे रहे थे। "प्रिया और रिया अच्छी दोस्त हैं, लेकिन लड़के दोस्त भी जरूरी हैं। कॉलेज में अकेला महसूस होता है," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की खालीपन था – गाँव में दोस्त थे, लेकिन यहां सब नया। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की सड़कें व्यस्त थीं, लोग अपने काम पर जा रहे थे, कुछ स्ट्रीट वेंडर चाय बेच रहे थे, उनकी केतलियों से भाप उठ रही थी, और हवा में धुँए और खाने की महक मिली हुई थी, जैसे शहर की सांस जो कभी रुकती नहीं। "आज कॉलेज में देखूँगा, शायद नए लोग मिलें। पढ़ाई पर फोकस रखना है," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उम्मीद जागी – नई दोस्ती जो शायद उसे शहर में अपनापन दे।
राहुल ने अपनी रूटीन शुरू की – कमरे में ही एक्सरसाइज की, पुशअप्स जहां उसके कंधे दर्द करते लेकिन मजबूत होते, सिटअप्स जो उसके पेट की मसल्स को कसते, और स्ट्रेचिंग जो उसके शरीर को लचीला बनाती, जैसे हर एक्सरसाइज उसे शहर की कठोरता से लड़ने के लिए तैयार कर रही हो। "शरीर मजबूत रहेगा तो मन भी मजबूत रहेगा," वो सोचता, और पसीना बहते हुए भी मुस्कुराता, क्योंकि physically वो अब अपनी सीमाओं को पार कर रहा था। नहाकर तैयार हुआ – सफेद शर्ट जो अब शहर की धूल से थोड़ी मैली हो गई थी, नीली पैंट जो गाँव से लाया था, और बैग में किताबें, नोटबुक, और डायरी जो उसके सपनों का साथी थी। लॉज के नीचे दुकान से चाय ली, गरम चाय की सिप लेते हुए सोचा, "माँ की चाय जैसी नहीं, लेकिन यहां की चाय में शहर का स्वाद है – तेज़, मसालेदार, और जीवन की तरह।" कॉलेज की ओर निकला – बस पकड़ी, भीड़ में खड़ा रहा, जहां लोग धक्का देते, कुछ लोग फोन पर बात करते, कुछ अखबार पढ़ते, लेकिन राहुल ने खुद को संभाला, "शहर है, आदत डालनी होगी।" बस से उतरकर कॉलेज पहुँचा – बड़ा गेट जहां छात्रों की भीड़ थी, लड़के-लड़कियाँ हँसते-बोलते, कुछ ग्रुप में गॉसिप करते, कुछ कैंटीन की ओर जा रहे। राहुल क्लासरूम में गया, अपनी सीट पर बैठा, मन में कल की पार्टी की याद – प्रिया और रिया की कराहें जो अभी भी उसके कानों में गूँज रही थीं, लेकिन वो खुद को रोकता, "दोस्त हैं, कुछ और नहीं।"
लेक्चर शुरू हुआ – मैथ्स का, टीचर इंटीग्रेशन समझा रहे थे, राहुल ध्यान से सुना, नोट्स लिए, हर फॉर्मूला को समझने की कोशिश की, जैसे गाँव में कॉलेज के दिनों की तरह लेकिन अब दांव बड़ा था। ब्रेक में प्रिया और रिया मिलीं – प्रिया आज व्हाइट टॉप और शॉर्ट्स में, जो उसके गोरे पैरों को उघाड़ रही थी, और रिया ब्लैक ड्रेस में, शरारती मुस्कान के साथ। "राहुल, कल पार्टी मजेदार थी न? फिर करेंगे," प्रिया ने कहा, उसकी आँखें चमक रही थीं। राहुल मुस्कुराया, "हाँ, लेकिन पढ़ाई पहले।" रिया ने चिढ़ाया, "अरे, लड़के दोस्त भी बना। क्लास में आकाश और वसंत हैं, अच्छे हैं। मिला?" राहुल ने ना कहा, "कौन हैं?" रिया ने बताया, "आकाश अमीर है, पापा का बिज़नेस, लेकिन लड़का अच्छा है, हेल्पफुल। वसंत ठीक-ठाक फैमिली से, लेकिन स्मार्ट। ग्रुप में ले लें?" राहुल ने हाँ कहा, "चलो मिलाते हैं।" ब्रेक में तीनों कैंटीन गए – वहाँ आकाश और वसंत बैठे थे। आकाश 19 साल