12-09-2025, 05:45 PM
उस दिन के बाद से सांस-बहू की झिझक खत्म हो चुकी थी। दयाराम ठरकी ससुर बन गया, और खुशबू उसकी ठरकी बहू। अब वो खुशबू के कमरे का दरवाजा खटखटाता, और वो अपने को नुचवाने चली आती। और खुशबू गाण्ड मटकाते हुए टावर पहुँच जाती। वहाँ शुरू होता रगड़म-रगड़ाई का खेल। हफ्ते भर बाद उसकी मेहनत का फल खुशबू के जिस्म में दिखने लगा—उसके बूब्स डेढ़ गुना बड़े हो गए, गाण्ड और चौड़ी हो गई। ससुर की दी हुई खुशियों से उसका वजन भी बढ़ गया। पुराने जमाने में मायके आने पर लड़की का मोटापा ससुराल की खुशी का पैमाना माना जाता था।
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