12-09-2025, 10:59 AM
खुशबू की सिसकारियाँ अब तेज हो चुकी थीं। दयाराम की उंगलियाँ उसकी चूचियों की घुंडियों को मसल रही थीं, और उसका लंड उसकी गांड से टकरा रहा था। खुशबू का बदन पूरी तरह गर्म हो चुका था। उसकी चूत से पानी की धाराएँ बह रही थीं, जैसे कोई नदी उफान पर हो। अचानक दयाराम ने चूचियों को और जोर से मसला, तो खुशबू सिसक पड़ी, “उई माँ… स्स्स… ससुर जी, दर्द दे रहा है, धीरे दबाइए ना!”
ये सुनकर दयाराम के चेहरे पर शातिर मुस्कान तैर गई। थोड़ी देर पहले जो बहू “छोड़िए” चिल्ला रही थी, अब वही “धीरे दबाइए” कह रही थी। “सॉरी, बहू, अब धीरे करेंगे,” कहते हुए उसने खुशबू के कंधे पर हल्के से दाँत गड़ाए। खुशबू का बदन सिहर उठा। “ससुर जी, काट क्यों रहे हैं?” उसने सिसकते हुए पूछा।
दयाराम ने प्यार से पुचकारा, “ये काटना नहीं, बहू, लव बाइट है। दर्द हुआ क्या?”
खुशबू : जी नहीं, दर्द तो नहीं हुआ, मगर कोई दाँत गड़ाता है क्या?
दयाराम : अरे, बहू, ये तो प्यार का तरीका है। —कहते हुए उसने खुशबू के कंधे और गर्दन पर लव बाइट्स देना शुरू कर दिया।
दयाराम का हर स्पर्श खुशबू को और गर्म कर रहा था। वो किसी मांसाहारी जानवर की तरह उसकी देह को नोच रहा था, और खुशबू का जिस्म उसकी भूख का शिकार बन रहा था। अचानक, दयाराम ने उसकी टी-शर्ट ऊपर खींचनी शुरू की। खुशबू ने विरोध किया, “ससुर जी, ये क्या कर रहे हैं?”
दयाराम : बस, जरा गुलाल लगाना है, बहू।
खुशबू : ऐसे ही ऊपर से लगा लीजिए ना।
दयाराम : नहीं, बहू, ऐसे नहीं चलेगा। जरा हाथ ऊपर करो।
खुशबू : नहीं, ससुर जी, हमें शरम आती है। ऊपर से ही लगा लीजिए।
दयाराम : ये तो गलत बात है, बहू। पूरे मोहल्ले के साथ होली खेली, और अपने ससुर के साथ मना कर रही हो?
खुशबू : हाय राम! हमने कब मोहल्ले वालों के साथ होली खेली?
दयाराम : अरे, हमने खिड़की से सब देखा। वो सक्सेना का लड़का तेरी छाती में हाथ डालकर रंग लगा रहा था।
खुशबू : वो तो कमीना है। औरतों ने पहले ही बता दिया था कि वो बदमाश है। हमने उसे डाँटा भी था।
दयाराम : और मिश्रा जी का दामाद? वो तो तुझे पीछे से पकड़कर मसल रहा था। कितनी देर तक मसला उसने!
खुशबू : उसके बारे में तो हमें कुछ पता ही नहीं था। अचानक पकड़ लिया। छुड़ाने की कोशिश की, मगर वो ताकतवर था। कमीना हरामी है! मिश्रा जी को ऐसा ठरकी दामाद कहाँ से मिला?
दयाराम : जब सबने तुझसे होली खेली, तो हमें क्यों रोक रही है? ये तो वही बात हुई, “सबको बाँटो, हमें डाँटो!”
खूशबू : क्या! हमने क्या बाँटा सबको?
दयाराम : अरे, त्योहार की खुशियाँ बाँटीं ना। अब हमें मना कर रही हो?