का, अमीर घर से, महँगे कपड़े, घड़ी, लेकिन चेहरा सौम्य – काले बाल, गोरा रंग, और मुस्कान जो दोस्ताना लगती। वसंत 18 साल का, ठीक-ठाक फैमिली से, साधारण शर्ट-पैंट, लेकिन आँखें चालाक – भूरे बाल, साँवला रंग, और बातें स्मार्ट। रिया ने इंट्रोड्यूस किया, "ये राहुल, गाँव से नया आया।" आकाश ने हाथ मिलाया, "राहुल, वेलकम। मैं आकाश, पापा का बिज़नेस है, लेकिन मैं इंजीनियरिंग में इंटरेस्टेड हूँ। तू कहाँ से?" राहुल ने बताया, "रामपुर गाँव से, गरीब घर, लेकिन सपने बड़े।" आकाश ने सहानुभूति दिखाई, "भाई, मैं मदद करूँगा। नोट्स, किताबें, जो चाहिए बता। अमीर हूँ लेकिन दिल अच्छा है, कोई दिखावा नहीं।" वसंत मुस्कुराया, "मैं वसंत, ठीक-ठाक फैमिली, पापा सरकारी जॉब में। पढ़ाई पर फोकस है, लेकिन मजा भी करता हूँ। राहुल, तू स्मार्ट लगता है।" राहुल ने बातें की, "धन्यवाद भाई। गाँव में दोस्त थे, यहां अकेला था।" तीनों ने लंच शेयर किया, बातें – आकाश ने अपना घर बताया, बड़ा लेकिन अकेलापन, "पैसे हैं लेकिन दोस्त कम।" वसंत ने कहा, "मैं मिडल क्लास, लेकिन खुश।" राहुल ने अपना संघर्ष बताया, माँ की मेहनत, ठाकुर की क्रूरता। आकाश ने कहा, "राहुल, मैं हेल्प करूँगा। माँ को यहां बुला, जॉब मिलवा दूँगा।" दोस्ती की शुरुआत – हँसी, मजाक, और अपनापन।
अगले दिन कॉलेज – आकाश और वसंत से फिर मिला, क्लास में साथ बैठे। आकाश ने नोट्स दिए, "राहुल, ले। मैं अच्छा पढ़ता हूँ।" वसंत ने चिढ़ाया, "आकाश अमीर है, लेकिन लंच मैं लाया हूँ।" तीनों ने लंच किया, बातें – आकाश ने पार्टी प्लान की, "कल शाम कैफे चलें।" राहुल ने हाँ कहा, "चलो, लेकिन साधारण।" शाम को कैफे – कॉफी, सैंडविच। आकाश ने अपना जीवन बताया, "पापा बिज़नेसमैन, लेकिन मैं अलग बनना चाहता हूँ। इंजीनियरिंग से स्टार्टअप।" वसंत ने कहा, "मैं सरकारी जॉब करूँगा, लेकिन सपने हैं।" राहुल ने अपना गाँव बताया, "गरीबी देखी, लेकिन मजबूत बना।" दोस्ती गहराई – आकाश ने मदद ऑफर की, "राहुल, पैसों की जरूरत हो तो बता।" राहुल ने मना किया, "भाई, दोस्ती काफी है।" तीसरे दिन कॉलेज – ग्रुप प्रोजेक्ट, तीनों साथ। आकाश ने आईडिया दिया, वसंत ने कैलकुलेशन, राहुल ने हार्डवर्क। शाम को आकाश के घर – बड़ा घर, लेकिन सादा। आकाश ने कहा, "राहुल, यहां रह सकता है, लेकिन मैं जानता हूँ तू इंडिपेंडेंट है।" बातें लंबी, हँसी, और अपनापन। चौथे दिन जॉब के बाद मिले, वसंत ने कहा, "राहुल, तू मजबूत है। हम साथ हैं।" तीनों की दोस्ती पक्की – संघर्ष शेयर, सपने साझा, और शहर में अपनापन। राहुल ने डायरी लिखी, "नए दोस्त मिले, आकाश और वसंत। अब अकेला नहीं। लेकिन माँ की याद सता रही।" कहानी आगे बढ़ी, राहुल का विकास जारी।


