14-09-2025, 04:21 AM
गर्मियों की वो शाम
हैलो दोस्तों, मेरा नाम राजू है। उम्र अभी बीस साल की है, और मैं एक छोटे से गाँव में रहता हूँ, जहाँ हवा में हमेशा मिट्टी की खुशबू घुली रहती है। हमारा गाँव मध्य प्रदेश के एक कोने में बसा है, जहाँ खेतों की हरियाली और नदियों का बहाव ही जीवन का आधार है। पापा किसान हैं, माँ घर संभालती हैं, और बड़ा भाई शादी के बाद शहर चला गया है नौकरी करने। लेकिन भाभी... अरे भाभी का नाम सुनते ही दिल में एक अजीब सी हलचल सी हो जाती है। उनका नाम है सीमा, उम्र करीब छब्बीस साल की, और वो जब गाँव आई थीं, तो पूरे मोहल्ले के लड़कों की नींद उड़ा दी थी।
वो शाम थी जून की, जब गर्मी इतनी तेज़ हो जाती है कि पेड़ों की छाँव भी गर्म लगने लगती है। मैं खेत से लौट रहा था, कंधे पर हँसिया लटका हुआ, और पसीने से पूरा बदन भीगा हुआ। सूरज डूबने को था, लेकिन वो लालिमा अभी भी आसमान को रंग रही थी। रास्ते में एक छोटा सा तालाब पड़ता है, जहाँ गाँव की औरतें स्नान करने जाती हैं। मैंने सोचा, थोड़ा ठंडा हो लूँ, तो तालाब की ओर मुड़ गया। लेकिन जैसे ही करीब पहुँचा, मुझे आवाज़ें सुनाई दीं – हल्की हँसी और पानी के छींटों की आवाज़।
मैंने झाड़ियों के पीछे छिपकर झाँका। वहाँ भाभी थीं। अकेली। उनकी साड़ी उतरकर किनारे पर रखी हुई थी, और वो सिर्फ़ ब्लाउज़ और पेटीकोट में पानी में उतर रही थीं। भाभी का शरीर... उफ़, क्या कहूँ? गोरा-चिटा, जैसे दूध में डूबा हुआ। उनकी कमर पतली थी, लेकिन कूल्हे इतने चौड़े कि देखते ही मन में एक उत्तेजना सी दौड़ जाती। ब्लाउज़ उनके भरे हुए स्तनों को मुश्किल से समेटे हुए था, और जब वो पानी में झुकीं, तो वो गोलाई बाहर झाँकने लगी। पानी उनके लंबे काले बालों को भीगो रहा था, जो पीठ पर लहरा रहे थे।
मैं वहीं खड़ा हो गया, साँसें थम सी गईं। भाभी ने पानी में डुबकी लगाई, और ऊपर आते ही उनके होंठों पर पानी की बूँदें चमक रही थीं। उन्होंने आँखें बंद करके सिर पीछे किया, जैसे थकान मिटा रही हों। उनकी गर्दन लंबी और सुंदर, जैसे किसी राजकुमारी की। मैंने महसूस किया कि मेरा लंड कड़क हो रहा है, पैंट में दबाव सा महसूस हो रहा। मैंने हाथ से दबाने की कोशिश की, लेकिन नज़रें भाभी से हट ही नहीं रही थीं। वो पानी से बाहर निकलीं, और पेटीकोट से पानी टपक रहा था, जो उनकी जाँघों पर चमक रहा था। जाँघें मोटी, लेकिन नरम लग रही थीं, जैसे रुई की।
अचानक भाभी ने सिर घुमाया। मैंने झटके से पीछे हटना चाहा, लेकिन पैर फिसल गया। एक शाखा टूटने की आवाज़ हुई। भाभी चौंक गईं। "कौन है वहाँ?" उनकी आवाज़ मीठी, लेकिन डर भरी। मैं चुप रहा, लेकिन दिल धक-धक कर रहा था। वो साड़ी उठाकर लपेटने लगीं, जल्दी-जल्दी। लेकिन फिर मुस्कुराईं। "राजू? तू है ना?"
