13-09-2025, 02:27 PM
(This post was last modified: 15-09-2025, 03:18 PM by Fuckuguy. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
मेरे गिगोलो बनने की कहानी
आर्यन घर लौटते वक्त कार में बैठा था, लेकिन उसका मन अभी भी सुनीता की बाहों में अटका हुआ था। बाहर दिल्ली की व्यस्त सड़कें थीं, ट्रैफिक की हॉर्न्स गूंज रही थीं, लेकिन आर्यन के कानों में सुनीता की सिसकारियां, उनकी वो रोमांटिक फुसफुसाहटें – "आर्यन... तुम्हारा प्यार... मुझे पूरा कर रहा है..." – बार-बार गूंज रही थीं। जेब में काव्या का दिया पैसा था – मोटी रकम, जो उसकी आर्थिक तंगी को दूर कर सकती थी, लेकिन दिल में एक उलझन थी। "काव्या की दुनिया पावर और पैसों की है, लेकिन सुनीता का प्यार... वो सच्चा लगा। क्या मैं इस गिगोलो वाली ज़िंदगी से निकल सकता हूं?" वो सोचता रहा, कार की खिड़की से बाहर देखते हुए। घर पहुंचा तो कमरा वैसा ही था – छोटा, दीवारें फटी हुईं, लेकिन आज वो कमरा और छोटा लग रहा था, जैसे उसकी ज़िंदगी की सच्चाई उसे चुभ रही हो। फोन पर काव्या का मैसेज आया: "आर्यन, मां खुश हैं। अच्छा किया। अगला प्लान जल्दी। पावर इज एवरीथिंग।" आर्यन ने मैसेज पढ़ा, लेकिन रिप्लाई नहीं किया। वो बिस्तर पर लेट गया, आंखें बंद कीं, और सुनीता की यादों में खो गया – उनकी वो नरम सिसकारियां, वो आंसू भरी आंखें, वो प्यार भरा स्पर्श। "क्या ये सब पैसों के लिए था? या कुछ और?" वो खुद से सवाल करता रहा।
अगले कुछ दिन आर्यन ने खुद को बिज़ी रखा। ऑफिस गया, काम में डूबा, लेकिन मन नहीं लगा। बॉस ने कहा, "आर्यन, क्या बात है? काम में गलतियां हो रही हैं।" आर्यन ने बहाना बनाया, "थकान है, सर।" शाम को घर लौटकर फोन चेक किया – ऐप पर नई रिक्वेस्ट्स थीं, लेकिन उसने इग्नोर किया। राहुल को कॉल किया: "यार, वो ऐप वाली ज़िंदगी... मैं छोड़ना चाहता हूं। एक औरत मिली, सुनीता... वो अलग है।" राहुल हंसा, "अरे, गिगोलो हो, भावनाएं मत लगाओ। पैसा कमाओ।" लेकिन आर्यन का दिल नहीं माना। रात को नींद नहीं आई, सुनीता का चेहरा याद आता रहा – उनकी वो दुल्हन वाली मुस्कान, वो प्यार भरी आंखें। "क्या वो भी मुझे याद कर रही होंगी?" वो सोचता रहा। अगले दिन सुबह उठा, चाय बनाई, बालकनी में बैठा। शहर की हलचल देखी, लेकिन मन शांत नहीं था। फोन पर सुनीता का नंबर सेव था – काव्या ने दिया था। हिचकिचाते हुए मैसेज टाइप किया: "आंटी, कैसी हैं? वो रात... मेरे लिए स्पेशल थी।" सेंड किया, और इंतज़ार करने लगा। दिल धड़क रहा था, जैसे कोई कॉलेज बॉय हो। कुछ मिनट बाद रिप्लाई आया: "आर्यन... मैं ठीक हूं। तुम्हारी याद आती है। वो रात... मेरी ज़िंदगी बदल दी। मिलोगे?"
