12-09-2025, 05:42 PM
होली की घटना के बाद खुशबू अपने ससुर से दूरी बनाए रखने की कोशिश कर रही थी। उसका मन शर्म से भरा था, क्योंकि ससुर ने उसे ऊपर से पूरी तरह नंगा कर दिया था, वो भी उसकी सहमति से। दयाराम ये सब नोट कर रहा था। उसे इस बात की तसल्ली थी कि खुशबू गुस्सा नहीं थी, बस हिचक रही थी। चार दिन तक ये लुका-छिपी चलती रही। दयाराम ने सोचा कि शुरुआत उसे ही करनी पड़ेगी, क्योंकि औरतें स्वभाव से ऐसे मामलों में आगे नहीं बढ़तीं। उसने रात को छत से खुशबू को फोन किया।
खूशबू का दिल ससुर जी का नंबर देखकर धक-धक करने लगा। कुछ देर पहले ही मयंक से गर्मागरम बातें हुई थीं, और वो पहले से ही मूड में थी। उसने फोन रिसीव किया।
खुशबू : हाँ, ससुर जी।
दयाराम : बहू, क्या कर रही हो? सो गई थी क्या?
खुशबू : नहीं, ससुर जी, बस गाने सुन रही थी।
दयाराम : दिनभर गाने ही सुनती रहती हो? थोड़ा घूमो-फिरो, शरीर स्वस्थ रहेगा।
खुशबू : रात को कहाँ घूमें?
दयाराम : अरे, रात के खाने के बाद तो घूमना जरूरी है। और जगह की कमी है क्या? इतनी बड़ी छत पड़ी है। चलो, ऊपर आ जाओ।
खुशबू : ऊपर? ऊपर तो आप हैं।
दयाराम : तो? हम हैं तो क्या हुआ? कोई भूत-प्रेत हैं क्या?
खुशबू : नहीं, वो बात नहीं, पर… स्स्स…
दयाराम : तो फिर क्या बात है? साफ-साफ बोलो, डरती क्यों हो?
खुशबू : छत पर तो अँधेरा भी रहता है।
दयाराम : अँधेरा है तो क्या? अपना घर है, कोई जंगल थोड़े जाना है। चलो, आओ, थोड़ा वॉकिंग कर लो।
खुशबू : ससुर जी, आप तंग तो नहीं करेंगे?
दयाराम : क्या! हम तंग करते हैं क्या?
खुशबू : वो… उस दिन होली वाले दिन कितना तंग किया था।
दयाराम : पगली, वो तो त्योहार था। यहाँ खुले में कोई कुछ करेगा क्या? तुम तो फालतू घबराती हो।
खुशबू : सच्ची बताइए, आपका कोई भरोसा नहीं।
दयाराम : अरे, बहू, हम पर भरोसा नहीं करोगी, तो इस शहर में किस पर करोगी?
खुशबू : नहीं, आप बहुत बदमाश हैं। अगर कुछ बदमाशी की, तो पूरा मोहल्ला देख लेगा।
दयाराम : बहू, तुम भी डरपोक हो। खुली छत पर कुछ हो सकता है क्या? चलो, ऊपर आ जाओ।
खुशबू : पहले कसम खाइए कि खुले में कोई बदमाशी नहीं करेंगे। तब आएँगे।
दयाराम : अरे, तुम्हारी कसम, खुले में नो बदमाशी, नो लफड़ा। अब जल्दी आ जाओ।
खुशबू ने ससुर को कसम से बाँध लिया, तो वो दिलेर हो गई। उसने ससुर के सब्र का इम्तिहान लेने के लिए होली वाला कातिलाना ऑउटफिट पहना—टाइट टी-शर्ट और लेगिंग, जिसमें उसकी चूचियाँ और गांड उभरकर जानलेवा लग रही थीं। छत पर पहुँचते ही दयाराम की आँखें चमक उठीं। उसे पक्का यकीन हो गया कि बहू की ठरक अभी भी चढ़ी हुई है।
दोनों छत पर पास-पास चलने लगे। दयाराम जानबूझकर मयंक से विरह की बातें कर रहा था, ताकि खुशबू हीट में आए। उसका असर हुआ। कुछ देर बाद खुशबू की आवाज भारी होने लगी, उसमें चंचलता आ गई। वो ससुर के और करीब चिपककर चलने लगी। थोड़ी देर बाद दयाराम ने नीचे चलने को कहा और पहले सीढ़ियों की ओर बढ़ा। घर की छत पर टावर था, जिसमें दरवाजा लगा था। खुशबू पीछे थी, तो उसने दरवाजा बंद किया। जैसे ही वो पलटी, दयाराम ने उसे बाँहों में जकड़ लिया और उसके रसीले होंठ चूसने लगा। उसके हाथ खुशबू की चूचियों पर पहुँच गए। इस अचानक हमले से खुशबू हड़बड़ा गई, मगर छुड़ा नहीं पाई।
खुशबू : ससुर जी, प्लीज छोड़िए। आपने कहा था, खुले में तंग नहीं करेंगे।
दयाराम : बहू, यहाँ खुला कहाँ है? देखो, चारों तरफ से बंद है।
खुशबू ने देखा, वो टावर के अंदर थी।
खुशबू : लेकिन आपने कहा था, बदमाशी नहीं करेंगे। ये चीटिंग है!
दयाराम: नहीं, बहू, बिल्कुल चीटिंग नहीं। हम अपनी कसम नहीं तोड़ते।
वो फिर से खुशबू की जवानी लूटने लगा। उसकी हरकतों से खुशबू गर्म होने लगी। उसकी चूचियाँ तन गईं, और बदन में करंट दौड़ने लगा। दयाराम ने मौका देखकर उसकी टी-शर्ट उतारने की कोशिश की।
खुशबू : ससुर जी, नहीं, कपड़े मत उतारिए। हमें ये अच्छा नहीं लगता।
दयाराम : ठीक है, बहू। हमारी जिंदगी तो नीरस थी। सोचा, शायद तुम कुछ सुकून दे सको। मगर हमारा भाग्य ही खराब है।
दयाराम की भावनात्मक बात ने खुशबू को पिघला दिया।
खुशबू : हमने तो सिर्फ इतना कहा कि कपड़े मत उतारिए।
दयाराम : चॉकलेट का रैपर बिना उतारे खाने में स्वाद कहाँ? बिना देखे रहा भी नहीं जाता।
खुशबू : लेकिन फिर आप आगे बढ़ने लगते हैं।
दयाराम : आगे मतलब?
