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Adultery भोसड़ी की भूखी कहानियाँ
#18
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बेटे की परेशानी

दोस्तों, मेरा नाम सरिता है। मैं एक सामान्य गृहिणी हूँ, उम्र कोई ३५ साल की होगी। शादी को १५ साल हो चुके हैं, और मेरा एक बेटा है – रोहन, जो अब कॉलेज में पढ़ता है। हमारा घर शहर के एक शांत इलाके में है, जहाँ पड़ोसी एक-दूसरे को जानते हैं, लेकिन ज़िंदगी की भागदौड़ में सब व्यस्त रहते हैं। मेरा पति एक सरकारी नौकरी करता है, सुबह जाता है शाम को लौटता है। मैं घर संभालती हूँ – सुबह उठकर चाय बनाती, रोहन को कॉलेज भेजती, फिर घर के काम। लेकिन पिछले कुछ दिनों से रोहन उदास लग रहा था। शाम को घर आता, तो चुपचाप कमरे में बंद हो जाता। मैंने कई बार पूछा, लेकिन वह टाल जाता।
एक शाम मैंने फैसला किया कि अब पूछ ही लूँ। रोहन कमरे में लेटा था, किताब खोलकर लेकिन पढ़ नहीं रहा। मैं उसके पास बैठी, उसके सिर पर हाथ फेरा। "बेटा, क्या बात है? तू इतना उदास क्यों रहता है इन दिनों? कॉलेज में कुछ हुआ है?"
रोहन पहले हिचकिचाया, लेकिन फिर रो पड़ा। "माँ, कॉलेज में एक लड़का है – विक्रम। वह मुझे रोज़ तंग करता है। मेरी किताबें छुपाता है, मेरे साथ मारपीट करता है, और सबके सामने मज़ाक उड़ाता है। मैं क्या करूँ? वह मुझसे बड़ा और ताकतवर है।"
मेरा दिल टूट गया। मेरा बेटा, जो इतना सीधा-सादा है, उसे कोई तंग कर रहा है? मैंने उसे गले लगाया। "चिंता मत कर बेटा। कल मैं खुद कॉलेज जाकर उससे बात करूँगी। तू बस आराम कर।"
अगले दिन सुबह मैं तैयार हो गई। साड़ी पहनी – लाल रंग की, जो मेरे गोरे रंग पर खूब जचती है। मेरी कमर अभी भी पतली है, चूचियाँ भरी हुईं, और नितंब गोल-मटोल। पति ने कहा, "कहाँ जा रही हो?" मैंने बताया, तो वह बोला, "अरे, लड़कों की बात है, छोड़ो।" लेकिन मैं न मानी। कॉलेज पहुँची, प्रिंसिपल से मिली, लेकिन वे बोले, "बात करके देखो।"
फिर मैंने विक्रम को ढूँढा। वह कैंटीन में अपने दोस्तों के साथ बैठा था – लंबा, कसरती बदन, उम्र कोई २० साल की। मैं उसके पास गई। "विक्रम, मैं रोहन की माँ हूँ। सुना है तू मेरे बेटे को तंग करता है। क्यों? बंद कर ये सब।"
विक्रम हँसा, उसके दोस्त भी। "अरे आंटी, रोहन तो चूतिया है। तंग क्या, बस मज़ाक करता हूँ। तू जा, घर संभाल।" और फिर उसने गाली दी – "साली, तेरे जैसे औरतों को तो..."
मेरा खून खौल गया। लेकिन वहाँ झगड़ा न करके मैं चली गई। शाम को फैसला किया – उसके घर जाकर उसके माँ-बाप से बात करूँगी। पता किया, उसका घर पास ही था। शाम को मैं पहुँची। दरवाज़ा खटखटाया। विक्रम ने खोला। "तू फिर? क्या चाहती है?"
