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Adultery भोसड़ी की भूखी कहानियाँ
#11
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प्रेम की आग

महाराष्ट्र के एक छोटे से तटीय गांव में, जहां समुद्र की लहरें किनारे पर धीरे-धीरे ठहरतीं और हवा में नमकीन खुशबू और नारियल के पेड़ों की सरसराहट घुली रहती, वहां रहती थी एक युवा लड़की नाम प्रिया। प्रिया, 24 साल की, गांव की सबसे कोमल और रोमांटिक लड़की थी, जिसका बदन जैसे किसी कविता से निकला हो – गोरी स्किन जो चांदनी रात में चमकती, लंबे काले बाल जो हवा में लहराते और कमर तक पहुंचते, 34C के कोमल स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में हल्के से उभरते, पतली कमर जो साड़ी में लिपटी रहती लेकिन स्पर्श करने पर गर्माहट देती, और कूल्हे जो चलते वक्त धीरे-धीरे हिलते जैसे कोई लय हो। उसकी गांड मुलायम और गोल, छूने पर जैसे मखमल, और चूत अभी वर्जिन, गुलाबी और टाइट, लेकिन इच्छाओं से भरी, जो रातों में हल्की गीली हो जाती। प्रिया का जीवन सादा था – दिन में घर का काम, शाम को समुद्र किनारे टहलना, और रातों में सपने देखना किसी राजकुमार के। वह रोमांटिक किताबें पढ़ती, प्यार की कल्पना करती, लेकिन कभी किसी लड़के से बात नहीं की, शरमाती। गांव में एक लड़का था नाम विक्रम, 26 साल का, मछुआरा, मजबूत बदन वाला, गोरा रंग, लंबे बाल जो हवा में उड़ते, और मुस्कान जो दिल जीत लेती। उसका लंड 8 इंच लंबा, मोटा और नसदार, जो प्रिया को देखकर सख्त हो जाता। विक्रम प्रिया को पसंद करता, लेकिन उसकी भोलीपन से डरता, धीरे-धीरे उसे फंसाना चाहता था।
कहानी की शुरुआत उस शाम से हुई, जब प्रिया समुद्र किनारे टहल रही थी। सूरज डूब रहा था, लाल रंग की किरणें पानी पर चमक रही थीं। प्रिया की साड़ी हवा में लहरा रही थी, बाल उड़ रहे थे। विक्रम मछली पकड़कर लौट रहा था, प्रिया को देखा। "प्रिया, शाम को अकेली टहल रही हो?" वह बोला, मुस्कुराते हुए। प्रिया शरमा गई, "विक्रम... हां, बस ऐसे ही।" विक्रम करीब आया, "साथ चलूं? अंधेरा हो रहा है।" प्रिया का दिल धड़का, लेकिन वह मानी। रास्ते में बातें हुईं – समुद्र की, गांव की, सपनों की। विक्रम ने कहा, "प्रिया, तू बहुत सुंदर है, जैसे कोई परी।" प्रिया शरमाई, "मत बोलो ऐसे..." लेकिन मन में एक मीठी गुदगुदी हुई। अगले दिन, विक्रम ने प्रिया को फिर बुलाया, "आज शाम समुद्र किनारे चलें, मैं कुछ दिखाऊंगा।" प्रिया गई, विक्रम ने उसे एक शेल दिया, "ये तेरे लिए, तेरी आंखों जैसा सुंदर।" प्रिया मुस्कुराई, "थैंक यू विक्रम..." विक्रम ने हाथ पकड़ा, "प्रिया, मुझे तू पसंद है।" प्रिया का चेहरा लाल हो गया, "विक्रम... मैं... नहीं जानती..." विक्रम ने धीरे से उसके गाल पर हाथ रखा, "डर मत, मैं सिखाऊंगा।" वह प्रिया को चूमने लगा, होंठों पर होंठ, धीरे-धीरे, जीभ मिलाई। प्रिया