15-09-2025, 12:14 PM
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चाची की प्यासी चूत भाग 2
दोस्तों, अब घर में जैसे चारों तरफ आग लगी हुई थी। चाचा माँ को चोदते, मैं चाची को, लेकिन सब चुपके-चुपके। लेकिन चाचा का दिमाग और आगे चल रहा था। एक शाम चाचा ने सबको बुलाया। "सुनो, अब ये सब छिपाने का क्या फायदा? हम सब मिलकर मजा लें।" माँ चौंकीं। "क्या मतलब?" चाचा मुस्कुराए। "मतलब, आज रात सब साथ। भाभी, कमला, राजू – चारों।" चाची शरमाईं, "अरे, ऐसा कैसे?" लेकिन चाचा अड़े। "क्यों नहीं? राजू ने कमला को चोदा, मैंने भाभी को। अब सब शेयर करें।" माँ ने देखा, मैंने सिर हिलाया। ठीक है। रात हुई। शराब की बोतल निकली। पैग लगाए। सब नशे में।
कमरे में लाइट धीमी। चाचा ने माँ की साड़ी पकड़ी। "भाभी, आओ।" माँ शरमाती हुई आईं। चाचा ने पल्लू गिराया। ब्लाउज में चुचे उभरे, बड़े और भारी। हुक खोले, एक-एक करके। पहला हुक, चुचे थोड़े ढीले। दूसरा, निप्पल झलकने लगे। तीसरा, पूरा बाहर। गोरे नहीं, साँवले लेकिन मस्त। निप्पल काले, बड़े। चाचा ने पकड़े, दबाए। "उफ्फ भाभी, कितने नरम।" माँ सिसकी, "आह... धीरे चाचा जी।" चाचा ने चूसा। जीभ निप्पल पर घुमाई, चाटा। माँ की आँखें बंद, साँसें तेज। "ओह्ह... मत... सब देख रहे।" लेकिन बदन गर्म हो गया।
चाची मेरे पास आईं। "राजू, तू मुझे देख।" साड़ी उतारी। नाइटी में थीं, अंदर कुछ नहीं। नाइटी ऊपर की। चुचे बाहर, गोरे और गोल। मैंने पकड़े, मसले। चाची सिसकी, "आह... जोर से दबा बेटा।" मैंने निप्पल चूसा। जीभ से खेला। चाची का हाथ मेरे लंड पर। पैंट खोली, लंड बाहर। हिलाने लगीं। "राजू, कितना सख्त।" उधर चाचा माँ को नंगी कर रहे। साड़ी गिरी, पेटीकोट उतारा। माँ की चूत दिखी, घने बाल, गीली। चाचा ने उँगली लगाई। "भाभी, रस बह रहा।" माँ काँपी, "उफ्फ... छुओ मत ऐसे।" लेकिन पैर फैला दिए। चाचा ने जीभ लगाई। चूत चाटी। माँ चीखी, "आह्ह... चाचा जी... जीभ अंदर... ओह्ह माँ..."
