15-09-2025, 12:05 PM
(This post was last modified: 15-09-2025, 01:25 PM by Fuckuguy. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
चाची की प्यासी चूत
दोस्तों, मेरा नाम राजू है। मैं एक छोटे से शहर से हूँ, जहाँ गलियाँ तंग हैं और घरों की दीवारें एक-दूसरे से सटी हुईं। उम्र मेरी अभी बीस के आसपास होगी, लेकिन दिल में वो उमंग जो किसी जवान मर्द की होती है, वो तो बचपन से ही जाग चुकी थी। पढ़ाई के चक्कर में मैं अपने चाचा-चाची के पास दिल्ली चला आया था। चाचा एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करते थे, सुबह आठ बजे निकल जाते और रात के नौ-दस बजे तक लौटते। चाची, अरे वाह! चाची का नाम था कमला, लेकिन सब उन्हें कमली चाची कहते थे। उम्र तैंतीस-चौंतीस की, लेकिन बदन ऐसा कि कोई भी जवान लड़का देखकर लंड खड़ा कर दे।
चाची का रंग गोरा था, जैसे दूध में डूबा हुआ। चेहरा गोल-गोल, आँखें बड़ी-बड़ी काली, होंठ गुलाबी और मोटे, जैसे चूमने को बुला रहे हों। बाल लंबे, काले, जो पीठ तक लहराते। लेकिन असली कमाल तो उनका बदन था। छाती पर दो बड़े-बड़े चुचे, कम से कम 36 का साइज होगा, जो ब्लाउज में कैद होने को तैयार न हों। कमर पतली, लेकिन कूल्हे चौड़े और भारी, जैसे साड़ी में लहराते हुए कह रहे हों – आओ ना, पकड़ लो। पैर लंबे, टांगें मोटी लेकिन सुडौल, चप्पलों में भी सेक्सी लगतीं। और वो चाल, अरे बाबा! कमर मटक-मटक कर चलतीं, मानो हर कदम में चूत की आग झलक रही हो।
मैं जब पहली बार उनके घर पहुँचा, तो चाची ने दरवाजा खोला। साड़ी पहने हुए थीं, हल्की सी सलवार जैसी, लेकिन साड़ी ही। पसीना आ गया था चेहरे पर, वो पोंछ रही थीं। "आओ राजू बेटा, आ जाओ। चाचा ने बताया था तुम आ रहे हो।" उनकी आवाज़ मीठी थी, जैसे शहद घुला हुआ। मैंने सामान रखा और अंदर आ गया। घर छोटा सा था, दो कमरे, एक किचन, एक बाथरूम। मेरा बिस्तर चाची-चाचा के कमरे में ही लगाया गया था, क्योंकि गेस्ट रूम नहीं था। सोचो, एक ही कमरे में तीन लोग! चाचा के आने पर तो ठीक, लेकिन चाचा जब बाहर होते, तो मैं और चाची अकेले।
पहले कुछ दिन तो सब सामान्य रहा। सुबह उठता, चाय पीता, चाची किचन में काम करतीं। मैं चुपके से देखता, उनकी साड़ी की प्लेट्स कैसे लहरातीं, कमर कैसे झुकती। कभी-कभी झुकते हुए चुचे झलक जाते, ब्लाउज से बाहर आने को बेताब। मेरा लंड खड़ा हो जाता, लेकिन मैं कंट्रोल करता। रात को चाची बिस्तर पर लेटतीं, साड़ी उतारकर नाइटी पहन लेतीं। नाइटी पारदर्शी सी, अंदर ब्रा-पैंटी न पहनें तो सब झलक जाए। मैं दीवार की तरफ मुँह करके लेटता, लेकिन आँखें बंद करके कल्पना करता – चाची का बदन, उनकी चूत कैसी होगी? गीली, गर्म, बालों से भरी या साफ?
एक दिन चाचा का फोन आया। "कमला, कल से एक हफ्ते के लिए बॉम्बे जाना पड़ेगा। मीटिंग है।" चाची उदास हो गईं। "अरे राम राम, फिर अकेले रहूँगी। राजू तो है ना, लेकिन वो तो बच्चा है।" बच्चा! मैंने मन ही मन हँस लिया। बच्चा जो रात को उनके बदन की कल्पना में लंड हिलाता है। चाचा चले गए। अब घर में बस मैं और चाची। शाम को चाची ने कहा, "राजू, आज रात को अच्छा खाना बनाऊँगी। तुम्हें पसंद है मटन?" मैंने हाँ कहा। किचन में चाची काम करने लगीं। मैं भी मदद के बहाने चला गया। चाची की साड़ी पीछे से चिपक गई थी पसीने से, गांड की शक्ल साफ दिख रही। गोल, मोटी, जैसे दबाने को कह रही। मेरा लंड टाइट हो गया। मैंने पानी का गिलास माँगा, चाची ने मुड़कर दिया। उनकी आँखों में कुछ था, शायद थकान, शायद कुछ और।