की आंखें बंद हो गईं, वह जवाब देने लगी, उसकी सांस तेज हो गई। विक्रम का हाथ प्रिया के कमर पर गया, उसे करीब खींचा। "प्रिया... तेरा बदन कितना गर्म," वह फुसफुसाया। प्रिया कराही, "विक्रम... ये क्या... अच्छा लग रहा है..." विक्रम ने प्रिया के ब्लाउज पर हाथ फेरा, हल्के से स्तनों को छुआ। प्रिया तड़प उठी, "आह... मत करो..." लेकिन वह रुकी नहीं। विक्रम ने कहा, "प्रिया, चल घर चलें, वहां बताऊंगा।"
घर पहुंचकर, विक्रम प्रिया को अपने कमरे में ले गया, जहां सिर्फ एक बिस्तर और लैंप था। "प्रिया, लेट," वह बोला। प्रिया लेटी, विक्रम उसके बगल में। वह प्रिया को चूमने लगा, गले पर, कान पर, "प्रिया, तू मेरी है।" प्रिया की सांस तेज, "विक्रम... मैं डर रही हूं..." विक्रम ने प्रिया की साड़ी का पल्लू गिराया, ब्लाउज के बटन खोले, ब्रा उतारी। प्रिया के स्तन बाहर आ गए – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स चमकते। "प्रिया, क्या सुंदर स्तन," विक्रम बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, धीरे चूसने लगा, जीभ से निप्पल चाटता, हल्का काटता। प्रिया कराही, "आह... विक्रम... ये क्या... बदन में आग लग रही..." विक्रम का हाथ प्रिया की चूत पर गया, साड़ी ऊपर की, पैंटी गीली थी। "प्रिया, तेरी चूत गीली है," वह बोला, पैंटी उतारकर उंगलियां फेरी। प्रिया चीखी, "आह... वहां... मत छुओ... लेकिन रुको मत..." विक्रम ने उंगली अंदर डाली, धीरे अंदर-बाहर किया। प्रिया तड़पती, "आह... विक्रम... और..." विक्रम ने दो उंगलियां डालीं, स्पीड बढ़ाई, क्लिट रब किया। प्रिया का पानी निकला, "विक्रम... मैं... आह..." वह झड़ गई। "ये क्या हुआ?" प्रिया हांफते हुए बोली। विक्रम मुस्कुराया, "ये मजा है प्रिया, प्यार का।"
विक्रम ने अपना पैंट उतारा, लंड बाहर – 8 इंच लंबा, मोटा, नसदार। प्रिया की आंखें चौड़ी, "ये क्या विक्रम? इतना बड़ा..." विक्रम बोला, "ये लंड है, इससे प्यार होता है। छू।" प्रिया ने हाथ में लिया, सहलाया, "आह... कितना गर्म..." विक्रम ने कहा, "चूस प्रिया।" प्रिया ने मुंह में लिया, धीरे चूसने लगी, जीभ से चाटती। विक्रम कराहा, "आह... प्रिया... अच्छा..." प्रिया ने गैगिंग लेकिन जारी रखा। विक्रम ने प्रिया के पैर फैलाए, लंड चूत पर रगड़ा, "प्रिया, डालूं?" प्रिया बोली, "हां... लेकिन धीरे..." विक्रम ने धक्का मारा, हेड अंदर, प्रिया चीखी, "आह... दर्द..." लेकिन विक्रम ने धीरे आगे बढ़ाया, पूरा अंदर। प्रिया की चूत फैली, दर्द मजा में बदला, "विक्रम... अब अच्छा... चोदो..." विक्रम ने धीरे धक्के मारे, स्पीड बढ़ाई, प्रिया के स्तन उछलते, वह कराही, "आह... विक्रम... और तेज... तेरी जीभ..." विक्रम ने उसके स्तनों को चूसा, निप्पल्स काटे, प्रिया झड़ गई। विक्रम ने बाहर निकाला, प्रिया के मुंह में झाड़ दिया। प्रिया ने निगला, "विक्रम, प्यार है ये?"