मैंने चाची को बिस्तर पर लिटाया। चूत पर हाथ। गीली, गर्म। उँगली डाली। दो, तीन। चाची की कमर हिली। "राजू... उँगली से चोद... हाँ..." मैंने जीभ लगाई। चूत चूसी। क्लिटोरिस काटा हल्का। चाची पागल, "उफ्फ... बस... लंड दे।" मैं ऊपर आया। लंड चूत में। धक्का। पूरा अंदर। चाची "आआआ... हाँ... चोद।" धक्के मारे। जोर-जोर से। उधर चाचा माँ को चोद रहे। लंड माँ की चूत में। धक्के। माँ "हाँ... जोर से... चोदो भाभी को।" कमरा सिसकारियों से भरा। चुचे उछलते, गांड थप-थप।
चाचा ने कहा, "अब चेंज। राजू, तू भाभी को चोद। मैं कमला को।" मैं चौंक गया। अपनी माँ को? लेकिन नशा था। माँ ने देखा, शरमाईं लेकिन पैर फैलाए। "आ जा बेटा... लेकिन धीरे।" मैं माँ के ऊपर। लंड चूत पर रगड़ा। सिर घुसा। माँ "आह्ह... बड़ा है राजू..." पूरा अंदर। माँ की चूत तंग, गर्म। धक्के शुरू। माँ सिसकी, "ओह्ह... बेटा... चोद अपनी माँ को... उफ्फ..." चुचे दबाए। निप्पल चूसा। माँ की कमर मिलाती। "हाँ... जोर से... माँ की चूत तेरी है।" उधर चाचा चाची को चोद रहे। "कमला, तेरी चूत मस्त।" चाची "हाँ... चोदो... राजू से बेहतर।"
फिर सब साथ। माँ और चाची दोनों घुटनों पर। लंड चूसने लगीं। माँ मेरा लंड, चाची चाचा का। जीभ घुमातीं, चूसतीं। फिर चेंज। दोनों लंड एक साथ। मजा दोगुना। चाचा ने कहा, "अब पीछे से।" माँ और चाची डॉगी स्टाइल। गांड ऊपर। चाचा माँ की गांड में उँगली। "भाभी, गांड मारूँ?" माँ "हाँ... लेकिन तेल लगा।" तेल लगाया। लंड गांड पर। धक्का। सिर घुसा। माँ चीखी, "आआआ... फट गई..." लेकिन रुकी नहीं। चाचा धक्के मारे। मैं चाची की चूत में। सब मिलकर। रात भर चुदाई। झड़ना, फिर शुरू। सुबह तक थक गए। चाचा बोले, "अब रोज ऐसा।"
दोस्तों, अब घर में जैसे स्वर्ग उतर आया था। चारों मिलकर चुदाई का खेल खेलते, कोई शर्म नहीं, कोई डर नहीं। चाचा का प्लान काम कर गया था। सुबह उठते ही चाचा माँ को देखते, "भाभी, आज क्या प्लान?" माँ शरमातीं लेकिन मुस्कुरातीं। "जो तुम कहो।" चाची और मैं भी शामिल। एक दिन दोपहर की बात। सब घर पर थे। चाचा ने कहा, "आज कुछ नया ट्राई करें। भाभी और कमला, दोनों साथ लेस्बियन बनो। हम देखेंगे।" माँ चौंकीं, "अरे, वो क्या?" लेकिन चाची ने हाथ पकड़ा। "आओ भाभी, मजा आएगा।"
माँ और चाची बिस्तर पर। दोनों साड़ी में। चाची ने माँ का पल्लू गिराया। ब्लाउज दिखा, चुचे उभरे। चाची ने हुक खोले, धीरे-धीरे। पहला हुक, चुचे थोड़े बाहर। दूसरा, निप्पल झलक। तीसरा, पूरा नंगा। माँ के चुचे बड़े, साँवले लेकिन मस्त। निप्पल काले। चाची ने पकड़े, दबाए। "भाभी, कितने भारी।" माँ सिहरी, "आह... कमला... क्या कर रही?" लेकिन रुकी नहीं। चाची ने निप्पल चूसा। जीभ घुमाई, चाटा। माँ की साँस तेज। "उफ्फ... मत... लेकिन अच्छा लग रहा।" हाथ माँ की कमर पर। साड़ी का नाड़ा खींचा। साड़ी गिरी। माँ नंगी। चूत पर बाल घने। चाची ने छुआ। "भाभी, गीली हो गई।"