खुशबू : मतलब नीचे जाने लगते हैं। हमें वो बिल्कुल पसंद नहीं। होली के दिन भी आप वहाँ पहुँच गए थे।
दयाराम : लेकिन तुमने मना किया, तो रुक गए ना? तुम्हारी मर्जी के बिना हम एक कदम आगे नहीं बढ़ेंगे।
इस बार खुशबू चुप रही। दयाराम ने उसकी टी-शर्ट उतार दी। एक पल में वो फिर अधनंगी थी। उसने अपनी जीभ से खुशबू के निप्पल के चारों ओर चक्कर लगाए। खुशबू गनगना उठी। “आह… स्स्स…” उसकी सिसकारियाँ शुरू हो गईं। दयाराम ने चूचियाँ चूसनी शुरू कीं, तो खुशबू उसके बाल सहलाने लगी। दयाराम ने दाँत भी गड़ाए। खुशबू की चूत तक करंट पहुँच रहा था। वो बड़बड़ाने लगी, “हाँ, ससुर जी, खा जाओ इनको। ये आपके लिए ही हैं। खूब मसल डालो। बहुत परेशान करती हैं ये।”
दयाराम : बहू, अब तुम्हारी सारी परेशानी खत्म। इनकी देखभाल हम करेंगे। जब भी तंग करें, हमें बता देना, हम इनकी खबर लेंगे।
टावर में तूफान आ गया। दयाराम ने खुशबू के ऊपरी जिस्म पर अपने होंठों से मुहर लगाई, जैसे उस पर अपनी मिल्कियत जता रहा हो। खुशबू बेसुध पड़ी थी। आधे घंटे बाद जब वो अपने कमरे में पहुँची, उसकी चूचियाँ दयाराम के दाँतों के निशानों से भरी थीं।
दो दिन बाद दयाराम ने फिर खुशबू को बुलाने का सोचा। वो नहीं चाहता था कि खुशबू की आदत छूटे, वरना वो ठंडी पड़ सकती थी। दूसरा, उसे खुद अब कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था। उसने रात को फोन किया और सीधे टावर में बुलाया।
खुशबू के लिए ये धर्मसंकट था। अब तक जो हुआ, वो अचानक हुआ था। उसका दोष सिर्फ इतना था कि वो दयाराम को कड़ाई से रोक नहीं पाई। मगर आज वो उसे सीधे टावर में बुला रहा था। अगर वो जाती, तो इसका मतलब वो खुद अपना जिस्म ससुर को परोसने जा रही थी। इतनी बेहया वो कैसे हो सकती थी? उसने फैसला किया और कमरे में ही रही।
जब वो नहीं आई, तो दयाराम ने फिर फोन किया।
खुशबू : हाँ, ससुर जी।
दयाराम : बहू, आओ ना, हम इंतजार कर रहे हैं।
खुशबू : ससुर जी, हम नहीं आएँगे।
दयाराम : क्यों नहीं? क्या बात हो गई?
खुशबू : कोई बात नहीं, बस आना नहीं चाहते।
दयाराम : प्लीज, बहू, ऐसा मत करो। अब तुम्हारे बिना रहा नहीं जाता।
खुशबू : ससुर जी, जो हो रहा है, वो गलत है। पाप है।
दयाराम : कोई पाप नहीं। तुम जानती हो, पाप क्या होता है? शास्त्र कहते हैं, ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई।’ जिससे सुख मिले, वही धर्म है। हमारी दोस्ती से दोनों को खुशी मिलती है।
खुशबू : ससुर जी, हमें शास्त्र नहीं मालूम। बस इतना जानते हैं कि ये रिश्ता गलत है।
दयाराम : तुम हमें मझधार में नहीं छोड़ सकती। तुम्हारे बिना हमारा जीवन बेमानी है।
दयाराम की प्रेम भरी बातों से खुशबू का मन डोल गया, मगर वो टस से मस न हुई। दयाराम की सारी योजना धरी रह गई। मगर वो पक्का फौजी था। उसने “इमोशनल अत्याचार” का हथियार निकाला।
अगले दिन वो सुबह से मजनू की तरह उदास बैठा रहा। शाम को बाजार चला गया। देर रात तक नहीं लौटा, तो सास मीना ने खुशबू से कहा, “फोन करके पूछो, कहाँ हैं?”
खुशबू : ससुर जी, कहाँ हो? खाना खाने का टाइम हो गया।
दयाराम : हमें देर हो जाएगी। खाना खाकर आएँगे। —और फोन काट दिया।
दयाराम देशी शराब के ठेके पहुँचा। उसने सालों पहले पीना छोड़ दिया था, मगर आज उसने देशी ठर्रा पिया, ताकि बदबू आए और घर में पता चले। उसने चिकन खाया और घंटे भर बाद घर लौटा। खुशबू ने दरवाजा खोला, तो शराब की बदबू से पीछे हट गई। दयाराम ने लड़खड़ाने की एक्टिंग की और अपने कमरे में चला गया। सास-बहू एक-दूसरे का मुँह देखने लगीं।
अगले दिन फिर दयाराम ठर्रा पीकर आया। उसने एक रोटी खाई और गुमसुम अपने कमरे में चला गया। मीना बड़बड़ाने लगी, “इन्हें क्या हो गया? बड़ी मुश्किल से पीने की आदत छुड़ाई थी, अब फिर शुरू। इस बुढ़ापे में शराब शरीर खोखला कर देगी। पता नहीं किसकी नजर लग गई!” खुशबू चुपचाप सुनती रही। वो कैसे बताती कि ससुर जी का टेंशन वो खुद है?
तीसरे दिन जब दयाराम फिर निकला, तो खुशबू समझ गई कि वो पीने जा रहे हैं। अब वो टेंशन में थी। सास कह रही थी कि शराब ससुर जी को खोखला कर देगी। दूसरा, घर को नजर लगने की बात। तीसरा, उसकी चूचियाँ बार-बार “ससुरजी-ससुरजी” पुकार रही थीं। दयाराम के दीवानापन ने उसके दिल में प्यार का अंकुर जगा दिया था। आधे घंटे बाद उसने फोन उठाया।
खुशबू : ससुर जी, हमें क्यों परेशान कर रहे हो? ये पीना क्यों शुरू किया?
दयाराम : तुम्हें इससे क्या? तुम ऐश करो। —रूखी आवाज में बोला।
खुशबू : पीना जरूरी है क्या? अपने शरीर का ख्याल करिए।
दयाराम : इस शरीर का क्या करना, जब ये सुख नहीं दे सकता? अब शराब ही सहारा है।
खुशबू : और आपका परिवार? उसका ख्याल नहीं?
दयाराम : सब ठीक हैं। सास पूजा में, बहू अपने मस्ती में। इस बूढ़े के लिए किसके पास टाइम है?
खुशबू : प्लीज, बाबूजी, शराब मत पियो। हमें ये पसंद नहीं।
दयाराम : हम तुम्हारी पसंद से नहीं चल सकते, जैसे तुम हमारी पसंद से नहीं चलतीं।
खुशबू : हम हाथ जोड़ रहे हैं। बिना पिए लौट आइए। जो चाहते हैं, वो मिल जाएगा।
दयाराम : क्या मिल जाएगा?
खुशबू : आप बहुत गंदे हैं। हमारे मुँह से बुलवाना चाहते हैं।
दयाराम : अरे, कुछ पता तो चले।
खुशबू : हम टावर में आ जाएँगे, बस। शरारती कहीं के! —और फोन काट दिया।
खुशबू की हरी झंडी से दयाराम झूम उठा। उसे यकीन नहीं था कि खुशबू इतनी जल्दी मान जाएगी। वो गुनगुनाता हुआ घर लौटा। घर में सास-बहू टीवी देख रही थीं। खुशबू चाय बनाने गई, और दयाराम हाथ-मुँह धोने। लौटा, तो देखा खुशबू किचन में है और मीना टीवी में मगन। दयाराम किचन में घुसा और खुशबू को पीछे से पकड़ लिया। उसका कोबरा फन फैलाकर खुशबू की गांड में चोट मारने लगा। उसके हाथों ने चूचियों पर कब्जा कर लिया। खुशबू चिहुँक गई, “ससुर जी, ये क्या कर रहे हो? सास मां बगल में हैं। प्लीज छोड़िए।”
दयाराम : छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा है।
खुशबू की चूचियाँ उसकी कमजोरी बन चुकी थीं। दयाराम के हाथों का जादू और होंठ उसकी पीठ व गर्दन पर चल रहे थे। खुशबू सनसना रही थी, मगर बोली, “ससुरजी, प्लीज, अभी चले जाइए। जो करना है, रात को कर लेना।” दयाराम ने मीना के डर से उसे छोड़ा और बोला, “ठीक है, बस एक किस दे दो।” उसने खुशबू को घुमाया और उसके होंठों पर अपने होंठ जोड़ दिए। खुशबू ने उसे जोर से चिपका लिया।
रात को मीना नींद की गोली खाकर सो गई। दयाराम ने टावर से फोन किया।
खुशबू : हाँ, ससुर जी।
दयाराम : बहू, तीन दिन से ढंग से खाना नहीं खाया। भूख लगी है।
खुशबू : कुछ खाना ले आएँ?