अगले दिनों, विक्रम प्रिया को सिखाता। सुबह, नदी किनारे, विक्रम प्रिया की चूत चाटता, "प्रिया, तेरी चूत मीठी।" प्रिया कराही, "आह... विक्रम..." शाम को, जंगल में, विक्रम प्रिया को चोदता, पीछे से। प्रिया की प्यास बढ़ी, वह विक्रम से कहती, "आज गांड में..." विक्रम ल्यूब लगाता, धीरे डालता। प्रिया चीखी, "दर्द... लेकिन मजा..." विक्रम धक्के मारते, प्रिया झड़ती। प्रिया अब भोली नहीं, विक्रम के प्यार में खोई हुई थी, इच्छाओं की दुनिया में डूबी।

विक्रम की जिंदगी अब प्रिया के इर्द-गिर्द घूम रही थी। उस शाम के बाद, जब उन्होंने पहली बार एक-दूसरे के बदन को छुआ था, विक्रम की रातें बेचैन हो गई थीं। वह समुद्र किनारे की उस मुलाकात को बार-बार याद करता, प्रिया के कोमल होंठों का स्वाद जो अभी भी उसके मुंह में महसूस होता, उसके स्तनों की नरमी जो उसके हाथों में जैसे घुल गई थी, और उसकी चूत की गर्माहट जो उसकी उंगलियों पर अभी भी चिपकी हुई लगती। प्रिया की भोली आंखें जो उत्तेजना में चमकती थीं, उसकी शरमाती मुस्कान जो धीरे-धीरे कराह में बदल गई थी, और उसका मासूम बदन जो विक्रम के स्पर्श से थरथराता था – सब कुछ विक्रम को पागल कर रहा था। वह दिन-रात सोचता, कैसे प्रिया को फिर मिले, कैसे उसे और करीब लाए, उसके होंठ चूमे, उसके स्तनों को दबाए, उसके निप्पल्स को काटे, उसकी चूत में उंगलियां डालकर उसे तड़पाए, और आखिरकार अपना लंड उसकी टाइट चूत में घुसाकर जोर-जोर से धक्के मारे, उसकी चीखें सुनकर खुद को कंट्रोल न कर पाए। लेकिन प्रिया गांव की लड़की थी, घर की मर्यादा में बंधी, पिता की सख्ती और मां की नजरें – मिलना आसान नहीं था। विक्रम मछली पकड़ते वक्त, नाव पर बैठे, प्रिया की याद में खो जाता, उसका लंड पैंट में सख्त हो जाता, वह सहलाता, ऊपर-नीचे करता, प्रीकम लीक करता, लेकिन मजा नहीं आता, क्योंकि वह प्रिया की गर्म चूत की कल्पना करता, उसके जूसेज का स्वाद, उसकी कराहें "विक्रम... आह... और गहरा..."। "प्रिया... तू मेरी है, तेरी चूत सिर्फ मेरी," वह फुसफुसाता, और फैसला करता कि आज मिलना है, चाहे कुछ भी हो।
अगली शाम, विक्रम तैयार हुआ। वह पहले से ज्यादा उत्साहित था, क्योंकि पिछली मुलाकात में प्रिया ने वादा किया था कि वह मिलेगी। वह नहाया, ठंडे पानी से बदन को साफ किया, अपने लंड को सहलाया जैसे वह प्रिया की चूत की कल्पना कर रहा हो, फिर साफ कपड़े पहने – सफेद शर्ट जो उसके चौड़े कंधों पर फिट बैठती, और जींस जो उसके मजबूत थाइज को हाइलाइट करती, उसके उभार को हल्का दिखाती। बालों में कंघी की, थोड़ा परफ्यूम लगाया जो मस्की और मर्दाना था, और प्रिया के घर की ओर चल पड़ा। गांव की गलियां संकरी और घुमावदार थीं, शाम का धुंधलका छा रहा था, घरों से चूल्हों का धुंआ निकल रहा था, बच्चे खेल रहे थे, और कुत्ते भौंक रहे थे। विक्रम का दिल जोर से धड़क रहा था, सांसें तेज, वह सोच रहा था – प्रिया से क्या कहेगा, कैसे उसे छुएगा, उसके होंठ चूमेगा, उसके स्तनों को दबाएगा, उसके निप्पल्स को चूसेगा, उसकी चूत को चाटेगा जब तक वह तड़प न उठे, और फिर अपना लंड उसकी टाइट चूत में धीरे-धीरे घुसाएगा, उसके दर्द भरी कराहें सुनेगा "विक्रम... दर्द हो रहा... लेकिन रुको मत..."