दिल्ली शहर में राहुल का सफर अब कुछ हद तक सहज हो चला था, लेकिन हर सप्ताहांत एक नई ऊर्जा लेकर आता था, जैसे शहर उसे दोस्तों के माध्यम से अपनाने की कोशिश कर रहा हो। शाम की हल्की ठंडी हवा कमरे की खिड़की से अंदर आ रही थी, बाहर की सड़कों पर ट्रैफिक की लाइटें चमक रही थीं, और दूर से मेट्रो की आवाज़ सुनाई दे रही थी, जैसे शहर कभी सोता ही नहीं। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए एक आराम की जगह बन चुका था – दीवारों पर अब कुछ पोस्टर्स लगे थे जो कॉलेज से मिले थे, बेड पर माँ की चादर अभी भी घर की याद दिलाती, और खिड़की से बाहर शहर की व्यस्तता दिख रही थी, जो रात में और चमकदार लगती। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें अपनी डायरी पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन कल शाम आकाश और वसंत के साथ कैफे में बिताए समय में भटक रहा था – आकाश की मदद की बातें, वसंत की स्मार्ट टिप्स, और तीनों की हँसी जो उसे गाँव के दोस्तों की याद दिला रही थी। "आकाश अमीर है लेकिन अच्छा इंसान, वसंत जैसे मैं, संघर्ष समझता है। अब अकेला नहीं लगता," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की खुशी थी – दोस्ती जो अब उसकी जिंदगी का हिस्सा बन रही थी, लेकिन साथ ही माँ की याद जो अभी भी सता रही थी। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की सड़कें अब रात की रोशनी से जगमगा रही थीं, लोग घर लौट रहे थे, कुछ फूड स्टॉल पर चाट खाते हुए – और हवा में मसालों की महक मिली हुई थी, जैसे शहर की रातें कभी शांत नहीं होतीं। "कल आकाश ने आउटिंग प्लान की है, कहीं घूमने। अच्छा लगेगा," राहुल सोचता, और उसके मन में एक उत्साह था – नई जगहें देखना, दोस्तों के साथ समय बिताना, और शहर को बेहतर समझना।
राहुल ने अपनी शाम की रूटीन पूरी की – कमरे में एक्सरसाइज की, पुशअप्स जहां उसके कंधे अब पहले से ज्यादा सहनशील हो चुके थे, सिटअप्स जो उसके पेट की मसल्स को और कसते, और स्ट्रेचिंग जो उसके शरीर को तैयार रखती, जैसे हर वर्कआउट उसे शहर की रफ्तार से मैच करने के लिए मजबूत बना रहा हो। "अब जिम जॉइन करने का समय है, आकाश से पूछूँगा," वो सोचता, और पसीना पोंछते हुए मुस्कुराता, क्योंकि physically वो अब खुद पर गर्व महसूस कर रहा था। शाम को जॉब पर गया – राधा की दुकान, सामान बेचा, ग्राहकों से बातें की, और राधा की नजरों से बचा, "आंटी, काम अच्छा है। लेकिन सिर्फ जॉब," वो सोचता। जॉब खत्म कर लौटा, माँ को फोन किया – "माँ, कैसी हो? आ जाओ न अब," राहुल ने कहा। सुमन की आवाज थकी हुई, "बेटा, गाँव में व्यस्त हूँ। ठाकुर... वो अब रोज आता है, लेकिन मैं संभाल लूँगी। तू पढ़ाई कर।" राहुल का दिल दुखा, "माँ, क्यों नहीं छोड़तीं उससे? मैं पैसे भेजता हूँ।" सुमन चुप, "बेटा, अब आदत हो गई है। चिंता मत कर।" फोन रखकर राहुल ने डायरी में लिखा: "माँ की मजबूरी सताती है, लेकिन दोस्तों से ताकत मिल रही है। कल आउटिंग है, मजा आएगा। सपने मत भूल – इंजीनियर बनना, माँ को ले आना।" रात को पढ़ाई की, किताबें खोली, और सोया – शहर की आवाज़ें अभी भी नींद में बाधा डालतीं, लेकिन अब आदत हो रही थी।