कहते हुए दयाराम ने फिर से टी-शर्ट खींची। खुशबू ने मजबूरी में हाथ ऊपर कर दिए, और टी-शर्ट उतर गई। अब वो कमर के ऊपर पूरी नंगी थी। दयाराम झुका और उसकी मखमली पीठ पर चुम्बन शुरू कर दिए। बीच-बीच में वो हल्के से दाँत भी गड़ा देता। खुशबू फिर से गर्म होने लगी। अचानक, दयाराम ने उसे कंधों से पकड़कर घुमाया। अब खुशबू की चूचियाँ उसके सामने थीं—गोल, मक्खन जैसे, और उनके ऊपर काले अंगूर जैसे निप्पल। दयाराम की साँसें रुक गईं। वो एकटक उन्हें निहारने लगा।
खुशबू की आँखें बंद थीं। जब कुछ देर तक सन्नाटा रहा, तो उसने हल्के से आँखें खोलीं। देखा, ससुर जी पागलों की तरह उसकी चूचियों को घूर रहे हैं। “ ससुर जी, हो गई होली? अब मैं जाऊँ?” उसने धीरे से पूछा।
दयाराम की तंद्रा टूटी। “बस एक मिनट, बहू,” कहते हुए उसने खुशबू की एक चूची मुँह में ले ली। फिर तो वो पागलों की तरह चूसने लगा। खुशबू की सिसकारियाँ फिर शुरू हो गईं। “आह… ससुर जी… ओह माय गॉड… स्स्स… जोर से मत काटिए… धीरे चूसिए…”
मयंक भी खुशबू की चूचियाँ चूसता था, मगर दयाराम की कला उसके सामने फीकी थी। खुशबू मन ही मन बुदबुदाई, “बाप बाप ही होता है, बेटा कभी बाप नहीं बन सकता।” करीब 15 मिनट तक दयाराम ने बारी-बारी से उसकी चूचियों को चूसा। खुशबू की चूत से पानी की धाराएँ बह रही थीं। अचानक, दयाराम साँस लेने के लिए रुका। खुशबू आँखें मूँदे खड़ी थी, उसकी नंगी सुंदरता रति को भी चुनौती दे रही थी। दयाराम ने उसकी गर्दन पकड़कर अपनी ओर खींचा और उसके रसीले होंठों पर अपने होंठ रख दिए। खुशबू अब पूरी तरह आग का गोला बन चुकी थी। पराए मर्द का चुंबन उसे और रोमांचित कर रहा था।
कुछ देर बाद उसे होश आया। “ससुर जी, अब छोड़ दीजिए। बहुत होली खेल ली,” उसने कहा।
दयाराम : बस, बहू, एक मिनट। जरा गुलाल तो लगा लूँ।
उसने कुरते की जेब से गुलाल निकाला और खुशबू के पेट, चूचियों और गर्दन पर रगड़ने लगा। गुलाल का खुरदरापन खुशबू को और उत्तेजित कर रहा था। उसकी साँसें फिर तेज हो गईं। अचानक, दयाराम ने उसकी लेगिंग की इलास्टिक में उंगली फँसाई और उसे गांड तक नीचे खींच दिया। फिर उसने खुशबू की गांड पर गुलाल रगड़ना शुरू किया। ये वही गांड थी, जो उसके सपनों में रोज आती थी। वो बहक गया और उसकी गांड में उंगली डाल दी।
खुशबू को झटका लगा। उसने आँखें खोलीं और देखा कि उसकी लेगिंग नीचे खिसकी पड़ी है। “ससुर जी, ये क्या कर रहे थे?” उसने घबराते हुए कहा और लेगिंग ऊपर खींच ली।
दयाराम : कुछ नहीं, बहू, बस गुलाल लगा रहा था।
खुशबू : नहीं, ससुर जी, नीचे बिल्कुल नहीं!