दयाराम : नहीं, बस थोड़ा दूध पी लेंगे।
खुशबू : ठीक है, दूध ले आते हैं।
दयाराम : अरे, तुम आ जाओ, डायरेक्ट पी लेंगे।
खुशबू : डायरेक्ट मतलब?
दयाराम: जैसे बच्चा पीता है, मुँह लगाकर।
खुशबू उसकी बात समझकर शरमा गई। “हाय राम, आप जैसा बेशरम नहीं देखा। कोई अपनी बहू से ऐसा बोलता है?”
दयाराम : अच्छा, ठीक है, बोलेंगे नहीं, करेंगे। दूध पीयेंगे।
खुशबू : आपको और कोई काम है ही नहीं। सुई एक ही जगह अटकती है।
दयाराम : अरे, तुम भी तो वहीँ अटक गई हो। जल्दी आओ।
खुशबू टावर की ओर बढ़ी। उसे शर्म महसूस हो रही थी। वो अपने ससुर के पास जा रही थी, जो उसके जिस्म से खेलने को बेताब था। हर कदम भारी लग रहा था। टावर के दरवाजे पर पहुँचते ही दयाराम ने उसे खींचकर बाँहों में भींच लिया। वो खुशबू को दबोचने-मसलने लगा। खुशबू उसके दीवानापन पर गर्व महसूस कर रही थी। दयाराम ने उसके स्ट्रॉबेरी होंठ चूसने शुरू किए। उसका कोबरा खुशबू की नाभि पर चोट मार रहा था। उसने खुशबू का चेन वाला गाउन खोला। अगले पल उसकी चूचियाँ फड़फड़ाकर बाहर आ गईं। जीरो वाट की रोशनी में वो जानलेवा लग रही थीं।
खुशबू के मुँह से निकल गया- बाप रे… बाप..!
दयाराम: क्या देख रही हो, बहु ?
खुशबू : कुदरत की नायाब कारीगिरी।
दयाराम : क्या हुआ बहू.. इतना ज्यादा बड़ा है क्या मेरा लंड ?
खुशबू : आपका बहुत बड़ा है।
दयाराम : क्या बहू ?
खुशबू : वो जो नीचे है।
दयाराम : क्या.. इसका नाम लो बहू.. बोलो लंड.. बोलो..
खुशबू : हाँ.. आपका लंड.. बहुत बड़ा है।
ससुर जी मेरे नजदीक आकर बोले- तुमको अच्छा लगा?
खुशबू : मैं तो आपका यह बड़ा लंड देख कर उसी दिन से पागल थी।
आज वही लंड मेरी आँखों के सामने था तो मैंने बिना कुछ कहे उनका लंड अपने हाथ में लेकर मसलने लगी।
अब मैं नीचे बैठ गई और उनके लंड को हाथ से आगे-पीछे करने लगी।
दयाराम : इसको मुँह में लो।
खुशबू : - नहीं बाबू जी.. मुझे शर्म आती है, यह गंदा है।
दयाराम : बहू तुम भी प्यासी हो और मैं भी प्यासा हूँ। देखो ना.. मयंक को कितने दिन हो गए और तुम तो अभी जवान हो, सेक्सी गर्म औरत हो।’
ससुर जी के मुँह से अपनी तारीफ सुन कर मैं पागल हुए जा रही थी, मेरी चूत ने भी पानी छोड़ दिया था।
दयाराम : कुछ भी गंदा नहीं है बहू.. तुम एक औरत हो और मैं एक मर्द हूँ… बस सब कुछ भूल जाओ ताकि दोनों को आनन्द आए और अब मुझे तुम ससुर जी नहीं, दयाराम बोलो।’
खुशबू - ठीक है दयाराम।
खुशबू ने घुटनों पर बैठ कर हाथ में लेकर हिलाया और फिर मेरे ससुर जी का 11 इन्च का लंड को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी।
मैं उनके लौड़े को आइस-क्रीम की तरह चाटने और चूसने लगी।
पहले पहल तो कुछ नमकीन सा लगा फिर मुझे उसका स्वाद अच्छा लगने लगा।
ससुर जी के मुँह से ‘हाय खुशबू बहू...... अहहहाज...... आह.......’ निकलने लगी।
मैं अपने मुँह में उस लंड को चूसे जा रही थी और मेरी चूत भी रसीली हो चली थी।
ससुर जी की सिसकारी सुन कर मेरी भी आहें निकलने लगीं- मूओआयाया..... ओआहौ… अमम्मुआहह..... आ ससुर जी अहह.......बहुत बड़ा है और टेस्टी लग रहा है.. मैंने पहली बार किसी का लंड अपने मुँह में लिया है।
दयाराम : क्यों खुशबू मयंक ने अपना लंड तेरे मुँह में नहीं दिया क्या?’
खुशबू : ससुर जी.. उनका बहुत छोटा है ,।’
अब उन्होंने मेरी ब्रा और कच्छी को भी खोल कर मुझे भी खुद के जैसा नंगा कर दिया और ये सब कार्यक्रम मेरे कमरे में चल रहा था।
फिर ससुर जी ने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और मेरी चूत को चाटने लग गए।
मैं पागल सी हो रही थी, दो बार तो ऐसे ही मेरा पानी निकल गया, फिर उन्होंने अपना 11 इन्च का लंड मेरी चूत में लगा दिया।
मुझे थोड़ा दर्द हुआ। । फिर मेरे मुँह से चीख निकल गई ‘उईईइइमाआ..’
दयाराम : क्या हुआ खुशबू .. दर्द हुआ क्या?
खुशबू : हाँ ससुर जी .. थोड़ा आराम से करो।
फिर उन्होंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए और धीरे-धीरे अपना पूरा लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
खुशबू चिल्लाए जा रही थी- ससुर जी , नहीं पेल अब रुक जा.. बहुत दर्द हो रहा है..!
पर वो कसाई जैसे लगे रहे तनिक भी नहीं रुके और मेरी चुदाई करते रहे।
खुशबू : ‘आह्ह....... उईईइमाआआआ....... ससुर जी बस करो.. निकालो..!’
दयाराम : बस मेरी जान थोड़ा सा और.. बस खुशबू , मेरी जान… मैं बहुत तड़पा हूँ तेरे लिए, आज जाकर तू मेरे लंड के नीचे आई है, बहुत चुदासी है तू रानी । तेरी.. आह्ह..ले और ले..साली।’
मैं भी उनकी बातों से गर्म होकर उनके धक्कों का साथ देते हुए अपनी गाण्ड को ऊपर उठाए जा रही थी।
दयाराम : खुशबू..... आआहा..हहहह.. हहाह मैं आ.. आ गया.. अह..’ उन्होंने अपने लंड का पानी मेरी चूत में छोड़ दिया सब माल मेरे गर्भ में चला गया।
फिर कुछ देर हम दोनों ऐसे ही नंगे ही अपने पलंग पर पड़े रहे।
थोड़ी देर में उन्होंने मुझे फिर से गोद में लेकर चोदा और पूरी रात मेरे ससुर जी ने 4 बार मेरी चुदाई की और सुबह मैं उठी तो मेरे ससुर जी पहले ही उठ गए थे।
मैं नंगी ही उनके कमरे में पड़ी थी।
फिर मैं उठकर नंगी ही ऊपर अपने कमरे में आ गई। मैंने अपने कपड़े पहने और घर के काम में लग गई।
ससुर जी - बहू तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना?
