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गिगोलो का मोटा लंड: आंटीयों और जवान लड़कियों की गांड मार चुदाई कहानी
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गिगोलो का मोटा लंड: आंटीयों और जवान लड़कियों की गांड मार चुदाई कहानी

आर्यन की वो वाइल्ड रात क्लब में खत्म हो चुकी थी – सुबह की पहली किरण रूम में घुस रही थी, लेकिन लड़कियां अभी भी थकी हुई लेटी थीं, उनकी बॉडी दर्द से भरी, चूत और गांड सूजी हुई, कम से सनी, सांसें फूली हुई। आर्यन उठा, उसके बदन में थकान थी, लेकिन मन में एक नई ऊर्जा – "पावर मेरा है। अब अगली," वो आईने में खुद को देखकर मुस्कुराया। शावर लिया, कपड़े पहने, और क्लब से निकला। घर लौटा, बिस्तर पर गिरा, लेकिन नींद नहीं आई। रात की यादें – शराब, सिसकारियां, लड़कियों की थकी बॉडी – उसके दिमाग में घूम रही थीं। "ये जीवन... अब मेरा है," वो सोचता रहा। अगले दिन सुबह उठा, जैसे ही आंखें खोलीं, फोन बज रहा था। स्क्रीन पर नाम – "मां"। आर्यन का दिल धड़का – गांव की यादें, मां की आवाज़। कॉल उठाया: "हां, मां, कैसी हो?" मां की आवाज़ कांप रही थी: "बेटा, मैं ठीक हूं। लेकिन तुम्हारी याद आ रही है। कितने दिनों से नहीं आए। गांव आ जाओ, कुछ दिन रहो। यहां सब ठीक है, लेकिन तुम बिना... घर सूना लगता है।" आर्यन चुप रहा, मन में भावनाएं उमड़ीं – गांव की वो सादगी, मां का प्यार, जो इस पावर वाली दुनिया से अलग था। "मां, मैं आऊंगा। लेकिन कुछ दिन लगेंगे," वो बोला। मां: "जल्दी आना, बेटा। तुम्हारी याद बहुत आ रही है।" कॉल कट गया, आर्यन सोच में डूब गया – "मां... शायद कुछ समय गांव में गुजारूं। ये दुनिया... थकाती है।"
काव्या को कॉल किया: "काव्या, मुझे कुछ समय के लिए गांव जाना है। मां बुला रही हैं। उनकी याद आ रही है। वहां से आकर जारी रखूंगा।" काव्या चुप रही, फिर बोली: "आर्यन, पावर इंतज़ार नहीं करती। लेकिन ठीक है, जाओ। लेकिन जल्दी आना। अगली शिकार इंतज़ार कर रही है।" आर्यन ने हां कहा, बैग पैक किया, ट्रेन की टिकट बुक की। शाम को निकला, दिल्ली की भीड़ से निकलकर गांव की तरफ। रास्ते में सोचता रहा – "मां, तुम्हारी सादगी... शायद मुझे बदल दे।
आर्यन की वो वाइल्ड रात क्लब में खत्म हो चुकी थी, और सुबह की रोशनी में वो घर लौटा था, लेकिन मन में एक अजीब सी शांति – पावर की, लेकिन साथ ही एक खालीपन। अगले दिन सुबह उठा तो फोन पर मां का कॉल आया था, और वो फैसला कर चुका था – गांव जाना है। लेकिन मां को सरप्राइज़ देने के लिए, 10 तारीख की बजाय 8 तारीख को ही निकल पड़ा। "मां को सरप्राइज़ दूंगा, वो खुश होंगी," वो सोचता हुआ ट्रेन में बैठा, दिल्ली की भीड़भाड़ से निकलकर गांव की तरफ। ट्रेन के सफर में वो खिड़की से बाहर देखता