उसने टी-शर्ट उठाई और नंगी ही अपने कमरे में भाग गई। दयाराम उसकी थिरकती गांड को देखता रहा। उसकी हर मटक के साथ उसका लंड झटके खा रहा था। फिर वो बाथरूम की ओर चला गया।
अपने कमरे में जाकर दयाराम सोचने लगा। आज का दिन उसके लिए मील का पत्थर था। पहली बात, खुशबू ने खुद कहा, “धीरे दबाइए,” यानी उसके अंदर आग सुलग रही थी। दूसरा, उसने जी भरकर उसकी चूचियाँ चूसीं। वो जानता था कि चूचियाँ औरत का सबसे संवेदनशील अंग होती हैं। ओशो ने तो यहाँ तक लिखा था कि स्त्री को समाधि के लिए भृकुटी की जगह स्तनाग्र पर ध्यान देना चाहिए। दयाराम को यकीन था कि आज का सुख खुशबू को
बार-बार उसके पास खींच लाएगा। तीसरी और सबसे बड़ी बात— खुशबू ने अपनी टी-शर्ट उतारने की इजाजत दे दी। एक बार औरत अपने कपड़े उतारने को तैयार हो जाए, तो उसका चारित्रिक पतन हो चुका होता है। अब वो सिर्फ वासना की लालच में बार-बार गिरती चली जाती है। दयाराम निश्चिंत था कि अब वो खुशबू को ऊपर से तो नंगी कर ही लेगा। अब बस उसे लेगिंग उतारने के लिए राजी करना था। अगर वो नीचे भी हाथ लगाने दे दे, तो फिर उसका फौलादी लंड खुशबू की मखमली चूत की गहराइयों में रोज सैर करेगा।
खुशबू को याद करके उसका लंड फिर अंगड़ाई लेने लगा। उसने उसे मुठियाते हुए कहा, “बस, बेटा, थोड़ा सब्र कर। तेरे अच्छे दिन आने वाले हैं।”
इधर, खुशबू अपने कमरे में हाँफ रही थी। उसे लग रहा था कि ससुर जी अभी भी उसकी चूचियाँ चूस रहे हैं। “हाय भगवान, ससुर जी क्या-क्या करते हैं! कहीं काटते हैं, कहीं निप्पल पर जीभ चुभलाते हैं, कहीं घुंडियों को दाँतों में हल्के से चबाते हैं। पता नहीं कहाँ से सीखा होगा ये सब!” फिर वो बुदबुदाई, “बाप इतना सयाना है, और बेटा बिल्कुल भोंदू। झल्ले को कुछ नहीं आता। कम से कम बाप से कुछ सीख लिया होता!”
वो इन बातों को याद करके गर्म हो रही थी, मगर उसे आश्चर्य भी था कि उसने ससुर जी को इतना कुछ करने दिया। ससुर तो बाप के समान होता है। पहले जो हुआ, वो अचानक हुआ, मगर आज तो उसने खुद टी-शर्ट उतार दी। और वो बेशर्मी से कह रही थी, “जोर से मत काटिए, धीरे करिए!” उसे अपनी हरकतों पर शरम आने लगी। वो इज्जतदार घर की बेटी और संस्कारी बहू थी। “हम तो कच्ची उम्र की हैं, मगर ससुर जी तो सयाने हैं। फिर भी बच्चों की तरह चपर-चपर दूध पीने लगे!” अपनी चूचियों को सहलाते हुए उसने सोचा, “मर्द चाहे कोई हो, इनके जोश से बचकर कहाँ जाएगा?”