रात को खाना खाया। चाची ने शराब का बोतल निकाला। "चाचा की है, कभी-कभी पी लेती हूँ। तनाव कम होता है।" मैंने भी हामी भरी। दो-तीन पैग हो गए। चाची की आँखें लाल हो गईं, गाल गुलाबी। बातें करने लगे। "राजू, तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है?" मैंने शरमाया। "नहीं चाची।" वो हँसीं, "अरे, इतना हैंडसम हो, लड़कियाँ मरेंगी तुम पर।" उनका हाथ मेरे कंधे पर रखा। गर्म था। मेरा दिल धड़कने लगा। बिस्तर पर लेटे। चाची नाइटी में थी, मैंने देखा अंदर कुछ नहीं। चुचे की शक्ल साफ। मैंने लाइट बंद की, लेकिन नींद न आई। चाची करवट बदल रही थीं। "राजू, सो नहीं रहे?" "नहीं चाची।" "मुझे भी नींद न आ रही। चाचा चले गए, घर सूना लगता है।" मैंने हिम्मत की, "चाची, मैं हूँ ना।" वो मुड़ीं, करीब आ गईं। उनका बदन मेरे बदन से सटा। चुचे मेरी छाती से दबे। "हाँ बेटा, लेकिन तू तो भतीजा है।" उनकी साँस गर्म मेरे कान में।
धीरे-धीरे उनका हाथ मेरी कमर पर आया। मैं सिहर गया। मेरा लंड पैंट में खड़ा हो चुका था। चाची ने महसूस किया। "राजू, ये क्या?" शरम से मैं चुप। वो हँसीं धीरे से। "जवान हो गया तू।" उनका हाथ नीचे सरका। पैंट के ऊपर से लंड पकड़ा। "ओह, कितना बड़ा है। चाचा से भी ज्यादा।" मैं चौंक गया। चाची ने पैंट का नाड़ा खींचा। लंड बाहर आ गया, हवा में लहराता। चाची ने पकड़ा, हिलाने लगीं। "मस्त है राजू। कितना सख्त।" उनकी उँगलियाँ गर्म, नरम। मैंने साँस रोकी। "चाची..." वो बोलीं, "चुप। आज रात तेरी चाची तेरी रंडी बनेगी। चाचा को तो पता नहीं चलेगा।"
चाची ने नाइटी ऊपर की। उनके चुचे बाहर। बड़े, गोल, निप्पल ब्राउन। मैंने हाथ बढ़ाया, पकड़ा। नरम, लेकिन भारी। दबाया तो चाची सिसकारी। "आह राजू... दबा दे जोर से।" मैंने मसला, चूसा। निप्पल मुँह में लिया, जीभ से चाटा। चाची का हाथ तेजी से लंड पर। "उफ्फ... तेरी चाची की चुचियाँ चूस।" उनका बदन गर्म हो गया। साँसें तेज। मैंने दूसरा चुचा पकड़ा, दाँत से काटा हल्का। चाची चीखी, "आह्ह... मर गई मैं।"
अब चाची नीचे हाथ ले गईं। मेरी शर्ट उतारी, छाती चाटने लगीं। जीभ नाभि तक। मैं बर्दाश्त न कर सका। चाची को दबोचा। नाइटी पूरी ऊपर। उनकी चूत दिखी। बाल काले, घने, लेकिन चूत के होंठ गुलाबी, गीले। पसीना और रस मिला हुआ। "चाची, कितनी सुंदर है।" मैंने उँगली लगाई। चूत गर्म, चिपचिपी। चाची ने पैर फैलाए। "छू राजू... अंदर डाल।" उँगली अंदर। तंग, गीली। चाची सिसकी, "ओह्ह... हाँ... और अंदर।" मैंने दो उँगलियाँ डालीं। अंदर-बाहर। चूत का रस बहने लगा। चाची की कमर उठ रही। "आह्ह... राजू... तेरी चाची की चूत तेरे लिए ही बनी है।"
मैंने जीभ लगाई। चूत चाटी। स्वाद नमकीन, मीठा। चाची पागल। "उउउ... जीभ अंदर... चाट बेटा... चाची की चूत चाट।" मैंने क्लिटोरिस पकड़ा, चूसा। चाची काँपने लगी। "मर जाऊँगी... आह्ह... बस... अब लंड दे।" मैं ऊपर आया। लंड चूत पर रगड़ा। चाची ने पकड़ा, गाइड किया। सिर घुसा। तंग! चाची चीखी, "आह्ह... धीरे... बड़ा है।" मैं धीरे-धीरे अंदर। आधा गया। चाची की चूत लंड को निचोड़ रही। "पूरा डाल राजू... चोद अपनी चाची को।" पूरा धक्का। चूत फाड़ दी। चाची "आआआ... माँ... दर्द... लेकिन मजा।"
अब धक्के शुरू। धीरे-धीरे। हर धक्के में चूत का रस बाहर। चाची की कमर मिला रही। "हाँ राजू... जोर से... चोद... चाची की चूत फाड़ दे।" मैंने स्पीड बढ़ाई। गच्च-गच्च आवाज। चुचे लहरा रहे। मैंने चुचे पकड़े, दबाए। चाची के नाखून मेरी पीठ पर। "ओह्ह... हाँ... तेरी चाची तेरी हो गई... रोज चोदना।" पसीना दोनों पर। कमरा गर्म। चाची की साँसें मेरे कान में। "राजू... चाची का रस निकल रहा... आह्ह..."