मैं बाहर आ गया, सिर झुकाए। "हाँ भाभी... मैं... बस ठंडा होने आया था।"
वो हँसीं, लेकिन आँखों में शरारत थी। "ठीक है, लेकिन अगली बार चोरी-चोरी मत देखना। आ जा, साथ में नहा लें। गर्मी बहुत है।"
मेरा मुंह सूख गया। भाभी ने ब्लाउज़ उतार दिया? नहीं, वो अभी भी पहने हुए थीं, लेकिन साड़ी ठीक से लिपटी नहीं थी। उनकी नाभि दिख रही थी, गोल और गहरी। मैं पानी में उतर गया, लेकिन नज़रें नीची। भाभी ने पानी उछाला मेरी ओर। "क्या शरमाता है? तू तो बड़ा हो गया अब।"
हम हँसे, लेकिन मेरी हँसी में घबराहट थी। पानी में खेलते हुए, भाभी का हाथ मेरी पीठ पर लगा। वो नरम स्पर्श... जैसे बिजली का झटका। "तेरा बदन कितना मज़बूत हो गया है, राजू। खेतों का कमाल है।" उनकी उँगलियाँ मेरी पीठ पर घूमीं, हल्के से। मैंने कुछ न कहा, बस महसूस किया कि लंड अब पूरी तरह खड़ा हो गया है। पानी के नीचे छिपा हुआ, लेकिन दर्द सा हो रहा था।
शाम ढल गई। हम बाहर निकले। भाभी ने साड़ी पहनी, लेकिन उनके बाल अभी भी गीले थे, जो कंधों पर लहरा रहे थे। "चल, घर चलें। आज रात तेरे भाई का फोन आया था, वो कल आ रहे हैं। लेकिन तू आज रात मेरे साथ सोना। अकेले डर लगता है।"
मेरा दिल जोर से धड़का। भाई कल आ रहे हैं? लेकिन रात भाभी के साथ? घर पहुँचते-पहुँचते अंधेरा हो चुका था। माँ ने खाना परोसा, लेकिन मैं कुछ खा न सका। भाभी की नज़रें मुझ पर पड़ रही थीं, जैसे कुछ कह रही हों। रात के दस बजे, माँ-पापा सो गए। भाभी ने मुझे बुलाया, "राजू, आ जा ऊपर।"
उनका कमरा छत पर था, एक छोटा सा मचान। गर्मी से खिड़की खुली थी, चाँदनी फैली हुई। भाभी बिस्तर पर लेटी हुई थीं, साड़ी ऊपर चढ़ी हुई, जाँघें दिख रही थीं। "गर्मी है ना? तू भी लेट जा।" मैं बिस्तर के किनारे लेटा। लेकिन नींद कहाँ आ रही थी? भाभी करवट ले रही थीं, उनका शरीर मेरे करीब सरक रहा था। उनकी साँसें मेरी गर्दन पर लग रही थीं, गर्म और तेज़।
"राजू, तू सोया नहीं?" उनकी आवाज़ फुसफुसाहट में।
"नहीं भाभी... गर्मी।"
"मैं भी नहीं। आ, मालिश कर दूँ तुझे।" वो उठीं, और मेरी पीठ पर हाथ फेरने लगीं। उनके हाथ नरम, तेल लगे हुए जैसे। धीरे-धीरे हाथ नीचे सरकने लगे, कमर पर। मैं सिहर उठा। "भाभी..."
"शशश... चुप। आराम दे।" उनका हाथ मेरी जाँघ पर पहुँचा। मैंने साँस रोकी। लंड अब पैंट फाड़ने को तैयार था। भाभी ने महसूस किया, मुस्कुराईं। "क्या है ये? तू तो पुरुष हो गया लगता है।"
मैं शरम से लाल हो गया। लेकिन भाभी ने हाथ नहीं हटाया। धीरे से दबाया। "दर्द हो रहा है ना? मैं ठीक कर दूँ।"
भाग २: रात की उत्तेजना
रात के बारह बज चुके थे। चाँदनी कमरे को रोशन कर रही थी, और बाहर मेंढकों की आवाज़ें गूँज रही थीं। भाभी का हाथ अभी भी मेरी जाँघ पर था, हल्का दबाव डालते हुए। मैंने कुछ बोलना चाहा, लेकिन गला सूखा हुआ था। "भाभी, ये... ये ठीक नहीं। भैया..."