अगला दिन – कॉलेज में आकाश और वसंत से मिला, क्लास में साथ बैठे। आकाश ने कहा, "राहुल, आज शाम आउटिंग – इंडिया गेट चलें, फिर डिनर। मैं कार लाऊँगा।" वसंत ने जोड़ा, "हाँ भाई, मजा आएगा। प्रिया और रिया को भी बुलाया?" राहुल ने हँसा, "नहीं, लड़कों की आउटिंग।" क्लास खत्म, शाम को मिले – आकाश की कार लग्जरी, लेकिन वो सादा ड्राइव करता। तीनों निकले – ट्रैफिक में बातें, आकाश ने अपना परिवार बताया, "पापा सख्त हैं, लेकिन मैं अलग रास्ता चुन रहा हूँ। स्टार्टअप करना चाहता हूँ।" वसंत ने कहा, "मैं सरकारी जॉब करूँगा, लेकिन सपने हैं – ट्रैवल करना।" राहुल ने अपना गाँव बताया, "गरीबी देखी, माँ की मेहनत। लेकिन अब शहर में सपने पूरे करूँगा।" इंडिया गेट पहुँचे – शाम की रोशनी में स्मारक चमक रहा था, लोग घूमते, आइसक्रीम वाले चिल्लाते। तीनों घूमे, फोटो लिए, हँसे – आकाश ने आइसक्रीम खरीदी, "भाई, मेरा ट्रीट।" वसंत ने चुटकुले सुनाए, "राहुल, गाँव में ट्रेन में चढ़ते कैसे थे?" राहुल हँसा, "भाई, धक्का मारकर।" दोस्ती गहराई – साझा हँसी, अनुभव शेयर। फिर डिनर – एक छोटा रेस्टोरेंट, चिकन करी, रोटी। आकाश ने कहा, "राहुल, अगर पैसों की जरूरत हो तो बता। मैं हेल्प करूँगा, लेकिन दोस्त की तरह।" राहुल ने शुक्रिया कहा, "भाई, तुम्हारी दोस्ती काफी है।" वसंत ने कहा, "हम तीनों साथ रहेंगे, सपने पूरे करेंगे।" शाम अच्छी बीती, राहुल लॉज लौटा, खुश लेकिन माँ की याद में दुखी। डायरी लिखी – "नए दोस्तों के साथ अच्छा लगा। आकाश और वसंत भाई जैसे। लेकिन माँ... जल्दी बुलाऊँगा।

दिल्ली शहर में राहुल का जीवन अब धीरे-धीरे एक पैटर्न में ढल रहा था, लेकिन हर नई घटना उसे याद दिलाती कि जीवन अप्रत्याशित है। सुबह की हल्की ठंडी हवा कमरे की खिड़की से अंदर आ रही थी, बाहर की सड़कों पर ट्रैफिक की हॉर्न और लोगों की जल्दबाजी की आवाज़ें पहले से ही गूँज रही थीं। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए एक आरामदायक जगह बन चुका था – दीवारों पर अब कुछ पोस्टर्स लगे थे जो कॉलेज से मिले थे, बेड पर माँ की चादर अभी भी घर की महक देती, और खिड़की से बाहर शहर की व्यस्तता दिख रही थी, जो रात में रोशनी से चमकती लेकिन दिन में बस एक व्यस्त दुनिया का हिस्सा लगती। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन कल शाम आकाश और वसंत के साथ बिताए समय में भटक रहा था – आकाश की मदद की बातें, वसंत की स्मार्ट टिप्स, और तीनों की हँसी जो उसे गाँव के दोस्तों की याद दिला रही थी। "आकाश और वसंत अच्छे दोस्त हैं, लेकिन प्रिया और रिया के साथ भी बैलेंस रखना है। आज कॉलेज में क्या होगा?" राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उत्सुकता थी – दोस्ती जो अब उसकी जिंदगी का हिस्सा बन रही थी, लेकिन साथ ही माँ की याद जो अभी भी सता रही थी। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की सड़कें व्यस्त थीं, लोग अपने काम पर जा रहे थे, कुछ स्ट्रीट वेंडर चाय बेच रहे थे, उनकी केतलियों से भाप उठ रही थी, और हवा में मसालों की महक मिली हुई थी, जैसे शहर की रातें कभी शांत नहीं होतीं। "आज आकाश ने ग्रुप प्रोजेक्ट मीटिंग बुलाई है, प्रिया और रिया भी आएंगी। अच्छा लगेगा सबके साथ," राहुल सोचता, और उसके मन में एक उत्साह था – नई दोस्ती जो उसे शहर में अपनापन दे रही थी।