तभी उसे याद आया कि मयंक के अलावा उसकी चूचियों से खेलने वाला दयाराम दूसरा पराया मर्द नहीं था। उससे पहले उसके ओफिस के बॉस श्री सिन्हा ने उसके नए-नए नींबुओं से मनमानी की थी। वो घटना उसके सामने चलचित्र की तरह घूमने लगी।
( पुराने यादें.....बारहवीं कक्षा की बात थी। प्रैक्टिकल एग्जाम का दिन था। एक दूसरी कॉलेज की लेडी टीचर निरीक्षक थी। उसने क्लास का दौरा किया, सवाल पूछे और चली गई। खुशबू का पेपर खराब हो गया था, और वो ढंग से जवाब भी नहीं दे पाई थी। सर कुछ लिख रहे थे। एग्जाम के बाद उन्होंने खुशबू और पंखुरी को रोक लिया। एक लिस्ट दिखाई, जिसमें दोनों को 50 में से 10 नंबर मिले थे। खुशबू के पैरों तले जमीन खिसक गई। दोनों सर के सामने रोईं, मगर सर बोले, “ये नंबर मैडम ने दिए हैं।”
रो-धोकर जब वो जाने लगीं, तो कुछ दूर पर सर ने पंखुरी को बुलाया। दोनों कुछ देर बात करते रहे। जब पंखुरी लौटी, तो खुश थी।
खुशबू : क्या बात है? अचानक खुश क्यों हो रही है?
पंखुरी : सर पास करने को तैयार हो गए हैं।
खुशबू : कैसे? अचानक क्यों बदल गए?
पंखुरी : कल हमें 11 बजे लैब में बुलाया है।
खुशबू : कॉलेज की छुट्टियाँ हो गईं, फिर लैब में क्यों?
पंखुरी : तेरी पूजा करने को बुलाया है।
खुशबू : मतलब? समझी नहीं।
पंखुरी : सुन, सर की बीवी दूसरे शहर में है। वो यहाँ अकेले शांड-भुसंड की तरह पड़े हैं। बोले हैं, थोड़ा एंजॉय करा दो, तो पास कर देंगे।
खुशबू : क्या! तू पागल हो गई है? ये क्या बकवास है?
पंखुरी : ना मैं पागल हूँ, ना बकवास बोल रही हूँ। मुझे फेल नहीं होना, ना बारहवीं में दोबारा बैठना है।
खुशबू : तो क्या इज्जत बेच देगी? होश में तो है?
पंखुरी : इज्जत-विज्जत बेचने की जरूरत नहीं। सर सिर्फ ऊपर-ऊपर करेंगे। मैंने साफ बात कर ली है।
खुशबू : पंखुरी , तू पागल है। एक बार फिर सोच ले।
पंखुरी : मैंने सब सोच लिया। मुझे साल बर्बाद नहीं करना। तू भी सोच ले—साल बर्बाद करना है या थोड़ा दूध मसलवाना। सर बस किसिंग-विसिंग करेंगे, हाथ फेरेंगे।
खुशबू : सॉरी, मुझे कुछ नहीं करना। तेरी सलाह तुझे मुबारक। मैं ऐसी-वैसी लड़की नहीं।
पंखुरी : मैं भी ऐसी-वैसी नहीं, मगर हालात मजबूर करते हैं। फेल हो गई, तो पिताजी घर में बैठा देंगे।
दोनों अलग हो गए। खुशबू का दिमाग भन्ना गया। “हाय राम, कहीं सचमुच फेल हो गई तो?” रात भर वो सो नहीं पाई। सुबह पंखुरी का फोन आया।
पंखुरी : बोल, लेने आऊँ?
खुशबू : पंखुरी , कॉलेज बंद है। कहीं सर जबरदस्ती करें तो?
