15-09-2025, 11:11 AM
गिगोलो का मोटा लंड: आंटीयों और जवान लड़कियों की गांड मार चुदाई कहानी
आर्यन की रातें अब गांव की शांति में बीत रही थीं, लेकिन उसका मन अभी भी उथल-पुथल में था। सुबह उठा तो मां चाय बना रही थीं, "बेटा, आज क्या प्लान है?" आर्यन मुस्कुराया: "मां, गांव घूमूंगा, लोगों से मिलूंगा।" मां खुश हुईं: "हां, जाओ। सर्पंच जी से भी मिल लेना, वो पूछ रहे थे।" आर्यन का मन चुभा, लेकिन चुप रहा। निकल पड़ा – गांव की गलियां, खेतों की हरीतिमा, लोग काम पर जा रहे। पहले पुराने दोस्तों से मिला – कॉलेज के साथी, हंसी-मजाक, पुरानी यादें। "आर्यन, शहर में क्या कर रहा है?" वो पूछते, आर्यन हंसकर टाल देता। फिर सर्पंच के घर गया – सर्पंच बाहर बैठे थे, चाय पीते। "आर्यन बेटा, आ गया? बैठो," सर्पंच ने कहा, लेकिन आर्यन की आंखों में गुस्सा था, लेकिन छुपाया। बातें हुईं – गांव की समस्याएं, विकास। "सर्पंच जी, मां का ख्याल रखते हो?" आर्यन ने पूछा, डबल मीनिंग में। सर्पंच मुस्कुराए: "हां, बेटा। सुनीता का हमेशा ध्यान रखता हूं।" आर्यन का दिल जल रहा था, लेकिन चुप रहा। शाम को घर लौटा – घर में मां के साथ एक lady बैठी थी – नाम नर्मिला, सर्पंच की बीवी, 34-32-36 का फिगर, गोरी, लंबे बाल, साड़ी में, लेकिन लग रही थी Aunty कम, bhabhi ज्यादा – चेहरा जवान, आंखें शरारती, ब्रेस्ट भरे हुए, कमर पतली, हिप्स गोल। "आर्यन, ये नर्मिला हैं, सर्पंच की बीवी," मां ने इंट्रोड्यूस किया। नर्मिला मुस्कुराई: "हाय, आर्यन। सुनीता आंटी ने तुम्हारे बारे में बताया। शहर से आए हो?" आर्यन ने हाथ मिलाया, लेकिन मन में विचार आया – "सर्पंच ने मां को 20 साल चोदा है, क्यों न मैं उसकी बीवी को पटा के चोद लूं? शायद मुझे थोड़ा अच्छा महसूस हो।" वो मुस्कुराया: "हां, नर्मिला जी। गांव की हवा अच्छी लग रही है। आप कैसी हैं?" बातें हुईं – नर्मिला ने गांव की गॉसिप बताई, हंसती रही, आर्यन फ्लर्ट शुरू किया – "नर्मिला जी, आप लगती तो Aunty हैं, लेकिन bhabhi ज्यादा लग रही हैं। इतनी जवान कैसे?" नर्मिला शर्मा गई, लेकिन हंसी: "आर्यन, तुम्हारी बातें... शहर वाली हैं।" मां हंसी, लेकिन आर्यन का मन प्लान बना रहा था – "ये मेरी अगली शिकार।"
आर्यन की सुबह गांव की हवा में बीती – वो उठा, मां के साथ चाय पी, लेकिन मन में नर्मिला की तस्वीर घूम रही थी – उसकी वो शरारती आंखें, वो भरा हुआ बदन, वो bhabhi जैसी अदा। "सर्पंच की बीवी... आज मिलूंगा," वो सोचता हुआ निकला। मां से कहा: "मां, आज फिर गांव घूमूंगा। सर्पंच जी से मिलकर आऊंगा।" मां मुस्कुराई: "हां, बेटा। नर्मिला भी पूछ रही थी तुम्हारे बारे में।" आर्यन का दिल धड़का, लेकिन