आर्यन की आंखें चमक उठीं। "हां, कब?" उसने रिप्लाई किया। सुनीता: "आज शाम? मेरे घर। काव्या बाहर है।" आर्यन तैयार होने लगा – सिम्पल शर्ट, जींस, लेकिन दिल में उत्साह। शाम को सुनीता के घर पहुंचा – एक छोटा लेकिन सुंदर अपार्टमेंट, जहां रात की यादें अभी भी ताज़ा थीं। दरवाज़ा खुला, सुनीता सामने – साड़ी में, बाल खुले, चेहरा मुस्कुराता। "आओ आर्यन... इंतज़ार था," उसने कहा, हग किया। दोनों सोफे पर बैठे, चाय पी। बातें शुरू हुईं – पहले तो नॉर्मल, जैसे दिन कैसा बीता। फिर सुनीता ने हाथ पकड़ा: "आर्यन, वो रात... मैं भूल नहीं पा रही। तुम्हारा प्यार... सालों बाद मिला। लेकिन काव्या... वो पावर की बात करती है। क्या तुम उसके साथ हो?" आर्यन चुप रहा, फिर बोला, "आंटी, काव्या ने मुझे बुलाया था, लेकिन तुम्हारे साथ... वो प्यार था, पैसा नहीं। मैं ये ज़िंदगी छोड़ना चाहता हूं।" सुनीता की आंखें नम हुईं: "आर्यन... मैं भी तुम्हें पसंद करती हूं। लेकिन उम्र का फर्क... समाज..."
बातें गहरी होने लगीं – सुनीता ने अपना डिवोर्स बताया, अकेलेपन के दिन। आर्यन ने अपनी स्ट्रगल शेयर की। समय बीतता रहा, शाम ढल गई। सुनीता करीब आई: "आर्यन... क्या तुम फिर से... प्यार करोगे?" आर्यन ने हां में सिर हिलाया। दोनों बेडरूम में गए। सुनीता की साड़ी उतारी – बदन अभी भी आकर्षक, ब्रेस्ट बड़े, कमर पतली। आर्यन ने किस किया – गर्दन पर, ब्रेस्ट पर। सुनीता सिसकारी: "ओह आर्यन... हां..." आर्यन ने चूत चाटी – धीरे, प्यार से। सुनीता झड़ी। फिर लंड अंदर – धक्के लगे, रोमांटिक। "आह... आर्यन... तुम्हारा प्यार..." रात फिर प्यार से भरी। लेकिन सुबह काव्या का कॉल आया: "आर्यन, नया प्लान। मिलो।" आर्यन का फैसला मुश्किल हो गया।गिगोलो की गुप्त दुनिया: 10 इंच का रहस्य
आर्यन का मन सुनीता की यादों में इतना डूब चुका था कि काव्या का मैसेज देखकर भी उसका दिल नहीं माना। वो घर में अकेला बैठा था, कमरे की दीवारों को घूर रहा था, जहां पिछले दिनों की यादें जैसे छपी हुई थीं – सुनीता की वो मुस्कान, वो प्यार भरी आंखें, वो रातें जो भावनाओं से भरी थीं। बाहर शाम ढल रही थी, दिल्ली की गलियों से ट्रैफिक की आवाज़ें आ रही थीं, लेकिन आर्यन के कानों में सुनीता की सिसकारियां गूंज रही थीं – "आर्यन... तुम्हारा प्यार... मुझे पूरा कर रहा है..."। वो फोन उठाता, सुनीता का नंबर देखता, लेकिन कॉल नहीं करता। "क्या करूं? काव्या से मिलकर साफ मना कर दूं," वो खुद से बड़बड़ाया। रात हो गई, लेकिन नींद नहीं आई। बिस्तर पर करवटें बदलता रहा, सोचता रहा – काव्या की पावर वाली दुनिया में पैसा है, नेटवर्क है, लेकिन सुनीता... वो सुकून है, वो प्यार है जो सालों बाद मिला। सुबह उठा, चाय बनाई, बालकनी में बैठा। शहर की हलचल देखी – लोग काम पर जा रहे थे, बच्चे कॉलेज, लेकिन आर्यन का मन कहीं और था। ऑफिस जाने का मन नहीं हुआ, छुट्टी ले ली। दिन भर घर में घूमता रहा, पुरानी फोटोज़ देखता, सुनीता की यादों में खोया रहा। शाम को फैसला किया – काव्या से मिलना ही पड़ेगा। तैयार हुआ – सिम्पल शर्ट और जींस पहनी, आईने में खुद को देखा, "आर्यन, मजबूत बनो। सुनीता तेरी है।" मेट्रो पकड़ी, काव्या के विला की तरफ निकला। रास्ते में सोचता रहा – "क्या कहूंगी काव्या? क्या वो मानेगी? या कोई नया जाल बिछाएगी?"
