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Adultery भोसड़ी की भूखी कहानियाँ
#13
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गाँव की नई बहू

गर्मियों की वो शाम थी जब सूरज डूबते-डूबते आसमान को लाल रंग से रंग दे रहा था। गाँव का नाम था हरिपुरा, जहाँ खेतों की हरियाली और नदियों का बहाव जीवन को सरलता देता था। लेकिन इस सरलता के पीछे छिपी थीं वो अनकही कामुकताएँ जो गाँव के युवाओं के मन में उथल-पुथल मचा देती थीं। राजू, उम्र के बीसवें पायदान पर खड़ा एक सुदृढ़ काया वाला लड़का, अपने पिता के खेतों में काम करता था। उसके पिता, रामलाल, एक सख्त स्वभाव के किसान थे, जो दिन-रात खेतों में लगे रहते। राजू का बड़ा भाई, श्याम, शहर में नौकरी करता था और हाल ही में उसकी शादी हुई थी। नई बहू का नाम था राधा।
राधा की आमदनी ने पूरे गाँव में हलचल मचा दी थी। वो शहर से आई थी, लेकिन उसकी सादगी और सुंदरता गाँव की मिट्टी से कहीं ज्यादा मोहक लगती थी। लंबे काले बाल, जो कमर तक लहराते, गोरा रंग जो सूरज की किरणों में चमकता, और वो आँखें जो किसी को भी अपनी गहराई में खींच लेतीं। उसकी उम्र महज इक्कीस साल की थी, लेकिन उसके बदन में वो नरमी थी जो किसी को भी पागल कर दे। शादी के बाद श्याम उसे गाँव ले आया था, लेकिन शहर की नौकरी के कारण वो जल्द ही वापस चला गया, छोड़कर राधा को अकेली। रामलाल ने उसे अपना बेटा-बहू समझा और राजू को हिदायत दी कि बहू का ख्याल रखना।
राजू को राधा पहली नजर में ही भा गई। वो सुबह-सुबह खेत जाते वक्त राधा को झरोक से पानी डालते देखता, उसके हाथों की चूड़ियाँ खनकतीं, साड़ी का पल्लू हवा में लहराता। लेकिन राजू जानता था कि ये सब सोचना पाप है। फिर भी, रात को सोते वक्त उसके मन में राधा की तस्वीर घूम जाती। उसका बदन गर्म हो जाता, हाथ नीचे की ओर चला जाता, और वो कल्पना करता कि राधा उसके पास है।
एक दिन, दोपहर का वक्त था। सूरज इतना तेज था कि खेतों में काम करना मुश्किल हो गया। राजू घर लौटा तो देखा कि माँ रसोई में व्यस्त है और राधा आँगन में कपड़े धो रही है। उसकी साड़ी गीली हो गई थी, जिससे उसके स्तन साफ दिख रहे थे। वो हल्की सी नारंगी साड़ी पहने थी, जो उसके गोरे बदन पर चिपक गई थी। राजू की नजरें ठहर गईं। राधा ने महसूस किया और मुस्कुराई, "भैया, आप आ गए? पानी पियो ना, गर्मी बहुत है।"
राजू ने हिचकिचाते हुए पानी पिया। उसके हाथ काँप रहे थे। राधा ने तौलिया दिया, जो उसके कंधे पर रखा था। जैसे ही राजू ने तौलिया लिया, उनके हाथ छू गए। वो स्पर्श बिजली की तरह था। राजू का दिल धक-धक करने लगा। राधा की आँखों में एक अजीब सी चमक थी, शायद शहर की पढ़ाई ने उसे खुला सोचने वाला बना दिया था। "भैया, आप थक गए होंगे। अंदर आइये, मैं पैर दबा दूँ?" राधा ने हँसते हुए कहा।
राजू का मुँह सूख गया। "नहीं भाभी, मैं ठीक हूँ।" लेकिन राधा ने उसका हाथ पकड़ लिया और अंदर ले गई। कमरे में कूलर चल रहा था, हल्की ठंडक। राधा ने राजू को चारपाई पर बिठाया और उसके पैरों पर हाथ फेरने लगी। उसके हाथ नरम थे, जैसे रेशम। राजू की साँसें तेज हो गईं। वो नीचे देख रहा था, राधा की साड़ी का ब्लाउज से उसके स्तन ऊपर-नीचे हो रहे थे। हर मालिश के साथ, राधा का स्पर्श ऊपर की ओर बढ़ रहा था। "भैया, आपके पैर कितने मजबूत हैं। खेत का काम तो कठिन होता है।" राधा की आवाज में एक मिठास थी।