रहा – शहर की इमारतें पीछे छूटती गईं, खेत, नदियां, गांव की सादगी नजर आने लगी। मन में पुरानी यादें उभर आईं – बचपन के दिन, मां का प्यार, गांव की हवा। लेकिन अब वो आर्यन 2.0 था – दिल ठंडा, लेकिन मां के लिए एक कोमल कोना बाकी था। "कुछ दिन गांव में गुजारूं, शायद ये पावर वाली दुनिया से ब्रेक मिले," वो सोचता रहा। ट्रेन से उतरा, बस पकड़ी, गांव पहुंचा – शाम हो चुकी थी, सूरज ढल रहा था, गांव की गलियां शांत, हवा में मिट्टी की महक। घर की तरफ चला, दिल धड़क रहा था – "मां देखकर खुश होंगी।" घर पहुंचा, दरवाज़ा खुला था – गांव की आदत, ताला नहीं लगता। "मां, मैं आ गया," वो अंदर घुसा, लेकिन कोई जवाब नहीं। घर सूना लगा, लेकिन बेडरूम से कुछ आवाजें आ रही थीं – सिसकारियां, जानी-पहचानी, लेकिन अजीब। "मां?" वो धीरे से बेडरूम की तरफ गया, दरवाज़ा हल्का खुला था। जांका – और उसकी दुनिया हिल गई।
बेडरूम में मां, सुनीता, बेड पर लेटी थीं – एक 50 साल के आदमी के नीचे, दोनों नंगे, प्यार से एक-दूसरे को छू रहे थे। आदमी – गांव का सर्पंच, हट्टा-कट्टा, काला लेकिन मजबूत – सुनीता के ब्रेस्ट चूस रहा था, धीरे-धीरे, जैसे पूजा कर रहा हो, जीभ से निप्पल्स पर सर्कल बनाते हुए, हल्का काटते हुए, सहलाते हुए। सुनीता की कमर उछल रही थी, सिसकारी भरी: "ओह सर्पंच जी... हां... ऐसे ही चूसो... तुम्हारा मुंह... इतना गर्म, इतना प्यारा... आह... सालों का अकेलापन... तुम्हारा स्पर्श मिटा रहा है..." उनकी आंखें बंद, चेहरा लाल, भावनाएं उमड़ रही थीं – प्यार के आंसू आंखों के कोनों में, जैसे वो हर स्पर्श में खोई हुई हों, कमर हिल रही, हाथ सर्पंच के बालों में उलझे, दबा रही। सर्पंच नीचे सरका, जांघों पर किस किया – अंदर की तरफ, धीरे सहलाया, सुनीता की सांसें फूल रही थीं: "सर्पंच जी... वहां... प्लीज़... तुम्हारी जीभ... मुझे चाहिए..." सर्पंच ने चूत पर मुंह रखा – पहले रगड़ा, फिर जीभ फेरी – क्लिट पर सर्कल, ऊपर-नीचे, धीरे स्पीड बढ़ाई। सुनीता तड़पी, पैर फैलाए: "आह... सर्पंच जी... तेरी जीभ... मेरी चूत में... इतनी नरम, इतनी गहरी... सालों की प्यास... बुझा दो... हां... और... चाटो... प्यार से..." उनकी बॉडी कांप रही थी, कमर हिल रही, जूस बहने लगा, जैसे हर चाट में एक नई लहर उठ रही हो – प्यार की, सुख की, भावनाओं की। सर्पंच ने जीभ अंदर डाली, चूसा, उंगली से क्लिट रगड़ा – धीरे-धीरे, लेकिन इंटेंस। सुनीता की सिसकारियां कमरे में गूंज रही थीं: "ओह... सर्पंच जी... तुम्हारा प्यार... मुझे पागल कर रहा है... मैं... झड़ रही हूं... आह..." वो झड़ गई, जूस बहा, बॉडी थरथराई, आंखें नम – खुशी के आंसू बहने लगे: "सर्पंच जी... तुमने मुझे स्वर्ग दिखा दिया... तुम्हारा स्पर्श... इतना गहरा..."