पंद्रह मिनट चला। चाची झड़ी। चूत सिकुड़ गई, लंड निचोड़ा। मैं भी बस। "चाची... मैं..." "अंदर ही डाल बेटा... चाची की कोख में।" झड़ गया। गर्म वीर्य चूत में। चाची काँपी। हम लिपटे रहे। लंड अभी भी अंदर। चाची बोलीं, "कल फिर... चाची की प्यास बुझा।"
दोस्तों, पिछली रात की वो चुदाई अभी भी मेरे दिमाग में घूम रही थी। चाची की चूत का स्वाद, उनका बदन का गर्माहट, वो सिसकारियाँ – सब कुछ जैसे सपना सा लग रहा था। सुबह उठा तो चाची पहले ही किचन में थीं। साड़ी पहने, लेकिन ब्लाउज का हुक खुला सा, पीठ नंगी दिख रही। मैंने पीछे से जाकर कमर पकड़ी। "चाची, गुड मॉर्निंग।" वो मुड़ीं, मुस्कुराईं। "शैतान, रात को तो सोया नहीं, अब सुबह-सुबह?" लेकिन उनकी आँखों में वो ही आग थी। हाथ मेरे लंड पर रख दिया। "ये तो अभी भी खड़ा है।" मैंने हँस दिया। "चाची की याद में।"
नाश्ता किया। चाची ने कहा, "राजू, आज गर्मी बहुत है। नहा लें साथ में?" दिल धड़क गया। साथ नहाना! बाथरूम छोटा सा, लेकिन मजा दोगुना। मैंने हाँ कहा। चाची ने दरवाजा बंद किया। साड़ी उतारने लगीं। पहले पल्लू गिराया। ब्लाउज में चुचे उभरे हुए। फिर ब्लाउज के हुक खोले, एक-एक करके। पहला हुक, चुचे थोड़े ढीले। दूसरा, निप्पल झलकने लगे। तीसरा, पूरा ब्लाउज खुला। चुचे बाहर, लटकते हुए, लेकिन सख्त। चाची ने ब्रा नहीं पहनी थी। "देख राजू, तेरी चाची के दूध।" मैंने पकड़े, दबाए। नरम गोले, हाथ में भर न आए। चाची सिसकी, "आह... धीरे बेटा।"
फिर साड़ी का नाड़ा खींचा। साड़ी नीचे गिरी। पेटीकोट में चाची, कूल्हे चौड़े। पेटीकोट का नाड़ा ढीला किया, वो भी गिरा। अब चाची पूरी नंगी। बदन गोरा, चूत पर काले बाल, थोड़े गीले से। टांगें सुडौल, जांघें मोटी। चाची ने मुड़कर शावर ऑन किया। पानी बहने लगा। "आ राजू, तू भी उतार।" मैंने शर्ट उतारी, पैंट। लंड खड़ा, सलामी देता। चाची ने देखा, "वाह, कितना मोटा।" पानी के नीचे खड़े हो गए। चाची का बदन भीग गया। बाल गीले, चेहरे पर पानी। चुचे चमक रहे, पानी की बूँदें निप्पल से टपकतीं।
मैंने साबुन लिया, चाची की पीठ पर लगाया। हाथ फिसलते, नरम त्वचा। कमर तक, फिर गांड पर। गोल गांड, साबुन से फिसलन। उँगली गांड की दरार में डाली। चाची सिहरी, "उफ्फ... शैतान... वहाँ क्या?" मैंने हँसा, "चाची की गांड भी तो साफ करनी है।" वो मुड़ीं, मेरे सीने पर साबुन लगाने लगीं। हाथ नीचे, लंड पर। साबुन से झाग बना, हिलाने लगीं। "तेरा लंड कितना गर्म है।" पानी बहता रहा, हम लिपटे। चाची के चुचे मेरी छाती से दबे। मैंने चाची को दीवार से सटाया। जीभ उनके होंठों पर। किस किया, गहरा। जीभ अंदर, चाची की जीभ चूसी।
अब नीचे हाथ। चाची की चूत पर साबुन। बालों में झाग। उँगली अंदर। चूत गीली, पानी और रस से। चाची की साँस तेज। "राजू... उँगली मत डाल... लंड दे।" लेकिन मैंने जारी रखा। दो उँगलियाँ, अंदर-बाहर। चाची की कमर हिलने लगी। "आह्ह... बस... नहाते हुए चोद।" मैंने लंड पकड़ा, चूत पर रगड़ा। पानी बहता, फिसलन। सिर घुसा। चाची चीखी, "ओह्ह... हाँ..." धक्का दिया, पूरा अंदर। चूत तंग, गर्म। पानी के नीचे चुदाई। हर धक्के में पानी छलकता। चाची के चुचे उछलते। "जोर से राजू... चाची की चूत में जोर से।" मैंने स्पीड बढ़ाई। गांड पकड़ी, उठाया। चाची की टांगें मेरी कमर पर। दीवार से सटाकर चोदा। "उफ्फ... मर गई... तेरी चाची तेरी रखैल है।"
दस मिनट चला। चाची झड़ी, चूत ने लंड निचोड़ा। "आह्ह... रस निकल रहा..." मैं भी झड़ा, अंदर। पानी से सब धुल गया। हम हाँफते रहे। चाची बोलीं, "मजा आया बेटा। अब रोज नहाएँगे साथ।"
शाम हुई। चाचा कल आने वाले थे। चाची उदास। "राजू, आज आखिरी रात। चाचा आ जाएँगे तो मुश्किल।" मैंने कहा, "चाची, आज पूरी रात चोदूँगा।" रात को खाना खाया। चाची ने फिर शराब निकाली। पैग लगाए। चाची नशे में। "राजू, आज कुछ नया कर।" मैंने पूछा, "क्या?" वो शरमाईं, "पीछे से... गांड में।" मैं चौंक गया। "चाची, दर्द होगा।" "होगा तो सही, लेकिन मजा भी। चाचा कभी नहीं करते।"