चाची खुद नंगी हुई। चुचे गोरे, निप्पल ब्राउन। माँ ने देखा, हाथ बढ़ाया। चाची के चुचे पकड़े। "कमला, तेरे भी मस्त।" दबाया। चाची सिसकी, "हाँ भाभी... दबाओ... चूसो।" माँ ने मुँह लगाया। पहली बार। जीभ निप्पल पर। चाची कराही, "ओह्ह... भाभी... जीभ से खेलो।" दोनों लिपट गईं। चुचे आपस में दबे। किस किया। जीभ मिली। गहरा किस। माँ का हाथ चाची की चूत पर। उँगली डाली। चाची की कमर हिली। "आह... भाभी... अंदर... दो उँगलियाँ।" चाची ने भी माँ की चूत में उँगली। दोनों उँगलियाँ अंदर-बाहर। सिसकारियाँ। "उफ्फ... कमला... मजा आ रहा... तेरी उँगली गर्म।" चाची "भाभी... तेरी चूत रस बहा रही।"
हम देख रहे। चाचा और मेरा लंड खड़ा। चाचा ने कहा, "राजू, अब हम जॉइन करें।" चाचा माँ के पास। लंड माँ के मुँह में। "भाभी, चूसो।" माँ चूसने लगीं। गीला, पूरा अंदर। मैं चाची के पास। चूत में लंड रगड़ा। धक्का दिया। अंदर। चाची "आह्ह... राजू... चोद।" अब चारों जुड़े। मैं चाची को चोदता, चाचा माँ को मुँह चोदते। फिर चेंज। चाचा चाची की चूत में। "कमला, तेरी चूत तंग।" धक्के। चाची "हाँ... जोर से... चाचा जी।" मैं माँ की चूत में। "माँ... तैयार?" माँ "हाँ बेटा... डाल।" लंड अंदर। माँ "ओह्ह... बड़ा है... लेकिन गहरा।" धक्के मारे। माँ की कमर मिलाती। "आह्ह... चोद बेटा... माँ की चूत फाड़।"
फिर नया पोज। माँ चाची के ऊपर। 69 पोजिशन। माँ चाची की चूत चाटती, चाची माँ की। जीभ अंदर, क्लिटोरिस चूस। दोनों सिसकतीं। "उफ्फ... कमला... तेरी चूत का स्वाद... मीठा।" चाची "भाभी... तेरी भी... रस बहा।" चाचा मेरे साथ। चाचा माँ की गांड में लंड। मैं चाची की गांड में। तेल लगाया। सिर घुसा। दोनों चीखीं। "आआआ... दर्द... लेकिन मत रुको।" धक्के मारे। गांड तंग, गर्म। हर धक्के में थप-थप। चुचे लहराते। पसीना बहता। कमरा सिसकारियों से गूँजता। "हाँ... गांड मारो... हमारी गांड फाड़ो।"
घंटों चला। सब झड़े। रस everywhere। माँ और चाची थक गईं। लेकिन चाचा ने कहा, "अब नया ट्विस्ट। कल हम बाहर जाएँगे। होटल में। और वहाँ..." सब उत्सुक।
दोस्तों, घर में अब रोज चुदाई का दौर चलता, लेकिन चाचा का दिमाग और शरारती हो गया था। एक दिन शाम को चाचा ने कहा, "सुनो सब, अब घर में मजा कम हो रहा। कल हम सब होटल जाएँगे। वहाँ कुछ नया ट्राई करेंगे।" माँ शरमाईं, "होटल? वहाँ क्या?" चाचा हँसे, "वहाँ वेटर हैं ना। हम भाभी और कमला को किसी वेटर से चुदवाएँगे। देखें, कितना मजा आता है।" चाची चौंकीं, "अरे, अजनबी से? शर्म आएगी।" लेकिन माँ ने देखा, आँखों में चमक। "ठीक है, अगर सब मानें तो।" मैं और चाचा हँस दिए। अगले दिन पैकिंग की। एक अच्छा होटल बुक किया, शहर के बाहर। रूम बड़ा सा, दो बेडरूम वाला सुइट। हम पहुँचे। शाम हुई। डिनर ऑर्डर किया।