"तेरे माँ-बाप कहाँ हैं? उनसे बात करनी है।"
"वे बाहर गए हैं, शहर से। कल लौटेंगे। अब तू जा।"
लेकिन मैं अंदर घुस गई। "नहीं, तुझे ही समझाती हूँ। मेरे बेटे को तंग मत कर।" गुस्से में मैंने उसे चाँटा मारा। जोरदार। उसका गाल लाल हो गया।
विक्रम का चेहरा गुस्से से तमतमा गया। "साली रंडी, तूने मुझे मारा?" और उसने मुझे चाँटा मारा। दर्द हुआ, लेकिन मैं न रुकी। दूसरा चाँटा मारने को हाथ उठाया, लेकिन उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि मैं हिल न सकी। "अब देख, क्या करता हूँ।"
उसने मुझे दीवार से सटा दिया। उसकी साँसें मेरे चेहरे पर पड़ रही थीं। मैं चिल्लाई, "छोड़ मुझे!" लेकिन उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। जोरदार किस। मैंने छटपटाई, हाथ-पैर मारे, लेकिन वह न हटा। उसकी जीभ मेरे मुँह में घुस गई। गंध – मर्दाना, पसीने की। पहले तो मैंने विरोध किया, काटने की कोशिश की, लेकिन धीरे-धीरे... कुछ हुआ। उसकी ताकत, उसकी गर्माहट। मेरी साँसें तेज़ हो गईं। मैंने भी जवाब देना शुरू किया। जीभ से जीभ मिलाई। पैशनेट किस। लंबा, गीला।
उसने मुझे छोड़ा, हाँफते हुए। "देखा? तू भी चाहती है।" मैं कुछ न बोली, बस उसकी आँखों में देखा। फिर से किस शुरू। अब मैंने उसके बाल पकड़े, उसे करीब खींचा। उसका हाथ मेरी साड़ी पर गया, ब्लाउज़ पर। चूचियाँ दबाईं। मैं सिहर गई। "आह... विक्रम..."
(जारी... भाग २ में हार्डकोर सेक्स सीन।)
भाग २: आग की लपटें (हार्डकोर सेक्स सीन)
विक्रम ने मुझे गोद में उठाया, जैसे कोई गुड़िया हो। उसका बदन पत्थर जैसा सख्त। वह मुझे अपने कमरे में ले गया। बिस्तर पर पटक दिया। मैं हाँफ रही थी, साड़ी उलझी हुई। "विक्रम... ये गलत है... मैं शादीशुदा हूँ।"
"चुप साली... अब तू मेरी है।" उसने अपनी शर्ट उतारी। छाती चौड़ी, मसल्स उभरे हुए। पैंट उतारी, अंडरवियर में उसका लंड तना हुआ – बड़ा, मोटा, जैसे कोई हथियार। मैंने नज़रें फेर लीं, लेकिन मन में आग लग गई। कितने सालों से पति के साथ रूटीन सेक्स – धीमा, बोरिंग। ये लड़का... जवान, जंगली।
उसने मेरी साड़ी खींची। फट गई थोड़ी-सी। ब्लाउज़ के बटन तोड़े। ब्रा दिख गई – काली, लेस वाली। उसने ब्रा ऊपर सरकाई, चूचियाँ बाहर। गुलाबी निप्पल्स सख्त। "वाह आंटी... क्या माल है।" उसने मुँह लगाया, एक चूची चूसी, दूसरी दबाई। जोर से। दर्द हुआ, लेकिन मज़ा भी। "आह्ह्ह... विक्रम... धीरे... दर्द हो रहा है।"
"धीरे? साली, तूने मुझे मारा था। अब सज़ा मिलेगी।" उसने काटा निप्पल पर। मैं चीखी। फिर जीभ घुमाई, चाटा। मैं तड़प रही थी। मेरी चूत गीली हो गई। उसने साड़ी पूरी उतार दी। पेटीकोट खींचा। पैंटी – गीली, चिपकी हुई। उसने सूँघा। "क्या खुशबू... रंडी की चूत।"