सर्पंच ऊपर आया, सुनीता को गले लगाया, उनके आंसू पोछे: "सुनीता... तुम्हारी खुशी... मेरी खुशी है... मैं तुम्हारा हूं, हमेशा..." सुनीता ने सर्पंच को किस किया, "अब तुम... मुझे तुम्हारा महसूस करना है..." उन्होंने सर्पंच के लंड को सहलाया – मोटा, सख्त, गर्म। मुंह में लिया – धीरे से, प्यार से, जीभ से लपेटा, गला तक। सर्पंच की सिसकारी: "सुनीता... तुम्हारा मुंह... इतना गर्म, इतना नरम... मुझे स्वर्ग लग रहा है... हां..." सुनीता ने चूसा – धीरे-धीरे, आंखें मिलाकर, जैसे हर मोमेंट में प्यार डाल रही हों: "सर्पंच जी... तुम्हारा लंड... इतना ताकतवर... मुझे चाहिए..." सर्पंच ने उन्हें रोका, कंडोम लगाया। सुनीता नीचे लेटीं, पैर फैलाए। सर्पंच ऊपर आया, लंड चूत पर रगड़ा – टिप से क्लिट को छुआ, धीरे सहलाया। सुनीता तड़पी: "डालो न... सर्पंच जी... तुम्हारा बड़ा लंड... मुझे पूरा चाहिए... प्यार से..." सर्पंच ने धीरे से अंदर डाला – पहले टिप, फिर आधा, सुनीता की आंखें बंद: "आह... इतना बड़ा... भर रहा है मुझे... दर्द भी, सुख भी... धीरे... लेकिन गहरा..." सर्पंच ने पूरा अंदर किया, सुनीता चिल्लाई: "ओह सर्पंच जी... तुम्हारा लंड... मेरी चूत में... परफेक्ट है... चोदो मुझे..."
धक्के शुरू हुए – धीरे-धीरे, लेकिन रोमांटिक, हर धक्के में आंखें मिलाकर, हाथ पकड़कर, सांसें मिलाकर। सुनीता की सिसकारियां: "हां... चोदो... सर्पंच जी... तुम्हारा प्यार... हर दर्द मिटा रहा है... आह... और तेज़..." ब्रेस्ट उछल रहे, भावनाएं पीक पर – प्यार के आंसू, सुख की लहरें। स्पीड बढ़ी, लेकिन प्यार से – सुनीता झड़ी, "सर्पंच जी... मैं तुम्हारी हूं... हमेशा..." सर्पंच भी झड़ा, दोनों साथ, बॉडी मिलकर कांपीं, जैसे आत्माएं एक हो गई हों। फिर गांड की बारी – सुनीता शर्मा रही थीं, लेकिन प्यार से हां की। लुब्रिकेंट लगाया, सर्पंच ने धीरे अंदर डाला। सुनीता: "आह... दर्द... लेकिन तुम्हारा प्यार... सह लूंगी... हां..." स्पीड बढ़ी – गहरा, इंटेंस, हाथ ब्रेस्ट पर, कान में प्यार भरी बातें: "सुनीता... तुम मेरी हो... हर दर्द मैं मिटा दूंगा..." सुनीता: "ओह... फाड़ देगा... लेकिन अच्छा लग रहा... सर्पंच जी... तुम्हारा लंड... मुझे पूरा कर रहा है... आह..." वो फिर झड़ी, भावनाएं पीक पर – प्यार, दर्द, सुख। रात लंबी हुई – कई बार, हर मोमेंट में रोमांस, इंटेंसनेस, भावनाएं। सर्पंच बोला: "सुनीता, 20 साल से तुम्हें चोद रहा हूं... तुम्हारी चूत... अभी भी टाइट है..." सुनीता: "हां... सर्पंच जी... तुम्हारा लंड... मुझे जीवित रखता है... चोदो... और..." आर्यन ने पूरा देखा, दिल टूटा, लेकिन बाहर निकला। "मां भी... ऐसी?" वो सोचता रहा, गांव से लौटने का फैसला किया।