। प्रिया का घर गांव के बीच में था, छोटा सा लेकिन साफ-सुथरा, सामने छोटा सा आंगन जहां फूल लगे थे, और पीछे छोटा सा बगीचा। विक्रम पहुंचा, हाथ कांपते हुए दरवाजा खटखटाया। दिल की धड़कन इतनी तेज कि लगता जैसे बाहर सुनाई दे रही हो। वह इंतजार करता रहा, सेकंड जैसे घंटे लग रहे थे। दरवाजा खुला, लेकिन प्रिया नहीं थी – उसकी मां शांता खड़ी थी। शांता, 45 साल की, एक साधारण लेकिन अभी भी आकर्षक गृहिणी, जिसका बदन उम्र के साथ थोड़ा भरा हो गया था लेकिन गर्माहट से भरा – गोरी स्किन जो शाम की रोशनी में चमकती, छोटे बाल कान तक, 36D के स्तन जो साड़ी में छिपे लेकिन उभरे हुए, कमर थोड़ी मोटी लेकिन कूल्हे चौड़े जो चलते वक्त हिलते, और गांड भरी हुई जो साड़ी में लहराती। शांता के पति मछुआरे थे, शाम को देर से लौटते, और वह घर संभालती। "कौन है बेटा?" शांता ने पूछा, उनकी आवाज नरम लेकिन थकी हुई। विक्रम हड़बड़ाया, उसका प्लान बिगड़ गया, "आंटी... प्रिया घर है?" शांता ने विक्रम को ऊपर से नीचे देखा, उसकी मजबूत बॉडी, चेहरे की मासूमियत लेकिन आंखों की आग, और मुस्कुराई, "नहीं बेटा, वह सहेली के घर गई है, रात देर से आएगी। तू बैठ, चाय पी ले, बाहर अंधेरा हो रहा है।" विक्रम का मन निराश हुआ, लेकिन शांता को देखकर एक नई उत्तेजना जागी – शांता की साड़ी गीली लग रही थी, शायद नहाकर आई थी, ब्लाउज चिपका हुआ था, उसके स्तनों के उभार साफ दिख रहे थे, निप्पल्स की आउटलाइन जो हल्के सख्त लगते, और उसकी कमर से नीचे साड़ी उसके कूल्हों से चिपकी हुई, गांड की शेप दिखा रही थी। विक्रम का लंड हल्का सख्त हो गया, वह सोचा – प्रिया नहीं है, लेकिन आंटी अकेली है, क्या करूं? शांता चाय बनाने किचन गई, उसकी गांड लहराती हुई, विक्रम की नजरें ठहर गईं, उसका लंड पूरी तरह सख्त।
शांता चाय लेकर आई, झुककर ट्रे रखी, उसके स्तन झांक रहे थे, गहरी क्लिवेज दिख रही थी, निप्पल्स की डार्क आउटलाइन, विक्रम की आंखें वहां अटक गईं। "बेटा, चाय पी, गर्म है," शांता बोली, लेकिन विक्रम का दिमाग कुछ और सोच रहा था। वह बोला, "आंटी, आप अकेली रहती हो दिन भर? पति जी शाम को आते हैं?" शांता बैठ गई, चाय का कप हाथ में, "हां बेटा, दिन भर घर का काम, बच्चे कॉलेज, शाम को पति आते हैं। लेकिन तू प्रिया से मिलने आया था?" विक्रम ने हिम्मत की, शांता का हाथ पकड़ा, "आंटी, प्रिया अच्छी है, लेकिन आप भी बहुत सुंदर हो। आपकी आंखों में एक उदासी है, जैसे कोई प्यास हो।" शांता चौंकी, उसका हाथ छुड़ाया, "ये क्या कह रहा है बेटा? मैं तेरी मां जैसी हूं, गलत है ये।" लेकिन शांता की आंखों में एक चमक थी, सालों की अकेली रातें याद आईं, उसके पति का ठंडा व्यवहार, और विक्रम की युवा बॉडी उसे उत्तेजित कर रही थी। विक्रम नहीं रुका, वह करीब आया, शांता के गाल पर हाथ रखा, "आंटी, मैं आपको खुश कर सकता हूं, जैसे कोई औरत की प्यास बुझाता है।" शांता चिल्लाई, "रुक जा विक्रम... ये क्या कर रहा है? मैं प्रिया की मां हूं, तू उसका दोस्त है, जाओ यहां से!" वह उठने लगी, लेकिन विक्रम मजबूत था, उसने शांता को पकड़ा, सोफा पर गिरा दिया, उसके ऊपर चढ़ गया। "आंटी, शांत हो जाओ, मैं आपको मजा दूंगा, चिल्लाओ मत, कोई सुन लेगा।" शांता ने विरोध किया, हाथ-पैर मारे, "छोड़ मुझे... बदतमीज... मैं तेरी मां हूं... निकल जा!" लेकिन विक्रम ने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए, जोर से चूमा, जीभ अंदर डाल दी, शांता की सांस रुक गई, वह विरोध करती रही लेकिन विक्रम का बदन उसके बदन से दबा था, उसका सख्त लंड शांता की जांघ पर रगड़ रहा था। शांता की चूत में एक गर्माहट फैलने लगी, सालों की प्यास जाग रही थी, "उम्म... मत कर... विक्रम... आह..." वह चिल्लाई लेकिन आवाज कमजोर हो गई।