चुप रहा। गांव की गलियां पार की, सर्पंच के घर पहुंचा – सर्पंच बाहर नहीं थे, लेकिन नर्मिला दरवाज़े पर खड़ी थी – साड़ी में, लाल रंग की, जो उसके गोरे बदन पर और चमक रही थी, बाल बंधे, लेकिन कुछ लटें चेहरे पर, आंखों में मुस्कान। "आर्यन, तुम? अंदर आओ," उसने कहा, घर के अंदर ले गई। कमरा सादा लेकिन साफ, दीवारों पर तस्वीरें, हवा में मसालों की महक। "सर्पंच जी घर पर नहीं हैं?" आर्यन ने पूछा, सोफे पर बैठते हुए। नर्मिला मुस्कुराई, चाय बनाती हुई: "नहीं, गांव के काम से गए हैं। लेकिन तुम आ गए, अच्छा लगा। शहर की बातें बताओ।" आर्यन ने फ्लर्ट शुरू किया: "नर्मिला जी, शहर की बातें तो बोरिंग हैं। लेकिन तुम्हारी मुस्कान... शहर की लड़कियों से ज्यादा खूबसूरत है। क्या राज़ है?" नर्मिला शर्मा गई, चाय सर्व करते हुए: "आर्यन, तुम्हारी बातें... इतनी मीठी। गांव में कोई ऐसा नहीं बोलता।" आर्यन ने हाथ पकड़ा – धीरे से: "नर्मिला जी, तुम्हारी उंगलियां... इतनी नरम। क्या मैं पकड़ सकता हूं?" नर्मिला की सांस तेज़: "आर्यन... हां... लेकिन मां देख लेंगी तो..." आर्यन मुस्कुराया: "कोई नहीं, वो बाहर हैं। कल मिलें? अकेले, कहीं?" नर्मिला हिचकिचाई, लेकिन हां कहा। जाल बिछ गया।
आर्यन की सुबह गांव की हलचल से शुरू हुई – वो उठा, मां के साथ नाश्ता किया, लेकिन मन में नर्मिला की तस्वीर घूम रही थी – उसकी वो शरारती मुस्कान, वो भरा हुआ बदन, वो bhabhi जैसी अदा। "आज मिलना है, लेकिन कैसे?" वो सोचता हुआ निकला। मां से कहा: "मां, आज सर्पंच जी के घर जाऊंगा, कुछ काम है।" मां मुस्कुराई: "हां, बेटा। नर्मिला से भी मिल लेना, वो अच्छी है।" आर्यन का दिल धड़का, लेकिन चुप रहा। गांव की गलियां पार की, सर्पंच के घर पहुंचा – सर्पंच बाहर नहीं थे, लेकिन नर्मिला बगीचे में फूल तोड़ रही थी – नीली साड़ी में, बाल खुले, पसीने से चमकता चेहरा, ब्रेस्ट की हल्की उभार, कमर की मटक। "नर्मिला जी, नमस्ते," आर्यन ने कहा, करीब जाकर। नर्मिला चौंकी, फिर मुस्कुराई: "आर्यन, तुम? आओ, अंदर आओ। सर्पंच जी बाजार गए हैं।" आर्यन अंदर गया, कमरे में बैठा – नर्मिला चाय लेकर आई, झुककर सर्व की, उसकी साड़ी का पल्लू हल्का सरका, ब्रेस्ट की झलक दिखी। आर्यन की आंखें चमकीं, लेकिन छुपाया: "नर्मिला जी, तुम्हारा घर कितना सुंदर है। जैसे तुम।" नर्मिला शर्मा गई, लेकिन आंखें मिलाईं: "आर्यन, तुम्हारी बातें... इतनी मीठी। शहर में सब लड़के ऐसे होते हैं?" आर्यन करीब आया, हाथ छुआ: "नहीं, नर्मिला जी। लेकिन तुम्हारे लिए... खास हैं। क्या मैं कह सकता हूं, तुम्हारी मुस्कान... मुझे खींच रही है।" नर्मिला की सांस तेज़: "आर्यन... ये... गलत है। सर्पंच जी..." लेकिन वो रुकी नहीं, हाथ पकड़े रही। आर्यन ने फुसफुसाया: "नर्मिला जी, जीवन में खुशी मिलनी चाहिए। क्या मिलती है तुम्हें?" नर्मिला की आंखें नम: "नहीं... सर्पंच जी अच्छे हैं, लेकिन..." आर्यन ने हाथ चूमा – धीरे: "मैं हूं न। कल मिलें? अकेले, नदी के किनारे।" नर्मिला हिचकिचाई, लेकिन हां कहा। जाल और गहरा हो गया।