राजू कुछ बोल न पाया। उसका लिंग सख्त हो गया, पैंट में तनाव महसूस हो रहा था। राधा ने महसूस किया, उसकी नजर नीचे गई और वो मुस्कुराई। "भैया, आपको आराम मिल रहा है?" राजू ने सिर हिलाया। तभी माँ की आवाज आई, "राधा, खाना तैयार?" राधा उठी, लेकिन जाते-जाते राजू के कंधे पर हाथ रखा, "बाद में फिर आना।"
रात को खाना खाने के बाद, राजू बाहर घूम रहा था। चाँदनी रात थी, गाँव शांत। वो सोच रहा था राधा के बारे में। तभी राधा आँगन में आई, साड़ी में लिपटी, बाल खुले। "भैया, नींद नहीं आ रही?" राजू चौंका। "हाँ भाभी, गर्मी है।" राधा पास आई, "चलो, नदी किनारे चलें। वहाँ ठंडक मिलेगी।"
राजू का दिल जोर से धड़का। दोनों नदी की ओर चले। रास्ते में बातें हुईं – शहर की, गाँव की। राधा ने बताया कि श्याम भैया कितने व्यस्त रहते हैं, कभी समय नहीं देते। राजू ने सुना, लेकिन मन में कुछ और चल रहा था। नदी किनारे पहुँचकर दोनों बैठ गए। पानी की कलकल ध्वनि, हवा का स्पर्श। राधा ने साड़ी का पल्लू ठीक किया, लेकिन हवा ने उसे उड़ा दिया। उसके स्तन आधे नंगे हो गए। राजू की नजरें चिपक गईं। राधा ने नोटिस किया, लेकिन ढका नहीं। बल्कि, हल्के से हँसी, "भैया, यहाँ कोई नहीं है। शर्माने की क्या बात।"
राजू का चेहरा लाल हो गया। "भाभी, मैं..." राधा ने उसका हाथ पकड़ा, "राजू, तुम्हें अच्छी लगती हूँ ना?" राजू ने सिर हिलाया। राधा करीब आई, उसके होंठ राजू के कानों से सट गए, "मुझे भी तुम्हारी नजरें अच्छी लगती हैं। श्याम भैया तो दूर हैं, यहाँ अकेलापन सताता है।"
राजू का बदन सुलग उठा। उसने राधा को गले लगा लिया। राधा की साँसें तेज थीं। उनके होंठ मिले, पहली बार। वो चुंबन गहरा होता गया। राजू के हाथ राधा की पीठ पर फेरने लगे, साड़ी की गांठ खुलने लगी। राधा ने धीरे से राजू का हाथ नीचे ले जाकर दबाया। "धीरे भैया, सब कुछ धीरे-धीरे।"
वो रात भर नदी किनारे रहे। चुंबन के बाद, राजू ने राधा के स्तनों को छुआ। वो नरम, गोल थे। राधा की सिसकियाँ निकलीं, "आह राजू... हल्के से..." राजू ने ब्लाउज खोला, ब्रा हटाई। उसके गुलाबी निप्पल सख्त हो चुके थे। वो चूसने लगा, राधा के हाथ उसके बालों में उलझ गए। नीचे हाथ गया, राधा की साड़ी ऊपर सरका दी। उसकी चूत गीली थी, पैंटी से रस टपक रहा। राजू ने उंगली डाली, राधा चीखी, "ओह... राजू... बस..."
लेकिन वो रुके नहीं। राधा ने राजू का पैंट खोला। उसका लंड बाहर आया, मोटा, लंबा। राधा ने उसे पकड़ा, सहलाया। "कितना बड़ा है... श्याम का तो आधा भी नहीं।" वो मुस्कुराई। धीरे-धीरे, राधा ने मुँह में लिया। राजू की जान निकलने लगी। जीभ घुमाती, चूसती। राजू के हाथ राधा के सिर पर, धीरे दबाव।
फिर, राधा लेट गई। "आ जा राजू... मुझे अपना बना ले।" राजू ऊपर चढ़ा। लंड चूत पर रगड़ा। राधा तड़पी, "अंदर... डाल दे..." एक धक्के में अंदर। राधा चीखी, "आह्ह्ह... दर्द... लेकिन अच्छा दर्द..." राजू धीरे-धीरे 움직ा। धप-धप की आवाज नदी की कलकल में घुल गई। हर धक्के के साथ राधा की सिसकियाँ बढ़ीं। "हाँ राजू... तेज... और तेज..."