पंखुरी : चिंता मत कर। सर से बात हो गई है, सिर्फ ऊपर-ऊपर करेंगे। प्रिंसिपल और चौकीदार भी होंगे। और हम दो हैं, अकेले तो नहीं।
खुशबू : कहीं सर ने किसी को बता दिया तो? बदनाम हो जाएँगे।
पंखुरी : वो ऐसा नहीं करेंगे। उनका नुकसान ज्यादा है—नौकरी जाएगी, बीवी भी छोड़ सकती है। टेंशन मत ले।
दोनों लैब पहुँचीं। खुशबू को देखकर सर की आँखें चमक उठीं। उन्हें यकीन नहीं था कि वो मानेगी। पंखुरी अंदर गई, सर से बात की, फिर खुशबू से बोली, “मैं दरवाजे पर हूँ। तू अंदर जा, साले को थोड़ा एंजॉय करा दे। डर मत।”
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ये सुनकर दयाराम के चेहरे पर शातिर मुस्कान तैर गई। थोड़ी देर पहले जो बहू “छोड़िए” चिल्ला रही थी, अब वही “धीरे दबाइए” कह रही थी। “सॉरी, बहू, अब धीरे करेंगे,” कहते हुए उसने खुशबू के कंधे पर हल्के से दाँत गड़ाए। खुशबू का बदन सिहर उठा। “ससुर जी, काट क्यों रहे हैं?” उसने सिसकते हुए पूछा।
दयाराम ने प्यार से पुचकारा, “ये काटना नहीं, बहू, लव बाइट है। दर्द हुआ क्या?”
खुशबू : जी नहीं, दर्द तो नहीं हुआ, मगर कोई दाँत गड़ाता है क्या?
दयाराम : अरे, बहू, ये तो प्यार का तरीका है। —कहते हुए उसने खुशबू के कंधे और गर्दन पर लव बाइट्स देना शुरू कर दिया।
दयाराम का हर स्पर्श खुशबू को और गर्म कर रहा था। वो किसी मांसाहारी जानवर की तरह उसकी देह को नोच रहा था, और खुशबू का जिस्म उसकी भूख का शिकार बन रहा था। अचानक, दयाराम ने उसकी टी-शर्ट ऊपर खींचनी शुरू की। खुशबू ने विरोध किया, “ससुर जी, ये क्या कर रहे हैं?”
दयाराम : बस, जरा गुलाल लगाना है, बहू।
खुशबू : ऐसे ही ऊपर से लगा लीजिए ना।
दयाराम : नहीं, बहू, ऐसे नहीं चलेगा। जरा हाथ ऊपर करो।
खुशबू : नहीं, ससुर जी, हमें शरम आती है। ऊपर से ही लगा लीजिए।
दयाराम : ये तो गलत बात है, बहू। पूरे मोहल्ले के साथ होली खेली, और अपने ससुर के साथ मना कर रही हो?
खुशबू : हाय राम! हमने कब मोहल्ले वालों के साथ होली खेली?
दयाराम : अरे, हमने खिड़की से सब देखा। वो सक्सेना का लड़का तेरी छाती में हाथ डालकर रंग लगा रहा था।
खुशबू : वो तो कमीना है। औरतों ने पहले ही बता दिया था कि वो बदमाश है। हमने उसे डाँटा भी था।
दयाराम : और मिश्रा जी का दामाद? वो तो तुझे पीछे से पकड़कर मसल रहा था। कितनी देर तक मसला उसने!
खुशबू : उसके बारे में तो हमें कुछ पता ही नहीं था। अचानक पकड़ लिया। छुड़ाने की कोशिश की, मगर वो ताकतवर था। कमीना हरामी है! मिश्रा जी को ऐसा ठरकी दामाद कहाँ से मिला?
दयाराम : जब सबने तुझसे होली खेली, तो हमें क्यों रोक रही है? ये तो वही बात हुई, “सबको बाँटो, हमें डाँटो!”
खूशबू : क्या! हमने क्या बाँटा सबको?
दयाराम : अरे, त्योहार की खुशियाँ बाँटीं ना। अब हमें मना कर रही हो?