विला पहुंचा तो गेट खुला था, काव्या लिविंग रूम में बैठी थी – एक टाइट ड्रेस में, वाइन का ग्लास हाथ में, आंखों में वो ही पावर वाली चमक। कमरा लग्ज़री से भरा – बड़े सोफे, क्रिस्टल चैंडेलियर, दीवारों पर महंगी पेंटिंग्स। "आओ आर्यन, बैठो। ड्रिंक लोगे?" उसने मुस्कुराते हुए कहा, लेकिन वो मुस्कान में कुछ छुपा था। आर्यन बैठा, लेकिन सीधा मुद्दे पर आया: "काव्या, मैं ये काम छोड़ना चाहता हूं। सुनीता... आंटी से मुझे प्यार हो गया है। वो सच्ची हैं। मैं उनके साथ रहना चाहता हूं।" काव्या ने ग्लास रखा, और जोर से हंस पड़ी – वो हंसी इतनी कड़वी और लंबी थी कि आर्यन का दिल सिहर गया, कमरे में गूंजती रही। "प्यार? मां से? आर्यन, तुम कितने नादान हो। मां किसी से प्यार नहीं करती। वो तो बस... लंड की भूखी औरत है। सालों से अकेली है, लेकिन उसकी भूख कभी नहीं मिटती। अभी भी किसी न किसी से चुद रही होगी। उसे बार-बार लंड चाहिए होता है, नया-नया। पावर उसके लिए बस बहाना है, असल में वो सेक्स की दीवानी है।" आर्यन की आंखें फैल गईं, दिल में दर्द का तीर लगा – "क्या बकवास कर रही हो? सुनीता ऐसी नहीं हैं। वो प्यार करती हैं मुझसे। वो वो रातें... वो भावनाएं... सब सच्ची थीं।" काव्या ने कंधा झटकाया, धीरे से मुस्कुराई, "विश्वास नहीं होता? ठीक है। एक काम करो – मां से कहो कि तुम दो दिन के लिए बाहर जा रहे हो, ऑफिस के काम से। फिर मैं तुम्हें उसकी सच्चाई दिखाती हूं। अगर मैं गलत हूं, तो तुम फ्री हो। लेकिन अगर सही, तो मेरे साथ रहो। सोच लो, आर्यन। पावर चुनो, या इल्यूजन।"
आर्यन चुप रहा, मन में तूफान मचा था। सुनीता की याद आई – उनकी वो नरम आवाज़, वो प्यार भरी आंखें। "नहीं, काव्या। तुम झूठ बोल रही हो।" लेकिन काव्या की आंखों में वो आत्मविश्वास था जो उसे हिला रहा था। "ट्राई करके देख लो। क्या खोना है?" काव्या ने कहा। आर्यन घर लौटा, दिल भारी था। रास्ते में मेट्रो में बैठा, लोगों को देखता रहा – सब अपनी ज़िंदगी में बिज़ी, लेकिन उसकी ज़िंदगी उलझी हुई। घर पहुंचा, फोन उठाया, सुनीता को कॉल किया। रिंग जाती रही, फिर सुनीता की