बिस्तर पर। चाची नाइटी उतारी। नंगी लेटीं, गांड ऊपर। गोल, मोटी गांड। मैंने तेल लिया, गांड की छेद पर लगाया। उँगली डाली। तंग! चाची सिसकी, "धीरे..." दो उँगलियाँ। चाची दर्द से, लेकिन मजा ले रही। "हाँ... अब लंड।" लंड पर तेल लगाया। सिर छेद पर। दबाया। नहीं घुसा। चाची बोली, "जोर से।" धक्का। सिर घुसा। चाची चीखी, "आआआ... माँ... फट गई।" लेकिन रुकी नहीं। "और अंदर।" धीरे-धीरे पूरा। गांड गर्म, तंग। मैंने धक्के शुरू। चाची की चूत में उँगली डाली साथ। "ओह्ह... हाँ... गांड मार... चाची की गांड फाड़।" स्पीड बढ़ी। चाची पागल। "उफ्फ... मजा आ रहा... झड़ रही हूँ।" झड़ी। मैं भी गांड में झड़ा।
रात भर चुदाई। कभी मिशनरी, कभी डॉगी। सुबह तक थक गए। चाची बोलीं, "राजू, चाचा आए तो सावधान। लेकिन मौका मिला तो फिर।"
दोस्तों, चाचा आ गए थे। घर फिर से सामान्य लगने लगा, लेकिन मेरे और चाची के बीच वो आग अभी भी सुलग रही थी। चाचा सुबह काम पर जाते, शाम को लौटते। मैं कॉलेज जाता, लेकिन दिमाग चाची पर अटका रहता। उनकी वो मटकती कमर, गीली चूत की याद – लंड दिन भर खड़ा रहता। चाची भी मौका देखतीं। कभी किचन में, कभी बाथरूम के पास। एक नजर, एक मुस्कान, और दिल धड़क जाता। लेकिन चाचा घर में होते, तो सावधानी बरतनी पड़ती।
एक दिन सुबह। चाचा तैयार हो रहे थे। चाची चाय बना रही थीं। मैं टेबल पर बैठा। चाची ने चाय दी, और झुककर। ब्लाउज का गला खुला, चुचे झलक गए। निप्पल सख्त। मैंने देखा, लंड हिला। चाची मुस्कुराईं, धीरे से बोलीं, "राजू, शाम को चाचा देर से आएँगे।" दिल खुश हो गया। चाचा चले गए। मैं कॉलेज जाने को तैयार। लेकिन चाची ने रोका। "राजू, आज कॉलेज मत जा। बीमार का बहाना बना ले।" मैंने हाँ कहा। घर में अकेले।
चाची ने दरवाजा बंद किया। साड़ी में थीं, लेकिन जल्दी उतारने लगीं। पल्लू गिराया। ब्लाउज टाइट, चुचे दबे हुए। "राजू, आ जा। चाची की बाहों में।" मैंने पकड़ा। किस किया। होंठ गर्म, जीभ मिली। चाची की साँस तेज। हाथ मेरी पीठ पर, नाखून गड़ाए। मैंने ब्लाउज के हुक खोले। एक, दो, तीन। चुचे बाहर। बड़े, गोरे, निप्पल ब्राउन। पकड़े, दबाए। चाची सिसकी, "आह... जोर से दबा... चाची के दूध मसल।" मैंने मुँह लगाया। एक चुचा चूसा, दूसरे को दबाया। जीभ निप्पल पर घुमाई। चाची का हाथ मेरी पैंट पर। नाड़ा खींचा, लंड बाहर। "ओह राजू, कितना तना हुआ।"
चाची घुटनों पर बैठीं। लंड मुँह में लिया। गर्म मुँह, जीभ लंड के सिर पर। चूसने लगीं। धीरे-धीरे, पूरा अंदर। मैंने बाल पकड़े, मुँह चोदा। "चाची... उफ्फ... चूसो... तेरी जीभ कमाल है।" चाची तेज चूसतीं, लंड गीला हो गया। थूक से चमकता। मैं बर्दाश्त न कर सका। चाची को उठाया, सोफे पर लिटाया। साड़ी ऊपर की। पैंटी नहीं। चूत नंगी, बाल गीले। "चाची, तैयार हो?" वो बोलीं, "हाँ बेटा... चोद... लेकिन धीरे, आवाज न हो।" मैंने लंड चूत पर रगड़ा। सिर घुसा। चूत गर्म, चिपचिपी। धक्का दिया, आधा अंदर। चाची ने मुँह दबाया, "आह्ह... दर्द... लेकिन मजा।"
पूरा अंदर। अब धक्के। सोफा हिलता, लेकिन धीरे। हर धक्के में चूत का रस बहता। चाची की कमर मिलाती। "हाँ राजू... गहरा... चाची की चूत में गहरा।" मैंने चुचे पकड़े, दबाते हुए चोदा। चाची की आँखें बंद, सिसकारियाँ। "उफ्फ... तेरी चाची पागल हो रही... जोर से।" स्पीड बढ़ाई। गच्च-गच्च आवाज। चाची झड़ने लगी। "आह्ह... रस... निकल रहा..." चूत सिकुड़ी, लंड निचोड़ा। मैं भी झड़ा, अंदर। गर्म वीर्य। हम हाँफते रहे। सोफे पर पड़े। चाची बोलीं, "राजू, चाचा घर में हैं तो ऐसे ही चोरी-छिपे।"
शाम हुई। चाचा देर से आए। रात को डिनर। चाचा थके हुए, जल्दी सो गए। मैं और चाची बिस्तर पर। चाचा बीच में। लेकिन चाची ने इशारा किया। आधी रात। चाचा सो रहे। चाची उठीं, किचन की तरफ। मैं भी पीछे। किचन में अंधेरा। चाची ने मुझे दबोचा। "राजू, जल्दी... चाचा जग न जाएँ।" साड़ी ऊपर की। गांड पीछे की। "पीछे से डाल।" मैंने पैंट नीचे की। लंड चूत पर। धक्का। अंदर। चाची झुकी हुई, सिंक पकड़े। मैंने कमर पकड़ी, चोदा। धीरे-धीरे। चाची मुँह दबाए। "आह... हाँ... गांड हिला... चोद।" हर धक्के में गांड थप-थप। मजा दोगुना। चाची की चूत रस बहाती। "राजू... तेज... लेकिन चुप।" मैंने स्पीड बढ़ाई। चुचे पीछे से पकड़े, दबाए। चाची झड़ी। मैं भी। जल्दी साफ किया, वापस बिस्तर पर।