आर्यन घर के बहार आया, उसके कदम डगमगा रहे थे, दिल में एक तूफान मचा हुआ था। "ये... ये क्या देख लिया मैंने?" वो खुद से बड़बड़ाया, सड़क पर चलते हुए, गांव की शांत गलियां अब उसे चुभ रही थीं। शाम का अंधेरा घिर रहा था, हवा में ठंडक थी, लेकिन उसके बदन में एक आग जल रही थी – धोखे की, गुस्से की। "मां... सर्पंच के साथ... 20 साल से? पिताजी के रहते हुए भी? ये कैसे?" वो स्टेशन की तरफ बढ़ा, मन में विचार घूम रहे थे – "वापस शहर चला जाऊं। काव्या के पास, पावर की दुनिया में। ये गांव... ये परिवार... सब झूठ।" स्टेशन पहुंचा, प्लेटफॉर्म पर बैठा, ट्रेन का इंतज़ार करने लगा। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, उसके मन में विचार बदलने लगे। "रुक, ध्याह से सोच। मां की क्या गलती है? वो भी तो औरत है, उसकी भी ख्वाहिशें होंगी। 20 साल से चोद रहा है सर्पंच, मतलब पिताजी के जीते जी से। लेकिन अब क्या फर्क पड़ता है? पिताजी नहीं रहे। मां अकेली है, उसकी ज़िंदगी... उसकी मर्जी। मैं कौन होता हूं जज करने वाला? मैं खुद क्या हूं? क्या दूध का धुला हूं? गिगोलो हूं, औरतों को फंसाता हूं, पैसा निकालता हूं। मां की खुशी... क्यों छीनूं?"
ये विचार उसके मन में घूमते रहे, स्टेशन की घड़ी टिक-टिक कर रही थी, ट्रेन आने वाली थी, लेकिन आर्यन उठा – "नहीं, वापस जाऊंगा घर। मां को सरप्राइज़ दूंगा, जैसे प्लान था।" वो स्टेशन से बाहर निकला, गांव की तरफ चला। रास्ते में अंधेरा हो चुका था, तारे चमक रहे थे, हवा में रात की ठंडक। घर पहुंचा, दरवाज़ा अभी भी खुला। अंदर गया, बेडरूम से अब शांति थी। थोड़ी देर बाद, मां, सुनीता, बाहर आईं – चेहरा थका लेकिन खुश, कपड़े पहने हुए, लेकिन बाल बिखरे। आर्यन को देखकर चौंक गईं: "आर्यन? बेटा, तुम? 10 तारीख को आने वाले थे न?" आर्यन मुस्कुराया, आंसू दबाकर: "मां, सरप्राइज़ देने आ गया। दो दिन पहले। कैसी हो?" सुनीता ने गले लगाया, आंखें नम: "बेटा, कितनी खुशी हुई। आ, बैठ। खाना खाया?" आर्यन ने हां कहा, लेकिन मां ने जोर दिया – रोटी, सब्जी, दाल बनाई, दोनों ने साथ खाना खाया। बातें हुईं – गांव की, मां की सेहत की, लेकिन आर्यन का मन उस दृश्य में अटका था। "मां, खुश हो न?" वो पूछा। सुनीता मुस्कुराई: "हां, बेटा। अब तुम आ गए, और खुश।" आर्यन ने मन ही मन सोचा: "मां, तुम्हारी ख्वाहिशें... मैं समझता हूं।" खाना खत्म हुआ, आर्यन सो गया – लेकिन नींद नहीं आई, विचार घूमते रहे।
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RE: गिगोलो का मोटा लंड: आंटीयों और जवान लड़कियों की गांड मार चुदाई कहानी - by Fuckuguy - 14-09-2025, 04:37 PM



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