उसने पैंटी फाड़ दी। मेरी चूत नंगी। बाल साफ़ किए हुए, गुलाबी फांकें। वह नीचे झुका, जीभ से छुआ। "ओह्ह्ह... विक्रम... क्या कर रहा है?" मैंने टाँगें बंद करने की कोशिश की, लेकिन उसने फैला दीं। जीभ अंदर घुसाई। चाटना शुरू। क्लिटोरिस पर दाँत लगाए। "आआह्ह्ह... मार डालेगा क्या? हाँ... चाट... जोर से।"
मैं उसके सिर को दबा रही थी। वह जीभ से चोद रहा था – तेज़, गहरा। मेरा शरीर काँपने लगा। "विक्रम... आ रहा है... ओह्ह्ह!" मैं झड़ गई। रस बहा, वह सब पी गया। "मीठा है तेरी चूत का पानी।"
अब उसकी बारी। वह खड़ा हुआ, लंड मेरे मुँह के पास। "चूस साली।" मैंने मना किया, लेकिन उसने बाल पकड़े, मुँह में ठूँस दिया। गला तक गया। मैं घुट रही थी। "हाँ... ऐसे... गहरा ले।" वह धक्के मारने लगा। मुँह चोद रहा था। आँसू आ गए मेरे, लेकिन मज़ा आ रहा था। थूक बह रहा था। दस मिनट तक। फिर निकाला। "अब चूत फाड़ूँगा।"
उसने मुझे उलटा किया। घुटनों पर। पीछे से लंड सटाया। "तैयार?" बिना रुके धक्का। अंदर गया – पूरा, मोटा। दर्द हुआ, जैसे फट जाए। "आआह्ह्ह... निकाल... बहुत बड़ा है।" लेकिन वह न रुका। धक्के मारने लगा – जोरदार, तेज़। कमरे में थप-थप की आवाज़। मेरी चूचियाँ हिल रही थीं। "हाँ साली... ले... चुद... मेरी रंडी।"
मैं चीख रही थी। "विक्रम... जोर से... फाड़ दे... हाँ... चोद मुझे।" वह बाल खींच रहा था, जैसे घोड़ी सवार। फिर पलटा, मिशनरी पोज़। टाँगें कंधों पर। गहरा धक्का। मैं नाखून उसके पीठ पर गड़ा रही थी। "ओह्ह्ह... मैं फिर झड़ रही हूँ... आआह्ह्ह!" दूसरी बार झड़ी। लेकिन वह न रुका। पसीना बह रहा था दोनों का।
फिर डॉगी स्टाइल। पीछे से चूत में, साथ में उंगली गांड में। "नहीं... वहाँ नहीं।" लेकिन उसने डाली। दर्द और मज़ा। "साली, तेरी गांड भी फाड़ूँगा आज।" लंड निकाला, गांड पर रगड़ा। धीरे धक्का। अंदर गया। मैं रो पड़ी। "आआह्ह्ह... दर्द... निकाल।" लेकिन वह धीरे-धीरे चोदने लगा। अब मज़ा आने लगा। "हाँ... गांड मार... जोर से।"
घंटा भर चला। पोज़ बदलते रहे – काउगर्ल, जहां मैं ऊपर थी, उछल रही थी। उसकी चूचियाँ दबा रही। फिर ६९, जहां मैं उसका लंड चूस रही, वह मेरी चूत। आखिर में वह झड़ने वाला था। "कहाँ?" "अंदर... भर दे।" उसने धक्के तेज़ किए। "आ रहा है... ले साली!" गर्म वीर्य अंदर। मैं भी तीसरी बार झड़ी।
हम हाँफते हुए लेट गए। पसीने से तर।

सेक्स के बाद मैंने कपड़े ठीक किए। विक्रम मुस्कुरा रहा था। मैंने कहा, "अब तो मेरे बेटे को तंग नहीं करोगे न?"
वह हँसा। "जब तक तू मुझसे चुदती रहेगी, तब तक नहीं। हर हफ्ते आना, वरना..."
मैं शरमाई, लेकिन मन ही मन राज़ी। "ठीक है।"
Fuckuguy
albertprince547;
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RE: भोसड़ी की भूखी कहानियाँ - by Fuckuguy - 16-09-2025, 05:48 PM



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