"भैया कल आएँगे। आज रात सिर्फ़ हम हैं।" उनकी आँखें चमक रही थीं, जैसे भूखी शेरनी की। वो करीब सरकीं, उनका स्तन मेरी बाँह से सटा। वो नरमी... उफ़, जैसे बादाम का हलवा। ब्लाउज़ के अंदर से गर्माहट महसूस हो रही थी। भाभी ने मेरी शर्ट उतार दी, धीरे से। "देख, कितना पसीना आ गया।"
मैं नंगा ऊपरी बदन हो गया। भाभी की उँगलियाँ मेरी छाती पर घूमने लगीं, निप्पल्स पर। एक अजीब सी सनसनी हुई, जैसे करंट दौड़ गया। "भाभी... अह्ह..." मैं सिसकारी भर आया। वो हँसीं, मीठे स्वर में। "पसंद आया? और भी मज़ा आएगा।"
उन्होंने मेरी पैंट की नाड़ा खींची। मैंने रोकना चाहा, लेकिन हाथ काँप रहे थे। पैंट नीचे सरक गई, और मेरा लंड बाहर उछल पड़ा। कड़क, लाल, नसें फूली हुईं। भाभी ने देखा, आँखें फैल गईं। "वाह राजू... कितना बड़ा है। तेरे भाई से भी ज्यादा।" उन्होंने हाथ में लिया, धीरे से सहलाया। ऊपर-नीचे। मैंने आँखें बंद कर लीं, सुख की लहर दौड़ गई।
"भाभी... ये पाप है।"
"प्यार पाप नहीं होता।" वो झुकीं, और होंठ लंड के सिरे पर रख दिए। गर्म, नम। जीभ बाहर निकली, चाटने लगी। मैं चिल्ला पड़ा, लेकिन दबा लिया। "अह्ह... भाभी... कितना अच्छा लग रहा है।" वो मुस्कुराईं, और मुंह में ले लिया। आधी लंबाई। चूसने लगीं, धीरे-धीरे। लार टपक रही थी, चटक-चटक की आवाज़। मैं उनके बालों में हाथ फेर रहा था, कसकर पकड़ लिया।
दस मिनट तक चूसती रहीं, कभी तेज़, कभी धीमे। मेरा वीर्य बाहर आने को था, लेकिन वो रुक गईं। "अभी नहीं। पहले तू मुझे खुश कर।" उन्होंने साड़ी उतार दी। ब्लाउज़ खोला। स्तन बाहर आ गए – बड़े, गोल, भूरे निप्पल्स तने हुए। मैंने छुआ, नरम लेकिन भरे हुए। दबाया, दूध निकलने लगा लगे। भाभी सिसकारीं, "चूस राजू... चूस अपनी भाभी के चुचे।"
मैं झुका, मुंह में लिया। चूसने लगा, जीभ से घुमाया। भाभी कराहने लगीं, "हाँ... ऐसे ही... अंदरूनी आग बुझा दे।" उनका हाथ मेरे सिर पर दबा रहा। दूसरा स्तन भी चूसा, काटा हल्के से। दांतों से। भाभी का बदन काँप रहा था।
फिर पेटीकोट उतारा। भाभी नंगी हो गईं। उनकी चूत... साफ़ शेव्ड, गुलाबी, नम चमक रही। "छू राजू... देख कितनी गीली हो गई तेरे लिए।" मैंने उँगली डाली, अंदर गर्माहट। भाभी ने कमर उभारी, "अंदर-बाहर कर... तेज़।" मैंने दो उँगलियाँ डाल दीं, चोदने लगा। पानी बहने लगा, बिस्तर गीला। भाभी की कराहें तेज़, "हाँ... चोद... अपनी भाभी की भोसड़ी चोद।"
मैं सहन न सका। ऊपर चढ़ गया। लंड चूत पर रगड़ा। भाभी ने हाथ से पकड़कर अंदर किया। "डाल राजू... भर दे मुझे।" मैंने धक्का मारा। अंदर सरक गया, गर्म, तंग। भाभी चीखी, "आह्ह... कितना मोटा है।" मैं रुका, फिर धीरे-धीरे हिलने लगा। हर धक्के में भाभी की चीखें, "हाँ... गहरा... फाड़ दे।"
रात भर चोदा। कभी मिशनरी, कभी डॉगी। भाभी ऊपर आकर नाचीं, स्तन उछल रहे। सुबह तक थक गए। लेकिन भाई आने वाले थे...