कहते हुए दयाराम ने फिर से टी-शर्ट खींची। खुशबू ने मजबूरी में हाथ ऊपर कर दिए, और टी-शर्ट उतर गई। अब वो कमर के ऊपर पूरी नंगी थी। दयाराम झुका और उसकी मखमली पीठ पर चुम्बन शुरू कर दिए। बीच-बीच में वो हल्के से दाँत भी गड़ा देता। खुशबू फिर से गर्म होने लगी। अचानक, दयाराम ने उसे कंधों से पकड़कर घुमाया। अब खुशबू की चूचियाँ उसके सामने थीं—गोल, मक्खन जैसे, और उनके ऊपर काले अंगूर जैसे निप्पल। दयाराम की साँसें रुक गईं। वो एकटक उन्हें निहारने लगा।
खुशबू की आँखें बंद थीं। जब कुछ देर तक सन्नाटा रहा, तो उसने हल्के से आँखें खोलीं। देखा, ससुर जी पागलों की तरह उसकी चूचियों को घूर रहे हैं। “ ससुर जी, हो गई होली? अब मैं जाऊँ?” उसने धीरे से पूछा।
दयाराम की तंद्रा टूटी। “बस एक मिनट, बहू,” कहते हुए उसने खुशबू की एक चूची मुँह में ले ली। फिर तो वो पागलों की तरह चूसने लगा। खुशबू की सिसकारियाँ फिर शुरू हो गईं। “आह… ससुर जी… ओह माय गॉड… स्स्स… जोर से मत काटिए… धीरे चूसिए…”
मयंक भी खुशबू की चूचियाँ चूसता था, मगर दयाराम की कला उसके सामने फीकी थी। खुशबू मन ही मन बुदबुदाई, “बाप बाप ही होता है, बेटा कभी बाप नहीं बन सकता।” करीब 15 मिनट तक दयाराम ने बारी-बारी से उसकी चूचियों को चूसा। खुशबू की चूत से पानी की धाराएँ बह रही थीं। अचानक, दयाराम साँस लेने के लिए रुका। खुशबू आँखें मूँदे खड़ी थी, उसकी नंगी सुंदरता रति को भी चुनौती दे रही थी। दयाराम ने उसकी गर्दन पकड़कर अपनी ओर खींचा और उसके रसीले होंठों पर अपने होंठ रख दिए। खुशबू अब पूरी तरह आग का गोला बन चुकी थी। पराए मर्द का चुंबन उसे और रोमांचित कर रहा था।
कुछ देर बाद उसे होश आया। “ससुर जी, अब छोड़ दीजिए। बहुत होली खेल ली,” उसने कहा।
दयाराम : बस, बहू, एक मिनट। जरा गुलाल तो लगा लूँ।
उसने कुरते की जेब से गुलाल निकाला और खुशबू के पेट, चूचियों और गर्दन पर रगड़ने लगा। गुलाल का खुरदरापन खुशबू को और उत्तेजित कर रहा था। उसकी साँसें फिर तेज हो गईं। अचानक, दयाराम ने उसकी लेगिंग की इलास्टिक में उंगली फँसाई और उसे गांड तक नीचे खींच दिया। फिर उसने खुशबू की गांड पर गुलाल रगड़ना शुरू किया। ये वही गांड थी, जो उसके सपनों में रोज आती थी। वो बहक गया और उसकी गांड में उंगली डाल दी।
खुशबू को झटका लगा। उसने आँखें खोलीं और देखा कि उसकी लेगिंग नीचे खिसकी पड़ी है। “ससुर जी, ये क्या कर रहे थे?” उसने घबराते हुए कहा और लेगिंग ऊपर खींच ली।
दयाराम : कुछ नहीं, बहू, बस गुलाल लगा रहा था।
खुशबू : नहीं, ससुर जी, नीचे बिल्कुल नहीं!