राहुल ने अपनी रूटीन शुरू की – कमरे में ही एक्सरसाइज की, पुशअप्स जहां उसके कंधे अब पहले से ज्यादा सहनशील हो चुके थे, सिटअप्स जो उसके पेट की मसल्स को और कसते, और स्ट्रेचिंग जो उसके शरीर को तैयार रखती, जैसे हर वर्कआउट उसे शहर की रफ्तार से मैच करने के लिए मजबूत बना रहा हो। "अब जिम जॉइन करने का समय है, आकाश से पूछूँगा," वो सोचता, और पसीना पोंछते हुए मुस्कुराता, क्योंकि physically वो अब खुद पर गर्व महसूस कर रहा था। नहाकर तैयार हुआ – सफेद शर्ट जो अब शहर की धूल से थोड़ी मैली हो गई थी, नीली पैंट जो गाँव से लाया था, और बैग में किताबें, नोटबुक, और डायरी जो उसके सपनों का साथी थी। लॉज के नीचे दुकान से चाय ली, गरम चाय की सिप लेते हुए सोचा, "माँ की चाय जैसी नहीं, लेकिन यहां की चाय में शहर का स्वाद है – तेज़, मसालेदार, और जीवन की तरह।" कॉलेज की ओर निकला – बस पकड़ी, भीड़ में खड़ा रहा, जहां लोग धक्का देते, कुछ लोग फोन पर बात करते, कुछ अखबार पढ़ते, लेकिन राहुल ने खुद को संभाला, "शहर है, आदत डालनी होगी।" कॉलेज पहुँचा – बड़ा गेट जहां छात्रों की भीड़ थी, लड़के-लड़कियाँ हँसते-बोलते, कुछ ग्रुप में गॉसिप करते, कुछ कैंटीन की ओर जा रहे। राहुल क्लासरूम में गया, अपनी सीट पर बैठा, मन में कल की पार्टी की याद – प्रिया और रिया की कराहें जो अभी भी उसके कानों में गूँज रही थीं, लेकिन वो खुद को रोकता, "दोस्त हैं, कुछ और नहीं।"
लेक्चर शुरू हुआ – इंजीनियरिंग ड्रॉइंग का, टीचर बोर्ड पर डायग्राम बना रहे थे, राहुल ध्यान से सुना, नोट्स लिए, हर डिटेल को कॉपी किया, जैसे गाँव में कॉलेज के दिनों की तरह लेकिन अब दांव बड़ा था। ब्रेक में आकाश और वसंत मिले – आकाश आज कैजुअल टी-शर्ट में, जो उसके अमीर बैकग्राउंड को छिपाने की कोशिश कर रही थी, और वसंत साधारण शर्ट में, स्मार्ट लुक के साथ। "राहुल, आज शाम प्रोजेक्ट मीटिंग है। प्रिया और रिया भी आएंगी," आकाश ने कहा, उसकी मुस्कान दोस्ताना। राहुल ने हाँ कहा, "चलो, कैंटीन में प्लान करें।" कैंटीन में प्रिया और रिया भी आईं – प्रिया आज ब्लू जींस और व्हाइट टॉप में, जो उसके फिगर को हाइलाइट कर रही थी, और रिया शॉर्ट ड्रेस में, शरारती अंदाज़ में। पाँचों बैठे, प्रोजेक्ट पर डिस्कस – आकाश ने आईडिया दिया, "ये मॉडल बनाएंगे, मैं मटेरियल लाऊँगा।" वसंत ने कैलकुलेशन किया, "ये फॉर्मूला यूज करेंगे।" राहुल ने हार्डवर्क ऑफर किया, "मैं ड्रॉइंग बनाऊँगा।" प्रिया ने मुस्कुराकर कहा, "आकाश, तू हमेशा लीड करता है। अच्छा है।" राहुल ने नोटिस किया – आकाश की नजरें प्रिया पर थोड़ी ज्यादा टिक रही थीं, उसकी मुस्कान जब प्रिया बोलती तो और चौड़ी हो जाती, और वो प्रिया की हर बात पर सहमत होता। "क्या आकाश प्रिया को पसंद करता है?" राहुल सोचता, लेकिन कुछ नहीं कहा। मीटिंग खत्म, शाम को आकाश ने कहा, "राहुल, चल साथ रुक।" दोनों कैंटीन से बाहर निकले, आकाश ने राहुल से कहा, "भाई, प्रिया अच्छी लड़की है न? वो कैसी लगती है?" राहुल चौंका, "हाँ भाई, अच्छी दोस्त है। क्यों?" आकाश शर्मा गया, "बस यूं ही। वो मुझे पसंद है। लेकिन बताना मत।" राहुल स्तब्ध, "भाई, सच? वो अच्छी है, लेकिन रिया भी है।" आकाश ने बताया, "हाँ, पहली नजर में पसंद आ गई। लेकिन अमीर घर से है, मैं भी, लेकिन डर लगता है। तू मदद कर, बात करवा।" राहुल ने हाँ कहा, "भाई, दोस्त हूँ। लेकिन धीरे से।" राहुल का मन उलझा – "आकाश अच्छा लड़का है, प्रिया को सूट करेगा। लेकिन मैं क्या करूँ?"