खुशबू - हाँ.. मैं बिल्कुल ठीक हूँ ससुर जी।
हम दोनों ज़ोर से हँसने लगे।
अब मेरी ज़िंदगी इस तरह ही कटने लगी थी।
यह रोज की बात हो गई। मैं नहाने के लिए बाथरूम में जाती और ससुर जी अपने कमरे के छेद से मुझे नहाते हुए देखते, फिर बोलते- खुशबू बहू आज तुम बाथरूम में क्या कर रही थीं और इस रंग की कच्छी-ब्रा पहने हो!
यह सब कुछ सुन कर मैं शर्म से लाल हो जाती। मैं क्या करती, मुझे भी उनकी ज़रूरत थी।
मेरे ससुर जी घर में मेरे साथ खूब मस्ती करते और वे मेरा ख्याल भी बहुत रखते, जैसे मैं उनकी बहू नहीं पत्नी होऊँ।
वो मेरे पति से भी ज्यादा ख्याल रखते, हम दोनों में सब कुछ अच्छा चल रहा था।
फिर एक दिन हम दोनों बाजार में सब्जी लेने गए।
मैं गुलाबी साड़ी में थी और बहुत ही कटीली लग रही थी।
दयाराम : बहू.. आज बहुत ही मस्त लग रही हो.. कहीं ऐसा न हो कि बाजार में सब मूठ मारने लग जाएँ.. जरा संभल कर चलना मेरी खुशबू रानी!’
खुशबू : जी.. आप भी ना बाबू जी.. बहुत बदमाश हो गए हो.. बहुत मस्ती करते हो! चलो, अब हम लोग चलें।’
हम लोग बाजार के लिए चल दिए और बस में चढ़े।
बस में बहुत भीड़ थी, सब एक-दूसरे से सट कर खड़े थे।
मेरे आगे मेरे ससुर और पीछे मेरे कोई दूसरा आदमी था, जो बहुत ही मोटा और काला था, मेरी गाण्ड पर ज़ोर लगाए जा रहा था।
जब भी बस के ब्रेक लगते, वो मेरे ऊपर चढ़ जाता और मैं ससुर जी के ऊपर हो जाती।
दयाराम : बहू मज़े लो अपनी ज़िंदगी के.. समझ लो बस में नहीं हो.. बिस्तर में हो।’
उस आदमी ने तो हद ही कर दी, मेरी साड़ी के बाहर से ही वो मेरी गाण्ड पर हाथ फेरने लग गया।
वह हाथ फेरते-फेरते मेरी गांड में ऊँगली करने लगा।
मैंने भी कोई विरोध नहीं किया, तो उसने हिम्मत करके एक हाथ आगे लाकर मेरे एक स्तन पर धर दिया और उसको मसलने लगा। मैं पागल हुई जा रही थी। बहुत भीड़ की वजह से किसी को कोई पता भी नहीं चल पा रहा था।
और मेरे ससुर जी एक हाथ पीछे करके अपने एक हाथ से मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही सहलाने लगे।
मुझे बहुत ही आनन्द आ रहा था मेरे आगे-पीछे दोनों तरफ से मेरे अंगों को मसला जा रहा था।
तभी बस रुकी और देखा कि सब्जी मंडी आ गई। हम उतरे और सब्जी ली और वापस घर आ गए।
रात को भी ससुर ने मुझे खूब चोदा। ससुर जी रात को मेरे कमरे में आ गए और मेरे पास आकर मुझे छत पर ले गए, दयाराम - खुशबू मेरी जान.. आज चाँदनी रात है आज यहीं छत पर तुम्हें चोदने का मन हो रहा है।
खुशबू : ससुर जी.. यहीं छत पर नहीं .. यदि किसी पता लग गया तो? नहीं.. नहीं… आप कमरे में चलो वहां जो भी करना हो कर लेना, जो भी करना है।’
दयाराम : नहीं खुशबू जानू.. प्लीज़।’
उन्होंने मेरी एक ना सुनी और पागलों की तरह चूमने लग गए। मेरी साड़ी उतारने के बाद में पेटीकोट-ब्लाउज में थी, उन्होंने वो भी खींच कर खोल दिए। अब मैं कच्छी और ब्रा में आ गई।
दयाराम : बिल्कुल कयामत लग रही हो बहू रानी.. मेरी जान.. चाँदनी रात में चुदाई का मज़ा ही कुछ और है।’
खुशबू : यह कोई देख लेगा ससुर जी.. प्लीज़ नीचे चलो ना..’
दयाराम : नहीं बहू.. कोई नहीं देखेगा.. तुम मेरा साथ दो बस..’
मैंने भी वासना के वशीभूत होकर अपनी ब्रा का हुक खोल कर पिंजड़े में बन्द अपने चुचियों को आजाद कर दिया।
मेरे दोनों चुचियों जो मेरी छोटी ब्रा में समा ही नहीं रहे थे, ससुर जी उनको चूसने लग गए और मेरी चूत में उंगली करने लगे।
अब वो भी नंगे हो गए और उनके लंड को मैंने हाथ में लेकर आगे-पीछे करने लगी।
मुझे भी मज़ा आने लगा और मैंने उनका लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी।
अब मुझे उनका लंड बहुत टेस्टी लगने लगा था, चाँदनी रात में चुदाई के पहले चुसाई का असीम आनन्द मिलने लगा था।
दयाराम : आह.. जानेमन खुशबू हय.. बहुत अच्छा चूसती हो.. तुम मेरा लंड आज बहुत मजे से चूस रही हो.. आह्ह…आ।’
फिर उन्होंने मुझे दीवार के सहारे खड़ा कर दिया और अपना लंड पीछे से मेरी चूत में ठूंस दिया और धकाधक धकाधक चूत मारने लगे।
गली में कुत्ते भौंक रहे थे, रात के एक बज रहे थे और मैं अपने ससुर के साथ चुदाई करवा रही थी। चुदाई के बाद ससुर जी ने मुझे कहा बहूं कमरे में चलो हम दोनों कमरे में पहुंचे। उस रात ससुर जी ने अलग-अलग आसनों में लिटा कर मुझे चोद रहे थे।
हम दोनों चुदाई में पुरा थक चुके थे। हल्की नींद लगी तभी किसी ने जोर चिल्लाया !
हम दोनों हड़बड़ा के उठे तो देखा कमरे का दरवाजा खुला हुआ था तो बाहर सासु जी खड़ी थी. वो मुझे इस हालत में देख समझ चुकी थी कि रात भर क्या हुआ होगा.
उनकी आंखों से आँसू आने लगे और मुँह नीचे करके अपने कमरे में चली गयी.ससुर जी भी अपने रूम में चले गये.
अगली दिन सासु मां मेरे पास आई और बोली- बहू, जो भी घर में हो रहा है, बहुत गलत हो रहा है. वो तेरे ससुर हैं, पिता समान हैं वो तेरे!