उसने टी-शर्ट उठाई और नंगी ही अपने कमरे में भाग गई। दयाराम उसकी थिरकती गांड को देखता रहा। उसकी हर मटक के साथ उसका लंड झटके खा रहा था। फिर वो बाथरूम की ओर चला गया।
अपने कमरे में जाकर दयाराम सोचने लगा। आज का दिन उसके लिए मील का पत्थर था। पहली बात, खुशबू ने खुद कहा, “धीरे दबाइए,” यानी उसके अंदर आग सुलग रही थी। दूसरा, उसने जी भरकर उसकी चूचियाँ चूसीं। वो जानता था कि चूचियाँ औरत का सबसे संवेदनशील अंग होती हैं। ओशो ने तो यहाँ तक लिखा था कि स्त्री को समाधि के लिए भृकुटी की जगह स्तनाग्र पर ध्यान देना चाहिए। दयाराम को यकीन था कि आज का सुख खुशबू को
बार-बार उसके पास खींच लाएगा। तीसरी और सबसे बड़ी बात— खुशबू ने अपनी टी-शर्ट उतारने की इजाजत दे दी। एक बार औरत अपने कपड़े उतारने को तैयार हो जाए, तो उसका चारित्रिक पतन हो चुका होता है। अब वो सिर्फ वासना की लालच में बार-बार गिरती चली जाती है। दयाराम निश्चिंत था कि अब वो खुशबू को ऊपर से तो नंगी कर ही लेगा। अब बस उसे लेगिंग उतारने के लिए राजी करना था। अगर वो नीचे भी हाथ लगाने दे दे, तो फिर उसका फौलादी लंड खुशबू की मखमली चूत की गहराइयों में रोज सैर करेगा।
खुशबू को याद करके उसका लंड फिर अंगड़ाई लेने लगा। उसने उसे मुठियाते हुए कहा, “बस, बेटा, थोड़ा सब्र कर। तेरे अच्छे दिन आने वाले हैं।”
इधर, खुशबू अपने कमरे में हाँफ रही थी। उसे लग रहा था कि ससुर जी अभी भी उसकी चूचियाँ चूस रहे हैं। “हाय भगवान, ससुर जी क्या-क्या करते हैं! कहीं काटते हैं, कहीं निप्पल पर जीभ चुभलाते हैं, कहीं घुंडियों को दाँतों में हल्के से चबाते हैं। पता नहीं कहाँ से सीखा होगा ये सब!” फिर वो बुदबुदाई, “बाप इतना सयाना है, और बेटा बिल्कुल भोंदू। झल्ले को कुछ नहीं आता। कम से कम बाप से कुछ सीख लिया होता!”
वो इन बातों को याद करके गर्म हो रही थी, मगर उसे आश्चर्य भी था कि उसने ससुर जी को इतना कुछ करने दिया। ससुर तो बाप के समान होता है। पहले जो हुआ, वो अचानक हुआ, मगर आज तो उसने खुद टी-शर्ट उतार दी। और वो बेशर्मी से कह रही थी, “जोर से मत काटिए, धीरे करिए!” उसे अपनी हरकतों पर शरम आने लगी। वो इज्जतदार घर की बेटी और संस्कारी बहू थी। “हम तो कच्ची उम्र की हैं, मगर ससुर जी तो सयाने हैं। फिर भी बच्चों की तरह चपर-चपर दूध पीने लगे!” अपनी चूचियों को सहलाते हुए उसने सोचा, “मर्द चाहे कोई हो, इनके जोश से बचकर कहाँ जाएगा?”
तभी उसे याद आया कि मयंक के अलावा उसकी चूचियों से खेलने वाला दयाराम दूसरा पराया मर्द नहीं था। उससे पहले उसके ओफिस के बॉस श्री सिन्हा ने उसके नए-नए नींबुओं से मनमानी की थी। वो घटना उसके सामने चलचित्र की तरह घूमने लगी।
( पुराने यादें.....बारहवीं कक्षा की बात थी। प्रैक्टिकल एग्जाम का दिन था। एक दूसरी कॉलेज की लेडी टीचर निरीक्षक थी। उसने क्लास का दौरा किया, सवाल पूछे और चली गई। खुशबू का पेपर खराब हो गया था, और वो ढंग से जवाब भी नहीं दे पाई थी। सर कुछ लिख रहे थे। एग्जाम के बाद उन्होंने खुशबू और पंखुरी को रोक लिया। एक लिस्ट दिखाई, जिसमें दोनों को 50 में से 10 नंबर मिले थे। खुशबू के पैरों तले जमीन खिसक गई। दोनों सर के सामने रोईं, मगर सर बोले, “ये नंबर मैडम ने दिए हैं।”
रो-धोकर जब वो जाने लगीं, तो कुछ दूर पर सर ने पंखुरी को बुलाया। दोनों कुछ देर बात करते रहे। जब पंखुरी लौटी, तो खुश थी।
खुशबू : क्या बात है? अचानक खुश क्यों हो रही है?