अगले दिन कॉलेज – राहुल ने प्रिया से बात की, "प्रिया, आकाश कैसा लगता है?" प्रिया हँसी, "अच्छा है, अमीर लेकिन सादा। क्यों?" राहुल ने बताया, "वो तुझे पसंद करता है।" प्रिया चौंकी, लेकिन मुस्कुराई, "सच? वो अच्छा है। देखते हैं।" दोस्ती में नया ट्विस्ट – आकाश खुश, राहुल ने मदद की। शाम को ग्रुप में हँसी, लेकिन राहुल सोचता, "दोस्ती मजबूत हो रही है।" माँ को फोन, "बेटा, ठीक है?" राहुल, "माँ, आओ।" माँ टाली, "अभी नहीं।" राहुल दुखी, लेकिन दोस्तों से ताकत।


भाग 21: माँ से दूरी और आकाश की मदद (भावनात्मक फैसला, दोस्ती की मजबूती, और प्रिया की ओर पहला कदम)
दिल्ली शहर में राहुल का जीवन अब तेज़ रफ्तार से चल रहा था, लेकिन अंदर से एक तूफान था जो थमने का नाम नहीं ले रहा था। रात की गहराई में कमरे की खिड़की से बाहर की रोशनी अंदर छन रही थी, सड़कों पर कारों की आवाज़ें अभी भी गूँज रही थीं, और दूर से किसी बार की म्यूजिक की धुन सुनाई दे रही थी, जैसे शहर कभी सोता ही नहीं। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए एक अकेलेपन की जगह बन चुका था – दीवारों पर पोस्टर्स अब फीके लग रहे थे, बेड पर माँ की चादर अभी भी थी लेकिन उसकी महक कम हो रही थी, और खिड़की से बाहर शहर की व्यस्तता दिख रही थी जो अब बोझ लगने लगी थी। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें फोन पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन माँ सुमन की आखिरी कॉल में अटका था – "बेटा, मैं ठीक हूँ। ठाकुर अब मेरी जिंदगी का हिस्सा है। तू चिंता मत कर, अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे।" राहुल का दिल टूट रहा था, "माँ, क्यों खुद को ठाकुर की गिरफ्त में रख रही हो? क्या वो मजबूरी अब मजा बन गई है?" ये सोच उसे रुला देती, लेकिन अब वो थक चुका था – रोज़ की चिंता, guilt, और दूर से कुछ न कर पाने की बेबसी। "बस, अब माँ को उसके भरोसे छोड़ देता हूँ। वो खुद चुन रही है, मैं क्यों खुद को मारता रहूँ?" राहुल ने फैसला किया, और फोन बंद कर दिया – आज से कॉल बंद, माँ की जिंदगी उसकी, अपनी जिंदगी अपनी। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की रातें व्यस्त थीं, लोग अपनी दुनिया में मस्त, और हवा में ठंडक मिली हुई थी, जैसे शहर कह रहा हो, "आगे बढ़।" "अब सिर्फ खुद पर फोकस, सपने पूरे करूँगा, माँ को जबरदस्ती नहीं बुलाऊँगा," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की आजादी का एहसास था – दुख था, लेकिन बोझ कम हो रहा था।
राहुल ने अपनी रूटीन जारी रखी – सुबह एक्सरसाइज, कॉलेज जाना, जॉब पर फोकस। लेकिन अब माँ की कॉल बंद – पहले रोज़ फोन करता, अब नहीं। "माँ खुद चुनेगी, मैं अपनी जिंदगी बनाऊँगा," वो सोचता। कॉलेज में आकाश और वसंत से मिला – आकाश आज ब्लू शर्ट में, अमीर लेकिन सादा, और वसंत कैजुअल में, स्मार्ट लुक के साथ। "राहुल, आज शाम प्रोजेक्ट खत्म करेंगे। प्रिया भी आएगी," आकाश ने कहा, उसकी आँखों में प्रिया का नाम लेते ही चमक। राहुल ने नोटिस किया, "भाई, प्रिया को पसंद करता है, मदद करनी चाहिए।" क्लास में साथ बैठे, प्रोजेक्ट पर काम – आकाश ने आईडिया दिया, वसंत ने कैलकुलेशन, राहुल ने ड्रॉइंग। प्रिया आई, "गाइज, अच्छा काम।" आकाश शर्मा गया, प्रिया की तरफ देखता रहा। राहुल ने मौका देखा, प्रिया से अलग बात की, "प्रिया, आकाश अच्छा लड़का है। वो तुझे पसंद करता है, लेकिन कहने से डरता है।" प्रिया हँसी, "सच? वो क्यूट है। लेकिन मैं अभी रेडी नहीं, दोस्ती से शुरू करेंगे।" राहुल ने आकाश को बताया, "भाई, प्रिया को पता चल गया। वो इंटरेस्टेड है, लेकिन धीरे से।" आकाश खुश, "थैंक्स राहुल, तू सच्चा दोस्त है। क्या करूँ अब?" राहुल ने सलाह दी, "भाई, पहले बातें बढ़ा। कैफे ले जा, हेल्प कर उसकी। मैं ग्रुप में हेल्प करूँगा।" आकाश ने गले लगाया, "तू भाई है।"