आर्यन की सुबह गांव की धूप में बीती – वो उठा, मां के साथ नाश्ता किया, लेकिन मन में नर्मिला की तस्वीर घूम रही थी – उसकी वो शरारती मुस्कान, वो भरा हुआ बदन, वो bhabhi जैसी अदा। "आज मिलना है, लेकिन कैसे?" वो सोचता हुआ निकला। मां से कहा: "मां, आज नदी के किनारे घूमकर आऊंगा। शाम को लौटूंगा।" मां मुस्कुराई: "हां, बेटा। ध्यान से जाना, पानी तेज़ है।" आर्यन निकला – गांव की पगडंडियां पार की, खेतों से गुजरा, नदी के किनारे पहुंचा – शाम हो रही थी, सूरज ढल रहा था, पानी की कलकल, हवा में ठंडक, पेड़ों की छांव। नर्मिला इंतज़ार कर रही थी – नीली साड़ी में, बाल खुले, चेहरा थोड़ा उदास, लेकिन आर्यन को देखकर मुस्कुराई। "आर्यन, आ गए?" उसने कहा, करीब आते हुए। आर्यन मुस्कुराया, उसके पास बैठा – नदी का पानी उनके पैर छू रहा था, शाम की रोशनी नर्मिला के चेहरे पर пад रही थी, उसकी आंखें चमक रही थीं। "नर्मिला जी, तुम्हारी आंखें... नदी से ज्यादा गहरी लग रही हैं। क्या बात है?" वो धीरे से पूछा, हाथ छुआ। नर्मिला चुप रही, फिर आंखें नम हो गईं: "आर्यन, सर्पंच जी... अब मुझे प्यार नहीं करते। ध्यान नहीं देते।" आर्यन ने हाथ पकड़ा: "क्यों? बताओ न।"
नर्मिला ने सिसकी ली, आंसू बहने लगे: "आर्यन, सर्पंच जी गांव की लगभग सारी लड़कियां और औरतें चोदते हैं। रोज एक नई। मुझे इससे कोई समस्या नहीं, लेकिन वो मुझे ध्यान ही नहीं देते। जैसे मैं कोई पुरानी चीज़ हो गई हूं।" उसकी आवाज़ कांप रही थी, आंखें नीचे, हाथ कसकर पकड़े। आर्यन का दिल धड़का, लेकिन वो चुप रहा, धीरे से उसके आंसू पोछे: "नर्मिला जी, रोओ मत। तुम इतनी खूबसूरत हो, कोई कैसे ध्यान न दे?" नर्मिला ने सिर उठाया, आंखें मिलाईं: "आर्यन, तुम्हारी बातें... दिल को छूती हैं।" आर्यन ने धीरे से गाल पर हाथ रखा, सहलाया: "नर्मिला जी, तुम्हें खुशी मिलनी चाहिए। मैं हूं न।" नर्मिला की सांस तेज़ हुई, वो चुप रही, लेकिन आंसू बहते रहे। आर्यन ने उसे चुप कराने के लिए गले लगा लिया – उसके ब्रेस्ट उसके सीने से लगे, गर्माहट महसूस हुई, नर्मिला की सांसें उसके कान के पास। "आर्यन... ये... " वो फुसफुसाई, लेकिन रुकी नहीं। आर्यन ने धीरे से गर्दन पर किस किया – नरम, गर्म, जैसे सांत्वना दे रहा हो। नर्मिला की कमर उछली, सिसकारी