खुशबू - सासु मां , आप नाराज़ क्यों हो रही हो. अब आप तो ससुर जी को खुश नहीं रख पा रही हो तो किसी को तो उनकी खुशी का ध्यान रखना होगा । सासु मां इससे बहुत गुस्सा होने लगी पर वो कुछ कर नहीं सकती थी. क्योंकि की वह जानती थी कि उसका बेटा मेरी बहूं को संतुष्ट नहीं कर सकता है और मैं मयंक के बाप को वह मजे नहीं दे सकती जो मजा जवानी में देती थी।
खूशबू का दिल ससुर जी का नंबर देखकर धक-धक करने लगा। कुछ देर पहले ही मयंक से गर्मागरम बातें हुई थीं, और वो पहले से ही मूड में थी। उसने फोन रिसीव किया।
खुशबू : हाँ, ससुर जी।
दयाराम : बहू, क्या कर रही हो? सो गई थी क्या?
खुशबू : नहीं, ससुर जी, बस गाने सुन रही थी।
दयाराम : दिनभर गाने ही सुनती रहती हो? थोड़ा घूमो-फिरो, शरीर स्वस्थ रहेगा।
खुशबू : रात को कहाँ घूमें?
दयाराम : अरे, रात के खाने के बाद तो घूमना जरूरी है। और जगह की कमी है क्या? इतनी बड़ी छत पड़ी है। चलो, ऊपर आ जाओ।
खुशबू : ऊपर? ऊपर तो आप हैं।
दयाराम : तो? हम हैं तो क्या हुआ? कोई भूत-प्रेत हैं क्या?
खुशबू : नहीं, वो बात नहीं, पर… स्स्स…
दयाराम : तो फिर क्या बात है? साफ-साफ बोलो, डरती क्यों हो?
खुशबू : छत पर तो अँधेरा भी रहता है।
दयाराम : अँधेरा है तो क्या? अपना घर है, कोई जंगल थोड़े जाना है। चलो, आओ, थोड़ा वॉकिंग कर लो।
खुशबू : ससुर जी, आप तंग तो नहीं करेंगे?
दयाराम : क्या! हम तंग करते हैं क्या?
खुशबू : वो… उस दिन होली वाले दिन कितना तंग किया था।
दयाराम : पगली, वो तो त्योहार था। यहाँ खुले में कोई कुछ करेगा क्या? तुम तो फालतू घबराती हो।
खुशबू : सच्ची बताइए, आपका कोई भरोसा नहीं।
दयाराम : अरे, बहू, हम पर भरोसा नहीं करोगी, तो इस शहर में किस पर करोगी?
खुशबू : नहीं, आप बहुत बदमाश हैं। अगर कुछ बदमाशी की, तो पूरा मोहल्ला देख लेगा।
दयाराम : बहू, तुम भी डरपोक हो। खुली छत पर कुछ हो सकता है क्या? चलो, ऊपर आ जाओ।
खुशबू : पहले कसम खाइए कि खुले में कोई बदमाशी नहीं करेंगे। तब आएँगे।
दयाराम : अरे, तुम्हारी कसम, खुले में नो बदमाशी, नो लफड़ा। अब जल्दी आ जाओ।
खुशबू ने ससुर को कसम से बाँध लिया, तो वो दिलेर हो गई। उसने ससुर के सब्र का इम्तिहान लेने के लिए होली वाला कातिलाना ऑउटफिट पहना—टाइट टी-शर्ट और लेगिंग, जिसमें उसकी चूचियाँ और गांड उभरकर जानलेवा लग रही थीं। छत पर पहुँचते ही दयाराम की आँखें चमक उठीं। उसे पक्का यकीन हो गया कि बहू की ठरक अभी भी चढ़ी हुई है।
दोनों छत पर पास-पास चलने लगे। दयाराम जानबूझकर मयंक से विरह की बातें कर रहा था, ताकि खुशबू हीट में आए। उसका असर हुआ। कुछ देर बाद खुशबू की आवाज भारी होने लगी, उसमें चंचलता आ गई। वो ससुर के और करीब चिपककर चलने लगी। थोड़ी देर बाद दयाराम ने नीचे चलने को कहा और पहले सीढ़ियों की ओर बढ़ा। घर की छत पर टावर था, जिसमें दरवाजा लगा था। खुशबू पीछे थी, तो उसने दरवाजा बंद किया। जैसे ही वो पलटी, दयाराम ने उसे बाँहों में जकड़ लिया और उसके रसीले होंठ चूसने लगा। उसके हाथ खुशबू की चूचियों पर पहुँच गए। इस अचानक हमले से खुशबू हड़बड़ा गई, मगर छुड़ा नहीं पाई।
खुशबू : ससुर जी, प्लीज छोड़िए। आपने कहा था, खुले में तंग नहीं करेंगे।
दयाराम : बहू, यहाँ खुला कहाँ है? देखो, चारों तरफ से बंद है।
खुशबू ने देखा, वो टावर के अंदर थी।
खुशबू : लेकिन आपने कहा था, बदमाशी नहीं करेंगे। ये चीटिंग है!
दयाराम: नहीं, बहू, बिल्कुल चीटिंग नहीं। हम अपनी कसम नहीं तोड़ते।
वो फिर से खुशबू की जवानी लूटने लगा। उसकी हरकतों से खुशबू गर्म होने लगी। उसकी चूचियाँ तन गईं, और बदन में करंट दौड़ने लगा। दयाराम ने मौका देखकर उसकी टी-शर्ट उतारने की कोशिश की।
खुशबू : ससुर जी, नहीं, कपड़े मत उतारिए। हमें ये अच्छा नहीं लगता।
दयाराम : ठीक है, बहू। हमारी जिंदगी तो नीरस थी। सोचा, शायद तुम कुछ सुकून दे सको। मगर हमारा भाग्य ही खराब है।
दयाराम की भावनात्मक बात ने खुशबू को पिघला दिया।
खुशबू : हमने तो सिर्फ इतना कहा कि कपड़े मत उतारिए।
दयाराम : चॉकलेट का रैपर बिना उतारे खाने में स्वाद कहाँ? बिना देखे रहा भी नहीं जाता।
खुशबू : लेकिन फिर आप आगे बढ़ने लगते हैं।
दयाराम : आगे मतलब?
खुशबू : मतलब नीचे जाने लगते हैं। हमें वो बिल्कुल पसंद नहीं। होली के दिन भी आप वहाँ पहुँच गए थे।
दयाराम : लेकिन तुमने मना किया, तो रुक गए ना? तुम्हारी मर्जी के बिना हम एक कदम आगे नहीं बढ़ेंगे।
इस बार खुशबू चुप रही। दयाराम ने उसकी टी-शर्ट उतार दी। एक पल में वो फिर अधनंगी थी। उसने अपनी जीभ से खुशबू के निप्पल के चारों ओर चक्कर लगाए। खुशबू गनगना उठी। “आह… स्स्स…” उसकी सिसकारियाँ शुरू हो गईं। दयाराम ने चूचियाँ चूसनी शुरू कीं, तो खुशबू उसके बाल सहलाने लगी। दयाराम ने दाँत भी गड़ाए। खुशबू की चूत तक करंट पहुँच रहा था। वो बड़बड़ाने लगी, “हाँ, ससुर जी, खा जाओ इनको। ये आपके लिए ही हैं। खूब मसल डालो। बहुत परेशान करती हैं ये।”
दयाराम : बहू, अब तुम्हारी सारी परेशानी खत्म। इनकी देखभाल हम करेंगे। जब भी तंग करें, हमें बता देना, हम इनकी खबर लेंगे।
टावर में तूफान आ गया। दयाराम ने खुशबू के ऊपरी जिस्म पर अपने होंठों से मुहर लगाई, जैसे उस पर अपनी मिल्कियत जता रहा हो। खुशबू बेसुध पड़ी थी। आधे घंटे बाद जब वो अपने कमरे में पहुँची, उसकी चूचियाँ दयाराम के दाँतों के निशानों से भरी थीं।
दो दिन बाद दयाराम ने फिर खुशबू को बुलाने का सोचा। वो नहीं चाहता था कि खुशबू की आदत छूटे, वरना वो ठंडी पड़ सकती थी। दूसरा, उसे खुद अब कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था। उसने रात को फोन किया और सीधे टावर में बुलाया।
खुशबू के लिए ये धर्मसंकट था। अब तक जो हुआ, वो अचानक हुआ था। उसका दोष सिर्फ इतना था कि वो दयाराम को कड़ाई से रोक नहीं पाई। मगर आज वो उसे सीधे टावर में बुला रहा था। अगर वो जाती, तो इसका मतलब वो खुद अपना जिस्म ससुर को परोसने जा रही थी। इतनी बेहया वो कैसे हो सकती थी? उसने फैसला किया और कमरे में ही रही।
जब वो नहीं आई, तो दयाराम ने फिर फोन किया।
खुशबू : हाँ, ससुर जी।
दयाराम : बहू, आओ ना, हम इंतजार कर रहे हैं।
खुशबू : ससुर जी, हम नहीं आएँगे।
दयाराम : क्यों नहीं? क्या बात हो गई?