कुछ दिन ऐसे ही चले। लेकिन एक दिन डर लग गया। चाचा अचानक बीमार। घर पर रहने लगे। चाची उदास। मैं भी। मौका न मिलता। चाची ने कहा, "राजू, अब क्या?" मैंने सोचा। "चाची, छत पर?" शाम को छत पर गए। बहाना सैर का। छत अंधेरी। चाची ने साड़ी ऊपर की। दीवार से सटकर। "जल्दी राजू।" लंड अंदर। चोदा। हवा में, खुले में। मजा अलग। चाची सिसकी, "उफ्फ... बाहर चुदाई... नया मजा।" लेकिन नीचे से आवाज आई। चाचा पुकार रहे। "कमला, कहाँ हो?" हम रुक गए। लंड बाहर। साड़ी ठीक की। नीचे आए। चाचा ने पूछा, "ऊपर क्या कर रहे?" चाची बोलीं, "हवा खा रहे।" लेकिन दिल धड़क रहा था। पकड़े जाने का डर
दोस्तों, अब घर में टेंशन बढ़ने लगी थी। चाचा को शक होने लगा था। वो कभी अचानक कमरे में आ जाते, कभी रात को जागते रहते। मैं और चाची डरते-डरते मिलते। लेकिन वो आग तो बुझने वाली नहीं थी। चाची की चूत की प्यास, मेरे लंड की भूख – दोनों मिलकर हमें पागल कर रहे थे। एक शाम चाचा ऑफिस से जल्दी आ गए। हम किचन में थे। चाची सब्जी काट रही थीं, मैं पानी पी रहा था। चाची ने झुककर कुछ उठाया, साड़ी ऊपर सरकी, जांघें दिखीं। मैंने देखा, लंड हिला। चाची ने आँख मारी। लेकिन चाचा अंदर आ गए। "क्या कर रहे हो दोनों?" चाची घबराईं, "कुछ नहीं, राजू पानी माँग रहा था।" चाचा ने संदेह से देखा, लेकिन कुछ न कहा।
रात हुई। बिस्तर पर तीनों। चाचा बीच में। मैं किनारे। चाची का हाथ धीरे से मेरी तरफ आया। अंधेरे में। उँगलियाँ मेरी कमर पर। मैं सिहर गया। चाचा की साँसें नियमित, सोए हुए। चाची का हाथ नीचे, पैंट पर। लंड पकड़ा। हिलाने लगीं। धीरे-धीरे। मैंने मुँह दबाया, आवाज न निकले। लंड सख्त हो गया। चाची ने पैंट का नाड़ा ढीला किया, लंड बाहर निकाला। उँगलियाँ गर्म, नरम। ऊपर-नीचे। मैंने चाची की तरफ हाथ बढ़ाया। उनकी साड़ी ऊपर की। चूत छुई। गीली! बाल चिपचिपे। उँगली अंदर डाली। चाची सिसकी हल्की, लेकिन दबाई। हम दोनों ऐसे ही, चाचा के बगल में। लंड हिलाती चाची, चूत में उँगली मैं। मजा अलग, लेकिन डर भी।
अचानक चाचा करवट बदले। हम रुक गए। हाथ हटाए। दिल धड़क रहा। चाचा फिर सो गए। चाची ने इशारा किया, उठीं। मैं भी। हम बाथरूम में घुसे। दरवाजा बंद। अंधेरा। चाची ने मुझे दबोचा। "राजू, जल्दी... चाचा जग न जाएँ।" साड़ी ऊपर की। दीवार से सटकर। पैर फैलाए। मैंने लंड बाहर निकाला। चूत पर रगड़ा। गीली, गर्म। सिर घुसा। चाची ने मुँह पर हाथ रखा। "आह... धीरे।" धक्का दिया, पूरा अंदर। बाथरूम छोटा, हम सटे हुए। धक्के शुरू। धीरे-धीरे। हर धक्के में चूत का रस टपकता। चाची की साँसें तेज, लेकिन दबी हुई। "हाँ राजू... चोद... चाची की चूत में।" मैंने कमर पकड़ी, स्पीड बढ़ाई। चुचे ब्लाउज से दबाए। निप्पल सख्त। चाची काँपी, "उफ्फ... झड़ रही हूँ।" चूत सिकुड़ी। मैं भी झड़ा। जल्दी साफ किया। बाहर आए। चाचा अभी सो रहे।
अगले दिन चाचा ने कहा, "कमला, आज डॉक्टर के पास जाना है। राजू, तुम साथ चलो।" हम गए। लेकिन रास्ते में चाची ने मेरी जांघ पर हाथ रखा। चाचा आगे ड्राइव कर रहे। मैंने चाची की साड़ी में हाथ डाला। चूत छुई। गीली। उँगली डाली। चाची ने आँखें बंद कीं, लेकिन चुप। मजा आ रहा। डॉक्टर के पास पहुँचे। चाचा अंदर गए। हम बाहर वेटिंग में। चाची बोलीं, "राजू, यहाँ कोई नहीं।" मैंने देखा, कोना खाली। चाची को वहाँ ले गया। साड़ी ऊपर। लंड बाहर। चूत में डाला। खड़े-खड़े चोदा। दो मिनट में। चाची झड़ी। मैं भी। जल्दी ठीक किए। चाचा आए, कुछ न पता।
लेकिन शाम को हादसा हो गया। चाचा घर पर थे। मैं कमरे में पढ़ रहा। चाची आईं, "राजू, मदद कर।" किचन में। चाची झुकीं, अलमारी से सामान निकाल रही। गांड पीछे। मैंने पकड़ी। साड़ी ऊपर की। चूत में उँगली। चाची सिसकी, "राजू... चाचा घर में।" लेकिन रुकी नहीं। मैंने लंड बाहर निकाला। गांड पर रगड़ा। अंदर डालने ही वाला था कि चाचा की आवाज। "कमला!" हम चौंक गए। मैंने लंड अंदर किया, चाची साड़ी नीचे। चाचा किचन में आए। "क्या कर रहे हो?" चाची घबराईं, "सामान निकाल रहे।" लेकिन चाचा का चेहरा संदेह से भरा। "राजू, तुम बाहर जाओ।" मैं चला गया। दिल धड़क रहा। पकड़े गए क्या?