वे घंटों चले। राजू ने राधा के अंदर झड़ दिया। दोनों पसीने से तर, गले लगे लेटे रहे। "यह राज़ रहेगा हमारा," राधा ने फुसफुसाया। राजू ने हामी भरी। लेकिन ये तो शुरुआत थी। गाँव में और रातें बाकी थीं।
भाग २: खेतों की छिपी मुलाकात
अगले दिन सुबह, राजू खेत गया। मन में राधा का चित्र घूम रहा था। हर पौधे को देखते हुए वो कल्पना करता कि राधा के बदन की तरह नरम। दोपहर को, जब सूरज चढ़ा, राजू ने देखा कि राधा खेत की ओर आ रही है। टोकरी में खाना। "भैया, माँ ने भेजा है।" लेकिन उसकी आँखों में शरारत थी।
खेत के बीच में, भूसे की आड़ में, राधा ने टोकरी रखी। "खाना खाओ, फिर..." राजू ने खाना निगला भी नहीं, राधा को खींच लिया। इस बार तेजी से। साड़ी उतारी, नंगी राधा। उसके स्तन हवा में लहराए। राजू ने चूसे, काटा। राधा की चीखें खेतों में गूँजीं, लेकिन कोई सुनने वाला न था। "राजू... यहाँ? कोई देख लेगा..." लेकिन वो खुद ही राजू के लंड पर हाथ फेर रही थी।
राजू ने राधा को भूसे पर लिटाया। पैर फैलाए, चूत पर जीभ लगाई। राधा तड़पी, "ओह्ह्ह... कभी ऐसा नहीं हुआ... श्याम तो..." राजू ने चाटा, रस चूसा। राधा का बदन काँप उठा। फिर, लंड अंदर। इस बार कुत्ते की तरह। राधा आगे झुकी, गांड ऊपर। राजू पीछे से धक्के मारता। धप्प... धप्प... फच... फच... आवाजें। राधा के बाल पकड़े, खींचे। "हाँ भैया... जोर से... चोदो मुझे..."
वे पसीने से भीग गए। राजू ने गांड में उंगली डाली, राधा चिल्लाई, "नहीं... वहाँ दर्द..." लेकिन राजू नहीं रुका। धीरे-धीरे, गांड में लंड रगड़ा। राधा रोई, लेकिन मजा आया। पहली बार गांड मारी। झड़ते वक्त दोनों चीखे।
शाम को घर लौटे। माँ ने कुछ शक नहीं किया। लेकिन राधा की चाल में लचक थी, राजू की आँखों में चमक। रात को, जब सब सोए, राधा राजू के कमरे में आई। "भैया, आज और..." दरवाजा बंद किया। अंधेरे में, धीरे-धीरे कपड़े उतारे। राजू ने राधा को गोद में उठाया, दीवार से सटाया। खड़े-खड़े चोदा। राधा के पैर कमर पर लपेटे। धक्के ऊपर-नीचे। "आह्ह्ह... राजू... मार डालोगे..."