खुशबू : कोई बात नहीं, बस आना नहीं चाहते।
दयाराम : प्लीज, बहू, ऐसा मत करो। अब तुम्हारे बिना रहा नहीं जाता।
खुशबू : ससुर जी, जो हो रहा है, वो गलत है। पाप है।
दयाराम : कोई पाप नहीं। तुम जानती हो, पाप क्या होता है? शास्त्र कहते हैं, ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई।’ जिससे सुख मिले, वही धर्म है। हमारी दोस्ती से दोनों को खुशी मिलती है।
खुशबू : ससुर जी, हमें शास्त्र नहीं मालूम। बस इतना जानते हैं कि ये रिश्ता गलत है।
दयाराम : तुम हमें मझधार में नहीं छोड़ सकती। तुम्हारे बिना हमारा जीवन बेमानी है।
दयाराम की प्रेम भरी बातों से खुशबू का मन डोल गया, मगर वो टस से मस न हुई। दयाराम की सारी योजना धरी रह गई। मगर वो पक्का फौजी था। उसने “इमोशनल अत्याचार” का हथियार निकाला।
अगले दिन वो सुबह से मजनू की तरह उदास बैठा रहा। शाम को बाजार चला गया। देर रात तक नहीं लौटा, तो सास मीना ने खुशबू से कहा, “फोन करके पूछो, कहाँ हैं?”
खुशबू : ससुर जी, कहाँ हो? खाना खाने का टाइम हो गया।
दयाराम : हमें देर हो जाएगी। खाना खाकर आएँगे। —और फोन काट दिया।
दयाराम देशी शराब के ठेके पहुँचा। उसने सालों पहले पीना छोड़ दिया था, मगर आज उसने देशी ठर्रा पिया, ताकि बदबू आए और घर में पता चले। उसने चिकन खाया और घंटे भर बाद घर लौटा। खुशबू ने दरवाजा खोला, तो शराब की बदबू से पीछे हट गई। दयाराम ने लड़खड़ाने की एक्टिंग की और अपने कमरे में चला गया। सास-बहू एक-दूसरे का मुँह देखने लगीं।
अगले दिन फिर दयाराम ठर्रा पीकर आया। उसने एक रोटी खाई और गुमसुम अपने कमरे में चला गया। मीना बड़बड़ाने लगी, “इन्हें क्या हो गया? बड़ी मुश्किल से पीने की आदत छुड़ाई थी, अब फिर शुरू। इस बुढ़ापे में शराब शरीर खोखला कर देगी। पता नहीं किसकी नजर लग गई!” खुशबू चुपचाप सुनती रही। वो कैसे बताती कि ससुर जी का टेंशन वो खुद है?
तीसरे दिन जब दयाराम फिर निकला, तो खुशबू समझ गई कि वो पीने जा रहे हैं। अब वो टेंशन में थी। सास कह रही थी कि शराब ससुर जी को खोखला कर देगी। दूसरा, घर को नजर लगने की बात। तीसरा, उसकी चूचियाँ बार-बार “ससुरजी-ससुरजी” पुकार रही थीं। दयाराम के दीवानापन ने उसके दिल में प्यार का अंकुर जगा दिया था। आधे घंटे बाद उसने फोन उठाया।
खुशबू : ससुर जी, हमें क्यों परेशान कर रहे हो? ये पीना क्यों शुरू किया?
दयाराम : तुम्हें इससे क्या? तुम ऐश करो। —रूखी आवाज में बोला।
खुशबू : पीना जरूरी है क्या? अपने शरीर का ख्याल करिए।
दयाराम : इस शरीर का क्या करना, जब ये सुख नहीं दे सकता? अब शराब ही सहारा है।
खुशबू : और आपका परिवार? उसका ख्याल नहीं?
दयाराम : सब ठीक हैं। सास पूजा में, बहू अपने मस्ती में। इस बूढ़े के लिए किसके पास टाइम है?
खुशबू : प्लीज, बाबूजी, शराब मत पियो। हमें ये पसंद नहीं।
दयाराम : हम तुम्हारी पसंद से नहीं चल सकते, जैसे तुम हमारी पसंद से नहीं चलतीं।
खुशबू : हम हाथ जोड़ रहे हैं। बिना पिए लौट आइए। जो चाहते हैं, वो मिल जाएगा।
दयाराम : क्या मिल जाएगा?
खुशबू : आप बहुत गंदे हैं। हमारे मुँह से बुलवाना चाहते हैं।
दयाराम : अरे, कुछ पता तो चले।
खुशबू : हम टावर में आ जाएँगे, बस। शरारती कहीं के! —और फोन काट दिया।
खुशबू की हरी झंडी से दयाराम झूम उठा। उसे यकीन नहीं था कि खुशबू इतनी जल्दी मान जाएगी। वो गुनगुनाता हुआ घर लौटा। घर में सास-बहू टीवी देख रही थीं। खुशबू चाय बनाने गई, और दयाराम हाथ-मुँह धोने। लौटा, तो देखा खुशबू किचन में है और मीना टीवी में मगन। दयाराम किचन में घुसा और खुशबू को पीछे से पकड़ लिया। उसका कोबरा फन फैलाकर खुशबू की गांड में चोट मारने लगा। उसके हाथों ने चूचियों पर कब्जा कर लिया। खुशबू चिहुँक गई, “ससुर जी, ये क्या कर रहे हो? सास मां बगल में हैं। प्लीज छोड़िए।”
दयाराम : छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा है।
खुशबू की चूचियाँ उसकी कमजोरी बन चुकी थीं। दयाराम के हाथों का जादू और होंठ उसकी पीठ व गर्दन पर चल रहे थे। खुशबू सनसना रही थी, मगर बोली, “ससुरजी, प्लीज, अभी चले जाइए। जो करना है, रात को कर लेना।” दयाराम ने मीना के डर से उसे छोड़ा और बोला, “ठीक है, बस एक किस दे दो।” उसने खुशबू को घुमाया और उसके होंठों पर अपने होंठ जोड़ दिए। खुशबू ने उसे जोर से चिपका लिया।
रात को मीना नींद की गोली खाकर सो गई। दयाराम ने टावर से फोन किया।
खुशबू : हाँ, ससुर जी।
दयाराम : बहू, तीन दिन से ढंग से खाना नहीं खाया। भूख लगी है।
खुशबू : कुछ खाना ले आएँ?