रात को चाचा ने चाची से झगड़ा किया। "मुझे शक है। राजू और तुम... कुछ तो है।" चाची रोईं, "नहीं, तुम पागल हो।" लेकिन चाचा न माने। "कल राजू को हॉस्टल भेज दूँगा।" मैं सुन रहा था। रात भर नींद न आई। चाची चुपके से आईं। "राजू, डर मत। मैं मना लूँगी। लेकिन आज आखिरी बार।" बिस्तर पर, चाचा सोए। चाची मेरे ऊपर आईं। नाइटी ऊपर। चूत लंड पर। धीरे से बैठीं। लंड अंदर। ऊपर-नीचे। मैंने चुचे पकड़े। चाची की कमर हिलती। "आह... राजू... चाची तेरी है।" धीरे चुदाई। लेकिन मजा। चाची झड़ी। मैं भी। सुबह चाचा ने कहा, "राजू, हॉस्टल जाओ।" लेकिन चाची ने मना लिया। "वो बच्चा है।" चाचा मान गए, लेकिन शक बाकी।
दोस्तों, चाचा का शक अब हर वक्त हमारे सिर पर मंडरा रहा था। वो पहले जैसे नहीं रहे। कभी अचानक किचन में आ जाते, कभी रात को बाथरूम जाते हुए कमरे की लाइट जला देते। मैं और चाची अब बहुत सावधान रहते, लेकिन वो प्यास तो थी ही। चाची की आँखों में वो ही भूख, मेरे लंड में वो ही तड़प। एक दिन सुबह चाचा काम पर गए। चाची ने मुझे कमरे में बुलाया। "राजू, आज मौका है। चाचा देर से आएँगे।" मैंने दरवाजा बंद किया। चाची साड़ी में थीं, लेकिन ब्लाउज का गला खुला। चुचे उभरे हुए, जैसे बाहर आने को बेताब। मैंने पकड़ा, दबाया। चाची सिसकी, "आह... राजू... धीरे... दर्द होता है लेकिन मजा आता है।"
चाची ने मेरी शर्ट उतारी। छाती पर किस किया। जीभ निप्पल पर घुमाई। मैं सिहर गया। उनका हाथ पैंट पर। नाड़ा खींचा, लंड बाहर। खड़ा, सख्त। चाची ने पकड़ा, हिलाया। "वाह बेटा, कितना गर्म है। चाची की चूत में डाल।" मैंने चाची को बिस्तर पर लिटाया। साड़ी ऊपर की। पैंटी गीली। उतारी। चूत दिखी, बाल काले, होंठ गुलाबी, रस से चमकते। मैंने जीभ लगाई। चाटा। स्वाद मीठा, नमकीन। चाची की कमर उठी। "ओह्ह... राजू... जीभ अंदर... चाची की चूत चूस।" मैंने क्लिटोरिस पकड़ा, चूसा। चाची पागल, बाल खींच रही। "उफ्फ... बस... अब लंड दे।"
मैं ऊपर आया। लंड चूत पर रगड़ा। सिर घुसा। चूत तंग, गर्म। धीरे-धीरे पूरा अंदर। चाची चीखी हल्की, "आह्ह... पूरा... हाँ..." धक्के शुरू। धीरे-धीरे, हर धक्के में चूत का रस बहता। चाची की टांगें मेरी कमर पर। "जोर से राजू... चोद... चाची की चूत फाड़ दे।" मैंने स्पीड बढ़ाई। चुचे उछलते, मैंने पकड़े, दबाए। निप्पल काटा। चाची के नाखून मेरी पीठ पर। "ओह्ह... हाँ... तेरी चाची तेरी रंडी है... रोज चोद।" पसीना बह रहा, कमरा गर्म। चाची झड़ने लगी। "आह्ह... रस निकल रहा... उफ्फ..." चूत ने लंड निचोड़ा। मैं भी बस। "चाची... मैं..." "अंदर डाल बेटा... चाची की कोख भर।" झड़ गया। गर्म वीर्य अंदर। हम लिपटे रहे, साँसें मिलीं।
शाम हुई। चाचा आने वाले थे। हम ठीक हो गए। लेकिन चाचा जल्दी आ गए। दरवाजा खोला, हम कमरे में थे। चाची के बाल बिखरे, मैं शर्ट ठीक कर रहा। चाचा ने देखा। "ये क्या? कमरे में क्या कर रहे थे?" चाची घबराईं, "कुछ नहीं, राजू की किताब ढूँढ रही थी।" लेकिन चाचा का चेहरा लाल। "झूठ! मुझे शक था।" वो अंदर आए, बिस्तर देखा। चादर गीली, रस के निशान। "ये क्या है? कमला, तू... राजू के साथ?" चाची रोने लगीं। "नहीं... वो..." चाचा गुस्से में। "शर्म आनी चाहिए। भतीजा और चाची!" मैं चुप खड़ा। चाचा ने मुझे थप्पड़ मारा। "निकाल बाहर! कल सुबह हॉस्टल जा।"
रात बड़ी मुश्किल से कटी। चाचा सोफे पर सोए। मैं और चाची कमरे में, लेकिन अलग। चाची रो रही थीं। मैंने धीरे से हाथ पकड़ा। "चाची, डर मत।" वो बोलीं, "राजू, अब क्या होगा?" सुबह चाचा ने कहा, "राजू, सामान बाँध।" लेकिन चाची ने रोकर माफी माँगी। "एक बार माफ कर दो। गलती हो गई।" चाचा सोचे, "ठीक है, लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं। राजू, तू अलग कमरे में सो।" हम बच गए, लेकिन शक बाकी। अब चुदाई और मुश्किल हो गई। लेकिन चाची की आँखों में वो ही आग।