अगले दिन कॉलेज – राहुल ने प्लान बनाया, ग्रुप में कैफे जाने का। प्रिया और रिया भी आईं। कैफे में बैठे, कॉफी ऑर्डर की। राहुल ने आकाश को सिग्नल दिया, आकाश ने प्रिया से बात शुरू की, "प्रिया, तू अच्छी पढ़ती है। हेल्प चाहिए तो बता।" प्रिया मुस्कुराई, "हाँ आकाश, थैंक्स। तू अमीर है लेकिन सादा लगता है।" आकाश शर्मा गया, लेकिन बातें चलीं – हॉबीज, फिल्में, सपने। राहुल ने मदद की, "प्रिया, आकाश का स्टार्टअप आईडिया अच्छा है। सुन।" प्रिया इंटरेस्टेड, "बताओ आकाश।" आकाश ने बताया, प्रिया की आँखें चमकीं, "वाह, इम्प्रेसिव।" दोस्ती में रोमांस की शुरुआत – आकाश खुश, राहुल ने देखा, "अच्छा लग रहा।" वसंत ने चिढ़ाया, "आकाश, अब तो डेट पर ले जा।" सब हँसे। शाम अच्छी बीती, राहुल लौटा, डायरी लिखी – "माँ से दूरी बनाई, दुख है लेकिन जरूरी। आकाश की मदद की, प्रिया को पटाने में। दोस्ती मजबूत।

दिल्ली शहर में राहुल का जीवन अब दोस्तों की वजह से थोड़ा रंगीन हो चला था, लेकिन हर मीटिंग में कुछ न कुछ सरप्राइज छिपा होता था, जैसे शहर की गलियाँ जहाँ हर मोड़ पर नई कहानी मिलती है। शाम की हल्की ठंडक अब बढ़ रही थी, सूरज डूबने की कगार पर था, और सड़कों पर कैफे की लाइटें चालू हो चुकी थीं, जहाँ युवा ग्रुप्स हँसते-बोलते बैठे थे। राहुल का लॉज का कमरा अब उसके लिए एक रेस्टिंग प्लेस था – दीवारों पर कॉलेज के पोस्टर्स, बेड पर किताबें बिखरी हुईं, और खिड़की से बाहर कैफे की भीड़ दिख रही थी, जो उसे बाहर निकलने का न्योता दे रही थी। राहुल तैयार हो रहा था, उसकी आँखें फोन पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन कल शाम आकाश की बातों में था – "भाई, प्रिया को पता चल गया है, अब क्या करूँ?" राहुल मुस्कुराया, "आकाश अच्छा लड़का है, प्रिया के लिए परफेक्ट। आज कॉफी पर प्लान है, मदद करूँगा।" वो उठा, शर्ट-पैंट पहनी, बैग कंधे पर लटकाया, और बाहर निकला – शहर की सड़कें व्यस्त थीं, ऑटो की हॉर्न, लोग जल्दी में, और हवा में कॉफी की महक मिली हुई थी, जैसे शाम की शुरुआत हो रही हो। "आज सभी दोस्त मिलेंगे – आकाश, वसंत, प्रिया, रिया। मजा आएगा," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उत्साह था – दोस्ती जो अब उसकी जिंदगी का हिस्सा बन रही थी, लेकिन साथ ही माँ की याद जो कम हो रही थी, क्योंकि अब कॉल बंद कर चुका था।
राहुल कैफे पहुँचा – एक छोटा लेकिन ट्रेंडी कैफे, जहाँ लाइटें डिम थीं, म्यूजिक सॉफ्ट बज रहा था, और टेबल्स पर युवा ग्रुप्स कॉफी की सिप लेते हुए बातें कर रहे थे। आकाश पहले से वहाँ था, उसकी आँखें दरवाजे पर टिकी हुई थीं, जैसे प्रिया का इंतज़ार कर रहा हो। "राहुल, आ गया भाई! वसंत, रिया, प्रिया भी आ रही हैं," आकाश ने कहा, उसकी मुस्कान थोड़ी नर्वस। राहुल बैठा, "भाई, रिलैक्स। आज प्लान है – हम कुछ बहाना बनाकर तुम्हें और प्रिया को अकेला छोड़ देंगे।" आकाश खुश, "थैंक्स राहुल, तू सच्चा दोस्त है।" थोड़ी देर बाद वसंत आया – साधारण शर्ट