दयाराम : नहीं, बस थोड़ा दूध पी लेंगे।
खुशबू : ठीक है, दूध ले आते हैं।
दयाराम : अरे, तुम आ जाओ, डायरेक्ट पी लेंगे।
खुशबू : डायरेक्ट मतलब?
दयाराम: जैसे बच्चा पीता है, मुँह लगाकर।
खुशबू उसकी बात समझकर शरमा गई। “हाय राम, आप जैसा बेशरम नहीं देखा। कोई अपनी बहू से ऐसा बोलता है?”
दयाराम : अच्छा, ठीक है, बोलेंगे नहीं, करेंगे। दूध पीयेंगे।
खुशबू : आपको और कोई काम है ही नहीं। सुई एक ही जगह अटकती है।
दयाराम : अरे, तुम भी तो वहीँ अटक गई हो। जल्दी आओ।
खुशबू टावर की ओर बढ़ी। उसे शर्म महसूस हो रही थी। वो अपने ससुर के पास जा रही थी, जो उसके जिस्म से खेलने को बेताब था। हर कदम भारी लग रहा था। टावर के दरवाजे पर पहुँचते ही दयाराम ने उसे खींचकर बाँहों में भींच लिया। वो खुशबू को दबोचने-मसलने लगा। खुशबू उसके दीवानापन पर गर्व महसूस कर रही थी। दयाराम ने उसके स्ट्रॉबेरी होंठ चूसने शुरू किए। उसका कोबरा खुशबू की नाभि पर चोट मार रहा था। उसने खुशबू का चेन वाला गाउन खोला। अगले पल उसकी चूचियाँ फड़फड़ाकर बाहर आ गईं। जीरो वाट की रोशनी में वो जानलेवा लग रही थीं।
खुशबू के मुँह से निकल गया- बाप रे… बाप..!
दयाराम: क्या देख रही हो, बहु ?
खुशबू : कुदरत की नायाब कारीगिरी।
दयाराम : क्या हुआ बहू.. इतना ज्यादा बड़ा है क्या मेरा लंड ?
खुशबू : आपका बहुत बड़ा है।
दयाराम : क्या बहू ?
खुशबू : वो जो नीचे है।
दयाराम : क्या.. इसका नाम लो बहू.. बोलो लंड.. बोलो..
खुशबू : हाँ.. आपका लंड.. बहुत बड़ा है।
ससुर जी मेरे नजदीक आकर बोले- तुमको अच्छा लगा?
खुशबू : मैं तो आपका यह बड़ा लंड देख कर उसी दिन से पागल थी।
आज वही लंड मेरी आँखों के सामने था तो मैंने बिना कुछ कहे उनका लंड अपने हाथ में लेकर मसलने लगी।
अब मैं नीचे बैठ गई और उनके लंड को हाथ से आगे-पीछे करने लगी।
दयाराम : इसको मुँह में लो।
खुशबू : - नहीं बाबू जी.. मुझे शर्म आती है, यह गंदा है।
दयाराम : बहू तुम भी प्यासी हो और मैं भी प्यासा हूँ। देखो ना.. मयंक को कितने दिन हो गए और तुम तो अभी जवान हो, सेक्सी गर्म औरत हो।’
ससुर जी के मुँह से अपनी तारीफ सुन कर मैं पागल हुए जा रही थी, मेरी चूत ने भी पानी छोड़ दिया था।
दयाराम : कुछ भी गंदा नहीं है बहू.. तुम एक औरत हो और मैं एक मर्द हूँ… बस सब कुछ भूल जाओ ताकि दोनों को आनन्द आए और अब मुझे तुम ससुर जी नहीं, दयाराम बोलो।’
खुशबू - ठीक है दयाराम।
खुशबू ने घुटनों पर बैठ कर हाथ में लेकर हिलाया और फिर मेरे ससुर जी का 11 इन्च का लंड को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी।
मैं उनके लौड़े को आइस-क्रीम की तरह चाटने और चूसने लगी।
पहले पहल तो कुछ नमकीन सा लगा फिर मुझे उसका स्वाद अच्छा लगने लगा।
ससुर जी के मुँह से ‘हाय खुशबू बहू...... अहहहाज...... आह.......’ निकलने लगी।
मैं अपने मुँह में उस लंड को चूसे जा रही थी और मेरी चूत भी रसीली हो चली थी।
ससुर जी की सिसकारी सुन कर मेरी भी आहें निकलने लगीं- मूओआयाया..... ओआहौ… अमम्मुआहह..... आ ससुर जी अहह.......बहुत बड़ा है और टेस्टी लग रहा है.. मैंने पहली बार किसी का लंड अपने मुँह में लिया है।
दयाराम : क्यों खुशबू मयंक ने अपना लंड तेरे मुँह में नहीं दिया क्या?’
खुशबू : ससुर जी.. उनका बहुत छोटा है ,।’
अब उन्होंने मेरी ब्रा और कच्छी को भी खोल कर मुझे भी खुद के जैसा नंगा कर दिया और ये सब कार्यक्रम मेरे कमरे में चल रहा था।
फिर ससुर जी ने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और मेरी चूत को चाटने लग गए।
मैं पागल सी हो रही थी, दो बार तो ऐसे ही मेरा पानी निकल गया, फिर उन्होंने अपना 11 इन्च का लंड मेरी चूत में लगा दिया।
मुझे थोड़ा दर्द हुआ। । फिर मेरे मुँह से चीख निकल गई ‘उईईइइमाआ..’
दयाराम : क्या हुआ खुशबू .. दर्द हुआ क्या?
खुशबू : हाँ ससुर जी .. थोड़ा आराम से करो।
फिर उन्होंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए और धीरे-धीरे अपना पूरा लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
खुशबू चिल्लाए जा रही थी- ससुर जी , नहीं पेल अब रुक जा.. बहुत दर्द हो रहा है..!
पर वो कसाई जैसे लगे रहे तनिक भी नहीं रुके और मेरी चुदाई करते रहे।
खुशबू : ‘आह्ह....... उईईइमाआआआ....... ससुर जी बस करो.. निकालो..!’
दयाराम : बस मेरी जान थोड़ा सा और.. बस खुशबू , मेरी जान… मैं बहुत तड़पा हूँ तेरे लिए, आज जाकर तू मेरे लंड के नीचे आई है, बहुत चुदासी है तू रानी । तेरी.. आह्ह..ले और ले..साली।’
मैं भी उनकी बातों से गर्म होकर उनके धक्कों का साथ देते हुए अपनी गाण्ड को ऊपर उठाए जा रही थी।
दयाराम : खुशबू..... आआहा..हहहह.. हहाह मैं आ.. आ गया.. अह..’ उन्होंने अपने लंड का पानी मेरी चूत में छोड़ दिया सब माल मेरे गर्भ में चला गया।
फिर कुछ देर हम दोनों ऐसे ही नंगे ही अपने पलंग पर पड़े रहे।
थोड़ी देर में उन्होंने मुझे फिर से गोद में लेकर चोदा और पूरी रात मेरे ससुर जी ने 4 बार मेरी चुदाई की और सुबह मैं उठी तो मेरे ससुर जी पहले ही उठ गए थे।
मैं नंगी ही उनके कमरे में पड़ी थी।
फिर मैं उठकर नंगी ही ऊपर अपने कमरे में आ गई। मैंने अपने कपड़े पहने और घर के काम में लग गई।
ससुर जी - बहू तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना?