दोस्तों, पकड़े जाने के बाद घर का माहौल और बिगड़ गया। चाचा अब मुझसे बात भी नहीं करते थे। सिर्फ घूरते रहते, जैसे आँखों से कह रहे हों – तूने मेरी बीवी को छुआ, मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा। चाची डरी हुईं, लेकिन उनकी आँखों में वो ही चाहत। रात को चाचा सोफे पर सोते, मैं और चाची कमरे में, लेकिन कुछ करने की हिम्मत न होती। एक दिन चाचा ने फोन उठाया। "हैलो, भाभी? हाँ, राजू की माँ। सुनो, कुछ जरूरी बात है।" मैं सुन रहा था। चाचा ने सब बता दिया। "तुम्हारा बेटा... मेरी कमला के साथ... हाँ, पकड़ा मैंने। अब मैं पूरे गाँव में बताऊँगा। राजू की इज्जत मिट्टी में मिला दूँगा।" उधर से माँ की आवाज आई, रोने वाली। "भाई साहब, ऐसा मत करना। राजू बच्चा है, गलती हो गई। माफ कर दो।"
चाचा गुस्से में। "माफ? कैसे माफ करूँ? तुम्हारा बेटा मेरी बीवी की चूत में लंड डालता रहा, और मैं चुप रहूँ? नहीं भाभी, अब तो मैं सबको बताऊँगा। गाँव में राजू का नाम बदनाम कर दूँगा। लड़कियाँ थूकेंगी उस पर।" माँ रो रही थीं। "प्लीज, माफ कर दो। मैं माफी माँगती हूँ। जो कहो वो करूँगी। लेकिन मेरे बेटे की इज्जत मत उछालो।" चाचा चुप रहे थोड़ी देर। फिर बोले, "ठीक है भाभी। एक शर्त पर। राजू ने मेरी बीवी चोदी है, तो मैं तुम्हें चोदूँगा। तुम्हारी चूत में अपना लंड डालूँगा। तभी मेरे मन को शांति मिलेगी। बदला पूरा होगा।" उधर माँ चौंक गईं। "क्या कह रहे हो? मैं तुम्हारी भाभी हूँ। ऐसा कैसे?" चाचा हँसे। "भाभी, राजू ने मेरी चाची को रंडी बनाया, तो मैं क्यों पीछे रहूँ? सोच लो। नहीं तो कल गाँव में ढिंढोरा पीट दूँगा।"
माँ ने फोन रख दिया। लेकिन रात भर सोचीं। अगले दिन फिर फोन आया। "भाई साहब, ठीक है। मैं मान गई। लेकिन किसी को पता न चले। मैं कल दिल्ली आ रही हूँ।" चाचा खुश। "आ जाओ भाभी। मैं स्टेशन पर लेने आऊँगा।" मैं सुनकर स्तब्ध। मेरी माँ! उम्र चालीस के आसपास, लेकिन बदन अभी भी जवान। रंग साँवला, लेकिन चेहरा सुंदर। चुचे 38 के, बड़े और भारी। कमर मोटी, लेकिन कूल्हे चौड़े। गाँव में सब मर्द घूरते। लेकिन अब चाचा... मेरी माँ को चोदेंगे? दिल जल रहा था, लेकिन कुछ कर न सका। चाची ने सुना, उदास हो गईं। "राजू, तेरी माँ... लेकिन क्या करें।"
अगले दिन माँ आईं। स्टेशन से चाचा ले आए। घर में घुसीं। साड़ी में थीं, लाल रंग की। चेहरा शर्म से लाल। "राजू..." मुझसे गले मिलीं। लेकिन आँखें नीची। चाचा ने दरवाजा बंद किया। "भाभी, अब शर्त याद है न?" माँ ने सिर हिलाया। "हाँ। लेकिन राजू और कमला बाहर चले जाएँ।" चाचा ने मना किया। "नहीं, वो दोनों देखें। ताकि सबक मिले।" माँ चौंकी। "नहीं, ऐसा मत।" लेकिन चाचा अड़े। "मानो या गाँव में बताऊँ?" माँ चुप हो गईं। चाची और मैं किनारे खड़े।
चाचा ने माँ की कमर पकड़ी। "भाभी, कितना नरम बदन है।" माँ सिहरी। चाचा ने पल्लू गिराया। ब्लाउज में चुचे उभरे। बड़े, गोल। हुक खोले। ब्रा में कैद। चाचा ने ब्रा उतारी। चुचे बाहर। निप्पल काले, सख्त। चाचा ने पकड़े, दबाए। "वाह भाभी, कितने बड़े दूध।" माँ की आँखें बंद। "आह... धीरे।" चाचा ने चूसा। जीभ निप्पल पर। माँ सिसकी। "उफ्फ... नहीं..." लेकिन बदन गर्म हो रहा। चाचा ने साड़ी उतारी। पेटीकोट गिराया। माँ नंगी। चूत पर घने बाल, काले। जांघें मोटी, सुडौल।
चाचा ने पैंट उतारी। लंड बाहर। मोटा, लंबा। "भाभी, देखो। तुम्हारी चूत के लिए।" माँ ने देखा, शरमाई। चाचा ने बिस्तर पर लिटाया। पैर फैलाए। चूत छुई। "गीली हो गई भाभी।" उँगली अंदर। माँ चीखी, "आह्ह... दर्द..." चाचा ने जीभ लगाई। चूत चाटी। माँ की कमर उठी। "ओह्ह... क्या कर रहे... उफ्फ..." चाचा चूसते रहे। माँ पागल। "बस... अब डालो।" चाचा ऊपर आए। लंड चूत पर रगड़ा। सिर घुसा। माँ "आआआ... बड़ा है..." पूरा धक्का। अंदर। माँ की चूत फाड़ दी। "माँ... दर्द... लेकिन..." चाचा धक्के मारने लगे। जोर-जोर से। माँ की चुचे उछलते। "हाँ भाभी... चोद रहा हूँ... तुम्हारी चूत मस्त है।" माँ अब मजा ले रही। कमर मिलाती। "आह्ह... जोर से... चोदो..." चाची और मैं देख रहे। मेरा लंड खड़ा। चाची का हाथ मेरे लंड पर।