भरी: "ओह... आर्यन..." आर्यन ने गाल पर किस किया, फिर होंठों पर – लंबा, पैशनेट किस, जीभ मिलाकर, सांसें एक। नर्मिला ने रिस्पॉन्ड किया, उसके हाथ आर्यन की पीठ पर, कसकर पकड़े। किस खत्म हुआ, नर्मिला की आंखें बंद: "आर्यन... ये... गलत है, लेकिन अच्छा लगा।" आर्यन ने कान में फुसफुसाया: "नर्मिला जी, जीवन में खुशी मिलनी चाहिए। कल मिलें? अकेले, यहां।" नर्मिला हिचकिचाई, लेकिन हां कहा। जाल और गहरा हो गया।
आर्यन की सुबह गांव की रौशनी में बीती – वो उठा, मां के साथ चाय पी, लेकिन मन में नर्मिला की तस्वीर घूम रही थी – उसकी वो शरारती मुस्कान, वो भरा हुआ बदन, वो bhabhi जैसी अदा। "आज मिलना है, लेकिन कैसे?" वो सोचता हुआ निकला। मां से कहा: "मां, आज घर पर हूं। अगर कोई आए तो बताना।" मां मुस्कुराई: "हां, बेटा। आराम कर।" आर्यन कमरे में बैठा, किताब पढ़ने का नाटक किया, लेकिन मन में प्लान – "नर्मिला आएगी, आज घर पर।" दोपहर हुई, मां बाहर गईं – किसी पड़ोसी से मिलने। तभी दरवाज़ा खटखटाया, आर्यन खोला – नर्मिला सामने – हल्की गुलाबी साड़ी में, बाल खुले, चेहरा शर्म से लाल, हाथ में एक टिफिन। "आर्यन, आंटी घर पर नहीं हैं?" उसने पूछा, आंखें नीचे। आर्यन मुस्कुराया: "नहीं, नर्मिला जी। बाहर गई हैं। आओ, अंदर आओ।" नर्मिला हिचकिचाई, लेकिन अंदर आई, टिफिन रखा: "ये मिठाई है, तुम्हारे लिए बनाई।" आर्यन ने हाथ पकड़ा: "नर्मिला जी, तुम्हारी मिठाई... तुम्हारी तरह मीठी होगी। बैठो।" दोनों सोफे पर बैठे, नर्मिला की सांस तेज़, आंखें मिलाईं: "आर्यन, कल की बात... नदी के किनारे... अच्छी लगी। लेकिन गलत है।" आर्यन करीब आया, गाल छुआ: "नर्मिला जी, गलत क्यों? जीवन में खुशी मिलनी चाहिए। तुम्हारी आंखें... उदास लग रही हैं। बताओ न।" नर्मिला की आंखें नम: "आर्यन, सर्पंच जी... मुझे ध्यान नहीं देते। लेकिन तुम... तुम्हारी बातें... दिल को छूती हैं।" आर्यन ने धीरे से गले लगा लिया – नर्मिला के ब्रेस्ट उसके सीने से लगे, गर्माहट महसूस हुई, नर्मिला की सांसें उसके कान के पास। "नर्मिला जी, रोओ मत। मैं हूं न," वो फुसफुसाया। नर्मिला ने सिर उठाया, आंखें मिलाईं, और धीरे से होंठ करीब आए – एक नरम किस, जैसे बिचड़े हुए प्रेमी मिले हों।
किस गहरा होता गया – आर्यन के होंठ नर्मिला के होंठों पर दबे, जीभ मिलीं, सांसें एक हो गईं, जैसे सालों का इंतज़ार खत्म हो रहा हो। नर्मिला की सांस तेज़, हाथ आर्यन की पीठ पर, कसकर पकड़े। "आर्यन... ये... इतना अच्छा... लेकिन..." वो फुसफुसाई, लेकिन रुकी नहीं। आर्यन ने धीरे से साड़ी का पल्लू सरकाया, गर्दन पर किस किया – नरम, गर्म, चाटा धीरे। नर्मिला की कमर उछली, सिसकारी: "ओह... आर्यन... तुम्हारा मुंह... इतना गर्म... हां..." आर्यन ने ब्लाउज के हुक खोले, ब्रेस्ट आज़ाद – बड़े, सॉफ्ट, निप्पल्स ब्राउन और हार्ड। धीरे से एक ब्रेस्ट पर मुंह रखा, चूसा, जीभ से सर्कल बनाते हुए। नर्मिला की सिसकारी: "आह... आर्यन... चूसो... मेरे निप्पल्स... इतने हार्ड... तुम्हारे लिए... हां..." उनकी आंखें बंद, चेहरा लाल, भावनाएं उमड़ रही थीं – प्यार के आंसू आंखों के कोनों में। आर्यन ने दूसरे ब्रेस्ट पर स्विच किया, चूसा, काटा हल्का, हाथ से मसला – नर्मिला की बॉडी कांप रही थी, "आर्यन... तुम्हारा स्पर्श... इतना रोमांटिक, इतना गहरा... मुझे लगता है... तुम मेरे बिचड़े हुए प्रेमी हो... और चूसो..." आर्यन नीचे सरका, साड़ी ऊपर की, पैंटी उतारी – चूत पर बाल, गुलाबी, गीली। जीभ फेरी – क्लिट पर, धीरे सर्कल। नर्मिला तड़पी: "आह... आर्यन... तेरी जीभ... मेरी चूत में... इतनी नरम... हां... चाटो..." आर्यन ने जीभ अंदर डाली, चूसा, उंगली से रगड़ा – नर्मिला झड़ी, बॉडी कांपी।
निर्मला की चूत को चूसते हुए आर्यन उसके स्तनों को धीरे-धीरे दबा रहा था, जैसे कि वह उसकी हर सांस को महसूस कर रहा हो। उसके दिमाग में अभी भी वह पुराना दृश्य घूम रहा था—जब सरपंच उसकी माँ को बेरहमी से चोद रहा था, उसे रंडी की तरह इस्तेमाल करते हुए। लेकिन अब, निर्मला के साथ, वह सब कुछ अलग करना चाहता था। वह चाहता था कि यह पल प्यार से भरा हो, न कि सिर्फ वासना से। निर्मला की आहें कमरे में गूंज रही थीं, और आर्यन ने महसूस किया कि उसका पानी निकलने वाला है। जैसे ही वह झड़ी, आर्यन ने उसका सारा रस पी लिया, मानो वह उसकी आत्मा का हिस्सा बनना चाहता हो। उसका स्वाद मीठा था, जैसे कोई अमृत।
फिर आर्यन उसके ऊपर आया। निर्मला की आंखों में आंसू थे—शायद दर्द के, या शायद खुशी के। आर्यन ने उन आंसुओं को चाट लिया, जैसे वे उसके लिए कोई कीमती मोती हों। फिर उसने उसके माथे पर एक कोमल चुंबन किया, और होंठों पर एक गहरा, प्यार भरा चुम्बन। वह जानता था कि निर्मला अब तैयार है, लेकिन वह जल्दबाजी नहीं करना चाहता था। वह चाहता था कि यह पल हमेशा के लिए याद रहे। आर्यन ने अपना लंड निकाला और उसके सामने रख दिया। वह 10 इंच का था, मोटा और मजबूत, जैसे कोई राजसी हथियार। निर्मला की आंखें चौड़ी हो गईं। वह भूखी शेरनी की तरह उस पर झपट पड़ी और बोली, "ओह, इतना बड़ा! इतना तो सरपंच का भी नहीं है। यह तो जैसे मेरे लिए बना है।" आर्यन मुस्कुराया और बोला, "हां मेरी जान, अब यह तुम्हारा है। इसे प्यार से सहलाओ, जैसे मैं तुम्हें सहलाता हूं।"