सारी रात यही चला। सुबह तक थकान। लेकिन ये भूख बढ़ रही थी। गाँव के तालाब पर, जंगल में, हर जगह उनकी मिलन की कहानियाँ बन रही थीं।
भाग ३: खतरे की छाया
कुछ दिन बाद, श्याम शहर से लौटा। राधा घबरा गई। लेकिन श्याम व्यस्त था, राधा को समय ही न दिया। एक रात, श्याम सो गया, राधा चुपके राजू के पास। "भैया, सह लो ना... बिना तुम्हारे..." लेकिन श्याम जाग गया। शक हुआ। "राधा, कहाँ जाती हो रात को?" राधा ने बहाना बनाया।
अगले दिन, श्याम खेत गया। राजू से बात की। लेकिन मन में शक। शाम को, वो छिपकर देखने लगा। राधा और राजू तालाब पर मिले। श्याम ने देखा सब। गुस्सा आया, लेकिन वो चुप रहा। रात को, श्याम ने राधा को पकड़ा। "कौन है वो?" राधा रोई, सच बता दिया। श्याम गुस्से में, लेकिन शहर जाकर सोचा।
श्याम चला गया। अब राजू-राधा खुले। घर में ही। माँ को बहाना बनाकर। एक दिन, माँ गई पड़ोस। राजू ने राधा को रसोई में खींचा। चूल्हे पर सटाकर चोदा। राधा की साड़ी ऊपर, गांड पर धक्के। "आह्ह्ह... जल जाएगी... चूल्हा..." लेकिन मजा दोगुना। फिर, बेडरूम में। ६९ पोजीशन। राजू चूत चाटे, राधा लंड चूसे। फच... चूस... चाट... आवाजें।
झड़ने के बाद, लेटे रहे। "भाभी, हमेशा साथ रहोगी?" राधा मुस्कुराई, "हाँ राजू... तुम्हारा लंड मेरा है।"
लेकिन गाँव में अफवाहें फैलीं। एक दिन, पंडित जी ने देख लिया। लेकिन राजू ने डराया। 

दिन बीतते जा रहे थे, लेकिन राजू और राधा की प्यास कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी। श्याम शहर वापस चला गया था, और घर में अब सिर्फ रामलाल, माँ, राजू और राधा थे। रामलाल सुबह से शाम तक खेतों में व्यस्त रहते, माँ घर के कामों में। ये मौका राजू और राधा के लिए स्वर्ग जैसा था। लेकिन अब वे सावधान हो गए थे, क्योंकि गाँव में अफवाहें फैलने लगी थीं। पड़ोसी की बेटी ने एक बार उन्हें जंगल में देख लिया था, लेकिन राधा ने उसे चुप करा दिया। फिर भी, खतरा था। इसलिए उन्होंने घर के अंदर ही अपनी दुनिया बसानी शुरू कर दी।
एक शाम की बात है। सूरज डूब चुका था, लेकिन गर्मी अभी भी हवा में तैर रही थी। राजू छत पर लेटा था, तारों को देखते हुए। उसके मन में राधा की यादें घूम रही थीं – उसकी नरम त्वचा, वो सिसकियाँ, वो स्पर्श जो उसे पागल बना देता। तभी सीढ़ियों से चूड़ियों की खनक सुनाई दी। राजू ने देखा, राधा ऊपर आ रही है। वो हल्की सी नीली साड़ी पहने थी, जो उसके बदन पर ऐसे चिपकी थी जैसे दूसरी त्वचा। बाल खुले, कंधों पर लहराते। "भैया, नींद नहीं आ रही? मैं भी ऊपर आ गई, ठंडी हवा लेने।" राधा ने मुस्कुराते हुए कहा, लेकिन उसकी आँखों में वो शरारत थी जो राजू अच्छे से पहचानता था।
राजू उठा, राधा के पास आया। छत पर कोई नहीं था, गाँव सो चुका था। सिर्फ चाँद की रोशनी और दूर से कुत्तों की भौंकने की आवाज। राजू ने राधा का हाथ पकड़ा, "भाभी, आज यहाँ? अगर कोई देख लेगा..." राधा ने उंगली उसके होंठों पर रखी, "शश्श... कोई नहीं आएगा। माँ-पापा सो गए हैं। और मुझे आज कुछ नया चाहिए।" वो राजू को छत के कोने में ले गई, जहाँ पुरानी चारपाई पड़ी थी। राधा ने साड़ी का पल्लू गिरा दिया, उसके स्तन ब्लाउज में कैद, लेकिन निप्पल सख्त होकर उभरे हुए थे। राजू की साँसें तेज हो गईं।