विक्रम ने शांता की साड़ी का पल्लू गिराया, ब्लाउज के बटन जोर से खोले, ब्रा फाड़कर उतार दी। शांता के भरे हुए स्तन बाहर आ गए – 36D के, थोड़े ढीले लेकिन निप्पल्स डार्क और सख्त, उत्तेजना से फूल गए। विक्रम ने एक स्तन मुंह में ले लिया, जोर से चूसने लगा, जीभ से निप्पल चाटता, दांतों से काटता, "आंटी... क्या माल है तेरे टिट्स, इतने भरे... चूसूंगा सारा दूध निकालकर。" शांता चिल्लाई, "आह... मत काट... दर्द हो रहा... छोड़ मुझे..." लेकिन उसके बदन में मजा आने लगा, निप्पल्स से电流 जैसा दौड़ रहा, चूत गीली हो गई। वह विरोध करती रही, हाथ से विक्रम को धक्का देती, लेकिन विक्रम मजबूत था, वह उसके दूसरे स्तन को दबाता, पिंच करता, "चिल्ला आंटी, लेकिन मजा ले... तेरी चूत गीली हो रही है, मैं जानता हूं।" शांता की पैंटी गीली हो गई थी, वह कराही, "नहीं... मत कर... लेकिन आह... हां... और चूस..." उसकी आवाज बदल गई, विरोध मजा में बदल रहा था। विक्रम ने शांता की साड़ी पूरी उतार दी, पेटीकोट फाड़ा, पैंटी गीली थी, जूसेज से चिपचिपी। "आंटी, देख तेरी चूत कितनी गीली, मेरे लिए बह रही है," वह बोला, पैंटी फाड़कर उतार दी, उंगलियां चूत पर रब की। शांता चिल्लाई, "आह... मत छुओ वहां... निकाल... लेकिन रुको मत... और रब..." विक्रम ने दो उंगलियां अंदर डालीं, जोर से अंदर-बाहर किया, क्लिट को थंब से मसला। शांता तड़प उठी, "आह... विक्रम... दर्द... लेकिन मजा... और तेज..." वह झड़ गई, पानी विक्रम के हाथ पर, बिस्तर गीला। "ये क्या... आह... अच्छा लगा," शांता हांफते हुए बोली, अब मजा लेने लगी, विरोध भूल गई।
विक्रम ने अपना पैंट उतारा, लंड बाहर – 8 इंच लंबा, मोटा, नसदार, हेड लाल और चमकता। शांता की आंखें चौड़ी, "इतना बड़ा... मत डाल... फट जाएगी..." लेकिन विक्रम ने कहा, "आंटी, मजा आएगा, ले ले।" वह शांता के मुंह में लंड डाला, "चूस आंटी, जैसे लॉलीपॉप।" शांता पहले हिचकिचाई, "नहीं... गंदा है..." लेकिन फिर मुंह में लिया, चूसने लगी, जीभ से चाटती, गैगिंग लेकिन जारी रखा, सलाइवा ड्रिपिंग। विक्रम कराहा, "आह... आंटी... तेरे मुंह की गर्मी... चूस जोर से..." शांता अब मजा ले रही थी, "उम्म... तेरे लंड का स्वाद... मीठा..." विक्रम ने शांता को लिटाया, पैर फैलाए, लंड चूत पर रगड़ा, "आंटी, डाल रहा हूं।" शांता चिल्लाई, "धीरे... दर्द होगा..." विक्रम ने धक्का मारा, हेड अंदर, शांता चीखी, "आह... निकाल... फट गई..." लेकिन विक्रम ने धीरे आगे बढ़ाया, पूरा अंदर। शांता की चूत फैली, दर्द मजा में बदला, "आह... हां... अब अच्छा... चोद..." विक्रम ने धीरे धक्के मारे, स्पीड बढ़ाई, शांता के स्तन उछलते, वह कराही, "आह... विक्रम... और तेज... तेरा लंड... मेरी चूत को फाड़ रहा... लेकिन मजा... आह..." विक्रम ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स काटे, शांता झड़ गई, चूत सिकुड़ी। विक्रम ने जोर से धक्के मारे, शांता चीखती रही, "हां... चोद... फाड़ दे... आह..." विक्रम ने बाहर निकाला, शांता के मुंह में झाड़ दिया, गर्म वीर्य। शांता ने निगला, "ये... अच्छा लगा... लेकिन प्रिया को मत बताना।" विक्रम बोला, "आंटी, राज रहेगा, लेकिन फिर आऊंगा।" शांता मुस्कुराई, "हां... आना... तेरे लंड की प्यास लग गई।" प्रिया घर आई, लेकिन कुछ पता नहीं चला। शांता अब विक्रम की प्यासी हो गई थी, इच्छाओं में खोई।
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RE: भोसड़ी की भूखी कहानियाँ - by Fuckuguy - 12-09-2025, 10:24 AM



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