पंखुरी : सर पास करने को तैयार हो गए हैं।
खुशबू : कैसे? अचानक क्यों बदल गए?
पंखुरी : कल हमें 11 बजे लैब में बुलाया है।
खुशबू : कॉलेज की छुट्टियाँ हो गईं, फिर लैब में क्यों?
पंखुरी : तेरी पूजा करने को बुलाया है।
खुशबू : मतलब? समझी नहीं।
पंखुरी : सुन, सर की बीवी दूसरे शहर में है। वो यहाँ अकेले शांड-भुसंड की तरह पड़े हैं। बोले हैं, थोड़ा एंजॉय करा दो, तो पास कर देंगे।
खुशबू : क्या! तू पागल हो गई है? ये क्या बकवास है?
पंखुरी : ना मैं पागल हूँ, ना बकवास बोल रही हूँ। मुझे फेल नहीं होना, ना बारहवीं में दोबारा बैठना है।
खुशबू : तो क्या इज्जत बेच देगी? होश में तो है?
पंखुरी : इज्जत-विज्जत बेचने की जरूरत नहीं। सर सिर्फ ऊपर-ऊपर करेंगे। मैंने साफ बात कर ली है।
खुशबू : पंखुरी , तू पागल है। एक बार फिर सोच ले।
पंखुरी : मैंने सब सोच लिया। मुझे साल बर्बाद नहीं करना। तू भी सोच ले—साल बर्बाद करना है या थोड़ा दूध मसलवाना। सर बस किसिंग-विसिंग करेंगे, हाथ फेरेंगे।
खुशबू : सॉरी, मुझे कुछ नहीं करना। तेरी सलाह तुझे मुबारक। मैं ऐसी-वैसी लड़की नहीं।
पंखुरी : मैं भी ऐसी-वैसी नहीं, मगर हालात मजबूर करते हैं। फेल हो गई, तो पिताजी घर में बैठा देंगे।
दोनों अलग हो गए। खुशबू का दिमाग भन्ना गया। “हाय राम, कहीं सचमुच फेल हो गई तो?” रात भर वो सो नहीं पाई। सुबह पंखुरी का फोन आया।
पंखुरी : बोल, लेने आऊँ?
खुशबू : पंखुरी , कॉलेज बंद है। कहीं सर जबरदस्ती करें तो?
पंखुरी : चिंता मत कर। सर से बात हो गई है, सिर्फ ऊपर-ऊपर करेंगे। प्रिंसिपल और चौकीदार भी होंगे। और हम दो हैं, अकेले तो नहीं।
खुशबू : कहीं सर ने किसी को बता दिया तो? बदनाम हो जाएँगे।
पंखुरी : वो ऐसा नहीं करेंगे। उनका नुकसान ज्यादा है—नौकरी जाएगी, बीवी भी छोड़ सकती है। टेंशन मत ले।
दोनों लैब पहुँचीं। खुशबू को देखकर सर की आँखें चमक उठीं। उन्हें यकीन नहीं था कि वो मानेगी। पंखुरी अंदर गई, सर से बात की, फिर खुशबू से बोली, “मैं दरवाजे पर हूँ। तू अंदर जा, साले को थोड़ा एंजॉय करा दे। डर मत।”
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