निर्मला ने उसे हाथ में लिया और धीरे-धीरे हिलाने लगी, उसकी नसों को महसूस करते हुए। फिर उसने उसे मुंह में डाला और लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी, जीभ से घुमाते हुए, जैसे वह हर इंच को चखना चाहती हो। आर्यन की सांसें तेज हो गईं, लेकिन वह रुकना नहीं चाहता था। दस मिनट तक यह चलता रहा, और फिर आर्यन ने कहा, "बस अब, मेरी रानी। अब शुरू करते हैं असली खेल—प्यार का खेल।" निर्मला ने उसकी आंखों में देखा और बोली, "मैं अब पूरी तरह तुम्हारी हूं, राजा। जो चाहो करो मेरे साथ, लेकिन प्यार से।"
आर्यन ने उसे बिस्तर पर लिटाया। कमरे की मद्धिम रोशनी में उसका शरीर चमक रहा था, जैसे कोई देवी। वह अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ने लगा, धीरे-धीरे, उसे तड़पाते हुए। निर्मला की सांसें उखड़ने लगीं, वह तड़प रही थी, "प्लीज, आर्यन... अंदर डालो ना।" आर्यन से रहा नहीं गया। उसने एक धीमा लेकिन मजबूत धक्का लगाया, और आधा लंड अंदर घुस गया। निर्मला चीख उठी, लेकिन आर्यन ने अपने होंठों से उसके मुंह को बंद कर दिया, उसे गहरा चुम्बन देते हुए। फिर एक और जोरदार धक्का, और पूरा लंड अंदर। निर्मला रोने लगी, दर्द से, लेकिन आर्यन ने उसे संभाला। वह रुका, उसे प्यार से सहलाया, उसके स्तनों को चूसा, निप्पलों को जीभ से छेड़ा। धीरे-धीरे निर्मला शांत हुई, और उसकी सिसकारियां शुरू हो गईं।
अब आर्यन ने धीरे-धीरे धक्के मारना शुरू किया, हर धक्के में प्यार डालते हुए। निर्मला की आंखें बंद थीं, वह सिसकारियां ले रही थी, "ओह... आर्यन... कितना अच्छा लग रहा है।" आर्यन ने चुम्बन तोड़ा और गति बढ़ा दी। कमरा उनकी सांसों और आहों से भर गया। निर्मला बड़बड़ाने लगी, "हां, और तेज चोदो मुझे राजा... आआआह... फाड़ दो मेरी चूत... मैं तुम्हारी हूं।" दस मिनट तक यह चलता रहा, पसीने से भीगे शरीर एक-दूसरे से चिपके हुए। फिर आर्यन ने उसे डॉगी स्टाइल सिखाया—उसे घुटनों पर लिटाया, पीछे से पकड़ा। निर्मला पागल हो गई, "हां, कुतिया बना दो मुझे... चोदो जोर से।" आर्यन ने वैसा ही किया, उसके कूल्हों को पकड़कर धक्के लगाए, हर धक्के में उसकी गहराई को छूते हुए।
फिर उसने उसे उठाया और दीवार के सहारे लगा लिया। निर्मला की टांगें उसके कमर के चारों ओर लिपट गईं। आर्यन ने उसे ऐसे चोदा, जैसे वह उसे दुनिया से अलग कर रहा हो। इस बीच निर्मला छह बार झड़ी, हर बार और ज्यादा जोर से, जैसे उसका शरीर आनंद की लहरों में डूब रहा हो। आखिरकार, आर्यन उसकी चूत में ही झड़ गया, अपना सारा बीज अंदर डालते हुए। दोनों थककर बिस्तर पर गिर पड़े, एक-दूसरे की बाहों में। लेकिन वे भूल गए कि आर्यन की माँ घर आने वाली है। वह सब अगले भाग में...
Fuckuguy
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