रूम सर्विस का वेटर आया। नाम था विक्रम। जवान, उम्र पच्चीस के आसपास। बॉडी बिल्डर टाइप। मसल्स उभरे हुए, छाती चौड़ी, बाजू मोटे। चेहरा हैंडसम, लेकिन आँखें शरारती। वो ट्रे रख रहा था। चाचा ने इशारा किया। "भाभी, कमला, इसे देखो। मस्त है ना?" माँ ने देखा, मुस्कुराईं। "हाँ, मजबूत लगता है।" विक्रम जा रहा था, लेकिन माँ ने रोका। "भाई, जरा रुकना। थोड़ी बात करें?" विक्रम रुका, चौंककर। "जी मैम?" माँ ने अपनी साड़ी का पल्लू थोड़ा सरकाया। ब्लाउज में चुचे झलक गए। "तुम्हारी बॉडी कितनी अच्छी है। जिम जाते हो?" विक्रम की आँखें चमकीं। "हाँ मैम, रोज।" माँ करीब आईं, हाथ उसकी बाजू पर रखा। "वाह, कितनी सख्त। छूने दो।" विक्रम शरमाया, लेकिन रुका। माँ ने बाजू दबाई, फिर छाती पर हाथ फेरा। "उफ्फ, कितना मजबूत। हमारी तरह की औरतों को ऐसे मर्द पसंद आते हैं।"
चाची भी शामिल हुई। "हाँ भाई, तुम्हारी ताकत देखनी है।" विक्रम समझ गया। "मैम, क्या मतलब?" चाचा ने कहा, "बेटा, ये दोनों तेरे साथ मजा करना चाहती हैं। चोदेगा इन्हें? हम देखेंगे।" विक्रम चौंक गया, लेकिन लंड हिला शायद। "जी... अगर आप कहें।" माँ ने उसका हाथ पकड़ा, बिस्तर की तरफ ले गई। "आ जा। हम तेरी रंडियाँ बनेंगी।" चाची ने दरवाजा बंद किया। मैं और चाचा बाथरूम में छिप गए। दरवाजा थोड़ा खुला रखा, चुपके देखने को। विक्रम अंदर। माँ ने उसकी शर्ट उतारी। छाती नंगी, मसल्स चमकते। माँ ने छुआ, चाटा। "उफ्फ, कितना गर्म बदन।" विक्रम ने माँ की साड़ी पकड़ी। पल्लू गिराया। ब्लाउज खोला। चुचे बाहर, बड़े साँवले। विक्रम ने पकड़े, जोर से दबाए। "मैम, कितने बड़े दूध।" माँ सिसकी, "आह... जोर से दबा... मसल दे।"
चाची भी नंगी होने लगी। साड़ी उतारी, ब्लाउज गिराया। चुचे गोरे। विक्रम की आँखें चमकीं। "दोनों मैम... वाह।" वो चाची के चुचे पकड़ा, दबाया। चाची "उफ्फ... हाँ... तेरी ताकत लगती है।" विक्रम ने दोनों को बिस्तर पर धकेला। माँ की साड़ी पूरी उतारी। चूत नंगी। विक्रम ने उँगली लगाई। "गीली हो गई मैम।" माँ पैर फैलाए। "हाँ... अब जीभ लगा।" विक्रम नीचे झुका। चूत चाटी। जीभ अंदर। माँ चीखी, "ओह्ह... चाट... मेरी चूत चूस।" चाची विक्रम का लंड पकड़ी। पैंट उतारी। लंड बाहर, मोटा, लंबा, काला। "वाह, कितना बड़ा।" चाची ने मुँह में लिया। चूसा। विक्रम कराहा, "आह... मैम... चूसो।" माँ विक्रम के बाल खींच रही। "हाँ... जीभ से चोद।"
विक्रम उठा। माँ को घुटनों पर। लंड माँ के मुँह में। "चूस रंडी।" माँ चूसने लगीं। गहरा, थूक से गीला। चाची पीछे से विक्रम की गांड चाटी। विक्रम पागल। "उफ्फ... दोनों रंडियाँ... चूसो।" फिर विक्रम ने माँ को लिटाया। पैर फैलाए। लंड चूत पर रगड़ा। "तैयार रंडी?" माँ "हाँ... डाल... फाड़ दे।" धक्का। सिर घुसा। माँ "आआआ... बड़ा है... दर्द।" लेकिन कमर हिलाई। पूरा अंदर। विक्रम धक्के मारे। जोर-जोर से। माँ के चुचे उछलते। "हाँ... चोद... रंडी की तरह चोद।" विक्रम ने चाची को बुलाया। चाची माँ के ऊपर। विक्रम चूत से लंड निकाला, चाची की चूत में। "अब तेरी बारी रंडी।" चाची "ओह्ह... हाँ... तेरी ताकत... जोर से।" विक्रम दोनों को बारी-बारी चोदता। माँ की चूत, फिर चाची की। दोनों सिसकतीं। "उफ्फ... मर गई... तेरा लंड... फाड़ रहा।"