आवाज़ आई – "आर्यन, मेरे प्यारे... कैसा है?" वो आवाज़ इतनी मीठी थी कि आर्यन का दिल पिघलने लगा। "आंटी, ठीक हूं। लेकिन... एक बात है। ऑफिस का काम है। दो दिन के लिए बाहर जाना है। कल सुबह निकल रहा हूं।" सुनीता चुप रही एक पल, फिर बोली: "ओह... ठीक है, बेटा। ध्यान रखना। जल्दी लौटना। आई मिस यू। आई लव यू।" उसकी आवाज़ में दुख था, लेकिन प्यार भी। कॉल कट गया, आर्यन का दिल दुख रहा था। "क्या मैं गलत कर रहा हूं? क्या काव्या सही है?" वो रात भर सो नहीं पाया, बिस्तर पर करवटें बदलता रहा, सुनीता की यादों में खोया रहा।
आर्यन का मन सुनीता की यादों में इतना डूब चुका था कि काव्या का मैसेज देखकर भी उसका दिल नहीं माना। वो घर में अकेला बैठा था, कमरे की दीवारों को घूर रहा था, जहां पिछले दिनों की यादें जैसे छपी हुई थीं – सुनीता की वो मुस्कान, वो प्यार भरी आंखें, वो रातें जो भावनाओं से भरी थीं। बाहर शाम ढल रही थी, दिल्ली की गलियों से ट्रैफिक की आवाज़ें आ रही थीं, लेकिन आर्यन के कानों में सुनीता की सिसकारियां गूंज रही थीं – "आर्यन... तुम्हारा प्यार... मुझे पूरा कर रहा है..."। वो फोन उठाता, सुनीता का नंबर देखता, लेकिन कॉल नहीं करता। "क्या करूं? काव्या से मिलकर साफ मना कर दूं," वो खुद से बड़बड़ाया। रात हो गई, लेकिन नींद नहीं आई। बिस्तर पर करवटें बदलता रहा, सोचता रहा – काव्या की पावर वाली दुनिया में पैसा है, नेटवर्क है, लेकिन सुनीता... वो सुकून है, वो प्यार है जो सालों बाद मिला। सुबह उठा, चाय बनाई, बालकनी में बैठा। शहर की हलचल देखी – लोग काम पर जा रहे थे, बच्चे कॉलेज, लेकिन आर्यन का मन कहीं और था। ऑफिस जाने का मन नहीं हुआ, छुट्टी ले ली। दिन भर घर में घूमता रहा, पुरानी फोटोज़ देखता, सुनीता की यादों में खोया रहा। शाम को फैसला किया – काव्या से मिलना ही पड़ेगा। तैयार हुआ – सिम्पल शर्ट और जींस पहनी, आईने में खुद को देखा, "आर्यन, मजबूत बनो। सुनीता तेरी है।" मेट्रो पकड़ी, काव्या के विला की तरफ निकला। रास्ते में सोचता रहा – "क्या कहूंगी काव्या? क्या वो मानेगी? या कोई नया जाल बिछाएगी?"