सुबह की पहली किरण कमरे में घुसी, चिड़ियों की चहचहाहट से नींद टूटी। मैंने आँखें खोलीं, तो देखा भाभी मेरी बाँहों में सिमटी हुई थीं, नंगी, उनकी साँसें मेरी छाती पर गर्म हवा की तरह लग रही थीं। रात की याद आई – वो कराहें, वो धक्के, वो चूमाचाटी। मेरा लंड फिर से हलचल करने लगा, लेकिन मैंने खुद को रोका। भाई आज आने वाले थे, और घर में माँ-पापा नीचे थे। भाभी की चूत अभी भी गीली लग रही थी, रात के रस से चिपचिपी। मैंने धीरे से उँगली फेरकर देखा, भाभी सिहर उठीं, लेकिन सोई रही।
मैं उठा, कपड़े पहने। भाभी की नंगी पीठ पर चादर डाली, उनके कूल्हों की गोलाई अभी भी दिख रही थी, जैसे आम के फल। नीचे उतरा, तो माँ चाय बना रही थीं। "बेटा, रात ठीक से सोया?" मैंने हाँ कहा, लेकिन दिल में घबराहट थी। क्या माँ को कुछ पता चला? लेकिन नहीं, वो मुस्कुरा रही थीं। पापा खेत जाने की तैयारी कर रहे थे। "राजू, आज तू भाभी को मदद कर देना घर के काम में। भैया आएंगे तो शाम का खाना अच्छा बनाना।"
दिन चढ़ा। भाभी नीचे आईं, साड़ी ठीक से लिपटी, लेकिन आँखों में वो शरारत। बाल बंधे हुए, लेकिन एक लट माथे पर लहरा रही। वो रसोई में गईं, मैं पीछे-पीछे। "भाभी, रात कैसी रही?" मैंने फुसफुसाकर पूछा। वो मुस्कुराईं, "बहुत अच्छी, लेकिन अभी थकान है। तूने तो मुझे थका दिया।" उनका हाथ मेरी कमर पर लगा, हल्के से दबाया। मैंने देखा, कोई नहीं था आसपास। मैंने भाभी को दीवार से सटाया, होंठ उनके होंठों पर रख दिए। चूमा, जीभ अंदर डाली। भाभी ने आँखें बंद कर लीं, सिसकारी भरी। "राजू... माँ आ जाएगी।"
लेकिन मैं रुका नहीं। हाथ साड़ी के अंदर डाला, जाँघों पर फेरा। भाभी की चूत फिर गीली हो रही थी। उँगली डाली, अंदर-बाहर। भाभी काँपने लगीं, "अह्ह... मत कर... लेकिन रुक मत।" पाँच मिनट तक ऐसे ही, फिर माँ की आवाज़ आई। हम अलग हुए। भाभी का चेहरा लाल, साँसें तेज़।
दोपहर हुई। भाभी खेत में घास काटने गईं। मैं भी साथ चला गया। खेत सुनसान, चारों तरफ हरी फसलें लहरा रही थीं। सूरज ऊपर, लेकिन हवा ठंडी। भाभी झुकी हुई घास काट रही थीं, साड़ी ऊपर चढ़ी, जाँघें दिख रही। मैं पीछे से देख रहा था, उनकी गांड की गोलाई, जैसे दो तकिए। मैं करीब गया, कमर पकड़ी। "भाभी, मदद करूँ?" वो मुड़ीं, "हाँ, लेकिन किस काम की?" आँखों में इशारा।