में, स्मार्ट लुक के साथ, "क्या बात है भाइयों, आज कॉफी पार्टी?" फिर रिया और प्रिया आईं – प्रिया आज कैजुअल ड्रेस में, जो उसके फिगर को हाइलाइट कर रही थी, और रिया शॉर्ट्स में, शरारती मुस्कान के साथ। सब बैठे, कॉफी ऑर्डर की – लट्टे, कैपुचिनो, और स्नैक्स। बातें शुरू हुईं – कॉलेज की गॉसिप, प्रोजेक्ट, और हँसी-मजाक। राहुल ने प्लान अमल किया, वसंत और रिया को इशारा किया, "यार, मुझे घर पर कुछ काम याद आ गया। एक घंटे में वापस आता हूँ। वसंत, रिया, तुम लोग चलो मेरे साथ, बाहर छोड़ दो।" वसंत और रिया समझ गए, "हाँ राहुल, चल।" आकाश और प्रिया अकेले रह गए, आकाश की आँखें चमक रही थीं, "प्रिया, अब बात करें?" राहुल बाहर निकला, वसंत और रिया से कहा, "तुम लोग कैफे में रुको, मैं काम निपटाकर आता हूँ।" लेकिन राहुल को सच में घर पर कुछ सामान लेना था, वो लॉज गया, एक घंटा बीता, और वापस कैफे की ओर चला।
कैफे पहुँचकर राहुल अंदर गया – भीड़ कम हो चुकी थी, लेकिन आकाश और प्रिया की टेबल पर नजर पड़ी। वो स्तब्ध रह गया – आकाश और प्रिया करीब बैठे थे, आकाश ने प्रिया का हाथ पकड़ा था, और अचानक आकाश ने प्रिया को किस कर लिया – होंठ मिले, प्रिया की आँखें बंद, और दोनों का पल रोमांटिक लग रहा था। राहुल खुश हो गया, "वाह, हो गया काम। आकाश अब खुश होगा।" वो मुस्कुराया, लेकिन कुछ नहीं कहा, चुपके से टेबल की ओर जाने की बजाय बाथरूम की तरफ चला – "पहले फ्रेश हो लूँ।" बाथरूम के पास पहुँचा, लेकिन अंदर से अजीब आवाज़ें आ रही थीं – "आआह्ह्ह्ह... ओओओह्ह्ह्ह... हाँ... फाड़ दे वसंत..." राहुल का दिमाग हिल गया, "ये क्या? वसंत?" वो अंदर गया, बाथरूम बड़ा था, कई स्टॉल्स, लेकिन एक स्टॉल से आवाज़ें – "उफ्फ... जोर से... आआह्ह्ह्ह... मेरी चूत... ओओओह्ह्ह्ह... कितना बड़ा... फाड़ दे... हाँ... और तेज़..." राहुल समझ गया – वसंत और रिया? "ये कब हुआ? दोनों कब इतने करीब आ गए?" उसका दिमाग सुन्न हो गया, वो बाहर निकल आया, दिल तेज़ धड़क रहा था। "वसंत और रिया... पार्टी में कुछ तो था, लेकिन इतना जल्दी?" वो खुश था आकाश और प्रिया के लिए, लेकिन ये ट्विस्ट चौंकाने वाला था। टेबल पर वापस गया, प्रिया और आकाश अभी भी करीब थे। "सॉरी यार, काम था," राहुल ने कहा। आकाश मुस्कुराया, "नो प्रॉब्लेम भाई। प्रिया और मैं... अब ऑफिशियल हैं। जीएफ-बीएफ।" प्रिया शर्मा कर बोली, "हाँ राहुल, थैंक्स तेरी वजह से।" राहुल खुश, "कांग्रेचुलेशंस! डिज़र्व करते हो दोनों।"
राहुल ने किसी को कुछ नहीं बताया, लेकिन मन में सवाल थे – "वसंत और रिया को अलग-अलग पूछूँगा। ये कब शुरू हुआ?" अगले दिन कॉलेज में वसंत से अकेले बात की, "भाई, कल बाथरूम में... रिया के साथ?" वसंत चौंका, लेकिन हँसा, "भाई, पता चल गया? पार्टी से शुरू हुआ, वो बोल्ड है, मैं भी। लेकिन सीक्रेट रख।" फिर रिया से, "रिया, वसंत के साथ?" रिया मुस्कुराई, "हाँ राहुल, वो अच्छा है। मजा आता है। लेकिन किसी को मत बताना।" राहुल ने हाँ कहा, "दोस्त हूँ, रखूँगा।" दोस्ती मजबूत रही, आकाश-प्रिया का रोमांस बढ़ा, राहुल ने मदद की। माँ से दूरी बनी रही, राहुल फोकस – पढ़ाई, जॉब, और सपने।
Fuckuguy
albertprince547;
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RE: राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक - by Fuckuguy - 17-09-2025, 05:35 PM



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