विला पहुंचा तो गेट खुला था, काव्या लिविंग रूम में बैठी थी – एक टाइट ड्रेस में, वाइन का ग्लास हाथ में, आंखों में वो ही पावर वाली चमक। कमरा लग्ज़री से भरा – बड़े सोफे, क्रिस्टल चैंडेलियर, दीवारों पर महंगी पेंटिंग्स। "आओ आर्यन, बैठो। ड्रिंक लोगे?" उसने मुस्कुराते हुए कहा, लेकिन वो मुस्कान में कुछ छुपा था। आर्यन बैठा, लेकिन सीधा मुद्दे पर आया: "काव्या, मैं ये काम छोड़ना चाहता हूं। सुनीता... आंटी से मुझे प्यार हो गया है। वो सच्ची हैं। मैं उनके साथ रहना चाहता हूं।" काव्या ने ग्लास रखा, और जोर से हंस पड़ी – वो हंसी इतनी कड़वी और लंबी थी कि आर्यन का दिल सिहर गया, कमरे में गूंजती रही। "प्यार? मां से? आर्यन, तुम कितने नादान हो। मां किसी से प्यार नहीं करती। वो तो बस... लंड की भूखी औरत है। सालों से अकेली है, लेकिन उसकी भूख कभी नहीं मिटती। अभी भी किसी न किसी से चुद रही होगी। उसे बार-बार लंड चाहिए होता है, नया-नया। पावर उसके लिए बस बहाना है, असल में वो सेक्स की दीवानी है।" आर्यन की आंखें फैल गईं, दिल में दर्द का तीर लगा – "क्या बकवास कर रही हो? सुनीता ऐसी नहीं हैं। वो प्यार करती हैं मुझसे। वो वो रातें... वो भावनाएं... सब सच्ची थीं।" काव्या ने कंधा झटकाया, धीरे से मुस्कुराई, "विश्वास नहीं होता? ठीक है। एक काम करो – मां से कहो कि तुम दो दिन के लिए बाहर जा रहे हो, ऑफिस के काम से। फिर मैं तुम्हें उसकी सच्चाई दिखाती हूं। अगर मैं गलत हूं, तो तुम फ्री हो। लेकिन अगर सही, तो मेरे साथ रहो। सोच लो, आर्यन। पावर चुनो, या इल्यूजन।"
आर्यन चुप रहा, मन में तूफान मचा था। सुनीता की याद आई – उनकी वो नरम आवाज़, वो प्यार भरी आंखें। "नहीं, काव्या। तुम झूठ बोल रही हो।" लेकिन काव्या की आंखों में वो आत्मविश्वास था जो उसे हिला रहा था। "ट्राई करके देख लो। क्या खोना है?" काव्या ने कहा। आर्यन घर लौटा, दिल भारी था। रास्ते में मेट्रो में बैठा, लोगों को देखता रहा – सब अपनी ज़िंदगी में बिज़ी, लेकिन उसकी ज़िंदगी उलझी हुई। घर पहुंचा, फोन उठाया, सुनीता को कॉल किया। रिंग जाती रही, फिर सुनीता की आवाज़ आई – "आर्यन, मेरे प्यारे... कैसा है?" वो आवाज़ इतनी मीठी थी कि आर्यन का दिल पिघलने लगा। "आंटी, ठीक हूं। लेकिन... एक बात है। ऑफिस का काम है। दो दिन के लिए बाहर जाना है। कल सुबह निकल रहा हूं।" सुनीता चुप रही एक पल, फिर बोली: "ओह... ठीक है, बेटा। ध्यान रखना। जल्दी लौटना। आई मिस यू। आई लव यू।" उसकी आवाज़ में दुख था, लेकिन प्यार भी। कॉल कट गया, आर्यन का दिल दुख रहा था। "क्या मैं गलत कर रहा हूं? क्या काव्या सही है?" वो रात भर सो नहीं पाया, बिस्तर पर करवटें बदलता रहा, सुनीता की यादों में खोया रहा आर्यन की रातें अब उलझनों से भरी होतीं। सुबह उठा तो आंखें लाल थीं, नींद नहीं आई थी। चाय बनाई, लेकिन स्वाद नहीं लगा। बालकनी में बैठा, शहर को देखता रहा – सूरज चढ़ रहा था, लोग अपनी रूटीन में लगे थे, लेकिन आर्यन का मन काव्या की बातों में अटका था। "क्या सुनीता ऐसी हैं? या काव्या मुझे फंसा रही है?" वो खुद से सवाल करता रहा। ऑफिस जाने का मन नहीं हुआ, लेकिन निकल पड़ा – मेट्रो में बैठा, लोगों की भीड़ देखी, लेकिन मन अकेला लगा। ऑफिस में काम