बीस मिनट चला। माँ झड़ी। "उफ्फ... रस निकल रहा..." चाचा भी झड़े, अंदर। माँ हाँफती रही। "अब शांति मिली?" चाचा हँसे। "हाँ भाभी। लेकिन अब तुम यहाँ रुको। रोज चोदूँगा।" माँ मान गई। अब घर में नया खेल शुरू।
दोस्तों, अब घर में जैसे नया दौर शुरू हो गया था। माँ दिल्ली आ गईं थीं, और चाचा का बदला पूरा होने का सिलसिला चल पड़ा। माँ उदास थीं, लेकिन क्या करतीं। गाँव की इज्जत जो दाँव पर लगी थी। मैं और चाची चुपचाप देखते रहते। चाचा अब माँ को अपनी रखैल की तरह ट्रीट करते। सुबह उठते ही माँ की तरफ देखते, मुस्कुराते। "भाभी, चाय बना दो।" लेकिन आँखों में वो ही लालच। माँ साड़ी में काम करतीं, चाचा पीछे से कमर पकड़ लेते। "भाभी, कितनी सेक्सी हो।" माँ शरमातीं, "छोड़ो ना, राजू देख लेगा।" लेकिन चाचा कहाँ मानने वाले।
एक शाम की बात। चाचा घर आए। थके हुए, लेकिन आँखों में चमक। "भाभी, आज फिर वही।" माँ ने देखा, मैं और चाची किचन में थे। "बाद में।" लेकिन चाचा ने मना किया। "नहीं, अबhi। कमरे में चलो।" माँ को खींचकर ले गए। दरवाजा बंद। लेकिन मैं और चाची बाहर से सुन रहे। अंदर से आवाजें आने लगीं। चाचा की साँसें तेज। "भाभी, साड़ी उतारो।" माँ की धीमी आवाज, "धीरे... शर्म आती है।" साड़ी गिरने की आवाज। ब्लाउज के हुक खुलने की। चाचा बोले, "वाह भाभी, तेरे चुचे कितने बड़े। दबाने दो।" माँ सिसकी, "आह... जोर से मत... दर्द होता है।" लेकिन मजा भी आ रहा होगा। चाचा ने चूसा। जीभ की चटकने की आवाज। "उफ्फ... भाभी, निप्पल कितने सख्त।" माँ की सिसकारियाँ, "ओह्ह... मत चूसो ऐसे... पागल कर देते हो।"
फिर साड़ी पूरी उतरी। माँ नंगी। चाचा ने पैंट उतारी। "भाभी, मेरा लंड देखो। तेरी चूत के लिए खड़ा है।" माँ ने पकड़ा शायद। "कितना मोटा... चाचा जी।" चाचा हँसे। "चूसो भाभी।" माँ घुटनों पर। लंड मुँह में। चूसने की आवाज। गीली, चट-चट। चाचा कराहे, "हाँ भाभी... जीभ घुमाओ... पूरा अंदर।" माँ चूसती रहीं। लंड गीला हो गया। चाचा ने उठाया। बिस्तर पर लिटाया। पैर फैलाए। "भाभी, तेरी चूत कितनी गीली। उँगली डालूँ?" माँ "हाँ... डालो।" उँगली अंदर। माँ चीखी, "आह्ह... दो डालो... और अंदर।" चाचा ने जीभ लगाई। चूत चाटी। माँ पागल, "उफ्फ... चाटो... मेरी चूत चूसो... ओह्ह माँ..." कमर हिलाने लगीं।
अब चाचा ऊपर। लंड चूत पर रगड़ा। "भाभी, तैयार?" "हाँ... डालो।" सिर घुसा। माँ "आआआ... बड़ा है... धीरे।" लेकिन चाचा ने जोर का धक्का। पूरा अंदर। माँ की चूत में लंड समा गया। "ओह्ह... फाड़ दी... लेकिन मजा।" धक्के शुरू। जोर-जोर से। बिस्तर की चरमराहट। माँ की सिसकारियाँ, "हाँ चाचा जी... जोर से... चोदो अपनी भाभी को... उफ्फ..." चुचे उछलते। चाचा ने पकड़े, दबाए। निप्पल काटा। माँ के नाखून चाचा की पीठ पर। "आह्ह... तेज... मेरी चूत तेरी है... रोज चोदना।" पसीना बह रहा। कमरा गर्म। माँ झड़ने लगीं। "ओह्ह... रस निकल रहा... आह्ह..." चूत सिकुड़ी। चाचा भी झड़े, "भाभी... अंदर डाल रहा..." गर्म वीर्य। दोनों हाँफते रहे।
बाहर मैं और चाची सुन रहे। मेरा लंड खड़ा। चाची का हाथ मेरे लंड पर। "राजू... देख, तेरी माँ कितना मजा ले रही।" मैंने चाची को पकड़ा। किचन में ही। साड़ी ऊपर की। चूत गीली। "चाची... अब तेरी बारी।" लंड बाहर निकाला। चूत में डाला। धीरे चोदा। चाची मुँह दबाए। "आह... राजू... लेकिन चाचा सुन लेंगे।" लेकिन रुके नहीं। धक्के मारे। चाची झड़ी। मैं भी। जल्दी ठीक किए। कमरे से चाचा और माँ बाहर आए। माँ के गाल लाल, बाल बिखरे। चाचा मुस्कुराए। "भाभी, मजा आया?" माँ शरमाईं। "हाँ।"
अब रोज ऐसा। चाचा माँ को चोदते, मैं चाची को। लेकिन चुपके। एक रात चाचा माँ के साथ सोए। मैं और चाची अकेले। चाची ने कहा, "राजू, आज पूरी रात।" हमने चुदाई की। हर पोज में। मजा दोगुना।
Fuckuguy
albertprince547;
albertprince547;