धीरे से, राजू ने राधा को चारपाई पर बिठाया। उसके घुटनों पर बैठकर, ब्लाउज के हुक खोले। एक-एक करके, हुक खुलते गए। पहला हुक – राधा की साँस रुकी। दूसरा – उसके स्तन थोड़े बाहर झाँके। तीसरा – पूरी तरह खुल गया। ब्रा नहीं थी अंदर, सीधे नंगे स्तन। गोल, भरे हुए, गुलाबी निप्पल चाँदनी में चमक रहे थे। राजू ने हाथ से सहलाया, नरमी महसूस की। "भाभी, कितने मुलायम... जैसे रसभरी।" राधा हँसी, "चखो तो सही, भैया।" राजू ने मुँह लगाया, एक निप्पल को चूसा। जीभ घुमाई, हल्के से काटा। राधा की सिसकी निकली, "आह्ह्ह... राजू... धीरे... लेकिन मत रुकना।"
राधा के हाथ राजू के सिर पर, बालों को खींचते हुए। राजू ने दूसरा स्तन पकड़ा, दबाया। दूध की तरह नरम, लेकिन गर्म। वो चूसता रहा, चाटता रहा। राधा का बदन काँपने लगा। नीचे हाथ सरकाया, साड़ी की सिलवटों में। पेटीकोट ऊपर किया, पैंटी गीली हो चुकी थी। राजू ने उंगली से छुआ, रस टपका। "भाभी, इतनी गीली... मेरे लिए?" राधा ने सिर हिलाया, "हाँ राजू... सिर्फ तुम्हारे लिए। अब और मत तड़पाओ।"
राजू ने राधा को लिटाया। साड़ी पूरी उतार दी। अब राधा नंगी, चाँदनी में चमकती। उसके पैर फैलाए, चूत पर बालों की हल्की लकीर। राजू ने जीभ लगाई, चाटा। राधा तड़पी, "ओह्ह्ह... राजू... वहाँ... जीभ... अंदर..." राजू ने जीभ अंदर डाली, रस चूसा। राधा के कूल्हे ऊपर उठे, सिसकियाँ तेज। "हाँ... चाटो... सारा रस पी लो..." राजू ने उंगली भी डाली, दो उंगलियाँ। अंदर-बाहर। फच... फच... की आवाज छत पर गूँजी। राधा का बदन ऐंठा, वो झड़ गई। रस राजू के मुँह पर।
अब बारी राजू की। राधा उठी, राजू का पैंट खोला। लंड बाहर आया, सख्त, नसें फूली हुईं। राधा ने पकड़ा, सहलाया। "कितना मोटा... राजू, आज मुझे ऊपर रहना है।" राजू लेटा, राधा ऊपर चढ़ी। लंड चूत पर रगड़ा, धीरे से अंदर लिया। "आह्ह्ह... कितना गहरा... भर गया..." राधा ऊपर-नीचे होने लगी। धीरे पहले, फिर तेज। उसके स्तन उछलते, राजू ने पकड़े, दबाए। "हाँ भाभी... राइड करो... जोर से..." राधा की कमर घुमती, धक्के लगाती। फच... धप... की आवाजें। चाँद देख रहा था उनकी रासलीला।
राधा थकी नहीं, पोजीशन बदली। अब पीछे मुड़ी, गांड राजू की ओर। रिवर्स काउगर्ल। लंड फिर अंदर। राधा उछलती, गांड हिलाती। राजू ने गांड पर थप्पड़ मारा, "हाँ भाभी... हिलाओ... कितनी सेक्सी गांड..." राधा चीखी, "मारो राजू... थप्पड़... और..." थप... थप... की आवाज। राजू ने उंगली गांड में डाली, राधा तड़पी, "ओह्ह्ह... वहाँ... हाँ... अब लंड डालो वहाँ..."
राजू उठा, राधा को घोड़ी बनाया। पहले चूत में धक्के, फिर लंड बाहर निकाला, गांड पर रगड़ा। राधा का रस चिकना कर रहा था। धीरे से दबाव, टिप अंदर। राधा रोई, "दर्द... लेकिन मत रुकना..." आधा अंदर, फिर पूरा। राजू धीरे-धीरे चोदने लगा। राधा की सिसकियाँ मिली चीखों में। "आह्ह्ह... राजू... फाड़ दो... गांड..." तेज धक्के। धप्प... धप्प... राजू के अंडे टकराते। दोनों पसीने से तर। आखिर राजू झड़ गया, गांड में। राधा भी साथ झड़ी।
वे लेटे रहे, साँसें सामान्य हुईं। राधा राजू के सीने पर सिर रखकर, "राजू, ये प्यार कभी खत्म न हो।" राजू ने गले लगाया, "नहीं होगा भाभी।" लेकिन अगले दिन, एक नया ट्विस्ट इंतजार कर रहा था। श्याम का दोस्त गाँव आया, और शक की छाया फिर घनी हो गई।
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RE: भोसड़ी की भूखी कहानियाँ - by Fuckuguy - 14-09-2025, 04:06 AM



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