किया, लेकिन गलतियां हुईं। बॉस ने डांटा: "आर्यन, क्या हो गया है? फोकस करो।" आर्यन ने सॉरी कहा, लेकिन दिमाग कहीं और था। लंच ब्रेक में बाहर निकला, पार्क में बैठा, सैंडविच खाया, लेकिन कुछ स्वाद नहीं आया। फोन चेक किया – सुनीता का मैसेज: "आर्यन, सफर कैसा है? ध्यान रखना।" दिल दुखा, लेकिन रिप्लाई किया: "ठीक हूं, आंटी। मिस यू।" दिन बीतता गया, शाम हुई, घर लौटा। कुछ नहीं हुआ। "काव्या झूठ बोल रही है," आर्यन ने सोचा। मन किया सुनीता को कॉल करे, उनकी आवाज़ सुनकर शांत हो जाए। फोन उठाया, नंबर डायल करने ही वाला था कि काव्या का कॉल आ गया: "आर्यन, अब आ जाओ। मां की सच्चाई देखो। पीछे वाले रास्ते से।" आर्यन का दिल धड़क उठा। "क्या? इतनी जल्दी?" वो घबरा गया, लेकिन उत्सुकता भी थी। जaldi तैयार हुआ – डार्क कपड़े पहने, ताकि किसी को शक न हो। मेट्रो पकड़ी, रास्ते में सोचता रहा – "क्या देखूंगा? क्या सुनीता... नहीं, वो ऐसी नहीं हैं।" विला पहुंचा, पीछे वाला गेट खुला था, काव्या इंतज़ार कर रही थी – चुपचाप, मुस्कुराती हुई। "जाओ, उस कमरे में झांककर देखो," उसने फुसफुसाया, जैसे कोई राज़ खोल रही हो। आर्यन धीरे से गया, दिल जोरों से धड़क रहा था, सांसें रुक सी गईं। कमरे की खिड़की से झांका – और उसकी दुनिया हिल गई।
सुनीता बेड पर थीं, एक हट्टा-कट्टा काला बॉडीबिल्डर लड़का उनके
आर्यन की आंखें खिड़की से चिपकी हुई थीं, लेकिन उसका दिल जैसे रुक सा गया था। कमरे में जो दृश्य चल रहा था, वो उसके लिए एक भयानक सपना जैसा था – सुनीता बेड पर लेटी थीं, उनकी आंखें बंद, चेहरा लाल, सांसें तेज़, और वो हट्टा-कट्टा काला बॉडीबिल्डर लड़का, राजा, उनके ऊपर। दोनों के बदन पसीने से चमक रहे थे, कमरा उनकी सिसकारियों से भरा हुआ था। आर्यन की सांसें रुक सी गईं, हाथ कांप रहे थे, लेकिन वो हिल नहीं पा रहा था – जैसे कोई पत्थर बन गया हो। "ये... नहीं हो सकता... सुनीता... मेरा प्यार..." वो मन ही मन बड़बड़ाया, लेकिन आंखें हट नहीं रही थीं। राजा सुनीता के ब्रेस्ट चूस रहा था – धीरे-धीरे, प्यार से, जीभ से निप्पल्स पर सर्कल बनाते हुए, हल्का काटते हुए। सुनीता की कमर उछल रही थी, सिसकारी भरी: "ओह राजा... हां... ऐसे ही चूसो... तुम्हारा मुंह... इतना गर्म, इतना प्यारा... आह... सालों बाद इतना सुख..." उनकी आंखें बंद, चेहरा भावनाओं से भरा – प्यार के आंसू आंखों के कोनों में, जैसे वो हर स्पर्श में खोई हुई हों। राजा नीचे सरका, जांघों पर किस किया, धीरे से सहलाया, फिर चूत पर मुंह रखा – जीभ फेरी, क्लिट पर सर्कल, गहरा चूसा। सुनीता तड़पी, पैर फैलाए: "आह... राजा... तेरी जीभ... मेरी चूत में... इतनी नरम, इतनी गहरी... मुझे स्वर्ग दिखा रही है... हां... और... चाटो... प्यार से..." उनकी बॉडी कांप रही थी, कमर हिल रही, जैसे हर चाट में एक नई लहर उठ रही हो – प्यार की, सुख की, भावनाओं की। राजा ने उंगली डाली – एक, फिर दो, चूसते हुए रगड़ा, स्पीड बढ़ाई लेकिन प्यार से। सुनीता की सांसें फूल रही थीं, "ओह... राजा... तुम्हारा प्यार... मुझे पागल कर रहा है... मैं... झड़ रही हूं... आह..." वो झड़ गई, जूस बहा, बॉडी थरथराई, आंखें नम – खुशी के आंसू बहने लगे, "राजा... तुमने मुझे पूरा कर दिया..."