मैंने भाभी को घास पर लिटा दिया। साड़ी ऊपर की, पेटीकोट खोला। चूत नंगी, गुलाबी, चमक रही। मैंने जीभ लगाई, चाटने लगा। भाभी की कराह, "आह्ह... राजू... क्या कर रहा है... खेत में?" लेकिन पैर फैला दिए। मैंने जीभ अंदर डाली, चूसा। भाभी के हाथ मेरे बालों में, दबा रही। दस मिनट तक चाटा, भाभी झड़ गईं, रस बहा। "अब तू... अपना डाल।"
मैंने पैंट खोली, लंड बाहर। भाभी ने मुंह में लिया, चूसा। गर्म, नम। फिर मैंने चूत में डाला, धक्के मारे। खेत में धमाकेदार चुदाई। भाभी की चीखें, लेकिन दूर तक कोई नहीं। "फाड़ दे... अपनी भाभी को... हाँ... गहरा।" मैंने तेज़ किया, वीर्य अंदर छोड़ा। हम थककर लेट गए, आसमान देखते हुए।
शाम हुई। भाई आए। ट्रेन से, थके हुए। "राजू, कैसा है?" मैंने गले लगाया, लेकिन मन में डर। भाभी ने खाना परोसा, लेकिन नज़रें मुझसे मिला रही थीं। रात हुई। भाई भाभी के कमरे में गए। मैं नीचे सोया, लेकिन नींद नहीं। ऊपर से आवाज़ें – भाई की खर्राटे। भाभी नीचे आईं, पानी पीने के बहाने। "राजू... भैया सो गए। आ जा ऊपर।"
मैं चुपके से ऊपर गया। भाई सोए हुए। भाभी ने मुझे बिस्तर पर खींचा। "जल्दी कर... लेकिन धीरे।" मैंने साड़ी उतारी, स्तन चूसे। भाभी सिसकारीं, लेकिन दबाकर। लंड चूत में डाला, धीमे धक्के। भाई बगल में सोए, हम चोद रहे। उत्तेजना दोगुनी। भाभी झड़ीं, मैं भी। फिर नीचे आ गया।
लेकिन अगली सुबह, भाई ने कुछ अजीब देखा। क्या पता चलेगा?
भाग ४: रहस्य का खुलना और नई शुरुआत
अगली सुबह, सूरज निकला। मैं उठा, तो देखा भाई बाहर बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे। चेहरा गंभीर। "राजू, आ जा बैठ।" मैं गया, दिल धक-धक। भाभी रसोई में, लेकिन कान लगाए। भाई बोले, "रात मैं जागा था। सब देखा।" मेरा चेहरा सफेद पड़ गया। "भैया... वो..."
भाई हँसे। "डर मत। मैं जानता हूँ। भाभी खुश नहीं थी मेरे साथ। मैं बाहर जाता हूँ, दारू पीता हूँ। लेकिन तूने उसे खुशी दी।" मैं हैरान। भाई ने कहा, "गाँव में ऐसे चलता है। लेकिन सावधान रहना। अब हम तीनों मिलकर मज़ा करेंगे।" भाभी बाहर आईं, शरमाती हुई। भाई ने भाभी को गोद में उठाया, चूमा। "आज रात तीनों साथ।"
दिन बीता। रात हुई। कमरा बंद। भाई ने भाभी की साड़ी उतारी, मैं देखता रहा। भाई का लंड छोटा था, लेकिन कड़क। भाभी ने दोनों को मुंह में लिया, बारी-बारी। "दो-दो लंड... उफ़।" भाई ने चूत में डाला, मैं गांड में। भाभी चीखी, "आह्ह... फट गई... लेकिन मज़ा आ रहा।" रात भर थ्रीसम। कभी भाई ऊपर, कभी मैं। भाभी थक गईं, लेकिन खुश।
अब हर रात ऐसी। गाँव की जिंदगी बदल गई।