खुशबू - हाँ.. मैं बिल्कुल ठीक हूँ ससुर जी।
हम दोनों ज़ोर से हँसने लगे।
अब मेरी ज़िंदगी इस तरह ही कटने लगी थी।
यह रोज की बात हो गई। मैं नहाने के लिए बाथरूम में जाती और ससुर जी अपने कमरे के छेद से मुझे नहाते हुए देखते, फिर बोलते- खुशबू बहू आज तुम बाथरूम में क्या कर रही थीं और इस रंग की कच्छी-ब्रा पहने हो!
यह सब कुछ सुन कर मैं शर्म से लाल हो जाती। मैं क्या करती, मुझे भी उनकी ज़रूरत थी।
मेरे ससुर जी घर में मेरे साथ खूब मस्ती करते और वे मेरा ख्याल भी बहुत रखते, जैसे मैं उनकी बहू नहीं पत्नी होऊँ।
वो मेरे पति से भी ज्यादा ख्याल रखते, हम दोनों में सब कुछ अच्छा चल रहा था।
फिर एक दिन हम दोनों बाजार में सब्जी लेने गए।
मैं गुलाबी साड़ी में थी और बहुत ही कटीली लग रही थी।
दयाराम : बहू.. आज बहुत ही मस्त लग रही हो.. कहीं ऐसा न हो कि बाजार में सब मूठ मारने लग जाएँ.. जरा संभल कर चलना मेरी खुशबू रानी!’
खुशबू : जी.. आप भी ना बाबू जी.. बहुत बदमाश हो गए हो.. बहुत मस्ती करते हो! चलो, अब हम लोग चलें।’
हम लोग बाजार के लिए चल दिए और बस में चढ़े।
बस में बहुत भीड़ थी, सब एक-दूसरे से सट कर खड़े थे।
मेरे आगे मेरे ससुर और पीछे मेरे कोई दूसरा आदमी था, जो बहुत ही मोटा और काला था, मेरी गाण्ड पर ज़ोर लगाए जा रहा था।
जब भी बस के ब्रेक लगते, वो मेरे ऊपर चढ़ जाता और मैं ससुर जी के ऊपर हो जाती।
दयाराम : बहू मज़े लो अपनी ज़िंदगी के.. समझ लो बस में नहीं हो.. बिस्तर में हो।’
उस आदमी ने तो हद ही कर दी, मेरी साड़ी के बाहर से ही वो मेरी गाण्ड पर हाथ फेरने लग गया।
वह हाथ फेरते-फेरते मेरी गांड में ऊँगली करने लगा।
मैंने भी कोई विरोध नहीं किया, तो उसने हिम्मत करके एक हाथ आगे लाकर मेरे एक स्तन पर धर दिया और उसको मसलने लगा। मैं पागल हुई जा रही थी। बहुत भीड़ की वजह से किसी को कोई पता भी नहीं चल पा रहा था।
और मेरे ससुर जी एक हाथ पीछे करके अपने एक हाथ से मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही सहलाने लगे।
मुझे बहुत ही आनन्द आ रहा था मेरे आगे-पीछे दोनों तरफ से मेरे अंगों को मसला जा रहा था।
तभी बस रुकी और देखा कि सब्जी मंडी आ गई। हम उतरे और सब्जी ली और वापस घर आ गए।
रात को भी ससुर ने मुझे खूब चोदा। ससुर जी रात को मेरे कमरे में आ गए और मेरे पास आकर मुझे छत पर ले गए, दयाराम - खुशबू मेरी जान.. आज चाँदनी रात है आज यहीं छत पर तुम्हें चोदने का मन हो रहा है।
खुशबू : ससुर जी.. यहीं छत पर नहीं .. यदि किसी पता लग गया तो? नहीं.. नहीं… आप कमरे में चलो वहां जो भी करना हो कर लेना, जो भी करना है।’
दयाराम : नहीं खुशबू जानू.. प्लीज़।’
उन्होंने मेरी एक ना सुनी और पागलों की तरह चूमने लग गए। मेरी साड़ी उतारने के बाद में पेटीकोट-ब्लाउज में थी, उन्होंने वो भी खींच कर खोल दिए। अब मैं कच्छी और ब्रा में आ गई।
दयाराम : बिल्कुल कयामत लग रही हो बहू रानी.. मेरी जान.. चाँदनी रात में चुदाई का मज़ा ही कुछ और है।’
खुशबू : यह कोई देख लेगा ससुर जी.. प्लीज़ नीचे चलो ना..’
दयाराम : नहीं बहू.. कोई नहीं देखेगा.. तुम मेरा साथ दो बस..’
मैंने भी वासना के वशीभूत होकर अपनी ब्रा का हुक खोल कर पिंजड़े में बन्द अपने चुचियों को आजाद कर दिया।
मेरे दोनों चुचियों जो मेरी छोटी ब्रा में समा ही नहीं रहे थे, ससुर जी उनको चूसने लग गए और मेरी चूत में उंगली करने लगे।
अब वो भी नंगे हो गए और उनके लंड को मैंने हाथ में लेकर आगे-पीछे करने लगी।
मुझे भी मज़ा आने लगा और मैंने उनका लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी।
अब मुझे उनका लंड बहुत टेस्टी लगने लगा था, चाँदनी रात में चुदाई के पहले चुसाई का असीम आनन्द मिलने लगा था।
दयाराम : आह.. जानेमन खुशबू हय.. बहुत अच्छा चूसती हो.. तुम मेरा लंड आज बहुत मजे से चूस रही हो.. आह्ह…आ।’
फिर उन्होंने मुझे दीवार के सहारे खड़ा कर दिया और अपना लंड पीछे से मेरी चूत में ठूंस दिया और धकाधक धकाधक चूत मारने लगे।
गली में कुत्ते भौंक रहे थे, रात के एक बज रहे थे और मैं अपने ससुर के साथ चुदाई करवा रही थी। चुदाई के बाद ससुर जी ने मुझे कहा बहूं कमरे में चलो हम दोनों कमरे में पहुंचे। उस रात ससुर जी ने अलग-अलग आसनों में लिटा कर मुझे चोद रहे थे।
हम दोनों चुदाई में पुरा थक चुके थे। हल्की नींद लगी तभी किसी ने जोर चिल्लाया !
हम दोनों हड़बड़ा के उठे तो देखा कमरे का दरवाजा खुला हुआ था तो बाहर सासु जी खड़ी थी. वो मुझे इस हालत में देख समझ चुकी थी कि रात भर क्या हुआ होगा.
उनकी आंखों से आँसू आने लगे और मुँह नीचे करके अपने कमरे में चली गयी.ससुर जी भी अपने रूम में चले गये.
अगली दिन सासु मां मेरे पास आई और बोली- बहू, जो भी घर में हो रहा है, बहुत गलत हो रहा है. वो तेरे ससुर हैं, पिता समान हैं वो तेरे!
खुशबू - सासु मां , आप नाराज़ क्यों हो रही हो. अब आप तो ससुर जी को खुश नहीं रख पा रही हो तो किसी को तो उनकी खुशी का ध्यान रखना होगा । सासु मां इससे बहुत गुस्सा होने लगी पर वो कुछ कर नहीं सकती थी. क्योंकि की वह जानती थी कि उसका बेटा मेरी बहूं को संतुष्ट नहीं कर सकता है और मैं मयंक के बाप को वह मजे नहीं दे सकती जो मजा जवानी में देती थी।


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