राजा ऊपर आया, सुनीता को गले लगाया, उनके आंसू पोछे, "सुनीता... तुम्हारी खुशी... मेरी ज़िंदगी है..." सुनीता ने राजा को किस किया, "अब तुम... मुझे तुम्हारा महसूस करना है..." उन्होंने राजा के लंड को सहलाया – मोटा, सख्त, गर्म। मुंह में लिया – धीरे से, प्यार से, जीभ से लपेटा, गला तक। राजा की सिसकारी: "सुनीता... तुम्हारा मुंह... स्वर्ग है... इतना नरम, इतना गहरा..." सुनीता ने चूसा – धीरे-धीरे, आंखें मिलाकर, जैसे हर मोमेंट में भावनाएं डाल रही हों। राजा के हाथ उनके बालों में, "सुनीता... तुम्हारा प्यार... मुझे जीवित कर रहा है..." सुनीता ने रुककर कहा, "राजा... अब अंदर... मुझे तुम्हारा पूरा चाहिए..." राजा ने कंडोम लगाया, सुनीता नीचे लेटीं, पैर फैलाए। राजा अंदर गया – धीरे, गहरा, हर इंच में प्यार। सुनीता चिल्लाई: "आह... राजा... तुम्हारा लंड... मुझे भर रहा है... दर्द मीठा... प्यार गहरा... हां..." धक्के लगे – स्लो, इंटेंस, हर धक्के में आंखें मिलाकर, हाथ पकड़कर, सांसें मिलाकर। सुनीता की सिसकारियां: "ओह... चोदो मुझे... राजा... तुम्हारा प्यार... हर दर्द मिटा रहा है... आह... और तेज़..." ब्रेस्ट उछल रहे, भावनाएं पीक पर – प्यार के आंसू, सुख की लहरें। स्पीड बढ़ी, लेकिन रोमांटिक – सुनीता झड़ी, "राजा... मैं तुम्हारी हूं... हमेशा..." राजा भी झड़ा, दोनों साथ, बॉडी मिलकर कांपीं, जैसे आत्माएं एक हो गई हों। फिर गांड की बारी – सुनीता शर्मा रही थीं, लेकिन प्यार से हां की। लुब्रिकेंट लगाया, राजा ने धीरे अंदर डाला। सुनीता: "आह... दर्द... लेकिन तुम्हारा प्यार... सह लूंगी... हां..." स्पीड बढ़ी – गहरा, इंटेंस, हाथ ब्रेस्ट पर, कान में प्यार भरी बातें: "सुनीता... तुम मेरी हो... हर दर्द मैं मिटा दूंगा..." सुनीता: "ओह... फाड़ देगा... लेकिन अच्छा लग रहा... राजा... तुम्हारा लंड... मुझे पूरा कर रहा है... आह..." वो फिर झड़ी, भावनाएं पीक पर – प्यार, दर्द, सुख। दृश्य लंबा चला – कई बार, हर मोमेंट में रोमांस, इंटेंसनेस, भावनाएं। आर्यन का दिल टूट गया, आंखें नम हो गईं। वो पीछे हटा, काव्या की तरफ देखा – "ये... कैसे?" काव्या मुस्कुराई: "देखा? अब विश्वास हुआ? पावर चुनो, आर्यन।"
आर्यन घर लौटा, रोता रहा। "सुनीता... क्यों?" लेकिन काव्या का प्लान चल रहा था।