बाथरूम से मैं और चाचा देख रहे। लंड खड़े। चाचा ने कहा, "देख राजू, वो दोनों रंडियाँ बन गईं।" विक्रम ने माँ को डॉगी बनाया। गांड ऊपर। लंड चूत में। धक्के। थप-थप। माँ "आह्ह... पीछे से... जोर से।" चाची विक्रम के नीचे, लंड चूसती। फिर विक्रम ने चाची की गांड में उँगली डाली। "गांड मारूँ?" चाची "हाँ... फाड़ दे।" तेल लगाया। लंड गांड में। चाची चीखी, "आआआ... माँ... फट गई।" लेकिन मजा ले रही। विक्रम धक्के मारे। माँ विक्रम की गेंदें चाटती। रात भर चला। विक्रम दोनों को रंडियों की तरह चोदा। झड़ाया। रस चूत में, मुँह में। सुबह वो चला गया। हम बाहर आए। माँ और चाची थकी हुईं, लेकिन खुश। "मजा आया।"
दोस्तों, होटल की वो रात जैसे जिंदगी का सबसे बड़ा तूफान थी। विक्रम ने माँ और चाची को रंडियों की तरह चोदा, और हम चाचा-भतीजे बाथरूम से सब देखते रहे। लेकिन मजा इतना कि दिल नहीं भर रहा था। सुबह विक्रम चला गया, लेकिन उसने जाते-जाते कहा, "मैम, अगर फिर बुलाओ तो आ जाऊँगा। और अपने दोस्तों को भी ला सकता हूँ।" माँ और चाची ने एक-दूसरे को देखा, आँखों में चमक। "हाँ, क्यों नहीं।" चाचा हँसे, "अच्छा आइडिया। कल फिर प्लान करेंगे। ज्यादा लोग, ज्यादा मजा।" मैंने सोचा, अब ये कहाँ तक जाएगा?
शाम हुई। हम रूम में वापस। माँ और चाची थकी हुईं, लेकिन अभी भी गर्म। चाचा ने शराब निकाली। पैग लगाए। बातें होने लगीं। "भाभी, कमला, कल दस वेटर बुलाएँ? गैंगबैंग?" माँ शरमाईं, "अरे, इतने? लेकिन... ट्राई कर सकते हैं।" चाची "हाँ, मजा आएगा। राजू, तू भी जॉइन कर।" मैं हँस दिया। लेकिन अचानक दरवाजे पर दस्तक। "रूम सर्विस!" हम चौंके। चाचा ने खोला। बाहर विक्रम, लेकिन अकेला नहीं। उसके साथ चार-पाँच मर्द, सब बॉडीबिल्डर टाइप, आँखों में भूख। "मैम, आपने बुलाया नहीं, लेकिन हम आ गए। अब खेल शुरू होगा।" माँ और चाची की साँस रुक गई। विक्रम ने दरवाजा बंद किया, और...
(कहानी यहीं रुकती है... क्या होगा आगे? क्या माँ और चाची संभाल पाएँगी इतने मर्दों को, या कुछ अनहोनी हो जाएगी?
मैं इस कहानी को यहीं रोक रहा हूँ। अगर आपको इस कहानी के अगले हिस्से चाहिए, तो कृपया मुझे कमेंट में बता दें, नहीं तो मैं अगली कहानी शुरू कर दूँगा। ठीक है, धन्यवाद सबको। कृपया समर्थन करें और ऊपर जाकर कहानी को रेटिंग देना न भूलें।
नमस्ते,
Fuckuguy
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albertprince547;
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